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पद्य

ईमान में ख़यानत आएगी
ग़ज़ल

ईमान में ख़यानत आएगी

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार जुल्म बढेगा ईमान में ख़यानत आएगी, तभी तो दुनियां में क़यामत आएगी। जुवानों में कड़वाहट लहजो में सख्ती, बेईमानों में बहुत दिखावत आएगी। खुशियों के दीप बुझाने वाले पैदा होंगे, पढ़े-लिखे में भी ज़हालत आएगी। जो रब खफा होगा तो बदलेगी सूरत, ख़ामोश लहजों में भी बगावत आएगी। ज़ुल्म बढेगा ग़रीबों, बेजुबानों,पर इन्सानों के लहजे में अदावत आएगी। सरियत से बेहतर, है नहीं कानून कोई, रस्ते में मेरे हर रोज सियासत आएगी। कांटे भी चुभते है अकसर गुलाबों को, कातिल बना के बीच में अदालत आएगी। शाहरुख़ दागदार है गिरेबा अपना भी, शर्मसार होगी इंसानियत, ऐसी दिखावत आएगी। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
माज़रत चाहता हुँ
कविता

माज़रत चाहता हुँ

************ मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी माज़रत चाहता हुँ मैं तुझसे अब तेरी कम इधर निगाहें हैं तुझ से वाबसता अब नही हुँ मैं मुख़्तलिफ़ तेरी मेरी राहें हैं वसल का ख़्वाब ख़्वाब ही रखिए क्या तबस्सुम है क्या अदाएँ हैं किस तरह पासबाँ सुकून मिले राह तकती अभी निगाहें हैं इसलिए कोई आ न जाए कहीं हम ने अक्सर दिए जलाएँ हैं क्या ताअस्सूर है यार लहजे में किस तजस्सुस में आप आएँ हैं लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने वाली किताबें :- १: माँ और मौसी (उर्दू और हिंदी ग़ज़ल) २: रिदम की दुनिया (अंग्रेजी कविता) ३...
जिंदगी खुशी में जब बीते
कविता

जिंदगी खुशी में जब बीते

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार जिंदगी खुशी में जब बीते, कुछ भी मतलब नहीं बिताने में। लूट लो इल्म के खजाने तुम, इल्म से रोशनी है ज़माने में। वक्त की कद्र तुम नहीं करते, लगे रहते हो धन कमाने में। कितनी कीमती जिंदगी है, सोच लो तुम जरा बिताने में। रोज पीता नहीं हूं मैं यारों, जाम भर कर शराबखाने में। छोड़ना पड़ता है जहां सारा, यार उठा तो हो मनाने में। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं...
अधूरे ख्वाहिश
कविता

अधूरे ख्वाहिश

********** माधुरी शुक्ला कोटा राह आसान नही है इस जिंदगी की, कब क्या हो जाये किसी को नही पता। इतनी मुकम्मल पुर सुकून होती जिंदगी, तो लोग इबादत ही छोड़ देते।। पसन्द का क्या मन का वहम ही तो है, कब किसे कर ले कुछ नही पता।। अधीरता ,बेकरारी किसके लिए, कुछ नही पता बस हो रही है।। अरमान ख्वाहिशे कुछ तो ऐसेहै अधूरे से, नही होते कभी यह, पूरे।। गर होता, इतना आसान, पूरा होना इनका, तो यू ही ना निकलती जिंदगी।। . लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें h...
भलो-बुरौ अब देखत को है
कविता

भलो-बुरौ अब देखत को है

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. भलो-बुरौ अब देखत को है ? गलत काम खों रोकत को है ? जो कर रये, वो भरने पर है, ऐसी बातें घोकत को है । भोजन-पानी की बर्बादी, हो रई बा खों रोकत को है ? कास्तकार पे नजरें सब की, ऊन भेड़ पे छोड़त को है ? "प्रेम" सबे पइसा प्यारो है, जा दुनिया की सोचत को है ? घोकत=चिंतन करना कास्तकार-किसान . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  प...
एक बरस बीत गयो
कविता

एक बरस बीत गयो

*********** जीतेन्द्र कानपुरी मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो। एक बरस बीत गयो।। कथरिया धोउन लगी अम्मा पयॉर बापू लाये। साल निकारो, सूटर और जूता मोजा लाये।। मफलर की कही ती सो न ल्या पाये। बापू बाजार गये मफलर ही भूल्याये।। सो साफी बॉधयो कछु दिन काट्हों। जा दिन बाजार गयो ऊ दिन लै आ हों।। मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो एक बरस बीत गयो।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द...
मैं गया नहीं
कविता

