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पद्य

राम
गीत

राम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “कलियुग मेँ त्राता हैँ राम, सबके विधाता भी हैँ, राम, न पाओगे उन्हेँ मंदिर मेँ, हृदय तल मेँ बसे हैँ राम, जीवन की आपा धापी मेँ, एक सुगंधित बयार हैँ,राम, समझो, सभी, ये सत्य है, कि, नर भूपाल नहीँ हैँ, राम, पृथ्वी आकाश पाताल मेँ, अनादी और अनंत हैँ राम, पाप की गठरी, को भूलकर, भवसागर पार कराते हैँ, राम लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैं...
छत की कवेलु में
कविता

छत की कवेलु में

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) "इन इमारतों में ये जो हाथ लगे हैं कई भुखे प्यासों के जज़्बात लगे है हर एक पत्थर में दर्द बहुत गहरा है किसी की मजबूरी और हालात लगे है जेब मे बच्चों की भूख रखी है कंधों पर माँ बाप के हाथ लगे है मिट्टी की चादर, चाँद का सिरहाना रख छत की कवेलु में अमरनाथ लगे हैं" परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सेलम हवाईअड्डे पर पदस्थ शिक्षा : बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) २०१६, एम .टेक - (Geotechnical Engineering ) २०१८ भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर से आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
हम जैसे पागल
ग़ज़ल

हम जैसे पागल

********** मोहम्मद सलीम रज़ा रीवा म.प्र. हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं ना जाने कब उनके करम की बारिश हो और न जाने कब दिन मेरे फिरते है   परिचय :- नाम – मोहम्मद सलीम रज़ा शायरी नाम – सलीम रज़ा रीवा तख़ल्लुस – ”रज़ा” जन्म स्थान – मध्य प्रदेश का रीवा ज़िला जन्म दिन – १५.०७.१९७५ तालीम – उर्दू में स्नातक नौकरी – ब्रान्च मैनेजर लाइफ़ इन्सुरेंस रचना प्रकाशन – कई पत्र पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित रचना पाठ – आकाशवाणी में कई प्रकाशन, दूरदर्शन में रचना प्रसारण, कई मुशायरे एवं कवि गोष्ठी में रचना पाठ रचना विधा – गीत, ग़ज़ल, क़तआत, नात – ए – मुबारिक, हम्द उपलब्ध...
अच्छा होता मैं तेरी न होती
कविता

अच्छा होता मैं तेरी न होती

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश तुम्हारे ही होठों की मुस्कान थी तुमने छीन लिया तुम्हारे ही ह्रदय की अनुराग थी तुमने द्वेष भर दिया तुम्हारी ही संवेदना थी तुमने वेदना से भर दिया तुम्हारे ही जिस्म की मधुशाला थी तुमने धिक्कार दिया तुम्हारे ही नयन की लव थी तुमने बुझा दिया तुम्हारी आत्मा थी तुमने अपमान किया क्या? दोष था मेरा जो इतना अपमान दिया जब– जब प्यार से पुकारा तो मुस्कुरा दिया जब हृदय से लगाया तो समर्पण भी कर दिया फिर क्यों? इतना वेदना से भर दिया आज धिक्कारती हूं खुद को क्यों? तुमसे प्यार किया क्यों? वह निष्ठुर अपमान सही अच्छा होता वैसी होती, जैसी तेरी संकल्पना थी तब तू शायद मेरा होता, औ मैं तेरी न होती रिश्ते भी फिर नीभ जाते इस तथाकथित समाज में।।" . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
हिम्मत
कविता

