रह गयी…
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मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी"
(राजकोट गुजरात)
चाहा मैंने जिसे न मिला वो ही।
अधूरी ख्वाहिश दिल में रह गयी।।
न थी इश्क में हमारे कोई दीवार।
कैसे दिलों में हो दरार फिर गयी।।
रातों को बनाये जो आशियाने।
इमारत सुबह रेत सी ढह गयी।।
पुकारा बहुत मैने रुके ही नहीं।
आँखों से मेरे बेबसी बह गयी।।
अलविदा कर तुम जहाँ तक दिखे।
निगाहें वहीं पर रुकी रह गयी।।
तुम तो थे मेरे दिल की इबादत।
पूजा में कहाँ पर कमी रह गई ।।
हसरत तुम्हीं हो बता न सकी।
इक आह! दिल में दबी रह गयी।।
लेखक परिचय :- मीनाकुमारी शुक्ला
साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी "
निवास - राजकोट गुजरात
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