मन मेरा
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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आज झूम उठा मन मेरा है,
वारिश की ठन्डी बूँदो मे,
लहर लहर लहराया मन मेरा है
आज झूम उठा मन मेरा है।
काली बदरिया ने झाँका था मुझे,
मदमस्त आँखो से निहारा था मुझे,
बोली थी क्यो है इतराई सी,
मै बोली कुछ लजाई सी शरमाई सी
आज विहॅस उठा मन मेरा है,
वंशी ध्वनि से झूम उठा मन मेरा है,
आज झूम उठा मन मेरा है।
पपिहा ने लगाई टेर दूर कही झुरमुट में,
आज फिर छुपा चाँद घूँघट मे,
मेरा मन तड़पा है चन्दा की चाह मे,
तू है अपने कान्हा की वाँह मे,
आज तुझसे जलता मन मेरा है,
आज झूम उठा मन मेरा है।
विहँस उठी राधा सुन पपिहा की बातों को,
कब से जगी हूँ मै ओ बाबरे रातो को,
कान्हा के मिलन से आज,
पुलकित मन मेरा है।
आज झूम उठा मन मेरा है।
आज झूम ...........।।
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लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.क...