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पद्य

बापू मेरे
कविता

बापू मेरे

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) राष्ट्र पिता थे बापू मेरे राष्ट्र धर्म सिखलाया सत्य अहिंसा के पथ पर चलना भी सिखलाया शान्ति और स्वाभिमान से जीवन जीने की राह दिखाई ऐसे थे महान पुरुष मेरे बापू तब जाकर उन्होंने राष्ट्र पिता की उपाधि पाई . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
बापू का सपना
कविता

बापू का सपना

********** मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. आओ मिलकर करें संकल्प, राम राज्य फिर लायेगें, बापू के जो स्वपन अधूरे हम साकार बनायेगें। गाँव बनें सब राज दुलारे, चमकें जैसे नभ के तारे, लड़े न झगड़े आपस मे हम, भेद भाव सब ढा़येगें। छुआ छूत न भेद भाव हो, जनमन के मन प्रेम भाव हो, स्नेह सने आपस में दिखें मिल सद भाव जगायेंगे। बापू के जो स्वपन अधूरे, हम साकार बनायेगें। राम राज्य का पावन मेला भर जाये घर घर यह मेला, सुख संपन्न रहे जन जीवन, ऐसे जतन जुटायेगें। सत्य अहिंसा दिन दूनी हों फूले फले नहीं जूनी हो, ये सब तो सिद्धांत अमर हैं, जग को पाठ पढ़ायेंगे। बापू के जो स्वपन अघूरे, हम साकार बनायेगें। प्रातः भजन राम और सीता, संध्या में रामायण गीता, रघुपति राघव राम भजन से, मोक्ष धाम पा जायेगें, बापू के जो स्वपन अधूरें हम साकार बनायेगें। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौ...
मां बाप “अभिशाप या वरदान”
कविता

मां बाप “अभिशाप या वरदान”

********** हरिनंदन यादव गोपालगंज जन्म देकर जिसने हमें इस दुनियां को दिखाया । बोलना, चलना,पढ़ना और लिखना जो हमें सिखाया ।। उनके हाथ भी कुछ ना लगी वो हाथ मलते रह जाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। दिन रात मां मेहनत करती करती नहीं आराम सही। बेटे के लालन पालन में बाप भी कुछ कम नहीं।। बेटे को भरपेट खिला वो बिन खाए सो जाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। बेटा जब बड़ा हो जाता अपने दम खड़ा हो जाता। फिर बड़े खुशी से मां- बाप बेटे की शादी रचाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। बेटे बहू अब यह कहते बहुत किए आप काम सारा, करिए अब आराम जरा। फिर कुछ ही दिन में मां बाप को लात मार भगाते हैं।। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। दर दर मां बाप भटकते हरिनंदन है ये बात सही। ६० और ७० की उम्र में हो ना पाए काम कोई।। पेट की आग बुझती...
जीवन प्रवाह है
गीत

जीवन प्रवाह है

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. विधा:-गीतिका समांत:-आर पदांत:--भी ============ "जीवन प्रवाह है,तो मजधार भी. एक सपना जो होता साकार भी. माना कि तूफान भी आएंगे मगर, होसले की चाहिये, पतवार भी, मौसम भी ज़ब आयेंगे खुशनुमा, करेंगेँ हम प्यार का इज़हार भी, जीतने का रहेगा हमारा लक्ष, गले से लगायेंगे हम हार भी, सीमा पर डटे रहेंगे सदा हम, दुश्मन पर करेंगे हम प्रहार भी. लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये है...
आओ चलें पारियों के गांव में
कविता

