Monday, November 25राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

वो समुन्दर है
कविता

वो समुन्दर है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** बहुत कुछ खोया है उसने अपने जीवन की दिनचर्या में बहुत कुछ सहना सीखा है महज़ बात को कहने में आज तूफ़ान हिलोरे लेते हैं समाज रूपी कुरीतियों में नहीं डरी हैं मेरी माताएँ उनको आगोश में लेने में एक रुप समुन्दर रुपी उनका मुझे देखने को मिल जाता है बाबुल का घर छोड़ चलीं जब पति का घर मिल जाता है जरा हिचक न दिखती उनमें अनजाने घर में अपना दायित्व निभाने में सच में क्षमता रखती हैं वो सब कुछ अपने में समाने में . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य सं...
सपने
कविता

सपने

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सर्द हवा का झोंका, छू जाता है, और अचानक उठा देता है, मीठे सपनों से, जो बुने थे हमने, साथ साथ रात भर लेटे-लेटे, सुबह दिला देती है, फिर अकेलेपन का एहसास, सर्द हवा का झोंका, ले जाता है, तुम्हारे सपनों से दूर.... बहुत दूर... जहां सघन होने लगता है, फिर अकेले होने का एहसास, और मैं अपने सपने समेटे, मन के किसी कोने में, सिमट उठती हूं। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट...
प्यारे लगते है
कविता

प्यारे लगते है

संजय जैन मुंबई ******************** हँसता हुआ चेहरा, प्यारा लगता है। तेरा मुझे देखना, अच्छा लगता है। घायल कर देती है तेरी आँखे और मुस्कान। जिसके कारण पूरा दिन, सुहाना लगता है।। जिस दिन दिखे न तेरी एक झलक। तो मन उदास सा, हो जाता है। क्योंकि, आदि सा हो गया है, तुम्हे देखने को जो। कैसे समझाए दिल को जो अब बस में नहीं है।। तमन्ना है कि वो, रोज दिखते रहे। मेरे दिल में, वो बसते रहे। कभी तो हम, उन्हें पसंद आएंगे। अलग अलग रास्ते, फिर एक हो जाएंगे।। दिन जिंदगी का वो, यादगार बन जायेगा। प्यार का किस्सा, अमर हो जाएगा। जिस दिन इतिहास, इसे दौहरायेगा। तेरा मेरा प्यार, दुनियां वालो को समझ आयेगा।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्र...
कल के बच्चें हैं हम सब
कविता, बाल कविताएं

कल के बच्चें हैं हम सब

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सुबह-सुबह उठना हैं पड़ता हम सब प्यारें बच्चों को मम्मी-पापा के सपनों का बोझा ढोंना पड़ता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। मम्मी कहती हिन्दी पढ़ लो पापा कहते गणित लगाओं बाकी घर वाले सब इंग्लिश के पीछे पड़ जाते हैं हम सब प्यारें बच्चों के। बिना भूख के खाना पड़ता बिना नींद के सोना पड़ता कपड़ों में यूनिफॉर्म शिवा हम सब को कुछ न मिलता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। कभी तो पूछो हम सब से भी हम सब का सपना क्या हैं? हम सब को क्या अच्छा लगता हैं? हर कोई तो कहते हो कि हम सब आने वाला कल हैं फिर अपने कल को आप सभी आज कैंद क्यों करते रहते हो हम सबको भी थोड़ा सोने दो हम सबको थोड़ा खेलने दो बचपन को बचपन रहने दो हम सब प्यारे बच्चों का।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
मिथ्या ख्वाब
कविता