हिम्मत

************ सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार तुम कुछ कर सकते हो तुम आगे बढ़ सकते हो। तुममे है बहुत हिम्मत तुम जग को बदल सकते हो। तुम खुद से हिम्मत नही हारना। कभी खुद का भरोसा मत हारना। तुम झूठ का मार्ग छोड़ सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना। मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में बस डट कर सामना करना। तुम ही देश के भविष्य हो यह बात हमेशा याद रखना। आत्मविश्वास बनाए रखो तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे अपनी प्रयास तुम जारी रखो एक दिन जरुर सफल हो जाओगे। तुम करना कुछ ऐसा की, सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए। तुम बनना ऐसा की महानों की, महानता भी कम पड़ जाए। तुम रखना हिम्मत इतना की, वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए। तुम बनना इतना सच्चा की हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का ...
मेहरबाँ बनता गया
कविता

मेहरबाँ बनता गया

************ मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी जिस ज़मीं पर पाँव रखा आस्माँ बनता गया जिस ने मेहनत की हमेशा कामरां बनता गया चाँद एक बादल के टुकरे में छुपा बैठा रहा दिल का मेरे दर्द सब दर्द ए निहाँ बनता गया सब के सब मानूस थे बारिश हवा या धूप हो उसने जिस को भी कहा सब साइबाँ बनता गया जो भी अपने थे मेरे सब छोड़ के जाने लगे सब से कट कट के मेरा अपना जहाँ बनता गया क्या हुनर थे मुझमे हाँ मैं जंग कैसे जीत ता खेल क़िस्मत का हमेशा मेहरबाँ बनता गया लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने वाली किताबें :- १: माँ और मौसी (उर...
स्मृतिया
कविता

स्मृतिया

********** सुरेश चंद्र भंडारी धार म.प्र. आओ याद करे कुछ यादें खट्टी मीठी सी मनमौजी रीती इठलाती अलबेली जैसी।। जो तन मन जीवन अंतर्मन महकाती है, चुपके से कानो में कुछ कह जाती है।। यादें जब निकल चली गलियारों में, खिला हुआ बचपन चौतरफा राहो में। यादगार पल मिल जाते भावनाओ में, हकीकत गुजर जाती है उलाहनों में।। ये समय तो हरपल चलता रहता है उषा और संध्या में तो उगता ढलता है। मन भी तो पंख लगाकर उड़ जाता है, जो कुछ यूं ही पल दर पल छलता है।। वक्त जो बीत गया फिर नहीं आएगा, अतित तो स्मृतियों में ही रह जायेगा। मुड़कर देखोगे जब पीछे कह जायेगा। हाँ मन तो तब व्याकुल हो पछतायेगा।। हम स्मृतियों में यूँ क्यों खो जाते है, वर्तमान पर यूँ क्यों सिसक जाते है। भाग्य भरोसे यूँ क्यों स्वयं को भूल जाते है। प्रबल पुरुषार्थ पर यूँ क्यों रोते जाते है।। स्मृति के स्वर्णिम पल आंखे खोलो देखो, करो अंगीकार सुखद सलोने वर्त...
छाते में गुज़रे …
कविता

छाते में गुज़रे …

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर म.प्र. छाते में गुज़रे दिनों की कहानी। सारा शहर, हो गया पानी पानी। जाती नहीं, है डटी कब से वर्षा। सूरज के दर्शन को, हर कोई तरसा। ज्यों ही कदम को बाहर निकालें। खुद, कपड़े और क्या क्या संभालें। छायी है काई, दीवालों और दर पे। कीचड़ दिखे है आंगन और घर पे। कहीं डोम गिरते, कहीं लोग मरते। अफ़सोस दिल से करें डरते डरते। हरक़त बढ़ाता ,,,,,,,, दुश्मन हरामी। कटोरे में भूचाल उसका सुनामी। मिटकर ,,मिटाने के नारे लगाता। पाक बेहूदा है,,,,, नहीं शरमाता। चुनावों में मस्ती,कहीं नज़र नहीं आवे। कोई, मम्मी, राहुल को, आंखें दिखावे। सुशासन दिखे ना, ना दिखे कोई रुतबा। डूब कर प्रलय बिच,,,,, करे तौबा तौबा। परेशां बिहारी,,,,,,,,, है परेशान जनता। बिगड़े सभी काम, हर कोई हाथ मलता। करो बंद टोंटी, अब न बरसाओ पानी। बिजू कहे,,,,,,,, जी हो गई बहुत हानी।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्...
मैं ही राम, मैं ही रावण
कविता

