Wednesday, April 30राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

स्वप्न दीप
कविता

स्वप्न दीप

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** दीप जला एक सपने में, वह सपना चंचल भोला था मृग नयनों ने जब पाला तो, मृदु अधरों ने भी बोला था। पंख ना तो तुम इसको रश्मि, इसे अम्बर तक अभी जाना हैं फिर संध्या हुई साँझ की रंगमयी, साँझ हुई सन्ध्या की करुणा। बना व्योम की पावन बेला, जुगनू से राह सजाना था उड़ते खग– मृग पुलकित होते, अपनी सुध– बुध में थे डूबे। स्नेह बना अम्बर से जब तो, तारों ने भी स्वीकार किया ये थी मेरी स्वप्न व्यथा जिसने उज्जवल अक्षर जीवन पाया। बिखरी थीं जो स्मृती क्षार–क्षार, तब एक दीपक ने मुझको अजर–अमर बनाया, फिर स्नेह–स्नेह हमने पहचाना। लिया संकल्प अब लौं बन जाना हैं, दीप जला एक सपने में।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
गुरु वंदना
कविता

गुरु वंदना

शंकर गोयल (छत्तीसगढ़) ******************** गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। राग द्वेष के भाव मिटाएं, प्रेम भाव सद्भाव बढ़ाएं। अंतर्मन की गहराई से, करते तुमको वंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मुश्किलों में राह दिखाएं, संघर्ष पथ को सहज बनायें। दुर्व्यसन की लत छुड़वाए, भक्तों के दुख कष्ट मिटाए। चरण धूलि गुरुदेव आपकी, मेरे लिए तो चंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मन की बातें किसे सुनाएं, नैया कैसे पार लगाएं। मंजिल तक कैसे पहुंचे हम, गुरुवर हमको राह बताए। अब तो मन में आपके लिए, भक्ति भाव का बंधन है। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। . लेखक परिचय :-  शंकर गोयल, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
रोशनी बन जगमगाओ
कविता

रोशनी बन जगमगाओ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** प्यार का दीपक ज़लाओ इस अंधेरे मे, रुप का जलवा दिखाओ इस अंधेरे मे, दिलो का मिलना दिवाली का ये पैगाम, दुरिया दिल का मीटाओ इस अंधेरे मे ! अजननी है भटक न ज़ाए कही मंजिल, रास्ता उसको सुझाओ इस अंधेरे मे, ज़िन्दगी का सफर है मुश्किल इसलिए, कोई हमसफर हमदम बनाओ इस अंधेरे मे ! हाथ को न हाथ सुझे आज का ये दौर, रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे, अंध विश्वासो के इस मन्दिर मजारो मे, सत्य की शमा ज़लाओ इस अंधेरे मे ! रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे....! लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशि...
जामुन का वृक्ष
कविता

जामुन का वृक्ष

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरे घर के आंगन में लगा नन्हा सा जामुन का पौधा बाल अवस्था में तेज बारिश व हवा से डर जाता था तीखी धूप में सहमा सहमा रहता था। धीरे धीरे वो किशोर हुआ कुछ अनाड़ी, अल्हड़ सा हवा के साथ नाचने लगा बारिश के साथ झूमने लगा तपते सूरज का मुंह चिढ़ाने लगा अब तो वो युवा हो कर ढिड सा घर की खिड़कियों से भीतर झांकने लगा है, अपनी शाखों से दरवाज़े पर दस्तक देता है, दरवाज़ा खोलते ही अपनी पत्तियों से गालों को छू कर मंद मंद मुस्कुराता है, अपनी पीठ पीछे रसीले फल व सुन्दर पक्षियों की भेंट छुपा कर। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
जन्मभूमि
कविता

जन्मभूमि

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। माँ के गर्भ में कदम ताल से । जन्मभूमि का एहसास हुआ ।। जन्मभूमि पर कदम बढ़ाए । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। कैसे भूल जाऊ जन्मभूमि । जन्मभूमि पर पला बढ़ा ।। जन्मभूमि तुम्हें देखकर। यादें सजी सपने साकार ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। जिंदगी की भाग दौड़ में । दौड़ लगाई कर्मभूमि में ।। कर्मभूमि से पहुचे जन्मभूमि । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। इंसान भरा स्वार्थ ईर्ष्या से । अश्रु बहने लगे जन्मभूमि से ।। जब उड़ गए प्राण पंखेरू । तन मिल जाए जन्मभूमि में ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि स...
सुर्य के प्रताप से
कविता

सुर्य के प्रताप से

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मंडप प्रभा जाल से धरा गोद बाल से कभी हथेली चूमती कभी खिले सुर्यमुखी विधाता ये अजीब सा उद्भ्ट प्राण गीत सा पथिक के पाश बँध कर कविता या छन्द कर किसी के मुख चूम कर विश्व पूर्ण घूम कर डरा नही घटा नही क्षेत्र मे बँटा नही जग हुआ महान मुग्ध आसमान सुर्य के प्रताप से तिमिर तेज ताप से . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ...
रजस्वला
कविता

रजस्वला

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** रजस्वलाओं की सुबह अब अलग नहीं होती वे बोरा लिए कोने में अस्पृश्य सी नहीं सोतीं सुबह उठकर घर आपके बर्तन मांजने आती है या आपके छौने को स्कूल छोड़ने जाती है प्रयास पूरा करती है ना प्रवेश करे पूजाघर में दूर रहती है आरती,पूजन और प्रसाद ग्रहण से रास्ते के मंदिर के पास पांव आदतन ठिठकते हैं बस वो मौन प्रार्थना कर दूर निकल जाती है ।। मगर नहीं चाहती वो कि कोई माने बताए उसे शुचिता का कि सिखाने लगे उसे पाठ पवित्रता का क्योंकि देवी है वो अगर तो देवियां कभी नहीं होती रजस्वला रहती हैं सदा वत्सला।।   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित म...
नारी पर प्रताड़ना
कविता

नारी पर प्रताड़ना

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ कब तक सहूँगी प्रताड़ना, कभी तो पूरी करो मेरी कामना। चीख-चीखकर रो रही हूँ मै, कभी तो मान लो मेरी कहना। मत करो तुम मेरी अवमानना, नही तो बाद में प पछताना। नारी शक्ती बन कर तैयार हूँ मै, अभी कभी मत मुझसे टकराना। मत करो तुम किसी पर प्रताड़ना, दहेज के लिए बहुओं को मत जलाना। नही तो नारी चंडी बन जाएगी। फिर मुश्किल हो जाएगा तुम्हारा जीना। अब नही करना तुम किसी से प्रताड़ना, अब तो है पूरा जागरुक जमाना। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत ...
मगहर में
कविता

मगहर में

मृत्युंजय उपाध्याय नवल सिरसिया (कुशीनगर-गोरखपुर) ******************** मगहर में कबीर की समाधि पर हमने चढाए थे फूल वहीं तुमने पढाया था मुझे ढाई आखर प्रेम का मै पढता चला गया हलाँकि मुझे पढकर कोई पण्डित नही बनना था मैं तो सिर्फ महसूस करना चाहता था प्रेम को जिना चाहता था प्रेम को आमी में झाँकते हुए मैने देखी थी मेरी परछाईं को ढकती तुम्हारी परछाईं को साखी, सबद, रमैनी भी आमी के उठते जल तरंगो पर तुमने गाया था प्रेम गीत अब तुम कहती हो ये बातें सिर्फ किताबी है सच कहती हो प्रेम तो कबीर है कबीर सिर्फ किताबो में और हम कबीर से बहुत दूर हैं। . लेखक परिचय :- नाम - मृत्युंजय उपाध्याय नवल निवासी - सिरसिया नम्बर जिला - कुशीनगर शिक्षा - एम.कॉम., एम.ए. (अर्थशास्त्र, शिक्षाशास्त्र), बी.एड.,पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (एम.जे.) सम्प्रति - आकाशवाणी उद्घोषक, आकाशवाणी गोरखपुर पत्र-पत्रिका - कथा क्रम, आजकल, ...
कोहरे से झांकता हुआ
ग़ज़ल

कोहरे से झांकता हुआ

लक्ष्मीकांत मुकुल रोहतास (बिहार) ******************** कोहरे से झांकता हुआ आया मांगी थी रोशनी ये क्या आया सूर्य रथ पर सवार था कोई उसके आते ही जलजला आया घोंसले पंछियों के फिर उजड़े फिर कहीं से बहेलिया आया दूर अब भी बहार आँखों से दरमियाँ बस ये फ़ासला आया काकी की रेत में भूली बटुली मेघ गरजा तो जल बहा आया जो गया था उधर उम्मीदों से उसका चेहरा बुझा बुझा आया बागों में शोख तितलियां भी थीं पर नहीं फूल का पता आया . लेखक परिचय :- लक्ष्मीकांत मुकुल जन्म – ०८ जनवरी १९७३ निवासी – रोहतास (बिहार) शिक्षा – विधि स्नातक संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य। किसान कवि/मौन प्रतिरोध का कवि। कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित, पुष्पांजलि प्रकाशन, दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
दिल आया मझधार में
गीत

दिल आया मझधार में

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** कभी रुखसत जो हुई यादें, हम हंसकर रो लिए, तेरे ख्वाबों को बना कर मोती, ख्यालों में पिरो लिए, उन रोती हुई आंखों की धार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी, घेर खड़ा हुआ तिमिर, सांस हार ने को तैयार न फिर भी, हारने लग गया शरीर, जीती लड़ाई हारे हम करार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। वो रोशन हुई रात अमावस की, जब चांद से हटा घूंघट, लब न बोले नज़रे भी झुक गई, फिर बोला मुझसे लिपट, मेरा तन रोशन है तेरी बहार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था, शंकाओं की घटा ने घेरा था, संग संग में सदा रहे हरपल शाम में, संग में गुजरा हर सवेरा था, संग छूटा इक गलती की मार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...
हम कह ना पाए
कविता

हम कह ना पाए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लग रहा है जैसे तू मुझसे दूर जा रही है, तेरी यादें मुझमें एक डर सा जगा रही है। बीते लम्हों की बेचैनी मुझे रुला सी रही है, दिल की हर धड़कन तुझे बुला सी रही है। तेरे प्यार से यह दिल मेरा यूँ वंचित सा है, फिर क्यों तेरे लिए ही दिल चिंतित सा है। मैं समझा समझ लोगे मगर समझ ना पाए, दोष तुम्हारा क्या दूं जब हम कह ना पाए। मुझे छोड़ कर तुम ना हो पाए जमाने के, पहले ढूंढ़ तो लेते बहाने कुछ ठिकाने के।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानि...
क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी
कविता

क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** “वही जिन्दगी क्यों? कभी अनजानी कभी अनचाही कभी अनमने ढंग से वही क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी कभी उलझनों में कभी संघर्षों में कभी अपनों के कटु वचनों के बीच क्यों ? फकतनुमा जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी हर पल की टेंशन में कल्पना की प्रवृत्ति में कभी आर्थिक क्रांति में उलझी संस्कार और कौमार्य के टकराव में क्यों ? विवशतापूर्ण जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी जायज कभी नाजायज द्वंद्व में! कभी विरुप अनुभवों के बीच तो कभी सामाजिक मुखौटों के बीच क्यों? यायावर जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी तन्हाइयों में तनावों से गुजरकर स्थिर खुशनुमा जिन्दगी की तलाश में क्यों? मानसिक संघर्षों के बीच जीनी पड़ रही हैं जिंदगी क्यों? आहिस्ता आहिस्ता वहीं जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं।.." . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी...
होना था जो साथ मेरे हो गया
ग़ज़ल

होना था जो साथ मेरे हो गया

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** होना था जो साथ मेरे हो गया क्या बतायें क्या मिला क्या खो गया आज फिर दीया जला है कब्र पर हो ना हो वो आज फिर से रो गया भूखे बच्चे को सुनाकर लोरियां माँ ने देखा रोते रोते सो गया उम्र गुज़री पूरी तब आया समझ आज तक आया नहीं है जो गया हर तरफ काँटों का जंगल है यहाँ कौन था जो बीज ऐसे बो गया छिननें की ज़िद तो बस ज़िद रह गयी जिसका जो उसको मुबारक हो गया तुनें "शाफिर" जो किये मैले गुनाह आँख का इक आँसू सब कुछ धो गया . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
वीणा नाम मुझे दिया
कविता

