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पद्य

वो याद आते हैं
कविता

वो याद आते हैं

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं अपने दिल की धड़कन में उसी का नाम लिखती हूँ उसी का नाम लिख लिख कर उसी को याद करती हूँ। उसे क्या फर्क पड़ता है मेरे होने न होने से, मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने में। मेरे ही साथ रहने का जो वादा कल किये थे तुम, मुझे वो याद है अब भी.... सदैव तुम दिल में रहते हो। मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने मे.... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
कृत्रिम संकल्प
कविता

कृत्रिम संकल्प

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll फोटो खिंचवा के दिखाने का l एक दिन सुर्खियां में आने का ll सेल्फी खिच, इंसान मुस्कुराए l धरा चिंतित, पौधे मुरझाए ll कब बड़े होंगे छोटे पौधे l बूढ़े पेड़ चिंतित खड़े ll सोचने को मजबूर हुए पेड़ l सब एक दिन के माली खड़े ll कौन पानी - कौन खाद देंगा l ये कैसा संकल्प लिया इंसान ll कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास :-  सिवाना, जिला - बाड़मेर (राजस्थान) सम्प्रति :- वरिष्ठ अध्यापक सम्म...
लोरी माँ की थी
कविता

लोरी माँ की थी

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** जिसे पकड़कर चला मैं वो उंगली मां की थी जिससे चिपका रहा हरदम गोदी मां की थी आज क्या है विराने मे अकेला हूं तड़पता मै मै रोके आंसू था पोछता वो चुनरी माँ की थी मुझे इस हाल में अब कौन समझाने को बैठा है दूध पीते निकाला करता नथुनी मां की थी मैं तड़पा हूं तड़पता हूं मेरी मां तेरे लिए पड़ी थी कोने मे शायद कपड़ों की गठरी माँ की थी वक्त बदला और मैं भूल बैठा उस जमाने को रात को नींद ना आती तो वो लोरी माँ की थी जहां हमारे सारे खर्चे पुरे होते तिजोरी मां की थी कभी खूट में बांध के रखती वह चोरी मां की थी जाना होता मेला या कोई सैर शहर की हो कोमल हाथों से पकी हुई कचोरी मां की थी छोटे थे तो खो जाने का डर था अक्सर खड़ी भीड़ तक दरवाजे से आयी वो टेरी मां की थी आजा आ जा मत जा लल्ला हट करता है प्यार भरे शब्दों की सुंदर जोड़ी मां की थी. परिचय :...
पूरी बस्ती में अँधेरा है
कविता

पूरी बस्ती में अँधेरा है

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** पूरी बस्ती में अँधेरा है, ना जाने कहाँ घर मेरा है चलो मन्दिर चलते है, पर वहा भी चोरों का बसेरा है रातों के जुगनु किधर जा रहे हैं, पीछा करो शायद वहीं पर आगे सवेरा है बस्ती में सभी घरों में छिपे बैठे हैं घरों के बाहर चोरो का पहरा है सारे चोर बस्ती में सूरज बाटते फ़िरते है जिनके अपने खुदके घरों में, अंधेरा है सभी रांझे को पत्थर मार रहे थे उनमें भी जो सबसे बड़ा पत्थर है वो मेरा है अब किनारे पर है तो उतर भी जाएंगे अंदर तुम पता तो करो कि पानी कितना गहरा है अँधेरे में न जाने किसका हाथ पकड़े हो मरीजों पर वेद, हाकिमों का चेहरा है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय ...
बारिश के बाद
कविता

बारिश के बाद

प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) ******************** जब कई दिनों की बारिश के बाद वो प्यारी सुनहरी सी धूप खिली मन किया गले लगा लू इसे बताऊँ की कितना याद किया तुम्हें .. हालाँकि मैं जानती हूँ कि नाराज़ हो, पिछली गर्मियों में तुमपर गुस्सा करती थी तुमने भी तो कम परेशान नहीं किया पर अब छोड़ो ना सब जाने भी दो दुनिया में सभी ऐसा ही तो करते हैं अपनी तकलीफ़ मे ही किसी को याद हाँ.... बस उतनी ही देर... क्यूंकि उसके बाद तुम बोझ सी ही लगोंगी फ़िर तुमसे बचने की कोशिश के आलम मेरी गलती नहीं हैं... दस्तूर ही यही है.. ज़रूरत के हिसाब की मोहब्बत लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
वो लड़की
कविता