आओ चलें पारियों के गांव में

********** लक्ष्मीकांत मुकुल रोहतास (बिहार) आओ चलें पारियों के गांव में नदिया पर पेड़ों की छाँव में सूखी ही पनघट की आस है मन में दहकता पलास है बेड़ी भी कांपती औ’ ज़िन्दगी सिमटी लग रही आज पांव में अनबोले जंगल बबूल के अरहर के खेतों में भूल के खोजें हम चित्रा की पुरवाई बरखा को ढूँढते अलाव में बगिया में कोयल का कूकना आँगन में रचती है अल्पना झुटपुटे में डूबता सीवान वो रिश्ते अब जलते अब आंव में डोल रही बांसों की पत्तियां आँखों में उड़ती हैं तीलियाँ लोग बाग़ गूंगे हो गए आज टूटते रहे हैं बिखराव में लेखक परिचय :- लक्ष्मीकांत मुकुल जन्म – ०८ जनवरी १९७३ निवासी – रोहतास (बिहार) शिक्षा – विधि स्नातक संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य। किसान कवि/मौन प्रतिरोध का कवि। कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित, पुष्पांजलि प्रकाशन, दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रक...
प्रेम धुन सुन रही
कविता

प्रेम धुन सुन रही

*********** भारती कुमारी (बिहार) कुछ उम्मीदें बुन रही, शरद चाँदनी पी रही, मन हीं मन जी रही, प्रिये तुझे चुन रही, प्रेम धुन सुन रही। खुद में सिमट रही, हृदय कुछ कह रही, धरती से अम्बर तक, तुझे हीं मन ढूंढ रही, प्रेम धुन सुन रही। नयन प्रेम पथ निहारती, बस पल-पल पुकारती, आ जाओ अब प्रिये, मन मधुर प्रीत में खो रही, प्रेम धुन सुन रही। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें...
हिन्दी की अभिलाषा
कविता

हिन्दी की अभिलाषा

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार हिन्दी की अभिलाषा है ये सम्पूर्ण एक भाषा है हिन्दी मे सादगी है हिन्दी मे है अपनापन हिन्दी हमारी आशा है हिन्दी की अभिलाषा है हिन्दी के है छन्द निराले लगते जैसे रस के प्याले हिन्दी नही तो निराशा है हिन्दी की अभिलाषा है गद्य पद्य दोनों रूप अनोखे लगते ठंडी हवा के झोंके हिन्दी छात्र की जिज्ञासा है हिन्दी की अभिलाषा है होता पूर्ण व्याकरण ज्ञान बढाता है जग में सम्मान हिन्दी स्वर्ण तराशा है हिन्दी की अभिलाषा है कभी कविता कभी कहानी सुनते कवियों की जुबानी हिन्दी बिना हताशा है हिन्दी की अभिलाषा है ये सम्पूर्ण एक भाषा है . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
तुम आओगे बस आंखों में ये ख्वाब पालते रहते हैं
कविता

तुम आओगे बस आंखों में ये ख्वाब पालते रहते हैं

********** वंदना शर्मा झालावाड़ (राजस्थान) यादों का बिछौना करके हम, दिन -रात तड़पते रहते हैं। तुम आओगे बस आँखों में, ये ख्वाब पालते रहते हैं।। माना कि मैं सुन्दर तो नहीं, तुम चाहो जिसे मैं वो भी नहीं। मैं मीराँँ सी दीवानी नहीं और गोपियों सी मस्तानी नहीं। फिर भी मन-मंदिर में प्रियतम, हम तुझे सजाते रहते है।। तुम भूल गए उन यादों को, पहली बरसात की बूँदों को । वो मिलना -जुलना छुप-छुपकर, सावन के प्यारे झूलों को । हम आज तलक उन झूलों पर, बस तुम्हें झुलाते रहते हैं।। तुझको जो दिए उन वचनों पे, अब तक भी यार समर्पित हैं। सास-ससुर ,परिवार की सेवा, में हर स्वाँस समर्पित है। तुझको जो थी कसम सदा, हम दिल से निभाते रहते हैं।। आँखों के अश्रु जमते गए, जम जमकर प्रिय पहाड़ बने। इस पर्वत से नदियां निकलेगी ,और बाड़ कहीं आ जाएगी । बनके मोरनी बिलख-बिलख बादल को निहारा करते हैं।। हम भोर सँवर कर के प्रियतम, हर रोज...
अपने पथ पर बढता चल
कविता

अपने पथ पर बढता चल

********** स्वाति जोशी पुणे समर नहीं ये महायज्ञ है अर्घ्य नहीं ये अभिषेक है तृण नहीं ये समिधाएं है अपनी आहुति देता चल, अपने पथ पर बढता चल।। प्रणव नाद का स्पंदन सुन श्वास मधुर सरगम की धुन हृदय ताल पर कर नर्तन नाद ब्रह्म में बह अविरल अपनी लय में गाता चल, अपने पथ पर बढता चल।। कर विशेष अब जो है शेष मन-मानस में हो संवेद कृति व कृत्य का दुर्गम मेल जीवन तत्वों का सारा खेल तू अपने पटल पर खेलता चल अपनी धुन में रमता चल।। अपने पथ पर बढ़ता चल... अपने पथ पर बढता चल... . लेखीका परिचय :-  नाम - स्वाति जोशी निवासी - पुणे शिक्षा - स्नातकोत्तर ( प्राणिशास्त्र), पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से स्नातक (एकवर्षीय पाठ्यक्रम) लेखन कार्य - स्वतंत्र लेखन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच ...
पानी है अनमोल
कविता

पानी है अनमोल

********** संजय जैन मुंबई पानी है अनमोल, समझो इसका मोल। जो अभी न समझोगे, तो सिर्फ पानी नाम सुनोगे। आने वाले वर्षों में, पानी बनेगा एक समस्या । देख रहे हो जो भी तुम, अंश मात्रा है विनाश का। जो दे रहा तुमको संकेत। जागो जागो सब प्यारे, करो बचत पानी की तुम। बूंद बूंद पानी की बचत से, भर जाएगा सागर प्यारा।। बिन पानी कैसे जीयेंगे, पड़े पौधे और जीव जंतु। और पानी बिना मानव, क्या जीवित रह पाएगा। बिन पानी के मर जायेगा। और भू मंडल में कोई, नजर नही आएगा। इसलिए संजय कहता है, नष्ट न करो प्रकृति के सनसाधनों को।। बचा लो पानी वृक्षो और पहाड़ों को। लगाओ और लगवाओ, वृक्षो को तुम अपनो से। कर सके ऐसा कुछ हम, तभी मानव कहलाओगे। पानी विहीन भूमि में, पानी को तुम पहुँचोगे। और पड़ी बंजर भूमि को, फिरसे हराभरा कर पाओगे। और महान कार्य करके, दुनियां को दिखाओगे।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवास...
होती नहीं इज्जत
ग़ज़ल

होती नहीं इज्जत

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार होती नहीं इज्जत जिनसे मां-बाप की, खुद की औलाद से तो उम्मीदें वफ़ा न रख। जन्नत तो खो दी तूने मां को रुला के, रूठ गए जो जमी के ख़ुदा, तो ख़ुदा से वास्ता न रख। मुमकिन नहीं कीमत उनके आंसू की अदा हो, जर्रा है तू दुनियां में कोई रुतबा न रख। माना तु अमीरे शहर है कुछ नहीं मगर है, गैरत मर गई तेरी, दिखावे का कोई ओहदा न रख। मुफलिसी में भी खुश हुं अपने मां बाप के साथ, जो लोग हैं बेकद्र, ऐसे लोगों से तू वास्ता न रख। जमी पे क्यों न हो सैलाब, कहकशाली का आलम अब, सरेआम कर दे जलील बेकद्रो को, जरा भी हया न रख। दुनियां में मयस्सर है, मुझको तमाम खुशियां मगर, शाहरुख़ बैठ के मस्ज़िदों में झूठा सज्जदा न रख। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
जंगल
कविता