मैं गया नहीं

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) मैं गया नहीं वो बुलाते रहे मैं गया नहीं वो तड़पते रहे मैं गया नहीं वो तरसते रहे मैं गया नहीं वो लड़ते रहे मैं गया नहीं वो देखते रहे मैं गया नहीं वो रोते रहे मैं गया नहीं वो बिगड़ते रहे मैं गया नहीं वो गरज़ते रहे मैं गया नहीं वो बरसते रहे मैं गया नहीं भीगते रहे मैं गया वो सूखते रहे मैं नहीं वो लरज़ते रहे  मैं गया नहीं इसकी थी    सिर्फ़ वज़ह यही उनको कुछ पता नहीं हम समस्याओं से जूझते रहे . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप ...
खुदा की रहमतो में हम
ग़ज़ल

खुदा की रहमतो में हम

*********** अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' छिंदवाड़ा म. प्र. गुज़ारें फिक्र करके किस लिए दिन वहशतों में हम। सदा महफूज़ रहते हैं ख़ुदा की रहमतों में हम॥ ज़हन में इल्म रोशन है जिगर में हौसला रोशन। ख़ुदा का है करम नाज़िल, नहीं है ज़ुल्मतों में हम॥ नहीं है फासले तुमसे न कोई दूरियां या रब ख़यालों में हो तुम ही तुम तुम्हारी कुर्बतों में हम॥ जहन्नुम ज़ीस्त कर सकती नहीं तल्ख़ी ज़माने की। तसव्वुर गर तुम्हारा हो तो हैं फ़िर जन्नतों में हम॥ यकीं ख़ुद पर भी तुम पर भी तो इक दिन देखना रहबर। करेंगे मंज़िलें हासिल तुम्हारी सोह्बतों में हम॥ न औरों की कमी देखें गिरेबां झांक लें अपना। तो सारी ज़िंदगी अपनी गुज़ारें राहतों में हम॥ ग़ज़ल नज़्में क़त'अ नग़में तुम्हारी ही नवाज़िश है। क़लम पर इस करम से ही तो हैं अब शोह्रतों में हम॥ . लेखिका परिचय :-  नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू माता - श्रीमती आयशा मंसूरी ...
घनश्याम नहीं आते
छंद

घनश्याम नहीं आते

*********** भूपधर द्विवेदी अलबेला रीवा (म.प्र.) काल का कुचक्र कण-कण में है व्याप्त आज। भीष्म, द्रोण पापियों की पीठ सहलाते हैं।। सुंदरी, सुरा के मोहजाल में उलझकर। मछली की आँख पार्थ भेद नहीं पाते हैं।। शकुनी की चाल देख मारते ठहाके भीम। सत्यवादी धर्मराज तालियाँ बजाते हैं।। द्रोपदी जलील नित्य हो रहीं सभा में किंतु। चीर को बढ़ाने घनश्याम नहीं आते हैं।। लेखक परिचय :- नाम - भूपधर द्विवेदी साहित्यिक उपनाम - अलबेला पिता - श्री रमाकांत द्विवेदी माता - श्रीमती श्यामकली द्विवेदी जन्मतिथि - बसंत पंचमी १९९२ शिक्षा - स्नातक (गणित), डीसीए, डी. एलएड. पेशा - शिक्षक पता - जमुई कला तहसील - त्योंथर जिला रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…
कविता

थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…

*********** प्रद्युम्न नामदेव बड़ागाँव रीवा म.प्र इष्टो से मिलने मॆ खुशी बहुत होती हैं.. खोयी सी दुनियाँ मॆ प्रतिमा एक होती हैं.. पानी तो हर मौसम मॆ होता हैं नदियों और तालाबों मॆ... पर चातक को प्यास की चाह सदा होती हैं... स्वयं के वास्ते रोना कोई रोना नहीं होता... बहकने के लिये पीना कोई पीना नहीं होता... ज़माना कह रहा हमसे जिओ और जीने दो... खुद के लिये जीना कोई जीना नहीं होता... बादल सौ रूप बदले, पर बादल एक होता हैं... मानव काले गोरे हो, पर खून एक होता हैं... अपने अपने धर्म के चाहे बना लो भगवान... पर भगवान हर जगह एक होता हैं... मै साथ मॆ अलाप भी कर लेता हूँ... और मन्दिर मॆ जाप भी कर लेता हूँ... मानव से देवता न बन जाऊँ... इसलिए थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ... लेखक परिचय :- प्रद्युम्न नामदेव पिता - श्री दरोगा लाल नामदेव शिक्षा - बीएससी तृतीय वर्ष न्यू साइन्स कॉलेज रीवा म.प्र. पता - ग्राम प...
मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की
गीत

मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की

बबिता चौबे शक्ति माँगज दमोह ******************** मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की में नारी हिंदुस्तान की हु नारी हिंदुस्तान की।। मैं झलकारी मैं ही झांसी की रानी हूँ बलिदान की । मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की।। देश के खातिर लड़ी वीरनी मैं ही अवंति बाई हूँ।। दुर्गावती के शौर्य की गाथा तलवारों से लिखाई हूँ ।। विजयलक्ष्मी पंडित जैसी वीरबाला के गुमान की।। चिन्नमा बेगम हजरत हूँ ऐनी भीकाजी बलदाई हूँ।। ।रानी पद्मावती सिंगनी करुणावती जीजा बाई हूँ ।। कमला नेहरू दुर्गा बाई देशमुख के भान की ।। सरोजनी नायडू हु मैं अरुणा आसिफ के नाम की सारन्धा रानी विरवाला चंपा के सुखधाम की शीला दीक्षित शुष्मा स्वराज इंदिरा के सुनाम की ।। मातंगिनी दुर्गा भावी बरुआ कनकलता हूँ मैं ।। रानी दुर्गावती रूप धर दुश्मन की दुर्गता हूँ मैं ।। सरगम हूँ मैं सात सुरों की पावन महिमा गान क...
मैं मंजिल हूँ तुम्हारी
कविता

मैं मंजिल हूँ तुम्हारी

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) मैं मंजिल हूँ तुम्हारी, ये सच है, इसे तुम मान लो, मैं पहली और आखरी ख्वाइश हूँ, तुम्हारी, जान लो, मैं तुम्हारी ताकत हूँ, ताकत और हौंसला भी, किसी भी कसौटी में परख कर, इसे मान लो, नाराजगी, झगड़े, और दूरियाँ ना टिकेंगी हमरे बीच, अधूरे हो मेरे बिन तुम, हकीकत है इसे पहचान लो, सच्चे प्यार की ताकत को वक्त रहते पहचान लो, दुनियाँ ने जो तुम्हें बताया, वो तुमने मान लिया, दूसरों ने जो मंजर दिखाया उसे सच जान लिया, खुद की आंखें खोलो और सच को खुद जान लो, फ़र्क होता है बहुत, सच और झूठ के बीच, बस इसी सूक्ष्म फ़र्क को देखो, पहचान लो, नमी मेरे निगाहों से, छलकती है अगर हरपल, हो खुश कैसे, दिले हालत से पूँछो, और जान लो, मैं हूँ अकेली और तन्हा, ज़िन्दगी के सफर में तो, हो भीड़ में तन्हा तुम भी, खुद से पूछो ये जान लो, मैं मंजिल हूँ तुम्हारी,ये सच है, इसे त...
पैबंद खुशी का
कविता

पैबंद खुशी का

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) पैबंद खुशी का सिला हुआ लगता है भीतर से हर कोई हिला हुआ लगता है मुझे सामने देखकर वो हंसता बहुत है शायद दुश्मनों से मिला हुआ लगता है रात मेरी खिड़की पर बहुत जमी ओस कुदरत की ओर से गिला हुआ लगता है किसी न किसी बात पर मायूस होते हैं और बेबात दिल खिला हुआ लगता है जीतने के लिए इक होड़ सी मची यहाँ हरेक दूसरे पर यूं पिला हुआ लगता है थोड़ा हंसकर या रोकर सफर काट लो अपना यही सिलसिला हुआ लगता है . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता क...
दोहावली
कविता

