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पद्य

दिल आया मझधार में
गीत

दिल आया मझधार में

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** कभी रुखसत जो हुई यादें, हम हंसकर रो लिए, तेरे ख्वाबों को बना कर मोती, ख्यालों में पिरो लिए, उन रोती हुई आंखों की धार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी, घेर खड़ा हुआ तिमिर, सांस हार ने को तैयार न फिर भी, हारने लग गया शरीर, जीती लड़ाई हारे हम करार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। वो रोशन हुई रात अमावस की, जब चांद से हटा घूंघट, लब न बोले नज़रे भी झुक गई, फिर बोला मुझसे लिपट, मेरा तन रोशन है तेरी बहार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था, शंकाओं की घटा ने घेरा था, संग संग में सदा रहे हरपल शाम में, संग में गुजरा हर सवेरा था, संग छूटा इक गलती की मार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...
हम कह ना पाए
कविता

हम कह ना पाए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लग रहा है जैसे तू मुझसे दूर जा रही है, तेरी यादें मुझमें एक डर सा जगा रही है। बीते लम्हों की बेचैनी मुझे रुला सी रही है, दिल की हर धड़कन तुझे बुला सी रही है। तेरे प्यार से यह दिल मेरा यूँ वंचित सा है, फिर क्यों तेरे लिए ही दिल चिंतित सा है। मैं समझा समझ लोगे मगर समझ ना पाए, दोष तुम्हारा क्या दूं जब हम कह ना पाए। मुझे छोड़ कर तुम ना हो पाए जमाने के, पहले ढूंढ़ तो लेते बहाने कुछ ठिकाने के।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानि...
क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी
कविता

क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** “वही जिन्दगी क्यों? कभी अनजानी कभी अनचाही कभी अनमने ढंग से वही क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी कभी उलझनों में कभी संघर्षों में कभी अपनों के कटु वचनों के बीच क्यों ? फकतनुमा जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी हर पल की टेंशन में कल्पना की प्रवृत्ति में कभी आर्थिक क्रांति में उलझी संस्कार और कौमार्य के टकराव में क्यों ? विवशतापूर्ण जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी जायज कभी नाजायज द्वंद्व में! कभी विरुप अनुभवों के बीच तो कभी सामाजिक मुखौटों के बीच क्यों? यायावर जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी तन्हाइयों में तनावों से गुजरकर स्थिर खुशनुमा जिन्दगी की तलाश में क्यों? मानसिक संघर्षों के बीच जीनी पड़ रही हैं जिंदगी क्यों? आहिस्ता आहिस्ता वहीं जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं।.." . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी...
होना था जो साथ मेरे हो गया
ग़ज़ल

होना था जो साथ मेरे हो गया

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** होना था जो साथ मेरे हो गया क्या बतायें क्या मिला क्या खो गया आज फिर दीया जला है कब्र पर हो ना हो वो आज फिर से रो गया भूखे बच्चे को सुनाकर लोरियां माँ ने देखा रोते रोते सो गया उम्र गुज़री पूरी तब आया समझ आज तक आया नहीं है जो गया हर तरफ काँटों का जंगल है यहाँ कौन था जो बीज ऐसे बो गया छिननें की ज़िद तो बस ज़िद रह गयी जिसका जो उसको मुबारक हो गया तुनें "शाफिर" जो किये मैले गुनाह आँख का इक आँसू सब कुछ धो गया . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
वीणा नाम मुझे दिया
कविता

वीणा नाम मुझे दिया

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कितने प्यार से माँ ने, वीणा नाम मुझे दिया। शारदे ने गोद धारण कर, नाम सार्थक कर दिया।। नाम के अनुरूप ही, काम सदा मैंने किया । ना लजाया माँ गोद, नाम अनुरूप काम किया।। बन निडर, हर मुसीबत का सामना किया। धरती माँ की गोद को, सदा हरा भरा किया।। जन्नत सुख माँ की गोद मैं, सदा मैंने पाया। रुखा सुखा जो भी था, माँ के हाथ से खाया।। यही सुख पाने को, कान्हा देखो धरती आया। मचा धूम गोकुल, बहू आनंद संग ग्वाल पाया।। जन्म देवकी दिया, गोद जसोदा सुलाया। दो माँ की गोद पा, कान्हा फुला ना समाया।। कहती वीणा माँ गोद, कोई कभी न बिसराया। चहुँधाम आनंद, सब ने मांँ गोद में पाया।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कैसे उद्गम होत कवित का
कविता

