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पद्य

खत चिट्ठी
कविता

खत चिट्ठी

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** याद आते हैं वह दिन जब हम हाथों से खत लिखा करते थे एक एक अक्षर से जैसे प्रेम स्नेह नेह के पुष्प खिला करते थे मास दो मास मैं कागज की जमीन पर मन की बातें लिख पाते थे जिसके नाम का संदेशा होता था वह खुशी से फूले नहीं समाते थे प्रिया की प्रेम भरी पाती पढ़कर प्रियवर झूम कर इतराते थे संदेशा हो अपने संतान का तो माता-पिता हृदय से मुस्कुराते थे डाकिया डाक लाया का इंतजार करना बढ़ा अच्छा लगता था पोस्टकार्ड हो या लिफाफा मे लिखा प्रेम ही सच्चा लगता था हमने माना खत के आने जाने में वक्त की अपनी मजबूरी थी फिर भी संबंधों में पावन खुशबू और दिलों में ना कोई दूरी थी हम कुछ पागल कुछ नादान हर हाल में इंसान हुआ करते थे याद आते हैं वह दिन जब हम हाथ से खत लिखा करते थे. परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दु...
बासी रोटी
ग़ज़ल

बासी रोटी

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** बासी रोटी, प्याज नौन से। उतरत नइं है, कहें कौन से? बहुएं सुनें न मोड़ी-मोड़ा, को सुन रओ है? रोएं जौन से। गईया खों अब, चरबन नइयां, पौवा पे, आ गई पौन से। हम ने खाये दूध निपनिया, हम पुसात जा, निरे धौंन से? घर-घर में मटयारे चूल्हे, कहो "प्रेम" का भलौ मौन से? . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत...
तुम्हारे बिना
कविता

तुम्हारे बिना

संजीत कुमार गुप्ता चैनपुर, सिवान, (बिहार) ******************** अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ . कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ . थक गया मैं करते-करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ . छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ . आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ. . परिचय :-  संजीत कुमार गुप्ता  छात्र : बी.एस सी (मैथ ऑनर्स) व्यवसाय : गुप्ता साइकिल स्टोर निवासी : चैनपुर, सीवान (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
राज
कविता

राज

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं अपनी दोस्ती के जज्बात, लफ्ज़ों में लिखती रही, बेचैन होकर रात भर, करवटें बदलती रही। आ रहे थे ख्वाब तेरे रात भर, मैं चांद में तुझको यूं ही ढूंढती रही। कब की बिखर जाती, गर तू साथ ना होता, तेरी दोस्ती के सजदे में, मैं सर झुकाती रही। तेरे इश्क ने रंग अपने, बदले कई बार, मैं हर बार बिखरे रंगों को, समेटती रही। मुझे विश्वास था अपने दोस्त पर, मैं दोस्ती की सीपी में, मोती सी कैद होती रही। मेरा दोस्त समंदर से गहरा लगा, मैं दोस्ती की गहराई के राज, ढूंढती रही।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिं...
ऋतु चक्र
कविता

ऋतु चक्र

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** घनघोर घटाओं का अंबर में विचरण, बारिश से पुरित धरा, आंगन। विदाई का आ गया क्षण, शीत से हुई बदन की ठिठुरन। सूर्य का मकर में आगमन, हर्षित हुआ जन मन। पतंग का आकाश में उड्डयन, हिलोरें ले रहा है तन। जैसे आकांक्षाओं का गगन में भ्रमण, पुलकित हो रहा चमन सुमन। वसंत प्रवेश के बता रहा लक्षण पादप करेंगे नव पल्लव आवरण। रंगों से सराबोर होगा तन वसन, ग्रीष्म से होगा फिर काया तपन। प्रकृति का अद्भुत यह रचन, ऋतुओं का यह चक्रण। . परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
जीवन धारा
कविता

जीवन धारा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** बहती जाये जीवन धार, सुख मे साथी क ई हजार दुःख मेंं बंद सभी के द्वार। मन कहता बैरागी होजा, मन कहता रंगों में खोजा, छलना मय संसार। दुःख में बंद सभी के द्वार। पगले अर्थ समझ जीवन का, सर्जन और विसर्ज तन का, होना है हर बार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। तन से रिश्ता नहीं प्राण का, रामायण गीता कुराण का, मर्म यहीं हैं सार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। ज़ी आशा लेकर तू कल की, रुके नहीं गति जीवन जल की, बहती जाये धार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ...
अन्तर्मन
कविता

अन्तर्मन

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्तर्मन की सूनी बगिया में, फूल खिले अरमानों के, झूम उठा मन हुआ वावरा फूटे स्त्रोत तरानों के। भेदी चादर घोर तिमिर की, चन्द्र किरण अब चमक उठी, शुष्क वाटिका में अब फ़िर से पुष्प वल्लरी बिहन्स उठी। सुप्त रहें खोये खोये, उन भंवरों की गुंजार उठी मनुहारी तितली की आभा, हर बगिया गुनगुना उठी। बहे बासन्ती ‌व्यार सुहानी मतवाली बन लहक-लहक, नीलगगन में इतराते वो पंछी प्यारे चहक-चहक, पुरवैया के झोंकों से उड़े चुनरिया गोरी की करें सहेली हंसी ठिठोली, नयी नवेली दुल्हन की ! प्रियतम संग गोरी मुस्काये, पल पल जाये वहक-वहक, झुक-झुक जाये लाज से नयना, आंचल जाये ढलक-ढलक। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी ...
नियोजित शिक्षक
कविता

नियोजित शिक्षक

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** आज शिक्षक की क्या हालत हो गई है। सभी विद्यालय जैसे आज अदालत हो गई है। हर छोटी मछली बड़ी मछली का शिकार बन रही है। शिक्षा देना बच्चों को सरकारी व्यापार बन रही है। नेता भी लगे हैं अपनी उल्लु सीधा करने में। चापलूसों की क्या कहे भला हम जो लगे हैं जेबी भरने में। घर परिवार की ना सोचें और उजड़े उपवन बनते हैं। इनमें भी है खुब खराबी अब क्या क्या मैं बयाँ करुँ? काम है चने चबाना फिर क्यों ना मैं उनका सम्मान करूँ? हे भगवान तुझे ही क्या कभी इनसे कुछ दुश्मनी हुई थी? क्या तेरा नेताओं से भर भर घुटने बनी हुई थी? हर क्षेत्र में हर कार्य में अधिकारी निकाले इनका फरमान। फिर आज क्यों आज जमाने में मिलता नहीं इनको सम्मान। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी ...
मेरी माँ मेरा आधार
कविता

मेरी माँ मेरा आधार

संजय जैन मुंबई ******************** कितना मुझे हैरान, परेशान किया लोगों। पर मकसद में वो, कामयाब हो नहीं पाये। क्योंकि है माँ का आशीर्वाद, जो मेरे सिर पर। इसलिए तो बड़ी से बड़ी, मुश्किलों से निकल जाता हूँ।। धन दौलत से ज्यादा, मुझे मेरी माँ प्रिये है। तभी तो मैं भागता नहीं, पैसों के लिए कभी। पैसा और सौहरत हमें, बहुत मिलती रहती है । क्योंकि मेरे साथ, मेरी मां जो रहती है।। पैसों की खातिर में अपनी, मां को छोड़ सकता नहीं। चाहे मुझे पैसा और सौहरत, बिल्कुल भी न मिले। पर मुझे पता है माँ से बढ़कर, संसार में कुछ भी नहीं। इसलिए तो मेरी माँ ही, मेरे जीवन का आधार है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hi...
औरत
कविता

औरत

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** पराधीनता का है नाम न उसकी कोई पहचान न अपना कोई काम उसका कुछ अपना नहीं सोचा हुआ सपना नहीं जन्म से मृत्यु तक अधीन अन्यथा है वह श्री विहीन है देवी, पूज्यनीया और जननी, जो अपने लिए नहीं, औरों के लिए जीती है। आंखों में आंसू लेकर, औरों को खुशियां देती है। ममता, त्याग, दया की देवी पल-पल, जीती-मरती है। पढ़ी-लिखी होने पर भी, पुरुषों से कम आती जाती है। दहेज के कारण आज भी, भ्रूण हत्या का शिकार होती है। बचपन से लेकर मरण तक जीवन भर चुप रह सहती है। घर-परिवार को संभाल कर, देश की बागडोर भी संभालती है। पर, परतंत्रता में ही उसका अस्तित्व है। स्वतंत्र होकर तो और भी परितंत्र है। वो बेटी, बहना, पत्नी, मां बनती है, तभी तो औरत का गहना पहनती है। आदर्श की बलिवेदी पर वही आग में झोंकी जाती है पवित्रता की आड़ में, वही छली जाती है। सांसें ...
दहेज प्रताड़ना का दंश
कविता

दहेज प्रताड़ना का दंश

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** एक नई नवेली दुल्हन को कुछ लोगों ने क्या सिला दिया बाबुल के अंगना से लाकर पीहर में उसको "ज़ला" दिया क्या होते हैं रिश्तें नाते उन गददारो ने भुला दिया कितनी तड़फी होगी बेहना जब उसको जिन्दा ज़ला दिया चीखी-चिल्लाई होगी वो क्या पूरी बस्ती बेहरी थी जब धुआँ उठा होगा घर में दिन में भी, रात अँधेरी थी कोई आ जाता, पानी लेकर दरवाजा तोड़, बचा लेता घरमें भी सब मौजूद रहे कोई तो, आग भुजा देता जिस पति पर विश्वास किया उसने (अंजु ) को जला दिया बेहना की बातो में आकर पत्नी को क्या सिला दिया उसकी हर एक चीख पिता के मन को बहुत सताती हैं जिस माँ ने उसको जनम दिया उसकी छाती भर आती हैं कितनी मेहनत से, पाला था उस माँ ने अपनी, बेटी को एक पल में उसने जला दिया पापा की प्यारी बेटी को ये काम कमीनो वाला हैं कोई कुत्ता ही कर सकता हैं द्रोपति का चीर हरण जग में कोई दुस्...
जिन्दगी
कविता

जिन्दगी

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जिन्दगी के पन्नों में, ना जाने कब क्या हो, कही मौत का पता नहीं, कही जान का अता नहीं। सिर्फ रह जाती हैं, नीलाम्बर सी याद्दे, इन यादों का एहसास, ना जाने कब दफन हो जाएँ। वक्त के साथ चलो, जिंदगी के मेलों मे, मधुर वाणी के अमृत की, जीवन चरिचार्थ हुईं। . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - मेरी कलम रो रही है कुछ सहित्यिक संस्थान से सम्मान प्राप्त ! आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मातृभूमि
कविता

मातृभूमि

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मातृभूमि तुम्हें नमन, यहां की माटी है चंदन, ये हिंदुस्तान है मेरा। हमारे दिल की है धडकन, मां के चरणों में वंदन, ये हिंदुस्तान है मेरा। वंदे मातरम धड़कन दिल की, राष्ट्र की आराधना है, ऊर्जा देने वाला गीत है, भारत मां की वंदना है, कफन बांधकर निकले घर से श्वास नहीं गिना करते, देश की हिफाजत करना भी, पूजा और अर्चना है, तो तिरंगा हो कफन हमारा, बस यही अरमान, ये हिंदुस्तान है मेरा। मां के दामन पर कभी भी, दाग नहीं लगने देंगे, जो वो गए मस्तक धरती पर, मान नहीं घटने देंगे, स्वतंत्रता की ज्योत जल रही, उसे नहीं बुझने देंगे, मर भी जाएं तो ये तिरंगा, कभी नहीं झुकने देंगे, तो मां के सर का ताज तिरंगा वीरों का सम्मान, ये हिंदुस्तान है मेरा, ये हिंदुस्तान है मेरा। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
मां शारदे
कविता

मां शारदे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। मैं दीन-हीन अति पामर। मुझ पर कृपा दृष्टि कर दे मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। श्वेत वासिनी मां तू अंतस मे विज्ञान-ज्ञान भर दे। तू महामूर्ख कालीदास को छन में महाकवि बनाया। ज्योतिपुंज भर दे। दीन पर दया कर दे। झंकृत कर दो तू अपनी वीणा की तारें वाणी में ओज भर दे। अलंकृत हो मेरा भी जीवन तू कृपा दृष्टि कर दें। श्वेत कमल पर आसन तेरी मां मुझ पर कृपा कर दे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...
भुला न सके हम
कविता

भुला न सके हम

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** चाहा बहुत था भुला दे तुम्हें हम पर भुला न सके हम पूछा जमाने ने होती क्यो रुसवा, चाहा बहुत था कह दे सभी कुछ पर बता न सके हम। तडपे थे जब जब हम हास्य बिखेरा था हमने हंसे थे लब पर हंस न सके हम चाहा बहुत था करदे बयां हम पर बेबाफाई तुम्हारी कह न सके हम। जागे सदा यादों में तुम्हारी पलकें झुकी पर सो न सके हम। रही नम यह आंखे सिले होंठ अपने बरसे नयन पर रो न सके हम . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
आ कर इस शहर में
कविता

आ कर इस शहर में

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** ये दूरियाँ किसी तरह अब मिटा दिजीये उजड़े बहारों की हँसी जरा लौटा दिजीये ये गमों का धुंध बिखर गया जो फ़िजा में इक बार शहर में आ कर इसे हटा दिजीये ये दूरियाँ किसी तरह अब मिटा दिजीये दरवाजों के धुंधले पर्दो के पीछे से या फिर कमरे के किसी बन्द दरीचे से अपने होठों पर मेरा नाम सजा लिजिये ये दूरियाँ किसी तरह अब मिटा दिजीये मेरे खामोश आँगन में इक गम का दीया जलता है मेरे सुनसान धड़कन में इक डर सा कुछ पलता है अपनी आगोश में मुझको छिपा लिजिये ये दूरियाँ किसी तरह अब मिटा दिजीये . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्ष...
में कृषक हूँ
कविता

में कृषक हूँ

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मुझकों सभी ग्राम कहते हैं कहते कृषि का ज्ञानी , राग द्बेष है नहीं किसी से , मेरा मन सैलानी । जन्म भूमि है खेत किसान की , फसलें यहाँ लहराती, कच्चे घर माटी के सुन्दर छटा प्रकृति बिखराती । खेत यहाँ खलिहान यहाँ, नदी झील है झरना , वन वैभव की सुषमा देखूँ, हँसकर नित्य विचरना । ज्वार बाजरा गेहूँ मक्का, चना मटर जो न्यारे , कोदों सवा धान की फसलें , होते चावल न्यारे । निस दिन मोर पपीहे कोयल , मुझ को गीत सुनाते , सोन चिड़ी तोता मैना, निशदिन खेत मे आते । आती यहाँ बसंत बहारें , आती है बरसातें । खेतों की हरियाली मुझकों दे जाती सौगातें । बडे़ बड़े दुःख भार उठाये मेनें अपने तन पे , हुआ न विचलित फिर भी भैया पूछो मेरे मन से , हुआ देश आजाद मुक्त हूँ टूटे बंधन सारे । . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक ...
तुमसे दूर
कविता

तुमसे दूर

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** माना हम बहुत दूर है तुमसे पूछ लेने में भी कंजूस है तुमसे, तुम सरेआम नाम मेरा लेते हो मै अपने में भी लेने में कंजूस हूं तुमसे, मेरा तो कल का वजूद है तुमसे यू रास्ते में मिला ना करो मुझसे, मेरे रास्ते जान लेंगे तुमसे अभी तो नाम ले के आए हैं कल मेरे नाम से जान लेंगे तुमको, हम बहुत दूर है........।। . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
मत भड़काओ दंगे यारो
कविता

मत भड़काओ दंगे यारो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मत भड़काओ दंगे यारो, इन सबसे कुछ मिलता नही। बस होता है दुश्मनी का फ़ैलारा, और अमन का कमल खिलता नही। गर मिलकर रहेंगे हम सब एक, तो निपटे सुकून से काम अनेक। रखना ही है तो दिल मे रखिये, शांति धैर्य और अपना विवेक।। मेरा देश सोने की चिड़िया, था, है और अब भी रहने दो। रखो भरोसा ईक दूजे पर, कोई कुछ भी कहे कहने दो।। आपस मे ना बैर पालना, रहना हमेशा सच के साथ। करे कोई गर पीछे से घात, फिर भी करना प्रेम से बात। बापू सा समझाने वाला, अब कोई मिलता नही। मत भड़काओ दंगे यारो, इन सबसे कुछ मिलता नही। बस होता है दुश्मनी का फ़ैलारा, और अमन का कमल खिलता नही। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके न...
नई सुबह आ रही
कविता

नई सुबह आ रही

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। खेत की माटी बोल रही, ओ कर्मवीर उठ जाओ। प्राणों में अब हुंकार भरो, मेहनत की फसल उगाओ। नई रोशनी आरही अंधविश्वास दूर भगेंगे नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। जीत उसे हासिल होती, आशा के बल पर जीते। बाधाओं को दूर हटाके, वे नील गगन छू लेते। कर्म-आँधी चलरही श्रम- फूल खिलेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। सारे बंधन तोड कर, नई ऊर्जा से भर दें। खौफ का साया जहाँ, हौंसलों के पंख दे दें। नई लहर आ रही आत्मविश्वास जगेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे। चुनौतियों का सामना करो, भाग्य भरोसे बैठो नहीं। पुरुष हो पुरुषार्थ करो , बाधाओं से डरो नहीं। कर्मभूमि सज रही ज्ञानदीप जलेंगे। नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एव...
सुन्दरता
कविता

सुन्दरता

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** सुन्दरता सूरत में नही सुन्दरता गुण में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। कोई दिखती गोरी चिट्टी किसी के नैन तीखे हैं लेकिन उसकी कुरुपता ये कि वो बड़ो की इज्जत ना सीखे है सुन्दरता सूरत में नहीं सुन्दरता खुन में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। कितने मर मिटे नारी पर कितने घर बर्वाद हुये लेकिन सच्चा हृदय छोड़ भटक गया तु मृगनैयनी पर सुन्दरता सूरत में नही सुन्दरता प्रेमधुन में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
कविता सुगंध
कविता

कविता सुगंध

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुगंध है व्याप्त वायु में रोम रोम को पुलकित करता तन मन को बेसुद्ध करता सरस सांस में है समाहित यह नव बसंत उत्सव जैसा खिल चुके हैं पुष्प वृंद सब आम्रकुंज में आती मंजर लता कुंज में नव पल्लव झूम रही गेहूं की बाली सरसों खिलीं कुम-कुम जैसा सुगंध है व्याप्त वायु में रोम-रोम को पुलकित करता फुदक रही है गौरैया भी गुटूर गुं की प्रणय गीत भी गा रही है वय कबूतरी। फैली धरा पर अनुपम आभा भंवरे समूह में गुंजन करते पुष्प सभी है शर्माती चुम रहे हैं ओष्ठ पुष्प का हो हो कर सब मतवाले डोल रहे हैं पुष्प डाल सब चुबंन से है थर्राते . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य...
मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** ओ पिता! जबसे चले गये हो बहुत दूर और लोग कहते हैं कि तुम अब नहीं हो जबकि तुम अधिक रहते हो पास मेरे सुबह की धूप में दिखती है तुम्हारी हँसी छाँव में तुम्हारा वात्सल्य झलकता है शाम दिखाती है शिविर को लौटते हुए पसीने से नहाए लहुलुहान योद्धा की छवि रात को एक चिंताग्रस्त बाप बन जाती है ओ पिता! नहीं जानता था तुम्हारे जाने से पहले कि तुम्हारी यादें धँस चुकी हैं मेरे अंतर्मन में और घुल चुकी है मेरी धमनियों शिराओं में इतनी गहरी कि मेरे हर शब्द में बोलोगे केवल तुम ओ पिता! भरोसा है मुझे कि जब इस आपा-धापी से भरे जीवन में भावनाओं का सूखा पड़ जाएगा और भले बने रहने की नहीं बचेगी कोई सूरत तुम नेमत की बारिश की तरह आओगे और मेरी इंसानियत की फसल को सूखने से बचा लोगे ओ पिता! नहीं ला दूंगा तुम्हें नकली विशेषणों से नहीं करूंगा वृथा यशोगान भले ही नहीं मानूंग...
मलाल
कविता

मलाल

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा मध्य प्रदेश ******************** मलाल बस इतना था खयाल बस इतना, कि अभी साथ-साथ रहना था अभी कुछ दूर तक चलना था, एक बार अभी मिलना था कुछ उनसे और भी कहना था, मलाल बस इतना था।   परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय जन्म - १६/०१/१९९५ पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय निवासी - रीवा मध्य प्रदेश शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी. एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताए...