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पद्य

पिता और बेटा
कविता

पिता और बेटा

======================= रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर मजदूरी करके भी हमको उसने पढ़ाया है। कचौड़ी के बदले उसने सूखी रोटी खाया है। हम पढ़-लिखकर इन्सान बनेंगे, यह उम्मीद उसने खुद में जगाया है। जब पिया सिगरेट बेटा, देख वह शरमाया है। उसने नशा का मूँह ना देखा, बेटे ने शिखर आज चबाया है। उसकी उम्मीदों का आज गला घोंट, पता नही बेटे ने आज क्या पाया है। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन - १७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी बेस्ट राइटर अवार्ड - २०१९ इत्यादी। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फ...
हिस्सा बांटे हो गये
ग़ज़ल

हिस्सा बांटे हो गये

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" बुंदेली ग़ज़ल घर के हिस्सा बांटे हो गये । मिटी लड़ाई, सांते हो गए । पुरा-पड़ौसी, मीठे लग रये, हम में जैसे कांटे हो गये । हम खों रत खर्चा की तंगी, कत खेती में घाटे हो गये । मुरहा मुरही सब लावारिस से जैसे चोर-चपाटे हो गए । "प्रेम" आत मिलबे बे ऐसे, जैसे सैर-सपाटे हो गये । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिका...
प्यार तिरंगे के लिए
ग़ज़ल

प्यार तिरंगे के लिए

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज हम सब के  मन  में प्यार तिरंगे के लिए  है हर  जान   का    उपहार तिरंगे के लिए   है देखा किसी  ने  आँख उठाकर जो इस तरफ दुश्मन  का   नरसंहार     तिरंगे के लिए   है ये चेन  ये  अंगूठी     ये   बुन्दे   ये   बालियाँ ये  सोने   का    श्रृंगार     तिरंगे के लिए   है ये  कह  रही है गर्व  से     भारत की  एकता हर  क़ौम   की   ललकार तिरंगे के लिए  है शब्दों   से  सैनिकों   का  मनोबल  बढ़ाएगा ये  'ताज'   रचनाकार   तिरंगे  के  लिए    है लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … ...
हे कान्हा
कविता

हे कान्हा

======================== रचयिता : रुचिता नीमा हे कान्हा!!!!!! कैसे परिभाषित करु मैं अपने प्रेम को,,,,,, तेरा प्रेम मेरे लिये जैसे, बारिश की वो पहली बूंद,, जिससे महक उठे माटी।।।। वो रेत की तपिश में मिला एक बर्फ का टुकड़ा,,,, जो दे असीम सी ठंडक।।।।। तेरे प्रेम का अहसास है इतना शीतल की कड़ी धूप में मिल गया कोई शीतल झरना।।।। ऐसा लगा ही नही की हम एक नहीं, तू साथ नहीं, पर तू मुझसे जुदा भी नहीं,,,।।। हे राधिके!!!! मत दो हमारे प्रेम को कोई भी आकार,, और न ही यह है किसी रिश्ते का मोहताज एक रूह के दो रूप है हम,,, एक दूजे के बिन अपूर्ण है हम।।।।। निःशब्द, निर्विकार, निराकार सब सीमाओं से परे असीमित, अनन्त, अव्यक्त से हम....... राधे कृष्ण राधे कृष्ण राधे कृष्ण लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम....
बुंदेली ग़ज़ल
ग़ज़ल

बुंदेली ग़ज़ल

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" को है जी खों मरने नइयां। मनों मौत से डरने नइयां। झाड़ फूंक - गण्डा ताबीजें, ई चक्कर मे परने नइयां। तजत झूठ और भजत सत्त खों उन खों कछु बिगरने नइयां। बे-ईमानी रेत पेरबो, बा में तेल निकरने नइयां। "प्रेम" एक से मोड़ी-मोड़ा, फरक तनक भी करने नइयां। लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य...
पल  में  रच  दिया  संसार को 
ग़ज़ल

पल  में  रच  दिया  संसार को 

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज जिस  ने  पल  में  रच  दिया  संसार को पूजिए    उस     एक     रचनाकार   को वो   ही     जाने   आत्मा    के   भार को जिस  ने   बाँटा   साँस   के  उपहार  को जो   भी    मानेगा    तिरे      आभार को वो    ही     जानेगा   जगत   निस्सार को वो    शिलाओं  में   समा    सकता   नहीं कैसे   दें       आकार   निर - आकार  को बंद        कर लो अपने   नयनों के  कपाट और      खोलो  अपने     मन के द्वार  को तुम  हृदय   से   माँग  लो  उस  से     क्षमा मोड़    देगा    वो समय     की   धार   को जो   वो   चाहेगा    वही       होगा      सदा कौन     रोकेगा    भला      करतार      को है   सफलता    उस के  चरणों में  ही 'ताज' ले  चलो   उस की   शरण    में  हार     को   लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फो...
कच्चे चूल्हे
कविता

कच्चे चूल्हे

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर कच्चे चूल्हे भूले, भूले सावन के झूले ।। प्रीत भी भूल चले है, दीवारो के छांव तले हैं। किससे क्या आश करें। किस पर विश्वास करें।। जिससे प्रीत बढ़ाई। वो भी है हरजाई।। ये जग नहीं अपनापन का, दुख कौन हरेगा मन का । सब मतलब के नाते। दिग्भ्रमित हमें कर जाते।। चेतनता हर जाती। सब शून्य नजर ही आती। मैं सोच रहा हूँ कैसे ? इस प्रीत से छुटकारा हो ना मोह रहे बंधन का, ना कोई जग प्यारा हो।। ह्रदय से एक आह निकले, और चाह मिटे पाने की। में मतवाला पागल बस, एक धुन हो कुछ गाने की।। वो दिवस शीघ्र आऐगा, जो मुझको तरसाते हैं। वो खुद एक दिन तरसेंगे, आंसू बन जो आते हैं।। अभी हृदय पावस है। मेघ सहज बन जाता। तेरी यादों में आकर, नेह सजल बरषाता ।। पतझर जिस दिन ये होगा। तुम तरसोगे सावन को, किंतु नहीं पाओगे, पुण्य प्रीत पावन को।। प्रकृति का है नियम सखे, परिवर्तन सब कुछ होता ...
मुरलीधर पर मुक्तक
मुक्तक

मुरलीधर पर मुक्तक

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद' ब्रज, बाबा, बलराम, यशोदा मैया की। राधा, गोपी, ग्वाल, बाँसुरी, गैया की। याद आती है वृन्दावन की, यमुना की, चर्चा जब चलती है कृष्ण-कन्हैया की। कन्हैया मीरा के प्रियतम हो गए। मोह सारे जगत के कम हो गए। पराजित कठिनाइयाँ सब हो गईं, विषम पथ संसार के सम हो गए। वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से। हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से। खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस, प्रकट हुई जब सरगम उसके अंशी से। ग्राम, क़स्बा, नगर, पुर अथवा पुरी। सर्वकालिक सतत् वह स्वर माधुरी। क्यों न हो संसार में उसका महत्व, मुरलीधर की मुँह लगी है बांसुरी।   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्...
बोलता कश्मीर
कविता

बोलता कश्मीर

======================= रचयिता : परवेज़ इक़बाल -नज़्म- बोलती हैं सलाखों पे भिंची गर्म मुट्ठियाँ सुने पड़े डाकखानों में लगे लिफाफों के ढ़ेर. और मोबाइल के इनबॉक्स में पड़ी लाखों चिट्ठियां... क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? सन्नाटे के शोर से फटती हैं कानों के रगें खामोश लब और सुर्ख आंखें धधकते सीने पस्त बांहें... सर्द हवा में भी है एक अजीब सी तपिश सवाल करती है चीखते दिल से यह खामोश सी खलिश क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? पूछती है बर्फ, चिनारों को अपनी सफेदी दिखा कर मुझे रोंद्ता नहीं कियूं कोई अब पहाड़ पर आकर... कहते हैं थपेड़े पानी के डल के किनारों से जाकर.. कोई तो खामोशी तोड़ो शिकारों से गीत गाकर... उतारो पानी मे सूखी पड़ी पतवारों को कोई तो आबाद करो इन सूने शिकारों को.... हाँ आज अफसोस नहीं तुम्हें मेरे हाल का लेकिन देना पड़ेगा जवाब कभी तुम्हें भी मेरे सवाल का ये नफरत हरगिज़ न खीर का ज़ायका बढ़ाएगी... दूध प...
वन्दे मातरम् गाते रहेंगे
कविता