मिथ्या ख्वाब

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** खेले सदा  जो वीरानियो मे भाई उन्हें कब महफिले, अरमा सजे टूटे सदा जब मिलती कहाँ है मन्जिले उड़ते परिन्दे देख के नभ मे, तौल लिये पर ख्वाहिश के, हर ख्वाहिश दम तोड़ गयी, की भाग्य ने गुप चुप साजिश ये, सप्त सिन्धु भर जाये अश्रु से, या उठे दावानल अन्तस मे, तिल तिल कर मर जाये स्वप्न, या मिले ठोकरे हर पग मे, हो न मलिन ह्रदय किसी का, तेरे अन्तर की दुखती रग से, होठों पर मुस्कान सजा नयनो मे छुपा ले मोती को, महफिल मे जगा कहकहे बुलन्द, फिर अश्रु बहा ले वीराने मे, यूँ बहका ले अपना हर अरमां, मिथ्या ख्वाब जगा कर जीवन मे . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेर...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नव वर्ष के शुभ अवसर पर नव संकल्प ले जीवन पथ पर। विगत पतझड़ को भूल जाओ नव बसंत को याद करो। कोयल की वह मधुर कुक लालटेसुओ की भरमार। नव किससय से प्रफुल्लित तन मन आम्र मंजरीयो की जयमाल। भूल जाओ उस विगत वर्ष को दानवता की भयावह चित्कार। जोर-जोर ऊंची आवाजों में रोया जो स्वान और श्रृंगाल। याद करो उस चटक चांदनी को जो खिला था नभ में भरपूर। खिल गई थी पीली सरसों महक रही थी रजनीगंधा। हरियाली थी भरपूर चिपक गई थी चटक चांदनी दूधिया रोशनी थी भरपूर। याद करो उस विगत जब प्रकृति की वैभव से धरती मां रहती थी भरपूर। कलकल निनाद से बहती थी नदियां पक्षियों का कलरव भरपूर। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
दूरियां
कविता

दूरियां

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बात कुछ ही साल पुरानी मकान छोटे दिल बड़े थे, अब, मकान बड़ा दिल छोटा हो गया अतिथि देवो भव कुत्तो से सावधान द्वारा स्थापन्न हो गया एक से साथ अनेक होते थे अब अनेक के बीच एक नितांत अकेला रह गया। अहम की भीड़ में हम खो गया। मैं, तू एक दूजे को जाने भी तो कैसे, मैं, मैं बना रहा तू भी तू ही रह गया। बीच तेरे मेरे कोई रंजिश भी नही, बस आगे निकलने की चाह में दरमियां फासला बढ़ता गया । निगाहें भी नही मिलती है अब तो लगता है, आंखों का पानी ही सुख गया। चाह कर भी अब मिलना मुश्किल हो गया जीवन की नदी का एक किनारा मैं, दूजा तू हो गया। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। ...
इतना मुझे देना
कविता

इतना मुझे देना

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शब्दों में सामर्थ्य बस, इतना मुझे देना प्रभु। प्रार्थना मन से करूँ, तुम तक वह पहुँचें प्रभु।। धर्म जाति से परे हो, जीवन सदा मेरा प्रभु। किसी का दर्द समझू, ऐसा जीवन मेरा प्रभु।। कर्म कांड पाखंड से, सदा दूर में रहूँ प्रभु । किसी की मदद करू, इतनी शक्ति देना प्रभु।। सज्जन व्यक्ति बन, जीवन यापन करुँ प्रभु। दिल में जगह मिले, यही प्रार्थना करूँ प्रभु।। नहीं चाहिए धन दौलत, दीन बन रहूँ प्रभु। सेवा दीन की करुँ तो, जीवन सफल हो प्रभु।। प्रार्थना बस यही, तुझसे मैं सदा करूँ प्रभु। कोई गरीब भूखा उठे, पर भूखा ना सोए प्रभु।। जब जाऊ इस जहां से, याद में आऊँ प्रभु। कर्म कुछ ऐसे करूं, ठौर चरण पाऊँ प्रभु।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि ह...
वंदना …
छंद, धनाक्षरी

वंदना …

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** वीणा वादिनी विभव वारिए विकल वत्स वंदना विडंबना वरंच विलगाईये। लाल लाल लहू लक्ष्म लोचन ललाम लुप्त लूला लाल लग लक्ष्य लकुट लड़ाईए। स्वर सुधा सरिता सलिल सरसाए स्याम सूत्र सार सबको सुदामा सा सुनाईए। कामना कि कमलासिनी कपट कलुषों को काटके कलंकहीन कीर्ति करवाईए। . लेखक परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज ...
जीवन का तत्व
कविता

