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पद्य

कोई ढुंढ कर ला दो 
कविता

कोई ढुंढ कर ला दो 

कोई ढुंढ कर ला दो  ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव कोई ढुंढ कर ला दो कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है जमाने के इस शोर मे, औद्योगीक जगत के दौर मे, वो मन को हर्षाती जिवनधारा वर्षाती, खेतों मे लहलहाती वो हरियाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस आतंकी कहर मे, नफरतों के जहर मे, मन को लुभाती, मन को मन से मिलाती, अँधकार को भगाती वो दिवाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है निरक्षरता के अंधकार मे, रुढिवादियों कि तलवार मे, संसार को जगाती, अपने प्रकास से ज्ञान के दिपक को जलाती, वो सुरज कि लाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस जाती-धर्म के खेल मे, खुनी खेलों के खेल मे, हमारी एकता अखण्डता को दर्शाती, हमारे संस्कारो को बढाती, पूर्वजों से मिली वो आशिर्वाद कि थैली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस नोटों के खेल मे,...
गुबार और कारवां
कविता

गुबार और कारवां

बुढ़ापा ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , उनको गुजरे नहीं हुए दो पल देखते ही देखते हो गए ओझल l गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , नहीं जाता उनके साथ जमाना क्यों? क्योंकि उन्हें है विश्वास एक दिन फिर लौट कर आएगा कारवा देखेगा फिर जमाना गुबार II लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बा...
आदर्श
कविता

आदर्श

आदर्श ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी भिन्न भिन्न नर जातियां , भिन्न भिन्न संस्कार, हम न किसी आदर्श का, कर सकते  प्रतिकार। हर नर का कर्तव्य है, हर्दय ग्राह्म  आदर्श, जीवन में लेकर चले, हेतु प्रगति उत्कर्ष। व्यवहारिक होता नहीं, बिना विचार  विमर्ष, मतान्धता  धर्माधन्ता, पर निर्मित  आदर्श। मन स्वाधीन रहे सदा, रहे उच्च आदर्श, फलीपूत होगा तभी, यह जीवन संघर्ष। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान औ...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

मजबूर मजदूर =============================================== रचयिता : किशनू झा "तूफान" तन से बहता रोज पसीना, हर दिन होता दुर्लभ जीना। खाने की तो बातें छोडो़, मुश्किल जिसको पानी पीना। मन में जिसके टूटे सपने, हर उम्मीद अधूरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। सत्ता लाखों वादे करती, उनसे अपनी जेबें भरती। निर्धन मजदूरों के घर की, मजबूरी से रात गुजरती। पेट पालने की ख़ातिर, मजदूरी बहुत जरुरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। दिल्ली से सब गावों में, मजदूरों को पैसे आते। सड़क लैटरिंग पैसे सारे, पहले नेता जी खा जाते। मजदूरो को कुछ न मिलता, मजदूरी मजबूरी है । मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। लेखक परिचय : - नाम - किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती अंजना झा निवासी - ग्राम बानौली,(दतिया) सम्प्रति - बी. एससी. ...
श्रमिक
कविता

श्रमिक

श्रमिक ================================== रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" जिनके दम पर निर्मित हुए राजमार्ग - उपवन - प्रासाद आओ उन श्रमिकों को आज करें हम याद जाने किस फौलाद से बनता है इनका सीना सिर पर बोझ ढो-कर जो बहाते है पसीना गर्मी-सर्दी कुछ ना देखे कर्म करें बारहों महीना धर्म -जाति में भेद ना करते रामू - राबर्ट या हो सकीना श्रमिक ही है इस धरा का बहुमूल्य सु़ंदर नगीना जिनके श्रम से सफल हुआ वैभवशाली अपना जीना जिनके दम पर हम सुखी करते मौज से खाना-पीना आओ इनका तिलक करें राजू - मोहन - रीना जिनसे रौशन जग सारा जिनसे जग हुआ आबाद आओ उन श्रमिकों को आज करे हम याद। लेखक परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह...
उधार जिंदगी………
कविता

उधार जिंदगी………

उधार जिंदगी......... ======================================== रचयिता : दिलीप कुमार पाठक मैं हार जाता हूँ अक्सर,फिर भी जीता हूँ भूला नहीं हूँ अक्सर कभी - कभी पीता हूँ तेरी जीत मेरी हार नहीं, फिर भी रोता हूँ परिहास करे ज़िंदगी मेरा, इसलिए जीता हूँ...... खनकते नगमें जिंदगी, ऐसे बजा रही है अर्थी में लिटाने मुझको ऐसे सजा रही है मिलना चाहे मुझसे, खुद को मिला रही है परमदशा को आतुर ऐसे मिलवा रही है.......... अपारिहार्य है सबको नितांत नहीं है, मिटना पंचत्तत्व में सबको नित मिलना ही मिलना मुझमें क्या अनोखा है, तेरा है, ताना - बाना सैलाब, उमड़ में मिला ले करवा मेरा नज़राना..... डर नहीं था जिद थी, तुझसे नहीं मिलेंगे भूले गए थे किरदार नहीं हैं हम नहीं जलेंगे माया में उलझे थे, माया लोक नहीं तजेंगे समझ में सब है आया हँस कर हम जलेंग ........................... ..हँस कर हम जलेंगे ........
ग्रीष्म के मुक्तक
मुक्तक

ग्रीष्म के मुक्तक

ग्रीष्म के मुक्तक =============================================== रचयिता : रशीद अहमद शेख धूप लगे अब तो अंगार! पथ खोजें सब छायादार! तापमान बढ़ता जाए, पारा चढ़ता है प्रतिवार! त्रस्त चेतन हैं तप रहे हैं जड़! अनेक बाग़ भी गए हैं उजड़! बस्तियां गर्म हो रहीं कितनी, धूप में सिंक रहे हैं अब पापड़! है शेष जून अभी तो हुआ है ग्रीष्म-प्रवेश! प्रत्येक सूर्य-किरण में है तापमान-निवेश! कहीं है लू की लपट तो कहीं अनल- वर्षा, झुलस रहें हैं ज़िले सब झुलस रहा है प्रदेश!   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविध...
मैं शहंशाह हूँ
कविता

मैं शहंशाह हूँ

मैं शहंशाह हूँ =============================== रचयिता : परवेज़ इक़बाल मेरे अश्कों से गुज़र कर बच्चों को खुशी मिलती है मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... सोचता हूँ, मेरे लिए महंगा नहीं है सौदा सबको इस दाम भी कहाँ ज़िन्दगी मिलती है... यह महल, ये चौबारे मेरी मेहनत के गवाह सारे सब मे शामिल मेरा पसीना सबने सीखा मुझसे जीना फिर भी खैरात सी मुझको मजदूरी मिलती है... मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... मिले हैं सबको, मेरे सदके में चमक और उजियारे लेकिन मेरे नसीब में आये हैं सारे ही अंधियारे लाल किले की ऊंची दीवार के कंगूरे पर लटकी है कहीं मेरी मजदूरी ताजमहल की बुनियादों को सींचा है मैंने, अपने लहू से और पाए हैं ईनाम में अपने ही कटे हाथ... पाई शोहरत तुमने, उसका नहीं है गम मेरे हिस्से में कियूं कर दीं रुसवाईयाँ तुमने... ये किले, ये मीनारें ताने किसने ? ऊंचे-ऊंचे ये महल बना...
मजदूर पर गर्व
कविता

मजदूर पर गर्व

मजदूर पर गर्व ============================== रचयिता : रीतु देवी मजदूरों पर हम करते हैं गर्व, सच्चे दिल से करते रहते कर्म, परवाह न तेज धूप,शीतलहर के करते, राष्ट्र प्रगति पथ पर सदा चलते रहते। बहाते रहते हैं हर क्षण पसीना, ये ही हैं राष्ट्र के चमकते नगीना। कर देते हैं तरक्की वास्ते जीवन समर्पण, दिखा देते हैं समाज को विकास दर्पण। सब जन मिलकर करें इनका सम्मान, बढेगा राष्ट्र का विश्व पटल पर मान। मजदूर जीवन नव दीप जलाकर, हर्ष के क्षण प्रतिपल लाए समस्याऐं सुलझाकर।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के ...
मोबाईल महिमा
कविता

मोबाईल महिमा

मोबाईल महिमा ================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक नहीं होता है तबतलक  सवेरा । धरे मोबाईल जबतलक न इन्सान ।। रात से दिन तक जब तक न थकले। मोबाईल पकड़ा रहता है इन्सान ।। छुप-छूपाकर वॉट्सऐप खोले। मैशेज देख ही कुछ भी बोले।। पहले मोबाईल को खोले सुबह-शाम। तब ही कर सके कोई भी दूजा काम।। मिल जाए कोई त्योहार या छुट्टी । चाहे दुनिया से ही हो जाय कुट्टी ।। मैशेज टपक रहे हैं हर पल तड़-तड़। मानो बह रही हो झरना कल-कल।। सर पे परीक्षा का फूटने को चाहे ही हो बम। पर वाट्सएप ग्रुप में दिखना है हरपल हरदम।। माता-पिता हैं खूब हरदम गुस्साते। परीक्षा के भय से प्रतिदिन खूब डराते ।। नेत्रज्योति चाहे होता जाय हरपल गौण। सोशल मीडिया पर रहना ही है औण।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-ध...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

बुढ़ापा ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी अब मुझ में वह ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी कभी आकर बैठा करते थे परिंदे मेरी भुजाओं पर आज मुझे ही मुंह चिढ़ा कर चले जाते हैं टूट कर हाँ टूट कर बिखर जाऊंगा एक दिन सूखे तिनके की तरह लोग कहेंगे उठाओ उठाओ और ले कर चल देंगे कुछ आगे कुछ पीछे कुछ आगे कुछ पीछे और जला देंगे सूखी लकड़ी की तरह सूखी लकड़ी, घी, कपूर, कंडो के साथ और हो जाऊंगा पंचतत्व में विलीन एक दिन कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव l लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरव...
ये सड़क चलती है
कविता

ये सड़क चलती है

ये सड़क चलती है ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ये सड़क चलती है मैं तो खड़ा हूँ आज भी उसी रास्ते, जहाँ तेरी खुशबू आज तक मेहकती है, इन फासलों का जिम्मेवार कौन है तू बता दे, मैं कहाँ चलता हुँ कम्बख्त ये सड़क चलती है। शून्य सी जन्दगी ऐसे ही अनन्त तक सफर करती है, दो निवाले की ख़ातिर ये रातें अब कहाँ सोती है, इन पत्थड़ों के चोटों से ये अंगारे भी रो जाते हैं, मैं कहाँ सोता हुँ ये शहर ही सो जाता है। अपने नाकामियों से लड़ता हुँ, मैं अपने गुमनामियों से डरता हुँ, उजाले की खोज में ईन अंधेरो से लड़ता हुँ, अपने साये के साथ चलता हुँ तब ये शाम ढ़ल जाती है, मैं कहाँ खोता हुँ, बस मेरी परछाई खो जाती है।   लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग्राम - आदिलपुर जिला - पटना, (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने प...
फिर छेड़कर तार दिल के
कविता

फिर छेड़कर तार दिल के

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी यूँ हमसे जताओ ना... टूटने से बचा है क्या दिल का कोई कोना तो अभी मुझे बताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... बुरा हूँ मै कहते हो जब तुम खुद मुझे तो दिमाग से मुझे अपने सदा को तुम मिटाओ ना... फिर छेड़कर तार दिल के ... लिख रख्खा है जो हथेलियों पे अपनी जो नाम मेरा मिटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... आएंगे कई दीवाने जीवन में अभी यूँ अपनी सासें मुझपे तुम लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मिलता है प्यार जीवन में नसीब वालों को जो प्यार करते हैं तुम्हें उन्हें कभी सताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... होना था जो हो गया खोना था जो खो गया बातें पिछली याद करके मन में यूँ पछताओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... मांगे नहीं मिलता जीवन में देने कई सोचो तुम सब पर प्यार लुटाओ ना फिर छेड़कर तार दिल के ... फिर छेड़कर तार दिल के हमदर्दी य...
गरज तो है
कविता

गरज तो है

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि"   गरज तो है  वृक्षो के आसरे की  सौतन गर्मी धरती माँगे  बादलों से उधार  अमृत पानी नदी के पत्थर  तन ढाँकते जल पड़ा हो सूखा बहाती नदी  प्रदूषण को जब  पड़ा हो झोली क्रोधित नदी  ना सहन करती दूषित जल वेग के शस्त्र  बाढ़ के आगोश में  लाशों के ढ़ेर   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक ", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्...
मैं नदी हूँ
कविता

मैं नदी हूँ

मैं नदी हूँ =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' सिसकती हूँ, मचलती हूँ, कई मौकों पर गरजती हूँ, उलझती हूँ फिर भी हर रोज मंजिल की तरफ बढ़ती हूँ, मैं नदी हूँ... कभी किनारों पर, कभी गहरे दरियों पर, हर रोज नए लोगों से मिलती और बिछङती हूँ, मैं नदी हूँ... पता नहीं मेरा प्रेमी मुझसे छूटा है या रूठा है, उसी की तलाश में मेरा हर पल बीता है, रात-दिन की बिन परवाह किए मैं अकेली ही बहती हूँ, मैं नदी हूँ... कहीं कल-कल की आवाज तो कहीं छल-छल की आवाज मैं सुनती हूँ, फिर प्रेमिका की तरह खुद से ही लरजती हूँ, मैं नदी हूँ... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं ...
एक और अनेक
कविता

एक और अनेक

एक और अनेक ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी   एक और अनेक आओ भाई हम सब भाई, माला आज बनायेंगे। मालाओं को पहन गले में एक रूप बन जायेगें, हम मातृ भाषा अपनाएंगे। फूल हमारे खुशबू वाले, बागों की सुन्दरता वाले इसी भांति सुन्दर सुन्दर से, हम कर्तव्य दिखाएगें हम राष्टभाषा अपनाएंगे। सुई धागे हाथ जुटाकर अपने अपने फूल सजाकर, नीले पीले सभी गूथ कर, मन की गांठ लगाएगें, हम मातृभाषा अपनायेगें। रंग बिरंगी फूलों वाली, माला बनें रुप की लाली, पहन गले में हम सब इसको, राष्ट ध्वजा फहराएंगे, हम मातृ भाषा ही अपनायेगें। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शह...
काँटों के बगीचों में
ग़ज़ल

काँटों के बगीचों में

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. कि काँटों के बगीचों में गुलों की खेतियाँ भी हैं। जहाँ  भौरें  मचलते  हैं वहाँ कुछ तितलियाँ भी हैं। घटायें देख सारे आसमाँ से डर गए कितने, कि काले बादलों के संग सुहानी बदलियाँ  भी हैं। जहाजों से  सफ़र करना समन्दर पर   रहा आसाँ, करें ग़र जान   मारी तो वहाँ पर कश्तियाँ भी हैं। जहाँ  चीखें  उभरती हैं रुलाई  की रिवायत में, वहाँ छुपकर गमें हालात गाती सिसकियाँ भी है। तुम्हारी याद सारी हर घड़ी पल साथ रहती है, अगर भूलूँ  मुझे  फिर से मिलाती हिचकियाँ भी हैं। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार मप्र सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
धरती का आंगन महका दो : गीत
गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत ================================================ रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" द्वेष दिवारें मिटा दिलों से, मिलजुल कर रहना सिखला दो। । धरती का आंगन महका दो .... नहीं खिले गर फूल कहो फिर, कहां चमन की प्यास बुझेगी। बोल नहीं होंगे मनभावन, कैसे मन की प्यास बुझेगी। अधर रहे गमगीन कहीं यदि, कैसे जीवन प्यास बुझेगी। पुलकित हो अंतर्मन सबके, सरस मधुर संगीत सुना दो। धरती का आंगन महका दो .... फूल शूल मिलकर आपस में, रहे हमेशा पूरक बनकर। धार कुल मिल बने सरित अब, हिलमिल मीत सहोदर बनकर। पवन कराये सैर मेघ को, व्योम थाल में बांह पकड़ कर। भेदभाव हो लुप्त धरा से, परिवर्तन का बिगुल बजा दो। धरती का आंगन महका दो .... कामुकता से ध्यान हटा कर, मानवता का मान करो तुम। कुचले और दबे तबके के, जन-जन का अरमान बनो तुम। सुधरे देश व्यवस्था कैसे, कुछ इसका अनुमान करो तुम...
मुझे तुम भूल जाना
कविता

मुझे तुम भूल जाना

मुझे तुम भूल जाना ========================================== रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर मुझे तुम भूल जाना। कभी ना याद आना।। गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... मेरा बेताव था दिल, उदासी छीन लूं में । रागिनी की कसम , जीभर देख मरूं में। असर बेजान पर क्या रोना, गिड़गिड़ाना ।।.... गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... मांग तेरी है सूनी, चांद तारे सजाता। तेरे आंगन में आकर , शहनाई बजाता।। स्वप्न तो टूटते है, नहीं इनका ठिकाना।।.. गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।..... एक वीरां चमन में, बहारें ला रहा था। गीत फिरसे हमारे, मिलन के गा रहा था।। बड़ा मंहगा पड़ा है, पत्थर से टकराना ।।... गुनाह मुझसे हुआ है, तेरे आंसू चुराना ।।.....   परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद माल...
वतन की मिट्टी
कविता

वतन की मिट्टी

रचयिता : रीतु देवी ============================== वतन की मिट्टी सौंधी-सौंधी खुशबू बिखरती वतन की मिट्टी, पैगाम लायी है प्रदेशों से सपूतों की चिट्ठी। पावन मिट्टी से वीर सपूत करके चंदन, दुर्ग तोड़ रिपुओं के गृह लाते क्रंदन। भारत माँ को मुक्त किया अंग्रेजों के पिंजरे से वीरगति हुए करके तिलक इस मिट्टी से कलकल बहती इस पर मां गंगा की धार है, बेइंतहा वतन मिट्टी से भारतवासियों को प्यार है। लहलहाते हैं यहाँ खुशियों की फसलें, खिलते हैं पावन मिट्टी कीचड़ में अनोखे कमलेंं । वतन मिट्टी को करते हैं शत शत नमन, सारे जहां से अनुपम है हमारा चमन। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप क...
ग़ज़ल
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======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" उसको रूदाद सुनाने की ज़रूरत क्या है। इतनी हमदर्दी कमाने की ज़रुरत क्या है। जो किसी रस्म को जाने , न जो हमराह चले। राब्ता उससे बढ़ाने की ज़रुरत क्या है।। वो अगर दुनिया से डरता है तो घर में बैठे। उसको घर जा के मनाने की ज़रुरत क्या है।। मुश्किलें उलझने मजबूरियाँ क्या हैं उसकी। इसका अन्दाज़ लगाने की ज़रुरत क्या है।। लौट कर जाना है जब एक ही मंज़िल पे "शलभ" फिर किसी और ठिकाने की ज़रुरत क्या है।। परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प...
इज़हार कैसे करे
कविता

इज़हार कैसे करे

रचयिता : राजदीप सिंह तोमर ============================================ इज़हार कैसे करे इज़हार कैसे करे, उसे करना नहीं आता। सुख-दुख और प्यार, उसे दिखाना नहीं आता। जलते हैं,तन उसके, सूर्य की रोशनी से। पर वो पिता है, उसे हारना नहीं आता। घर के आंगन में , खुशियों का तोहफा वो लाता है। खुशियां भले ही छोटी हो, पर मजा बहुत आता है। डगर कितनी भी कठिन हो, उस पर चलना उसे आता है। वो पिता है, उसे राह बनाना भी आता है। जिंदगी की हर जंग, वो जितना चाहता हैं। बस अपनों से हारकर वो, जश्न मनाना चाहता है। स्वयं के लिए नहीं, अपनों के लिए जीता है। वो पिता है, उसे, हारकर जीतना भी आता है।   परिचय :- नाम - राजदीप सिंह तोमर पिता - श्री गजेंद्र सिंह तोमर आप नरसिंग टोला बैहर, जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश निवासी हैं, इंदौर में रहकर रेनेसॉ विश्वविध्यालय इंदौर में पत्रकारिता विषय में अध्ययन क...
कैसे तुझे शब्दों में बांधू
कविता

कैसे तुझे शब्दों में बांधू

रचयिता : संगीता केस्वानी ===================================================== कैसे तुझे शब्दों में बांधू मां मैं कैसे तुझे शब्दों में बांधू, कैसे तेरा गुणगान करूं, कि शब्द बहुत छोटे है, पर भाव बहुत बड़ा है। तप्ती, तीखी धूप में शीतल सी छांव है तू, ठीठूरती सी सर्दी में गुनगुनी सी धूप है तू, प्रेम का अनूठा रूप है तू मैं कैसे तुझे शब्दों में बांधू कैसे तेरा गुणगान करूं....... स्नेह तेरा अमूल्य है त्याग तेरा अतुल्य है, देवता भी अवतरित हुए पाने को तेरा वात्सल्य मैं कैसे तुझे शब्दों में बांधू कैसे तेरा गुणगान करूं...... कहां से लाऊं इतना त्याग तुझसा अनूठा अनुराग, सांसे भी कर दूं अर्पण पर छूं ना पाऊं तेरा समर्पण, मैं कैसे तुझे शब्दों में बांधू कैसे तेरा गुणगान करूं....... मुझ निराकार को तूने किया साकार इतने ऊंचे तेरे संस्कार इतने अनकहे उपकार मैं कैसे व्यक्त आभार करूं मैं कै...
 मोहब्बत का सफ़र
कविता

 मोहब्बत का सफ़र

रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव =======================================================  मोहब्बत का सफ़र तलाश रह गई जिन्दगी सफ़र खत्म कहा हुआ, जिन्दगी युही कटती रही लेकिन कुछ हासिल कहा हुआ, सोचा कि वो मिल जाएँगे राहो मे मगर इंतेजार खत्म कहा हुआ।   कुछ नही है मेरे पास और मै कुछ चाहता भी नही, तुम्हारी आँखो मे है मेरा बसेरा और मै किसी को पहचानता भी नही, तुम्हे भी बसाते हम अपनी आँखो मे लेकीन आँखो का रोना खत्म कहा हुआ।   भुलाना चाहा अपने अश्कों को लेकीन आँखो का साथ छुट गया,  इस मन्दिर मे है तेरी हि मुरत लेकीन इस पुजारी का अब आस छुट गया, इबादत करते हम क़यामत तक लेकीन तेरे होने का एहसास कहा हुआ।   फ़लक तक चलना हमारी आदत सी हो गई, बादलो के साथ हमारी दौर एक पागलपन सी हो गई, खु़ब जुनुन रहा तुझे पाने का, लाते जिन्दगी मे तुझे भी मगर ऐसा नसीब कहा हुआ। लेखक परिचय :-  नाम : ईन...
पलट गया हूँ मैं
ग़ज़ल

पलट गया हूँ मैं

रचयिता : शरद जोशी "शलभ" ======================================== पलट गया हूँ मैं तमाम रिश्तों से नातो से कट गया हूँ मैं। निकल के दुनिया से ख़ुद में सिमट गया हूँ मैं।। किसी की चाह न बाक़ी न राबता बाक़ी। तलब की राह से अब दूर हट गया हूँ मैं।। ये रोशनी तो दिया बुझने के क़रीब की है दिये के तेल से घट- घट के घट गया हूँ मैं।। किसी भी शक्ल में घर लौटना नहींं मुमकिन। हज़ारों लाखों करोड़ों में बट गया हूँ मैं।। पलट के जाना था इक दिन ख़ुदा की सम्त"शलभ" कि आज ही से उधर को पलट गया हूँ मैं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आ...