मैं ही राम, मैं ही रावण

********** जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) हां रावण हूं मैं रावण हूं, धर्मशास्त्र का परमज्ञाता, शिव उपासक ब्राह्मण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। कुटिल नहीं मैं सरल हूं, अमी की धारा अविरल हूं, नहीं अपना मैं हित साधता, शिव को ही मैं श्रेष्ठ मानता, अनुशासन की मूरत अटल, परम धर्म परायण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मैं हूं चार वेदों का ज्ञाता, तांडव स्तोत्र का रचयिता, मेरा बल मेरी ही शक्ति, प्रिय शंकर को मेरी भक्ति, मैं साहसी, मैं पराक्रमी, शास्त्र शस्त्र का मैं दर्पण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मेरा राज था मेरी ही लंका, चहुंओर था मेरा ही डंका, फिर भी सीता का कभी, किया नहीं चरित्र कलंका, स्वयं की मुक्ति के हित में, राम को युद्ध निमंत्रण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। बार बार न मुझे बनाओ, बार बार न मुझे जलाओ, अगर राम तुम बन न पाओ, रावण ही बनकर दिखलाओ, संयम मुझ सा बरत बताओ, फिर...
फिर आओ राम…
कविता

फिर आओ राम…

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ज्ञान का ध्वज फहराओ राम, ले अवतार पुनः इस जग में, धर्म पाठ सिखलाओ राम, धरा पाप में डूबी जाए, ज्ञान, दीप, बुझता जाए, चारों दिशा पाप मंडराए, कलह बसा, सभी के मन में, मग्न हुए सब डीजे धुन में, सत्य मार्ग दिखलाओ राम, प्रेम राग सिखलाओ राम, ज्ञान का ध्वज फहराओ राम, ले अवतार पुनः इस जग में, एक बार फिर आओ राम...फिर आओ राम...फिर आओ राम... लेखिका परिचय :- नाम - क्रांति पाण्डेय, साहित्यिक नाम - दीपक्रांति पाण्डेय जन्मतिथि - ०६/०६/१९९४ माता स्वर्गीय - श्रीमती चंद्र कली पांडेय, पिता - श्री उपेंद्र कुमार पांडेय शैक्षणिक योग्यता - बी.ए.,एम ए.,एवं एम.फिल.(हिन्दी), माखनलाल यूनिवर्सिटी से पी.जी.डी.सी.ए. 2017 में, पी.एच.डी. अभी आरंभ हुई है। शा.विज्ञापन. महाविद्यालय रीवा से २०१६ में एन.सी.सी. पूर्ण। उपलब्धियां - आकाशवाणी रीवा द्वारा २०१३ एवं २०१४ से ...
धरा सी मैं
कविता

धरा सी मैं

********** प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) इस धरती सा हृदय लिए कुछ इस जैसी मैं जीती हूँ बाहर हो गर बारिश भी फ़िर भी अंदर से जलती हूँ कोई मेरा नहीं जहां मे सबकी अपनी सी लगती हूँ जो धूप सभी को मिल जाए तो सूरज से मैं तपती हूँ मेरे रहस्य हैं जग से परे इतिहास सभी का रखती हूँ सुख दुख त्याग सभी मैं अपना कष्ट मैं सारे सहति हूँ ना आम कोई ना खास मुझे सब पर ममता मैं रखती हूँ पर पाप जहाँ में जब भी बढ़े तो प्रलय रूप मे धरती हूँ कोमल सा मैं मर्म लिए स्त्री स्वरूप मैं पृथ्वी हूँ लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
जिंदगी क्या है….
कविता

जिंदगी क्या है….