जंगल

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) माँ भवानी आकर अस्मत बचाओ मेरी, दुनिया के जंगल है हैवानियतों से भरी। थरथर कांपे तन हमेशा, नींद उड़ी नयनों से हर राह लगता विरान सा जिया न लागे तेरी इस लोक में माँ रूद्राण गले लगा लो सुता की फुहार बरसा दो अपने ममता की जीवन की नैया पतवार है तेरे हाथों, रक्षा करों माँ दानवों माथों। माँ जगदम्बा कर जोरि करती हूँ पुकार, दिव्य ज्योत फैला जंगल बीच करो हुंकार। माँ भवानी आकर अस्मत बचाओ मेरी, दुनिया के जंगल है हैवानियत से भरी।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hin...
रिश्तों की मृत्यु
कविता

रिश्तों की मृत्यु

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) रिश्तों की मृत्यु अचानक नहीं होती वो तिल तिल कर होती रहती है मगर हमें इसका पता हमेशा देर से चलता है सुदूर जा पहुंचे दोस्त मिलते हैं कभी फेसबुक पर सुख,दुख,पैसा-लत्ता, नौकरी-बिजनैस, बच्चे-बहू और यहां तक कि माँ-बाप भी आते जाते हैं बातों में रस बढ़ाते, प्यार जताते, नाज उठाते कितने ही क्षण और फिर पसरने लगती है ऊब भरी सांझ अपनेपन का अनमना होना देखते हैं हम पर समझ नहीं पाते कि  मुरझा चुकी है रिश्ते की बेल कभी कहीं फिर टकराने पर "तुम तो आते ही नहीं... भूल गये क्या ऐं ऐं" कहकर रिश्ते के मृतसम शरीर पर फूंका करते हैं थोड़ी-मोड़ी प्राणवायु और समय निकाल लेते हैं मन को तक नहीं जानने देते कि रिश्ता मर चुका है बहुत पहले ही यह तो केवल उसकी याद की देह है . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवा...
धरोहर
कविता

धरोहर

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार किसी के लिए घर धरोहर किसी के लिए जेवर मेरे लिये मेरे पूजनीय माँ पिता और गुरु धरोहर किसी के लिए व्यवसाय धरोहर किसी के लिए गाड़ी मोटर मेरे लिए तो पिता के द्वारा दिये हुए संस्कार धरोहर देश के लिए महल धरोहर कोई गुम्बद या ताजमहल मेरे लिए तो मेरी माँ के दिये थोड़े से लाड़ धरोहर किसी के लिए खेत धरोहर किसी के लिए भौतिक वस्तु मेरे लिए तो अनमोल है मेरे गुरु का ज्ञान धरोहर . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे...
नाम जब भा गया
ग़ज़ल

नाम जब भा गया

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र.   नाम जब भा गया दोस्ती का। मिल गया रास्ता बन्दगी का। सामने आप आकर जो बैठे, आ गया तब मज़ा मयकशी का। खिड़कियाँ जब हवाओं ने खोली, तब पता पा लिया रोशनी का। कश्तियों के सफ़र की तरह फिर, चल पड़ा सिलसिला जिंदगी का। है हमारी रवायत नहीं ये, क़ायदा है यही हर किसी का। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक...
हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है
कविता

हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है

*********** जीतेन्द्र कानपुरी हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है यहॉ सब साथ देने वाले है सभी का स्वभाव सच्चा है। हमारी गली हमारा घर हमारा मोहल्ला भी अच्छा है।। इसलिये हम नहीं जाते खुद की जमीं छोड़कर कहीं। जाओ जिसे जाना हो जहॉ हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरम...
यादों का सिलसिला
कविता

यादों का सिलसिला

********** मित्रा शर्मा महू - इंदौर यादों का सिलसिला ऐसा हो विशवास की लौ जलती रहे दर्द ऐसा हो कभी खत्म न हो जिंदा होने की अहसास बना रहे। जरा सब्र कर ए बुलन्दी वाले आसमान पे पैर रखने की जगह नही होती कायनात पे कोई ऐसा मुकम्मल मीले यह जरूरी नही होता। बेरुखी की आलम इस कदर हावी न हो तुम अपने को संभालते रहो, अपनी परछाई भी आखिर में साथ नही देती यह जान लो। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने ...
पुत्रो की परिभाषा
कविता

पुत्रो की परिभाषा

********** संजय जैन मुंबई पुत्र क्या होते है, में तुम समझता हूं। पुत्रो का इतिहास में, दुनियां को बतलाता हूँ।। पुत्र था श्रवणकुमार जो माता पिता को, सर्वत्र मान्यता था। पुत्र था औरंजेब, जिसने बाप को, जेल में डाला था। पुत्र एक ऐसा भी था। जो बाप के वचन की खातिर, खुद बनवास को जाता है। और आधा जीवन अपना, वन में स्वंय बिताता है।। पुत्र मोह क्या होता है, में बाप का बतलाता हूँ। अंधा होते हुए भी, खुद राजा बन जाता है। फिर पुत्र मोह में वो महाभारत करवाता है। और अपने कुल का विनाश, कुल वालो से ही करवाता है।। कलयुग के पुत्रों का भी, में किस्सा सबको सुनता हूँ। एक बाप चार पुत्रो को, आसानी से पालपोश कर काबिल इंसान बना देता है। पर चार पुत्र होकर भी, बाप को नही संभाल पाते है। पर फिर भी वो पुत्र कहलाते है। अपनी आजादी की खातिर, बृद्धाश्रम में छोड़ आते है। और बड़ी शान से पुत्र होने का दावा करते है। और अ...
मुझे इतनी दूर
कविता

मुझे इतनी दूर

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) चले जाओ तुम छोड़कर      मुझे इतनी दूर तुम्हें छूने वाली हवा भी          न लगे मुझे मैं रह लूँगी,मैं सह लूँगी ये बद्तर तन्हाई के दिन   तू छोड़ दे बीच राह में       मुझे इतनी दूर मुझे होने लगे तुमसे नफ़रत      ऐसा वाकया कुछ मेरे साथ कर जाओ तुम   मैं रह नहीं सकती बिन तेरे ऐसा प्यार क्यों    जन्मा मेरे दिल में भूल जाऊँ मैं प्यार को इस प्यार से कर दो तुम   मुझे इतनी दूर . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताए...
भ्रूण हत्या रोकें
कविता

भ्रूण हत्या रोकें

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) होता था बिटियाँ से घर आँगन उजियारा मौत पंख लगा के आई कर गई सब जग अंधियारा मन ही मन बातें करते मन ढाँढस बंधाता ढूंढे कहाँ यादें उसकी कोई नही याद दिलाता लोग लिंग अनुपात बिगाड़ने मे लगे लड़की ढूंढने में वो दुनिया के चक्कर लगाने लगे क्रूर इंसान भ्रूण हत्या करने जब लगा रोकने हेतु कानून भी अब कुछ सोचने लगा बेटियों के न होने की बातें क्यों नही समझ पाते इसलिए तो भाइयो को हम हर घर में उदास पाते हक बेटी का भी होता क्यों करते भ्रूण हत्याए रोकेंगे मिलकर जब इसे तभी रोशन होगी रिश्तों की बगियाएं . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचना...
हे पिता तुमको नमन
कविता

हे पिता तुमको नमन

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) इस धरा पर मेरा अस्तित्व ही, बड़ा सबसे प्रमाण। हे पिता तुमको नमन, सादर नमन, सादर नमन।। नेह श्रृण कैसे उतारूं, असमय किया तुमने प्रयाण । हे पिता तुमको नमन, सादर नमन, सादर नमन।। उंगली पकड़ कांधे बिठाना और गोदी में लिटाना। स्लेट खड़िया द्वारा अक्षर कुछ बताना फिर मिटाना।। इस धरा के सारे सुख वैभव तुम्हारे बिन अधूरे। हे सृजक तुम ही नहीं जब, क्या सृजन के स्वप्न पूरे।। मुझसे असीमित लालसायें और इच्छाएं नमन। सादर नमन सादर नमन ... हे पिता तुमको नमन, सादर नमन... सादर नमन...।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कव...
तू जब शहर में होता है
कविता

