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पद्य

ब्रज की होली
कविता

ब्रज की होली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गली-गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया। बाहों का आलिंगन दे दो, अंग-अंग कर लाल सँवरिया। चंचल-मन यौवन है मेरा, फगुनाई में बौराई हूँ। अलकों के प्याले में भरकर, मैं मदिरा लेकर आई हूँ।। प्रेमिल फागुन में मन भीगा, करता बहुत धमाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। मन मतंग फगुनाया सजना, छलक रही है प्रेम गगरिया। मर्यादा के बंधन तोड़ो, मौसम मादक है साँवरिया। मधु गुंजित अधरों को पीकर, चूमो मेरा भाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। ढलके आँचल कंचुक ढ़ीली, रोम-रोम में फागुन छाया। रँग से भीगा देख बदन ये, मन अनंग भी है हुलसाया।। पुष्पित कर अभिसार बल्लरी , रति को करो निहाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। ...
होली का चटकीला रंग
कविता

होली का चटकीला रंग

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** महीना फाल्गुन मस्ती का आया, कि रंगों की खुशियां खूब है लाया सारा जहांन रंगों से खूब महकाया सुहावना खुशबूदार मौसम बनाया रंगों की कालीन यह पर्व बिछाया प्रेम प्यार का माहौल खूब बनाया घर आंगन में रंगों की ऋतु लाया पिचकारी रंग की सबपर बहाया प्यारी न्यारी मनभावन फुहार लाया फाल्गुन की रंग बिरंगी बहार लाया मस्ती भरी धुनों की तान में नचाया महफ़िल हंसी ठहाके की सजाया। सबको हंसा हंसाकर हंसी में डुबाया बिरंगीरँगीन कालीन बिछाते आया फाल्गुन फिर मधुर मुस्कान लाया हंसी मुस्कान से रौनक चेहरे में लाया। निमंत्रण फागुन का महीना भिजवाया सबको करीब यह महीना बुलाया जमकर रंग की पावन होली खिलाया मस्ती का माहौल होली पर्व बनाया खूब चटकीला रंग चेहरे पर लगवाया महकता मुस्कुराता रंग खूब उड़ाया चारोदिशाओ को सुहावना बनाया रंगो...
मोर मुकुट सँग होली
कविता

मोर मुकुट सँग होली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की मदमाती ऋतु में, जंगल लाल हुए हैं। लगता यौवन प्राप्त प्रकृति के, रक्तिम गाल हुए हैं। दावानल सा दीख रहा है, फिर भी धुआँ नहीं है। रक्तिम टेसू के फूलों को, अलि ने छुआ नहीं है। रक्तिम पुष्प, गुच्छ आच्छादित, सभी जगह लाली है। लाल चुनरिया ओढ़ यौवना, ज्यों आने वाली है। हैं पलाश के फूल अनोखे, अद्भुत इनकी रचना। रत्नारे अधरों जैसे हैं, मुश्किल इनसे बचना। पत्तों का अवसान हुआ है, पुष्प लालिमा दिखती। लाल लेखनी लेकर प्रकृति, टेसू महिमा लिखती। सब वृक्षों की हर डाली पर, पुष्प गुच्छ हैं छाए। बासंती मौसम में सजकर, राधा -मोहन आए। तन पीतांबर ओढ़ सजी है, ज्यों जंगल की रानी। श्रृंगारित रक्तिम पुष्पों से, शोभित ज्यों महारानी। ओढ़ चुनरिया धानी, पृथ्वी, सबका मन हरसाती। फूलों पर भौंरों का...
आगे फागुन तिहार
आंचलिक बोली, कविता

आगे फागुन तिहार

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन ह पुलकत हे। सरर-सरर चले पिचकारी, उढ़े सुग्घर रंग-गुलाल, पातर -कवर मोर गांव, के गोरी दिखे लाले-लाल। फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे, जय-जय हो तोर फागुन महाराज, मन-मयारु नाचे। मया-पिरीत के संग खेलबोन, पिरीत के सुग्घर होरी, दया-मया ल बांधे रहिबों संग, म पिरीत के सुग्घर डोरी। बड़ सुग्घर हे पावन लागे, हे फागुन के सुग्घर महीना हा, सबों ल सुहावन लागे, सुग्घर रंग-गुलाल के महीना हा। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
कुछ लिखूं
कविता

कुछ लिखूं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मन की लिखूं तो शब्द रूठ से जाते हैं और सच लिखूं तो अपने, जिंदगी को समझना चाहूँ तो सपने टूट जाते है और हर घड़ी अपने लिखू तो क्या लिखूं अब ना अपने हैं ना सपने कुछ अजीब सा चल रहा है ये अंतर्द्वंद गहरी खामोशी है खुद के अंदर एक ऐसी जगह चाहिये जहां खुद को भी ना ढूँढ पाऊँ कभी उड़ जाऊँ स्वच्छंद सी किसी रोज़ इस जहां से गुम ही जाऊँ एक तिनका बन के लहरों की गहराई में छोड़ जाऊँ ना मिटने वाले निशान सबके हृदय में चढ़ जाऊँ किसी फूल की पंखुडी बन श्री चरणों में कभी ना मुरझाने का आशीर्वाद लिए!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशे...
मुस्कुराना आपका
कविता

मुस्कुराना आपका

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यूं नजर मिलाकर फिर वो शर्माना आपका मुझे देख धीरे - धीरे से मुस्कुराना आपका। रौशनी बनकर आयी हो मेरे जीवन में विभा काम है जीवन से मेरे अंधेरे को भगाना आपका। मेरे पास आते ही आप यूं सकुचा सी जाती हो मुझे भा गया इस तरह से सकुचाना आपका। आ जाओ अब तो आप यूं न लजाओ यारा हाय ! मुझको मार डालेगा यूं लजाना आपका। मेरा लिखना हो रहा है अब तो सार्थक निर्मल गूगल करके मेरी नज्मों को यूं गुनगुनाना आपका। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्म...
मंजिल तो…
कविता

मंजिल तो…

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं, इसे यहां जाना है, उसे वहां जाना है, दरअसल ये सब भ्रम है सबका अंतिम मंजिल एक ही ठिकाना है, हमने बुद्ध का देह खोया, कबीर का, रैदास का, ज्योति बा का, बाबा साहेब भीमराव का, मान्यवर कांशीराम जी का, देह किसी का नहीं बचा, पर इन सभी महापुरुषों के विचार,जी हां विचार जिंदा है, अमानवीय व पाखंडी व्यवस्थाएं इनके विचारों के आगे बुरी तरह शर्मिंदा है, कौन सोच सकता था कि भारत जैसे देश में एक रुग्ण विचार हावी हो सकता था, जो आपसी सौहाद्र को डुबो सकता था, जातिय उच्चलशृंखला इतना प्रभावी हो सकता था, जो मानवीय संवेदनाओं को तार तार कर डुबो सकता था, पर ऐसा हुआ, मानव ने मानवता को नहीं छुआ, परिणामतः जातिय घमंड नित परवान चढ़ता रहा, सहयोग की भावना उधड़ता रहा, हमने इन बात...
मैं आदमी हूँ
कविता

मैं आदमी हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं आदमी हूँ मुझे परेशानी भी आदमी से ही है मैं परेशान भी आदमी के लिए ही हूँ क्योंकि मैं आदमी होने से पहले किसी जाति का हूँ किसी धर्म का हूँ किसी संप्रदाय और विचारधारा का हूँ जिससे कारण मुझे आदमी आदमी नहीं बल्कि दिखाई देता है तो कोई विरोधी कोई दुश्मन, कोई ऊँचा, कोई नीचा कोई काला तो कोई गोरा हाँ मैं आदमी हूँ। मुझे आदमी होने का मूल्य पता नहीं इसलिए मेरा दुःख कभी जाता नहीं. मेरे विचार ही मेरे दुःख है इस बात को मैं समझता नहीं. खुद से ही अनजाना हूँ. इसलिए आदमी होकर भी आदमी से ही बेगाना हूँ. सुखी मैं, जानवरों जितना भी नहीं पर सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हूँ हाँ मैं आदमी हूँ। आदमी होने की कीमत कुछ इस तरह मैंने अदा की है आदमी होकर आदमी को ही आदमी से जुदा की है क्योंकि मेरी खुशी ...
मेरी कलम
कविता

मेरी कलम

सुमन मीना "अदिति" दिल्ली ******************** मेरी कलम मन के भावों का इंद्रधनुष बनाती है, दिल की आवाज़ को ये दुनिया तक पहुँचाती है। मेरी कलम हर अहसास को स्याही में उतारती है, इस जिंदगी की कहानी को पन्नों पर संवारती है। मेरी कलम खुशी के रंगों से ज़िंदगी को सजाती है, तो कभी गम के आँसुओं से भीग जाया करती है। मेरी कलम देशभक्ति की भावना का गीत गाती है, कभी दर्द कहती, कभी सच्चाई उजागर करती है। मेरी कलम भावों की गहराई शब्दों में पिरोती है, लवजों में अपने यह इश्क के फंसाने लिखती है। मेरी कलम समाज सेवा में अपना सार लगाती है, सत्य की मशाल बन अन्याय का विरोध करती है। मेरी कलम ज़ुबान बनके दिल का हाल सुनाती है, अपनी लेखनी शक्ति से कालजयी गाथा रचती है। मेरी कलम एक साथी है जो हमेशा साथ रहती है, मन के मेरे उतार-चढ़ाव को ये बखूबी समझती है। परिचय - सुमन मीना "अदिति" निवास...
डूबी बस्तियां सैलाब में
ग़ज़ल

डूबी बस्तियां सैलाब में

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
आशा का परचम 
कविता

आशा का परचम 

बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** सूर्य क्षितिज पर होता ओझल संध्या तुझे बुलाने को निशा हुई स्वप्निल लोरित उषा नागरी भी विह्वल है आशा का परचम लहराया। बहता सलिल समीर सदा से अनल जले आघातों से गति द्रव तेज सहे निर्झरिणी आकुल जलद का अंतर भी है आशा का परचम लहराया। नभ भी उतर-उतर शिखरों पर अवलोकित करते दृग  दर्पण गिरि का गौरव गाते झरने परिवर्तन हो रूप प्रकृति का आशा का परचम लहराया। आँचल में भू के है गंगा मोती की लड़ियों सी बहती जलद-यान में विचर के पावस नव किसलय पर स्नेह वार कर आशा का परचम लहराया। धूप-छाँह के रंग की किरणें पवन ऊर्मियों से लहराती हरित वर्णी पीपल छाया सोन खगों को सौंप के काया आशा का परचम लहराया। जीवन उन्नति के सब साधन फिर मानव क्यों करता क्रंदन? क्या जीवन की यही परिभाषा बोल पड़ी है मूक निराशा आशा का परचम लहराया। ...
दृढ़ निश्चय
कविता

दृढ़ निश्चय

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भावना की लहर में बहते चले गए सदा, चोट तो बहुत है खाई, पर बढ़ते चले गये सदा। कभी फूल भी मिले, कभी कांटों पर चले, सुख दुख की झाड़ी से, निकलते गये सदा। कभी प्रशंसा की बौछार, कभी गाली भी मिले, सबको नमस्कार कर, हम तो बस बढे़ चले। आंधी और तूफान ने, घेर हैं हमको है सदा, रोशनी और प्रकाश देख, हम तो बस बढे़ चले। भावना प्रबल हो जहां, कार्य की उमंग हो, दृढ़ निश्चय ठान के हम, तो बस बढ़ते चले। दृढ़ निश्चय ठान के हम, अपने पथ पर है चले। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ...
देशवासियों जागो
कविता

देशवासियों जागो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जागो, देश वासियों जागो छद्मवेष है कोने-कोने में मन में खोट बसी इक खेमे में जागो देश वासियों, जागो। धोखे बहुत सहे हमने अब मिट रहा‌आवरण भ्रम का भारत माता अपनी जननी है इसकी रक्षा हमको करनी है। सनातन संस्कृति अपना आभूषण है इस पर न्योछावर भारत का जन मन‌ है इसकी रक्षा अपना प्रण है इसे नहीं मिटने देंगे। समय कहीं भी रखे‌ हमको फिर भी ‌हम कुछ कर सकते हैं कलम धनी हो यदि अपनी अपना योगदान दे सकते हैं । जागो, देश वासियों, जागो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती ...
मेरे श्री रामलला
भजन

मेरे श्री रामलला

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** चैत्र नवमी से पहले ही पौष मास में आ गया नव वर्ष कुछ यूं हमारा राम नाम की भक्ति बिना नहीं हम भक्तों का गुजारा।। मर्यादा में रहकर जीती, श्री राम ने अपनी पारी सत्य सनातन की जीत हुई है, अब सब भक्त बजावे ताली।। मेरे श्री राम अयोध्या धाम विराजे राम लला, सिया, लक्ष्मण हनुमान संग पधारे अयोध्या जगमग हुई है, रोशन जैसे दिवाली भारत सारा मिल कर यह उत्सव मनावे।। श्री राम जन्म भूमि पर, भक्त जन फूल पसारे राह देख रहे थे जैसे मिल इस अवसर का सारे, निमंत्रण तो नाम हैं बस इस तीरथ का ये कार्य यह निमंत्रण सबका है ये सारे भारत वासी जाने।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
वन्दन मातृ शक्ति
कविता

वन्दन मातृ शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ददृ पीकर मत जियो तुम, ज़हर पी रही हो। उठो आज, कोई कह रहा है स्वयंसिद्ध बनकर जियो। जानता नहीं कोई, व्यथा व्यक्त किए बिना कोई चुप रहकर सहना भी दुश्वार है उठो, कुछ कहो, कुछ सुनो जग की। जानता है जग, की तुम शक्ति हो दिव्य हो पर, दैदीप्यमान नहीं दैदीप्यमान बनकर पान्चजन्य फूंको। आओ, उठो निराश न हों। तुम शक्ति कहलाती हो। कुछ पाषाण खण्डों से तुम्हारी शक्ति क्षीण न होगी मै जानती हूं, तुम पाषाणों को पिघलाने का सामर्थ्य रखती हो मां धरा जैसी दृढ, सुदृढ़ साहसी बनों जग में तुम्हारी पहचान बनेगी, मातृ-शक्ति। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ ...
स्पर्श
कविता

स्पर्श

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सुनो ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, संवेदना की आख़िरी परत तक, जिसकी पहुँच हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी निर्मल चेतना. घेरे मन और मगज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी मीठी वेदना, अंतर्मन की समझ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसके पार तुम्हें देखना, मेरे लिए सहज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी अनुभूती के लिए. उम्र भी एक महज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसमें सूर्य सी उष्मा हो जिसमें चांद सी शीतलता जिसमें ध्यान की आभा हो जिसमें प्रेम की कोमलता जिसमें लोच हो डाली सी जिसमें रेत हो खाली सी जिसमें धूप हो धुंधली सी जिसमें छाँव हो उजली सी जो तन मन को दे उमंग नयी जो यौवन को दे तरंग नयी जो उत्सव बना दे जीवन को जो करूणा से भर दे इस मन को ऐसा स्पर्श दे दो मुझे.... परिचय :- शिवदत्त ड...
राम अवध हैं लौटते
गीत

राम अवध हैं लौटते

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज। मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।। सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व। भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।। सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर। नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।। सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश। दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।। आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान। आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।। आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप। आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।। बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।। राम अवध हैं लौटते, फै...
चतुर्दिक
कविता

चतुर्दिक

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** चतुर्दिक, सबजन को जकड़ा है भ्रष्ट तंत्र ने, मानवीयता की जगह ले लिया अब यंत्र ने। यंत्रवत व्यवहार करने लग गए सब लोग, तन का मन से अब नहीं रह गया योग। लूट हत्या डकैती का सर्वत्र बोलबाला है, सर्वत्र अंधेरे से पराजित उजाला है। कहीं छल है कहीं दम्भ है कहीं द्वेश है, कहीं झूठ कहीं पाखण्ड कहीं आवेश है। कहीं भुखमरी है कहीं बेरोजगारी है, जहाॅं देखें वहीं दिखती लाचारी है। रोजगार नहीं मिल रहा बेरोजगारों को, भोजन का संकट है उनके परिवारों को। सरकारी तंत्र तो बिल्कुल ही सड़ गया है, सबके अहित हेतु बिलकुल वह अड़ गया है। परीक्षा से पहले ही उत्तर चतुर्दिक है, यह कार्य लगता बिल्कुल अनैतिक है। इस अनैतिकता का दिखता कहीं अन्त नहीं, इसको रोकने वाला दिखता कोई सन्त नहीं। राम लला के आने पर भी नहीं कोई भय, ...
बदलियां गल्ला
आंचलिक बोली, कविता

बदलियां गल्ला

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** (पहाड़ी कविता) अज्ज कल बदलना लग्गियां तेरियां गल्लां तेरे शहरे दे मौसमे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा। तेरा अंदाज गिरगिटे दे रंगे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा प्यार तेरे रुसदे चेहरे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा व्यवहार तेरियां नजरा सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गे तेरे जज्बात तेरे लफ्जां सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गी मेरी अहमियत तेरी बदलिया सोच्चा सैंई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
शिक्षक
दोहा

शिक्षक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु द्वैपायन द्रोण हैं, देते हमको ज्ञान। विनयी प्रज्ञावान भी, महिमा लें पहचान।। शिक्षक रक्षक राष्ट्र के, सुख-सागर आधार। अभिनंदन वंदन करें, दें सदगुण उपहार।। अज्ञानी को ज्ञान दे, श्रेष्ठ मिलें संस्कार। भव से पार उतारते, शिक्षक तारणहार।। महाकाव्य गुरु उपनिषद, वे ही वेद पुराण। कर आलोकित वे करें, शिष्यों का कल्याण।। हिय विशाल है अब्धि-सा, निर्मल धारा ज्ञान। सदाचार के स्त्रोत भी, अतुलित विद्यावान।। भाग्य विधाता छात्र के, शिल्प-कार दातार। दे विवेक प्रज्ञा सदा, दूर करें अँधियार।। निर्माता हैं राष्ट्र के, सम्प्रभुता की खान। शिक्षक संस्कृति सभ्यता, के होते दिनमान।। क्षमाशील गुरु दें विनय, अनुशासन की डोर। सूर्य किरण बन रोपते, आदर्शों की भोर।। शिक्षक प्रहरी देश के, गौरव भरा समाज। नैतिकता प...
नशा नाश की जड़
कविता

नशा नाश की जड़

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** नशा नाश की जड़ है, लगाना नही क़भी नेह, मन हरता, धन क्षरता, करता है खोकली देह। निगल गई लत नशे की, लाखों घर-परिवार, गए उजड़ पल भर में, थे चमन जो गुलज़ार। कुछ समझ ना आता, नशे के आदी नर को, देता ना कोई सम्मान, ना रहता मोल जर को। गांजा, भांग, चरस, स्मैक, सिगरेट, तंबाकू बीड़ी, ऱखना मुनासिब दूरी, चाहो स्वस्थ सबल पीड़ी। नही मंशा भी उचित, जनता के पहरेदारों की रही खोटी नीति सदा, पक्ष-विपक्ष सरकारों की। गली-गली फ़लफूल रहा, नशे का काला धंधा आओ हम सब मिलक़े, रोकें अब खेल ये गंदा। बढ़ते ही जा रहे नित, खतरे नरता पर भारी, मिटाने धरा से नशा समूल, करो आज तैयारी। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित ए...
जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …
कविता

जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप छोड़ दो साहब हमारी फिक्र करना, आपके फिक्र करने से हमें पड़ जाता है फिक्र करना, हमें पता है आप जिस तरह से हमारी चिंता करते हैं, तब तब हमारे लोग दुख तकलीफ और यातनाओं से पल पल गुजरते हैं, पता नहीं हमारे बारे में आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक, बढ़ जाती है हमेशा हम पर जुल्म आप हो जाते हो जातिवादी व हिंसात्मक, हमारा कसूर क्या है? यहीं न कि हम आपके अतार्किक और अमानवीय व्यवस्था में निचले पायदान पर पहुंचा दिये गए हैं, लेकिन यह मत भूलिये आपके हर गलत कार्यों का हमारी हर पीढ़ी ने विरोध किया है, तुम्हारे हर मंसूबों पर चोट दिया है, भले ही ताकत पाने के लिए दिखना चाहते हो हमारा रहबर, ताकि ताकत का इस्तेमाल कर सको हमीं पर रह रह कर, ये भी पता है कि चंद टुकड़ों के लिए हमारे ही लोग समाज से ...
महिला दिवस पर स्लोगन
कविता

महिला दिवस पर स्लोगन

माधवी तारे लंदन ******************** १. तुलसी बिना आंगन सूना, नारी बिना नर जीवन सूना। २. त्रिभुवन की ही संजीवन शक्ति, एक ही है महिला शक्ति। ३. गृहस्थाश्रम के नभाकाश की, है स्त्री शीतल चांदनी प्रसंग पड़ता जब बांका, बन जाती है वह शेरनी। ४. है स्त्री दैवी ही धर्मज्योति, गृहस्थाश्रम की अमोल शक्ति बिना उसके नहीं मिलती, प्रपंच-रथचक्र को गति। ५. वो गुणवान संस्कारी वह निडर करारी. परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
दीपक
कविता

दीपक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब माँ अपनी बेटी को बचपन से ही सिखाती दीपक कैसे प्रज्वलित करना बेटियाँ इसे महज छोटा काम समझती किन्तु बड़ी होने पर जब वो ससुराल में लगाती तुलसी की क्यारी पर दीपक। श्रद्धा, आस्था, प्रेम, कर्तव्य की भावना दीप की लो के संग ज्यादा प्रकाशवान दिखाई देती जो माँ ने सिखाई थी बचपन में मुझे जब माँ की याद आती तो पाती हूँ तुलसी की क्यारी में माँ की प्यारी सी झलक। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्या...
मैं ना होती तो …
कविता

मैं ना होती तो …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** किसी के होनें न होने से दुनियां नहीं रुकती है। सीटे खाली होती हैं तभी तो भरती है। ******* उनके न होने से कुछ फर्क नही पड़ेगा। सूरज पूरब से उगता है वही से उगेगा। ****** यह हमारा वहम है कि मेरे न रहने पर क्या होगा? वही होगा जो कि भगवान को मंजूर होगा। ******* "मैं" शब्द अहंकार का प्रतीक है इसे अपनी ज़िंदगी से हटाए। और अपनी जिंदगी को अच्छे से आगे बढ़ाए। ******* मैं ना होती तो जरूर और कोई आयेगा। शायद मुझसे अच्छा कर जायेगा। ******* हम तो बस यही दुआ करते रहें। हम रहे या न रहें बाकी सब सलामत रहें। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...