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पद्य

आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कभी हम भी मुस्कराया करते थे, दोनों हाथों से खुशियाँ लुटाते थे, चेहरे पर नूर, होंठों पर मुस्कान सजती थी, चाँद सितारों को तोड़ने की शर्तें लगती थी फिर मन में क्यों मचा हाहाकार जीवन काअंत क्यों लेरहाआकार, कह न सका अन्तस की पीड़ा को, सह न सका दुःख के आवेगों को सागर. मन के उठे हुए उद्वेगों को, सह न सका पत्थरीलें चेहरों को, फिर क्यों न मन में हो हाहाकार, इसीलिए जीवन का अंत ले रहा आकार कहाँ लुप्त हुआ आशा का प्रपात क्यों हुआ मेरे साथ पक्षपात, क्यों नही लिपट सकी प्यार की किरण क्यों लगा फौलादी इरादों को ग्रहण। तभी मन में मच रहा हाहाकार आ रहा जीवन के अंत का विचार दूर गगन में उगता सूरज, दे गया नया विश्वास, इश्क करना है तो देश से कर, मरना है तो, देश के लिए मर जीवन है अनमोल, इससे प्यार कर, अन्तस से निःसृत नव सजृन चाप सुन, मन में अब नह...
मायने यारी के
कविता

मायने यारी के

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बिछड़ गये हम साथी तो क्या, मन मे कोई पीर नही, याद तुम्हें करते ना हो हम, ऐसी कोई रात नही... संग बतियाए हर इक लम्हा, भुला सको तो हम जाने, बरसों का था संग हमारा, कल परसो की बात नहीं... यारी का दम भरते थे तुम, यारी के है मायने क्या, संग यारो के जिंदा है हम, समझे क्यो ये मर्म नही... अगर कभी रुसवा हो जग से, याद हमे कर लेना तुम, हाथ बढ़ा थामेगे तुमको, "निर्मल" मन की पीर यही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
असहनीय पीड़ा
कविता

असहनीय पीड़ा

अंजली सांकृत्या जयपुर (राजस्थान) ******************** सुना हैं मैं बेज़ुबान जानवर हूँ!! बहुत विस्मय की बात हैं ना? जहाँ मानुष जीवन हैं वहाँ मेरा भी अस्तित्व हैं सुनो ना! मैं भी भूखा हूँ मुझे भी खाना चाहिए मुझे भी खिलाओ ना खिलाओगे ना? मैंने तो जंगल में ख़ूब ढूँढा पर सब सूखा हैं मानुष ने अपने लिए वृक्षों की कटाई जो की हैं। देखो ना वहाँ कुछ मानुष हैं लगता हैं भले लोग हैं अब मेरी भूख प्यास मिट जाएँगीं हैं ना? देखो वो आ रहे हैं साथ अपने कुछ ला रहे हैं मालिक मुझे खिलाओ ना बहुत भूखा हूँ मालिक हाँ खिलाता हूँ। मैं सब खा गया उनका ज़िन्दगी भर का क़र्ज़दार बन गया... कब तक ? आह मानुष ये क्या किया ? मुझे इतनी पीड़ा क्यूँ मुझसे सहन नहि हो रही... ये मुझे मार देगी हँस रहे हो? मानुष ऐसा क्यों किया.. मेरी हत्या क्यों कि? मानुष तुमने ये क्या किया! हाहाहाहाहा...।। ये मेरी ख़ुशी मेरी भूख मिटाएँगीं तेरी मौत आख...
बेटियां
कविता

बेटियां

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** बेटियां आसमान पर का रही हैं बेटियां, पदक भी पा रही हैं बेटियां। श्रृंगार तक वो सीमित न रही, जिंदगी के फर्ज भी निभाती हैं बेटियां। फूलों सी नाज़ुक दिखती हैं बेटियां, महलों के ख्वाब बुनती हैं बेटियां। परियों सी नाज़ुक होती हैं सपनों को साकार करती हैं बेटियां। उदास मन को कोमल सा अहसास देती हैं बेटियां। मुश्किल घड़ी में कोमल सा आभास देती हैं बेटियां। पंछियों की उड़ान सी चंचल, आकाश की बुलंदियां भी छूती हैं बेटियां। जिंदगी का मान बढ़ाती हैं बेटियां, जिस घर से अनजान रहती हैं बेटियां, उस घर की पहचान बन जाती हैं बेटियां। टूटी हुई चीजों से घर बनाती हैं बेटियां, माटी के खिलौनों से संसार रचाती हैं बेटियां। नींदों में भी ख्वाबों के साथ मुस्कुराती हैं बेटियां। खुशियों के लम्हे सी सुहानी हैं बेटियां, माटी की सौंधी खुशबू बिखेरती हैं बेटियां। बारिश की बू...
अमर शहादत
कविता

अमर शहादत

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ना थी उनकी कोई रियासत, ना की उनने कोई सियासत, माँ के आँचल के शहजादों में, सर देने की थी लियाकत। मन मयूरा उनका होगा नाचा, जब रंगीन बहारे जीवन में आई, माँ का आँचल देख निशाने पे, खुद सीने पर उसने गोली खाई चैन से जी सके अपना ये वतन, अर्पित कर दिया तन, मन, बदन। चीनी-सी मिठास देने के खातिर, चीनियों की उसने मिट्टी चटकाई। नापाक इरादे ने नजर उठाई, दुश्मन ने जब भी घात लगाई, रणबाँकुरे सच्चे सपूत ने तब, हर हुँकार पर उसे धूल चटाई। ना तो थे वो कोई बाजीगर, ना कि भावों की तिजारत, माँ के मुकुट के सितारों में, अमर वीरों की जड़ी शहादत। . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पिताजी
कविता

पिताजी

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** मैं दफ्तर से लौटू तो ऐसा लगता हैं कि कोई बुला रहा है, घर के अन्दर से निकलकर जैसे कोई मेरे पास आ रहा है। लगता हैं कि वो डाँटेगा और कहेगा कि मास्क लगाया नहीं तूने, अरे ये बाईक और मोबाईल भी आज सेनेटाइज किया नहीं तूने। महामारी फैली हुई हैं और तू बेपरवाह होता जा रहा है, हेलमेट भी नही लगाया कितना लापरवाह होता जा रहा है। हर रोज की तरह आज भी तू मुझको बताकर नही गया, तेरी माँ सुबह से परेशान है कि तू खाना खाकर नही गया। सोचता हूँ कि ये सब घर पर सुनूंगा और सहम जाऊंगा मैं, मगर ये क्या पता कि अब ये सिर्फ एक वहम पाऊंगा मैं। अब घर लौटते ही दरवाज़े पर खड़े पिताजी नहीं मिलते, मेरी जीवन नौका तारणहार मेरे वो माझी नहीं मिलते। अब क्या गलत है और क्या सही है ये बताने वाला कोई नहीं, बार बार डांटकर फटकार कर अब समझाने वाला कोई नहीं। आज सब कुछ पाकर जब अपने पैरो...
पिता का करें सम्मान
कविता

पिता का करें सम्मान

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नहीं है दूजा पिता समान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता है जनक,पिता पालक। पिता ही होता है रक्षक। पिता गृहशाला का शिक्षक। पिता संयोजक-संचालक। सृष्टि में बहुत पिता का मान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता सर्वदा है सुखदाई। पिता के मन में गहराई। पिता से डरती कठिनाई। पिता शंकर सम विषपाई। गगन भी करता है गुणगान। पिता का करें सभी सम्मान। पिता के जीवन का संघर्ष। निकेतन में लाता है हर्ष। साक्षी दिवस साक्षी वर्ष। पिता के श्रम ही से उत्कर्ष। पिता के सफल सभी अभियान। पिता का करें सभी सम्मान । पिता की छाया है वरदान। पिता का होना घर की शान। पिता जीवन-अनुभव की खान। पिता की सेवक हो सन्तान। पिता से मानव की पहचान। पिता का करें सभी सम्मान। पिताश्री जब हो जाएं वृद्ध। या किसी निर्बलता से बद्ध। आप अक्षम हो या समृद्ध। करें सेवा सविनय करबद्ध। नहीं हो वृ...
जंग जरूरी है
कविता

जंग जरूरी है

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए। परंतु, जंग, छीन लेती है मुस्कान। टूट जाता है घोसला चिड़िया का जो ऊंचे चिनार की टहनियों पर बना है। हो जाता है पानी सुर्ख नदियों का, पिघलती है बर्फ जाड़ो में भी, और रिसने लगती है आँखे, बून्द बून्द। जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए परंतु, टूटी चूड़ियां खनका नही करती सिंदूर की लाली मांग की हद तोड़ कर उतर आती है, वर्धियो पर कस के चिपक जाती है वर्धिया बेजान जिस्मो पर। फिर खो जाता है सिंदूर अनंत में हमेशा हमेशा के लिए। अबोध बचपन लाचार बुढापा बेबस जवानी टुकुर टुकुर ताकते रहते है उन बक्सों को जो दूर कही से लाया होता है घर के आंगन में। सपने व सिंदूर रिसते रहते है उसकी किनारों से बून्द बून्द। जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए परंतु, ढक लेते है धूल के गुबार गेंहू की बालियों को भर जाती है ...
भारत पर स्वर्ग
कविता

