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पद्य

दूरिया : तुम्हारी फिक्र होती  हैं
कविता

दूरिया : तुम्हारी फिक्र होती हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं दूरी चंद कदमों की, हवा का रुख सहमा हैं, जी लू मन भर संग तेरे, फिज़ाओ में जहर सा है... तबियत अब नही लगती, महकते इन नजारों संग, छू पाये ना कोई साया, अजब कैसी बेबसी हैं... सुहानी भोर की मधुरता, अब तो रास नहीं आती सरेशाम हैं सिमट जाते, तुम्हारी फिक्र होती हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) की...
खुश्बू में डूब जाना
कविता

खुश्बू में डूब जाना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** खुश्बू में डूब जाना तो बस एक बहाना होगा, दरअसल खुश्बू से तर वो मेरा तराना होगा। मत करो यकीन भले आज मेरी बातों का, कल हाथ मेरे नूर से लबरेज़ पैमाना होगा। शाम के ढलते ही बज़्म शमा की चहकेगी, क्या वहाँ का हश्र हमें रोज़ सुनाना होगा। यूँ तो मैंने रोज़ ही दिल से पुकारा है तुम्हें, सुन लो यदि आवाज़ फिर तुम्हें आना होगा। नाशाद ज़िन्दगी में ये गुमाँ है अभी बाकी, निकलेगी वहाँ जान जो कूचा ए जानाँ होगा। मैं तो रह गया फ़क़त अश्कों का रहगुज़र, लेकिन तुम्हें हर हाल में मुस्कुराना होगा। दर्दों,ग़मों का नाम ही है ज़िन्दगी 'विवेक', इसलिये जिगर में अब दर्दों को बसाना होगा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ...
कालिनेम के वेष में
कविता

कालिनेम के वेष में

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** राजनीति इस कदर हो गई क्षुद्र हमारे देश में हर पल ही विष घोल रहे हैं मानवीय परिवेश में जाति पाँति मज़हब भाषा हथियार बनाया जाते हैं विषधर के भी विष से घातक विष रहता संदेश में बुद्धिहीन भेंडों जैसे कुछ लोग यहाँ पर दिखते हैं हाँक रहे चालाक गड़ेरिया शुभ चिंतक के भेष में गुजरे कितने साल साथ में फिर भी मन में दूरी है देश हो गया ग़ौण आज भी रुचि है वर्ग विशेष में मुट्ठी भर ताक़त वालों का संसाधन पर क़ब्ज़ा है आम आदमी शोषित वंचित काट रहा दिन क्लेश में बापू का दिल रोता होगा देख सियासी चालों को हत्या लूट डकैती निसदिन राम कृष्ण के देश में दुर्योधन हिरणाकश्यप रावण भी पीछे छूट गये टहल रहे साहिल है अगणित कालिनेम के वेष में . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी ...
कलयुग
कविता

कलयुग

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** जब जन्मे थे धरती पर हम, ईश्वर ने यह सिखलाया था, चोरी, बेईमानी और हिंसा, मरते दम तक तुम मत करना, हृदय को जो आघात करे, ऐसा भ्रष्ट आचरण मत करना। युगों-युगों तक भगवन अपना, रूप बदलकर आते गए, इस बिगड़े संसार को सुधारने, वे ज्ञान का दीपक जला गए। पर युग बदले,बदला जीवन, मानव भी तो अब बदल गया, इस कलयुग के माया दानव का, जाल सब पर बिखर गया। आज इस संसार में, लूटपात निरंतर बढ़ रहा, खुद की यह तस्वीर देखकर, मानव फिर भी बिगड़ रहा। भगवान भी यह देखकर, सबके विषय में सोचकर, आज भी परेशान है, भ्रष्टता ही इस जगत की, बन चुकी पहचान है। . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता...
नारी हूं
कविता

नारी हूं

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** अद्भुत रचना हूँ मैं ईश्वर की, जीवंत चेतन इक नारी हूँ। रुप मिला है दुर्गा, सीता, रति-सा, पंचतत्व रचित, मैं भी नारी हूँ। अपूर्व दया, प्रेम, करुणा है मुझमें, मातृत्व का है मुझे वरदान मिला। नन्हा - सा अंकुर खिला कोख में, है प्रकृतिमयी नश्वर संसार मिला। नतमस्तक है सचराचर प्रेम में, देव - दनुज सारे नर-नारी। थे कन्हैया भी यशोदा कीअंक में, सती अनुसुइया भी थी इक नारी। नारी से है जन जीवन सारा, मै भी प्रतिनिधित्व करती नारी हूँ। प्रेमभाव निभाती हूँ सदा, समता समरसता रखती नारी हूँ।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्य...
कोयल
कविता

कोयल

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** सुबह-सुबह ही कोयल क्यों जगा रही हो? सो रहा है जहाँ तुम मीठी तान सुना रही हो! आठों पहर आजकल यूँ कुहुकने लगी हो माँ के आंगन की याद सी चहकने लगी हो! अब मेरी खामोशियों में मुझे अश्रु बहाने दे अपनों की यादों के सावन में मुझको नहाने दे! खूबसूरत लम्हों को कुछ पल मुझको जीने दे, हो रही है चाय ठंडी अब तो मुझको पीने दे! मैं लेकर बैठूंगी जब भी अपनी कलम दवात, लिख डालूंगी अपने सभी अनकहे जज्बात! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीज...
आपको प्रणाम दादा
छंद

आपको प्रणाम दादा

देव कवड़कर बेतूल मध्य प्रदेश ******************** आपको प्रणाम दादा आपको प्रणाम माता जहां-तहां बैठे नौजवानों को प्रणाम है। धर्म कर्म करते जो वतन पे मरते हैं सखा गोप सभी ज्ञानवानो को प्रणाम है।। राह में रुक के नहीं जो फर्ज से डिगे नहीं जो अस्मिता बचाते सूझवानों को प्रणाम है। रक्त वही धन्य है जो देश हित काम आये शोर्य के प्रतीक शोर्यवानों को प्रणाम है।। कोरोना का रोना देखो विश्व परेशान पूरा संक्रमित वायरस हमको हटाना है। कुछ दूरियां बना के मांस्क मुंह पे लगा के बार-बार हाथ मुंह साबुन से धोना है।। जनता कर्फ्यू लगा के शासन का साथ देके सब परिवार संग घर पे ही रहना है। शासन सहयोग से गति अवरोध कर जीतकर जंग बड़ी भारत को तरना है।। https://youtu.be/Lk_--l-2NxQ . परिचय : देव कवड़कर बेतूल मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
परोपकार
कविता

परोपकार

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** परोपकार दिखावा हर जन ने सदा किया। किया बहुत कम, और ज्यादा दिखा दिया। अखबार में छाने का, जुनून ऐसा सर चढ़ा, सचे परोपकारी को, सबने पर्दे पीछे छुपा दिया। वृक्ष नदियों को, कैसे सब ने बिसरा दिया। गाय माता बन पाला, कभी कुछ ना लिया। सब कुछ किया, यूं इन्होंने अपना समर्पित, कितने स्वार्थी है हम, हमने उनको भी भूला दिया। परोपकारी पीठ थप थपाना, कभी न किया। परोपकारीता का, बस उपहास उड़ा दिया। लोभ मोह अंधा, बस जीवन को गवाँ दिया। मनु धर्म का सार परोपकार, यह समझ ना पाया। पर दु:ख देख जो, द्रवित कभी भी हुआ। दीन दुखी मदद,जीवन सार्थक वो किया। मानव है मानवता दिखा, तू परोपकार कर, प्रभु श्रेष्ठ रचना को, कुछ बिरला ने सार्थक किया। ऋषि दधीचि को, हर जन ने भुला दिया। मृत्यु नहीं डरा, कर्ण कवच कुंडल दिया। परोपकार से, देखो इतिहास है पूरा भरा, अब सोचो जरा, हमने मातृभूमि हित...
नमन सदा कुर्बानी को
कविता

नमन सदा कुर्बानी को

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - वीर देशभक्त बलिदानियों हेतु भाव - देशभक्ति नमन सदा कुर्बानी को। उनकी ही नहीं, उन अपनों की, जिनने खोए कुल के चिराग, जिनका सेंदुर लेकर वैराग, माटी का मूल्य चुकाया है। भारत का मान बढ़ाया है।। माटी का मूल्य चुकाया है। भारत का मान बढ़ाया है।। वो शीश देख भगनी बोले, तेरी राखी आज तरसती है; रोती है बहुत बिलखती है। हम तो दो दिन ही याद रखें, वह मां; की आंखों से छिपकर बाबुल को कुछ हिम्मत देकर। धीमे से कहीं से सिसकती है। गर्मी में छत तपते होंगे। सर्दी ठिठुरन सहते होंगे। बारिश में हर कोने कोने, परिवार सहित रोते होंगे। आंचल जननी का प्यारा है, अश्रु का एक सहारा है। ग़म हम भी उनका भूल चले, अपने ही में मशगूल चले। वो फिर शहीद हो जाएंगे, हम फिर अफसोस मनाएंगे। किसलिए किया बलिदान दिव्य? यह कब खुद को समझाएँगे? हम भी इस प्रण को अब जी लें, भारत न...
समंदर और नदी
कविता

समंदर और नदी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर...सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ...सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल...कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ......कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं...एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र....हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ...या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ..यूँ कि..तीव्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू,.....परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ.....लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा...तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर....तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे....तू बहुत मनचली थी। यार, आजा समा जा, मेरा आग़ोश ले ले। अब ठहर...
सुनी सड़को पे
कविता

सुनी सड़को पे

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सुनी सड़को पे घूमती आवारा बिल्लियों को कुत्तों का डर नही रहा वे जान गई है, कुत्ते अब जगह से नही हिलते, उनका सारा कसबल न रहा। परिंदे जरूर शोख हो गए है उनकी उड़ान में किसीका दखलंदाज न रहा। झूमने लगते है दरख्तों के पत्ते हवाके साथ साथ धूल की मिलावट का डर न रहा। आसमान साफ है है सितारे रौशन न चाँद पे बदली है रौशन इस कदर समा है सूरज से कमतरी का भाव न रहा। इंसानों की दुनिया है वीरान जो मिला मुँह छुपा कर मिला इसे कहते है जैसी करनी वैसी भरनी सारे मुग़ालते हो गए दूर हो गया घमंड चूर चूर अपनो का कंधा भी मयस्सर न रहा। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान ...
सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने
कविता

सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कमी दृष्टिगत हुई मुझे कुछ ही क्षण में! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! कहाँ लगी है कालिख मुख पर! किधर मृदा बैठी है सिर पर! कैसे हैं उलझे से केश, कैसा है नयनों में काजर! कान खड़े कर दिए अनसुने भाषण ने! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! प्रश्न पूछता मुखमंडल है! जाने क्यों माथे पर बल है! लज्जावश छाई है लाली, गिरने को आतुर दृग-जल है! निन्दा की है मेरी भू के कण-कण ने! सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...
भूखमरी
कविता

भूखमरी

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। जो उमीदें थी उसकी खत्म हो गयी। चाहत उसकी ही,अब जख़्म हो गयी बेबस भूखे पेट रोज सोता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। ख़ुदा कैसे लिखा मेरी किस्मत को। अब कुछ ना रहा,तेरी ख़िदमत को। परिवार की ख़ातिर खुद को बोता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। धूप कड़ी थी मेहनत करता गया। भूखे बच्चें ना सोये पाई जोड़ता गया। दो जून की रोटी को तरसता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा कैसे गुजरते है ये दिन ना पूछो खुदा। लाचारी से अच्छा दुनिया से कर दे जुदा। राह दिखा दे मुझे विनती करता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यि...
मन
कविता

मन

डॉ. स्वाति सिंह इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** न हारना है, न थकना है हमें तो बस संघर्ष करना है पल पल में चुनौती है जिसे स्वीकार करना है ये वक़्त है बड़ा सख्त है सब पस्त हैं, सब त्रस्त हैं प्रश्न खड़े मुंह बाएं हैं क्या हो गया, क्या हो रहा क्या होएगा, क्या खोएगा ये कैसी विपदा आई है जिसका न कोई समाधान है विचलित है मन, विव्हल बहुत पर! न थकना है, न उद्वेलित होना है न संयम खोना है हमें तो बस मन को संजोना है भारत कर्म की भूमि है जहां गीता ही समाधान है चुनौतियां हमने देखी हैं स्वीकारी कभी न हार है हम संघर्षों में खेले हैं अंधेरे हमने चीरे हैं जो जीता है वही सिकंदर है विजय वहीं जिसे न डर है हम उस मिट्टी की शान है कभी बढ़ती है तो कहीं घटती है जिंदगी तो है एक समीकरण सुलझाना, समझना पड़ता है धीरज से सब सम्हलता है चरेवेती चरेवेती, जिंदगी का नाम है न हारना है, न थकना है हमें तो बस सं...
भावों का रसमयी प्रदर्शन
गीत

भावों का रसमयी प्रदर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** भावों का रसमयी प्रदर्शन, करना है तो नाचें गाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। मोम बनाता है पत्थर को, नृत्य बड़ा जादूगर भाई। तन भी होता निरोग इससे, सभी जानते ये सच्चाई।। परमानंद नृत्य से मिलता, लोगों आओ नाचें गाएं । रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। जब बच्चों को भूख लगे तो, पैर पटकता देखा बचपन। तृप्त हुए जब खा पी करके, खुश होने का किया प्रदर्शन।। नृत्य कला है अभिव्यक्ति की, कैसे इसको कभी भुलाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। दुष्टों का कर दमन सर्वदा, नृत्य रहा पथ प्रभु पाने का। आराधन का साधन भी ये, नहीं तथ्य यह बहलाने का।। नृतक बनाएं खुद अपने को, भव सागर से पार लगाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। नटवर नागर कृष्ण कन्हैया, हैं "अनन्त" जो नश्वर लोगों। धर्म और संस्कृति से जुड...
यह कैसा …… वैशाख
कविता

यह कैसा …… वैशाख

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर .............यह आज, कैसा ..........वैशाख आया। न आज भांगड़े हैं। न मेले सजे हैं। फसल कटने-काटने का, किसे ख्याल आया।। ज़िंदगी की बैसाखियों पर, चलकर आज, कितना मजबूर वैशाख आया। गेहूँ की फसल का, घर के, आंगन में आज न ढेर आया। वह मेलों की रौनक को, आज मैंने घरों में बंद पाया। दिहाड़ी -दार अपना दर्द, ढोल की तान पर ना भूल पाया। जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर यह कैसा वैशाख आया। वह हल्की गर्म हवाओं के साथ, न तेरी धानी चुनर का, पैगाम आया। यह कैसा, उदास, ऊबा हुआ वैशाख आया। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
रिश्ता तेरा मेरा
कविता

रिश्ता तेरा मेरा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रिश्ता तेरा मेरा आज राधा कृष्णा सा हो गया, अपने आप से ज्यादा भरोसा आज तुझ पर हो गया। तेरा मेरे नजदीक होने का एहसास और गहरा गया, रिश्ता तेरा मेरा कान्हा की बांसुरी सा हो गया। जब हर मुश्किल में मेरी मेरा कान्हा बनकर तू साथ खड़ा हो गया, मोर मुकुट सा मेरे सर पर रिश्ता तेरा मेरा सज गया। आज तक तूने मुझे डगमगाने नहीं दिया, बनकर मेरा कृष्णा हर बार मेरा हाथ थाम लिया। मैं कहीं भी रहूं रिश्ता तेरा मेरा राधा कृष्णा सा हो गया, मेरी हर सांस मेरी रूह मेरी धड़कन मेरे कान्हा तेरी हो गई। अपना साथ देकर मुझे राधा आज बना दिया, रिश्ता तेरा मेरा रुकमणी सा बन ना पाया मगर मुझे राधा तू बना गया। रिश्ता तेरा मेरा आज राधा कृष्णा सा हो गया, कृष्णा की राधा बना होठों से बांसुरी की तरह लगा लिया। रिश्ता तेरा मेरा आज राधा कृष्णा सा हो गया, . परिचय :-  सुरेखा ...
कर्तव्य की वेदी पर
कविता

कर्तव्य की वेदी पर

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ लेकर हाथों में हाथ संबल दे रहा हूँ सता रही है घर की यादें यादों में ही जी रहा हूँ। दरवाजे तक आती होगी बिटिया, मेरी राह तकती होगी बिटिया, सुनी-सुनी नजरें माँ से कुछ पूछती होगी सपनो का दुशाला ओढ़े फिर सो जाती होगी बिटिया। मैं उसके सपनो में जाने की सोच रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। वसुधैवकुटुम्बकं के संस्कारो में पला बढ़ा हूँ कैसे तज दू किसी को विपत्ति में, मानवता का फर्ज निभा रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। नर में हो रहे दर्शन नारायण के, देख कर निःसहाय होठों पर मृदुल हास्य की लकीर, जीवन सार्थक कर रहा हूँ कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी...
जिंदगी बचाना है
कविता

जिंदगी बचाना है

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मजबूत इरादों संग, कोरोना को हराना है, अनमोल है ये जिंदगी, इसको हमें बचाना है। कठिन समय है लेकिन, हम भी तो कमजोर नहीं, प्राकृतिक आपदा का, होता किसी पर जोर नहीं, हम सब मिलकर, एकता की मिसाल देंगे, हवा में जहर घुल रहा, जिसका ओर छोर नहीं, बार-बार हाथ धोएं, स्वच्छता अपनाना है, अनमोल है ये जिंदगी, इसको हमें बचाना है। संक्रमण के बचाव में, घर पर ही रहना होगा, हाथ नहीं मिलाना, अपनी संस्कृति अपनाना होगा, काल बनकर घूम रहा है यह कोरोना, पास-पास नहीं हमको, दूरी अपनाना होगा, भारत में आशा के, दीप जलाना है, अनमोल है यह जिंदगी, इसको हमें बचाना है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी टी आई. व्यवसाय - शासकीय शिक्षक सन् १९७७ से वर्तमान म...
शुभ संकल्प
कविता

शुभ संकल्प

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कर्म अगणित हैं जीवन अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! करें कुछ पर हित के भी कर्म! यही तो कहता है हर धर्म! सुनें अपने अंतर की बात, नित्य इंगित करता है मर्म! मनुजता का कुछ नहीं विकल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! मनुज-सक्रियता है अनिवार्य! कथन से उत्तम होता कार्य! क्लांति है जड़ता की सूचक, व्यस्तता प्रकृति को स्वीकार्य! करें सब विश्रामों को अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प गेह में भी संभव है योग! दूर इससे रहते हैं रोग! सुलभ साधन कितने ही हों, रहे मर्यादा में उपभोग! करें अपनी आवश्यकता अल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प ! संतुलित-सीमित हों संवाद! निरर्थक हो न वाद-विवाद! निरन्तर शैली हो शालीन, नहीं हो शब्दों में उन्माद! व्यर्थ है मर्यादाधिक जल्प! करें हम सब जन शुभ संकल्प! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
संदेश
कविता

संदेश

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन के चमकते प्रकाश में स्वच्छ नील हँसता नभ गंगा पर छाई रवि किरणे अविरल बहता यह जल तटो से सटी बंधी ये नावो से देख आर -पार दृश्य मनोरम स्फटिक सा गंगा जल में चपल पवन होता स्पन्दित हिलोरे लेता शान्त ह्रदय में तन मन से हो अल्हादित विहंगो की जल क्रीडा में जानव्ही रूप मस्त मनोरम प्रकृति के सुन्दर नीड में मानस होता व्यथा मुक्त उर को स्नेहासिक्त करते जीवन नैय्या करते सुगम इस धूप छाँव की छटा में कलरव करते पक्षी अनेक प्राणीमात्र को अंक में समाये गंगा देती अनुपम संदेश   परिचय :- ८ अगस्त १९४७ को जन्मी इंदौर निवासी श्रीमती अमिता अनिल मराठे को लिखने का शौक है आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। नई दिशा एवं जीवन मूल्यो के प्रेरक प्रसंग नाम से आपकी दो किताबे भी प्रकाशित हुई है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिं...
तुम फिर एक दिन मिलने आना
कविता

तुम फिर एक दिन मिलने आना

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** चाँद का चमकीला उजास, जगा रहा इस दिल की प्यास, फैला है ऐसा प्रकाश, जैसे मोती जड़े हों टिमटिमाते तारों पर, मन आज फिर खड़ा है़ यादों के चौराहे पर। मुझे न ये चाँद चाहिए न ये फलक चाहिए, मुझे तो बस तेरी एक झलक चाहिए, आज भींगी है पलकें फिर तुम्हारी याद में, काश! कुछ ऐसा होता की हम तुम होते साथ में। याद है जब आँखों में सजा के सपने, हम तुमसे मिलने आए थे, याद है क्या वो पल जब देख तुम्हें मुस्कुराए थे, वो पहली बार छुअन से मेरी तुम छुईमुई से शरमाए थे, धड़कनों में तुम्हारी बस हम ही हम समाए थे । याद है़ वो हाथों में हाथ लेकर, हम साथ-साथ थे टहले, पर अब तो ये कमबख्त दिल ए बहलाने से न बहले, तेरी लहराती जुल्फों ने मेरे मन को भरमाया था, पाया था सर्वस्व प्रेम का जब तुमने गले लगाया था। तुम्हारे बदन की खुशबू मेरी सांसों मैं समाई है, सपनों में तो जाने कित...
भारत भावना
कविता

भारत भावना

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** हम दधीचि के वंशज है अरि के अरमान मिटा देंग़े बेजोड़ है जज़्बा भारत का दुश्मन को धूल चटा देंग़े राणा सांगा का जज़्बा है घावों की फ़िक्र नहीं करते भारत का अक्षुण मान रहे हम अपना शीश कटा देंगे भारत की जनता बेमिसाल हर मोर्चे पर डट जाती है दुश्मन को शौर्य एकता से दिन में तारे दिखला देंगे मर्यादा राम से सीखी है कृष्णा से है रणनीति लिया भयभीत नहीं असुरों से हम हम उनके नाम मिटा देंग़े अश्फ़ाक भगत आज़ाद विस्मिल का साहस पाया है जीतेंगे हम हारेगा अरि हम तोप का मुँह ही घुमा देंगे लड़ने को करोना से हमको संसाधन जो भी चाहेगा बन भामा शाह आज के हम पूरा धन धान्य लुटा देंगे गांधी भूखे रह करके भी अंग्रेजो से लोहा लेते थे बन साहिल एक दूसरे का कोविड उन्नीस हरा देंग़े . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर ...
मातृभाषा हिंदी
कविता

मातृभाषा हिंदी

हिमांशु कलन्त्री इंदौर (म.प्र.) ******************** बिछड़ते वक्त तू गुजर जाएगा... मगर मेरी जड़ तू ना उखाड़ पायेगा... निष्ठायुक्त चरित्र है हिंदी... पुरातन प्रतिष्ठा है हिंदी... सतयुगी प्रतिज्ञा है हिंदी... भारतियों का सौभाग्य है हिंदी... हिमांशु का गौरव है मातृभाषा हिंदी... भाषाओं में चमकता तारा है हिंदी... भारत माता का मस्तक अभिमान है हिंदी... संस्कारो का स्वागत-संस्कार है हिंदी... शब्दार्थों की अनन्त पराकाष्ठा है हिंदी... संस्कृति का मूल आधार है हिंदी... बुजुर्गों को किये प्रणाम का आशीष है हिंदी... हिमांशु की आजीवन प्रतिष्ठा है हिंदी... शिव-वंदन जैसा है गुणगान-हिंदी... . परिचय :- हिमांशु कलन्त्री जन्म दिनांक - २६-०५-७४ निवासी - इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
तब ही महका संसार मिला
कविता

तब ही महका संसार मिला

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मन के नन्हें पंछी को मैंने, कैद से यूँ आज़ाद किया। जीभर उसकी बात सुनी, फिर सपनों को आकाश दिया। रीति रिवाज़ों ने रोका था, बहुत रूढ़ियों ने टोका था। पर मुझको मंज़िल पाने का, सौ फीसदी भरोसा था। खूब लड़ा हूँ सच की खातिर, लोग कहा करते थे क़ाफिर। भटकाते थे गलत राह में, मगर ना भटका कभी मुसाफिर। बहुत शूल थे राहों में पर फूलों का भी प्यार मिला। सीख लिया जब साथ निभाना, तब ही महका संसार मिला। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कवित...