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पद्य

तेरी याद आई
कविता

तेरी याद आई

********** निधि मिश्रा पाण्डेय खरेया गोपालगंज . सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को, जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई। . आंखे खुली सुबह में खुद को अकेली पाया, चिड़ियों ने आवाज लगाई तो तेरी याद आई। . फसल के मौसम में करती इंतजार सी मैं, घिर के काली बदली छाई तो तेरी याद आई। . सूखे खेत वाले किसान सी थी मैं, रिमझिम बारिश आई तो तेरी याद आई। . इलायची में वो खुशबू नहीं अद्रक में वो स्वाद नहीं, एक लाचार सी जब चाय पी तो तेरी याद आई। . तरस रहे थे मेरे कान बस सुनने को एक आवाज, वो प्यारी सी आवाज नहीं आई तो तेरी याद आई। . सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को, जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई। . लेखक परिचय :-  नाम:- निधि मिश्रा पेशा : गृहणी निवासी : पाण्डेय खरेया गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
जली दीपक प्रेम की
कविता

जली दीपक प्रेम की

*********** भारती कुमारी (बिहार) मृदुल मन में पुलक-पुलक कर पुलकित ह्रदय विह्वल प्रेम में उलझ-सी गयी जैसे मधुरस में ह्रदय प्रणय स्वप्न में खो गयी जली दीपक प्रेम की उत्थान-पतन मधुमय जीवन में होती सिंचित प्रेम दिगमंडल रूप-सी बोलूं मधुर स्वर मधुमय ध्वनी-सी जली दीपक प्रेम की तन-मन मुग्ध हो गयी प्रेमरस-सी रोम-रोम असीम प्रकाश भर गयी फूटी ह्रदय में गहन विधुत प्रेममयी अणु जली दीपक प्रेम की .... . परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ड...
गम के आंसू पिये जा…
कविता

गम के आंसू पिये जा…

********** दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ ज़िन्दगी बेकार है,गम के आँसू पिये जा ! ज़िन्दगी बेकार है, गम के आँसू पिये जा !! इतनी ज़ेहमत उठानी होगी ज़िन्दगी मे आकर, क्या मिला इन्सान को इतना पैसा कमाकर ! क्या हुआ खुदको शरीफ़ दिखाकर, क्या कर लिया दूसरो पर उंगलियां उठाकर !! अबतो मरने मारने को भी तैयार है बस तु पिये जा……………………!! कंजूसी मे एक ईट पर पर भी घर टिक जाता है, चंद पैसो के लिये आजकल इंसान बिक जाता है ! कोई खरीदना बेचना इन इन्सानो से सीखे, “राज” तो इन जैसो पर ग़ज़ल लिख जाता है !! मुफ़्त का खा पीकर सब लेते डकार है- बस तु तो पिये जा……………………!! रूठी है ज़िन्दगी अब ज़ोर दो मनाने मे, पेहले लोग वक्त बिताते थे सबको हंसाने मे ! अबतो चाहे सारा जहाँ लुट जाये, कोई नही सुनने वाला… ग़रीब वहीं पीछे और अमीरो की वही रफ़्तार है- बस तु तो पिये जा………………….!! इंसानियत कहाँ चली गई कोई समझ नही पाया, लेकिन मेरे दिम...
बचपन
कविता

बचपन

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) कभी दौड़ना बागों में प्यारी रंगीली तितलियों पीछे, स्वछंद मदमस्त हो खेलते, नीले आसमान तले हर मौसम होते अजीज लुत्फ प्रफुल्लित मन उठाते, दिल को भाता हर चीज बहारें रंगीन करते रहते। अपना पराया का समझ नहीं घर-घर प्यार बरसाते ही बसती है ईश्वर की मूरत, मुस्काते सभी देख भोली सूरत।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपन...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

रचयिता : शरद जोशी "शलभ" ******************** सुनी तो है मगर देखी नहीं है। ख़ुशी इस राह से गुज़री नहीं है।। उजड़ती बसती रहती है ये दुनिया। किसी की ला फ़ना हस्ती नहीं है।। यहाँ है कौनसा दिल ग़म से ख़ाली जिगर किसका यहाँ ज़ख़्मी नहीं है।। मये कौसर से जो पैमाना भर दे। यहाँ ऐसा कोई साक़ी नहीँ है।। ग़रज़मन्दी समझ बैठे जिसे वो। हलीमी इस क़दर अच्छी नहीं है। "शलभ" ने ख़ुद ही ख़ुद्दारी सम्भाली। किसी की़मत अना बेची नहीं है।। . परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व...
कलम का कमाल
कविता