कैसे उद्गम होत कवित का

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** कैसे उद्गम होत कवित का, कैसे उमड़े उर से धारा ? कैसे बहे भाव भंवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा।। जब सब जागे सो जाते हैं, तब चुपचाप ख्वाब आता है। उमड़-घुमड़कर, डूब-डूबकर, झूम-झूमकर मन गाता है।। पागल दिल को कुछ ना सूझे अपनी धुन में नाचे गाए। कल्पनाओं के तार समेटे, तब मनआंगन कवित समाए।। सब सुख फीके पड़ जाते हैं, बजता जब तेरा इकतारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। तेरे आने की आहट से, मन आनंदित हो जाता है । हँसकर हृदय हाव-भाव के, बीज कलम से बो जाता है।। कलम पकड़ बैठा हो जाता, छोड़ नींद अक्सर रातों में। करे सुबह स्वागत सूरज, बीते रात बातों-बातों में ।। रोम-रोम में रमे रोशनी, मिट जाता मन का अंधियारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। कलम कदम से चित पे चढ़के, मन की बात जुबां पे लाए। कहीं ज्ञान की गंग...
हर श्वांश गरजे सम सिंह
कविता

हर श्वांश गरजे सम सिंह

सुरेश चंद्र भंडारी धार म.प्र. ******************** ओ भगवाधारी, है कहाँ तुम्हारी हुंकारें, हिंदुत्व कहाँ, हैं कहाँ गतुम्हारी तलवारें। सिहासन सौंपा था कि कुछ बदलाव मिले, अफसोस सदा, हमको घावों पर घाव मिले। विधर्मीयो से लड़ते हुवे गुर्राए झल्लाये थे, हिन्दू सलामत रहे, योगी मोदी चिल्लाए थे। हिन्दू हितेषी हो, सपना हमने दिन में देखा था, आज़म अखिलेश को सत्ता से बाहर निकाला था। शिव गणपति की यात्रा पर, नित नए हुड़दंग, हिन्दू इस सरकार में, रहता है हरदम तंग। आँखे बंद, विश्वाश हम उनका करने लगे, पुण्य धरा, प्रतिबंधित तिरंगा, अब तो जागे। दिन के उजाले में, कमलेश का संहार किया, भरोसा जितने में, अहो, कैसा उपहार दिया। हत्या नहीं, धब्बा है हमारी हिन्दू अस्मिता पर, जय श्रीराम, उद्घोष जड़वत, मौन आत्मा पर। दम्भ भरने वाले, स्वयंभू रक्षक, आज है मौन , तुम्हारे रहते, कलंकित कर्म, करने वाले है ये कौन । कहते है...
पिया गये परदेश
कविता

पिया गये परदेश

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** अखियाँ उदासी मन में न चैना, कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। जब से पी मैने प्रेम का प्याला, गुँथू मैं निशदिन प्रेम की माला, दर्पण के आगे अपनी ही कहना। कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। सूना है तन मन सूना है अंगना, सूना है जीवन तुम मेरे संगना, रोता है मन मेरा बहते है नैना। कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। यादों के अंगना में सजना की बतियाँ, कटती नहीं री सखी कारी ये बतियाँ, विरह अगन में पल पल में दहना, कैसे बिताऊ सजन तुम बिन ये रैना। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रि...
दर्द माली का
कविता

दर्द माली का

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** व्यथित बहुत हुआ मन। शाक ने माली से पूछा जब माली तूने मेरे लिये आज तक किया ही आखिर भला क्या है ??? दर्द से तड़प उठा माली। ये तो शाक ने आज दे दी थी संभवतः आज गाली।। उस शाक को अब तक जिसने सींचा था पसीने से अपने। आज शाक उससे है पूछ रहा। आज तक आखिर मेरे लिए तूने किया ही क्या है ????? रो रहा था माली यह सोचकर। धूप में जले हाथों को देखकर।। आखिर उसने उसके लिए भला ही आज तक किया ही क्या है ??? . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान...
शिक्षा
कविता

शिक्षा

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** शिक्षा  नहीं है कोई भिक्षा, गुरु से ली गई दीक्षा धैर्य की परीक्षा जीवन में संघर्ष की समीक्षा कर्म के परिणाम की करना है थोड़ी प्रतीक्षा जब मन में हो कोई अभिप्सा ईश्वर से मिलती तितिक्षा यदि हमने प्रकृति की नहीं  की उपेक्षा आहार विहार, रहन-सहन संसाधन, पर्यावरण से मिलती रहेंगी हमें सुरक्षा, जीजिविषा की है यदि हमें अपेक्षा करें ध्यान, प्राणायाम  सुबह-शाम रखें सत्य, अहिंसा और नैतिक शिक्षा मुमुक्षा की यदि है अभिलाषा करों न जग में कोई तमाशा . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
गम के सिवा
गीत

गम के सिवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** गम के सिवा क्या दिया मैंने तुमको, तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... मुझे भूल जाना सपना समझकर, दिल में ना रखना कोई याद मेरी। मेहफूज रखे खुदा हर बला से, चाहे ज़िंदगी कर दे बर्बाद मेरी।। दुआओं भरे गीत अब गाऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... उन रास्तों पर कभी तुम ना जाना, जहां बीती यादें सतायेंगी तुमको। गूंजेंगी कानों में आवाज मेरी, बुलायेंगी तुमको,रूलायेंगी तुमको।। लेकिन नजर ना कहीं आऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभ...
शरणागत
कविता

शरणागत

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरे पापो का हो शमन मेरे दंभ का हो दमन भीतर ही भीतर लड़ रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। ज्ञान के भरम में स्वार्थ के करम में तिनका तिनका बिखर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। क्रोधाग्नि में जला हूँ कुमार्ग पर चला हूँ अब प्रायश्चित कर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। करुणा जगा कर अश्रुओं से भिगा कर ताप, तमस धो रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। नश्वर था, अमर समझ बैठा चाकर था, ईश्वर समझ बैठा जीवन तुझे अर्पित कर रहा हूँ मदद करो हे परमपिता ।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
बाबा की शर्ट में जो दाग है
कविता

बाबा की शर्ट में जो दाग है

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं कुछ दिन से चेहरा तेरा उदास है, तू सोती क्यों नहीं तेरी चुड़ी, बिंदिया, कँगन बहुत ढूंढे मेने माँ गिरे हुए उस धागे के मोती, तू पिरोती क्यों नहीं माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं दरवाजे पर जो मिट्टी हे, मेने देख ली माँ तेरे सिरहाने पर जो चिट्टी है, मेने देख ली माँ मेरा नया खिलोना अब शायद ना आएगा मेरा बाबा लौट कर अब वापस ना आएगा बाहर निकाल तेरे अश्कों को, जी भर तू रोती क्यों नहीं माँ बाबा की शर्ट में जो दाग है, तू उसे धोती क्यों नहीं जैसे तु हर कदम मेरे साथ रहती है उन बेटो को भारत माँ की फिक्र, दिन रात रहती है माँ बाबा मेरा महान था, अपने देश की शान था जाते जाते उसने बंदूक चूमि थी आखिरी सांस में भी उसने अपनी धरती चूमि थीं बहुत रात हो गई हैं माँ, अब तू सोती क्यों नहीं ...
आज समाज मे
कविता

आज समाज मे

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** समांत:- है पदांत:- आव ‘आज समाज मेँ एक दिखता है, प्रभाव, धर्म कर्म मेँ लोगोँ का दिखता है, भाव, धर्म निरपेक्ष की रीत, को हम मानते, और व्यवहार मेँ भी दिखाते है, सदभाव, साथ रहते हुये, पीढियाँ कई गुजर गईँ, छोटी छोटी बातोँ पर, न दिखाते हैँ, ताव, शातीँ प्रिय हैँ हम, बात सभी ये जानते, हर सँकट मेँ सेवा का दिखाते हैँ, स्वभाव, दुष प्रचार करने का काम करते, कुछ, लोग, हमारे आपसी स्नेह से, नही होता, दुष्प्रभाव.” . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत...
नदी
कविता

