Tuesday, November 26राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

होली खेलूं कैसे
कविता

होली खेलूं कैसे

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** तुम बिन मांग सूनीहुई, सूना दिन सूनी रात, आंखें गंगा जमुना बहती, बुझ गई सारी मन की आस, रंगीन दुनिया बेरंग हुई, अपने मन को बहलाऊँं कैसे? किसे रंग लगाऊँ सजनवा? बताओ होली खेलूं कैसे? कहा था होली पर आऊंगा, सब के लिए कुछ ना कुछ ना, लाऊंगा, मुन्नी के लिए गुड़िया, तुम्हारे लिए चूड़ियां लाऊंगा, आए तो तीन रंग में लिपटे, मन को ढांढस बंधाऊँ कैसे? मैं होली खेलूं कैसे? पापा तो जैसे पत्थर हो गए, शून्य में देखा करते हैं, उदासी चेहरे पर छाई, मुंह से कुछ ना कहते हैं, गर्व है शहादत पर उनके, पर दिल को समझाऊं कैसे? मैं होली खेलूँ कैसे? मैं होली खेलूँ कैसे....? . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी टी आई. व्यवसाय - शासकीय शिक्षक सन् १९७७ ...
होली है
कविता

होली है

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** बुरा ना मानो होली है। ढोलक कि मादक थाप पर, हाथो में रंग लिये चली टोली हैं टेसू के फुलो से रंगी ये धरती, ठंडी बयार की ठिठोली है। प्रेम के रंगो से रंग दो आज कान्हा प्यार की होली है। उड़े रंग गुलाल कहे सखी सबसे, बुरा ना मानो होली है। पत्नी होती गुस्से में लाल, पीली ,पति चढ़ाये भांग गोली बच्चे करते मस्ती पास, पड़ोस के चेहरे गुस्से से लाल हो,हो,हाहा अआ कि आवाजो पे नचवाए ढोली हैं बुरा ना मानो होली है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ससुराल में गये जमाई, सालीया देख हैं मुसकाई, जिजाजी की रंगो से, सब करती पुताई, हैं बरबस ही देती गारी, नही निकलती बोली है। बुरा न मानो होली है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,। दल बदल का खेल बुरा है, नेताओ का हाल बूरा हैं बातो का किचड़ उछाले, सत्ता हथियाने कि होड़ में अब तो खुलेआम, लगती नोटो कि बोली है। बुरा न मानो होली है.... . पर...
फागुन बसंती
गीत

फागुन बसंती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** बसंती बहारो में, फागुन के महीन, अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... इतने सारे रंग पहले नहीं देखे, जब होली आयी तोरंगो के रंग देखे अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... ब्रज की गलियो मे, गोकुल नगारियो में, निधिवन में खेलेगे,मोहन संग होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... राधा संग खेलेगे, ललिता संग खेलेगे, गोपियां संग खेले, वृंदावन में होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... मीरा की निराशा मैं, पपिहे की तरह टेरु, बन-बन डोलूं मैं, हर सास तुझे टेरु अब आ जाओ मोहन फागुन के महीन में। बसंती बहारो में, फागुन के महीन में, अब लौटे भी आओ तुम होली के फुहारो में.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, प...
महिला दिवस
कविता

महिला दिवस

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** बनी हूँ टपोरी में रा जेंडर है छोरी हटके हूँ थोड़ी कोई डारे ना डोरी निकले दिवाला जिसकी लूटूं मै खोली उसकी हो खाली मेरी भर जाये बोरी टोपी पहनाने में बाज़ी हमने मारी जीती हमेशा हमसे ये दुनिया हारी डरने लगी है हमसे दुनिया सारी नटखट नखरीली हूँ थोड़ी बेचारी जिसने भी देखा उसको लगती हूँ प्यारी विरली अनोखी सीधी सादी हूँ नारी . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी क...
ये महिला का सम्मान नही
कविता

ये महिला का सम्मान नही

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** महिला दिवस पर कार्यक्रम करना महिला का सम्मान नही महिला का फ्री टिकट करना नारी का ये मान नही नजरों मे हो हवस भरी और भाषण में नारी सशक्तिकरण बेटी बेटी करते रहते कोख मे बेटी का होता मरण ये महिला का सम्मान नही समारोह में सम्मानित करना नारी का ये मान नही अन्धविश्वास के नाम पर उसे दबाना ठीक नही घर की चारदीवारी में बन्द कर हिफाजत ठीक नही ये बँधन है सम्मान नही अपना निर्णय उस पर थोपना नारी का ये मान नही मिट्टी का पुतला समझ समझ यातना दे कर तोड़ते रहना दूर गगन में उड़ने की इच्छा पर खुली हवा से बंचित रखना महिला का सम्मान नही परम्परा की जाल में जकड़ी नारी का ये मान नही कभी ये माँ तो कभी बहन है कभी ये जीवनसाथी है धरती पर उतरी नील गगन से सबसे अनोखी जाति है बस इतनी सी बात समझना महिला का सम्मान नही पावन धरती माँ कह देना नारी का ये मान नही . प...
नारी शक्ति तुम्हें नमन
कविता

नारी शक्ति तुम्हें नमन

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** नारी शक्ति नारी शक्ति तुम्हें नमन..... नारी तुम सत्यम शिवम सुंदरम नारी तुम संसार सबल इकाई नारी तुम संसार की इंगित केंद्र बिंदु नारी तुम क्षमा दया त्याग की मूर्ति नारी शक्ति तुम्हें नमन..... नारी तुम ओजस्व_ स्रोत_ प्रवाहित नारी तुम बंधुत्व स्नेह की पावन मंदाकिनी नारी तुम पुरुष की सहयोगिनी नारी शक्ति तुम्हें नमन.... नारी तुम तेजस्वी ओजस्वी अग्नि स्वरूपा नारी तुम खिलते पुष्प सी अभिलाषा नारी तुम सीपी में मोती नारी तुम शक्ति स्वरूपा नारी तुम एक अध्याय नारी शक्ति तुम्हें नमन.... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई ...
नारी शक्ति
कविता

नारी शक्ति

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ********************  देश विदेश की सैर कराती है वो फाइटर प्लेन चलाती चाहे हो जाना जल की तह तक या हो जाना नभ के पार नारी दुनिया देश चलाती फिर क्यों वो अबला कहलाती। क्या अचल अनल अग्नि की ज्वाला भी कभी अबला हो सकती... जो है खुद में सारा विश्व समाए कभी नही वो अबला हो सकती। माता, बहन, पत्नी जिसके हैं रूप अनेको फिर क्यों वह लूटी जाती... जो है सब की रक्षा करती क्यों वह खुद की रक्षा ना कर पाती... उठो, जागो, पहचानो खुद को तुम ही तो सर्व शक्ति कहलाती।। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
रंगो का त्योहार है होली
कविता

रंगो का त्योहार है होली

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** आओ बच्चों रंग लगाएं ! रंगो का त्योहार है होली !! दौड़े-खेल रंगीन रंगो से ! मस्ती का त्योहार है होली !! रंग-बिरंगे कपड़े पहने ! रंगो का त्योहार है होली !! आओ बच्चों रंग लगाएं ! रंगो का त्योहार है होली !! संग-ढ़ोल से झूम उठे ! संस्कृति का त्योहार है होली !! रंगीन गीतों से गूँज उठे ! गीतों का त्योहार है होली!! आओ बच्चों रंग लगाएं ! रंगो का त्योहार है होली !! बड़े-बुजुर्गों का रखे ध्यान ! प्रेम का त्योहार है होली !! वाद-विवादों से न घिरे ! एकता का त्योहार है होली !! आओ बच्चों रंग लगाएं ! रंगो का त्योहार है होली !! मिठाई-पकवान ख़ूब खाए ! खुशियों का त्योहार है होली !! नशीले पदार्थों से दूर रहे ! शांति का त्योहार है होली !! आओ बच्चों रंग लगाएं ! रंगो का त्योहार है होली !! रासायनिक रंगो का त्याग करें ! प्यार के रंगो का त्योह...
वर्तमान को जी ले
कविता

वर्तमान को जी ले

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जिंदगी हर पल, बड़े आनंद से बिताया। न ही बिगड़ा वर्तमान, भविष्य सजाया। कहाँ क्या बोलना, ये बहुत ध्यान रखा। चुप वहाँ न रही, गुनहगार मुझे बताया। सब वर्तमान हकीकत, लेखनी बताया। स्वार्थी मानव, कुछ भी समझ न पाया। ऊंची दुकान, फीके पकवान सजाया। तभी कुछ दिनों में, ताला खुद लगाया। हार मान लू मैं, पर यह मेरे बस में नहीं। प्रभु श्रेष्ठ रचना को, मैंने ना बिसराया। करती अच्छा, बड़ों का आशीष पाया। तभी भरी महफिल, सुनने जहां आया। कहती वीणा, छोड जाना सब यहाँ। फिर फालतू बातों, क्यूं समय गवाँया। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
इंतजार
कविता

इंतजार

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** धूप में कैसी मिठास आई है। हवा में यह कैसी प्यास आई है। देख बगीचे में आई अमराई है। मंजर की सुगंध में कैसी खटास आई है। एक मौसम न जाने कितने स्वाद लाई है। महुआ के फूलों की नशा छाई हैं । नीले अंबर को घेरे काली घटा आई है। आंधी की झोंकों ने बूंदों की थपकी ने, किसी भूले की याद दिलाई है। कच्चे आमों की खटास, पके आमों में मिठास , अंदर गुठली ,प्रकृति या वक्त जो एक फल में इतने सारे बदलाव लाई हैं। कोयल की कुहू ,झिंगुर की झनझनाहट। बेहद गर्मी ,उसमें हवा की सरसराहट। फिर बूंदों की पहली बौछार। एक मौसम का इतना सारा प्यार। जिसका बेसब्री से कर रहे हम इंतजार.......इंतजार . परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मां बाप
कविता

मां बाप

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हकीकत को दुनिया मे पेश ना करें, अपनो के खिलाफ कभी केस ना करें। जीना है तो खुदके दम पर जियो यारों, मां बाप के पैसों पर कभी ऐश ना करें।। कमर साथ नही दे रही है अब सीढियां चढ़ने में। उम्र निकाल दी जिसने तुम्हारी ज़िद पूरी करने में। कुछ तो ज़िन्दगी निकल गई तुम्हारी बातें सुनने में, अब भी सुकून नही है थोड़ा सा वक्त बचा मरने में। कुछ ने तो अपनी दौलत भी अपनों पे वार दी। और कुछ ने अपनी ज़िंदगी खाने में गुज़ार दी। फर्क बहुत है आजकल की औलादों में साहब, चंद है जिन्होंने मां बाप की ज़िंदगी संवार दी।। शौक खत्म हो जाते है उनके, जब आप दुनिया मे आते हो। मगर तुम अपने शान के लिए, उन्हें नौकर तक बताते हो। क्या बुरे थे उस समय वो जब खूद भूखे रहते थे। तुम्हे खिलाया खुद पेट की पीड़ा सहते रहते थे। ये आजकल का नही बहुत ही पुराना किस्सा है। कोई कोई पराये न...
ज़िंदगी की रफ्तार
कविता

ज़िंदगी की रफ्तार

कुमारी आरती दरभंगा (बिहार) ****************** ज़िन्दगी की रफ्तार में, हम निकल गए इतने आगे। छूट सा गया हर मंज़र, जो इतनी रफ्तार में हम भागे। जहां कण-कण में बस्ती थी खुशियां, आज खेलते सब खूनो की होलि‌‌या। सुख- चैन का कहीं नाम नहीं है, आस्तिक को नास्तिक बनते देखा है, रामयुग से कलयुग को आते देखा है, भाई-भाई में मतभेद होते देखा है, दहेज के नाम पर आज भी नारियों का सौदा करते देखा है। हवस के शिकारी है जो, उन्हें खुले आम घूमते देखा है। अतिथि सत्कार खो गया है अरे, आज मानवता को हो क्या गया है? मानव को हो क्या गया? साथ मिलकर मानते है जहां खुशियां, आज घर के हाथ हाथ में मोबाइल का बोल-बाला है, मोबाइल का बोल-बाला है सभी धर्म ग्रंथ छूट गए पीछे, जिसे कितनो ने मन से सीचे, जिसे कितनो ने मन से सीचे। माता पिता के जो होते थे चरणों के धूल, आज जगह-जगह वृद्धाश्रम गया है खुल। कर बैठे हम क्या ये भूल? कर बैठे हम...
अय रे होली
कविता

अय रे होली

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर म.प्र. ****************** होलिया में उड़ी रियो रे गुलाल, कय दो इन लोगोण से, अय गयो फागुन ने होली को तैवार, कय‌ दो इन लोगोण से, केसूडी का पीला रंग की, पड़ी रय पिचकारी से मार, कय दो इन लोगोण से, म्हारी या चुनर तो भीगी रय रे, भीगी रयो हे घर द्वार, कय दो इन लोगोण से, घुटी रय ठंडई, बणी रय गुझिया, कय दो इन लोगोण से, हिली-मिली रय लो, मत करो जूतमपैजार, कय दो इन लोगोण से ।। . परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नातकोत्तर, पी.एच.डी.चल रही है कार्यक्षेत्र : वर्तमान में लेखिका सहायक संचालक, वित्त, संयुक्त संचालक, कोष एवं लेखा, इंदौर में द्धितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत है। इससे पूर्व पी.आर.ओ. के रूप में जनसम्पर्क विभाग में कार्य कर चुकी है। लेखन विध...
पितरेश्वर
कविता

पितरेश्वर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** पितृदोष मिट गया शहर का, प्रण लेकर पूर्ण किया मन से। बरसों तक की गुप्त साधना, महानायक हो तुम जनजन के। अन्न ग्रहण न किया आपने मन की अभिलाषा पूर्ण हुई। हो विकास चहुं ओर शहर का, जो भी बाधा हो दूर हुई। शहर भोज ऐसा भारत में, न दिया न शायद दे पाये। हों अनुज सरीखे मेंदोला, तोकार्य अपूर्णन रह पाये। इंदौर शहर की शान बढ़ी, थी घोर तपस्या पावन भी। छटा मनोहारी हरियाली, लगती हमको तो सावन की। हो प्रदेश के सर्व मान्य, ये देश आपको जान गया। बंगाल जगाकर थके नहीं, केंद्र आपको मान गया। पुण्य आपके कर्म आपके, सब भलीभूत होने वाले। कर्तव्य पथों पर डटे रहो, अधिकार शीघ्र मिलने वाले। हो श्रेष्ठ सियासत के योद्धा, नीति निपुण राजनेता। महाभारत के अर्जुन जैसे, भारत माँ के सच्चे बेटा। रंग भगवा से हो रंगे आप भगवान राम की कृपा रहे। हनुमान ह्रदय में बसे रहें, वाणी ...
लेखनी रहती हरदम
कविता

लेखनी रहती हरदम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना। आंखों से ओझल सूरत हो, नव दिखने दे तब ना।।... सुंदर शब्दों को सेक रहा हूं, पर सिकने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।. . दो कौड़ी के भाव सृजन है, पर बिकने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना। मैं मिट जाऊं उसकी हसरत, पर मिटने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।... मैं कंचन होता लोहे से, पर पिटने दे तब ना।।.. करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।... मैं मंचों पर गीत बेचता, पर रटने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।.. . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौ...
रंगिए रंगाइए
कविता

रंगिए रंगाइए

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** रंगिए रंगाइए अंग-अंग हो तरंग उर में लिए उमंग निज संगिनी के संग प्रेम गीत गाइए! पक्षियों की गुनगुन घंटियों की रूनझुन बांसुरी की प्रेम धुन सुनिए सुनाइए! सरिता का तट जहाँ गिरि हो निकट जहाँ घनेरा हो वट जहाँ दूर कहीं जाइए! कर प्रकृति भ्रमण करें हर्ष का वरण आयु का प्रत्येक क्षण सफल बनाइए! सुख-पर्व होली है हास्य है ठिठोली है पग-पग टोली है रंगिए रंगाइए .... . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघ...
कितने ही दिनों
कविता

कितने ही दिनों

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कितने ही दिनों के विमर्श पश्चात। असंख्य अवरोध लांघते। संघर्ष के साथ आरंभ, तेरा प्रवास काल कोठरी से कारागृह तक। तुझे भनक नही हिरासत की, विचारों की अलंकारों की भावनाओं की गिरफ्त में, तुझे रखा गया। छूने को करता तेरा मन आकाश में तैरते बादलो को कभी तितली बन छूने को करती हो नर्म मुलायम पंखुरियों को। जंजीरे हैं कि टस की मस नही होती। आंखों में भर लेती हो सागर, असंख्य मोती भरे पड़े है, तेरे मन के तल पर। सुध नही तुझे तेरे होने की तू तो बस सखी है बहन है माँ है। इसके बाहर तुझे सोचने दिया भी कहा। हे, शक्ति रूपा देख अंबर के आईने में पहचान खुद को अपने पंख फड़फड़ा के देख जरा, सारे बिंब हो जाएंगे, धारा शाई। तेरी उड़ान छू लेगी, सातो आसमान, सारे रंग हो जाएंगे एका कार तेरे अस्तित्व में। तुझ से ही होगी तेरी पहचान, बस खुद को पहचान खुद को पहचान . परिचय :- नाम :...
नारी
कविता

नारी

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** नारी तू महान है, तुझ से ही जहान है। तू है शक्ति स्वरूपा, तेरी ममतामयी रूप है अनूठा। तू ही है पतित पावनी भारती, करें तुझे ही भक्त नित्य आरती। तुझसे होती दिन के आलोक नवल, तू ही है धीर, वीर, गम्भीर, अचल तू ही है पावन सरिता की धारा, निश्चल प्यार लुटाती जीवन भर सारा। तू ही लाती आलय नवीन किरण, होने न देती किसी को कभी शिकन। तू ही करती सबका निस्वार्थ सेवा, इच्छा न हो पाने की थोड़ी भी मेवा। नारी तू महान है, तुझ से ही जहान है।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
नारी
कविता

नारी

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** कई कसीदे काढ़े गए तेरे चाहत पे, निहारा होगा तुझे मन के आइने से । कोमलांगी कहलाई तू हृद यांगिनी कहलाई, कभी राधा कहलाई तू कभी लक्ष्मी कहलाई। कभी दुर्गा बनकर करती है संहार, कभी अन्नपूर्णा बनकर भरती है भंडार । सृजना की खानी जननी जगत की, धरा बन सहती सारे कष्ट दामन की। चिंता के साए में भी होठों पे मुस्कान बिखेर कर , सारा गम भूल जाती है थोड़ा प्यार जताने पर। अपनों के लिए रोज मैराथन दौड़ती है, अपने अरमानों को रौंदकर सहचरी बन आगे बढ़ाती है।` . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@...
भगोरिया
कविता

भगोरिया

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** चप्पे-चप्पे पर छाई नर-नारी में परम उमंग! आदिवासियों में बिखरे हैं भगोरिया मेले के रंग ! गुंजित है मांदल की थाप! लोक गीत के हैं आलाप! झूम रहे तन-मन अगणित, आनंदित वे, हम और आप! भावी पति-पत्नी उत्साहित घूम रहे इक-दूजे संग! आदिवासियों में बिखरे हैं भगोरिया मेले के रंग! संवरी काया सज्जित केश! उत्सव में डूबे परिवेश! युगों-युगों की परम्परा, गर्वित पूरा मध्य प्रदेश! थिरक रहे हैं गीत और संगीत प्रभावित मानव अंग! आदिवासियों में बिखरे हैं भगोरिया मेले के रंग! मालव अंचल और निमाड़! भगोरिया में लिप्त प्रगाढ़! उत्सव के रंग में रंगते, समतल, घाटी और पहाड़! दुर-दूर तक भ्रमण कर रही भगोरिया की हर्ष-तरंग! आदिवासियो में बिखरे हैं भगोरिया मेले के रंग! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला...
फगुनाहट और होली
कविता

फगुनाहट और होली

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। शीतल मंद समीर प्रवाहित, हर्ष भरे मन आँगन में। मंजरियों की नव सुवास नित, मन मतवाला करती है। तरुओं में पल्लव आने से, अनुपम छटा बिखरती है। मस्त मगन भँवरे भी गुंजन, करते नित-प्रति कुंजन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। रंगों का मौसम फिर आया, बाल-वृद्ध हिय हुलस उठे। प्रफुलित चित्त कराये मौसम, सबके तनमन विहँस उठे। रँग जायेंगे रँग में फिर से, आस जगी यह जन-जन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। ढोल मँजीरों की थापों पर, फाग सभी मिल गायेंगे। झूमें नाचें पूर्ण मगन हो, सबके मन हर्षायेंगे। भर उमंग में हुए तरंगित, लहर उठेगी तन-मन में। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में। करे प्रतीक्षा हर प्रेमी अब, रंगों के बादल छाएं। मधुमासी सुरभित बयार में, प्रेम क...
मां का आंचल
कविता

मां का आंचल

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मां तेरे आंचल में मैंने खुद को बड़ा होते हुए देखा है! बचपन से लेकर आज तक की है मेरी हर ख्वाहिश पूरी तुमने! मेरी हर परेशानी में मैंने तुझे परेशान होते देखा है! मां तेरे आंचल में मैंने खुद को बड़ा होते हुए देखा है! मेरे लाड प्यार शरारती पन के कारण खाती थी पापा से अक्सर डांट तुम! मुझे बुखार हो जाने पर सारी रात जागते हुए तुम्हें देखा है! मां तेरे आंचल में मैंने खुद को बड़ा होते हुए देखा है! हमारे सुख दुख में हर तरह से बनी हो परिवार के लिए तुम संकट मोचन हम सबकी! घर में पैसों की परेशानी हो जाने पर वह छुपाई हुई गुल्लक फोड़ते हुए देखा है! मां तेरे आंचल में मैंने खुद को बड़ा होते हुए देखा है! खुद भूखी रहकर ना जाने कितनी बार तूने खिलाया है हम सबको अपने हिस्से का खाना! सब कुछ सह कर हमेशा हंसते मुस्कुराना भी मैंने देखा है! मां तेरे आंच...
शौहरत जमाना शहर
ग़ज़ल

शौहरत जमाना शहर

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** यह शौहरत जमाना शहर आपका है हर शै है नशीली असर आपका है तुम्हें हो मुबारक हसीं जामे उल्फत जो मैंने पिया वो जहर आपका है रूको या रखो दिल में मंजिल की हसरत कदम है तुम्हारे सफर आपका है पाने है दिल गर जो खोए हुए हैं उधर है हमारा इधर आपका है भटकते भटकते न मायूस होना जो आओ इधर तो ये घर आपका है पड़ा है कोई आपके आस्तां पर उठा लो उसे वो अगर आपका है ठुकरा दो चाहे गले से लगा लो "शाफिर" तो बस उम्र भर आपका है . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
एहसास
कविता

एहसास

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले शब्दों का एहसास हो तुम। मैं चुप रहूं या बोल दूं मेरे दिल का जज्बात हो तुम मैं चांद बनूं, चांदनी बनकर बिखर जाओ तुम। मैं बादल तेरा और मेरी बारिश हो तुम मैं कजरा तेरा कजरे की धार हो तुम। एहसास इतना है तो मैं कहता हूं तुम्हें लगता है जैसे आसपास ही हो तुम। मेरी हसरत भरी पहली मुलाकात हो तुम जो गुनगुनाता हूं वो प्यारा सा साज हो तुम। हाथ बढ़ाया तेरी तरफ अब थाम ले मेरा मेरा प्यार मेरा ईमान मेरा जहां हो तुम। आ अब लौट चलूंगा तुझे लेकर अपने घर मेरा दिल मेरी धड़कन मेरा एहसास हो तुम। मेरे सीने में उमड़े प्यार का तूफान हो तुम आगोश में समा कर इस तूफान को थाम दो तुम। मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले शब्दों का एहसास हो तुम।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्...
दहकती हुई घाम के
कविता

दहकती हुई घाम के

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** बसन्त के कांधों पर फागुन सवार है, धूल भरी बह रही, पतझड़ बयार है। रंगीनी धरती की होली की आहट है, रंगों में परिलक्षित बिखरने की छटपटाहट है। रंगों को मिलकर यूं एकरंग होना है, हम भी तो सीखें सब भेद-भाव खोना है। नवसंवत आगमन नववर्ष शुभागमन, उष्णता का होने लगा समीर में सम्मिश्रण। नए नए कीर्तिमान रच रहा है तापमान, बरखा की आस में आसमां को ताके नयन। भुगत रहे परिणाम सब प्रकृति से खिलवाड़ के, दिन हुए असहनीय दहकती हुई घाम के। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्...