भारत पर स्वर्ग

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** थाली, लोटे, शंख बजाये, और खुशी में नाचे हम। यज्ञ, हवन भी कर डाले, देव ऋचायें वांचे हम।। राम नाम के दीपक भी घर-घर सभी उजारे थे। देवों जैसे वो क्षण पाकर, सारे दुख विसारे थे।। विनाश काल विपरीते बुद्धि, मति कैसी बौराई है। अर्थतंत्र को पटरी लाने, व्यर्थ की सोच बनाई है। किसने तुमको रोका-टोका, वेतन हिस्सा दान किया। देश समूचा साथ तुम्हारे, किसने यहाँ अभिमान किया।। महिलाओं का छिपा हुआ धन, बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है। आपदा के इस संकट में, नहीं कसर कोई छोड़ी है।। गर और जरूरत थी तुमको, आदेश का ढोल पिटा देते। खुद को गिरवी रख करके, ढेरों अर्थ जुटा देते।। किंतु नहीं ये करना था मंदिर भूले, मदिरा खोले। पवित्र घंटियां मूक रहीं, प्यालों के कातिल स्वर बोले।। मदिरालय सब खोल दिये। देवालय सारे बंद पड़े। कोरोना को आज हराने बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।। बोतल और प्...
पार्थिव शहीद का
कविता

पार्थिव शहीद का

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आया पार्थिव शहीद का, दरो - दीवार खिड़कियाँ रोईं, सगे, संबधी, दोस्त, माँ, बहन, पत्नी और बेटियाँ रोईं। वतन पे मिटने वाले अपने लाल पर गर्वित थे सभी किंतु गले तक भर-भर के दर्द भरी सिसकियाँ रोईं। फेरे लेकर खाईं कस्में जीवन भर साथ निभाने की पत्नी की हथेली में अब अरमानों की मेहंदियाँ रोईं। होली, दिवाली, करवाचौथ सब हो गया है सूना-सूना सिंदूर, मंगलसूत्र, पायल संग सुहागन की बिछियाँ रोईं। नेस्तनाबूत हो गया परिवारजनों का सपना 'निर्मल' नाजुक कलाईयों से उतरती हुई रंगीन चूड़ियाँ रोईं। . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवा...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** यूँ ही नही गुज़रता सफर जिंदगी का संघर्ष करना पढ़ता हैं। कामयाबी की राहों में मील का पत्थर बनकर मुश्किलो से अकड़ना पढ़ता हैं॥ वो मांझी खुद कों कमज़ोर समझ लेता तों पहाड़ो से रास्ता कौन बनाता। ठान लेनें से हीं काम नही चलता यारों हौसलों से डटकर लड़ना पढ़ता हैं॥ बागों की हरीयाली पर रीझनें वालों एक माली से पूछो। चंद फूलों की रखवाली की खातिर कितनों से झगड़ना पढ़ता हैं॥ क्या सोचते हों दिन रात इस जद्दोज़हद की दुनियाँ में। फ़कीर बनकर यहाँ दरबदर भटकना पढ़ता हैं॥ यूँ तों कठिनाइयों से सभी घबरा जाते हैं साहब। मंजिल तक पहुँचनें वालों कों निरंतर बढ़ना पढ़ता हैं॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.व...
सूक्ष्म लचीली ज्ञान की खिड़की
कविता

