तेरी राहों में साजन हम
अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत"
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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साजन हम तेरी राहों में,
मधुरिम फूल बिछाएंगे।
अपने सुंदर घर आँगन को,
उपवन-सा महकाएंगे।
लिख-लिख पाती हार गई में,
तुझे याद ना आती है।
पवन बसंती आँचल छूकर,
मुझको बहुत सताती है।
खबर नहीं लाती है तेरी,
पास देह तक आती है।
शीतल मंद सुगंध पवन भी,
मुझको नहीं सुहाती है।
ना मुँडेर पर काग बोलता,
नहीं शगुन करती मैंना।
जैसे-तैसे दिन कट जाता,
मगर नहीं कटती रैना।
ओ निष्ठुर, बेदर्दी बालम,
तेरी याद सताती है।
पागल हो जाती हूँ सुनकर,
जब कोयलिया गाती है।
पवन झकोरे मेरे मन को,
बार-बार विचलित करते।
विरह वेदना मेरे मन की,
आज क्यों नहीं तुम हरते?
कागा तेरी चोंच कनक से,
खुश होकर मड़वा दूँगी।
बड़ा कीमती एक नगीना,
मैं उसमें जड़वा दूँगी।
तेरे कहने से जब साजन,
गेह लौट कर आएंगे।
हम तेरी राहों में साज...