नदी

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) कलकल बहती है निरंतर नदी, पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी। स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती, अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती। कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण, मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन। सिख लेकर नेक राह बढाए कदम, अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम। रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम, हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...
पागल
कविता

पागल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हर पल मुस्कुराता गुनगुनाता लोगो ने कहा पागल है राह के कंकर पत्थर बिनता लोगो ने कहा पागल है भरी धूप में पौधों को सींचता लोगो ने कहा पागल है अपना खाना कुत्ते को खिलाता लोगो ने कहा पागल है आते जातो को नमस्कार करता लोगो ने कहा पागल है रातो में जागता सिटी बजाता लोगो ने कहा पागल है बुजुर्गों को हँसाता सहारा देता लोगो ने कहा पागल है बच्चों के साथ नाचता कूदता लोगो ने कहा पागल है हर एक खुशी में शरीक हो जाता लोगो ने कहा पागल है अर्थी पीछे गुमसुम मरघट जाता लोगो ने कहा पगला है मंदिर, मस्जिद, चर्च घूम आता लोगो ने कहा पागल है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में...
जिसे चांद कहते रहे
कविता

जिसे चांद कहते रहे

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** साल भर हम जिसे चांद कहते रहे, आज उसने हकीकत में झुटला दिया। मैं तो हूं रोशनी आंखों की पिया, चांद कहकर गले से लिपटा लिया।। इन सांसों में खुशबू महकती तेरी, तेरी यादों में खुशियां चहकती मेरी। जिस दिन मुलाकात होती नहीं, रूह तड़फे और काया दहकती मेरी।। सात जन्मों का बंधन नाता किया।।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. मैं दूर होकर भी कब दूर हूँ, इस जमाने के हाथों मजबूर हूँ। धड़कन हो मेरे दिल की प्यारे सनम, तू मेरा नूर है मैं तेरी नूर हूँ।। मेरी पूजा का रोशन, तुम्हीं से दिया।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, क...
मैं तेरे दिल की गुड़िया
कविता

मैं तेरे दिल की गुड़िया

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला हैं। अगर माँ की गोदी है, तो बाबा ने दुलारा है। मुझे है प्यार दोनो से, मगर ये भी हकीकत है। मैं चिड़िया हूँ आंगन की, पराये घर जाना है। मैं जब माँ बनती हूँ, तो बेटी की याद आती हैं। जब मैं बेटी बनती हूँ , माँ की याद आती हैं। मैं दोनो की ममता हूँ, मुझे दोनो ही प्यारी है। इधर माँ भी प्यारी है , उधर बेटी भी प्यारी है। मुझें दोनो की हालत एक सी मालुम पडती हैं। इधर माता की ममता है, उधर बेटी दुलारी हैं। मुझे हर बक्त ही नैहर की वो दिन याद आते हैं। कभी आंगन में खेली थी, कभी शाला में पढ़ती थी। इधर ममता की पीड़ा है, उधर बेटी की चिंता है। मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला है ..... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा :...
अनगिनत यात्राएं
कविता

अनगिनत यात्राएं

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** पिता ने की अनगिनत यात्राएं पर जा नहीं पाए दूरस्थ जगहों पर इस डर से कि हमें कहीं कुछ कम न पड़ जाए साधन की बहुत कमी के बगैर भी मुल्तवी करते गये घूमने का शौक देखते रहे सपनों में हरियाली भरे पर्यटन स्थल चीड़ के वन बर्फाच्छादित उपत्यकाएं बताते रहे प्रसंगों से जोड़कर माँ के साथ संपन्न चुनिंदा यात्राओं का रससिक्त वर्णन उनकी यात्राओं में अक्सर  आड़े आता रहा हमारा बचपन या हमारी पढ़ाई और एक दिन जब हम सब बड़े हो गये  नहीं रहा  हमारी कमी का डर और रह गया उनके पास समय ही समय हमने देखा पिता के शौक को भी अंतिम सांसे लेते हुए एक दिन पिता की तरह   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठ...
करवा चौथ और मृत्यु की जंग
कविता

करवा चौथ और मृत्यु की जंग

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** उसकी जीवन मृत्यु की जंग चल रही थी, मेरी अर्धांगिनी मेरी जिंदगी मांग रही थी, केंसर की काली घटाएँ उसे रंग रही थी ऐसे में भी भारतीय संस्कृति टँग रही थी। करवा चौथ का पवित्र पर्व था, उसके लिए पति व्रत धर्म था, थका शरीर जर्जर हो तप रहा था, फिर भी उसका हौसला बढ़ रहा था। मुझे तिलक लगा टक-टक एक टक देख रही थी, चेहरे की बनावट गड़बड़, आंखों में सैलाब भर रही थी, जल पिला पूछ ही रहा था कि चक्कर से आंखे चक्रा रही थी, चलनी में चेहरा देख बून्द-बून्द अश्क बरसा रही थी। वह मेरी लम्बी उम्र की कामना कर व्रत-उपवास रख भूख सह रही थी, खुद के प्राण अटक-अटक कर रहे वह मुझे देख रही थी, मजबूर पति था,अपने आंसु ओं का घूंट गटकते वह देख रही थी, मेरे बच्चों के साथ मेरे पति का क्या होगा शायद वह सोच रही थी ? रो-रही थी जिंदगी,रो-रहा था प्यार विमर्श को, वह झुकी परम्परा...
हे मिसाइल मानव
कविता

हे मिसाइल मानव

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** हर्षित है आज यह नभतल। याद कर वो सुनहरा कल।।अग्निमानव का कर रहा सहर्ष स्वागत। मानो कहता हो यह सकल जीव-जगत।। अर्पित कर दिया जिसने अपना जीवन। आओ मिल हम उन्हें करें नमन।। कर अर्पित हृदयतल से उनको श्रद्धार्पण। हे अग्निमानव मेरा भी नमन करें स्वीकार। हे माँ भारती के आदरणीय सजग पहरेदार।। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
जीवन का कड़वा घूंट
कविता

जीवन का कड़वा घूंट

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** जीवन का घूंट है कड़वा शिकवा न कीजिए, मौन से स्वीकारें या समझौता कीजिए। गर्दिशों में तबाही का मंजर देखा, मुकद्दर के खेल में भी दुआओं का असर देखा। मेरे शब्दों से आप का दिल छू जाएं , इत्तफाक ही है सोचती हूँ लिखा जाए। दर्द बयां करने को हम बेताब थे, पर किसी ने पूछा ही नही हम खामोश क्यों थे। दूर रहने पर भी यह खबर दिलको सुकून देता है, तुम्हारी खैरियत जानने के बाद रूह को ठंडक दे जाता है . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हम...
मधुवर्षण
कविता

मधुवर्षण

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम दहन वो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पू...
मां
कविता

मां

महक देवलिया सागर मध्य प्रदेश ******************** कैसे बताऊं थाह मैं उस त्याग मई व्यक्तित्व की, जिसने सर्वस्व त्याग दिया, है समर्पण ही छवि जिसकी। है रागिनी वह चांद की, और ताप है वह सूर्य का, कैसे बताऊं शौर्य में, संसार के अस्तित्व का। सार है जो श्वास का, परिभाषा है जो प्रेम की, कैसे बताऊं भावना, ममता के उस जल धाम की। संसार है संतति की जो, जो प्राण है परिवार की, कैसे बताऊं अनिवार्यता, परमात्मा के रूप की। नीरब है जग, बिन ममता के, कैसे बताऊं मां तुझे, अमृत है बिष बिन आपके। . लेखक परिचय :-  सागर मध्य प्रदेश की निवासी महक देवलिया कक्षा 11वीं में पढ़ती हैं, हिंदीसहित्य पढ़ने व कविताएं लिखने में आपकी रूचि हैं ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
तन्हाई बेबस
कविता

तन्हाई बेबस

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** ख्वाबों की दुनियाँ भरी है जिन्दगी गम से भरी है गम भरे हालात में जीकर गुज़ारा कर रहे... जीतना ही जीत जिसको लग रही... क्या बताएं ख्वाब दिल में दिन ब दिन नए उग रहे... हर तरफ़ तन्हाई बेबस लोग चलते जा रहे मैं अधूरा था अभी तक पूरा खुद को कर रहे... देख जालिम ये जमाना बेरहम हर ओर है क्या से क्या सपने गढ़े थे दिख रहे कुछ और हैं... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...