कलम का कमाल

********** संजय जैन मुंबई लिखता में आ रहा, गीत मिलन के में। कलम मेरी रुकती नही, लिखने को नए गीत। क्या क्या में लिख चुका, मुझको ही नही पता। और कब तक लिखना है, ये भी नही पता। लिखता में आ रहा.....।। . कभी लिखा श्रृंगार पर। कभी लिखा इतिहास पर। और कभी लिख दिया,  आधुनिक समाज पर। फिर भी आया नही, सुधार लोगो की सोच में।। लिखता में आ रहा...।। . लिखते लिखते थक गये, सोच बदलने वाली बाते। फिर नही बदले लोगो के विचार। इसे ज्यादा क्या कर सकता, एक रचनाकार।।  लिखता हूँ सही बात, अपने गीतों में... अपने गीतों में......।। . .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का...
हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे
कविता

हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर  ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप मे...
मेरी बेटी बड़ी नखराली से
कविता

मेरी बेटी बड़ी नखराली से

********** अलका जैन (इंदौर) मेरी बेटी बड़ी नखराली से लड़के उसे बहुत दिखाये हमने ना ना ना हर कोई को कह रही से एक से एक अमीर दिखाये ना वो कर जाये एक से एक होशियार दिखाते ना वो कर डाले एक दिन बोली मैंने लड़का पसंद आ गया मैं बोली अरी बावरीये कैसे हुआ बेटी मेरे इश्क में लड़का पागल हे ये मा शादी के बाद लड़का बेटी ने आगरा ले गया बेटी बोली मेरे इश्क में पागल है ताज दिखाने ले जाया है अम्मा मेरी पागल से इश्क में पागल से लड़का ये आगरा पहुंची लाडली मेरी बेटी दो राहें पर बारत रूकी एक राह जाती पागल खाने की ओर दूजी ताज की ओर बारत चली पागल खाने की ओर बेटी उलझन में पड़ गई लाडली पागलखाना पहुंचा दुल्हा सारे पागल खूश छोड़ दें हकीम ये पागल नहीं मेरे इश्क में पागल है ये हकीम बोला कोन बोला तेरे इश्क में पागल नहीं है ये ये तो जन्मजात पागल है मेरा पुराना मरीज से ये . परिचय :- इंदौर निवासी अलका जैन की शिक्षा ब...
आतिश बाज़ी सीं
कविता

आतिश बाज़ी सीं

********** सिद्धि डोशी  प्रतापगढ़ आतिश बाज़ी सीं होंगी आसमान मैं जब तु आयेगा ज़िन्दगी मैं जशने बहारें सी होगी ज़िंदगी जब तू मेरे नाम होगा मेहन्दी से भी गहरा ये प्यार तेरे लिये होगा ये नसीब की बात है जब मिले एक दूजे से हम अब मेरा इन्तज़ार ख़त्म होगा जब तू मेरे साथ हो जाएगा खूशी होगी अब इतनी ज़िंदगी में सिर्फ़ नशा तेरे नाम का होगा ज़िंदगी से प्यार होगा जब तू मेरे साथ हो जाएगा .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी क...
पराया
कविता

पराया

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) लाडली तेरे आँगन की मैं तेरे आँचल की पराया धन नहीं पराया शब्द से होती हृदयाघात, जीवनपर्यंत दूँगी आप सबका साथ। मैं तेरे बगिया की मनमोहक पुष्प भूल न यूँ जाना, विदा कर पराया घर हृदयावास मुझे भी बसाना। मेरा भी अस्तित्व है बाबुल अँगना, मैंने भी देखा है स्वर्णिम सपना।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर...
रिश्तों की राह
कविता

रिश्तों की राह

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" जिंदगी की राह कुछ ऐसी ही होती जब बेटी का विवाह हो नजदीक पिता की आँखे डबडबाई  रहती मानों आसुंओं का बाँध टूट रहा हो बचपन से पाला पोसा वो अब घर छोड़ कर जाना होता है ये नियम तो है ही किंतु त्यौहार और घर का सूनापन भर जाता आँसू बेटी के न होने पर परिवार का भूख उड़ जाती बहुत कठिन रिश्ता होता है मध्यांतर का पिता ही इस बात को समझता है फिक्र अपनी जगह सही मगर बिछोह उसकी नींद उडाता ख्वाब तो रास्ता ही भूल जाते दिल का टुकडा उस समय जिसकी कीमत नहीं वो बिछड़ जाता है ये विरहता कुछ सालों तक ही अपना अभिनय निभाती फिर भी बेटी तो बेटी है पिता की याद उसे और पिता को बिटियाँ की फिक्र सताती पिता के बीमार होने पर बेटी ही संदेशा देकर हाल पूछती फिर झूटी आवाज दोहराती मै ठीक हूँ तुम अपना ख्याल रखना ये संवेदना बूढ़े होने तक चलती है मायका मायका होता स्वतंत्र तितल...
हमसफर
कविता

