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पद्य

अवध में राम आये हैं
ग़ज़ल

अवध में राम आये हैं

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुमंगल गीत गाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सुमन-श्रद्धा लुटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सकल ब्रम्हांड के स्वामी, विधाता वो जगत के हैं। चरण उनके पखारो तुम, अवध में राम आये हैं। सहज, सुंदर, सलोना है, मेरे भगवान का मुखड़ा, कि मन-मंदिर बसाओ तुम, अवध में राम आये हैं। नयन कजरा, तिलक माथे कि कुंडल-कान धारे हैं, नजर अब तो उतारो तुम, अवध में राम आये हैं। सदा ही भाव वो देखे, सभी स्वीकार है उनको, कि शबरी बन खिलाओ तुम, अवध में राम आये हैं। समझते हैं, सभी के कष्ट, वो पालक-पिता जग के, सभी दुख को मिटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। वचन की लाज रखनें को, गये चौदह बरस वन में, पुकारो लौट आओ तुम, अवध में राम आये हैं। कि लक्ष्मण जानकी है संग, अब कर्तव्य के पथ पर, पवनसुत जी पधारो तुम, अवध में रा...
फिर आ जाओ एक बार
कविता

फिर आ जाओ एक बार

डाँ. बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** हे वीर पथिक, हे शुद्ध बुद्ध! निर्मित तुमसे नवयुग का तन, बुन के संस्कृत का महाजाल, तुम फिर आ जाओ एक बार! जग पीड़ित हिंसा से हे लीन भू दैन्य भरा है दीनों से पावन करने को हे अमिश, तुम फिर आ जाओ एक बार! चेतना, अहिंसा, नम्र, ओज तुम तो मानवता के सरोज तंत्रों का दुर्वह भार उठा तुम फिर आ जाओ एक बार! हे अमर प्राण! हे हर्षदीप ! जर्जरित है भू जड़वादों से, लेकर यंत्रों का सुघड़ बाण, तुम फिर आ जाओ एक बार! तुम शान्ति धरा के सूत्रधार, रणवीरों के तुम हो निनाद युग-युग का हरने विपज्जाल, तुम फिर आ जाओ एक बार! नवजीवन के परमार्थ सार, इतिहास पृष्ठ उद्भव प्रमाण, भारत का भू है बलाक्रांत, तुम फिर आ जाओ एक बार! हे सदी पुरुष, हे स्वाभिमान! तुम हो भारत के अमित प्राण, इस धरा का हरने परित्राण, तुम फिर आ जाओ एक ब...
धर्म
कविता

धर्म

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** धार्यते इति धर्म:सर्वमान्य परिभाषा है धर्म की, धर्म में प्रमुखता है सर्वत्र बस केवल कर्म की। सद्कर्मों का अभाव जहाॅं वहाॅं कोई धर्म नहीं, धर्म हीन मानवों में रह सकता कोई मर्म नहीं। इस संसार में मानव का सर्वोच्च धर्म है मानवता, किंतु कुछ वर्षों से हावी‌ है सारे संसार में दानवता। जिसके हृदय में प्राणियों हेतु नहीं है कोई निष्ठा, दानवता की परिभाषा है वह नीचता की पराकाष्ठा। उच्च‌ मानव कुल में जन्म लेकर कार्य न‌ हों नीच, सद्गुणों सद्व्यवहारों की एक आदर्श रेखा खींच। संतानों की उत्तरोत्तर प्रगति में पिता का ही धर्म है, खेती के उत्पादन में केवल अपना‌ कठिन कर्म है। सभी लोग सुखी रहें ऐसी हो सबकी कामना, अनिवार्यतः किसी से नहीं होगा दुःख का सामना। इस धरा पर हैं अनेक जातियाॅं और धर्म भी, सबके भिन्न ...
ख़त
कविता

ख़त

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** डायरी के पन्नों को पलटते-पलटते हमे याद आने लगे वो तुम्हारे खत कितने महके से हुआ करते थे वो ख़त खुशी का खजाना हुआ करते थे वो ख़त गहरी नींद से जगा दिया करते थे ख़त जागती आँखों में सलोने सपने संजोया करते थे वो ख़त दिल के ज़ज्बात से मुलाकात किया करते थे वो ख़त वक़्त की इस दौड़ में कहीं विलीन हो गए वो ख़त ना वो सपने रहे ना मीठी नींद देने वाले वो ख़त दूर तक फैली ख़ामोशियां हमसे ये सवाल करती हैं कभी-कभी तो बाते हजार करती हैँ चलो पुराने ख़तों से फिर से मुलाकात करते हैं शब्द तो अब भी छुपे होंगे उन पन्नों में क्या पता फिर से चल पड़े वो सिलसिलेवार ख़त!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास...
बेवजह तुम कभी …
कविता

बेवजह तुम कभी …

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** बेवजह तुम कभी मुस्कुराया करो, मेरे सपनों में हर रोज आया करो। ये जरूरी नहीं चांदनी रात हो, अपनी यादों के दीपक जलाया करो। नफरतों की गली से कब गुजरना पड़े, प्रेम के गीत हर रोज गाया करो। जब कभी भी बिछड़ने के हालात हों, मुस्कुराकर गले से लगाया करो। जब कभी भी हमारी मुलाकात हो, सारे शिकवे गिले भूल जाया करो। मेरे हर लब्ज़ में तुम रहो बस सदा, तुम मुझे भी कभी गुनगुनाया करो। मैं कभी भी न पूरा तुम्हारे बिना, तुम अधूरा न मुझको बताया करो। हम बुरे ही सही,पर हैं आपके, प्रेम ऐसे ही हम पर लुटाया करो। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
शिव स्त्रोत
स्तुति

शिव स्त्रोत

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** ठंडी ये पवन कहें, ये बारिशों की छन कहें, नमो नमः भी बोल दो ये दिल कहें या मन कहें।। हरा भरा गगन हुआ, चली पवन सुखन हुआ। अवलोक दृश्य का किया प्रसन्नचित्त मन हुआ।। जिनके शीश गंग है, लिपटा गले भुजंग है। भस्म से सजा हुआ ही जिनका अंग-अंग है। नैना बने विशाल हैं, मस्तक पे चन्द्र भाल है। मन्त्र मुग्ध कर रहा, शिव रूप ही कमाल है।। त्रिनेत्र धारणी शिवा, हैं मोक्ष दायनी शिवा। विष का पान करनें वालें शोध दायनी शिवा।। एक हस्त डमरु साजे, दूसरे त्रिशूल हैं। त्रिनेत्र धारणी शिवा हरते सबके शूल है।। वो राक्षसों को मारते, वो संकटों को तारते। अधर्मियों को धर्म के त्रिशूल से जो मारते।। चरित्र भी विचित्र है, शिव रूप ही पवित्र हैं। शिव रूप की ये सौम्यता, हृदय में एक चित्र है।। शिव देखते जहां कहीं, ये जग चले वही वहीं। वो ...
हे राम! क्यों प्रश्न तुम पर
कविता

हे राम! क्यों प्रश्न तुम पर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हे राम, क्यों प्रश्न है तुम पर तुमने ही जग को साधा तुम्हीं जगत् के स्वामी क्यों संशय है तुम पर? कहां रहे तुम राघव! कबतक गांभीर्य दिखाओगे कितने दल-बल घायल होंगे कितने शहीद होंगे सैंधव? हे रघुनाथ दयालु तुम कब पुनः ताड़का तारोगे आज अहिल्या पार करा कर पुन शबरी को मोक्ष दिलाओगे ? यज्ञशाला की वेदी पर प्रतिदिन अगणित विध्वंस हुआ करते हैं कब खल दल का नाश करोगे कब धरिणी का पुन उद्धार करोगे? कैसे इतना दुस्साहस है कैसे तुम पर प्रश्न लगे हैं क्षतविक्षत जीर्णशीर्ण मन है आहत भारत माता का जन जन है हे दाशरथि तुम आ जाओ। मां वसुंधरा की करुण पुकार प्रत्यंचा पर कब तीर चढाओगे घायल वसुधा की पीड़ा हरने मर्यादा पुरुषोत्तम कब आओगे? जय जय सुरनायक, सब सुखदायक रघुकुल तिलक तुम आ जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस...
प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं
कविता

प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज एक बार फिर यमराज का बिना किसी सूचना के मेरे घर आगमन हुआ, मैं पहले से ही दुखी था, अब और दुखी हो गया जैसे किसी ने मेरे घावों पर नमक रगड़ दिया। मैं कुछ कहता सुनता उससे पहले शायद उसने मेरे दर्द को महसूस कर लिया और बड़े आत्मीय भाव से कहने लगा, प्रभु! आप परेशान हो मुझे पता है पर आपकी परेशानी का सीधा सा उत्तर मेरे पास है। मैंने संयम बनाए रखा और बड़े प्यार से कहा यूं तो मैं परेशान बिल्कुल नहीं हूँ फिर भी तुम्हें यदि ऐसा लगता है तो तुम ही बता दो, मेरी परेशानी का हल दे दो। यमराज बोला-मुझे चेहरा और मन पढ़ना आता है यह अलग बात है कि मेरा राम मंदिर, निमंत्रण और राजनीति से दूर-दूर का नहीं नाता है। मैं बस रामजी को और रामजी मुझे जानते हैं मेरी वजह से थोड़ा-थोड़ा आपको भी पहचानते हैं, फिर भ...
हिंदी मेरी शान है
कविता

हिंदी मेरी शान है

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" आमला बैतूल (मध्यप्रदेश) ******************** हिंदी मेरी शान है, हिंदी मेरी सरल पहचान। हिंदी मेरा वतन है, नित्य करूं मैं गुणगान।। हिंदी मेरी भाषा है, राष्ट्रभाषा सदा महान। हिंदी मेरी मातृभाषा, मातृभूमि का वरदान।। हिंदी मेरा सम्मान है, हिंदी राष्ट्र स्वाभिमान। हिंदी मेरे तन मन रहे, हिंदी मेरा अभिमान।। हिंदी की सेवा मैं करूं, श्री चरण में वंदन। हिंदी की रक्षा में सदा, अर्पण करूं जीवन।। हिंदी ही मेरी जान है, हिंदी मेरा हिंदुस्तान। हिंदी मेरी धड़कन में, जीवन मेरा कुर्बान।। हिंदी भारतवर्ष में, सर्व धर्म का समाधान। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, राष्ट्र में योगदान।। हिंदी में सबका सार है, गीता ग्रंथ रामायण। हिंदी सबकी जननी है, जग में एक प्रमाण।। हिंदी से जल जंगल जमीन, हिंदी से किसान। हिंदी राष्ट्र भारत की सुरक्षा, करे मेरा जवान।। हिंद...
काँटे क़िस्मत में हो
कविता

काँटे क़िस्मत में हो

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** काँटे क़िस्मत में हो तो बहारें आयें कैसे, जो नहीं बस में हो उसकी चाहत घटायें कैसे I सूरज जो चढ़ता है करते है उसको सब सलाम, डूबते सूरज को भला ख़िदमत हम दिलायें कैसे I वो तो नादान हैं समंदर को समझते हैं तालाब, कितनी गहराई है साहिल से बतायें कैसे I दिल की बातें हैं दिल वाले समझते हैं जनाब, जिसका दिल पत्थर का हो उसको पिघलायें कैसे I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
स्वागत शिशिर का
कविता

स्वागत शिशिर का

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** पौष माह की श्वेत धुंध में आओ करें स्वागत शिशिर का आँख मिचौली खेल रहा जो घन में लुक-छुप रहे मिहिर का। धवल गिरि के शिखरों पर भी वृक्ष लताएँ सिकुड़ी सिमटी खेत, वाटिका उपवन में भी पत्तों पर है शबनम लिपटी। कोहरे की चादर में देखो छुप कर बैठा है प्रभात भी सूरज के डूबते ही देखो ठिठुर-ठिठुर ढल रही रात भी। तिल गुड़ की मिठास से देखो महक उठी रसोई सभी की दिनभर पसरी दिखती देखो बिस्तर में रजाई सभी की। मालकोंस के गूंज रहे स्वर सिगड़ी इठलाती जलकर चौपालों पर अलाव जले ताप रहे तन जन मिलकर। कुदरत के आँचल में भरा षड ऋतुओं का खजाना जीवन को सुंदरता देता इन ऋतुओं का आना जाना। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
दो पल साथ निभाओ तो …
गीत