वन्दे मातरम् गाते रहेंगे

============================== रचयिता : रीतु देवी वीर रस गीत वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हम संतान हैं वीरांगनाएं माताओं की मुँह तोड़ जवाब देगें शत्रुओं की गोलियों की चिंगारी बन हम राख कर देंगे हर कैम्प दुश्मनों के बुरी नजर फोड़ मुस्कान लाऐंगे होठों माँ-बहनों के वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हर प्रहार सहेंगे भारतभूमि शान वास्ते हँसते-हँसते आँच न कभी आने देंगे माँ भारती पर सस्ते-सस्ते निकल बाहर आऐंगे रिपुओं के चक्रव्यूह तोड़कर जश्न मनाऐंगे बुरे मंसूबों पर पानी फेरकर वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। याद दिलाकर छठी का दूध धूल चटा देंगे युद्ध मैदान में सबक सिखाकर थर -थर रूह कंपा देंगे शैतान के मौत की नींद सुला दें...
मोड़ आया तो
कविता

मोड़ आया तो

=================== रचयिता : सतीश राठी मोड़ आया तो जुदा होने का मौका आया सीप से मोती विदा होने का मौका आया वह कली खिल गई और फूल बनी तो उसकी खुशबू में नहाने का है मौका आया जो जगह वह पा न सका फकीर बन कर बना इंसान तो खुदा होने का मौका आया गलतियों के खिलाफ जब उठेंगे हाथ सभी यह समझ लेना गदा होने का मौका आया पीठ पर धूप को लादे हुए जाएं कब तक झुकी है शाम तो विदा होने का मौका आया   लेखक परिचय :-  नाम : सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष १९८३ से निरंतर संपादन। इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने।। रस्मे उल्फ़त को हमेशा ही निभाया हमने। वो तो राहों में अकेले ही चला करते थे। साथ उनको तो हमेशा ही चलाया हमने।। दूर रहने के बहाने तो उन्हें आते हैं। उनको नज़दीक हमेशा ही बुलाया हमने।। दिल दुखाया है उन्होंने तो हमारा अक्सर। दिल में उनको तो हमेशा ही बसाया हमने।। क्या करें उनसे शिक़ायत वो ग़ैर ही ठहरे। अपना उनको तो हमेशा ही बताया हमने।। अब इरादा है उन्हें उनके हाल पर छोड़ें। उनको पलकों पे हमेंशा ही बिठाया हमने।। क्यूँ "शलभ" को वो मिटाने पे हुए आमादा। उनपे ख़ुद को तो हमेशा ही मिटाया हमने।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म....
मुस्कुरा रहा वतन
कविता

मुस्कुरा रहा वतन

==================== रचयिता : कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' हरी-भरी वसुंधरा को देख कर मेरा वतन, मुस्कुरा रहा है ऐसे फूल का कोई चमन। हर जवान देखता है सीना तानकर यहां, आजाद,भगत,बोस ने जन्म लिया है जहां। जमीं है मेरे प्यार की जमीं है मेरे दुलार की, महक ये बिखेरती प्रेम,पावन,प्यार की। ये धरा भी देखो हमको कैसे यूं लुभा रही, छा रही अमराई है गंगा सुधा बरसा रही। इसका थोडा़ गुणगान करें और इसका मान धरें, गीत भी अर्पण करें और मन दर्पण करें। पा रहें हैं इससे मनभर खुशियों का जहान हम, रक्त रंजित ना धरा हो इसका धरें ध्यान हम। संजीवनी है ये धरा मुस्कानों से भर दें घडा़, इससे बढ़कर कुछ नहीं है इस धरा पर है धरा। पाकर धरा पर हम ये जीवन जीते ही तो जा रहे, शीर्ष पर फहरा तिरंगा हिन्द जन मुस्का रहे। लेखक परिचय :- कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' जन्म - ११.११.१९६५ इन्दौर पिता - श्री सीताराम त्रिपाठी पत्नी - अनिता, पु...
जन्मे कुअँर कन्हाई
कविता

जन्मे कुअँर कन्हाई

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी बृज मे बटत बधाई, जन्मे कुअँर कन्हाई। आँधी रात घणी बरसात, जमना खल खल उबराई, जन्मे कुअँर कन्हाई। कारागृह के बंद द्धार, बिन चाबी ताले खुल गये, अदभुत लीला रचाई, जब जन्मे कुअँर कन्हाई। जहाँ जन्म लिया वहां पिया दूध नहीं, जहाँ दूघ पिया वहां लिया जन्म नहीं, दो दो माता ने खुशियां मनाई। ऐसे जन्मे कुअँर कन्हाई। कंस मामा का करने सफाया, रची कान्हा ने ऐसी माया, धन धन प्रभु की चतराई, शोभा बरणी न जाई । बाजत ढोल नगाड़ा घर घर, और बाजे शहनाई। जब जन्मे कुअँर कन्हाई। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्...
कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?
कविता

कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है? सवालों का हल नहीं ग़म को समझना    दोस्तों   इतना  सरल    नहीं ग़म  गैस  नहीं ,  ठोस  नहीं  और    तरल   नहीं ग़म की   परख   में कोई  अभी तक सफल नहीं जीवन   मिटा दें    ऐसे   कई     ज़ह्र    हैं   मगर ग़म   को  मिटा  सके  कोई   ऐसा  गरल    नहीं जो  दे   खुशी   हमेशा ,  हमें    ग़म  न  दे  कभी आदि  से  आज   तक   कोई   ऐसी  ग़ज़ल नहीं मैं  पी  चुका  हूँ   दर्द के सागर     को   इस लिए ग़म  के    दबाव    से   मेरी   आँखें सजल  नहीं ग़म  से   हरी भरी  हैं  ये   कागज़   की    खेतियाँ जल  है  ये  रोशनाई   का  ,  वर्षा   का जल  नहीं जो  'ताज'  है    उसी  पे  ही  उठती   हैं  उँगलियाँ कीचड़   बिना    खिले   कोई   ऐसा  कमल  नहीं   लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अ...
इश्क और अश्क
कविता

इश्क और अश्क

============================= रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  इश्क और अश्क न नाम लो अश्कों का , इश्क में अश्क तो बहते ही हैं l इश्क किया है इश्क करेंगे , इश्क में अश्क भी मोती से लगेंगे l इश्क में अश्क तो बहते ही है, अश्क भी गम और खुशी की कहानी कहते हैं l लोगों का क्या, लोग तो कुछ भी कहेंगे, वादा करो रो रो के अष्ट नहीं बहेंगे जब भी बहेंगे अश्क तुम्हारे, सोचना दिल मेरा रोया है l नाम न लो अश्कों का, इश्क में इश्क तो बहते ही हैं l इश्क का अश्क से रिश्ता है पुराना इसलिए मेरे अश्कों पर ना जानाl ना नाम लो अश्कों का, इश्क में अश्क तो बहते ही ll लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
उन को हुई मुहब्बत जब से
ग़ज़ल

उन को हुई मुहब्बत जब से

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" उन को हुई मुहब्बत जब से । गले पड़ी है आफत तब से । करते हैं आगाह सभी को, बच कर रहना इसी गजब से । उन को हुई, किसी को न हो केवल यही मांगते, रब से । दिन में तारे, ख्वाब रात भर, दिखें नज़ारे, अजब-अजब से "प्रेम" बता कैसे  छूटकारा ? यही पूछते हैं वे सब से । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, ...
मतदाता की सांसद से अभिलाषा
कविता

मतदाता की सांसद से अभिलाषा

====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना जाकर चौखट पर अपना शीश नवाना देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना किसी के बहकावे में ना आना देना तून साथ सदैव सत्य का करना समर्थन हमेशा उचित का देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना ना डरना ना घबराना रखना अपना पक्ष  हमेशा देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना रखना ध्यान संसद की गरिमा का और रखना मान हमारा निभाकर अपना राजधर्म रखना राष्ट्रहित सर्वोपरि पूरे करना अपने किए वादे देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस हमें भूल न जाना और हां जब हो जाए वहां अवकाश शीघ्र लौट आना जुड़े रहना जमीन से अपनों के बीच लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" झूठे को भी वो हाल मेरा पूछता नहीं। भूले से भी कभी मैं उसे भूलता नहीं।। मैंने कभी किसी को न उसमें किया शरीक। क्या है मेरी नज़र में अगर वो ख़ुदा नहीं।। करने लगे तू उसकी अताओं का गर शुमार। तो ख़ुद ही कह उठेगा मुझे कुछ गिला नहीं।। वो तो वहीं मिलेगा वहीं पर मुक़ीम है। अपने ही दिल में तू उसे क्यूँ ढूँढता नहीं।। लब खोल कर तो हँसता "शलभ" हूँ सभी के साथ। दिल खोल कर ना जाने मैं कब से हँसा नहीं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद...
छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.
ग़ज़ल

छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.