सूक्ष्म लचीली ज्ञान की खिड़की

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** बहुत ही आतुरता से पाने की अभिलाषा, जब संगणक द्वार पर आकर मचलती। सूक्ष्म लचीली ज्ञान की प्रतिमान खिड़की, बस उंगली की एक ही थपकी से खुलती। इस खिड़की संगणक स्फूर्त - सक्रियता से, सब कुछ कितना साफ नज़र आने लगता। जाने कितने मिथक बिखरते टूट टूटकर, हर कोंपल को आकाश नज़र आने लगता। कर तरंगों की सवारी हाथ में दुनिया थमा दी, अंतरिक्ष भी अब अपनी ही मुट्टी में समाता। कितनी ही गणनायें कर देता है पल में, सबके ही तो काम संगणक सरल बनाता। दुनिया कितनी खोज परख करती रहती है और अनवरत होता है विस्तार बोध का। यहाँ प्रतिपल मेधा कितनी और निखरती, सहज सुलभ उपलब्ध मार्ग है नये शोध का। इस खिड़की के साथ साथ ही खुल जाते हैं कुछ बौने से भरमाने वाले नये झरोंखे। दबे पांव चुपके से आकर दांव लगाते, रिझा रिझाकर बहुत दिया करते हैं धोखे। नये नये ये सब्ज़बाग सबको दिखलाते , कल्प...
आठ तरह के प्राणियों से
दोहा

आठ तरह के प्राणियों से

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** आठ तरह के प्राणियों से रहिए सदा सतर्क किसी के दुःख या दर्द का पड़े न जिन पर फ़र्क़ राजा नियमों में बंधा ख़ुद में रहता मशगूल मदद करे क्या आप की बाधा बनें वसूल वैश्या से उम्मीद मत करिए कभी जनाब अर्थ चाहिए बस उसे क़ायम रहे शबाब जीवन में यमराज से मत चाहो उपकार जब चाहेगा ले जाएगा सुने न चीख पुकार अग्नि ख़ाक कर डालती मुश्किल बहुत बचाव लोगों के दुःख दर्द से रखती नहीं लगाव चोरों को होता नहीं किसी के कष्ट का एहसास चोरी करना फ़ितरत उनकी रखिए मत कुछ आस निज इच्छा पूरी रहे है बच्चों की रीति इच्छित ही बस चाहिए बेमतलब सब नीति भिक्षु को भिक्षा चाहिए कुछ भी रहे अभाव कभी किसी के कष्ट का पड़ता नही प्रभाव कंटक का उद्धेश्य है देना कष्ट अनंत बन सकता सुखकर नहीं वह साहिल सा संत . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौ...
चाइना अब होश में आओ
कविता

चाइना अब होश में आओ

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश **************** आज संकल्प के साथ हमें जीना हैं। चाइना धोखेबाज का नाश करना है। चाइना को चैन से नहीं जीने देना है। अब चीन को औकात दिखाना है। हमको समान चीन का नहीँ लेना है। चीन का वहिष्कार सबको करना है। धोखे से किये वार को बदला लेना है। सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि देना है। अर्थिक सहयोग को बन्द करना है। चाइना का सामान अब नहीँ लेना है। चाइना दिये क्षति को नहीं भूलना है। देश की आन बान शान को बनाना है भारतीय जन जन ने यह ठाना है चाइना को आइना दिखाना है। . परिचय :- डॉ. रश्मि शुक्ला निवासी - प्रयागराज उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!
कविता

पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कथन के शब्द सभी स्नेह के सरोवर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! प्रगाढ़ प्रेम प्रकाशित प्रत्येक स्वर-व्यंजन निजी ममत्व से सुरभित सुबोध संबोधन सटीक सार समर्पित समस्त उदबोधन अतुल्य आत्मीयता, अनूप अपनापन महाविचार सुमुखरित मधुर मनोहर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं ! वे प्रश्न और निहित उनमें व्याप्त चिन्ताएं सुखद सुझाव की छाया में सुप्त इच्छाएं सुवर्तमान के उपयोग के नियम-संयम भविश्य के लिए अगणित असीम आशाएं जो व्यक्त भाव हुए हैं अमिट यशोधर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! लगे है जैसे कथन पत्र के रहे हैं बोल प्रतीत होते वे दुर्लभ लगें बहुत अनमोल प्रत्येक वाक्य में अनुभूत सूत्र शक्तिमान रहस्य गूढ़ जगत के विविध रहे हैं खोल अकथ संदेश हैं अगणित मगर अगोचर हैं! पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं! कहीं है क्रोध प्रकट मे...
अमिट वीर बलिदानी हो
कविता

अमिट वीर बलिदानी हो

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- महान क्रांतिकारी वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के अमर बलिदान को समर्पित श्रद्धांजली। रस- वीर, रौद्र। धार तेज बरछी की करली थी ऐंसे परिवेश में। चूड़ी पहन छुपे बैठे जब, कुछ रजवाड़े देश में।। ललकारी थी झलकारी, रघुनाथ नीति भी बड़ी कुशल। गौस खान का लहु तेज, सुंदर मुंदर भी बहुत सबल।। पेंशन का एहसान रखो, अधिकार हमारा झांसी है। अपनी भूमि तुमको दें यह, बिना मौत की फांसी है।। प्रथम युद्ध वो आजादी का, रोम-रोम में जागी थी। क्रांति जनित हृदय ज्वालायें, लंदन तक ने भांपि थीं।। कमजन-कमधन कम से कैसे रानी युद्ध अटल होगा? लड़ने का साहस जानो पर विजयी भला महल होगा? नारी है सृजना जीवन को जनती, पीर बड़ी सहके। लड़े हमारे बांके घर पर क्यों बैठें हम चुप रहके? सुन रानी की बातें तब नारी शक्ति भी जागी थी। भारत की लक्ष्मी से डरकर विक्टोरिया भी का...
तनहा
कविता

तनहा

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** अब तो हर सफ़र अकेले करना है, ज़माने से अब किसे डरना है। डर रहे थे जिसकी खातिर, वो भी अब तनहा कहा रहता है। वो समझे हम टूटेंगे, मगर हौसला भी कम कहा रखता है। चल दिया अपने से अलग, अब रूबरू की कसक कहा रखता है। हौसला साथ का सफ़र कहा रखता है, वो भी तनहा अब कहा रहता है.......। ज़माने से अब किसे डरना है.....।। . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
फिर से जागे
कविता

फिर से जागे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फिर से जागे वीरो में प्रखर राष्ट्र चेतना। यौवन की अंधी फिर से जागे सवा लाख पर एक हो भारी। गुरु गोविंद की मर्दन जागे जगे फिर से महिष मर्दानी। राष्ट्र हित मे सब कुछ जागे सुभाष, भगत और वीर सवरकर की। दृढ़ संकल्प की तरुणाई जागे प्रशुराम की परसु जागे। बजे समर की पांचजन्य अब राष्ट्र हित मे सब कुछ जागे। प्रखर राष्ट्र चेतना फिर से जागे मौन नही अब कृष्ण यहा पर। गीता का समर स्वर बाचे बैभव माँ के बीर यहा के जो छन-छन अपने प्राणों को बाटे बली वेदी पर रक्त संचित सांसो को ये धन्य राष्ट्र के बीर बाँकुरे जो। राष्ट्र रकच्छन में सब कुछ बाटे . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान आप भी अपनी क...
पेड़ कोई राह का
ग़ज़ल

पेड़ कोई राह का

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** पेड़ कोई राह का फ़िर हरा हो जाएगा। धूप में कुछ छाँह का आसरा हो जाएगा। वो हमारे पास जितना आ गए तो आ गए, फासला जितना रहेगा दायरा हो जाएगा। खुल के अपनी बात कहना ये हमारी खोट है, इक सियासी जो कहेगा सब खरा हो जाएगा ख़्वाब में जितने नज़ारे देखलें तो देखलें, आँख देखें जो दिखेगा माज़रा हो जाएगा। पेड़ -पौधे,जीव सारे जो तुम्हारे हैं सहारे, जो सभी की फिक्र लेगा वो धरा हो जाएगा। कर रहें हैं बात के जरिये सुलह की कोशिशें, जो अमन की रीत देगा पैंतरा हो जाएगा। . परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
प्रवीण
कविता

प्रवीण

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** हम करते रहे वफ़ा, वो मन ही मन रहे खफा, दर्द का हम ढूंढते रहे दवा, उनका बढ़ता गया जफा, हमारे त्याग की हुई तौहीन, समस्या आती रही नवीन, होती रही परीक्षा कठिन, धीरे-धीरे होता रहा मैं प्रवीण... परिचय :- बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये औ...
पिता का महत्व
कविता

पिता का महत्व

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** पिता हमारी पहचान हैं, उनसे रोशन सारा जहाँन है। पिता माँ का श्रृंगार है, पिता उज्जवल भविष्य, का हकदार है। पिता का दिल सागर समान है। पिता जीवन ,संबल शक्ति है। पिता खट्टा मीठा खारा है, पिता मेरा अभिमान है। पिता प्यार का अनुशासन है, पिता जन्म और दुनिया दिखाने का एहसास है। पिता रक्त के दिये, संस्कारों की मूरत है। पिता रोटी कपड़ा और मकान है। पिता छोटे से बड़े परिन्दों का आसमान है। सब यात्रा व्यर्थ है यदि बच्चों के होते पिता अस्मर्थ है। खुशनसीब है जो माँ पिता के साथ है, कभी न आती आँच है, मिलता आशीर्वाद है जीवन होता आबाद है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर...
कर दो धरा पवित्र
कविता

कर दो धरा पवित्र

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** प्रभु रामजी चल पड़े,,,,, सेना लेकर साथ। आज सिया को लाएंगे, दे रावण को मात। लंका होगी अग्निमय और रावण का संहार, संग हनुमत सुग्रीव है,,, जामवंत भी साथ। हे महादेव प्रण पूरा होगा आज मेरे श्रीराम का। जबतक पूरा काम नही, नाम नही विश्राम का। २ महादेव हे महादेव, महादेव हे महादेव.....३ करदो धरा पवित्र आज, और असुरों का संहार। बढ़ते पाप घटाओ प्रभु, सब दूर करो अंधकार। अमरता है प्राप्त जिसे, ब्रह्मा ने ये वरदान दिया। अंत करो उसका तुम हे जिसने अभिमान किया। सत्य की होगी जीत ये दिन, आखरी है संग्राम का.... हे महादेव प्रण पूरा होगा आज मेरे श्रीराम का। जबतक पूरा काम नही, नाम नही विश्राम का। २ महादेव हे महादेव, महादेव हे महादेव.....३ तीनो लोक के देवता तुमसे करते है ये पुकार प्रभु। हो जाएंगे धन्य सभी पर,,,,, होगा ये उपकार प्रभु। सत्य सनातन ध...
धारा विचलित गगन विचलित है
गीत

धारा विचलित गगन विचलित है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** धरा विचलित लगन विचलित है, मालिक अब संभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालों तुम।। तुम्हारे वश में मृत्यु है, जीवनधन तुम्हारा है। ये तुमको है पता फिर क्यों, नजर से ही उतारा है।। कोरोना के विषाणू से, हमें क्यों यूँ डराते हो। किया क्यों घरमें सबको बंद, खूँ आंसू रूलाते हो।। तुम्हारे थे तुम्हारे हैं, दयालु, देखोभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। कोई पत्ता नहीं हिलता न, हो मर्जी तुम्हारी तो। इशारा दो हवा हो जाए, मौला ये बीमारी तो।। ना माथे का मिटे सिंदूर , ना गोदी ही सूनी हो। ना छीने जाएं घर हमसे, न ये तकलीफ दूनी हो।। तुम्हारी शरणागत दुनिया, हमें भी तो निभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। यकीनन राज कोई इसमें, है जिसको तुम्ही जानों। है अच्छा क्या बुरा क्या है, इसे भी तुम ही पहचानों।। करम ...
अनंत
कविता

अनंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कठिनाइयों में सोचने की शक्ति आर्थिक कमी से बढ़ जाती संपन्न हो तो सोच की फुरसत हो जाती गुम अपनी क्षमता अपनी सोच बिन पैसों के हो जाती बोनी पैसे हो तो घमंड का बटुवा किसी से सीधे मुँह बात कहा करता? बड़े होना भी अनंत होता हर कोई एक से बड़ा छोटा जीता अपनी कल्पना आस की दुनिया में आर्थिकता से भले ही छोटा हो मगर दिल से बड़ा और मीठी वाणी से जीत लेता अपनों का दिल बड़प्पन की छाया में हर ख़ुशी में वो कर दिया जाता या हो जाता दूर इंसान का ये स्वभाव नहीं होता पैसा बदल जाता उसके मन के भाव जिससे बदल जाते स्वभाव जो रिश्तों में दूरियां बना मांगता ईश्वर से और बड़ा होने की भीख बड़ा होना इसलिए तो अनंत होता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प...
विश्वास है हमको
कविता

विश्वास है हमको

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** विश्वास है हमको चल पडे़गी यह कलम भी, विश्वास है हमको, समझेगी हर बात वह भी, विश्वास है हमको, न रहेंगी अधूरी पंक्तियां हर शब्द मुकम्मल होगा विश्वास है हमको, अड़ जाती है कभी जिद पर, आखिर बच्चा है यह कलम भी, जल्द ही समझ जायेगी विश्वास है हमको, इसके सहारे चलते है हम, यह जानती समझती है कलम, झुकने न देगी मस्तक मेरा यह, विश्वास है हमको, छोड़ दे सारा जहाँ यह अपने पराये छोड़ दे, पर न छोडे़गी यह कलम, विश्वास है हमको .. . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भ...