दोहावली

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) पुत्र भरे बाजार रहा, पिता की कॉलर खींच। कलयुग के ये राम हैं, अधम, असुर सम नींच।। . बाप की सेवा छोड़कर, पत्नी बने गुलाम। मां घर की दासी बनी, बीबी है गुलफाम।। . मां पर ताने कस रही, बहू नये नित रोज। बेटा के लिए बाप भी, बना आज है बोझ।। . खुशियां सब तर्पण करीं, बेटा - बेटी संग। स्वप्न खाक में मिल गए, औलाद हुई बेढंग।। . वृद्धाश्रम ले जा रहे, माता - पिता बीमार। धर्म निभाते आजकल, ऐसे श्रवण कुमार।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
रोटी
कविता

रोटी

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) भूख में स्वाद जाने क्यों बढ़ जाता रोटी का झोली/कटोरदान से झांक रही रख रही रोटी भूखे खाली पेट में समाहित होने की त्वरित अभिलाषा ताकि प्रसाद के रूप में रोटी से तृप्त हो ऊपर वाले को कह सके धरा पर रहने वाला तेरा लख -लख शुक्रिया रोटी कैसी भी हो धर्मनिर्पेक्षता का प्रतिनिधित्व करती भाग -दौड़ भी रोटी के लिए करते फिर भी कटोरदान धरा पर रहने वालों को नेक  समझाइश देता कटोर दान में ऊपर-नीचे रखी रोटी मूक प्राणियों के लिए होती सदैव सुरक्षित दान के पक्ष के लिए रखी एक रोटी की हकदारी से भला उनका पेट कहाँ से भरता ? रोटी की चाहत रोटी को न मालूम रोटी न मिले तो भूखे इंसान की आँखें रोती यदि  रोटी मिल जाए ख़ुशी  के आंसू से वो गीली हो जाती बस इंसान को और क्या चाहिए ऊपर वाले से किन्तु रोटी की तलाश है अमर . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
क्या थे क्या बना दिया
कविता

क्या थे क्या बना दिया

********** संजय जैन मुंबई मैं करू क्या अब जब अपनो ने ही धोका दे दिया। क्या जबाब दे उन लोगो को जो कर रहे है मुझ पर व्यंग की तुम्हारे खास के होते हुए ये क्या हो गया।। . अब क्या करे और क्या बोले। उन लोगो को जो उतार रहे है। मेरी और उसकी समझ नही आ रहा। और क्या कहे क्या न कहे । जब पाला है सांप हमने आस्तीन में। तो कभी न कभी वो हमे काटेगा ही।। . तमन्ना तो बहुत थी कुछ करके दिखाने की। पर अब क्या करे जब तोड़ दिया दिल अपने ने । और डस लिया अपने ने अपना बन के।। . जीवन के अंतिम मोड़ पर मजाक बनाकर रख दिया। पूरी जिंदगी की मेहनत का, क्या मिला फल देख लिया। कैसे खुद को समझाए ये सब होने पर, की मैंने क्या किया ऐसा ? जिसकी मिली केरियर के,  अंत मे शर्मनाक सजा।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मै...
बरसे बदरा
कविता

बरसे बदरा

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) आज बरसे बदरा मुझको मौसम सुहाना लागे  खेत हो रहे हरे भरे खलिहान लाॅन सी लागे बरसे बदरा... मन भर गया उमंगो से दूर कोश कोश तक भागे सिर पर लाखों बोझ रखे थे वो भी हल्के हल्के लागे बरसे बदरा... मन भी झूमा तन भी झूमा अंग अंग खिली बहारें मन मस्त जमीं पर घूूम रहा है रंगीला रंगीला लागे बरसे बदरा... . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
यूँ ही ना आया करो मौसम
कविता

यूँ ही ना आया करो मौसम

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम यूँ उनकी याद ना दिलाया करो मौसम रूठा हो जब दिलबर हमसे, तब यूँ आकर ना सताया करो मौसम गर आना हो जो मजबूरी तुम्हारी, आकर मुझे हौले से बताया करो मौसम जब तुम आते हो तो याद करते हैं, हम उन्हें कितना इस बात का अहसास उन्हें भी तो कराया करो मौसम उनकी याद में हम गाते हैं जो नग़मे, करीब जाकर कभी, उनके कानों में गुनगुनाया करो मौसम चाहते हैं हम उन्हें कितना वो ना मानेगें कभी, तुम्ही जाकर उन्हें प्यार जताया करो मौसम प्यार के दीप से ही है दुनियां रोशन मेरी, उनके दिल में भी इकरार का इक दीप जलाया करो मौसम चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम .... परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyo...
ज़िंदगी बीत गयी
कविता

ज़िंदगी बीत गयी

********** सिद्धि डोशी  प्रतापगढ़ ज़िंदगी बीत गयी रोते रोते जो ना था उसे पाने के लिए हालातों से लड़ते रहे पर यह वक़्त है जनाब यह भी गुज़र जाएगा बस सबर रख जो तेरी क़िस्मत में है वो ख़ुद चल कर तेरे पास आएगा .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद ...
बावरा है
कविता

बावरा है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) गुमसुम क्यों रहता है      मन बावरा देखे किसी को भी न बुलाए बावरा चल साथ तेरे हम   रहते हैं रोज़   मेरे यारा गुमसुम क्यों रहता है     मन बावरा है अब हँसता नहीं    मेरा लाडला चल रहा है आख़िर किससे मुकाबला न हँसता न बोले   ये मन बावरा   क्या प्यासा है   क्यों उदासा है     ये बावरा . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
आभास
कविता

आभास

*********** भारती कुमारी (बिहार) दुनिया आभास आभास जीवन का जिस पर रंग जाने कैसे चढ़ा एक बोझ पाप का सत्य आवाज किसको देती अंधकार में संसार जो पड़ी चुपचाप धीरे-धीरे चली सहसा उठाई सत्य विचार बस पल-भर मौन हो गयी इतने में जीवन धीरे-धीरे ज्योतिर्मय हो गयी . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो...
मेरी सहेली
कविता

मेरी सहेली

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार वो तुम थी। जिसकी तलाश थी मुझे                    वो तुम थी। जिसकी आस थी मुझे                    वो तुम थी। जिसे ढूंढा हर कली में                     वो तुम थी। जिसे पाया हर गली में                     वो तुम थी। जो मेरी हमजुबां बनी                      वो तुम थी। जो मेरी कहकशाँ बनी                      वो तुम थी। मैं बंधी जिसके पाश मे                      वो तुम थी। जिसे पाया हमेशा पास मे                      वो तुम थी। जब दूर जाती हो आँखे नम हो जाती है                       वो तुम हो। जब पास आती हो उदासी कम हो जाती है                        वो तुम हो। . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
पानी
कविता

पानी

************ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर पानी पियो खाना बनाओ सिंचाई करो पानी फेंको या बर्बाद करो। कुछ फर्क नही पड़ता खत्म तो होगा पानी ही और प्रभाव पड़ेगा इंसान पर पर्यावरण पर जानवरों पर पेड़-पौधों पर और सारी दुनिया पर। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी बेस्ट राइटर अवार्ड - २०१९ इत्यादी। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
कहाँ खो गई गोधूलि
कविता

कहाँ खो गई गोधूलि

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" शाम को उड़ती धूल में देखता आकाश की लालिमा सूरज की धुँधली छवि सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा गाय के गले में बंधी घंटिया सूरज की करती हो शाम की आरती गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल धरा से आकाश को कर देती गुलाबी नित्य ये पूजन चला करता वर्षा ऋतु  धूल और सूरज छिप जाते देव कर जाते शयन ये गाँव की कहानी शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग सड़के डामर की कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी गोधूलि का महत्व गाँव मे होता शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो सुंदर है सोचता हूँ गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू। परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
क्यो छोड़ दिया साथ
कविता

क्यो छोड़ दिया साथ

********** संजय जैन मुंबई कितना लूटोगे तुम अपना बनकर। कितना और सताओगे अपना बनकर। कभी तो तुमको शर्म आयेगी वे गैरत इंसान। या काटोगे उसी डाली को जिस पर बैठा करते थे कभी तुम।। सफलता तुमको मिल है, बहुत खुशी की ये बात है। परन्तु अपनी सफलता में तुम इतना मत इतराओ। की जिन्होंने तुम्हे पहुंचाया है शिखर पर। कही वो ही तुम्हारे पतन का कारण न बन जाये।। इसलिए संजय कहता है एक सही बात। बनाकर तुम चलो सदा अपनो के साथ। नही तो छोड़ देंगे तुम्हे तुम्हारे ही अपने लोग। फिर तुझे एहसास होगा की क्या खोया क्या पाया है।। सफलता की चकाचौन्ध  में, तुझे हो गया था घमंड। अब आ गया वही जहां से तू उठता था कभी। तुझे अपने असलियत अब पता चल गया। क्योकि छोड़ दिया तेरा साथ अपनो ने ही।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिट...