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पद्य

सलाह
कविता

सलाह

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बुजुर्ग से सलाह ले, तू निश्चय मंजिल पाएगा। अनुभव उनके पास बहु,तू सफल हो जाएगा।। छोटी सोच त्याग, निर्मल जीवन बन जाएगा। कल किसने देखा, तू आज को जी पाएगा ।। सुख घड़ी गुजर गई, दुख भी ठहर न पाएगा । सुख दुख तो आने जाने, पर तू निखर जाएगा।। नेक सलाह लें, काम जो नित करता जाएगा। कठिन परिश्रम कर, राह आसान बनाएगा ।। जैसी सोच रखेगा, फल उसी अनुरूप पाएगा। बोया पेड़ बबूल का, तोआम कहाँ से आएगा।। अहम दीवार बीच आई, तो रिश्ता टूट जाएगा। फासला इतना ना बढ़ा, फिर मिल ना पाएगा।। मन भेद जो रखा, तो देख मनमुटाव बढ़ जाएगा। समझौते का फिर कोई, द्वार नजर ना आएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी र...
एक विकृत सोच
कविता

एक विकृत सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अबॉर्शन....... एक विकृत सोच का....? समाज में, अपनी, विकृत मानसिकता को। छुपाने के लिए, अबॉर्शन करवाते हैं। कभी बेटों के लिए, कभी जायज- नाजायज, संबंधों के लिए, मानववादी सोच का, अपहरण तक कर आते हैं। वे लोग..........? अपनी ऐसी विकृत सोच का अबॉर्शन क्यों.....नहीं कराते हैं? देश की अर्थव्यवस्था की, जो धज्जियां उड़ाते हैं। अपने मतलब के लिए, षडयंत्र रचाते हैं। भ्रष्टाचार फैला कर, देश को ही खा जाते हैं। धर्मों के नाम पर, लड़ा जात- पात फैलाते हैं। मजबूर बेसहारों पे जुल्म ढाते हैं। झूठ -फरेब से बाज नहीं आते हैं। ऐसी सोच का, अबॉर्शन क्यों .......नहीं कराते हैं? समाज और देश के, वे लोग ....….......? जो सभ्यता को, लज्जित कर जाते हैं। ना समाज का, ना देश का भला कर पाते हैं। अपनी विकृत सोच से नकारात्मकता बढ़ाते हैं। सत्य को हराकर झ...
नैतिक बल
कविता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

नैतिक बल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** शारिरिक बल, बुद्धिबल, से बलशाली नीति, नैतिक बल के सामने, टिकती नहीं अनिती। व्यक्ति जाति या राष्ट्र हो, होता उसका नाश, जो अनिती पथ पकड़ता, है साक्षी इतिहास। नैतिक बल से आत्म बल है संवद्ध घनिष्ठ, टका एक दो पृष्ठ है, किसे कहें मुख पृष्ठ। है यदि सच्ची नीति तो, वहीं धर्म आधार, ठहर न सकता धर्म है, जहां न नीति विचार। सब धर्मों को देख कर, गोर करें यदि आप, तो पायेंगे नीति का, सब मे अधिक मिलाप। अचल नियम है नीति के, अचल न चक्र विचार, मत विचार है बदलते, नीति धर्म आधार। निर्भर करता नियत पर, नीति अनिती कलाप, शुद्ध हर्द्रय सदभावना, मूल्यांकन का माप। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्...
पतंग
कविता

पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे ? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला ...
हमनें तेरे लिए
गीत

हमनें तेरे लिए

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हमनें तेरे लिए हर कसम तोड़ दी दुनिया तेरे लिए हमनें यू छोड़ दी बस तमन्ना यही दिल मे है बस मेरे आप भी अब इन्हें छोड़ दें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। हाथ मे हाथ बस यूं तुम्हारा रहे एक दूजे का हम यूं सहारा रहें गिर पड़े हम अगर यूं कहीं राह मे एक दूजे को बढ थाम लें आओ संग कहीं मिल कर चलें।। चलें ऐसी जगह ढूंढ कर हम कहीं चिडियाँ चहके जहाँ फूले कलियाँ कहीं प्यार ही प्यार हो जिस चमन मे सनम उस चमन की तरफ हम चलें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। . परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
मरने के बाद
कविता

मरने के बाद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लोग कहते हैं मरने के बाद, मुक्ति मिल जाती है, अपनों का एहसास नहीं होता, अपनों की याद नहीं आती, कोई हमसे तो पूछें, मुक्ति के बाद एक-एक पल हमने कैसे गुजारा, हमें जलने से डर लगा, पर चले हम, हमें दूर होने से डर लगा, पर दूर हुए हम, मरने के बाद क्यों रहते हैं हम, अपनों के आसपास ही, अपनों ने ही जलाया हमें, अपनों ने ही भुलाया हमें, हमें भी दर्द हुआ था जलने में, खाक ऐ सुपुर्द होने में, हम सब को देखते हैं, हमें कोई नहीं देखता, हम सबको याद करते हैं पर, हमें कोई याद नहीं करता, क्यों मर कर भी, तिल तिल मरते हैं हम, अपनों के लिए..... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं...
तुम्हारी याद जब आती
गीत

तुम्हारी याद जब आती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहाता हूँ। जुगनू पूछते हमसे कोहरे का पकड़ दामन पुष्पों के नाज पर भवरे बने घूमते हैं यू उन्मन जख्मी ही समझ सकते हैं। कसक जो गीत गाता है। तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहता हूँ। धरा पर अंधियारी छाती लुटाती स्वप्न की दुनिया तभी तुम पास आ जाते हैं अचानक जब नींद खुलती एकांकी हाथ पाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती तड़प अश्रु बहाता हूँ। अलग टूटे हुए दिलों में लहर उच्छवास की आती तुम ही पर यह लगी नयने सदा बरसात कर जगाती तड़पकर आह भरकर मै सदा रजनी गँवाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती........ . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
जमाना जालिम है
कविता

जमाना जालिम है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बचकर रहना यार, जमाना जालिम है हो जाओ होशियार, जमाना जालिम है। अपनापन, भाईचारा खत्म हो चुका है है रिश्तों में व्यापार, जमाना जालिम है। दिन प्रति दिन देखो क्या खूब बढ़े हैं लुच्चे, टुच्चे, झपटमार, जमाना जालिम है। नारी सुरक्षा के दावे भी खोखले साबित होती तेजाबी बौछार, जमाना जालिम है। रपट लिखाने कभी जो जाओ थाने रिश्वत मांगे थानेदार, जमाना जालिम है। न्याय, सत्य, निष्ठा, ईमान हुआ है बौना भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार, जमाना जालिम है। हो जरूरत यदि कभी धर्म रक्षा के लिए लो हाथ में तलवार, जमाना जालिम है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में...
पंख बदलने से
कविता

पंख बदलने से

रामनारायण सोनी इंदौर म.प्र. ******************** पंख बदलने से आकाश नही बदलता सूरज भी तो वही है जहाज बदलने से सागर नहीं बदलता जल भी तो वही है सूरत बदलने से सीरत नही बदलती आदमी भी तो वही है शरीर बदलने से चोला बदलता है रूह तो वही है   परिचय :-  रामनारायण सोनी साहित्यिक उपनाम - सहज जन्मतिथि - ०८/११/१९४८ जन्म स्थान - ग्राम मकोड़ी, जिला शाजापुर (म•प्र•) भाषा ज्ञान - हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत शिक्षा - बी. ई. इलेक्ट्रिकल कार्यक्षेत्र - सेवानिवृत यंत्री म.प्र.विद्युत मण्डल सामाजिक गतिविधि - समाजसेवा लेखन विधा - कविता, गीत, मुक्तक, आलेख आदि। प्रकाशन - दो गद्य और एक काव्य संग्रह तथा अब तक कई पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार - "तुलसी अलंकरण", "साहित्य मनीषि", "साहित्य साधना" व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा कुछ सम्मान प्राप्त। विशेष उपलब्ध...
रिश्ते में बंधे
गीत

रिश्ते में बंधे

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे आने का मुझको, बहुत इंतजार रहता है। तेरे जाने का मुझको, बहुत गम भी होता है। ये आना और जाना, बंद हो सकता है? अगर बंध जाये दोनों एक पवित्र रिश्ते में।। मोहब्बत करना और निभाना, बहुत बड़ी चुनौती है। जो हर किसी के बस की बात, नही होती है यारो। तभी बहुत सी मोहब्बतें, बीच में ही टूट जाती हैं। फिर वो दोनों प्रेमी जन, कही के भी नहीं रहते।। तमन्नाएं बहुत होती हैं, दो जबा दिलों में। मोहब्बत करने का ज़ुन्नुन, दिल दिमाग पर रहता हैं। मगर अंजाम का उन्हें, पता कुछ भी नहीं होता। की इस रास्ते पर कितने कांटे, अभी चुभना बाकी हैं।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं ह...
पूरबा बयार से
कविता

पूरबा बयार से

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ग्रामो मे मेरे पूरबा बयार से बसवारीयो की खूँटे टकराती है। चरमर-चरमर की आवाजे भैरवी की राग सुनाती है। कराहती है गरीबी बेदर्द बन झोपड़ियों में- जहां दिन में सूर्य की रोशनी रातें में चांदनी झांकती है जहां दीपक के नाम पर चंद देर तक का ही सही अचानक चांदनी टिमटिमाती है। अंधकार की नीरवता में पवित्र निश्चल हृदय पुचकारती है। पावस की फुहार, में जहां दूधिया चांदनी में मजबूरियों की हाहाकार में नई विवाहिता बालाए सिकुड़कर नहलाती है। गाती है उनकी माताए ग्रामीण वृद्धाए खुशी की गीत । घुंंघट के नीचे निःसंकोच शर्माती है। राजनीति से दूर, सुदूर पश्चिम मे पेड़ो की टहनियों पर बैठ कर चिड़िया चहकती है। महकती है बागे जब आम् मंजर खिलती है। गाँवो की पोखर मे कमल की फूल भ्रमर की गुनगुनाहट सुन अचानक सहम जाती है। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
विषमताओं की लकीरें
गीत

विषमताओं की लकीरें

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** विषमताओं की लकीरें, घेर मेरा मग खड़ी है। राह कैसे देख पाऊं, तिमिर की रेखा बड़ी है। वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! मेघ भी देता सुकूँ कब, गर्दिशों का रेत फैला। पाक जो दामन हमारा, वक्त कर पाया न मैला। लुभाती मुझ को रही, सुगंधि तेरी देह की थी......! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! पेड़, जंगल सब कटे जो, साक्ष्य थे दीवानगी के। पशु, पक्षी, गिरि, गह्वर, आराध्य थे रवानगी के। मरू फैला दूर तक इक आस रिमझिम मेंह की थी।...! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।...! काल का ये फेर सारा, काल की सारी खुदाई। मिलन होकर भी लिखी थी, भाग्य में उनसे जुदाई। लुटा कर सब कुछ बचा, ये फुहारें स्नेह की थी।.....! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।.....! .   परिचय :-  लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५...
सच्चाई
कविता

सच्चाई

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मीठे बोल राह भटकाएंगे, मान यही सच्चाई है। बुजुर्गों ने समझाया, बात कहा समझ आई है।। शब्दों में कठोरता, राह नेक उसने दिखाई है। संग सदा वह खड़ा रहा, जैसे तेरी परछाई है ।। सच्चाई जग में, सबने सदा ऐसे ही बिसराई है। अपनी गलती को मनु, तूने नित ही दोहराई है।। नापाक मंशा मुकम्मल, कभी नहीं हो पाई है। झूठी राह अपना, हकीकत जिसने बिसराई है।। झूठ फरेब नकाब लगा, हकीकत छुपाई है। प्रभु पारखी नजर से, नहीं बचा कोई भाई है।। कह रही वीणा, यह दुनिया बहुत तमाशाई है। झूठ दौड़ रहा, सच्चाई की नहीं सुनवाई है।। सच्चाई पर अड़े रहे, हंसकर जान गवाई है। मर कर अमरता, कुछ बिरलो ने ही पाई है।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, क...
साथी
गीत

साथी

संजय जैन मुंबई ******************** कटती नहीं उम्र अब तेरे बिना। मुझको किसी से मानो प्यार हो गया। जिंदगी की गाड़ी अकेले अब चलती नहीं। एक साथी मुझे अब जरूरत आ पड़ी।। मिलना मिलाना जिंदगी का दस्तूर है लोगो। खिल जाता है दिल जब कोई अपना मिलता है यहां। जिंदगी के इस सफर में मिलकर चलो सभी। यूँही जिंदगी हंसते हुए गुजर जायेगी।। मतलबी लोगो से थोड़ा बच के तुम चलो। कब धोका तुम्हें दे देंगे पता चलेगा भी नहीं। इसलिए अपनेपन की परिभाषा तुम सीखो। फिर उसके अनुसार ही अपनो को तुम चुनो।। जीवन तुम्हारा सही में संभाल जाएगा। हर मुश्किल की घड़ी में तुम्हें दिख जाएगा। कौन कौन तेरे साथ खड़े है मुश्किल की घड़ी में। सब कुछ तुझे समाने नजर आएगा।। अच्छे बुरे लोग सभी तुझे दिख जाएंगे। संसार का चक्र तुम्हें दिख जायेगा। जिंदगी को जीना कोई आसान काम नहीं। मिल जुलकर जीओगें तो जिंदगी में आनदं आएगा।। . परिचय :- बीना (मध्यप्र...
भ्रष्टाचारी नेता
कविता

भ्रष्टाचारी नेता

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** ठूस-ठूस  कर खाते हैं जनता का पैसा भाषण देते हैं भरपूर! जो ना करें जनता की सेवा दिल से ऐसे नेता से रहना दूर! भ्रष्टाचारी नेता जीतने से पहले जनता के आगे सर झुकाते हैं! चुनाव जीतने के बाद यह नेता फोन तक भी नहीं उठाते हैं! नाली खरंजा विधवा पेंशन राशन कार्ड का कोटा खा जाते हैं! भ्रष्टाचार से पेट फूल गया है इनका अकड़ उल्टा दिखाते हैं! गलती हमारी ही थी क्योंकि हमने इन्हें वोट देकर जिताया है! नहीं करते काम जनता का बिना लिए दिए यह परिणाम आया है! जनता ने अब ठाना है भ्रष्टाचारी नेता को चुनाव नहीं जिताना है! नेता होना चाहिए ऐसा की जनता हित में अच्छा काम करें! भ्रष्टाचारी मुक्त हो दामन उसका देश में अच्छा नाम करें .....! . लेखक परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
अफवाएं
कविता

अफवाएं

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हर साल दिसम्बर माह में धरती के ख़त्म होने अफवाह दूसरे देशो से उड़ाई जाती है। दिसंबर २०१२ पर तो फिल्म भी बन चुकी है। क्षुद्र ग्रह, पृथ्वी से टकराने की बाते ज्यादा उड़ाई जाती रही। ग्रह पृथ्वी की कक्षा आते ही जल जाते है। खगोलीय घटनाओं को पकड़ने वैज्ञानिक पहले से सतर्कता बरतते है। कुछ लोगो का काम ही अफवाएं फैलाना है। अफवाओं पर ध्यान न दे कर खगोलीय विधा रूचि लेवे तो ये ज्ञान -विज्ञानं में वृद्धि में करेगा ...।   अफवाएं भी उडती/उड़ाई जाती है जैसे जुगनुओं ने मिलकर जंगल मे आग लगाई तो कोई उठे कोहरे को उठी आग का धुंआ बता रहा तरुणा लिए शाखों पर उग रहे आमों के बोरों के बीच छुप कर बेठी कोयल जैसे पुकार कर कह रही हो बुझालों उडती अफवाओं की आग मेरी मिठास सी कुहू-कुहू पर ना जाओं ध्यान दो उडती अफवाओं पर सच तो ये है की अफवाओं से उम्मीदों के दीये नहीं...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी इंदौर मध्य प्रदेश ******************** जब चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में देखकर तारों को छूने का मन करता, उस चमक को महसूस कर बहकने का दिल करता। सवेरा होने पर सूर्य कि अरूणिमा, धीमी-धीमी सी लालिमा मन को भानेलगती। सूरज की तेज रोशनी में आँखों पर, तेज धूप से एक चेहरा सा छा जाता। दिन होने पर गर्मी मे चिड़ियों और, कोयल की आवाज मन को तड़पाने लगती है। शाम आते ही प्यारी सी धीमी सी हवा में, सूर्य का अस्त होना आकाश को लाल करके धीमी सी रोशनी बना देता है। चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में .... . परिचय :-  श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश जन्मतिथि - २० सितंबर १९९४ शिक्षा - बीएससी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, विशेषज्ञता - टेलिविजन प्रोडक्शन कार्यक्षेत्र - वर्तमान मैं रेनेसा...
काँटों ने महक
ग़ज़ल

काँटों ने महक

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** काँटों ने महक दर्द ने आराम दिया है बोसा जो उसनें आज खुलेआम दिया है आगोश में शर्मा के वो आयें हैं इस कदर जैसे की किसी फर्ज़ को अंजाम दिया है अहसान दर्द का है जो हासिल हूए हमें मर जाते ख़ुशी से इन्होंने थाम लिया है साजिश है कोई या मेरे अब दिन बदल गये दुश्मन ने आज भर के मुझे जाम दिया है पैमाना जो ख़ाली मेरे लब से लगा रहा दुनिया ने इसे मयकशी का नाम दिया है उसनें जो निभाई है मुहब्बत में तिजारत हमनें भी उसको दाम सुबह शाम दिया है तुफान बहुत तेज है "शाफिर" जरा संभल हल्दी सी इक आहट ने ये पैगाम दिया है . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
पहला प्यार
कविता

पहला प्यार

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** खून के खत से शेर चार लिखा था। मैंने पहला-पहला प्यार लिखा था।। रात को जब सोया था जी भर कर। तेरे चेहरे पर मेरा इजहार लिखा था।। छत पर तेरा आना और मुस्कराना। दिल पर तेरा मैंने इंतज़ार लिखा था। भुला नहीं पाया मैं पहली मुलाकात। जब अजनबी पर एतबार लिखा था।। न जाने कौन सा शुभ वक़्त था दोस्त। राजेश का रब ने मुक्कदर लिखा था।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७...
सच्चा दोस्त
कविता

सच्चा दोस्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है, हाथ तो सभी बढ़ा देंगेआगे, मगर मुसीबत में हाथ थामने वाले बहुत कम है, वादा करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर वादा निभाने वाले बहुत कम है, जज्बातों से खेलने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर जज्बातों को समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर दोस्ती की कद्र करने वाले बहुत कम है, कदम आगे बढ़ाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर ठोकर लगने पर संभालने वाले बहुत कम है, दोस्त और दोस्ती करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर सही मायनों में, दोस्ती का अर्थ, समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग म...
प्रेम के जादू ने
मुक्तक

प्रेम के जादू ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम के जादू ने निष्ठुर काल के क्रम को छला है। प्रकृति विस्मित हुई है आज गत कल में ढला है। कल्पना के कक्ष में संभव हुआ है प्रिय मिलन, दृश्य आलोकित हुए हैं स्मृति-दीपक जला है। बांटते सद्भावना भी, प्यार भी। बदलते संसार का व्यवहार भी। बनाते पुल,ध्वंस्त करते भित्तियाँ, साधुओं से कम नहीं त्यौहार भी। जो जीत सके न उर अरि का वह जीत नहीं। जो मोह न ले मन मानव का वह गीत नहीं। है प्रीत वही जिसमें दो मन हों एक मगर, जिसका आकर्षण हो शरीर वह प्रीत नहीं। दिशा-दिशा में बढ़ रहा अब अपार अलगाव। घृणा-बाढ़ में घिर रही सद्भावों की नाव। प्रेम-कूल से आ रहा सतत् यही संदेश- "विश्व-शांति सूत्र है सर्व धर्म समभाव।" स्थगित संघर्ष कर सद्भावना स्वीकार कर। सृजन स्वप्नों को सतत् संसार में साकार कर। घृणा के आधार पर संभव नहीं हल ऐ मनुज, है धरा परिवारवत तू प्रेम का वि...
साँसों में सरगम सी
ग़ज़ल

साँसों में सरगम सी

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** साँसों में सरगम सी बहती। दिल की हर धड़कन में रहती।। जब थक जाता चलते-चलते। मत रुकना मन ही मन कहती।। खुशियाँ छा जाती आँगन में। जब तुम चिड़िया बनके चहती।। होंठों पर मुस्कान बिठाकर। हँस-हँस दुख, दर्दों को सहती।। रोशन रखती घर, आंगन को। जगमग दीये की ज्यों दहती।। घर से दूर, पिया सरहद पर। सोच इसी गम में है गहती।। यादों की कच्ची दीवारें। रोज नफे की बनती ढहती।। . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्रीमती विजय देवी पिता : श्री बलवीर सिंह (शारीरिक प्रशिक्षक) पत्नी : श्रीमती सुशीला देवी संतान : रोहित कुमार, मोहित कुमार जन्म : ९ नवंबर १९७९ जन्म स्थान : गांव मालड़ा सराय, जिला महेंद्रगढ़(हरि) शैक्षिक योग्यता : जे .बी .टी. ,एम.ए.(हिंदी प्रथम श्रेणी) अन्य योग्यताएं : शिक्षा अनुदेशक कोर्स शारीरिक प्रशिक्षण कोर्स योगा कोर्स मे...
मैं आज हु और कल भी रहूंगा
कविता

मैं आज हु और कल भी रहूंगा

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** मैं कल था में आज हु और कल भी रहूंगा लहु हु में कलम से, किताब पर बहुंगा रात के अँधेरो में जो जागती है रातें उन रातों को अंधेरों के राज में कहुँगा उन लंबे रास्तों में जो, भटका रहीं है राहें उन रास्तों में पैरों कि आवाज़ में करूंगा गुनाह की जो जंजीरें, पैरों बस बंधी है उन जंजीरों के फैसलें हिसाब में करूंगा उन सड़कों पर, रातों में जो सो रही हैं सांसें उन धड़कनों कि बेबसी हालात में कहुँगा हवाओं का रूख आज, जिस तरफ हो चाहें उन कागजों कि नाव का भी रुख, में उस तरफ करूंगा एक शोर जो चारों तरफ़ बढ़ता ही जा रहा है उन बहरें कानों कि तरफ, आवाज़ में करूंगा मैं कल था में आज हु और कल भी रहूंगा लहु हूँ में कलम से, किताब पर बहुंगा . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) ...
जमीर बेचकर
ग़ज़ल

जमीर बेचकर

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** जमीर बेचकर रकासो के बाजार में आ जाऊ, बुजदिल नहीं जो तेरे अख़्तियार में आ जाऊ। जब तलक लिखूंगा, सच्चाई ही लिखूंगा, वो प्यादा नहीं मैं, तेरे साथ सरकार में आ जाऊ। ये सच है तुम हमें दहस्तगर्द बना दोगे, क्या पता बनावती खबरों के साथ अख़बार में आ जाऊ। बेईमानों गद्दारों के साथ नहीं चलता मुझे, मुफलिसी में बेशक, सरे बाजार में आ जाऊ। जमीन दोज हो जाएगी, तेरे जुल्म की ईमारत, बांध के जो मैं सर पे, दस्तार में आ जाऊ। सबसे अफजल है मालिक मेरा जहां में शाहरुख़, खताए सारी माफ अदब से जो, उसके दरबार में आ जाऊ। . लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
जितना ऊंचा चढ़ रहा
दोहा

जितना ऊंचा चढ़ रहा

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जितना ऊंचा चढ़ रहा, तकनीकी का ज्ञान। उतना ही नीचे गिरा, कलयुग का इंसान। दोहरे चाल चरित्र हैं, मानव हुआ विचित्र। आस्तीन के साँप हैं, कहलाते हैं मित्र। जाति धर्म का भेद क्यों, करता है इंसान। एक मिट्टी से हैं घड़े, हरिया औऱ रहमान। मर्यादा भंगुर हुई, विकृत हुआ समाज। कैसे हो उपचार अब, पड़ी कोढ़ में खाज। भाई इतना न रखो, सीधा सरल सुभाय, सीधा रहे दरख़्त जो, पहले काटा जाय। गांवों की तस्वीर अब, बदल चुकी है खूब। शहरों के अनुसरण में, गांव रहे हैं डूब। युवा ढूंढते नौकरी, खेती लगती बोझ। शहर बढ़ रहे बाढ़ से, गांव घट रहे रोज। बेटा बूढ़े बाप को, दो रोटी न खिलाय। हुई बाप की तेरवी, सारा गांव जिमाय। बेटी हीरा देश का, मोहक सुमन सुवास। है बेटी के रूप में, श्री लक्ष्मी का वास। बेटे नालायक बने, भुगत रहे माँ-बाप। माँ ने जन्मा पूत...