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पद्य

मन मेरा
कविता

मन मेरा

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** आज झूम उठा मन मेरा है, वारिश की ठन्डी बूँदो मे, लहर लहर लहराया मन मेरा है आज झूम उठा मन मेरा है। काली बदरिया ने झाँका था मुझे, मदमस्त आँखो से निहारा था मुझे, बोली थी क्यो है इतराई सी, मै बोली कुछ लजाई सी शरमाई सी आज विहॅस उठा  मन मेरा है, वंशी ध्वनि से झूम उठा मन मेरा है, आज झूम उठा मन मेरा है। पपिहा ने लगाई टेर दूर कही झुरमुट में, आज फिर छुपा चाँद घूँघट मे, मेरा मन तड़पा है चन्दा की चाह मे, तू है अपने कान्हा की वाँह मे, आज तुझसे जलता मन मेरा है, आज झूम उठा मन मेरा है। विहँस उठी राधा सुन पपिहा की बातों को, कब से जगी हूँ मै ओ बाबरे रातो को, कान्हा के मिलन से आज, पुलकित मन मेरा है। आज झूम उठा मन मेरा है। आज झूम ...........।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.क...
बिछडे़ यारों का यूँ मिलना
कविता

बिछडे़ यारों का यूँ मिलना

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** आज मन बडा़ आनन्दित हुआ। बिछडे़ यारों का यूँ मिलना हुआ। हम मिले थे अनजानी दुनिया में। सहपाठी , संग रहे, संग खेले । सुप्त हृदय में प्रेम अंकुरित हुआ। एक-दुजे के हमदर्दी बने। न हमें जात-पात का ज्ञान था। न हमें देश-दुनिया का पता था। न हमें निज लक्ष्य ज्ञात था। बस हमें ज्ञात था। यारों संग वक्त बिताना। हँसी ठिठोले में मन बहलाना। मौज-मस्ती भरी दुनिया में जीना। वक्तांगडा़ई में हम बिछडे़ फिर चले निज लक्ष्य पथ पर कर क्षण लक्ष्यपूर्ति आ मिले फिर एक मंच पर । पुलकित अतिशय अंतरमन हुआ। आसमान में उड़ने का मन हुआ। बिछडे़ यारो का यूँ मिलना हुआ।।   परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं...
तुझे प्यार करती हूँ
कविता

तुझे प्यार करती हूँ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** नतमस्तक होकर प्रणाम करती हूँ, अब आ जाओ मनमोहन तुम्हे याद करती हूँ। बड़ी आस लगी है तुमसे, ये आरजू है मेरी, अब आ जाओ घनश्याम तुम्हे प्यार करती हूँ। दिल की जो बाते मेरी सुन लोगे कनाहिया, मैं बन जाऊँगी मीरा, तुम बन जाओ कबीरा। अब आ जाओ मेरे कबिरा गिरधर गोपाला, हरिदास जी आये थे, कीर्तन सुनाने, मैं "रागिनी" तुम्हारी, तुम मोहन हमारे। अब आ जाओ गिरधर, अब आ जाओ गोपाला। घनानंद की सुजान मैं, सूर का भ्रमर तुम, अब आ जाओ मीरा के गिरधर गोपाला। नतमस्तक होकर तुमको प्रणाम करती हूँ, अब आ जाओ मनमोहन, तुझे "रागिनी" पुकारे। राग नहीं पास मेरे अनुराग तम्हें बुलाये, अब आ जाओ मनमोहन हैं,आरजू तुमसे। नतमस्तक होकर तुमको प्रणाम करती हूँ। अब आ जाओ घनश्याम तुझे प्यार करती हूँ .... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिं...
गम के आँसू पिये जा
कविता

गम के आँसू पिये जा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ज़िन्दगी बेकार है, गम के आँसू पिये जा ! ज़िन्दगी बेकार है, गम के आँसू पिये जा !! इतनी ज़ेहमत उठानी होगी ज़िन्दगी मे आकर, क्या मिला इन्सान को इतना पैसा कमाकर ! क्या हुआ खुदको शरीफ़ दिखाकर, क्या कर लिया दूसरो पर उंगलियां उठाकर !! अबतो मरने मारने को भी तैयार है बस तु पिये जा……………………!! कंजूसी मे एक ईट पर पर भी घर टिक जाता है, चंद पैसो के लिये आजकल इंसान बिक जाता है ! कोई खरीदना बेचना इन इन्सानो से सीखे, “राज” तो इन जैसो पर ग़ज़ल लिख जाता है !! मुफ़्त का खा पीकर सब लेते डकार है बस तु तो पिये जा……………………!! रूठी है ज़िन्दगी अब ज़ोर दो मनाने मे, पेहले लोग वक्त बिताते थे सबको हंसाने मे ! अबतो चाहे सारा जहाँ लुट जाये, कोई नही सुनने वाला… ग़रीब वहीं पीछे और अमीरो की वही रफ़्तार है- बस तु तो पिये जा………………….!! इंसानियत कहाँ चली गई कोई समझ ...
आशिकी की खातिर
कविता

आशिकी की खातिर

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** सहती हूँ सब सितम उसके, बस इक आशिकी की खातिर। चाहती हूँ दीदार उसका बस इक दिल्लगी की खातिर। करती हूँ बस इंतजार उसका उल्फत की इक नज़र की खातिर। देखती हूँ उसका ए इश्के हुनर जिसमें कशिश और ज़ुल्म दोनो समाया। चाहती हूँ उसकी हर अदा को इस कदर की, उसकी बेरुखी में भी मुहब्बत आती है नज़र तभी तो............ सहती हूँ सब सितम उसके बस इक आशिकी की खातिर। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
एक विश्वास
कविता

एक विश्वास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दोस्ती वही है, जिसमें आस है, अपने आप से ज्यादा विश्वास है, दोस्त के, सुख दुख का, अपने जैसा, एहसास है, कड़वेपन की, जगह ना हो, दोस्ती में बस, प्यार दुलार, और, मिठास ही मिठास हो, दोस्ती वही है, जिसमें आस हैविश्वास है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : काव्य भूषण सम्मान मुंबई, वरिष्ठ समाजसेवी सम्मान मेरठ,...
कोई कैसे भूले बचपन
कविता

कोई कैसे भूले बचपन

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कोई कैसे भूले बचपन! बालक से बनता किशोर फिर बढ़ता यौवन की ओर ! तत्पश्चात बुढ़ापा आता , कसती कमज़ोरी की डोर ! खुलते यादों के वातायन! वह माँ का ममतामय आँचल! पापा की उंगली का संबल! बहना की सुखदाई गोदी, भाई का संरक्षण प्रति पल! दादी-दादा का अपनापन! गली-मुहल्ले के सब मित्र! मधुर स्मृति पूर्ण चरित्र! मानस पट पर हैं अंकित, विविध अमिट आकर्षक चित्र! वह घर-आँगन, कानन-उपवन! कोई कैसे भूले बचपन! . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक...
कदम
कविता

कदम

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कदम रखना फूंक-फूंक, अतीत सदा दोहराया जाएगा। जब जब आगे बढे़गा, अतीत बता पीछे धकेला जाएगा।। हर व्यक्ति मैं में सिमटा, वो राह गलत तुझे दिखाएगा। वाणी में वेदना भरी, वह खुशी फूल कैसे खिलाएगा।। सोच समझ कदम बढ़ा, रास्ता चहूँओर नजर आएगा। गहराई से कर चिंतन, स्वयं नया सृजन कर पाएगा।। सज्जन राह पूछ कदम बढ़ा, दुर्जन राह भटकाएगा। जैसी संगति बैठिए, कहावत यतार्थ वो कर जाएगा।। मत कोसना अपनों को, कर्मानुसार फल तू पाएगा। फस गया कभी दलदल तो, कमल फूल खिलाएगा।। रख इरादे मजबूत कदम बढ़ा, दृष्टिकोण बदल जाएगा। समस्या को नजरअंदाज कर, तू निश्चय मंजिल पाएगा।। सकारात्मक सोच रख नजरिया बदल, अपनापन पाएगा। करता रह श्रेष्ठ कार्य, दुर्जन तेरे कदमों में झुक जाएगा।। इतिहास पृष्ठों पर, तेरा नाम स्वर्णाक्षर लिखा जाएगा। मर कर भी तू हर जन हृदय में, बस अमरता पाएगा।। . परिचय : का...
सर्द हवाएँ
कविता

सर्द हवाएँ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** यही तो ओस की बूँदे, मुझे अवगत करातीं हैं नमीं कितनी है मौसम में सभी को ये बतातीं हैं कहीं की सर्द हवाएँ सदा मुझसे ही मिलतीं हैं कहें क्या हम उनसे अब वो दुआ रब से करतीं हैं कोई नफ़रत से जीता है कोई खुशियों में पलता है हिफ़ाजत मेरी करती है और मुझको ही डराती है . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
भारत भूमि
कविता

भारत भूमि

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। पूर्ण स्वाधीनता की अमर राग- जन जन फिर हुंकार उठे। भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाला उड़े। अफसरशाही तानाशाही- नौकरशाही फिर भाग सके। एक बार फिर हुंकारे। संपूर्ण क्रांति फिर जाग उठे। पूंजीवादी शोषणवादी- व्यक्तिवादी स्वार्थीवादी फिर भाग उठे। टंकार यहां हो कण कण में- अंगार क्रांति की जन-जन में- शान यहां कि जाग उठे। अब मान यहां कि जाग उठे। वीर सुभाष की सपनों की धरती- फिर एक बार हुंकार उठे। भारत की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। . परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
फटी जेब
कविता

फटी जेब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** महंगाई से, फटी जेब में, क्या.......? समा पाता। जितना कोई, कमाता ..... उतना ही निकल जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या..........!!! कीमतों में, दिन-ब-दिन, जो उतार-चढ़ाव आता। कोई, इस चीज से बचाता। और उधर खर्च आता।। कुल मिला के, हाथ का, रुपया भी चला जाता।। महंगाई से फटी जेब में, क्या समा पाता।। ऊपर से बदले नोट, जिनको दे दिये वोट। सरकारों से विश्वास भी, चल -चल के निकल जाता। किस जेब में, रखता आदमी ....पैसा। अर्थव्यवस्था की, जेब को ही, फटा पाता।।   परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
टैलेंट चाहिए
ग़ज़ल

टैलेंट चाहिए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चेहरे के हाव भाव, इनोसेंट चाहिए ब्वायफ्रेंड उनको डिफरेंट चाहिए। हसरतें भी यूँ शेष ना रहें कोई भी होनी डिमाण्ड पूरी, अर्जेंट चाहिए। हो रिच पर्सन ही ब्वॉयफ्रेंड उनका घूमने हेतु इनोवा-परमानेंट चाहिए। दारु संग सिगरेट भी पीती हैं मैडम दुर्गंध ना आए इसलिए, सेंट चाहिए। रोज तोड़ कर जोड़ रही हैं दिल को ऐसी नीचता के लिए, टैलेंट चाहिए। गर्लफ्रेंड रखना है सस्ता काम नहीं क्रेडिट कार्ड, कैश में पेमेंट चाहिए। फेसबुक पर फालोवर्स भी लाखों में हर पिक में लाईक्स, कमेंट चाहिए।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका...
मैं कवि नही
कविता

मैं कवि नही

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं कवि नही कविता मेरे बस की नही मन के भावों को मुझे पिरोना आता नही मुझे कविता लिखना आता नही मैं पाखंडी लिंगहीन शिखंडी प्रेम करना आता नही हो कैसे सृजन पता नही मुझे कविता लिखना आता नही मैं घृणा फैलाने वाला मन का काजल से काला किसी को सुहाता नही मैं किसी को भाता नही मुझे कविता लिखना आता नही दम्भी हु अभिमानी हु मूढ़ हु अज्ञानी हु पीठ किसी की खुजलाता नही मुझे कविता लिखना आता नही मुझे कविता लिखना आता नही . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
पथ और पथिक
मुक्तक

पथ और पथिक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जीवन पथ पर दिशा-दिशा पग-पग उलझन है। कैसे कोई चयन करे मग-मग उलझन है। ढल जाता है हलाभिलाषा में ही जीवन, संतों ने उपदेश दिया है, "जग उलझन है।" जो शक्ति ईश ने दी है उसे निवेश करें। परोपकार की जग में मिसाल पेश करें। न इन्तज़ार करें अब नहीं निहारें राह, बढा़एं अपने क़दम आप श्रीगणेश करें। कोई पैदल है, सवार कोई वाहन में! कोई आबादी में तो कोई कानन में! जन्म-मरण के मध्य यात्रा है अनिवार्य, हर मानव ही यायावर है इस जीवन में! वही बढ़ते हैं जो गंतव्य को पहचानते हैं। पूर्ण संकल्प वही करते हैं जो ठानते हैं। यूं तो आती हैं डगर में अनेक बाधाएँ, जिनमें साहस है, कभी हार नहीं मानते हैं। . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और...
सच को समझे
कविता

सच को समझे

संजय जैन मुंबई ******************** समय बदल देता है, लोगो की सोच को। पैसा बदल देता है, उसकी वाणी को। प्यार बदल देता है, इर्शा और नफरत को। पढ़ाई बदल देती है, उसके बुधिक ज्ञान को। मिलने मिलाने से, मेल जोल बढ़ाता है। तभी तो लोगो में, अपनापन बढ़ाता है। जिससे एक अच्छे, समाज का निर्माण होता है। और लोगो मे इंसानियत का, एक जज्बा जगता है। जिससे लोगो के दिलो में, इंसानियत आज भी जिंदा है। माना कि परिवर्तन से, प्रगति होती है। परन्तु पुरानी परंपराओं से, आज भी संस्कृति जिंदा है। इसलिए भारत देश, विश्व मे सबसे अच्छा है। तभी तो सारे दुनियां की, नजरे भारत देश पर टिकती है। विश्व का सबसे बड़ा, बाज़ार हमारा इंडिया है। यहां के पढ़े लिखे लोगो को, विदेशी उठा ले जाते है। और उन्ही के ज्ञान से, विश्व बाजार को चलाते है। और दुनियाँ की महाशक्ति कहलाते है। और हम उनकी कामयाबी पर, भारतीय मूल का तम्बा लगते है। और इसी में खुश ह...
माता-पिता का आशीष
कविता

माता-पिता का आशीष

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** घने वृक्ष छांव से, घनी मात पिता आशीष छाया। पड़कर लोभ लालच मनु, सौभाग्य यह गवाया।। पत्नी प्यार अंधा हो, मात पिता को ठुकराया। जीवन लगा दिया, तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।। तेरी बारी भी आएगी, क्योंकि तूने भी पुत्र जाया। जैसा देखा वैसा किया, यही विधाता की माया।। पुत्र वह तेरा है लेकिन, पत्नी बाहर से वो लाया। होगा एहसास, जब खेल यही तेरे संग दोहराया।। सुख दुख दोनों सहता, मात पिता आशीष छाया। श्रवण जैसा क्यों ना बना, बना विभीषण भाया ।। मात-पिता वचन पूरा करने, राम ने वन पाया। सुख दुख सहे बहू, तभी तो जग ना बिसराया।। इतिहास अमर हो गया, राम संग लक्ष्मण भाया। कैकयी को कुयश मिला, नाम न कोई दोहराया।। माता पिता आशीष छाया, जिसने जीवन में पाया। स्वर्ग सुख धरा पर, उस परिवार ने ही सदा पाया . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध...
कब तक
कविता

कब तक

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कब तक करता रहूंगा मैं घृणा, ईर्ष्या, क्रोध कब तक उलझा रहुगा मोह, माया, काम मे कब तक रहूंगा अमानवीय, पशुवत, अहंकारी कोई तो सिमा तय होगी मेरे अपराधों की। क्यो नही उबारता मुझे कुकर्मो से मैं अज्ञान के अंधकूप में समझ रहा हु स्वयं को सर्वश्रेष्ठ, जान कर भी ये सब कुछ मिथ्या है मानता नही हूँ। सत्य से परे कब तक रखेगा मुझे अपनी ही अग्नि में जलने लगा हूँ। जीना चाहता हूँ मैं जीने दो मुझे जगा कर मेरे भीतर प्रेम व करुणा सहज सामान्य कर सृष्टि का अंग बना दो मुझे। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
मेरे लबों को
कविता

मेरे लबों को

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** मेरे लबों को छूकर तूने- बहुत बड़ी गलती कर दी। अब न सोंऊगी मैं - न नींद तुझे आयेगी। रात रात भर जगूंगी मैं- और आंख लाल तेरी हो जाएगी। ना हूं तुम्हारे पास फिर भी - तेरा एहसास करूं। न जाने कैसी है प्यास- ना मिटे किसी द्रव ना पानी से मिट सकती है बस- तेरी मेहरबानी से। श्याम की मीरा शिव की सती- देवों के देव्यायनी बना दी। एक सीधी सी लड़की को- दीवानी बना दी। मेरे लबों को छूकर तूने...... . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) की...
तीसरी लहर
कविता

तीसरी लहर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तीसरी लहर आ रही है इस मानवी शताब्दी मे हर ओर है और होगी नयापन इस सभ्यता की तीसरी लहर मे वासनाए घुरेगी इस तीसरी लहर मे फैसन नहीं नंगापन श्रृंंगार नहीं शरारत इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन पहले भी हुआ करती थी अंजता की गुफाओं मे पर्दे के अन्दर छुप छुपकर। यादगार विज्ञान की सूत्र मे विज्ञान नहीं सिखाती मिट्टी मिल जाओ। अपनी संस्कृति की धज्जि उड़ाओ शराब पीना हानीकारक हैं फिर भी पीते है अधिकाशं आधुनिकता के पोषक। इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन अपराध के जनक है आए दिन ऐसी खबर समाचार पत्र भी देती है अपराध बढती जा रही है इस मानवी शताब्दी मे। कुछ अटपटी तेवर बदल रहे है शस्त्रों की होड़ मे जी जान तोड़ के एटोमिक रिएक्टर मे एटम हाइड्रोजन बम बन रहे है दुरमारक प्रक्षेपास्त्र से विनाशकारी लीबास हम सज रहे है अंधकार की गहन कूप मे धीरे धीरे खिसक रहे हैं। . लेखक...
एहसास
कविता

एहसास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** क्यों होता है एहसास तुम्हारे होने का, हर आहट पर क्यों लगता है, तुम हो...... मुझे पता है, तुम आहट में तो क्या... इस जमीन पर भी नहीं हो, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का, हवा की आंधी से, पत्तों की आहट से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारी बातों का, कदमों की आहट से, दिल में बढ़ती धड़कन से, क्यों होता है एहसास, तुम्हारे आने का, अंतिम विदाई दी थी हमने, अपनी इन भीगी पलकों से, फिर भी क्यों होता है एहसास, तुम्हारे होने का....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindiraksh...
घोर आतंक
कविता

घोर आतंक

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** कैसा ये आतंक मचा, असहनीय आत्मघाती। हर दिशा से रूदन, की आवाज आती। जर्जरित  अवसाद से, प्रत्येक छाती। कामनाओं की पिपासा, हैं सताती, यह दशा दयनीय मानव, को रूलाती। हम बनायें सुखद पथ , नव जिन्दगी का, शांन्ति पा जाये मनुज, उस राह चलकर। गूँज जायेगी गिरा, संदेश बनकर, थम जायेगा कहर , संदेश सुनकर । . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्ध...
चले जाओ
कविता

चले जाओ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** छोड़ कर चले जाओ मुझे कोई गुरवत नहीं मगर दिल के खातिर एक दुआ दे दो अभी मैं हूँ अकेला अकेला देखना अब तुम्हें है नहीं मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा हूँ ये अब न सोचना कभी क्या क्या मुझपे बीता कैसे कैसे हूँ मैं जीता फ़िकर हूँ करता नहीं खुल से मुँह मोड़ता नहीं . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
दादा
कविता

दादा

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** जो हर बात पर टोके, कामयाबी पर झूमे। जो पास बैठा-कर पढाए अनेकानेक कहानियां सुनायें।। ये सब सिखलाते जो बोले....। बेटा बाहर मत जा, तु बैठ जा। खाना खाया या नहीं? हर बात को जो पूछे। जो आँखो की नमी को पढ ले।। जो जीवन की सीख दे, अपने अनुभव खूब बताते। हर छोटी सी बात बताते। जो हमको गीत सुनायें।। आ बैठ मेंरे पास,अपना हाल जो हर जो हर पल पुछे। अपना हर दर्द जो जाने धीरे-धीरे हर बात को बतलाएँ। नफा नुकसान सब सिखलाते। स्कुल गया या नहीं, आ बैठ। वो अनपढ़ ही सही हर बात, समझते हैं।। सच कहूँ मैं, ये ईश्वर का रूप होते हैं। देखा नहीं मैंने ईश्वर कैसा होता हैं, मगर वो झलक दादा में देखी हैं। सही गलत का अहसास कराये। पिता के पीटने पर छुड़ाए। दादा खुदा की खूब बनावट हैं। सच कहूँ ये ईश्वर का छोटा सा रूप, हैं धरती पर।। . परिचय :- नाम : गो...
उठो क्रांति का ले मशाल
कविता

उठो क्रांति का ले मशाल

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** उठो क्रांति का ले मशाल, फिर से ज्वाला दिखला डालो। सडे गले इस सिस्टम से, अब अपना पिंड छुडा डालो।। इस सिस्टम को इन नेताओं ने, स्वयं हेतु निर्माण किया। अपने हित को साध सके, इसका खूब बिधान किया।। तीस साल पढने मे बिताओ, पैतीस मे रिटायर हो जाओ। कहते बैंक से कर्जा लेकर, रोजीरोटी मे लग जाओ।। पर अपनी रिटायरी के उम्र का कोई कानून नहीं लाया। सत्तर के भी हो जाने पर मंत्री पद को इसने पाया।। जनता का हित करना हो तो पैसे इनके पास नही। अपना वेतन बढता है जब होती कोई बात नहीं।। आना जाना दवा व दारू इनका सब कुछ जनता पर। पता नहीं फिर वेतन भी क्यों लदता है फिर जनता पर।। कहते हैं सब जन समान हैं भारत की इस भूमि पर। फिर असमान कानून यहां क्यों बनते भारत भूमि पर।। इसीलिए तो कहता हूँ कि उठो बाण संधान करो। एक और क्रांति के खातिर जन जन का आह्वान करो।।जय हिन्द।। . लेखक...
घोर कलयुग
कविता

घोर कलयुग

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** देखो मेरे देश में, गुनहगार खुलेआम घूम रहे हैं। बेगुनाह नहीं मिली जमानत, सजा काट रहे हैं।। एनकाउंटर को गलत, कुछ मनचले ठहरा रहे हैं। देश की कानून व्यवस्था को, सही बता रहे हैं।। हम क्या करेंगे फिर, न्यायाधीश यह कह रहे हैं। तारीख पर तारीख, देने के सिवा कर क्या रहे हैं।। कर गुनाह पहुँच वाले, जमानत पैसों से पा रहे हैं। बेगुनाह के मां-बाप, कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं।। जिंदगी गुजर गई, फिर भी जमानत नहीं पा रहे है। घर खेत सब बेच दिए, नेताओं के पैर पकड़ रहे हैं।। कत्ल बलात्कार करने वाले, सरेआम घूम रहे हैं। इनको देखकर ही तो, दुष्कर्म देश में बढ़ रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...