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पद्य

सम्हल जाइये
कविता

सम्हल जाइये

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वक्त बड़ा नाजुक है यार, सम्हल जाइये, बेदाग दामन को बचाके, निकल जाइये! कदम-कदम पर ठगी मिलेंगे दुनिया में उनकी मोहक अदा पे ना फिसल जाइये! जो खेला करते हैं किसी के जज्बातों से उनके लिए यूँ मोम सा ना, पिघल जाइये! ना जाने किस घड़ी बुझे जीवन का दीप छोटी-छोटी बातों पर ही ना उबल जाइये! सच्चाई का वजूद मिटता नही मिटाने से इसलिए झूठ के प्यालो में ना ढल जाइये दम घुटने लगा है गीत, ग़ज़लों का दोस्तों यूँ चुटकुले सुन-सुनाकर ना बहल जाइये!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
स्वप्न सुनहरे
कविता

स्वप्न सुनहरे

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** हर ढाल बनकर जो खड़े हैं अपनें-परायों से लड़े हैं। विश्वास बनूंगी मैं उनका इतिहास रचूंगी इस युग का।। इक तड़ित सा तेज़ बनकर माता पिता का ओज बनकर। पर्वतों के जैसे तनकर, उनके जैसे ही मैं थमकर।। जाग जाऊं सुबह बनकर शांत हो जाऊं निखरकर। क्रांति लाऊंगी जो अब मैं अपने जीवन के सफ़र में।। रोशन हो जाऊं कहर में जीत जाऊं हर लहर में। रोशन होकर जगमगाऊ, इक नई सुबहो जगाऊं।। . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बचपन
कविता

बचपन

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** क्या बचपन का जमाना था ना अपना, ना पता क्या सुहाना था भागते कभी तितली के पीछे कभी उड़ाते, छत पर पतंग। कभी झूलते सावन के झूले कभी रिमझिम वर्षा में नहाते, बना कागज की नाव बहाते रख पैर रेत में घर बनाते। कोई तोड़ता कट्टी क़र जाते मन था निर्मल गंगा समान, फिर से हप्पा क़र जाते था तनाव रहित जीवन। बदला समय, जीने का ढंग जन्म लेता आज बच्चा, समय बाद ए बी सी डी करने लगता, लाद भारी बस्ता स्कूल जाता दादी-नानी से कहानी सुनता बचपन। देख जिन्हें दिल खिल जाता भंवरों की तरह मचल जाता, बड़ों की तरह बात करता बचपन कुछ का बचपन सड़क पर सोता स्कूल का सपना चाँद का सपना हर चीज में दो समय की रोटी दिखती कहीं छोटी-छोटी टोकरी में नींबू धनिया बेचता बचपन। क्यूँ होता अपहरण क्यों चौराहे पर फैला हथेली खड़ा बचपन। कहाँ खो गया वो मासूम सहज सरल बचपन, कहाँ खो गया देखते-देखते वो गु...
कोरोना वियोग
कविता

कोरोना वियोग

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** हम इधर है और वो उधर है, कोरोना के कारण मिलन दूभर है ....!! करे तो करे भी क्या इस लॉक डाउन में, वियोग इधर है तो इंतजार उधर है ...!! दोनों और पलता है प्रेम, इस घोर विकट घड़ी में अथाह ... ...!! मन मे मिलन की है पराकाष्ठा, पर संक्रमण काल मेअधूरी है चाह . .!! लॉक डाउन बाद खुलेगी शायद, मिलन की कोइ न कोई राह .. ....!! होगी नजरे इनायत भी और, उमड़ेगा पारावार प्रेम का अथाह . ...!! होंगें फिर प्यासे दिलो के, गिले-शिकवा भी दूर सभी ........!! खाएंगे कसमे की, विकट हालातों में, फिर रहेंगे न दूर कभी .............!!! हाँ मितवा रहेंगे न दूर कभी .....!!! . परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच ...
नव भोर की ओर
कविता

नव भोर की ओर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चमक रहा वो, देख! शीर्ष, हैं ज्योत्सना मुसकाई, महक रहा हैं धीर मेघपुष्प, चल वैतरणी पार लगाई... मचल उठा मन मयूर सा, नयन निहारें, विहंगम दृश्य, वारिधर भी रहे मचल हैं, थिरके अर्श, अंशु अदृश्य... मस्ती में झुमें हैं, तरुध्वज, जल-थल चर, विहंग सारे झुम रही सँग, मंद समीरण, तृण, टीप "निर्मल" पे वारे ... बिखर रही, रौशनी राहों में, नई उमंगें सँग भर बाहों में, तज तिमिर, बन नई चमक, जा निकल सँग नई राहो में उपमाएँ : शीर्ष-आसमा/ज्योत्सना-चाँदनी/धीर-शांत/मेघपुष्प-जीवन,जल/वैतरणी-ब्रह्म नदी/वारिधर-मेघ/अर्श-नभ/अंशु-किरण/तरुध्वज-ताड़,वृक्ष/चर-प्राणी विहंग -पँछी/समीरण-वायु/तृण,टीप-घास से शाख तक परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौ...
महँगाई की मार
कविता

महँगाई की मार

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** महँगाई की मार है, पैसा है तो कार हैं। करते सब इनकार हैं, महँगाई की मार है।। आलू हूआ बीमार गोभी को आया बूखार। पालक ने सीना ताना, तोरी ने रूख अपनाया सख्त। बोलो महँगाई की------------।। शक्कर बोली दाल से बहिन क्या हैं, हाल! दाल बोली आज-कल तो दाल ही दाल, ऐसा मेरा हाल।। बोलो महँगाई की ----------।। क्योंकि तेल चढा पहाड़ है, चावल का बंटाधार। गेहूँ थोड़ा उदास हैं, देखो ऐसा वार है।। बोलो महँगाई की --------।। गाँव-गल्ली और नुक्कड़ में, शहरों के चोराहो में। भरे हुए बाजारो में, आज के ये हाल हैं।। बोलो महँगाई की --------।। न चाल हैं, न ढाल हैं, लोग बिचारे बेहाल हैं। अंगूरों की देखभाल है, चीकू- संतर 'आम 'हैं।। बोलो महँगाई की -------।। क्योंकि 'घी' आपे के बाहर हैं, कोने में बैठा अनार हैं। देखो ऐसा वार है। बोलो महँगाई की ---------।।...
शौर्य गाथा
कविता

शौर्य गाथा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वीर रस भगवा रक्त बहे इस तन में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। वीर शिवाजी सा रणकौशल राणा सा वो भाल दो। चेतक सा बल शौर्य मुझे दो गुरु गोविंद सिंह: कृपाण दो श्री रामकृष्ण जी परमहँस सा मुझको हृदय विशाल दो। रौद्र रुप धर सँकु युद्ध में वह देह मुझे विक्राल दो।। मंगल पाण्डे सा बल दो माँ डटा रहूँ रणभूमी में। भगत सिह: सा साहस दो माँ हँस कर झूलुं सूली में।। दो शक्ति आज़ाद सी मुझको मात्र भूमी पर मिट जाऊँ। संत विवेकानंद बनु तन भूमि माथ लिपट जाऊँ।। मर - कर फ़िर जनमु भारत में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजि...
तूने गजब कर डाला
कविता

तूने गजब कर डाला

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** वाह रे, कोरोना ! तूने तो गजब कर डाला, छोटी सोच और अहंकार को, तूने चूर-चूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... पैसो से खरीदने चले थे दुनिया, ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में, तूने तो पैसो को भी, धूल-धूल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन, लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी, तूने एक झटके में सारा जहां, सुनसान कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... दिहाड़ी करने वाले मजदूर, खेत पर काम करते गरीब किसान, तूने तो इनको बिल्कुल, कंगाल कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में, गरीबों को अपने घर आने के खातिर, कोसों पैदल चलने को, मजबूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना ! ...... लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस, देखो ! सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर, हम सब लोगों का, विचार बदल डाला।। वाह ...
गृहणि
कविता

गृहणि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बढ़ गया है बोझ उस पर देहरी पर जो खींच दी है लक्ष्मण रेखा। घर के भीतर कोई नही आता घर के भीतर कोई नही जाता उसे ही रखना है सारे काम का लेखा जोखा। घर का फर्श, फर्नीचर जब चमक उठते है। आवाज़ देते है किचन में रखे बर्तन। बर्तनों की चीख पुकार बंद होते ही। वाशिंग मशीन में कैद कपड़े फुसफुसाने लगते है। कर उनकी धुलाई टंग जाते है वे रस्सियों पर करते है हवा से अठखेलियाँ एक गहरी सांस खींच भी पाती है की। गमले में उगा मोगरा, गुलाब, निशिगन्ध उसे याचक की नज़रों से देखते है। दे कर पानी गमलों में जैसे ही पोछती है वो स्वेद कण जो दव बिंदुओं के समान उसके माथे पर मोतियों से उभर आए है। तभी उसके कानों में पड़ती है मेरी आवाज कुछ तो काम किया करो मुझे अभी तक चाय नही मिली। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
दीवाना दिल
कविता

दीवाना दिल

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ये दीवाना दिल अब मेरी सुनता कहां है, मेरी धड़कनों में जो धड़क रहा है। तनहा सफर मेरा अब गुजरता कहां है, यादों में तेरी अब तड़प रहा है। जिस्म से जान निकल जाएगी कहां है, बता इसमें मेरी खता कहां है। चांद आज पूर्णिमा का निकला है शायद, या छत पर किसी की उतर गया है। तेरे बिना अब वक्त कटता कहां है, दर्दे ए दिल अब बढ़ता जा रहा है। मचलते सागर में उफान आ गया है, जो लहरों की दीवानगी बढ़ा रहा है। हर शाम पर अब चांद ढलता नहीं है, ये दीवाना दिल अब मेरी सुनता कहां है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, ...
मजदूरिन
कविता

मजदूरिन

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** जिधर देखो उधर नववर्ष की धूम है, फिर भी कुछ लोग उदास व गुमसुम हैं। पुराने वर्श को विदा करने की नहीं आतुरता, केवल कुछ रूपए पाने की है उत्सुकता। हम ठंड से ठिठुर रहे थे जहाँ, वहीं वह श्रम बिंदुओं से रत थी। उसे नए-पुराने वर्ष का गम न हर्ष था, वह तो अधिकाधिक ईंटें ढोने में व्यस्त थी। दो जून की रोटी की चिंता जितनी कल थी, उतनी ही उसे आज और शायद कल भी होगी। पर उसके मैले आँचल में कभी तुम, कुछ रूपए यूँ ही रख मत देना। उसकी आँखों में असीम दुख के अश्रु देख, कहीं तुम भी संग उसके भावुक हो रो मत देना। न ही उसकी गरीबी पर तरस खाकर, तुम भिक्षा देने की भूल ही करना। वह जीवन से लड़ना जानती है, उसको कभी निर्बल न समझना। वह नन्हें शिशु को नौ माह पेट में, और डेढ़ साल पीठ पर रखती है। वह भरी दोपहरी में सूर्य की ताप, और सदिर्यों में शीत लहर को झेलती है। जब उसका प...
कुछ ऐसा करो न
कविता

कुछ ऐसा करो न

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जहाँ करोना फैल रहा, क्षेत्र वहाँ का सील करो। हटकर नई योजना हो...और नहीं अधीर करो। खोल दुकानें दो सारी, दूरी ज़्यादा से ज्यादा हो चालू हों उद्योग, कमसे कम आधा तो फ़ायदा हो। चंद रईशो की संपत्ति से देश नहीं चल पायेगा। बंद हुए व्यापार सभी, तोकैसे हल मिल पायेगा? वेतन, बिजली, टैक्स आदि, बहुत ज़रूरी होते हैं। कुछ लोग आपदा में भी तो बहुत गरूरी होते हैं। खण्ड-खण्ड भागों में, अब कर्फ़्यू सख़्त लगा दो। जहाँ न फैले कोरोना.....उस जगह छूट दिला दो। मजदूरों से कहो की, वो सब कार्य करें कारखानों में। घर नहीं जायें तीन महीने, रहें वो उन्हीं ठिकानों में। दो मीटर की दूरी हो, अनुशासन कड़ा दिखाना है। बीमारी भी दूर रहे, और मिलकर हाथ बटाना है। जामाती की जेल बनाओ, नित्य पिटाई होती हो। जो-जो अकड़ दिखाए उसकी खूब सुताई होती हो। खुली छूट सेना को दे दो, सील इलाके...
मरना अचल-अटल है
ग़ज़ल

मरना अचल-अटल है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जग में कोरोना के डर से ऐसा अदल-बदल है! सड़कों पर सन्नाटा पसरा घर में चहल-पहल है! अब सतर्क हो गया आदमी साये से भी डरता, अपने ही घर-आँगन में अब चलता संभल-संभल है! क़ुर्बत गुमसुम आज हुई दूरी ने जश्न मनाया, तीन-तीन फुट का अन्तर अब सबके अगल-बगल है! औरत हो या मर्द सभी के चेहरों पर है पर्दा, नज़र-नज़र दर्शन को तरसे हसरत विकल-विकल है! 'रशीद' कोरोना है कारण जाना एक दिवस है, जब तक जीवित रहें सुरक्षित, मरना अचल-अटल है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन औ...
जनता जनार्दन
कविता

जनता जनार्दन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** झूठ के पीठ लदे "सत्यमेव जयते" की लाशें आंखों पर पट्टी बंधी कानून के लाशघर के फ्रीजर में बंद है जरूरत के मुताबिक जिसका किया जाता है पंचनामा, कभी-कभी चीरघर में उसका पोस्टमार्टम होता है इसके बाद मरघट में शुरू होता है लाशों का धर्मिय बहस की इसे जलाया या दफनाया जाय, इधर इंसानियत ओढने की नुमाइशे जोरो पर चलती है इस ताक में बैठे कुछ जन विरोधी प्यादे भी बहती गंगा में धो लेते हैं हाथ इस मौके की ताक में बैठे कुछ लोग अपने को इश्वर होने की घोषणा कर देते हैं, हर तरफ इस अवसरवादी कानफोड़ू शोरगुल में अंदर की सच्चाई कब दफ्न हो जाती है उसका अहसास भी नहीं कर पाती जनता जनार्दन। . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्...
उदर
कविता

उदर

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** मनुष्य यूं दर-बदर नहीं होता तन संग अगर उदर नहीं होता मछली को भी पानी ना मिलता अगर खारा, समंदर नहीं होता बांट देती है सबको चार-दीवारी दीवार बिन कोई अंदर नहीं होता गर कोई लिखता नहीं इतिहास याद कोई, सिकन्दर नहीं होता नशा न होता दौलत का जग में विद्वानों का अनादर नहीं होता छोटे-बड़े कर लेना पैर 'परिंदा' पैर के अनुसार चादर नहीं होता परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने...
प्रेम इबादत है पूजा है
गीत

प्रेम इबादत है पूजा है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** प्रेम लोक परलोक सुधारे, मेरा तो अनुमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम को जिसने भी पहिचाना, उसने सबको अपना माना। रब का रूप देखकर सबमें, सबको सेवा लायक जाना।। तम में कर देता उजियारा, लासानी दिनमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम नाव, पतवार बना है , प्रेम स्वर्ग का द्वार बना है । सुख सम्पत्ति की रक्षा के हित, ये ही पहरेदार बना है।। नग्न बदन को ढकने वाला, सदियों से परिधान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्त यही भगवान यही है ।। प्रेम बगावत करने वाला, प्रेम का विष भी अमृत प्याला। सोच समझ का काम नहीं ये, करताहै इसको दिलवाला।। विश्वासो का निर्झर है ये, कहते सब धनवान यही है। प्रेम इबादत है, पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम राह है प्रेम आस है, प्रेम तबाही में उजास है। प...
जुदा कौन करेगा
कविता

जुदा कौन करेगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हकदार बहुत हैं तेरे पर सच्चा हक अदा कौन करेगा महफ़िलो में खोए होंगे सब, तब याद सदा कौन करेगा! जान-जान कहने वाले, बेजान मिलेंगे आशिक बहुतेरे, जरूरत पड़ने पर सोचो, तुमपे जान फिदा कौन करेगा! साथ तुम्हारे गुजर रहे जो वो पल अनमोल ख़ज़ाने मेरे हम दोनों एक बनेंगे तब फिर बोलो जुदा कौन करेगा! जो भी हों मसले बड़े सब बेहिचक कहा करो मुझसे, यदि तुम ही खामोश रही तब सोचो निदा कौन करेगा! तेरे हुस्न की हरारत से ही, मेरी धड़कनें हरकत में हैं, इतने प्यारे महबूब को बताओ, अलबिदा कौन करेगा!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
ज़ख्म
हिन्दी शायरी

ज़ख्म

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** ज़ख्म सबके बराबर हैं, तेरे हों या मेरे हों, रेशमी ताकत भी यहां, मजबूर है बताना चाहती थी। चारों तरफ खोफ़ है,सन्नाटा है पर, यकीनन बिखरे हुए पत्तों को जोड़ना चाहती थी। मां आसुओं की पहचान रखती है, दो दिन पहले भी बहे हों तो जान लेती है। वही है जो जिंदगी के हर दर्द जानती है। हर रिश्ते तराशने के गुर जानती है। कोई दौलतमंद नहीं है, और न कोई रंक है। सब सिकंदर हैं यहां वो ये बताना चाहती थी।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी ...
मीरा
कविता

मीरा

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** वो छोटी सी मीरा, वो न्यारी सी मीरा जग की दुलारी, माँ की प्यारी सी मीरा! वंशीधर के प्रीत में उलझी सी मीरा जीवन के रहस्यों से सुलझी सी मीरा! सत्य पथ से कभी ना भागी थी मीरा विघ्नों में भी धैर्य ना त्यागी थी मीरा! बेरहम वक़्त की ठेस, सहती थी मीरा रोती भले पर ना कुछ कहती थी मीरा! ना मिले मोहन तो स्वयं छल गई मीरा कृष्ण भक्ति में ही देखो ढल गई मीरा! हंसकर हलाहल विषों का, पी गई मीरा राणा ने ढाए जुल्म फिर भी जी गई मीरा! निज उर की वेदना भी छिपाती थी मीरा आठो पहर कान्हा-कान्हा गाती थी मीरा! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
दर्द ही जीत की जननी
कविता

दर्द ही जीत की जननी

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** दर्द एक दुआ है दर्द एक ऐलान है दर्द दिल की छ्वी दर्द से ही दुनिया पनपती है जब दुनिया में एक बच्चा जन्म लेता है वो रोता है कराहता है चिल्लात्ता है दर्द का अनुभव उसे महसूसता है आहिस्ता-आहिस्ता वो चैन का सास भी अपनाता है माँ के दर्द की दुआ है वो कटपुतली सौ गुना ऊर्जा जो उसे खुदा ने दी थी वो देकर, सहकर दर्द के साथ वो अपने लाडले को जन्म देती है बेहद खुशी से उसे टटोलता है॥ आदमी की शुरुवात भी दर्द से आदमी की पहचान भी दर्द से साया जैसे उनके साथ चलते-चलते दर्द के साथ उन्हें मिट्टी से मिला देती हैं काश दुनिया में दर्द न होते तो कितना सूना लगेगा हमारी ज़िन्दगी दर्द से खुशी का मतलब हम समझते दर्द से ही किसी की राहें बनती है दर्द से ललकारें बनते है दर्द से ही आज़ादी का मंत्र निकालता है दर्द से ही कोई आशिक बनता है इसी से ही दुनिया में आशिकी पनप...
चौखट पर बैठी मेरी माँ
कविता

चौखट पर बैठी मेरी माँ

कृष्ण शर्मा सीहोर म.प्र. ******************** चौखट पर बैठी मेरी माँ कर रही है इंतजार मेरा, बॉर्डर से आये उसका बेटा, यही सोच के रास्ते निहार रही माँ। कॉटन की साड़ी लाऊंगा तेरे लिए माँ यही कहकर निकला था घर से, सब लोगो से यही बोल बोल कर, खुश हो रही है मेरी माँ। चौखट पर बैठी मेरी माँ। लायेगा इमारती, जलेबी मीठे में, खिलायेगा वो अपनों हाथो से, उसी मीठे की आश में, चौखट पर बैठी ही मेरी माँ। रातो में बार-बार उठ बैठ जाती है, किबाड़ की आहट सुनते ही, खोलकर देखती हे किबाड़ फिर से, दुःख में जाकर फिर लेट जाती है माँ। चौखट पर बैठी मेरी माँ। एक बहु भी लायेगा केहता था वो, बहु की नज़र उतरने के लिए, आश में आज भी बैठी है मेरी माँ। बापू से कहता था जीत लाऊंगा मैडल सारे सजा लेना छाती पर तुम, गर्व से करना मेरी बातें, हर सपना पूरा कर जाऊंगा। इन सपनो के सपने लिए आज भी चौखट पर बैठी है मेरी माँ। . ...
बाँटो विश्व प्रेम
कविता

बाँटो विश्व प्रेम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** इतना बाँटो प्यार, प्यार मे सारा जीवन लय हो। आज घृणा की नहीं देश मे विश्व प्रेम की जय हो। बिना प्यार प्यासा हर पनघट, नयन नयन मे आज उदासी। आंगन आंगन मे सूनापन प्यार हुआ जब से सन्यासी। रुठ गया सुख चैन दिलो का, यह दुनिया शमशान हो गई। एक प्यार की वर्षा के बिन, सब धरती वीरान हो गई। कटुता रहे न शेष कहीं भी इतना तो निश्चय हो। आज घृणा की .... जाने क्या तूफान आ गया आज सभी मे स्वार्थ समाया। कुछ ऐसा ठहराव आ गया, अपना ही हो गया पराया। दुखियों की सेवा में तेरा, दया भाव अक्षय हो। विश्व प्रेम की जय हो। मानव का कल्याण करों यदि मानव का जन्म पाया। मानवता का मान घटाया, उसनें जीवन व्यर्थ गँवाया अभी भूल मान कर बंदे, आज हर्द्रय मे पीर जगाओं। जितना जग पीड़ित है उससे बढ़कर प्यार लुटाओं। हर दिल प्यार भरा हो, अब तो हर दिल ममता मय हो। आज घृणा की नहीं देश में विश्व...
परिंदा हूँ मैं
कविता

परिंदा हूँ मैं

विजय पाण्डेय महूँ जिला इंदौर ******************** रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नही। वक्त का मारा, परिंदा हूँ मैं। उड़ना भी चाहूँ मैं , उड़ पाता नहीं। जिंदगी के रन्ज गम, सह पाता नहीं। रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। गैरों के घर मेरा, आशियाना बना हैं। कब टूट जाए ये, मैं जताता नहीं। जो खुद ही तपन में, जलता रहा हैं। वो और का आशिया जलाता नहीं रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। धर्म भी कोई मैं, निभाता नहीं। मैं आरति बंदन, गाता नही। मैं मन्दिर,मस्जिद, बताता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। . परिचय :- विजय पाण्डेय पिता- श्री रामलखन पाण्डेय माता- मानवती पाण्डेय जन्म तारीख : १६/०६/१९८४ जन्म स्थान : लदबद बाणसागर शहडोल, मध्यप्रदेश वर्तमान निवास : महूगाँव महू जिला इंदौर शिक्षा : बी.ए व्यवसाय : नौकरी लयुगांग इंडिया पीथमपुर आप भी अपनी कविताए...
विश्व-वेदना
कविता

विश्व-वेदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फैल गई है पूरे विश्व मे कोरोना वायरस महामारी। क्षण क्षण पल पल कोहराम मची है महाविनाश की आहट भारी मानवता खतरे में है यह वायरस है अति प्रलयंकारी ज्ञान विज्ञान में जो चढे बढे है उनकी भी नही चलती होशियारी। फैल चुकी है पूरे विश्व मे कोरोना वायरस महामारी छुआछूत से फैल रही है मानवता पर यह संकट भारी चीन राष्ट्र की कुचक्र चाल से सिसक रही मानवता सारी राष्ट्र धर्म पुकार रही है यह समय अति है विस्यमकारी विश्व गुरु फिर राष्ट्र बनेगा जन जन का उद्धार करेगा अध्यात्म योग संबल बनेगा सत्य सनातन फिर उभरेगा मानवता का दर्द मिटेगा फिर से सुख शांति बढ़ेगा वायरस का अब अन्त निकट है वह छन आयगा मंगलकारी . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा ...
स्याणे री पिलसण
आंचलिक बोली

स्याणे री पिलसण

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** देखि के न्याणेयां शोर मचाया, बोले ! डाकिया आया-डाकिया आया। स्याणे सोचेया .... जरूर मेरी पिलसण ल्याया, डाकिये चिट्ठी हाथ्थो थमाई, स्याणे रे पोपल़े मुंए रौणक आई। बोल्या, सुकर आ, मेरी पिलसण आई, डाकिये ने समज्याया....बाबा ! चिट्ठी बंको री.... आज्जां तेरी पिलसल नी आई। सुणि के स्याणी,बऊ, पाऊ, स्याणे रे बक्खो गए आई। बऊए चिट्ठी पड़ी के सुणाई.... बोली --बंको ते करिसी कारड, तिन्न लख लौन आ लऊरा। ना मूल़ ना ब्याज ...चार साल ते एक्क बी पैसा नींयां टाउरा। ऐते करिके लीगल नोटस आ आउरा, सुणि के स्याणे रा सिर चकराया, बोल्या--देखो लोको ! ल्वादा री करतूत, सारे पैसे नसेयां च फुक्कै, तेबेई करजे रा सिरो परो चड़ेया पूत। लाम्बा साअ लेई स्याणा ग्लाया,,,,, मैं सोचेया बुढ़ापा पिलसण आई, पर ये थी नलैक पाऊए री कमाई।। परिचय :-...