********** संजय जैन मुंबई फूल बनकर मुस्कराना जिन्दगी हैl मुस्कारे के गम भूलाना जिन्दगी हैl मिलकर लोग खुश होते है तो क्या हुआl बिना मिले दोस्ती निभाना भी जिन्दगी हैl। जिंदगी जिंदा दिलो की आस होती है। मुर्दा दिल क्या खाक जीते है जिंदगी। मिलना बिछुड़ जाना तो लगा रहता है । जीते जी मिलते रहना ही जिंदगी है।। जिंदगी को जब तक जिये शान से जीये। अपनी बातो पर अटल रहकर जीये। बोलकर मुकर जाने वाले बहुत मिलते है। क्योकि जमाना ही आज कल ऐसे लोगो का है।। मेहनत से खुद की पहचान बनाकर, जीने वाले कम ही मिलते है । प्यार से जिंदगी जीने वाले भी कम मिलते है। वर्तमान को जीने वाले ही जिन्दा दिल होते है।। प्यार से जो जिंदगी को जीते है। गम होते हुए भी खुशी से जीते है। ऐसे ही लोगो की जीने की कला को। हम लोग जिंदा दिली कहते है।।   लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मु...
आजकल की युवा पीढ़ी
कविता

आजकल की युवा पीढ़ी

********** दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) आजकल की युवा पीढ़ी को क्या हो गया? जागती रहती है तबतक, जब ज़माना सो गया। जहां जाने में भी कतराते थे वो संस्कारी बच्चे, वही जगह आजकल इनका ठिकाना हो गया। आजकल की युवा पीढ़ी को क्या हो गया? जागती रहती है तबतक, जब ज़माना सो गया। पिता की मार और मां की फटकार, नाना-नानी का दुलार, और दादा-दादी का प्यार। अक्सर वही से मिलता था जिसे कहते है संस्कार। मगर इनको अब अकेला ही छोड़ दो... मगर इनको अब अकेला ही छोड़ दो... इनको किसी का साथ नही स्वीकार। व्हाट्सएप, फेसबुक से गहरा दोस्ताना हो गया। आजकल की युवा पीढ़ी को क्या हो गया? जागती रहती है तबतक, जब ज़माना सो गया। आजकल के मां-बाप भी कम नही है। जो हादसे हो रहे है वो बिल्कुल सही है। ब्लुव्हेल और पब्जी की लगी है बीमारी। टिकटोक पर दिखा रहे खूब कलाकारी। परिवार भी इन आदतों का दीवाना हो गया। आजकल की युवा पीढ़ी को क्या...
मैं माँ भारती का भारत हूँ
कविता

मैं माँ भारती का भारत हूँ

********** भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) मैं माँ भारती का भारत हूँ। उनके आशीर्वाद का स्वप्न साकार हूँ मैं। मैं माँ भारती का भारत हूँ।। चल पड़ा हूँ अपनी  ही वो डगर। करना विजित जहाँ है मुझे सकल समर। मैं माँ भारती का भारत हूँ। अँग्रेजों की अँग्रेज़ी न भूला दूँ तो तुम कहो। मैं तो निकला हूँ लेकर साथ अपने हिन्दी माँ को। अपना न ले यह जबतक यह जग प्रेम से संग मेरे हिन्दी माँ को।। मैं माँ भारती का भारत हूँ। मातृस्वरूपा हिन्दी का उपासक हूँ मैं माँ भारती के आँगन में खेला मातृस्वरूपा हिन्दी का संग्राहक हूँ।। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्...
उठालो कलम
गीत

उठालो कलम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. समांत :- आ पदांत :- गया है “उठालो कलम समय ये कैसा आ गया है, हर शहर मेँ मानव भय से घबरा गया है, चहकतीँ थीँ चिडियाँ, जिन घरोंदे मेँ, अब तक, वहाँ पर शमशान का सन्नाटा छा गया है, जिन बडी ऊम्मीदोँ से बनाये थे हमने घरोंदे, बरसोँ से कोई वहाँ, झाकने भी नहीँ गया है, जिस माँ से घंटोँ होती थी, बच्चोँ की बातचीत, दो मिनिट बात के लिये, कोई, तरसा गया है, छिटक दो सारे दुख, अपना कर किसी गैर को, ईश्वर पर अटूट विश्वास का समय आ गया है.”   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संक...
प्लास्टिक मुक्त भारत
कविता

प्लास्टिक मुक्त भारत

********* कल्पना ओसवाल इंदौर मध्यप्रदेश प्लास्टिक मुक्त भारत सभी मिलकर शपथ ले, हम प्लास्टिक को जड़ से खत्म करेंगे राह है मुश्किल,लेकिन नामुमकिन नही, आदत को बदलो, कदम बदलेंगें, पॉलिथीन का साथ अब हम छोड़ देंगे कपड़े और कागज का उपयोग करेंगे जो पर्यावरण को न करे दुषित, सभी मिलकर शपथ ले, हम प्लास्टिक को जड़ से खत्म करेंगें, गंगा यमुना सरस्वती की यही पुकार, पूजा है हमको, स्वच्छ हमें रखो, माँ माना तो चरण को,स्वच्छता से छुओ हवा करे शोर,मेरे संग रहना है तो, मेरे साथ हाथ से हाथ मिलाकर चलो, स्वच्छ वातावरण में जीवन की डोर को बढ़ाकर चलो, सभी मिलकर शपथ ले, हम प्लास्टिक को जड़ से खत्म करेंगे, देश बचाओ अभियान में हम साथ खड़े है, हर साथी को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे, प्लास्टिक को अलविदा कर,जीवन को आगे बढ़ाएंगे वक्त की को चाह है वो पूरी कर, हम प्लास्टिक को जड़ से खत्म करेंगे।। . लेखिका परिचय :-  श्रीमती कल्पना ओसव...
सुंदरता की….
गीत

सुंदरता की….

********** संजय जैन मुंबई नही होती सुंदरता किसी के भी शरीर में। ये बस भ्रम है अपने अपने मन का। यदि होता शरीर सुंदर तो कृष्ण तो सवाले थे। पर फिर भी वो सभी की आंखों के तारे थे।। क्योंकि सुंदर होते है उसके कर्म और विचार में। तभी तो लोग उसके प्रति आकर्षित होकर आते है। वह अपनी वाणी व्यवहार और चरित्र से जाना जाता है। तभी तो लोग उसे अपना आदर्श बना लेते है।। जो अर्जित किया उसने अपने गुरुओं से ज्ञान। वही ज्ञान को वो सुनता है दुनियां को। जिससे होता है एक सभ्य समाज का निर्माण। फिर हर शख्स को ये दुनियां, सुंदर लगाने लगती है। इसलिए संजय कहता है, जमाने के लोगो से। शरीर सुंदर नही होता सुंदर होते है उसके संस्कार।। लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक स...
मैं क्यों नहीं चीख पाता इन दिनों
कविता