========================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी तीरगी घर मे भले चिराग क़ब्रो पे जले भूखमरी हो जीते जी मरे बाद दावत चले रिश्वत देकर करे काम धन्धे  ऐसे  खूब फले, खाना बदोश जिंदगी, कोई मंज़िल न मरहले, सब  है इंसा के पास, ईमान की कमी खले, भीड़ में   दुनिया की, अब  हम  तन्हा  चले, घूमे फिरे सब जगह, घर  लौटे  शाम   ढले , करते रहो रोशन जहाँ को अंधेरा तो खुद  के तले, आस्तीन हो गई गायब, सांप अब  कहाँ  पले, चिड़िया क्या खेत चुगे, बाढ़ में ही बीज  गले, दूध की क्या बात करे, अब तो छांछ के है जले, ऐसा धरम हम क्यो करे, हवन करते हाथ जले। मन के  मैले  है जो वो, मुझसे   कैसे लगे गले। मौत  हक़  है  "इक़बाल " आये  तो  फिर ना  टले  ।। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ...
बरसों बाद  बरसी खुशियाँ
कविता

बरसों बाद बरसी खुशियाँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** बरसों बाद  बरसी खुशियाँ कश्मीर के आँगन में केशर की क्यारियों में मधुप मधुर राग सुनाए कश्मीर के आँगन में ह्रदय में चुभते थे कभी भय के शूल वीरान पथ पे रोती थी बर्फीली वादियां कश्मीर के आँगन में सत्तर वर्षो से झांकते मासूम चेहरे सूनी पड़ी झीलों में कश्मीर के आँगन में अविरल बहते आँसू पलायन की गाथा सुनाते थे कभी कश्मीर के आँगन में नई इबारत लिखी सुनहरे सपने हुए साकार खिलखिलाने लगी दूब अब कश्मीर के आँगन में जन्नत महकी केशर सी स्वप्न हुए साकार कश्मीर के आँगन में संजय वर्मा "दृष्टि"   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - ...
हिन्दुस्तान है महान
कविता

हिन्दुस्तान है महान

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" शांति का प्रतीक धर्मप्रिय सत्यशील ऐसा देश है हमारा हिन्दुस्तान, सभी मिलजुल के रहे,दिल की बात खुल के कहें, मन में तनिक भी नहीं अभिमान, जात और पात की ना करे कोई बात कद्र करते हम सबके जज्बात की, दुख और सुख में भी खड़े रहते साथ ना करते हम चिंता  दिन और रात की, वीरों के बलिदान का,इस धरा महान का,करते हम सभी मिल सम्मान है, भारत मां के लाल,हाथ में लिये मशाल,दुश्मनों की हर चाल को करते नाकाम है, देश का किसान,जो देश की है शान,उगा अन्न देश को देता जीवनदान है, सिंह सम दहाड़ भर, घाटियां पहाड़ चढ़,खड़ा सीना तान के जवान है, मंदिरों में गीता ज्ञान,मस्जिदों में है कुरान,दोनों धर्मों का अलग-अलग स्थान है, हिंदु मुस्लिमों में प्यार,सदा रहता बरकरार,सबका ईश्वर    सर्वत्र ही समान है, मां-बाप की तालीम,थोड़ी कड़वी जैसे नीम,पर सीख उनकी आ...
बुंदेली ग़ज़ल
ग़ज़ल

बुंदेली ग़ज़ल

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" आज स्याने जुते बैल से, बोझ तरें मर रए हैं, युवा देस के लै-लै डिग्री, ना-कारा फिर रए हैं । सावन-भादों के जे बदरा फिर-फिर घिर रये है । भुंसारे से भईया-भौजी भींजे ही फिर रये हैं । दद्दा ने जो कर्जा लओ थो, अबै तलक बाकी है, देनदारिएं, कर्जा निकरे, अपने ही सिर  रये हैं । बसकारे ने हमरो जीवन, नरक बना के धर दओ, धरती सें बम्मा फूटत है, झिरना से झिर रये हैं । मोड़ा मोड़ी मानत नईं हैं, गद-बद देत फिरत हैं, जी को तन्नक पांव रिपट गओ, धम्म धम्म गिर रये हैं । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर ...
आजाद हो गये
कविता

आजाद हो गये

=========================== रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" कई धर्म - जातियाँ कई वाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। कदर नहीं बलिदान की चिंता धन और मान की भीतर से सब काफिर है बातें कर रहे हैं शान की स्वतंत्रता के नाम पर बरबाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ‌‌।। भूल गये निज संस्कृति हर जगह हो रही अति कहने को है पढ़े-लिखे मति बन रही है कुमति मानव के  नाम पर  अपवाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कव...
रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय
कविता

रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है। बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है। बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं। दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं। रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको। ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को। है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ। पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ। तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है। नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है। भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे। हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे। भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है। बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है। हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो। जो आँख दिखाये शत्रु ...