हमसफर

********** निधि मिश्रा पाण्डेय खरेया,गोपालगंज . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . नजरे मिलते ही सुर्ख होठों पे मुस्कान आना, लगता है बिजली गिराने के इरादे लिए बैठे है। . पाबंदी है मेरे कदमों पे राहे-अंजान निकलने को, क्योंकि उनकी सायरी के मुझे चाँद समझ बैठे है। . खफा होके खुदा भी सोचे बस सवाल यही, की ये हुस्न या कोई बला बना बैठे है। . "निधि" में होता है विकास अक्सर जाने है जहां, अपनी हर सफर का उसे हमसफर बना बैठे है। . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . लेखक परिचय :-  नाम:- निधि मिश्रा पेशा : गृहणी निवासी : पाण्डेय खरेया, गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मन में तूफान
कविता

मन में तूफान

********** रूपम आनंद तिवारी अटवा महादेवा मन में तूफान से क्यों है, हर शख्स परेशान से क्यों है? आँखों में ज्वार सा क्यों है, दिलो दिमाग सुनसान सा क्यों है? . शहर का हर चौक चौराहा जाम सा क्यों है, दौड़ता भागता इंसान से क्यों है? चीखता चिल्लाता हर इंसान क्यों है, औकात से ज्यादा बोझ उठाता इंसान क्यों है? . बचपन में ही बूढ़ों सा चाल क्यों है, शोरगुल में भी मन सुनसान सा क्यों है? कुछ पाने से पहले ही उसे खोने का डर क्यों है, न पाने पर खुला मौत का मुंह हैरान क्यों है? . चढ़ते हुए ऊंचाइयों पर गिरता हर इंसान क्यों है, गिरने पर फिर न उठने की चाह क्यों है? मंजिल पाने की चाह में कुछ खोने से डरता इंसान क्यों है, न पाने पर मौत के कुएं में कूदता इंसान क्यों है? . हर रूप है तेरे "रूपम" में, होके मेरे इतने करीब, फिर भी तू इतना अंजान सा क्यों है? मन में तूफान सा क्यों है, हर शख्स परेशान सा क...
लौटना चाहता हूँ
कविता

लौटना चाहता हूँ

********** पुरु शर्मा अशोकनगर (म.प्र.) . लौट जाना चाहता हूँ दोबारा बचपन की उन संकरी सी तंग गलियों में जिनमें सिमटा था जहां सारा समेटना चाहता हूँ उस गली में बिखरे यादों के पत्तों को और सुनना चाहता हूँ उन पत्तों की खड़खड़ाहट का मधुर संगीत महसूस करना चाहता हूँ दोबारा उस गली में गूँजते पदचिन्हों की चाप, देखना चाहता हूँ दोबारा उस बरगद पर चिड़ियों का डेरा जिसकी डालों पर झूलते बीता बचपन मेरा . जाना चाहता हूँ उस गली के अंतिम छोर तक और पार करना चाहता हूँ दोबारा उस पुराने घर की मीठी दहलीज को जिसे लाँघ कर गया था कड़वाहटों की दुनिया में . खोलना चाहता हूँ सालों से बंद जर्जर किवाड़ अपने अंतर्मन के जिनमें कैद हैं वक्त की मार से झुक चुके पंछी कई खटखटाना चाहता हूँ बंद कमरे की खिड़की को और ढूढ़ना चाहता हूँ दुबारा उन्ही चारदीवारों में खुद को चढ़ना चाहता हूँ दोबारा उस छत की मुंडेरों पर जहाँ सूर्य स...
पत्थर दिलों की यादें
कविता

पत्थर दिलों की यादें

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) मुझे वक्त याद आया पत्थर बना रहा हूँ उन जख्मों वाले घावों पर मरहम लगा रहा हूँ मेरा तर बतर ये होना मेरे जीवन की है ये गवाही छाँव के नीचे धूप से मैं पिघला जा रहा हूँ उम्मीद की वो राहें छूटी नहीं हमसे तेरी यादों में अब तक आशूँ बहा रहा हूँ तेरे कहे वो लफ्जों को अपने होंठों से भुला रहा हूँ मुझे जोङ करके तोङा उनको... वही भुला रहा हूँ इतना भी याद रखना जो प्यार था मेरा झूठा तो अब तक खुद को क्यों रूला रहा हूँ प्यार के शहर में रहकर अब नफरत जगा रहा हूँ बिछङे पत्थर दिलों की यादों में अन्तापुरिया नवगीत लिखा रहा हूँ . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमख...
प्रियतम
कविता