जीवन का तत्व

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** तेरा मेरा करते करते एक दिन चले जाना है, जो भी कमाया यही रह जाना है। करलो कुछ अच्छे कर्म, साथ तेरे यही जाना है। रोने से तो आशू भी पराये हो जाते हैं, लेकिन..... मुस्कुराने से पराये भी अपने हो जाते हैं। मुझें वो रिश्ते प्रसंद हैं, जिसमे मैं नही, हम है। इंसानियत दिल से होती हैं, हैसियत नही। ऊपरवाला कर्म देखता है, वसियल नही... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविता...
सर्दी के मौसम में
कविता

सर्दी के मौसम में

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो? कहीं मैं पिघल गई थी। इस सर्द हवाओं की सिहरन में, उस सूरज की किरणों की तपन में, अब कहां वो बात? क्या सच में लंबी हो गई है रात? जब से हुई है तुमसे मुलाकात। सब कहते हैं, कितना मासूम चेहरा तेरा है। सबसे कैसे कह दूं, तेरी नजरों की छुअन है। सब कहते हैं बड़ी सौगंध है, तेरे रूह में। कैसे कह दूं, तेरी सांसो की छुअन है। सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो...... . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
अपने इश्क में …
कविता

अपने इश्क में …

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** अपने इश्क में, यू जकड़ कर, न रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं।। तेरे इश्क में, खामोश रहकर भी, तुझे अपना बनाने की, खता ना कर जाऊं, यूं हौसला ना दे मुझे, मेरी हिम्मत पर, क्या पता, तेरे सजदे में, सर झुका जाऊं, यूं तो लोगों ने सराहा है, हमारी पाके मोहब्बत, तेरी इस एहसास में, दुनिया से खता ना कर जाऊं, आ, अब तो बाहों में, समा ले मुझे, तेरी इस दुनिया से, कहीं रुखसती न कर जाऊं, अपने इश्क में, यूं जकड़ कर ना रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं...... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिम...
फिर छिड़ी बात …
कविता

फिर छिड़ी बात …

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** फिर छिड़ी बात उन तरानों की, हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। बरसात से ढहते उन कच्चे मकानों की, खेत मे काम करते मेहनती किसानों की। गोली बिस्कुल वाली गांव में दुकानों की, बेवजह किसानों पर लगते लगानो की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। देसी घी पीते उन देसी पहलवानो की, चाय की हरी पत्ती के उन बागानों की। लैला और मजनू जैसे कई दीवानों की, रफी और किशोर कुमार के तरानों की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। इनाम में मिले बक्शीस और नज़रानो की, राजा रजवाड़ो के उन महंगे राज घरानो की। घने जंगल कटीले पहाड़ और ख़ज़ानों की, डांकुओं की लूट और बेरहम शैतानों की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। ज़्यादा दिन रुकने वाले घर आये मेहमानों की, मां के हाथ से चूल्हे पर बने पकवानों की। मिट्टी के बर्तन और सूत से कपड़े बनाने की, शुध्द वातावरण औ...
दबी आवाजे
कविता

दबी आवाजे

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आवाज कौन उठाए समस्याओं के दलदल भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना जिस रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जद्दो-जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी हो ऐसे होने लगी जीव की हालत जिसे नीचे वाला सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे  को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती ओझल भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में ...
प्रकृति की देन
कविता

प्रकृति की देन

संजय जैन मुंबई ******************** नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही वो फल और जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं में नदियां। हर मौसम के फल देते, वृक्ष हमें सदा यहां। तभी तो प्रकृति की देन कहते, हम सब लोग उन्हें सदा। नदिया न पिये कभी...।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का ज...
अपनापन
कविता

अपनापन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अपनापन कितना कटु सत्य है, शायद हम सभी मानते हैं। मानवीयता की कसौटी पर, इससे तौल सकते हैं। जब हम जीवन की प्रतियोगी बन, सफली भूत होते हैं, तो यह अपनापन कितना मनभावन लगता है। क्या सही मायने में हम, इसे अपनापन कहते हैं। जब मजबूरी के क्षण में, यह अपनापन टूटने लगता है। तो वास्तविकता के सही मायने, सामने आने लगता है। क्या इस कटु सत्य को, अपनापन सही मायने में कहते हैं। जो हर एक क्षण सांत्वना देता हो, विपत्तियों के छन में भी, दिल को चूम लेता हो। नए उत्साह और स्फूर्ति, फिर से भर देता हो। सही मायने में इसे, हम अपनापन कहते हैं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
काश अगर मैं पंछी होता
कविता

काश अगर मैं पंछी होता

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** खुला आसमां मेरा होता, सुखमय रैन बसेरा होता । चूमें ऊँचे पेड़ गगन को, शाखाओं पर डेरा होता ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... मनमौजी बन मन की करता, तजकर दिल से रंज व रंजिश। न कोई होती हद व सरहद, न कोई बाधा, बंधन, बंदिश ।। काश ! अगर मैं पंछी होता है..... प्रकृति की गोद में खेलूँ, लूँ मनोहर , मोहक नजारा । आकर्षक आवाज लुभानी, सुंदरता का करूँ इशारा ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... पनपे नहीं प्रेम से पीड़ा, लेकर देश, धर्म, जाति को । एक जैसा सबको चाहता, जितना संबंधी, नाती को ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... बस मेहनत बलबूता होता, लगाम कभी न लगे लगन पे । उड़ता पंखों को फैलाकर, राज करूँ मैं नील गगन पर ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... चिंता मुक्त चेतना चित में, उर आजाद करे नभ विचरण । हिला-हिलाकर पंख बुलाता, मुक्त प्यार का करता वितरण।। ...
भूल मत जाना …
गीत

भूल मत जाना …

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर, चहकने चली आँगन सैंया। राखी की डोर याद रखना सदा दिल से निकाल कर मत देना सजा बहना की सुध-बुध लेते रहना कभी-कभी दुआ है ईश्वर से खुशी मिले तुम्हें सभी। भूल मत जाना बहना को भैया, रक्षा करना हरदम मेरी डूबती नैया। एक ही आरजू करती है बहना प्यारी स्नेह की वर्षा करते रहना शीश पर हमारी खो मत जाना धन की अंधी गलियों में बँध कर रहना अनोखे भाई-बहन रिश्तों में भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर चहकने चली आँगन सैंया।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
मेरे सोये प्राण जगाये
कविता

मेरे सोये प्राण जगाये

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मेरे इन अधरों ने, फिर से, गीत प्रीत के गाये। किसने आकर फिर से मेरे सोये प्राण जगायें। मुझे याद हैं सदियों पहले, जब मैं गाता गीत था, क्योंकि मेरे साथ जगत में मन भावन सा मीत था। मेरे सांसो की वीणा को, जिसनें सदा सम्हाला, केवल उसके कारण स्वर में जादू सा संगीत था। मेरे इन नयनों में फिर से, ज्योति किरण मुस्काये, किसने आकर फिर से मेरे बुझते दीप जलायें। चलते चलते बीच राह में जब भी थक्कर हारा, मिली प्रेरणा चलने की, बस उसने मुझे पुकारा। पथ में मुझको मिले फूल, शूल अंगारे, लेकिन उसके गीतों ने दे, सम्बल मुझे दुलारा। मेरे पथ में चीर तिमिर को अब उजियारे छायें, किसने आकर फिर से नभ में अनगित चाँद सजाये। किसने आकर फिर से मेरे सोये प्राण जगायें। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु...
फिर कोई …
ग़ज़ल

फिर कोई …

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** फिर कोई इंतजाम हो जाए झुक के उनको सलाम हो जाये मौत के खेल में कुछ ऐसा हो ज़िंदगी महंगे दाम हो जाये छोड़ो खुशियों को आगे जाने दो गमों का एहतराम हो जाये वो पियें तो शौक है उनका मैं पियूं तो हराम हो जाये यहाँँ जो है सब खुदा का है चलो एक एक जाम हो जाये अभी ठहरा हूँँ आ गले लग जा सफर न यूं ही तमाम हो जाये हमें आजमानेंं वो आयें "शाफिर" और अपना भी काम हो जाये . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.com...
चंदा को धरती पर लाऊँ
कविता

चंदा को धरती पर लाऊँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कभी दिल करे आसमां के पंछी के संग दौड़ लगाऊँ कभी गर्मी मे मटके मे घुस कर मै भी ठंढ़ा हो जाऊँ तारों के संग मै जी भर आँख मिचौली खेलूँ कभी सूरज के ऊपर चढ़ कर चादर ओढ़ कुछ देर सो लूँ कभी दिल करे तितली के पीठ पर बैठ कर आसमान की सैर लगाऊँ कभी हाँथी को चुटकी मे ले कर मै भी उससे आँख लड़ाऊँ कभी दिल करे दोस्तो के संग मै नदी के ऊपर करुँ पढ़ाई चार मंजिले इमारत पर भी मै बिन सीढ़ी करुँ चढ़ाई कभी दिल करे टेलीविजन मे घुस कर सारे चाकलेट मै ही खा लूँ कभी रेडियो मे घुस कर मै बन्दर मामा गाना गा लूँ कभी दिल करे गर्मी की छुट्टियों मे चंदा मामा के घर उड़ कर जाऊँ मम्मी पापा से मिलवाने चंदा मामा को धरती पर लाऊँ . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
पिंजरा
कविता

पिंजरा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** प्यार का सोने का पिंजरा, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, उसमें रहते हम और तुम, खाते पीते मस्ती करते, जीवन का सुख हर पल पाते, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का! संगीत है जो जीवन में, तुम में गुण है कमाने का, हम में प्यार लुटाने का, दोनों की चाहत बढ़ाने का, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, खुले आसमान में उड़ना है, चांद तारों से बात करना है, कदम से कदम मिलाना है, तेरा हमसफर बन जीना है, पर पिंजरे में नहीं रहना है, तुझे पसंद हो ना हो, अब तो बाहर आना है, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वह हो बेशक सोने का!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहान...
हमारे गाँव
गीत

हमारे गाँव

संजय जैन मुंबई ******************** गाँवों की संस्कृति का, कहना है क्या यारों। लोगों के दिलों में, बसता है जहां प्यार। इंसानियत वहां पर, जिंदा है अभी यारों। कैसे भूल जाएं, अपनी संस्कृति को। मिल बैठकर बाटते हैं, गम एक दूसरे के। जब भी कोई विपत्ति, आती है सामने से। सब मिलकर उसका, हल निकालते हैं। ऐसे हमारे मुल्क के, गाँव वाले ही होते हैं।। इतिहास को उठाकर, देखो जरा लोगों। गाँवों से ही निकले हैं, वीर महान योध्दा। अभी हाल में कितने, खिलाड़ी निकल रहे हैं। अपने देश का वो, नाम रोशन कर रहे हैं। गाँवों की संस्कृति का, आज भी जवाब नहीं हैं।। तभी तो कहते है कि मेरा भारत महान।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी र...
सर्दी की बात
कविता

सर्दी की बात

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** कट-कट-कट-कट बज़ते दाँत करने न देते हैं बात ये तो है भाई सर्दी की बात अब तो हैं सर्दी के राज़ इनसे लड़ने की न करना बात कहीं मचा न दे ये उत्पात कहीं कोहरा का है बवाल कहीं है जनजीवन बेहाल गाँव-शहर के गलियारों में चलती बस सर्दी की बात ऊनी और मखमली कपड़े देते हैं सर्दी को दाद भैया ये तो है सर्दी की बात . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
मोहब्बत
कविता

मोहब्बत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किताबों से आती ख़ुशबू वही.... पन्नों को रखा था यूँ मोड़कर। कुछ गुलाबों की कलियाँ अधूरी नज़्म, उन्हें देखिये तुम फ़िर जोड़कर। चाँदनी चाँद की न फ़ीकी पड़े, चमक मोतियों की सलामत रहे। एहसास केवल रहे प्यार का, दिल में न कोई अदाबत रहे। जिस मोड़ पर हम मिले थे कभी, याद करके सफ़र सुहाना हुआ। आया ताज़ी हवा का झोंका कोई, ऐसा लगा दिल दिवाना हुआ। आओ चमन में चलें टहलने .... फूल खिलकर गुलाबी गुलाबी हुये। बोलिये न किंचित इक़ शब्द भी, मन के बादल घुमड़ कर शराबी हुये।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध...