क्या है व्यवस्था
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संजय जैन
मुंबई
दिया जिन्होंने छोड़,
अपने लोगो को।
तभी लड़खड़ाई हमारी,
देश की व्यवस्था।
मुझे लग रहा है कि,
कही लुप्त न हो जाये।
हमारे देश की वो प्यारी संस्कृति,
तभी पढ़े लिखे लोग,
जा रहे विदेशों को।।
पढ़े लिखे लोग बेच रहे है,
देश में लाटरी के टिकेट।
अनपढ़ लोग पढ़ा रहे है,
बच्चो को स्कूलों में ।
लगा सकते हो तुम,
अंदाजा हमारी व्यवस्था का।
तभी विध्दामान लोग,
चले जा रहे विदेशों को।।
सुधारना होगा हमे अपनी,
देश की व्यवस्था को।
वरना अकाल पड़ जाएगा,
पढ़े लिखे लोगो का।
क्योंकि सब कुछ बदल रहा है,
लोगो की सोच से।
इसलिए तो हम रो रहे है,
अपनी व्यवस्था पर।।
.लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-...