फरियाद
प्रवीण कुमार बहल
गुरुग्राम (हरियाणा)
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हम दास्तान फरमाते रखें...
पर सुनने वाला कोई ना था
शायद यही कारण रहा...
कि हम जिंदगी जीत ना सके
तनहाइयां हर तरफ घेरे रही
और हम किसी के हो ना सके...
फरियाद क्या करते किसी से
हर गम दिल में छुपाते रहे...
अपने दर्द किसी को- सुना ना सके
दिल तो दर्द से भरा रहा...
दिल के चिराग जला ना सके...
मोहब्बत का इजहार कैसे करते हैं...
दिल ने कभी करने ना दिया...
फरियाद क्या करते सुनने वाला
कोई ना था
शौक बहुत है जिंदगी में
कमबख्त वक्त नहीं कभी..
पूरे होने ना दिया-क्या करता
जिंदगी की हसरतों को...
कभी दिल का सहारा ना मिला
दिल भी जलता तो रहा...
पर खामोश आग की तरह
जिंदगी के चिराग तो...
हर पल बुझते रहे-दिल के घाव
बढ़ते रहे
हर पल चरागों के जलने की गर्मी...
जिंदगी के चारों ओर सिमट कर रह
गई
इलाज ढूंढता रहा- इलाज हो ना
सका
पर सभी ने इसे लाइलाज कह
दिया
मेरी...