मैं क्यों नहीं चीख पाता इन दिनों

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) मैं जानता हूं रे कि चीखने का समय है ये पर करूं क्या! आज तो मेरा कंठ रूद्ध है तुम देखते हो क्या कोशिश कर? कहता आया हूं मैं यही ताज़िंदगी एक अप्रिय स्थिति से जान बचाकर।। देखो उंगली उठानी है मुझे उनकी मुखालिफत में जो सड़कोंऔर चौराहों पर बहा देते हैं किसी का भी खून पर क्या करूं उंगली अकेली कहां है वो और चारों के साथ है उसके उठने और झुकने पर किसी न किसी अनजाने षड़यंत्र का हाथ है।। अरे मैं सचमुच चढ़ाना चाहता हूं त्यौरियाँ, लाना चाहता हूं पेशानी पर बल उनके खिलाफ जो बाजार पाट रहे हैं मिलावट के जहर से मैं अब भी चैक करता हूं एक्सपायरी डेट दवाओं और सीलबंद खाद्यपदार्थों की पर वो लिखी होती है बहुत महीन फिर ये सोचकर कि ले रहे है इसे मेरी बगल में खड़े कॉरपोरेट कल्चर में नहाए शार्ट्स और स्वेट शर्ट्स पहने अनगिन लोग मैं हो जाता हूँ मुतमईन बेशक़, मैं रोना चाहता हूं अनाम...
काश की कोई
कविता

काश की कोई

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. काश की कोई ऐसा हमसफ़र होता जो तन्हाई में भी साथ होता,,,,, जिससे न कुछ छिपा होता,, वो हर मर्ज की दवा होता..... जो समझ सकता अनकहे जज्बातों को, और महसूस करता दिल के अहसासों को।।। सोचो कितना हसीन सा फिर वो सफर होता जिसमे हर पल आपका अजीज हमसफ़र होता,,, फिर न मंजिल की फिक्र होती, न मुश्किलों का कोई असर होता।।। काश की ऐसा कोई हमसफ़र होता तो बहुत खूबसूरत ये जीवन का सफर होता . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
बाराती
कविता

बाराती

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) पहाड़ो पर टेसू रंग बिखर जाते लगता पहाड़ ने बांध रखा हो सेहरा| घर के आँगन में टेसू का मन नहीं लगता उसे सदैव सुहाती पहाड़ की आबों हवा। मेहंदी की बागड़ से आती महक लगता कोई रचा रहा हो मेहंदी। पीली सरसों की बग़िया लगता जैसे शादी के लिए बगिया के हाथ कर दिए हो पीले। भवरें -कोयल गा रहे स्वागत गीत दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह। उगते फूल आमों पर आती बहारें आमों की घनी छाँव तले जीव बना लेते शादी का पांडाल ये ही तो है असल में प्रकृति के बाराती। नदियां कल कल कर उन्हें लोक गीत सुनाती एक तरफ पगडंडियों से निकल रही इंसानों की बारात। सूरज मुस्काया धरती के कानों में धीमे से कहा- लो आ गई एक और बारात आमों के वृक्ष तले। . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन ...
क्यों बेटी हुई तो मातम छाया…
कविता

क्यों बेटी हुई तो मातम छाया…

************ शुभम् पोद्दार समस्तीपुर (बिहार) क्यों बेटी हुई तो मातम छाया, गर्भ में ही इसका खून बहाया, दुनिया में लाने से पहले इसे दुनिया से दूर कराया, आखिर दोस उसका है क्या? ईश्वर के दिए उपहार को हमने क्यों ठुकराया, क्यों दो घर की रोशनी को हमने गर्भ में ही मरवाया? जग जननी है यह जग कल्याणी भी, प्रेम के सागर तले स्नेह का गागर है यह, खुले आसमान का उड़ता हुआ बादल है यह, तपती हुई सूरज तले छांव का चादर है यह इसे भी जीवन का वर तो दो, अरे इसे भी अपने जीवन जीने का मौका तो दो... . परिचय :-  शुभम् पोद्दार समस्तीपुर (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर...
मोहब्बत
कविता

मोहब्बत

************ सौरभ कुमार ठाकुर जब आपने कह दिया है तो क्यों रुकेंगे किसी के सामने हम अब क्यों झुकेंगे। मोहब्बत किया है हमने, कोई चोरी नही मरे सारी दुनिया परन्तु हम क्यों मरेंगे। दिल में उसे बसाया है सच में सौरभ भूलें सारी दुनिया पर उसे नही भूलेंगे डर नही किसी का भी अब मोहब्बत में मोहब्बत किया है तो पूरा करके छोड़ेंगे। वायदा किया है उससे सातों जनम का तो साथ ही जिएंगे और साथ ही मरेंगे। हम वो मौसम नही की साल में एकबार आए अब किया है मोहब्बत तो हरसंभव निभाएँगे। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत...
किसान हैं जवान हैं
कविता