वो लड़की

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये कविता मैंने झाबुआ के राजनैतिक, सामाजिक, पृष्ठभूमि को केंद्र में रख लिखी है, वनवासी जनो के दोहन, शोषण, सरलता, सपने, कुरीतियों को शब्दों में पिरोया गया है, कृपया ध्यान से पढ़ कविता के मर्म महसूस करे, कविता की नायिका १६,१७ साल की नवोढ़ा है ... टूटी हुई खपरैल की छत से आती सूरज की रोशनी देख पट रहित दरवाज़े से बाहर आकर ,चारो तरफ देख धूप अभी गर्म नही हुई सोचती है, वो लड़की। बदरंग होते मटके के पेंदे में कपड़े की चिन्धी को ठूस छिद्र बंद कर, हैंड पम्प के नीचे रख बारम्बार हत्थे को चलाने पर पानी की एक बूंद नही निकली वोट मांगने वाले बाबा जैसे हो गया है हैंड पंम्प जो बरसात में ही पानी देता है। सोचती है वो लड़की। तीन हफ्ते पश्चयात स्कूल में मास्टरनी बाई आई थी दलिया अच्छा बना था उसमे तेल और गुड़ मिला होता तो और मजा आता सोचती है, वो लड़की। कल गाँव मे ...
एक भी लम्हा नहीं …
कविता

एक भी लम्हा नहीं …

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर मध्य प्रदेश ******************** बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर पकड़ में किसी के एक भी लम्हा नहीं ... तन्हा सभी है दुनिया में पर कोई तन्हा नहीं ... दिखाते तो हैं हम की खुश हैं पर हुआ कभी मन का नहीं ... हुस्न देखे जमाने में कई तारीफे काबिल जिसकी थी चाह उसका कंगन कभी खनका नहीं ... इशारे तो मिले बहुत जिंदगी से हमे पर ये सर है की हमारा कभी ठनका नहीं ... फूल पर आता है भंवर पराग रस पीता है प्रेमरस अर्पण पर भी हुआ भंवर कभी उपवन का नहीं ... अपने दिल की आप सुध लो कही जो शूल मन मै उठी क्या भला और क्या बुरा है ये दोष पवन का नहीं ... बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर .....!! . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyotthan.Com (DNN) सचिव- दिव्य...
श्रम जल से उपजा कण हूँ
कविता

श्रम जल से उपजा कण हूँ

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर कण कण का संयोजन कर संरक्षण कर संवर्धन कर धरती को जीवित रखने का कोई तो कर प्रबंधन कर ढेरों में भी परिवर्तित हो अन्न कण कण संवर्धित हो जीवन का अटल सूत्र है ये जीवन हित इसका अर्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर ग्रह वातावरण मधुरतम हो मन से मन का अनुबंध रहे श्रम जल को करता नमन कोटि मेहनतकस का आबंध रहे वसुधा के आंचल से उपजे कण का संचित आवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर दिनकर की तीव्र तपन सहकर हठकर बाकी है कहता अल्पित मन भावों में वहकर नीचे संघर्षों में रहता है अंतस में है जो कृषक हेतु उन त्रुटियों का परिमार्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर सिरमौर रहे हर ठौर रहे धन धान्य धन्य तो मान्य रहे जीवन यापन में लिप्त रहे अल्पित धन जन सामान्य रहे प...
नूर का दरिया
कविता

नूर का दरिया

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** नज़रों ने तेरा चेहरा देखा, नूर का दरिया गहरा देखा। चलते फिरते एक चांद पे, घनी घटा का पहरा देखा। कारवां मासूम दिलों का, तेरी बस्ती में ठहरा देखा। तेरी गलियों में आते जाते, होता दिल आवारा देखा। झील सी नीली आंखों में, घुलता एक इशारा देखा। सुर्ख लाल गुलाब खिलाते, गुलशन का नजारा देखा। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
आचार्यश्री से प्रार्थना
गीत

आचार्यश्री से प्रार्थना

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l सच की डगर दिखा, गुरुदेव प्रार्थना है l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणमl ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll हम है तुम्हारे बालक, कोई नहीं हमारा l मुश्किल पड़ी है जब भी, तुमने दिया सहारा l चरणों में अपने रख लो, चन्दन हमें बना दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l१l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll पूजन तेरा गुरवर, अधिकार मांगते है l थोड़ा सा हम भी तेरा, बस प्यार मंगाते है l मन में हमारे अपनी सच्ची लगन जगा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l२l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll अच्छे है या बुरे है, जैसे भी है तुम्हारे l मुंकिन नहीं है अब हम, किसी और को पुकारे l अपना बन लो हमको, अपना वचन निभा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l३l ॐ ...
किसी को ज़ख्म दूँ
ग़ज़ल

किसी को ज़ख्म दूँ

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** किसी को ज़ख्म दूँ ऐसा हुनर आता नहीं मुझे पहले की तरहा अब वो बुलाता नहीं मुझे दिल खोलकर बातें तमाम करते थे रातभर अब पुछता हूँ फिर भी बताता नहीं मुझे इतना चढा हूँ बार बार दारो रसन पर हादसा कोई भी रूलाता नहीं मुझे आजमाया है बहुत भरी बरसात का मौसम अश्कों के जैसा वो भी भिगाता नहीं मुझे इल्ज़ाम से मैनें यूँ बरी सबको कर दिया पीता हूँ ख़ुद ही कोई पिलाता नहीं मुझे कडवा है सच बहुत मुझे होनें लगा यकीन क्योंकि वो अपनें मुहँ अब लगता नहीं मुझे मैं जाग जाता हूँ ख़ुद ही "शाफिर" सुबह लेकिन माँ की तरहा अब कोई जगाता नहीं मुझे . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित...
चाँदनी
कविता

चाँदनी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** शरद चाँदनी के जैंसी तुम हर रोज चमकती हो पगली उसकी किरणों की आभा सी तुम रोज दमकती हो पगली तुम हर रोज चाँद सी लगती हो अनुपम अपनी काया ले करवा चौथ का चाँद देख तुम जो मेरी उम्र बढ़ाती हो राज की बात बताऊं तुमको सच तो यह हैं! साथ तुम्हारा पाकर पगली मेरी उम्र हर रोज हैं बढ़ती चाँद रश्मि के जैंसी तुम खीर की जैंसी मीठी तुम शरद चाँदनी के जैंसी जो हर रोज चमकती हो पगली जो हर रोज चमकती हो पगली ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मे...
क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को
कविता

क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** जिनके नाम का इस जगत में देख हुवा उजाला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। भले ही आगे बढ़ जायेगा दुनिया के व्यापार में , नहीं मिलेगी वो खुशी जो मिलती इनके प्यार में । कुछ नही मिलने वाला इस कलयुग के बाजार में , आज़ा फिर से लौटकर उन खुशियों के संसार में । छोड़ दिया वो दामन कैसे जो जनन्त से निराला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। जैसे जैसे तू बड़ा हुवा, उनका भी सपना खड़ा, लेकिन वो सपना टूट गया , जब साथ तुम्हरा छूट गया ढूढं रहे हो जो तुम वो अब आएगा ना हाथ मे , भूल गये वो दिन कैसे जो गुजरे उनके साथ में दर दर ठोकर खाओगे वो दिन अब आने वाला है । क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। तेरी खुशी देखकर जिन्होंने दुःख झे...
सुप्रभात
कविता

सुप्रभात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** ”निशा के गर्भ से हो गया है, आज़ सुप्रभात का श्रीगणेश, भास्कर की किरणोँ से, नहीँ अब, अँधकार का अवशेष, पँछीयोँ के मधुर गान से, गुँजायमान है, सारा परिवेश, प्राणियोँ मेँ स्फूर्त हुआ, ऊर्जा का नवीनतम, समावेश, भजन गातीँ प्रभात फेरीयाँ, देती ह्मेँ यह सुखद सँदेश, जागो ऊठो, दूर करो, तनमन से आलस का, शेष, बागोँ, खेतोँ मेँ बिखरी है, बसँत की नव बहार, नये कार्योँ का श्री गणेश करो, नव शक्ती की है, यही पुकार, देवी सरस्वती का ध्यान करेँ, पायेँ उनसे सदबुद्धी का उपहार." . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
घर की शान बेटियां
कविता

घर की शान बेटियां

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** निकालिये अपने मन से हर एक बुराई को, आजसे ही बनिये एक जासूस बिना तन्खा के, नौकरी करिए साहब इन बेटीयो को बचाने की। नौबत ना आये इनको भूखा सुलाने की, नौबत ना आये इनको ज़िंदा जलाने की।। ये बेटियां बुढ़ापे तक साथ देती है। मांगती केवल लाड़ प्यार आपका, इसके सिवा भला और क्या लेती है? ये बेटियां आपके घर से निकलकर, दुसरो के घर को खुशहाल बनाती है। खुद तकलीफ सहकर सबको हंसाती है, मगर अपना दर्द किसी को नही बताती है।। कभी कूड़े के ढेर में मिलती है, तो कभी दहेज की पीड़ा सहती है। मां, बहन, बेटियां, बहु ही है जो देश मे, आपके नाम को बढ़ाने में सबसे आगे रहती है।। घर की शौभा, घर का रूतबा घर की शान होती है बेटियां। मजबूर पिता गरीब परिवार का, एक अभिमान होती है बेटियां। बहु-रूपी बेटियों से चलता है वंश आपका, गांव नही, कस्बा नही, नगर नही, शहर नही। अरे ...
शरद पूनम का चाँद हो
कविता

