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पद्य

बढ़ती उम्र में दोस्त
कविता

बढ़ती उम्र में दोस्त

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** थोड़ी थोड़ी मस्तियां, थोड़ा मान-गुमान। आओ मिलकर रखें, सब ही सबका ध्यान। बढ़ती उम्र कहती है, थोड़ा सीरियस हुआ जाए। किन्तु वक्त का किसे मालूम, कुछ हास-परिहास किया जाए। जब दो हस्ती मिलती है, तो दोस्ती होती है। समुन्दर न हो तो, कश्ती किस काम की। मज़ाक न करें तो, दोस्ती किस काम की। दोस्त ही न हों तो ज़िन्दगी किस काम की। मर्ज तो सताते हैं, बढ़ती उम्र में। हर मर्ज का इलाज, नहीं है अस्पताल में। कुछ दर्द तो यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ मुस्कुराने में। किसका साथ कहां तक होगा, कौन भला कह सकता है। मिलने के नित नए बहाने, रचते बुनते रहा करो। फ़ुरसत की सबको कमी है, आंखों में अजीब सी नमी है। शान से कहते हैं, वक्त नहीं है, यह भी सोचो, वक्त की डोर, किसी के हाथ में नहीं है। कब थम जाए, पता नहीं है। हौसले नहीं होंगे पस्त, साथ हों जब, बढ़ती उम्र में द...
सहर होने दो
कविता

सहर होने दो

श्वेता सक्सेना मालवीय नगर जयपुर (राजस्थान) ******************** मौन को मुखर होने दो, शब्द को शिखर होने दो। त्रास दे रही जो अंतर को, वेदना को प्रखर होने दो। बहने दो पीड़ा बूँद-बूँद होकर, मत रोको, अश्रुओं का समर होने दो। उलझी बहुत है जीवन डोरी, उलझनों को सरल होने दो। क्यों उठा रखा है मनों बोझ मन पर ? दुःख की बदली को विरल होने दो। बीत जाएगी निशा, टूटेगा तिमिर भी, नव स्वप्नों की सहर होने दो। . परिचय :- श्वेता सक्सेना निवासी :- मालवीय नगर जयपुर राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचि...
चट्टानों के नीचे भी
कविता

चट्टानों के नीचे भी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चट्टानों के नीचे भी होता है पानी हो कितना भी कोई संगदिल दो मीठे बोल ला देते है उसकी भी आंखों में पानी। जो है आनेवाला वो ही है जानेवाला कुछ पल का है ये तमाशा सभी को निभाना है अपने अपने किरदार चंद घड़ियों में गिर जाएगा पर्दा हो जाएगा सब कुछ फ़ानी हो सके तो कर कुछ ऐसा जो भर दे किसी की आँख में पानी जीने को तो सब जी लेते है याद वही रह जाते है जो देते है कुर्बानी। शाहों का शाह है वो वक़्त भी जिसका गुलाम तू तो खिलौना है उसका वो लेता है इम्तहान वो सब देखता है वो सब जानता है मत कर कोई चालाकी मत कर कोई बेईमानी। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंद...
मेरा स्वाभिमान मेरे पापा
कविता

मेरा स्वाभिमान मेरे पापा

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाथ में उनकी डोर। मैं उड़ता गगन की ओर। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। हाथ में उँगली लेकर, सामाजिक दुनिया देखी। अपने स्नेह भाव से, मेरी तक़दीर लिखी। मैं अक्षर, आप कितना बनके साथ रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। बन जाते मेरी ढाल, कसता कोई तंज। ह्रदय इतना कोमल, शरमा जाए पंकज। मेरे स्वाभिमान में, आपकी ठाट रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। प्यारी सी मुस्कान, लचीला है अंदाज। कोयल से भी मोहक, लगती है आवाज़। मेरी बातों में, आपकी ही बात रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्...
स्त्री तुम
कविता

स्त्री तुम

शोभा किरन जमशेदपुर (झारखंड) ******************** स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी ? क्या तुम नहीं पाना चाहती वो ज्ञान ? किन्तु जा पाओगी, अपने पति परमेश्वर और नवजात शिशु को छोड़कर.... तुम तो उनपर जान लुटाओगी.... उनके लिये अपने भविष्य को दाँव पर लगाओगी... उनकी होंठो के एक मुस्कुराहट के लिए अपनी सारी खुशियो की बलि चढ़ाओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या राम बन पाओगी ???? क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग, उस गलती के लिए जो उसने की ही नहीं ???? ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा उसके नाज़ायज़ सबंधो के लिए भी ???? क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए, हज़ार गम पीकर भी मुस्काओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या कृष्ण बन पाओगी ???? जोड़ पाओगी अपना नाम किसी प...
तू क्या जाने भगवान!
कविता

तू क्या जाने भगवान!

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधा - करुण रस तू क्या जाने भगवान! रात भर हर दिन ही खटमल-मच्छर के बीच सुख से सोना क्या होता है। तू क्या जाने भगवान ! हर दिन ठण्ड से ठिठुरना, कैसा हमका लगता है ! तू क्या जाने भगवान! जि-कर मरना, मरकर जीना कितना मुश्किल होता है! रात भर दर्द में रहकर सुबह सब अच्छा ही है, कहना, कैसे? संभव होता है ! तू क्या जाने भगवान ! बेघर होकर दर-दर भटकना, हम किस तरह कर पाते हैं, अो बादलों के आलीशान ! महलों में हमेशा रहने वाले, जीवन-मृत्यु ,खेलने वाले ! आओ एक बार फिर तुम इस धरती पर बनकर के तुम भी वो अबला नारी, कुचली जाती मसली जाती कभी जो और जिसकी इच्छाएं। बन कर आओ वो पिता एकबार। जो अपने जवान बेटी को कंधा, जिसे कभी देना होता है। कारण तुम्हारी बनायी इस... धरती पर जो एक न एक राक्षस हरदम पलता है। बनकर बहुत आ लिए संहारक तुम, बस केवल एक बार शिकार हम ज...
किताबें
कविता

किताबें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किताबें भी कहती हैं शब्दों में हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह बस यूँ ही तुम सजाते रहो किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो कुछ फूल रखे थे किताबों में यादों के सूखे हुए फूलो से भी महक ख्यालो में तुम पाते रहो आँखें हो चली बूढी फिर भी मन तो कहता है पढ़ते रहो दिल आज भी जवाँ किताबों की तरह पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो बन जाते है किताबों से रिश्ते मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों माँग कर ली जानें वाली किताबों को पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और ...
राष्ट्र हित में
कविता

राष्ट्र हित में

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** चंद पंक्तियाँ राष्ट्र हित में, उन समस्त दंगाइयों के नाम एक संदेश, जो राष्ट्र में दंगे करवाते हैं, चाहे वह महिला हों या पुरुष। हर वादे पूरे करते हैं, बातों के बिल्कुल सच्चे हैं। मूर्ख समझते हैं हमको, अफसोस अभी तक बच्चे हैं।। झूठ अभी तक फितरत में, वो राष्ट्रद्रोह कर जाते हैं। जो राष्ट्र हितैषी होते हैं, वो सरहद पे मर जाते हैं।। वह राष्ट्र हितैषी कभी नहीं, केवल द्रोही कहलाते हैं। जो चंद सियासी लालच बस, घर में दंगे करवाते हैं।। लंम्बे भाषण जो देते हैं, और राष्ट्र धर्म बतलाते हैं। वह राणा की औलाद नहीं, अपनी औकात बतलाते हैं।। वह नहीं लक्ष्मीबाई हैं, जो कल दंगे करवाई हैं। नाहीं प्रताप की पुत्री हैं, जो घास की रोटी खाई हैं।। चंद कौडियो की भूखी, नादान अभी तक बच्ची हैं। परिपक्व नहीं हो पाई हैं, वह अक्ल कि पूरी कच्ची हैं।। . परिचय...
किताबें भी एक दिमाग रखती है
कविता

किताबें भी एक दिमाग रखती है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। किताबें जिंदगी में, बहुत ऊंचा, मुकाम रखती है। यह उन्मुक्, आकाश में, ऊंची उड़ान रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती हैं। हमारी सोच के, एक-एक शब्द को, हकीकत की, बुनियाद पर रखती है। किताबें जिंदगी को, कभी कहानी, कभी निबंध, कभी उपन्यास, कभी लेख- सी लिखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती है। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। यह सांस नहीं लेती। लेकिन सांसो में, एक बसर रखती है। जिंदगी की, रूह में बसर करती है। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
उनके तो रूबरू
कविता

उनके तो रूबरू

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** उनके तो रूबरू जश्न चलते रहे, हम अंधेरों में करवट बदलते रहे। आसमाँ इस ज़मीं से कहाँ दूर था, हम खुद को खयालों से छलते रहे। झिलमिलाते हुए चाँद को देखकर, चाँदनी में पिघलकर बहलते रहे। रहबरों की ज़ुबानी सही मानकर, हम कई बार गिरकर संभलते रहे। हमें क्या पता था धुआँ उठ रहा, हम बेखुद से बेबस सुलगते रहे। बेखबर थे सफ़र में मंज़िल से मगर, रौशनी के लिये हम मचलते रहे। हसरतों के आईने यूँ ही देखो विवेक, मुस्तकबिल के जहाँ ख्वाब पलते रहे। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थान...
तू मेरी मैं तेरा रहूँ
कविता

तू मेरी मैं तेरा रहूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख्यालों में पल - पल तुझे सोचता हूँ मैं ख्वाबों में भी अब तुझे ही देखता हूँ मैं। सुकूँ मिलता है अब तुझे महसूस करके इस दिलो जां में समेटे तुझे घूमता हूँ मैं। बस यही आरजू है तू मेरी मैं तेरा ही रहूँ तेरे दिल की हर धड़कन में गूंजता हूँ मैं। लोग कहते हैं मुझको हूँ भुलक्कड़ बड़ा सब भूलकर भी एक तुझे ना भूलता हूँ मैं। पाकर तुझे जन्मों की तलाश हुई पूरी मेरी और पाने की तलाश में नहीं दौड़ता हूँ मैं। ये हाथ जब उठते हैं दुआओं के लिए मेरे तू मेरी हो हर जन्म, खुदा से मांगता हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
पीकर आंसुओं को
मुक्तक

पीकर आंसुओं को

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं। करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती है।। हर एक चौखट की मर्यादा है,जिनके अपने हाथों में। वो रणचंडी, भवानी हीं, यहां नारी कहाती हैं।। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। २) समरसता का भाव लिए, रंगो के पावन छांव तले, होली का यह त्यौहार कहे, जीवन में प्रीत का रंग भरे।। समरसता के पावन पर्व होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। ३) इश्क़ में पागल वो आशिक फिर रहा है आज भी। शाह वो मेरा बना और मैं बनी मुमताज भी।। प्यार बेश़क मैने उससे हीं किया था सच है ये। पर ये कैसे भूल जाती, हूँ पिता की लाज भी।। माता पिता को समर्पित। ४) निद्रा का अब, ढोंग रचाकर, मौन कहां तक साधेंगे। बाधाओं को, पीठ दिखाकर, रण से कब तक, भागेंगे। लक्ष हम अपना, साधेंगे,अब तोड़ तमस की सघन घटा। बहुत हुआ अ...
आज होली खेलें अपने आंगन में
कविता

आज होली खेलें अपने आंगन में

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** आज होली खेलें अपने आंगन में। रंगों का त्योहार मनाएं फागुन में।। टेसू के रंग यूँ बरसाए , तन मन पीला हो जाये। ईर्ष्या-नफरत दूर रहे, मन प्रेम से भर भर जाए। रिश्तो के फूल खिलाए गुलशन में। आज होली खेले अपने आंगन में। हरा रंग हम ऐसे बरसाए , कण-कण हरियाली होजाए । जन-जन की भूख मिटे , घर पर खुशहाली आजाए। मेहनत के फूल खिलाए उपवन में। आज होली खेलें अपने आंगन में। वंशी कीतुम तान सुनाओ, राधा बन हम रंग बरसाएं। रंग पिचकारी भर-भर के , मन का सार संसार लुटाएं। हम तुम दोनों रास रचाए मधुबन में। आज को खेलें अपनी आंगन में। .परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक...
मेरी रूह हो तुम
कविता

मेरी रूह हो तुम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले अल्फाजों का एहसास हो तुम मैं चुप रहूं या बोल दूं मेरे दिल का जज्बात हो तुम मैं चांद बनूं चांदनी बनकर मुझ पर बिखर जाओ तुम मैं बादल तेरा और मेरी बारिश हो तुम मैं कजरा तेरा कजरे की धार हो तुम एहसास इतना है तो मैं कहता हूं तुम्हें लगता है जैसे आसपास ही हो तुम मेरी हसरत भरी पहली मुलाकात हो तुम जो मैं गुनगुनाता हूं वो प्यारा सा साज हो तुम मेरा प्यार मेरा ईमान मेरा जहां हो तुम हाथ बढ़ाया है तेरी तरफ अब थाम लो तुम आ अब लौट चलें तुझे लेकर अपने घर मेरा दिल मेरी धड़कन मेरा एहसास हो तुम मेरे सीने में उमड़े प्यार का तूफान हो तुम आगोश में समा कर इस तूफान को थाम दो तुम मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले अल्फाजों का एहसास हो तुम।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनी...
फागुन की चौपाल
कविता

फागुन की चौपाल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होली उत्सव प्रीत का, यह रंगों का बाजार, निशदिन फागुन प्रीत, के नये पढ़ाये पाठ। अखियों ही अखियों, हुऐं रंगों के संकेत, रह रह कर महके रात भर कस्तूरी के खेत। प्रीत महावर की तरह, इसके न्यारे है रंग, बतियाती पायल हँसे, हँसे ऐड़ियाँ संग। रंगों वाले आईने, भूलें सभी गुमान, जो भीगें वो जानता, फागुन की मुस्कान। दोहे ठुमरी सखियां, फाग अभंग ख्याल, मोसम करता रतजगा, फागुन की चौपाल। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान स...
डरो नहीं
कविता

डरो नहीं

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** कोरोना जग में घूम रहा है हिंसक क्रूर छली कपटी को, डसने पल-पल घूर रहा है चुन चुन दुश्मन मार रहा है डरो नहीं अहिंसक भोले मानव तुम्हारे पास कभी न आएगा नहीं बिगाड़ा तुमने कुछ उसका क्यों तुमको को डसने आएगा बुद्धिमान है वह इंसानो से बिन बात नहीं कुछ करता है सहता रहा अन्याय बरसों तक ललकारा जब, पानी सरसे उतरा है। . परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्शन के प्रथम से चतुर्थ भाग सामान्य एवं जयपुर के उत्तीर्ण छहढाला, रत्नकरंड - श्रावकाचार, मोक्ष शास्त्र की विधिवत परीक्षाएं उत्तीर्ण अन्य शास्त्र अध्ययन अन्य प्रशिक्षण - फैशन डिजाइनिंग टेक्सटाइल प्रिंटिंग, हैंडीक्राफ्ट ब्यूटीशियन, बेकरी प्रशिक्षण आदि सामाज...
रंग वो जो दिखता है
कविता

रंग वो जो दिखता है

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** रंग...! रंग वो जो दिखता है, या रंग वो जो चढ़ता है। दिखता तो नीला या लाल, या राधा के गालों पर गिरधर गोपाल। वो होली का गुलाल या साम्प्रदायिकता का काल वो केसरी जो हनुमान का, या रावण के अभिमान का। प्रदर्शन में मांग का, नेताओं के स्वांग का, होली में भांग का। सुहागन की मांग का। भगत सिंह की आजादी का। कसाब की बर्बादी का। खेतों में हरियाली का। तिरंगे में खुशहाली का। मां की ममता का, सैनिक की क्षमता का। मीरा में भक्ति का, राम में शक्ति का। शहरों में दंगों का, गांव में मन चंगों का। रंग वो जो दिखता है या रंग वो जो चढ़ता है। तिरंगे के तीन हैं। सबके अपने दीन हैं। फिर भी सुख दुःख सहते हैं। हम भारत वासी मिलकर रहते हैं।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा ...
होली का रंग
कविता

होली का रंग

संजय जैन मुंबई ******************** तुम्हें कैसे रंग लगाए, और कैसे होली मनाए? दिल कहता है होली, एक दूजे के दिलों में खेलो। क्योंकि बहार का रंग तो, पानी से धूल जाता है। पर दिल का रंग दिल पर, सदा के लिए चढ़ा जाता है।। प्रेम मोहब्बत से भरा, ये रंगों त्यौहार है। जिसमें राधा-कृष्ण का, स्नेह प्यार बेसुमार है। जिन्होंने स्नेह प्यार की, अनोखी मिसाल दी है। और रंगों को लगाकर, दिलों की कड़वाहटे मिटाते है।। होली आपसी भाईचारे और प्रेमभाव को दर्शाती है। और सात रंगों की फुहार से, ७-फेरो का रिश्ता निभाती है। साथ ही ऊँच नीच का, भेदभाव मिटाती है। और लोगों के हृदय में भाईचारे का रंग चढ़ती है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचना...
बदली है ऋतु आज
छंद, धनाक्षरी

बदली है ऋतु आज

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** बदली है ऋतु आज, छेड़ती नवीन साज, बासंती हर मिजाज, दिखे हर ओर है। पीला नीला हरा लाल, हर दिशा में धमाल, प्रकृति करे कमाल, बहुरंगी जोर है। कोयल की मीठी तान, गातें हैं भृमर गान, धरती की बढ़ी शान, मानस विभोर है। पल्लव पे शीत ओस, तपन है डोर कोस खुशियाँ देती परोस,प्यारी हर भोर है। होली पर्व आ रहा है, खुमार सा छा रहा है। मौसम भी भा रहा है, डूब जायें रंग में। प्रसून रंग-रंग के, पल्लव नव ढंग के, दृश्य हैं बहुरंग के, झूमिये तरंग में। कबीरा फाग गा रहे, रंग मन को भा रहे, ठंडाई भी चढ़ा रहे, आता मजा भंग में। ढोलक धमक रही, झाँझर झनक रही, बुद्धि भी बहक रही, खुशी हुड़दंग में। संग होलिका दहन, मैल मन का दहन, कुरीतियों का दहन, यह शपथ लें सभी। आपस में न द्वेष हो, दूर सबके क्लेष हों, यत्न अब विशेष हों, दुविधा तज दें सभी। नहीं तनातनी रहे, मित्रता भी बनी रहे, प्रीति नित...
पोथी
दोहा

पोथी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** नयी नयी पोथी मिलै मिलै नये कविराज। एक कविता के चार कवि अहो भाग्य कृतराज। कविता के कछु मूल नहि लुगदी बिचै बजार। पोथी मा कविता चढ़ी कविवर चढे़ कपार। दुइ भाषा कविता लिखिन बनिगे कवि के राज। दुइ पोथी का बाचि के बनिगे बड़ महराज। सब कविअन के एक मती हमरो पोथी होय। केउ पढै़ या ना पढै़ बल-भर मोटी होय। पोथी मा गुन बहुत है बाचि के फेंकए ज्ञान। कउने पोथी मा भरा तनिकौ नहिं है ध्यान। पढि पढि पोथी आजु सब फेंंकै ज्ञान अपार। बाप मरै पानी बिना लड़िका चढ़ा कपार। खिड़की मा पोथी चढ़ी कुर्सी चढ़ा बचैया। गऊ रक्षा पोथी लिहे बाचै गैया गैया। सूरदास तुलसी मरे मरिगें कबिरौ आजु। गूढ़भूत पोथी रची ऐ जड़मति अब जागु। . परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं...
होली आई
कविता

होली आई

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** गीत खुशी के गाओ की होली आई हंसो और हंसाओ की होली आई! मौज मस्तियों का आलम है ऋतुओं, गम सभी भुलाओ की होली आई। बुरा ना मानो रंगों के इस त्योहार में रुठे हुये को मनाओ की होली आई! मिटाकर बीज नफरत बैर द्वेष के सब खुशी के दीप जलाओ की होली आई! भाईचारा अपनापन कायम रहे दिल दिल से दिलमिलाओ की होली आई! भुलाकर गिले शिकवे पुराने से पुराने जी भर के मुस्कुराओ की होली आई!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तम...
करोना होली
कविता

करोना होली

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** होली खेल संग, रंग भर नयन में, पिचकारी छुओ मत नेह बरसाइये। बृज की धरा मन में धारण करो सब, बचाओ देह, मन से रंग जाइये। भय से भरा विश्व, हठ मत करो कुछ, ग़ुलाबों के फूलों से घर को सजाइये। प्यार हो राधा सा, कृष्ण की मुरली हो, नमन कर कष्ट को मिटाइये। गोबर के कंडे घृत हो गऊ का,थोड़ा सा उसमें कपूर भी मिलाइये। बैठ पास होली के रोली का टीका, फ़ीका न हो माथा झुकाइये। घर का बना भात, गुड़ डाल अच्छे से, केसर मिलाकर ढ़ंग से पकाइये। मखाने की खीर में मेवा मुठ्ठी भर, मिट्टी का एक चूल्हा जलाइये। मावा है दूषित, गुजियाँ हों गुड़ की ग़र, जो भी बनें, घर पर खिलाइये। ताला लगा द्वार, अंदर छिपे हम, खोलें न कैसे भी, द्वार मत खटखटाइये। खानी मिठाई अन्य कोई रसीली आदि, देख आज मेरे वाट्सअप पर आइये। हाथ मत मिलाओ, गले मत लगाओ, नमस्ते नमो नमः सबको सिखाइये। अंगोछा गले डाल,...
रंग भरी पिचकारी लेकर
गीत

रंग भरी पिचकारी लेकर

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** फूल सजाकर इन अंगों में, सजनी लगे सजीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। मीठी लगती तेरी बोली, तू है सबकी हमजोली। रसिक भाव की बनी स्वामिनी, मन मति की निश्छल भोली।। संग सहेली झूमझूम कर, लगती छैल ,छबीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। आयी है तू लेकर टोली, मस्ती की होगी होली। हर मनसूबे अब हों पूरे, खा लें हम भांग नशीली।। इठलाती सदा हंँसी देकर, लगती बड़ी हठीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। खुशियों से भर दो तुम झोली, आँखों से मारो गोली। तुम हो जाओ मेरे प्रियतम, आज सजे सपने डोली।। हाथ अपने सारंगी लेकर, गाती बड़ी सुरीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
ऐसी होली हो
कविता

ऐसी होली हो

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** भारतवासी एक बनें। राहें सबकी नेक बनें। खेतों में हरियाली हो। सबके घर खुशहाली हो। होली में सब द्वेष जलें। दिल में केवल प्यार पले। साथ में पूरी बस्ती हो। दीवानों की मस्ती हो। भेदभाव का अंत हो। बारहों मास बसंत हों। रंगों की बौछार हो। सतरंगा त्यौहार हो। सबकी ऐसी होली हो। रंग संग हमजोली हो। तन रंगे मन रंग जाए। रंग न जीवन भर जाए। ऐसे सब त्यौहार मने। मकसद केवल प्यार बने। . परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञानिक चेतना बढ़ाना। लेखन विधा ~ कविता, गीत, ग...
क्यों भूल गए आज
कविता

क्यों भूल गए आज

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** क्यों भूल गए आज। नववर्ष है अपना आज।। कल तक तो खूब चिल्ला रहे थे। अँग्रेज़ी नववर्ष पर इठला रहे थे।। आज क्यों हो मौन। कहो न आज नववर्ष की शुभकामनाएं। क्यों न दे रहे आज शुभकामनाएं।। आज शान्त क्यों हो। आज क्लान्त क्यों हो।। आज ही तो नववर्ष है। देखो लताएं भी मुस्कुरा रही है। डालियां भी इठला रही है।। आज कहाँ है तुम्हारा वो ध्वनि विस्तारक यन्त्र। मौन क्यों हो आज साथ दे रही प्रकृति के सब तन्त्र।। देखो क्या आनन्दमय सा चहुँओर वातावरण है। मन आनन्दित तन आनन्दित और आनन्दित उपवन है।। देखो मैं ये नहीं कह रहा मत मनाओ आंग्ल नववर्ष। पर देखो यह अपना आनन्दमय पुनीत नववर्ष। हिन्दी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। परे हो विश्व से आतंक की घटाएं। पूरित हो सबकी सम्पूर्ण अभिलाषाएं.... . परिचय :- भारत भूषण पाठक देवांश लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' ...