वीणा नाम मुझे दिया

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कितने प्यार से माँ ने, वीणा नाम मुझे दिया। शारदे ने गोद धारण कर, नाम सार्थक कर दिया।। नाम के अनुरूप ही, काम सदा मैंने किया । ना लजाया माँ गोद, नाम अनुरूप काम किया।। बन निडर, हर मुसीबत का सामना किया। धरती माँ की गोद को, सदा हरा भरा किया।। जन्नत सुख माँ की गोद मैं, सदा मैंने पाया। रुखा सुखा जो भी था, माँ के हाथ से खाया।। यही सुख पाने को, कान्हा देखो धरती आया। मचा धूम गोकुल, बहू आनंद संग ग्वाल पाया।। जन्म देवकी दिया, गोद जसोदा सुलाया। दो माँ की गोद पा, कान्हा फुला ना समाया।। कहती वीणा माँ गोद, कोई कभी न बिसराया। चहुँधाम आनंद, सब ने मांँ गोद में पाया।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कैसे उद्गम होत कवित का
कविता

कैसे उद्गम होत कवित का

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** कैसे उद्गम होत कवित का, कैसे उमड़े उर से धारा ? कैसे बहे भाव भंवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा।। जब सब जागे सो जाते हैं, तब चुपचाप ख्वाब आता है। उमड़-घुमड़कर, डूब-डूबकर, झूम-झूमकर मन गाता है।। पागल दिल को कुछ ना सूझे अपनी धुन में नाचे गाए। कल्पनाओं के तार समेटे, तब मनआंगन कवित समाए।। सब सुख फीके पड़ जाते हैं, बजता जब तेरा इकतारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। तेरे आने की आहट से, मन आनंदित हो जाता है । हँसकर हृदय हाव-भाव के, बीज कलम से बो जाता है।। कलम पकड़ बैठा हो जाता, छोड़ नींद अक्सर रातों में। करे सुबह स्वागत सूरज, बीते रात बातों-बातों में ।। रोम-रोम में रमे रोशनी, मिट जाता मन का अंधियारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। कलम कदम से चित पे चढ़के, मन की बात जुबां पे लाए। कहीं ज्ञान की गंग...
हर श्वांश गरजे सम सिंह
कविता

हर श्वांश गरजे सम सिंह

सुरेश चंद्र भंडारी धार म.प्र. ******************** ओ भगवाधारी, है कहाँ तुम्हारी हुंकारें, हिंदुत्व कहाँ, हैं कहाँ गतुम्हारी तलवारें। सिहासन सौंपा था कि कुछ बदलाव मिले, अफसोस सदा, हमको घावों पर घाव मिले। विधर्मीयो से लड़ते हुवे गुर्राए झल्लाये थे, हिन्दू सलामत रहे, योगी मोदी चिल्लाए थे। हिन्दू हितेषी हो, सपना हमने दिन में देखा था, आज़म अखिलेश को सत्ता से बाहर निकाला था। शिव गणपति की यात्रा पर, नित नए हुड़दंग, हिन्दू इस सरकार में, रहता है हरदम तंग। आँखे बंद, विश्वाश हम उनका करने लगे, पुण्य धरा, प्रतिबंधित तिरंगा, अब तो जागे। दिन के उजाले में, कमलेश का संहार किया, भरोसा जितने में, अहो, कैसा उपहार दिया। हत्या नहीं, धब्बा है हमारी हिन्दू अस्मिता पर, जय श्रीराम, उद्घोष जड़वत, मौन आत्मा पर। दम्भ भरने वाले, स्वयंभू रक्षक, आज है मौन , तुम्हारे रहते, कलंकित कर्म, करने वाले है ये कौन । कहते है...
पिया गये परदेश
कविता

पिया गये परदेश

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** अखियाँ उदासी मन में न चैना, कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। जब से पी मैने प्रेम का प्याला, गुँथू मैं निशदिन प्रेम की माला, दर्पण के आगे अपनी ही कहना। कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। सूना है तन मन सूना है अंगना, सूना है जीवन तुम मेरे संगना, रोता है मन मेरा बहते है नैना। कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। यादों के अंगना में सजना की बतियाँ, कटती नहीं री सखी कारी ये बतियाँ, विरह अगन में पल पल में दहना, कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रि...
दर्द माली का
कविता

दर्द माली का

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** व्यथित बहुत हुआ मन। शाक ने माली से पूछा जब माली तूने मेरे लिये आज तक किया ही आखिर भला क्या है ??? दर्द से तड़प उठा माली। ये तो शाक ने आज दे दी थी संभवतः आज गाली।। उस शाक को अब तक जिसने सींचा था पसीने से अपने। आज शाक उससे है पूछ रहा। आज तक आखिर मेरे लिए तूने किया ही क्या है ????? रो रहा था माली यह सोचकर। धूप में जले हाथों को देखकर।। आखिर उसने उसके लिए भला ही आज तक किया ही क्या है ??? . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान...
शिक्षा
कविता

शिक्षा

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** शिक्षा  नहीं है कोई भिक्षा, गुरु से ली गई दीक्षा धैर्य की परीक्षा जीवन में संघर्ष की समीक्षा कर्म के परिणाम की करना है थोड़ी प्रतीक्षा जब मन में हो कोई अभिप्सा ईश्वर से मिलती तितिक्षा यदि हमने प्रकृति की नहीं  की उपेक्षा आहार विहार, रहन-सहन संसाधन, पर्यावरण से मिलती रहेंगी हमें सुरक्षा, जीजिविषा की है यदि हमें अपेक्षा करें ध्यान, प्राणायाम  सुबह-शाम रखें सत्य, अहिंसा और नैतिक शिक्षा मुमुक्षा की यदि है अभिलाषा करों न जग में कोई तमाशा . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
गम के सिवा
गीत

गम के सिवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** गम के सिवा क्या दिया मैंने तुमको, तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... मुझे भूल जाना सपना समझकर, दिल में ना रखना कोई याद मेरी। मेहफूज रखे खुदा हर बला से, चाहे ज़िंदगी कर दे बर्बाद मेरी।। दुआओं भरे गीत अब गाऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... उन रास्तों पर कभी तुम ना जाना, जहां बीती यादें सतायेंगी तुमको। गूंजेंगी कानों में आवाज मेरी, बुलायेंगी तुमको,रूलायेंगी तुमको।। लेकिन नजर ना कहीं आऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभ...
शरणागत
कविता

शरणागत

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरे पापो का हो शमन मेरे दंभ का हो दमन भीतर ही भीतर लड़ रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। ज्ञान के भरम में स्वार्थ के करम में तिनका तिनका बिखर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। क्रोधाग्नि में जला हूँ कुमार्ग पर चला हूँ अब प्रायश्चित कर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। करुणा जगा कर अश्रुओं से भिगा कर ताप, तमस धो रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। नश्वर था, अमर समझ बैठा चाकर था, ईश्वर समझ बैठा जीवन तुझे अर्पित कर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
बाबा की शर्ट में जो दाग है
कविता

बाबा की शर्ट में जो दाग है

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं कुछ दिन से चेहरा तेरा उदास है, तू सोती क्यों नहीं तेरी चुड़ी, बिंदिया, कँगन बहुत ढूंढे मेने माँ गिरे हुए उस धागे के मोती, तू पिरोती क्यों नहीं माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं दरवाजे पर जो मिट्टी हे, मेने देख ली माँ तेरे सिरहाने पर जो चिट्टी है, मेने देख ली माँ मेरा नया खिलोना अब शायद ना आएगा मेरा बाबा लौट कर अब वापस ना आएगा बाहर निकाल तेरे अश्कों को, जी भर तू रोती क्यों नहीं माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं जैसे तु हर कदम मेरे साथ रहती है उन बेटो को भारत माँ की फिक्र, दिन रात रहती है माँ बाबा मेरा महान था, अपने देश की शान था जाते जाते उसने बंदूक चूमि थी आखिरी सांस में भी उसने अपनी धरती चूमि थीं बहुत रात हो गई हैं माँ, अब तू सोती क्यों नहीं ...
आज समाज मे
कविता

आज समाज मे

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** समांत:- है पदांत:- आव ‘आज समाज मेँ एक दिखता है, प्रभाव, धर्म कर्म मेँ लोगोँ का दिखता है, भाव, धर्म निरपेक्ष की रीत, को हम मानते, और व्यवहार मेँ भी दिखाते है, सदभाव, साथ रहते हुये, पीढियाँ कई गुजर गईँ, छोटी छोटी बातोँ पर, न दिखाते हैँ, ताव, शातीँ प्रिय हैँ हम, बात सभी ये जानते, हर सँकट मेँ सेवा का दिखाते हैँ, स्वभाव, दुष प्रचार करने का काम करते, कुछ, लोग, हमारे आपसी स्नेह से, नही होता, दुष्प्रभाव.” . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत...
नदी
कविता

नदी

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) कलकल बहती है निरंतर नदी, पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी। स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती, अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती। कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण, मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन। सिख लेकर नेक राह बढाए कदम, अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम। रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम, हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...