तू जब शहर में होता है

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। झूठे तेरे वादे झूठे, फिर भी तू सच्चा लगता है। करूंँ ठिठोली संग तेरे मैं, यह मन बच्चा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है जब दूर तू मुझसे होता है, यह मन बच्चों सा रोता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। ख्वाब- ख्वाब सा बचा नहीं, अब ख्वाब भी सच्चा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। धूप छाँव का कहर, चारों, प्रहर भी अच्छा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। साथ रहे हम, जिस पल, दोनों, वह पल अपना लगता है। दूर हुए जिस पल हम तुमसे वो पल इक सपना लगता है। दूरियों का यह कहर, चारों प्रहर भी अच्छा लगता है। तू जब शहर होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। तुम संग बीता हर पल, एक लंबा सफर सा लगता है। तू नटखट हर पल मुझको, एक...
जिंदगी बख्शी जिसने
कविता

जिंदगी बख्शी जिसने

********** माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) जिंदगी बख्शी जिसने, उसका एहसान अता कर। रब देता है छप्पर फाड़, करता नहीं वो जता कर। नसीब तो जो लिखे उसने सबके कर्मो की मानिंद। सजा दे या रिहाई उसका फैसला, तू बात पता कर । मयस्सर न होती किसी को कभी आसमां सी बुलंदी। गम दिये होंगे किसी को तूने, अब न ऐसी खता कर। जन्नत से जहन्नुम तक का सफर बड़ा ही पेचिदा है। दिलजमई की गुंजाइश ही नहीं किसी को सता कर। बड़ी बेरूखी बे-अदबी से रुसवा कर देते हैं दर से। बेहिसाब बनाये है इंसान, रब ने अलग सी कता कर। पाने के लिये सितारों से आगे और भी बहुत है माया। छोड़ दे सारे गुमान लालच, बस साथ अपनी मता कर। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बदेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश शिक्षा - एम•...
जीवन-पथ
कविता

जीवन-पथ

*********** भारती कुमारी (बिहार) अनजान पथ की राही हूँ। चलती हूँ, गिरती हूँ, व्यथित-मन, व्याकुल-हृदय, सत्य दर्शन पाने को। ध्यान लगाएं, प्रतिपल जगजीवन में, मधुर मुक्ति बंधन की। उमड़-उमड़ कर उठती, नवजीवन की मृदुल स्वर। इच्छा आत्म-सम्मान की, रह-रह कर हृदय प्रतिपल, खुल-खुल कर जीती। पीती मधुरस क्षण-क्षण।। हो रही मधुमय जगजीवन, करुण-कोर अब स्वर्ण-किरण की, सपनों में हर पल खो रही। बस जीवन को मधु-सा जीती।। अनजान हूँ, फिर भी पहचान, सुप्रभात की निर्माण से होती। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
ढाई आखर
कविता

ढाई आखर

********** आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश समझ ना पाया खुद को दर्द सभी मैं सहता हूँ, तुमने चकनाचूर किया अब भी तुम पे मरता हूँ। आराध्य समझ बैठा तुमको उम्र तुम्हारे नाम किया तुमको चाहा तुमको सोचा ना कोई दूजा काम किया। ढाई आखर के पंडित ने कितना नाच नचाया है सूखे मन के मानसरोवर में बरखा ने प्यास बढ़ाया है। जुल्म सितम मुझपे करते फिर भी लगते प्यारे थे दुश्मन से भी बढ़के निकले तुम तो मीत हमारे थे। भूले भटके रह-रह कर के मैं इतना याद आऊंगा भर ना सकेगा कोई जिसे उस जगह छोड़ के जाऊंगा। लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्य...