सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?
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रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित
तरस बहुत आता है तुम पर,क्यों सोच आपकी ओछी है?
धारा हटी तीन सौ सत्तर,क्यों फ़िर भी चाहत खोटी है?
यू एन पर होता यकीन,पर देश प्रतिष्ठा नहीं सुहाती।
कश्मीर मुक्त,होगा सशक्त सपने में बात नहीं नहीं भाती।
सौ साल पुरानी एक पार्टी,निज कर्मों पर ना शर्माती।
सिंहासन है अभिशिप्त ,कभी बेटा कभी मम्मी आती।
लौह पुरुष से अमित लगें,मोदी की बात निराली है।
देश आपके साथ हुआ,,,अब क़िस्मत खुलने वाली है।
हम नहीं गुलामों में शामिल,हैं देश प्रेम के अभिलाषी।
नहीं कभी स्वीकार हमें वो,हम हैं सच में भारत वासी।
अफ़सोस हमें,क्यों है वज़ूद?जो देश द्रोह की बात करें?
हम मोदी के दीवाने हैं,सदियों तक वो ही राज़ करें।
कुछ पत्रकार हैं भृमित बहुत,,,,,,,,होता स्वभाव विद्रोही मन।
केवल विरोध न कोई शोध,कलुषित है उनका तन मन धन।
हम मोदी के अनुयायी हैं,,,देश प्रेम सर चढ़ बोले।...