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पद्य

रिश्तों की राह
कविता

रिश्तों की राह

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" जिंदगी की राह कुछ ऐसी ही होती जब बेटी का विवाह हो नजदीक पिता की आँखे डबडबाई  रहती मानों आसुंओं का बाँध टूट रहा हो बचपन से पाला पोसा वो अब घर छोड़ कर जाना होता है ये नियम तो है ही किंतु त्यौहार और घर का सूनापन भर जाता आँसू बेटी के न होने पर परिवार का भूख उड़ जाती बहुत कठिन रिश्ता होता है मध्यांतर का पिता ही इस बात को समझता है फिक्र अपनी जगह सही मगर बिछोह उसकी नींद उडाता ख्वाब तो रास्ता ही भूल जाते दिल का टुकडा उस समय जिसकी कीमत नहीं वो बिछड़ जाता है ये विरहता कुछ सालों तक ही अपना अभिनय निभाती फिर भी बेटी तो बेटी है पिता की याद उसे और पिता को बिटियाँ की फिक्र सताती पिता के बीमार होने पर बेटी ही संदेशा देकर हाल पूछती फिर झूटी आवाज दोहराती मै ठीक हूँ तुम अपना ख्याल रखना ये संवेदना बूढ़े होने तक चलती है मायका मायका होता स्वतंत्र तितल...
हमसफर
कविता

हमसफर

********** निधि मिश्रा पाण्डेय खरेया,गोपालगंज . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . नजरे मिलते ही सुर्ख होठों पे मुस्कान आना, लगता है बिजली गिराने के इरादे लिए बैठे है। . पाबंदी है मेरे कदमों पे राहे-अंजान निकलने को, क्योंकि उनकी सायरी के मुझे चाँद समझ बैठे है। . खफा होके खुदा भी सोचे बस सवाल यही, की ये हुस्न या कोई बला बना बैठे है। . "निधि" में होता है विकास अक्सर जाने है जहां, अपनी हर सफर का उसे हमसफर बना बैठे है। . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . लेखक परिचय :-  नाम:- निधि मिश्रा पेशा : गृहणी निवासी : पाण्डेय खरेया, गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मन में तूफान
कविता

मन में तूफान

********** रूपम आनंद तिवारी अटवा महादेवा मन में तूफान से क्यों है, हर शख्स परेशान से क्यों है? आँखों में ज्वार सा क्यों है, दिलो दिमाग सुनसान सा क्यों है? . शहर का हर चौक चौराहा जाम सा क्यों है, दौड़ता भागता इंसान से क्यों है? चीखता चिल्लाता हर इंसान क्यों है, औकात से ज्यादा बोझ उठाता इंसान क्यों है? . बचपन में ही बूढ़ों सा चाल क्यों है, शोरगुल में भी मन सुनसान सा क्यों है? कुछ पाने से पहले ही उसे खोने का डर क्यों है, न पाने पर खुला मौत का मुंह हैरान क्यों है? . चढ़ते हुए ऊंचाइयों पर गिरता हर इंसान क्यों है, गिरने पर फिर न उठने की चाह क्यों है? मंजिल पाने की चाह में कुछ खोने से डरता इंसान क्यों है, न पाने पर मौत के कुएं में कूदता इंसान क्यों है? . हर रूप है तेरे "रूपम" में, होके मेरे इतने करीब, फिर भी तू इतना अंजान सा क्यों है? मन में तूफान सा क्यों है, हर शख्स परेशान सा क...
लौटना चाहता हूँ
कविता

लौटना चाहता हूँ

********** पुरु शर्मा अशोकनगर (म.प्र.) . लौट जाना चाहता हूँ दोबारा बचपन की उन संकरी सी तंग गलियों में जिनमें सिमटा था जहां सारा समेटना चाहता हूँ उस गली में बिखरे यादों के पत्तों को और सुनना चाहता हूँ उन पत्तों की खड़खड़ाहट का मधुर संगीत महसूस करना चाहता हूँ दोबारा उस गली में गूँजते पदचिन्हों की चाप, देखना चाहता हूँ दोबारा उस बरगद पर चिड़ियों का डेरा जिसकी डालों पर झूलते बीता बचपन मेरा . जाना चाहता हूँ उस गली के अंतिम छोर तक और पार करना चाहता हूँ दोबारा उस पुराने घर की मीठी दहलीज को जिसे लाँघ कर गया था कड़वाहटों की दुनिया में . खोलना चाहता हूँ सालों से बंद जर्जर किवाड़ अपने अंतर्मन के जिनमें कैद हैं वक्त की मार से झुक चुके पंछी कई खटखटाना चाहता हूँ बंद कमरे की खिड़की को और ढूढ़ना चाहता हूँ दुबारा उन्ही चारदीवारों में खुद को चढ़ना चाहता हूँ दोबारा उस छत की मुंडेरों पर जहाँ सूर्य स...
पत्थर दिलों की यादें
कविता

पत्थर दिलों की यादें

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) मुझे वक्त याद आया पत्थर बना रहा हूँ उन जख्मों वाले घावों पर मरहम लगा रहा हूँ मेरा तर बतर ये होना मेरे जीवन की है ये गवाही छाँव के नीचे धूप से मैं पिघला जा रहा हूँ उम्मीद की वो राहें छूटी नहीं हमसे तेरी यादों में अब तक आशूँ बहा रहा हूँ तेरे कहे वो लफ्जों को अपने होंठों से भुला रहा हूँ मुझे जोङ करके तोङा उनको... वही भुला रहा हूँ इतना भी याद रखना जो प्यार था मेरा झूठा तो अब तक खुद को क्यों रूला रहा हूँ प्यार के शहर में रहकर अब नफरत जगा रहा हूँ बिछङे पत्थर दिलों की यादों में अन्तापुरिया नवगीत लिखा रहा हूँ . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमख...
प्रियतम
कविता

प्रियतम

*********** भारती कुमारी (बिहार) हो गयी अग्नि परीक्षा, सम्मान कर लो आत्मा की। व्यथा ह्रदय की सुन लो, बस वाणी में अमृत घोलो। . तेरी मधुर प्रेम की प्यासी, सम्मान कर लो अनुनय प्रेम की। खिलकर मुरझाना पसंद है, बस अपमान की व्यथा में ना धकेलो। . गर्व मैं करूँ तपस्वीनी-सी, ध्यान मैं तेरा धरूँ मनस्वीनी-सी। पहचान हो जगत में दीपशिखा-सी, बस प्रियतम की चरणामृत पान करूँ। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें...
क्या जानते हो
कविता

क्या जानते हो

********** रचयिता : संजय जैन मन की बात मन जानता है। दिल की बात दिल जानता है। मोहब्बत को मोहब्बत, करने वाला पहचानता है। अरे ये तो दिल लगी कि बाते है। जो प्यार मोहब्बत में जीने वाला जानता है।। उदासी भरी जिंदगी क्या होती है। ये मोहब्बत में चोट खाने वाले से पूछो। कि तन्हा में जिंदगी जीना क्या होता है। एक लुटा हुआ इंसान, कैसे जिंदगी जीयेगा। यदि आदत हो मोहब्बत में रहने की।। गमे जिंदगी की शाम क्या होती है। ये गम में रहने वाला ही जानता है। आदत हो यदि पीने की, तो पीने वाला जानता है। बाते है ये सब मदहोशी में जीने वालो की। जो मोहब्बत पर लिखने वाला, शायार जानता है। और इस जमाने की, आदत को पहचानता है।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रि...
ये वतन सलाम है
कविता

ये वतन सलाम है

********** सिद्धि डोशी प्रतापगढ़ ये वतन सलाम है तेरा हिस्सा बनने को तूने भरी उड़ान गया है तू चाँद पर हिंदुस्तान का झंडा लहराने को रोशन है मेरा जहाँ आज फकृ है इस हिन्दुस्तान को जो इस माटी की ख़ुशबू को पहुचाई चॉंद के पास भी हैं वीर सपूत इस भारत के जो हिंदुस्तान की आन बान और शान पर  आच न आने देंगे और इस भारत को किसी के पीछे होने न देंगे .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी. ए द्वितीय की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
परम्परा
कविता

परम्परा

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार परम्परा में बंधी ये औरत परम्परा से रची ये औरत               परम्परा के नाम पर बहुत यातना सही ये औरत                परम्परा ने मारा उसको परम्परा ने किया है घायल                 परम्परा के आड़े आ कर घुट घुट जीती रही ये औरत                   परम्परा नसीब है उसका परम्परा नसीहत है                     हर परिवार का मान बढाती परम्परा में बंधी ये औरत . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० प...
एक अजनबी
कविता

एक अजनबी

********** विकास मिश्रा एक अजनबी से सफर में एक अजनबी से मिलना. पर लगता है ऐसे जैसे जानता हूँ सारा इतना.. . गुमसुम गुमसुम सी बैठी थी अकेली. उलझी हुई लगती थी वो एक पहेली.. . होने लगी थी बाते कुछ इधर उधर की, पूंछा ही नही मैंने तुम खोई कहा हो इतना.. . अब तो आंखों ही आंखों में बात होने लगी. धीरे धीरे से वो भी करीब आने लगी.. . हम दोनों एक प्यारी सी मुस्कान में खो गए.. वर्षो से थे बिछड़े अनजाने में मिल गए.. . आंखों से लब्ज अब लब पे आ चुके थे .. और वो अपनी आँखों से ही मेरे लफ़्ज़ों को चुरा रहे थे.. . फिर वो बेधड़क सी अपनी बातों को बोलने लगी.. कुछ थे पुराने राज जो वो अब खोलने लगी.. . अपनी नर्म उंगलियों से अपनी जुल्फों को सुलझाती.. इशारों ही इशारों में मुझे बहुत कुछ समझाती.. . हम सभी अजनबी थे पर अब दोनो घुलमिल गए थे.. कुछ सोए हुए थे ख्वाब धीरे धीरे वो भी जग रहे थे.. . परिचय :- गोपालगंज, बिहार न...
भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम
कविता

भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम

********** मित्रा शर्मा भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम वह कागज की तरह जलने में काम आया न लिखने में . खुले आखों से सपने देखे थे हमने न साकार हुए न ओझल हुए . अजनबी सी तुम्हारी खामोशी के साये में पलते रहे वीरान मरुस्थल की तपती रेत पैरों को जलाते रहे। . आहत करती वह लफ्जों को अनवरत सहते रहे और जख्मों के निशान पर नमकीन करते रहे। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirak...
लाचार देखता रहा
ग़ज़ल

लाचार देखता रहा

********* प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) हसरतों को उम्रभर लाचार देखता रहा इस किनारे से फकत उस पार देखता रहा . बेहद करीब आ के,वो पास से गुज़र गया मैं उसकी गुमशुदी का इश्तहार देखता रहा . जीत कर अहले जँहा को लौट आया वो मगर मुझपे होगी कब फतह इंतजार देखता रहा . देखकर उसनें मुझे इक बार क्या जादू किया आईने में ख़ुद को बार बार देखता रहा . गिरवी रखकर फिर कभी आया ना वो मुझको नज़र बिकता रहा हूँ रोज़ मैं बाज़ार देखता रहा . अपनें हाथों ही जलाकर ख़ुद को तु "शाफिर" यहाँ हसरतों की लाश का अंबार देखता रहा . लेखक परिचय :-  प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
कुछ कहा तो पर
ग़ज़ल

कुछ कहा तो पर

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) कुछ कहा तो पर बहुत अनकहा रहा उसके मेरे दरम्यान एक फासला रहा .  मैंने ताउम्र देखी नहीं मंज़िले मक़सूद  सामने  मुसलसल इक काफिला रहा .  हर दौर के हाकिमों का हाल एक है जिसे देखिए अवाम को बरगला रहा . हम चल आए अपने हिस्से की बाजी अब उनके हाथों हमारा फैसला रहा . आज चमकेंगे ,कल गर्दिश में जाएंगे  हमेशा किस बशर का जलजला रहा . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति ...
बस्तों का बोझ
कविता, बाल कविताएं

बस्तों का बोझ

*********** रचियता : डॉ. शीतल पाण्डेय कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।। रट रट बेहाल हुआ बचपन। नैतिक ज्ञान का पढ़ा ना एक अक्षर।। छूट गया गलियों से नाता। गिल्ली डंडा वो खेल तमाशा।। पलटते किताबों के पन्ने। दिन हवा बन उड़ जाता।। मासूम मन समझ न पाए। छीना जा रहा क्यों उनसे बचपन।। कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।। सुबह उठ मचती भागम भाग। होती परेड और वही बोझिल क्लास।। गुम हो गया बचपन का एहसास। मेरिट बन गई क्यों माता पिता की आस।। मासूम आँखें करती यही सवाल। हमारे अपने रखते नहीं हमारा खयाल।। कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।।   लेखक परिचय :- डॉ. शीतल पाण्डेय ... पी. एच डी - हिन्दी साहित्य निवासी : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
कल और आज की सोच
कविता

कल और आज की सोच

********** रचयिता : संजय जैन कल ने कल से कहाँ, कल मिलोगे क्या तुम। आज सुनकर कल पर हंस पड़ा। कल ने पूछा आज से तुम क्यो हंसे ? तो आज ने कल से कहाँ यही सुनते आ रहे वर्षो से। पर जिंदगी में कल कभी आता ही नही। और तुम कल मिलने को बुला हमे रहे।। इस कल कल के चक्कर में पड़कर। न जाने कितने लोग ने दम तोड़ दिया। और न जाने कितने लाइन में है खड़े। पर कल तेरा कल कभी नही आयेगा।। आज में जीने वाला आज में जीता है। तभी तो खुशाल वो सदा रहता है। कल वाला काल की चक्की में। पिस्ता रहता हैं कल के चक्कर में। इसलिए आज कल को, देखकर बहुत मुस्कराता है।। कल को छोड़ो तुम आज को देखो तुम। कल न किसी का हुआ और न कल होगा। इसलिए आज में ज्यादा होता है वजन। और जिंदगी कल से, आज में खुश होती है।। इसलिए आज में जीने वाले छूते है, सफलता की हर मंजिल को।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में क...
शायरी
कविता

शायरी

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) चलो हम सब मिलकर आज कुछ नया करते हैं नजरें मिलाकर गैरो को अपना करते हैं किसी के साथ रहकर जिंदगी गुज़ार लेना मगर अकेले कभी मत रहना सारे गम भुलाकर अपने में खो जाना मगर इस दुनियां से कुछ भी न छुपाना गलतियों से मुझे सीख मिलती गई... जिन्दगी कोरे पन्नों पर लिखती गई... आजकल लोग मुझसे न जाने क्यों उम्र पूँछ रहे हैं क्या उम्र के सहारे ही रिश्ता जोड़ रहे हैं कोई अल्फ़ाज़ में मेरे खुशी के गीत गाता है चलो हम दूर रहते हैं कोई तो मुस्कुराता है यहाँ की महफ़िलो में हम अकेले शख्स हैं ऐसे, जो गमों के ज़ाम पीकरके खुशी के गीत गाता है वो घूम रहा है प्रेम पत्र का समर्पण हाथों में लिए दुश्मन रुपी घूम रहे हैं उसके पीछे हाथों में तलवार लिए किसी के दिल की मायूसी हमारे साथ रहती है वो दिनभर तो हँसती है शाम को उदास रहती है तेरी चाहत को बड़ी गहरी खदानो में पाय...
रहस्यमयी प्रेम
कविता

रहस्यमयी प्रेम

*********** भारती कुमारी (बिहार) प्रेम की विस्मय में डूब गयी आनंद विह्वल ह्रदय हो गयी उज्जवल-सी लालिमा छा गयी सौंदर्य-सुधा शीतलता में बरसती सहस्त्र सिद्धि-सी जीवन विस्तृत हुई अनायास मंद गति से प्रणय प्रेम निमंत्रण देकर ज्वलंत उमंग में छाई घूँट-घूँट पीते हीं अनहद नाद-सी प्रेममयी ध्वनियाँ ह्रदय में उल्लास भरती प्रेम स्पर्श पाती विह्वल ह्रदय हो जाती निरंतर प्रणय की धार-सी बह जाती गूँजती ह्रदय में रसमयी प्रेम ध्वनियाँ प्रफुल्लित प्राण पुष्प-सी खिलकर प्रेममयी प्रतिमा की दीप्त में खो जाती रुधिर में आती कल्पनामयी विश्वास प्रेममयी मधु-रस आमंत्रण देकर रहस्यमयी प्रेम की अस्तित्व में खो जाती . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
बर्बादी के अफसाने
कविता

बर्बादी के अफसाने

********** अलका जैन (इंदौर) अंकित होंगे मेरे लहू से बर्बादी के अफसाने किसने सोचा था किसने जाना था डूब जाती है कश्ती भंवर में फंस कर अपनी कश्ती का भी यही अंजाम होगा किसने सोचा था किसने जाना था पतझड़ आयेगी आ कर चली जायेगी पतझड़ मगर जिंदगी बन जायेगी किसने सोचा था किसने जाना था दर्द है समय ले कर कटमिट जायेगा दर्द मगर लाईलाज निकला हाय हाय सुना था मेहबूब बेवफा होते हैं कोई कोई मेरे मेहबूब की आंखों मैं फरेब होगा किसने सोचा था किसने जाना था अंकित होगे मेरे लहू से बर्बादी के अफसाने किसने सोचा था किसने जाना था परिचय :- इंदौर निवासी अलका जैन की शिक्षा बी.एससी. है, शायरी के लिए आप गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हैं और मालवा रत्न अवार्ड से नवाजी गईं हैं, फर्स्ट वाल पर १००० लोगों ने आपकी रचनाओं को पसंद किया है। आकाशवाणी दूरदर्शन अखबारों मै लेख गजल कहानी गीत प्रकाशित, आप भजन सत्संग व फैशन का शोक ...
नेता की आंखों में
ग़ज़ल

नेता की आंखों में

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" नेता की आंखों में कम है । पर किसान की आंखें नम हैं । . देश "युवाओं का" है अपना, रोजगार का नाम खतम है । . तुम को ये अहसास नहीं है, कितने अब हालात विषम है । . जंगल का कानून यही है, वही जिएगा, जिस में दम है । . "प्रेम" बता ? ये अच्छे दिन हैं ? कातिल जैसा हर मौसम है । . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में क...
मुँह में आया पानी
कविता

मुँह में आया पानी

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) देख रसगुल्ला मुँह में आया पानी, रसगुल्ले का रसास्वादन कर रही थी मक्खी रानी। मुँह से लाड़ टपक रहा था,जीभ न मेरी मानी बड़ी मुश्किल से खुद को संभाली, समोसे देख मुँह में आ गया पानी पर्स को टटोला मैंने,सिर्फ था नोट दस रूपया कदम बढायी दुकान की ओर गिरी धम्म से रसगुल्ले रस पर रूपया जा उड़ा मूछटण्डे के धोती पर शर्माती, मुस्कुराती करके इशारा, खड़ी हो गयी उसके सामने मूँछे ताने उसने दिया रूपया मान मनौती करने पर श्यामलाल ने दिया समोसा, रसगुल्ला बैठ बेंच निहारती रही समोसा, रसगुल्ला तभी न जाने कहाँ से आ गए बंदर मामा छट से खाकर समोसा, रसगुल्ला चिढाया बहुत मुझे बंदर मामा।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
मां की दुआ
कविता

मां की दुआ

********** रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) मां की दुआओ से खुशियां भर जाती है, मां बिना जन्म की कल्पना नहीं होती है, मां दुनिया अनमोल होती है, मां बिन जीवन है अधूरा, मां ममता की मूरत होती है, जिसमे स्वर्ग और दुनिया दिखती है, मां धरती और चांद में दिखती है, मां तारे और ग्रहों में दिखती है, मां दिन कि सूरज होती है, मां रोशनी की मूरत होती है, मां के चरणों में जन्नत मिलती है, मां के जीवन से आशा , विश्वास मिलती है, मां विद्या का रूप होती है, मां जीवन की धूप होती है, . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - मेरी ...
उपजती है सदा कविता
कविता

उपजती है सदा कविता

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) रहूँ मैं भीड़ में चाहे, रहूँ हर दम हीं मैं खाली उमड़ती है हृदय पथ पर,विचारों पूर्ण दिवाली, मेरा हिय है अति चंचल,विचारों पूर्ण है हलचल, खनक उठती है शब्दों की, है अर्थोपूर्ण रसवाली, मैं अंकुर हूँ विचारों की,मेरी कविता है एक डाली, है गुंजित स्वर तरंगों के,ज्यो कूहुके,कोयल काली, विचारों के समंदर में,है जैसे सीप में मोती, सदा मन में पनपते यूँ,मेरे हर भाव हैं आली, रहूँ भीड़ में चाहे, रहूँ हरदम ही मैं खाली, उमड़ती है हृदय पर,विचारों पूर्ण दिवाली, मेरे मन से प्रवाहित शब्द होते हैं सदा ऐसे, मद से भरे,मद पूर्ण,छलकती ज्यों रसिक प्याली, भावों की जमीन ऐसी,अभावों की कमी जैसी, उपजती है सदा कविता,ज्यों उपजी हो सजी थाली, रहूँ मैं भीड में चाहे, रहूँ हरदम ही मैं खाली, उमड़ती है हृदय पथ पर,विचारों पूर्ण दिवाली . लेखिका परिचय :-  दीपक्रांति पांड...
बचपन
कविता

बचपन

********** श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ब्रम्ह का अद्भुत यह सृजन नौ माह तक हुआ मात कोख  में पोषण अवतरित हुआ धरा पर  नटखट चंचल,चपल तन-मन माता पिता का लुभा रहा मन परिभाषित किया समाज ने जिसे  बचपन शाला में धीरे से हुआ आगमन गुरु से पाता स्नेह, ज्ञान, आशिर्वचन . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

*********** मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" (राजकोट गुजरात) बनी    राहें   मेरी    कंटक   भरी। जो   कभी  सपनों  सी  थीं  सजी।। . विष प्याले बने सभी अमृत कलश। जीवन  प्यास   विषधर  सी  डसी।। . अंजुलि  में  सपने  लिये   चली  मैं। ज्वाला   अगन   सी   राहें   जली।। . नजर  देखे  जहाँ  तम  ही तम था। संघर्ष   में    ज़िन्दगी   थी   कटी।। . सोचा   हर   लुंगी   सारे  कष्ट  मैं। ज़िन्दगी    इम्तहान    सी    बनी।। . जूझती  रही   मैं  हर   संकट  से। दुनिया   भी  तंज  कसती   रही।। . मन्नत मंदिर की चौखट पर करी। फिर भी न  टली  मौत की घड़ी।। . जीत लिया सारा जहाँ जब देखा। मौत   दरवाज़े   पर   थी   खड़ी।। . क्षत - विक्षत   सी   बिखर  गयी। कभी कोमल कली सी थी खिली।। . लेखक परिचय :-  मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी " निवास - राजकोट गुजरात आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंद...
पार होती हदें
कविता

पार होती हदें

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) जिसका खाना खाने में   कलेज़ा दुख रहा हो सोचो वो अन्दर ही अन्दर    कितना रोया होगा, .  जिस पुत्र को उसका ही      पिता मर जाने की सलाह दे चुका हो और वो    अभी तक जी रहा हो सोचो उसका हाल कैसा होगा, . जो पुत्र पिता की तेल मालिश करते-करते पसीने से नहा चुका हो सोचो उसका    परिणाम कैसा होगा, . वो कैसा पुत्र है जिसे अपने आप को प्रयोग करने तक का अधिकार न हो और दूसरों के काम और मदद के लिए सदा तत्पर्य हो सोचो उसका साहस कैसा होगा, . जो कभी पिता को लौटकर जवाब न देना चाहता हो उसे कठिन यातनाओं के साथ पाला जा रहा हो सोचो उस पर क्या बीत रहा होगा, वो इतनी यातना भरा जीवन जी रहा है कि उसकी हैसियत घर में नौकर से भी बदतर है सोचो उसके दिल पर कितनी आवाजों का बोझ होगा, कितनी और हदें पार होगीं . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्...