किसान हैं जवान हैं

************ लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक रखते स्वाभिमान है एक देते खाद्यान है इक झोपड़ी मकान है एक बर्फ मे ही जान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक देश आन बान है इक वीरता की शान है इक देश हित निसार है इक देश पे कुर्बान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक सहते गर्म शीत है इक रहते शीत बीच है इक अन्न दे नवीन इक देश के नगीन है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं इक त्याग रैन शयन है सरहद पे रखते नयन है इक आपदाए सहते है सहते है कङबे बैन है इक मोह सारे त्याग हथेली पे रखते जान है ये हिंद के किसान हैं किसान है जवान है किसान के जवान है ये हिंद के जवान हैं . परिचय :- नाम - ...
मातेश्वरी की स्तुति
कविता

मातेश्वरी की स्तुति

********** भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ॐ जय शैलपुत्री माता, मैया जय शैलपुत्री माता। मैया जी को निशदिन ध्याता,वो नर यश निश्चय पाता।। ॐ जय ब्रह्मचारिणी माता, मैया जय चन्द्रघण्टा माता।। जो नर तुमको ध्याता, है वो सर्वसिद्धि  पाता। कुष्माण्डा माता को जो भजता, सुख समृद्धि पाता।। माँ स्कंदमाता की कृपा, है जो नर पाता । जन्म-मरण से मुक्त होकर, मोक्ष वो पाता।। माँ कात्यायनी जी की स्तुति, जो कोई नर गाता। शोक संताप से वो मुक्त होकर, अन्त परम पद वो पाता।। कालरात्रि नाम लेकर, माँ का ध्यान है जो करता। भयमुक्त वो है होता, शत्रु मुक्त है वो होता।। महागौरी माँ की कृपा, अलौकिक सिद्धि है देती। सिद्धिदात्री माता का ध्यान जो करता, सकल सिद्धि  है वो पाता। माँ के इन नौ रूपों का जो नर ध्यान है करता। कील, कवच, अर्गला, कुञ्जिका मन से पढ़ता।। माँ की परम कृपा है वो पाता, अन्त माँ में ही वो मिलता।। . लेखक पर...
बेटी हूं
कविता

बेटी हूं

********** कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) हें! माँ में आपकी बेटी हूं, हें! माँ में खुश हूं, ईश्वर से दुआ करती हूं आप भी खुश रहे, ख़बर सुनी है मेरे कन्या होने की, आप सब मुझे अजन्मी को, जन्म लेने से रोकने वाले हो, मुझे तो एक पल विश्वास भी नहीं हुआ, भला मेरी माँ, ऎसा कैसे कर सकती है , हें! माँ बोलो ना बोलो ना, माँ - माँ मेने सुना सब झूठ है, ऎसा सुनकर में घबरा गई हूं, मेरे हाथ भी इतने नाजुक है, की तुम्हे रोक नहीं सकती, हें! माँ कैसे रोकू तुम्हें, दवाखाने जाने से, मेरे पग इतने छोटे, की धरा पर बैठ कर जिद करू, हें! माँ मुझे बाहर आने की बड़ी ललक है, हें! माँ मुझे आपके आगन को, नन्हें पैरो से गूंज उठाना है, हें! माँ में आपका खर्चा नहीं बढ़ाऊँगी, हें! माँ में बड़ी दीदी की, छोटी पड़ी पायजेब पहन लूंगी, बेटा होता तो पाल लेती तुम, फिर मुझमे क्या बुराई है, नहीं देना दहेज, मत डरना दुनिया से, बस मुझे...