शरद पूनम का चाँद हो

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. शरद पूनम का चाँद हो नदी का किनारा हो हाथों में हाथ सिर्फ तुम्हारा हो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो न गम का कहीं भी इशारा हो चाँदनी से महक रहा जहान सारा हो शीतल किरणों सा जगमगा रहा प्यार हमारा हो तो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो कि खो जाए हम एक दूसरे में ही कही इस दुनिया से बेखबर संसार हमारा हो... जहाँ सिर्फ मुहब्बत ही मुहब्बत हो, और गम का न कहीं सहारा हो तो कितना मधुर वो संसार प्यारा हो आओ बसाए वो सपनों का जहान... जहाँ हर पल शरद पूनम का उजास हो उस शीतल चाँदनी में फिर राधा कृष्ण का रास हो,, गोपियों का विश्वास हो, और मधुर मिलन की आस हो... और ऐसा प्यारा वो संसार हमारा हो... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्न...
मेरी राह देखना तुम
कविता

मेरी राह देखना तुम

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम तुमको ही पूरा माना है, तुम ही मेरे मन में हो तुम मेरे हर क्षण में हो ,तुम मेरी सांसों में हो तुम ही प्राणप्रिया हो मेरी, यही याद कर राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। तुम्हीं भाग्य गए हो, तुम्हीं कर्म हो तुम्हीं बुद्धि हो, तुम्हीं सिद्धि हो तुम्हीं हो मेरे, सुख-दुख की रानी तुम्हीं मेरे सपनों की, शहजादी यादों में भी गर्व कर, मेरी राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। जानती हूॅ॑ न लौटेंगे कभी, हृदय उनका निष्ठुर हुआ हैं त्याग कर मेरा समर्पंण तो, मातृभूमि को किया हैं प्रेम में त्याग एक का, दूसरे पर स्वयं बलिदान हो गए रोता हुआ छोड़ कर मुझे, स्वयं जाते-जाते कह गए आएंगे हर रोज सपनों में तेरे, मेरी राह देखना तुम जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम।। . परिचय :- नाम : रेशमा ...
माँ है जो मकान को घर करती है
कविता

माँ है जो मकान को घर करती है

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) मुझसे ज्यादा मेरी फिकर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है धूप मे जब जब में निकलता हु पलकों की छाव मेरे सर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है कभी गिरने नही देती मुझे कहीं उसकी दुआ इतना लंबा तय, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है जब जब भी कभी बिमार होता हूं उसकी यादों की दवा हि बस मुझ पर असर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है लोग चेहरों पर नक़ाब लिए रखते हैं सभी के सारे हिसाब लिए रखते हैं में मेरी तकदीर लिए चलता हूं ज्यादा कुछ नहीं, माँ कि तसवीर लिए चलता हूं उसकी दुआ मेरे साथ साथ सारे, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनि...
तुम लौट आओगे
कविता

तुम लौट आओगे

********** ज्योति शुक्ला औरैया (उत्तर प्रदेश) ग़म जुदाई के सताएंगे तो तुम लौट आओगे आंख में अश्क आएंगे तो तुम लौट आओगे टूटी नाव के सहारे ना लग पाओगे पार तुम तो लहर संग तूफान आएंगे तो तुम लौट आओगे याद रखना कोई आसान नहीं है जमाने में दर्दे दिल रोज़ सताएंगे तो तुम लौट आओगे। पूंछ-पूंछ कर मेरे बारे में तुम से जमाने के लोग बागवां दिल का जलाएंगे तो तुम लौट आओगे। मुझ से खफा हो के जाने वाले रखना याद ख्वाब मेरे जब आएंगे तो तुम लौट आओगे। . परिचय :- कवयित्री ज्योति शुक्ला का जन्म १५ जुलाई सन् १९८८ को जिला औरैया उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा औरैया एवं उच्च शिक्षा कानपुर विश्व विद्यालय से प्राप्त किया। ज्योति शुक्ला एक कुशल गृहिणी होने के साथ ही वर्तमान समय में चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं।समाजिक विद्रुपताओं, सामाजिक विसंगतियों, मानवीय संवेदना से परिपूर्ण काव्य लेखन के...
तेरी सोहबत का असर
कविता

तेरी सोहबत का असर

********** आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश बड़ी मुश्किल है ये प्यार की डगर आई नहीं तुम आने का वादा कर खुश रहने की ख्वाहिश भी बची नही ख़ुदा जाने क्यों उदासी है इस क़दर। प्यास जगाई तूने,उसमें झुलसता रहा मैं तुझे पता ही नही कहाँ खोई है तू मगर सबकी नजरों में खुश ही दिखता हूँ मैं ये सब तेरी ही सोहबत का है असर। अब ना भटको चुपचाप चली आओ तुम दिल में प्यार की अब भी है वही लहर।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन मे...
नजदीक
कविता

नजदीक

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) यूँ लब थरथराने लगे तुम जो मेरे नजदीक आए महकती खुशबू जो महका गई तुम जो मेरे नजदीक आए नजरें ढूंढती रही हर दम तुम्हे तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम को बोल भी न बोल पाए तुम जो मेरे नजदीक आए इजहार तो हो न सका प्रेम का तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम के ढाई अक्षर हुए मौन तुम जो मेरे नजदीक आए कागज में अंकित शब्द खो से गए तुम जो मेरे नजदीक आए नींद भी अपना रास्ता भूल गई तुम जो मेरे नजदीक आए कोहरे में छुपा चेहरा जब देखा तुम जो मेरे नजदीक आए अंधेरों ने माँगा उजाला रौशनी देने तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम रोग की दवा देने तुम जो मेरे नजदीक आए . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
नेह तुमसे लगाऐं
कविता

नेह तुमसे लगाऐं

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) नेह तुमसे लगाऐं, तुम ना स्वीकारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... असर अब कुछ हुआ है। दिखे खाई कुआ है। प्रीत में हार बैठे सब, खेला ऐसा जुआ है । हम दर्द से बिलखें, नजर तुम ना बुहारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... अजब हलचल हुई थी। टाट, मल-मल हुई थी।। तुम्हारे प्रेम बंधन में, देह शतदल हुई थी।। आज दल-दल फंसे हैं, देखकर ना उबारो ? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... भला अनुराग पाला। मन घुली हाय हाला।। अधेरों से हुयी यारी, लगे बैरी उजाला ।। तिमिर की स्याह में डूबे, दीप फिर भी ना जारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि ...
आसमान के तारें
कविता

आसमान के तारें

********* कुमार संदीप ग्राम सिमरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में टिमटिमाते हुये तारों को, ऐसा लगता है कि ये तारें सपरिवार स्नेह और प्रेम से रहते हैं मिलजुलकर एक साथ। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, जुगनू की तरह तारों को चमकते ऐसा लगता है कि ये तारें एक साथ हँसते हैं मुस्कुराते हैं, तारों की चमक आँखों को देती है सुकून। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, तारों को कुछ समय के लिए ओझल होते ऐसा लगता है कि ये तारें भी क्रंदन करते हैं दीन दुखी के दुःख देखकर, ये तारें देखते हैं आसमां से इंसानों के कुकर्मों को। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में असंख्य तारें, ऐसा लगता है कि ये तारें सभी एक जैसे ही हैं, इन तारों में इंसानों की तरह न तो रंग का भेदभाव है, न ही धर्म, जाती का बंधन। . लेखक परिचय :-  नाम : कुमार संदीप पिता : स्वर्गीय ब्रज ...
पुरानी हर ईमारत
ग़ज़ल

पुरानी हर ईमारत

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) पुरानी हर ईमारत ढहाई जाएगी तब स्मार्ट सिटी बसाई जाएगी सिनेप्लेक्स क्लब या मॉल होंगे झुग्गी बस्ती की जमीन जाएगी यादों का मलबा दबाया जायेगा और नई नेमप्लेट लगाई जाएगी एक ग़ज़ल भर नहीं मेरी संवेदना उम्मीद है दिल से सुनाई जाएगी वहीँ दफ़्न होगी 'मृदुल' की आरज़ू जहाँ से भी मिटटी उठाई जाएगी   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय ...
जाड़े की दस्तक
कविता

जाड़े की दस्तक

********** कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) जाड़े की धूप खिलने लगी है। जाड़े की धुँध उठने लगी है। छत पर रजाईयाँ सजने लगी है। आँगन में चटाईयाँ बिछ्ने लगी है। रंग बिरंगे फूल खिलने लगी है। तितली फूलों पर उड़ने लगी है। पत्तों पर ओस चमकने लगी है। सिंगरहार पेड़ों पर सजन लगी है। आँगन में आचार सूखने लगी है। दरवाजे दरीचे खलने लगे हैं। माँ भाभियाँ स्वेटर बुनने लगी हैं। शायद जाड़ें की दस्तक मिलने लगी है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूच...