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पद्य

मेरी मम्मा
कविता

मेरी मम्मा

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   मेरी मम्मा प्यारी मम्मा तुझसे जग देखूंगी मम्मा कोख में तेरी रहकर जाना जग से न्यारी मेरी मम्मा तेरे शीतल सुंदर मनोभाव ने मुझमें कोमल आत्मिक संस्कार जगाया मेरे लिए जग से लडने के अद्भुत विचार ने मुझमें भी आत्म विश्वास जगाया तू तो मेरी जननी है तू साक्षात जगजननि है मैं जनम लूगी ऐसी धरा पर जहां सृष्टि की रचयिता जननी है है इतना विश्वास कि तू मां मुझको इस संसार में लायेगी अभूतपूर्व सौंदर्य और रहस्यों से परिपूर्ण जहां की सैर करायेगी पर दुनिया के तानों की तु बिल्कुल परवाह नहीं करना 'बेटी जन दी' के पत्थर खाकर कोख में मेरा वध मत करना मैं तो तेरी लाडली हूं मां मैं जग से निराली तेरी राजकुमारी पाप ना लेना भ्रुण हत्या का विनती करे सुत आज तिहारी तुम तो मेरी प्यारी मम्मा आज के युग की नारी हो लड़ जाओगी सारे जग से मां तुम ईश्व...
सारा संसार हमारा
कविता

सारा संसार हमारा

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... नीलाम्बर, सूर्य, चंद्र व तारें, बादल, नक्षत्र वे सारे नजारें, सागर, सरिता बहते मीठे झरनें पेड़-पौधे,पहाड़ लगे सब प्यारे। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... उमंगी मन ऊँची उड़ान भरता, सारे संसार का विहार करता, सपनों की बारात के संग संग बादलों की ओट से झाँकता चलता मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... समीर सरगम गाता घूमता, नभ को प्रेम नैनों से चूमता। प्रकृति को बाहों में भर कर चिड़िया संग मन गाता झुमता। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... मधुर झरने का पान करता, किशलय शृंग से बातें करता। मन पर्वत शिखा पर बैठकर प्रभु का सौन्दर्य दिल में धरता। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... मित...
डर ज़रा
गीत

डर ज़रा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** झांक मन में आज अपना आकलन तू कर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! मन में तेरे है मलिनता! स्वार्थ की इसमें बहुलता! क्यों नहीं सच्ची सरलता? पालता हैं क्यों जटिलता? स्वच्छ कर सद्भावना से स्वयं का अन्तर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! 'अहं' में रहता मगन तू! सतत करता है पतन तू! बोलता कड़वे कथन तू! क्यों नहीं करता मनन तू? अपने शब्दों में शहद की मधुरता को भर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! पाप हैं अविराम तेरे! व्यस्त हैं दिन-याम तेरे! अनैतिक सब काम तेरे! दुष्टता है नाम तेरे! सोच क्या ले जाएगा संग अपने यायावर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस...
संकल्प
कविता

संकल्प

डॉ. अपराजिता सुजॉय नंदी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** चलो शुरू करें फिर वही आंदोलन विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर करें हम देश का आर्थिक सुधार।। यह बहिष्कार केवल वस्तुओं का नहीं विदेशी विचारों को भी बहिष्कृत करना होगा तभी तो यह सफल आंदोलन होगा तभी यह संकल्प भी पूरा होगा।। आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए स्वदेशी वस्तुओं की खरीदी को बढ़ाना होगा देश में बढ़ रहे आर्थिक संकट को हर संभव कोशिश से दूर करना होगा।। आज भारत का प्रत्येक निवासी जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है आर्थिक गिरावट के कारण ही पारिवारिक हिंसा भी बढ़ रहा है।। विश्व संकट की इस विषम स्थिति में विदेश में जब ख़ुद को अकेला पाया अपने प्राणों की सुरक्षा के लिए तुम्हें अचानक अपना देश याद आया।। कई वर्षों से तो विदेशों के आर्थिक व्यवस्था में योगदान दिया विचार करे कि हमने अपने देश के आर्थिक...
है यह जीवन छलावा
हाइकू

है यह जीवन छलावा

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** धनुषाकार वर्ण पिरामिड में प्रयत्न :- विधान-यह आज हिन्दी साहित्य क्षेत्र में प्रमुखता से प्रयोग में आने वाली जापानी विधा है। यह १४ चरण वाली २८ वर्णों वाली विधा है।इसके प्रथम चरण मे १ वर्ण, द्वितीय चरण में २, तृतीय चरण में ३, चतुर्थ चरण में ४, पञ्चम चरण में ५, षष्ठ चरण में ६ तथा सप्त चरण में ७ वर्ण होते हैं, आठवें चरण में ७ वर्ण, नौवें चरण में ६ वर्ण, दसवें चरण में ५ वर्ण, ग्यारवहें चरण में ४, बारहवें चरण में ३, तेरहवें चरण में २ वर्ण तथा चौदहवें चरण में १ वर्ण होते हैं, यानि वर्ण पिरामिड की पूर्णतः उल्टी गिनती। आधे वर्णों की गिनती नहीं होती तथा किन्हीं दो चरणों में तुकांत होने से सृजन लाजवाब हो जाती है। सारांश में बोलना कम काम ज्यादा के सिधान्त का पालन करता है यह। है यह जीवन छलावा ही वास्तविकता नहीं भुलावा ये आया जो है जाएगा...
तू ही नारी तू ही प्रकृति
कविता

तू ही नारी तू ही प्रकृति

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी, सृष्टि की, तू ही जननी, भाव समाहित हर तुझमें, नव रस की, तू ही पोषनी... बहता निर्मल आब तुझमे, मन पुलकित सुन रागिनी, ताप छूपा उर में, महकी, थिरकी बन कभी मोरनी... सप्त रंगों की तूलिका तू, उकेरे कानन बन दामिनी, स्याह हुआ, छाया तम तो, खिली बन तू फिर चाँदनी... नारी हो या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, अंनत की हैं कृति सुंदर तू, तू ही हैं वो जीवनदायिनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
कुछ तो बदला है
कविता

कुछ तो बदला है

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** हवाओं ने आज रूख बदला है, न जमीं बदली है न आसमान बदला है। केवल हवाओं ने आज रूख बदला है। बदला है मेरे गांव का चौपाल जहां साझा होते थे तजुर्बे आज पसरा है वहां सन्नाटा। बदला है मेरे घर का आँगन जो दिन भर अब गूंजते हैं किलकारियों से। बदले हैं रस्मों रिवाज मेरे घर के जहां बंटते हैं प्यार खाने की थालियों में। बदली है मेरी राहें जा रहे थे जो पूरब को छोड़ पश्चिम की अगवानी में। बदला है वह समय जो कल तक नहीं था पास किसी के अब हैं फुर्सत में। बदले हैं वे रिश्ते नाते जो रहकर पास रहते थे अपनों से दूर अब लगाव महसूसते हैं फासलों में बदला है बरगद का पुराना सूना पेंड़ जहाँ लगे हैं लौटने खग अपने नीड़ में बदली है ग्रीष्म की वो बंद सरिता जहां चल रही नाव साहिल की तलाश में बदले हैं वो अंदाज जो करते थे बयां होती नहीं मोहब्बत गले मिलने से ही न धर्म बदला है न करम ...
मजदूर की मजबूरी
कविता

मजदूर की मजबूरी

श्याम सिंह बेवजह नयावास (दौसा) राजस्थान ******************** मजदूर देखों कितने मजबूर हो गए सपने थे दो रोटी के वो भी खो गए हैरां परेशान विवशता देखों उनकी थके थे इतने की वो पटरी पे सो गए मुश्किलें देख ह्रदय व्याकुल हो गया ऐसी स्थिति देखकर मेरा मन रो गया भूखे प्यासे राह नापते बैलों से निकले देख धूप एक बैल आसमां में खो गया बनते बैल अब बारी बारी से आते है कहि घोर घटा तो कहि काली राते है कैसी विपदा ये मालिक दी आज तूने कई रातों से ना नहाते है न ही खाते है यहाँ कोई सुनता नही तू ही सहारा है मार या जिंदा रख अब तू ही हमारा है तेरा आखिर तुझको ही अर्पित हे नाथ ये मतलबी दुनिया ये जग सब तुम्हारा है सरकार अमीजादों को घर पहुँचाया है सदैव तत्पर आपके लिए गुनगुनाया है गरीब मजदूरों की अब कोई सुनता नही हाल बेहाल "श्याम"तुमने आखिर गाया है   परिचय :-  श्याम सिंह बेवजह निवासी : नयावास (दौसा) राजस्थान...
मजदूर
कविता

मजदूर

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं, जनसंख्या का बड़ा भाग मजदूर है, लाकडाउन में भूखे प्यासे सो जाते हैं, अपने घर, गांव, शहर से दूर हैं। चिलचिलाती धूप में नंगे पांव चले, छालों की चिंता किए बिना मजदूर चले, सिर पर गठरी, हाथ में सामान लिए, बच्चों के संग सड़क नापते कोसों दूर चले। कहीं मीनार चढ़े, तो कहीं, मंदिर के नींव में दबे, दर्द सहा गालियां खाई और अपमानभी सहे, पसीने की हर बूंद भी बहा दिया हमने, अभावों में अधनंगे चिथड़ो से तन ढके। जीवन जीने को शहर आए थे, जिंदगी बचाने को घर लौट चले, दर्द की पुकार कोई सुने नहीं, बेबस, दुखी और लाचार हो चले। एक दूजे का हाथ पकड़कर जाएंगे, रोटी के लिए भगवान से भी लड़ जायेंगे, अपनी भुजाओं पर भरोसा है हमको, दो जून की रोटी प्रेम से कमा कर खाएंगे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चलते चलते राह में ठहर गई है जिंदगी कांटा बन के पाव में चुभ गई है जिंदगी। क्या गुप्तगु करे तुझसे ये मेरे दोस्त जुंबा पत्थर की बन गई है जिंदगी। बड़ा आसान है, बोझ को जिस्म पर ढोना, तकलीफ होती है, जब दिल पर बोझ बनती है जिंदगी। कौन अपना कौन गैर समझ मे नही आता आज चेहरा बदल गया उसका कल तक थी जो मेरी जिंदगी। चोट खाई तो यकीन आया ये हर दौर का सच है इंसान को जख्म पे जख्म देती रहती है जिंदगी। तुझे तेरे गुनाहों की सजा मिली है, धैर्यशील खुदा का बनाया कैदखाना है जिंदगी। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी...
आएगा कभी मधुमास नहीं
गीत

आएगा कभी मधुमास नहीं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** मन में यदि कोई आस नहीं आएगा कभी मधुमास नहीं बढ़ सकते पाँव नहीं आगे मन में ही अगर विश्वास नहीं मन में क़ायम उम्मीद रहे संसार तुम्हारा मुरीद रहे जीवन पथ पथरीला हो पर नर होना कभी निराश नहीं कभी धैर्य का दामन मत छोड़ो अपनों से नाता मत तोड़ो अनुचित व उचित का भान रहे मन होगा कभी उदास नही दिल में गर कोई चाह नाहीं दुखियों की कोई परवाह नहीं क्यों दम्भ मनुजता का भरते पर पीड़ा का एहसास नहीं ग़म से क्यों रिश्ता जोड़ लिए मुस्कान से क्यों मुँह मोड़ लिए दस्तक ख़ुशियाँ फिर क्यों देंगी जीवन में हास- विलास नहीं रिश्तों का सदा सम्मान करो दुश्मन का भी मत अपमान करो साहिल तो वही होता सच में करता जो कभी उपहास न . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्याल...
रंग
कविता

रंग

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** रंग वो जो दिखता है, या रंग वो जो चढ़ता है। दिखता तो नीला या लाल, या राधा के गालों पर गिरधर गोपाल। वो होली का गुलाल या साम्प्रदायिकता का काल वो केसरी जो हनुमान का, या रावण के अभिमान का। प्रदर्शन में मांग का, नेताओं के स्वांग का, होली में भांग का। सुहागन की मांग का। भगत सिंह की आजादी का। कसाब की बर्बादी का। खेतों में हरियाली का। तिरंगे में खुशहाली का। मां की ममता का, सैनिक की क्षमता का। मीरा में भक्ति का, राम में शक्ति का। शहरों में दंगों का, गांव में मन चंगों का। रंग वो जो दिखता है या रंग वो जो चढ़ता है। तिरंगे के तीन हैं। सबके अपने दीन हैं। फिर भी सुख दुःख सहते हैं। हम भारत वासी मिलकर रहते हैं।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पं...
चांदी के टुकड़ों पर
कविता

चांदी के टुकड़ों पर

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** ओ चांदी के टुकड़ो पर ईमान बेचने वालों ईमान बचाकर दुनिया मे अब तो जीना अपनालो ईमान मानव जीवन का एक दीप्तिमान ध्रुव तारा हैं ईमान बिना इस मानव का मिथ्या जीवन ही सारा हैं पर हाय भाग्य ही फूट गया पापी बेईमान जानते है जो थोड़ी सी लालच पाने पर अपना ईमान बेचते है जो अल्प रजत टुकड़ो खातिर हत्या करते हैं भाई की उनकी यश कीर्ति सदा बढ़ती पाते इज्जत बहनोई की यह धरा क्षमा न करती थी ईमान बेचने वालों को पर यही धरा अब हाय देती आश्रय बेईमानो को विश्वास नही होता ऐसा सब सह कर चुप रह जायेगी एक दिन बेईमानो को लेकर यह रसा रसातल जाएगी इसलिए सभी मेरे भइया जी लो ईमान बचाकर पाकर इज्जत सम्मान मधुर स्वर्ग बनाओ अपना घर गर इसी तरह मेरे भइया ईमान बेचते जाओगे फिर इस महंगी मानव काया का मूल्य चुका न पाओगे ओ चांदी के टुकड़ो पर ईमान बेचने वालों ईमा...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** औजार हथौड़ा हाथ में ले कर अपनी हाथों पर छाले सजाते। रुखी सुखी खाना खा कर देशवाशियों के भूख मिटाते। सूरज से तपती धरती पर अडिग खड़े कुदाल चलाते। दिनभर अपना खुन जला कर रात को बेसुध नींद समाते। सुर्य तपन,ओलो की मार से उनके हृदय हर दम घबराते। कभी बारिश तो कभी सुखार के चिंता में पुरा वर्ष गुजारते। कभी नीले अम्बर के नीचे फटी चादर ओढ़े सो जाते। ऊँची ऊँची इमारत बना कर अपना धर्म कर्म निभाते। झुग्गी झोपड़ी आशियां उनका दूजे का शीशमहल वो सजाते। सबके घर घर रौशन करके खुद के घर डिबरी वो जलाते। दो जुन की रोटी पा कर बच्चों संग चैन की बंसी बजाते। फसल लहलहाए या सुखा पड़ जाये फिर भी मालिक तक अनाज पहुचाते। शरीर का हिस्सा हिस्सा झोंक परिवार के लिये दिहाड़ी कमाते। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक...
मैं आऊंगा
कविता

मैं आऊंगा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं आऊंगा...... छाएंगे जब बादल, होगा गहन अंधेरा, खोने की पीड़ा होगी बेहद, इंतजार "तुमको" होगा "मेरा" मैं आऊंगा..... बादल बनकर बरसुगां, सुखी बंजर धरती पर, प्रेम की फौव्हार बरसा कर, शीतल करने तेरा मन, मैं आऊंगा...... तारे चमकेंगे अंबर में, श्वेत चांदनी बिखरेगी, तुम बन जाना चांदनी मेरी, मैं चांद तेरा बन जाऊंगा, मैं आऊंगा..... शाम ढलेगी ज्वाला जलेगी, हुक उठेगी अरमानों की, अपना प्यार लुटाने तुझ पर, तेरी प्यास मिटाने, मैं आऊंगा.... कसम से..... मैं आऊंगा.... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी ...
जीवन और परिवार
कविता

जीवन और परिवार

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जीवन को समृद्ध करने के लिए, जब परिवारिक इकाई, समाज ने बनाई। फिर क्यों ........??? आज के परिवेश में, घर बना कर, परिवार बनाकर। जिंदगी बस, अपने-अपने, कमरे तक ही समाई।। जबकि जिंदगी को, समृद्ध करने के लिए, जब हम और आपने, परिवारिक इकाई, समाज के विकास के लिए बनाई। क्यों हमने ......सोचा नहीं। हर आने वाली, पीढ़ी पर ही, गलती-दर-गलती ठहराई। परिवार तो बना लिए, लेकिन एक-दूसरे के सम्मान पर, जब सवाल ही उठा दिए। कुछ ने अपने फायदा के लिए, परिवार में, राजनीतिक दल बना लिए। एक छत के नीचे, एक- दूसरे से मुंह-चिढ़ा रहे। शायद आज........ इसलिए वक्त ने सब के, मुंह पर मास्क चढ़ा दिए।। जिंदगी इतनी बिखरी, ना घर -घर के, न घाट के रहे। अब भी वक्त है ....…!!!!!!!! संभल जाएं। घर जीवन की इकाई है। खुशियों के साथ, मुस्करा कर, इसे अपनाएं। घर -परिवार नाम के नहीं। इ...
व्यथा
कविता

व्यथा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** व्यथा उन शिल्पियों की जिनके खून पसीने से सिंचित है। माँ भारती का कण कण निःठुर है यह कोरोना काल। रो रो कर बेहाल है यह लाल छोटे छोटे बच्चे अबला नारी। निकल रहे है टोली में करवा बनता जा रहा है। रास्तो पर दम तोड़ते भी जा रहे है घटनाओ,दुर्घटनाओं में। न पॉकेट में है पैसा न खाने को कुछ है। अब रो रहा है यह कलम का सिपाही भी । हाय यह कैसी विवस्ता है दुखो की अंत हीन दास्ता है। यह हमारी व्यवस्थाओं पर एक भयानक प्रहार है। समझना होगा उन नियंताओ को जो सत्ता के शिखर पर है। अपने प्रदेश के मृत उद्योगों को पुनरः जीवित करना होगा। माँ भारती के इस लाल के पलायन को अब रोकना होगा। एक नया रोजगार परक नियम बनाना होगा। उधोग धंधो का जाल फैलाना होगा। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंद...
जीवन का हर एक लम्हा
कविता

जीवन का हर एक लम्हा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जीवन का हर एक लम्हा, दूर कितना इतना तनहा। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। दूर कुहुकती कोयल का स्वर, घावों को तो सहलाता। पर हौले से रिसता अम्बर, जाने क्या बूँदों से कह जाता। और छलक उठती हैं आँखें, अक्स बिखर जाता दरपन का। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। सब यादें सीने में हैं चुप, मत उनको आवाज़ लगाओ। खुश हूँ अपनी खामोशी में, रह रह मत नूपुर खनकाओ। अब सुनता और बुनता हूँ, संगीत उदासी की धड़कन का। निष्ठा से प्रेम समर्पण का, खुशियों से अपनी अनबन का। जीवन का हर एक लम्हा, दूर कितना इतना तनहा। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही...
चल गम को कहीं छोड़ आते हैं
कविता

चल गम को कहीं छोड़ आते हैं

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड लाते हैं। जो हो गया उसे भूल जाते हैं, चल फिर एक नई उम्मीद जगाते हैं। तू भटक गया था अपनी मंजिल से, चल उस मंजिल पर वापस जाते हैं चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड लाते हैं। तेरी तकदीर तेरे हाथों में है, चल अपनी तकदीर की लकीरे अपने आप लगाते हैं। चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड़ लाते हैं। . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक...
मुक्ति शब्द
मुक्तक

मुक्ति शब्द

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
तुझसे बेहतर पाया
कविता

तुझसे बेहतर पाया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** अब है तुझसे कोई आस नही तेरे खातिर व्रत-उपवास नही! कड़वाहट भर दी तूने रिश्ते में पहले जैसी रही मिठास नही! स्वयं से ज्यादा तुझको चाहा, था तुझसा कोई भी खास नही! सच कहता था सच कहता हूँ, मैं करता कभी बकवास नही! कब क्यूँ किसको खोया है तुमने, शायद तुझे अभी आभास नहीं! मिला सबक तुझसे, मुझे अच्छा, धोखा गैर ही देते हैं खास नही! खोके तुझे तुझसे बेहतर पाया हूँ, है तुझको शायद एहसास नही!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी...
लॉकडाउन
कविता

लॉकडाउन

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=v4wPeqvbsdw   लॉकडाउन लॉकडॉउन शहरवासियों लगा है लॉक डाउन सावधान सावधान देशवासियों हो जाओ लॉक डाउन हल्के में ना कोरोना को लो शहरवासियों घर से ना निकलो बेफिकर रायपुर वासियों एक एक से होके ये सबको करता है बीमार सावधान .... मुंह पे लगाके मास्क बाहर निकलना है साबुन से हाथ बार बार हमको धोना है संकट की घड़ी टालने अब हो जाओ तैयार सावधान ... एक चीन ही क्या काम था दुश्मनी भंजाने को ऊपर से ये जमाती हैं पीड़ित बढाने को। इंसानियत को भूल के बैठा है ये इंसान सावधान .... छतीसगढ में मातम ज्यादा नहीं हुआ औरों की अपेक्षा हमने कम ही है खोया तो क्यूं निकल के जिंदगी को कर रहे बर्बाद सावधान .... छत्तीसगढ़ तो किस्मत से था बड़ा धनी भूपेश जी के जैसा पाया मुख्यमंत्री महामारी के खिलाफ किया जंग ए एलान सावधान साव...
कहती है धरती सुनो
कविता

कहती है धरती सुनो

डॉ. भवानी प्रधान रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** कहती है धरती सुनो बहुत कुछ बदल दिया घर बंदी ने प्रकृति के रंग निखर आये पेड़ों के पत्तों का रंग भी कुछ ज्यादा ही गहरा हुआ फूलों की रौनक बढ़ गई शुद्ध हो गई हवा भी सदियों बाद आसमान का नीलापन निखर आया बढ़ गई तारों की चमक चाँद भी मुस्कुराने लगा कहती है धरती सुनो वर्षों बाद शहरों में कोयल की कुक सुनाई दे रही कहीं हंसों के जोड़े लौट आये सड़कों पर कहीं हिरणों के झुंड दिख रहे पर्यावरण ने स्वच्छता शुद्धता का रंग ओढ़ लिया निर्मल हुईं नदियाँ मुस्कुराते बह रहीं घाट किनारे अठखेलियाँ करती मछलीयाँ दिख रही कहती है धरती सुनो जंगल हो या समुन्दर सहज रूप को जाना यह सुन्दर सुखद बदलाव सहअस्तित्व का दे रही सीख हमें . परिचय :- डॉ. भवानी प्रधान जन्म : २४ फरवरी महासमुंद (छ.ग.) पिता : श्री गौतम भोई माता : श्रीमती बिलासिनी भोई पति : श्री शेषदेव प्रधा...
आसारे क़यामत
कविता

आसारे क़यामत

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** जुल्म बढ़ेगा ईमान में ख़यानत आएगी, तभी तो दुनिया में कयामत आएगी। जुबानों में कड़वाहट लहजों में सख्ती, बेईमानों में बहुत दिखावत आएगी। खुशियों के दीप बुझाने वाले पैदा होंगे, पढ़े-लिखो में भी ज़हालत आएगी। जो रब खफा होगा तो बदलेगी सूरत, खामोश लहजों में भी बगावत आएगी। जुल्म बढ़ेगा, गरीबों, बेजुबानों पर, इन्सानों के लहजे में अदावत आएगी। सरियत से बेहतर, है नहीं कानून कोई, रस्ते में मेरे हर रोज सियासत आएगी। कांटे भी चुभते हैं अक्सर गुलाबों को, कातिल बना के बीच में अदालत आएगी। शाहरुख़ दागदार है गिरेबा अपना भी, शर्मसार होगी इंसानियत ऐसी दिखावत आएगी। . परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
नर्स
कविता

नर्स

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** वर्षो से देखा सबने, सुदंर सफेद परिधानों से सज्जित, सदा अपने अधरो पर लिये, मधुर मुस्कान, वो तरूणाई । सदा सेवाओ में तत्पर रहती, जो किसी ने आवाज लगाई। सीस्टर कहा किसी ने, तो कहा किसी ने नर्स, कोई कहता नर्स बाई, वात्सल्य, सेवा, त्याग की, मूरत, सदा करती हैं सब कि भलाई। जो रक्त देख के रहे निडर, जन्म, मृत्यु देख न कभी हो घबराई। मां सी ममता उड़ेल, जन्म से, रोते बच्चों की बन जाती आई। मन, मे प्रेम, कोमलता, दया के, भाव लिये सदा ही वो मुस्कुराई। प्रेम दिया किसी ने तो किसी ने, उसका कही अपमान भी किया। पर अपनी सेवा में कोई कमी न रख, हर मरीज को ठीक कर, मुस्कुराई हर मरीज के मर्ज से रिश्ता जोड़, वो मीठे से सुईया चुभाती हैं। कभी प्यार से तो कभी डांट के, वो कड़वी दवा भी खिलाती हैं। जिसका दिल है दयावान, सेवा भाव से सदा सबकी सेवा करती आई है, अपने दर्द को...