प्रियतम

*********** भारती कुमारी (बिहार) हो गयी अग्नि परीक्षा, सम्मान कर लो आत्मा की। व्यथा ह्रदय की सुन लो, बस वाणी में अमृत घोलो। . तेरी मधुर प्रेम की प्यासी, सम्मान कर लो अनुनय प्रेम की। खिलकर मुरझाना पसंद है, बस अपमान की व्यथा में ना धकेलो। . गर्व मैं करूँ तपस्वीनी-सी, ध्यान मैं तेरा धरूँ मनस्वीनी-सी। पहचान हो जगत में दीपशिखा-सी, बस प्रियतम की चरणामृत पान करूँ। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें...
क्या जानते हो
कविता

क्या जानते हो

********** रचयिता : संजय जैन मन की बात मन जानता है। दिल की बात दिल जानता है। मोहब्बत को मोहब्बत, करने वाला पहचानता है। अरे ये तो दिल लगी कि बाते है। जो प्यार मोहब्बत में जीने वाला जानता है।। उदासी भरी जिंदगी क्या होती है। ये मोहब्बत में चोट खाने वाले से पूछो। कि तन्हा में जिंदगी जीना क्या होता है। एक लुटा हुआ इंसान, कैसे जिंदगी जीयेगा। यदि आदत हो मोहब्बत में रहने की।। गमे जिंदगी की शाम क्या होती है। ये गम में रहने वाला ही जानता है। आदत हो यदि पीने की, तो पीने वाला जानता है। बाते है ये सब मदहोशी में जीने वालो की। जो मोहब्बत पर लिखने वाला, शायार जानता है। और इस जमाने की, आदत को पहचानता है।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रि...
ये वतन सलाम है
कविता

ये वतन सलाम है

********** सिद्धि डोशी प्रतापगढ़ ये वतन सलाम है तेरा हिस्सा बनने को तूने भरी उड़ान गया है तू चाँद पर हिंदुस्तान का झंडा लहराने को रोशन है मेरा जहाँ आज फकृ है इस हिन्दुस्तान को जो इस माटी की ख़ुशबू को पहुचाई चॉंद के पास भी हैं वीर सपूत इस भारत के जो हिंदुस्तान की आन बान और शान पर  आच न आने देंगे और इस भारत को किसी के पीछे होने न देंगे .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी. ए द्वितीय की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
परम्परा
कविता

परम्परा

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार परम्परा में बंधी ये औरत परम्परा से रची ये औरत               परम्परा के नाम पर बहुत यातना सही ये औरत                परम्परा ने मारा उसको परम्परा ने किया है घायल                 परम्परा के आड़े आ कर घुट घुट जीती रही ये औरत                   परम्परा नसीब है उसका परम्परा नसीहत है                     हर परिवार का मान बढाती परम्परा में बंधी ये औरत . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० प...
एक अजनबी
कविता

एक अजनबी

********** विकास मिश्रा एक अजनबी से सफर में एक अजनबी से मिलना. पर लगता है ऐसे जैसे जानता हूँ सारा इतना.. . गुमसुम गुमसुम सी बैठी थी अकेली. उलझी हुई लगती थी वो एक पहेली.. . होने लगी थी बाते कुछ इधर उधर की, पूंछा ही नही मैंने तुम खोई कहा हो इतना.. . अब तो आंखों ही आंखों में बात होने लगी. धीरे धीरे से वो भी करीब आने लगी.. . हम दोनों एक प्यारी सी मुस्कान में खो गए.. वर्षो से थे बिछड़े अनजाने में मिल गए.. . आंखों से लब्ज अब लब पे आ चुके थे .. और वो अपनी आँखों से ही मेरे लफ़्ज़ों को चुरा रहे थे.. . फिर वो बेधड़क सी अपनी बातों को बोलने लगी.. कुछ थे पुराने राज जो वो अब खोलने लगी.. . अपनी नर्म उंगलियों से अपनी जुल्फों को सुलझाती.. इशारों ही इशारों में मुझे बहुत कुछ समझाती.. . हम सभी अजनबी थे पर अब दोनो घुलमिल गए थे.. कुछ सोए हुए थे ख्वाब धीरे धीरे वो भी जग रहे थे.. . परिचय :- गोपालगंज, बिहार न...
भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम
कविता

भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम

********** मित्रा शर्मा भीगे थे तेरी मोहब्बत में हम वह कागज की तरह जलने में काम आया न लिखने में . खुले आखों से सपने देखे थे हमने न साकार हुए न ओझल हुए . अजनबी सी तुम्हारी खामोशी के साये में पलते रहे वीरान मरुस्थल की तपती रेत पैरों को जलाते रहे। . आहत करती वह लफ्जों को अनवरत सहते रहे और जख्मों के निशान पर नमकीन करते रहे। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirak...
लाचार देखता रहा
ग़ज़ल

लाचार देखता रहा

********* प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) हसरतों को उम्रभर लाचार देखता रहा इस किनारे से फकत उस पार देखता रहा . बेहद करीब आ के,वो पास से गुज़र गया मैं उसकी गुमशुदी का इश्तहार देखता रहा . जीत कर अहले जँहा को लौट आया वो मगर मुझपे होगी कब फतह इंतजार देखता रहा . देखकर उसनें मुझे इक बार क्या जादू किया आईने में ख़ुद को बार बार देखता रहा . गिरवी रखकर फिर कभी आया ना वो मुझको नज़र बिकता रहा हूँ रोज़ मैं बाज़ार देखता रहा . अपनें हाथों ही जलाकर ख़ुद को तु "शाफिर" यहाँ हसरतों की लाश का अंबार देखता रहा . लेखक परिचय :-  प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
कुछ कहा तो पर
ग़ज़ल

कुछ कहा तो पर

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) कुछ कहा तो पर बहुत अनकहा रहा उसके मेरे दरम्यान एक फासला रहा .  मैंने ताउम्र देखी नहीं मंज़िले मक़सूद  सामने  मुसलसल इक काफिला रहा .  हर दौर के हाकिमों का हाल एक है जिसे देखिए अवाम को बरगला रहा . हम चल आए अपने हिस्से की बाजी अब उनके हाथों हमारा फैसला रहा . आज चमकेंगे ,कल गर्दिश में जाएंगे  हमेशा किस बशर का जलजला रहा . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति ...
बस्तों का बोझ
कविता, बाल कविताएं

बस्तों का बोझ

*********** रचियता : डॉ. शीतल पाण्डेय कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।। रट रट बेहाल हुआ बचपन। नैतिक ज्ञान का पढ़ा ना एक अक्षर।। छूट गया गलियों से नाता। गिल्ली डंडा वो खेल तमाशा।। पलटते किताबों के पन्ने। दिन हवा बन उड़ जाता।। मासूम मन समझ न पाए। छीना जा रहा क्यों उनसे बचपन।। कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।। सुबह उठ मचती भागम भाग। होती परेड और वही बोझिल क्लास।। गुम हो गया बचपन का एहसास। मेरिट बन गई क्यों माता पिता की आस।। मासूम आँखें करती यही सवाल। हमारे अपने रखते नहीं हमारा खयाल।। कहते बच्चों के कंधे झुककर। न बढाओ बस्तों का बोझ हमपर।।   लेखक परिचय :- डॉ. शीतल पाण्डेय ... पी. एच डी - हिन्दी साहित्य निवासी : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
कल और आज की सोच
कविता

कल और आज की सोच

********** रचयिता : संजय जैन कल ने कल से कहाँ, कल मिलोगे क्या तुम। आज सुनकर कल पर हंस पड़ा। कल ने पूछा आज से तुम क्यो हंसे ? तो आज ने कल से कहाँ यही सुनते आ रहे वर्षो से। पर जिंदगी में कल कभी आता ही नही। और तुम कल मिलने को बुला हमे रहे।। इस कल कल के चक्कर में पड़कर। न जाने कितने लोग ने दम तोड़ दिया। और न जाने कितने लाइन में है खड़े। पर कल तेरा कल कभी नही आयेगा।। आज में जीने वाला आज में जीता है। तभी तो खुशाल वो सदा रहता है। कल वाला काल की चक्की में। पिस्ता रहता हैं कल के चक्कर में। इसलिए आज कल को, देखकर बहुत मुस्कराता है।। कल को छोड़ो तुम आज को देखो तुम। कल न किसी का हुआ और न कल होगा। इसलिए आज में ज्यादा होता है वजन। और जिंदगी कल से, आज में खुश होती है।। इसलिए आज में जीने वाले छूते है, सफलता की हर मंजिल को।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में क...