दो पल साथ निभाओ तो …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ छुड़ाकर किधर चल दिए, दो पल साथ निभाओ तो। चार दिनों का जीवन है ये, कान्हा दर्श दिखाओ तो।। तुम बिन मुश्किल जीना मेरा, रास बिहारी आ जाओ। मीरा जैसी व्याकुल रहती, वंशी मधुर सुना जाओ।। ग्वाल बाल बेहाल सभी हैं, आकर के समझाओ तो। द्रुपद सुता भी राह देखती, दुष्ट दुशासन को मारो। भक्तों की रक्षा हो कान्हा, उनको भी पार उतारो।। किया सुदामा से जो वादा, कान्हा उसे निभाओ तो। अत्याचार बढ़ा है जग में, क्रोध लोभ की माया है। संयम का तो नाम नहीं है, राग -द्वेष भरमाया है।। वध कर दो अब दंम्भ कंस का पापी सबक सिखाओ तो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति ...
विधाता मेरे
कविता

विधाता मेरे

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** तू ही बता विधाता मेरे, क्या ऐंसा ही जीवन होगा।। कुंठित कोख़ आई की होगी व्यथित बाप का मन होगा। सोचा नही होगा ख्यालों में, कि-बेइज्जत यूं ये तन होगा।। नीर भरे निर्मल नयनों से, कैसे वो उऋण होगा। तुही बता विधाता मेरे, क्या ऐंसा ही जीवन होगा।। हस-हस सही असह पीड़ा, संतति सुख की चाह लिए। सुरभित हों सपनों के सुमन, लाखों जुवा की वाह लिए।। दुखा ह्रदय 'मापा' का, नही पूरा कोई प्रण होगा। तुही बता विधाता मेरे, क्या ऐंसा ही जीवन होगा।। ग़जभर माटी के बंटबारे को, मापा मुश्किल में डाल दिए। छीन कमाई खून-पसीने की, निज, घर से तूने निकाल दिए।। तेरा भी होगा हस्र बुरा, तेरे हिस्से भी कफ़न होगा। तुही बता विधाता मेरे, क्या ऐंसा ही जीवन होगा।। मात-पिता से बढ़के भू पर, नही मूरत भी भगवान की। जिसने ...
मानवता का गान
गीत

मानवता का गान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। भेदभाव में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं। मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।। नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल। पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल।। अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, नहीं खुशी पाओगे। जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे।। हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा। वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा।। देव नहीं,म...
समता और न्याय
कविता

समता और न्याय

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कहां जाएं, कैसे पायें? संविधान के युग में भी नहीं मिल रहा समता और न्याय, आजादी के इतने वर्षों बाद भी कुछ लोगों की मानसिकता आज भी सालों पुरानी वाली है, जो कुचक्रों, कुंठाओं से भरी है बिल्कुल नहीं खाली है, जहां समता दिखने चाहिए वहां ये समरसता की बात करते हैं, मुंह से इंसाफ की राग गाएंगे और दिलों में मसल डालने की चेष्ठा कुख्यात रखते हैं, जब सम की भावना ही नहीं तब न्याय मिलना असंभव है, पर तथाकथित उच्च व रईसों के लिए न्यायालय खुलना रात में भी संभव है, पर दमितों, दलितों के लिए न्याय कहां हैं? उनके मामले पीढ़ियों तक खींचाता है, मरने के बाद न्याय की अंतिम तारीख आता है, जहां विषमता है वहां न्याय की उम्मीद किससे व कैसे? जाति-पाति, ऊंच-नीच से इंसाफ तय होता है, समता के बिना न्याय बिकने लग...
मेहमान बन के
कविता

मेहमान बन के

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेहमान बन के आये थे, मकीं बनके बैठ गये, आसमां के चंद टूटे हुए क़तरे, ज़मी बनके बैठ गये, वैसे तो ऐसा कोई दर्द न था, जाने क्यों अश्क़ पलकों पे नमीं बन के बैठ गये, बस दो कदम साथ चलने का ही वादा था, कब कैसे वो, हमनशीं बन के बैठ गये, शरिकेग़म थे वैसे तो वो मेरी हर नफ़स के, भरी बज़्म में न जाने क्यों वो, अज़नबी बन के बैठ गये। ठहाकों से भरी बज़्म लूटने वाले, क्यों अचानक इतनी सादगी बनके बैठ गये। भले बुरे की परख अब वो ही जाने, मुझे परखने के लिए, पारखी बनके बैठ गये। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
शूलों से भरा प्रेम पथ
गीत

शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
लो जी आ गया साल नया
कविता

लो जी आ गया साल नया

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** लो जी आ गया साल नया दे न कर खड़ा बबाल नया। देखे जो स्वप्न हों सब पूरे आये न फिर भूचाल नया। तारों-सा हिलमिल रहें सदा बिछाए न कोई जाल नया। भुला के सारे शिक़वे-गिले सजाए सुंदर ख्याल नया। गूंजे गीत सद्भाव-शांति के मिलजुल करें कमाल नया। जियें औऱ जीने दें सबको समरसता हो सवाल नया। नववर्ष में नवल लक्ष्यों में आओ हम भरदें उबाल नया। हर प्राणी-पूर्णिमा-सा निखरे "गोविमी" शुभ सकाल नया। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
काश
कविता

काश

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** काश तुम जिंदा होती सपने अधूरे वादे अधूरे सब बात अधूरी साथ अधूरा सपने परेशान करते यादों को बार बार दोहराते नींद से उठ बैठता गला सूखने पर मांगता था पानी अब खुद उठ कर पीता हूं पानी काश तुम जीवित होती बीमारी में मुझे छोड़कर न जाती तुम बिन सब अधूरे अगले जन्म में होगी साथ काश यही तो है विश्वास। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में स...
लो पूरा जीवन बीत गया
कविता

लो पूरा जीवन बीत गया

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** लो पूरा जीवन बीत गया समर्थ समय था, व्यर्थ गया, होता जीवन का अर्थ नया, अनमोल समय, हर घड़ी घड़ी, लिख जाते हम संगीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया। १। लिया ना राम का नाम कभी, और करने हैं शुभ काम सभी, कल थी जवानी, परसों बचपन आज बुढ़ापा मीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।२। श्याम-श्वेत कभी छद्म-वेष, और प्यार प्रेम कभी कलह क्लेश, आने-जाने उठने-सोने, खाने-पीने हंसने-रोने, ये दौड़ भाग आपाधापी, और उठा पटक दूरी नापी, मन की गुन-गुन, सबकी सुन-सुन, परिवेश वही फिर जीत गया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।३। रिश्ते जनम करम के गहरे, पलकों में रहते जो चेहरे, सपनों की तन्द्रा से अपना, पल में ही नाता टूट गया, हर साथी पीछे छूट गया। सोने से जडा, माटी का घडा, था सुघड सलौना, फूट ...
संपूर्ण दर्शन हो तुम
स्तुति

संपूर्ण दर्शन हो तुम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** तुम पूर्ण दर्शन हो कन्हैया दर्शन के दर्शन करवाते हो तुममें डूब सकें हम तो जीवन नौका पार कराते हो। जो न समझा तुमको हमने काया नगरी न सुधरेगी ऊबड़-खाबड़ पगडंडी सी प्राणों की लकीर उभरेगी। शिशु काल में रिपु पहचाना बाल्यकाल में प्रेम दिखाया संपूर्ण स्नेह के संपूर्ण विरह को तुमने हमको सब समझाया। किशोरकाल के पहले पग पर समरनाद कर युद्ध किया अगणित कंसों को मारा मथुरा को नव जन्म दिया। समयानुसार आन पड़ी तो रण छोड़ गए, द्वारिका बसाई कर्म-क्षेत्र में जो बाधा बन आया यह तन छोड़ा, परमगति पाई। कब क्या करना है, मानव को तुमने हर पल सिखलाया सीमा‌ पार करें यदि कोई तुरत सुदर्शन चक्र चलाया। सखा बने तो तुमसा कोई मित्र सुदामा के जीवनदाई सारथि बनकर पार्थ संभाला यज्ञ राजसूय में पात उठाई। गुरु बन तुमने गीता गाई जीवन पक्...
बिगड़े न बातों में बात
कविता

बिगड़े न बातों में बात

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कभी-कभी समझ में नहीं आती बात समझ के फेर में उलझ जाती बात कभी-कभी बिगड़ी बात तिल का ताड बनकर लाइलाज बन जाती जीवन जीने की बात बिगड़े काज सुधार भी जाती कुछ अच्छी बात जीवनभर जुबान पर कायम रहती अच्छी बात सबसे भारी पड़ जाती जीवन में कई कड़वी बात बिना बुलावे अक्सर कई कारणों में कई बार जुबान पर चली आती है कुछ चुभती बात बीमारी सी हालात कर देती है बात ही बात कभी कभी मन को बेचैन कर जाती जीवन जीने की बात फिर भी शांति सगुन भरने की समझ से परे रहती जीवन जीने की बात नहीं समझ आती जीवन जीने की बात कोई राह नहीं नजर आती बात ही बात में बिगड़ती जाती बात में बात तिल से ताड में उलझ जाती जीवन जीने की तमाम बात कभी कभी खुशियां लाती बात कभी मातम ले आती बात आती चली जाती आती चली जाती कभी कभी दुश्मनी की दीवार खड़ी क...
नैना रतनारे
कुण्डलियाँ

नैना रतनारे

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** कुण्डलिया नैना रतनारे सुघर, कंचन काया देहिं। कच घुँघराले कुच शिखर मन बस में करि लेहिं।। मन बस में करि लेहिं, अधर टेसू सी लाली। यौवन है मदमस्त, भरी मदिरा की प्याली।। लखि टी के अस रूप, न मुहुं से निकले बैना। चैन ले गये छीन, नशीले उनके नैना।। परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
वहम होता है
कविता

वहम होता है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वहम होता है, सितारे कभी टूटा नहीं करते, उड़ा के शिगूफे ख़ुद ही, लूटा नहीं करते, कसैले होते हैं, अक्सर शिकवों के वार, कड़वी बातों से कभी मुंह जूठा नहीं करते, लौट के फिर आ मिलता है, अपना ही कर्मदण्ड, आसमां की तरफ मुँह करके, कभी थूका नहीं करते, उमर भर का लेखा जोखा होता है, यूँ तिनको को संभालना, बना के अपना ही आशियाना, ख़ुद ही फूंका नहीं करते, वज़ह लापरवाही है या और ही कुछ शायद, यूँ हमसफर तो कभी, रस्तों पे छूटा नहीं करते, माना के शिकवे गिलों का बोझ नहीं सँभलता, जान बूझ कर तो, अपनी छाती कूटा नहीं करते, बादलो जी भर के तर कर दो, ज़मीं का जिस्म, बिना नमीं के तो ज़मीं में, अंकुर फूटा नहीं करते। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
बचपन
कविता

बचपन

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** उम्र हो गई है अब मेरी पचपन। नहीं भूल पाया हूं अब तक बचपन। न किसी की चिंता थी न कोई फिक्र थी। दुनियां में कुछ भी होता रहे हमारी जिंदगी बेखबर थी। हमेशा अपनी मस्ती में मस्त रहते थे। मां को छोड़कर अन्य किसी से नहीं डरते थे। "माल्या"नही थे फिर भी जहाज चलाते थे। बरसात के पानी में कागज़ की नांव चलाते थे। सारा दिन खेलना कूदना सारा दिन मस्ती करना रोना और हंसना कभी चुप नही रहना। व्यापार का खेल खेलकर लाखों रुपये कमाए। तब शायद आज हम सच्चे व्यापारी बन पाए। चिंता और तनाव शब्द हमारे शब्द कोश में नहीं था। जिंदगी में एक अलग प्रकार ही का मजा ही था। बीत गया बचपन बस उसकी यादें अब शेष है। मेरे जीवन में बचपन का महत्व विशेष है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क-...