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पद्य

भीड़ में भी इतनी तन्हाई क्यों है
कविता

भीड़ में भी इतनी तन्हाई क्यों है

राकेश कुमार साह अण्डाल, (पश्चिम बंगाल) ******************** आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है यूँ अपनो मे ही इतनी रुसवाई क्यों है। तन्हा था मैं, पर फिर भी जो साथ होती थी मेरी वो परछाई भी आज यूँ हरजाई क्यों है। आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है।। माना की आज वो नहीं है साथ मेरे उसे फिर से पाने का कोई रास्ता नहीं है हाथ मेरे। पर दिल मे अब भी तो उसी की याद है जुड़े हैं सारे उसी के साथ जज़्बात मेरे। पर वो तो मुझे भी भूल जायेगी जैसे भुल गई हर एक बात मेरे। माना की आज वो नही साथ मेरे।। कोई बता दे मुझे साथ रह कर भी चाँद तारों मे यूँ जुदाई क्यों है । कुदरत ने ये मोहब्बत, इस बेदर्द जहाँ मे बनाई क्यों है। जब बिछड़ना ही है मुकाम इसका तो यूँ दिल से दिल की डोर बंधाई क्यों है। आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है यूँ अपनो मे ही रुसवाई क्यों है। तन्हा था मैं पर फिर भी जो साथ होती थी मेरी वो परछाई भी आज हरजाई क्य...
बातें हिंदुस्तान की
छंद

बातें हिंदुस्तान की

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** अच्छा तो बताता हूँ मैं बातें हिंदुस्तान की, होनी चाहियें पूजा अपने देश के जवान की, हुई जो लड़ाई तो सीमा पर सीना तान कर, करते हैं रक्षा जो भारत माँ की शान की, सभी हिन्दुस्तानी सुनो, देश की कहानी सुनो, आओ हम भी मिलके अपने फर्ज को निभाते हैं। चलो एक दीप उनके नाम पे जलाते है, जो देश की सेवा में अपनी जान को लुटाते हैं। कुछ दिन पहले खबर एक आई थी, गलवान वाली घाटी में तो हुई एक लड़ाई थी, सेना ने भी अपनी ताकत दिखलाई थी, दुश्मनों को धूल इस वतन की चटाई थी। सभी हिन्दुस्तानी सुनो, देश की कहानी सुनो, आओ हम भी मिलके अपने फर्ज को निभाते हैं। चलो एक दीप उनके नाम पे जलाते है, जो लौट के वापस अपने घर नही आते हैं। सेवा की कीमत अपने लहू से चुकाते हैं, माँ का आँचल छोड़ बहुत दूर चले जाते है, देके अपनी जान इस वतन को बचाते हैं, ओढ़के तिरंगा घर वापस चले आते है...
डॉक्टर्स भगवान
कविता

डॉक्टर्स भगवान

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** एक भगवान ने जन्म दिया, दूजा डॉक्टर भगवान हैं, बीमारियों का इलाज करके, देते जीवनदान हैं। अपनी अमृतवाणी से, लोगों में उत्साह जगाते, आप ठीक हो जाएंगे, यह विश्वास जगाते हैं, कर्म योद्धा है देश के, उन की अलग पहचान है। एक भगवान ने जन्म दिया दूजा डॉक्टर भगवान हैं। दिन-रात इलाज करते, अपना फर्ज निभाते हैं, मौत को गले लगाकर भी, औरों की जान बचाते हैं, गर्व है हमें डॉक्टर पर, पर वह भी तो इंसान हैं, एक भगवान ने जन्म दिया, दूजा डॉक्टर भगवान हैं। सैनिक सीमा की रक्षा करते, देश को बचाने में, डॉक्टर अपनी ड्यूटी करते, रोगियों को बचाने में, तो उनके उपकारों को न भूलें, वे दुनिया में महान है, एक भगवान ने जन्म दिया, दूजा डाक्टर भगवान है। परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ ...
याद रहोगे
कविता

याद रहोगे

संजय जैन मुंबई ******************** हम सब एक दिन मर जाएंगे। इस संसार से मुक्ति पा जायेंगे। और छोड़ जाएंगे अपनी लेखनी व कर्म। जिस के कारण ही याद किये जाएंगे।। शब्दो के वाण दिल को बहुत चुभते है। दिलसे जुड़ी बातों को ही याद रखते है। भूल जाते है जिंदा में जब लोग। तो मरने के बाद क्यों याद करेंगे।। लोग करनी के कारण, ही याद किये जाते है। जो अच्छा करके जाते है, वो ही याद आते है। यदि किया नहीं कोई, अच्छा काम जिंदगी में। तो बाहर वाले क्या, घर वाले ही भूल जाते है।। मानव जीवन है अनमोल, इसके मूल्य को समझे। खुद जीये औरों को भी, सुख शांति से जीने दे। इस सिद्धांत को अपने, जीवन में अपनाएंगे। तो निश्चित ही लोगो के, दिलो में जिंदा रह पाओगे।।   परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर का...
शिव
कविता

शिव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** शिव जीवन है। शिव मरण है। शिव सत्य है। शिव सनातन है। शिव ओ३म है। शिव वेद है। शिव विधान है। शिव गीत है। शिव नाद है। शिव धरा है। शिव व्योम है। शिव नदियां है। शिव महासागर है। शिव शिला है। शिव शिखर है। शिव रस है। शिव स्वाद है। शिव वन है। शिव मन है। शिव ज्ञान है। शिव विज्ञान है। शिव शक्ति है। शिव भाक्ति है। शिव प्रश्न है। शिव उत्तर है। शिव साकार है। शिव निराकार है।   परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के...
सितम
कविता

सितम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सितम इश्क को मेरे, आजमाते क्यों हो, दर्द को मेरे, बढ़ाते क्यों हो, ख्वाबों में मेरे बार-बार, आते क्यों हो, बीते वक्त की याद, दिलाते क्यों हो, इश्क को मेरे आजमा ते क्यों हो...... इतना सितम अब, ढाते क्यों हो, सब कुछ तो लूटा मेरा, अब मेरी बर्बादियों पर, जश्न मनाते क्यों हो, इश्क को मेरे आजमाते क्यों हो.... दर्द भरी जिंदगी, जीने दे सुकून से, हर आहट पर, अब अपने आने का, एहसास कराते क्यों हो, कर दिया जब, नजरों से दूर ......बहुत दूर.... तो अपना बनाने की, खता करते क्यों हो, इश्क को मेरे आजमाते क्यों हो..... सर्द रातों में, ख्वाबों में आकर, जाते क्यों हो, बड़ा दम भरते थे, अपने इश्क का, अब अपनी मोहब्बत से, "यकीं मेरा" मिटाते क्यों हो..... इश्क को मेरे, आजमाते क्यों हो, दर्द को मेरे बढ़ाते क्यों हो।।   परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त...
मखमली रिश्ते
कविता

मखमली रिश्ते

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** मखमली रिश्तों में बंधकर कई रेशमी अहसास मुझे भिगोना चाहते हैं कभी वीरानों में पुकारते हैं कभी तनहाई में तुम्हारी याद दिलाते हैं नर्म अंधेरों में धीरे-धीरे सिमटकर मुलाकातों के घने साए में सितारों की छांव तलशते हैं जब भी तुम आते हो हौले से मेरे ख्वाबों में ये तुम्हारे संग संग चाहतों की रुपहली दुनिया मे खामोशी से खोना चाहते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कलश, इंदौर  पूर्व उपाध्यक्ष वामा सा...
जैसी हूँ मैं …
कविता

जैसी हूँ मैं …

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करो मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करो कर दरकिनार मेरी बुराइयों को अच्छाइयों को अंगीकार करो माना लाख बुराइयां है मुझ में और गलतियों की भी कमी नही लेकिन कर उन सबको नजर अंदाज थोड़ा मुझमें भी विश्वास करो मैं जैसी हु, मुझे वैसे ही स्वीकार करो मोटी हु या हो चाहे पतली काली हो या चाहे गोरी सब रंग रूप को छोड़कर हाँ, सब रंग रूप को छोड़कर थोड़ा गुणो पर भी तो दृष्टिपात करो मैं जैसी हु मुझे वैसे ही स्वीकार करो मत बदलो मुझे इस दुनिया के अनुसार, जिंदगी!!!! जिंदगी है मेरी.... दिखावे की गुड़िया का खेल नहीं....? सरल, स्वच्छ, निर्मल लहर सी हूँ मैं ... मुझ मैं नकली सा जहर नहीं.... मत बनाओ मुझे कठपुतली हाथों की मुझे अपनी राह पर ही चलने दो मैं बना सकूं अपना अस्तित्व, मुझे खुद के निर्णय लेने दो.... अगर कर सको तो बस इतना कि मुझे ...
कोई भी शख़्स
ग़ज़ल

कोई भी शख़्स

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन कोई भी शख़्स हर मैदान में क़ाबिल नहीं होता। जो आक़िल है कभी वो मौत से ग़ाफ़िल नहीं होता।। उसे इंसान कहना भी है इक तौहीन इसाँ की। जो सुख दुख में भी अपनों के कभी शामिल नहीं होता।। कोई रंजो अलम होता न होता दर्द-ए-दिल यारो। सुकूँ से कटते दिन जीना यहाँ मुश्किल नहीं होता।। सुनाते थक गया हूँ दास्तान-ए-ग़म ज़माने को। किसी से कुछ बताने के लिए अब दिल नहीं होता।। है नाशुक्री वफ़ा के बदले में कुछ चाहना यारो। वफ़ा हासिल है ख़ुद इससे बड़ा हासिल नहीं होता।। ये है बहर-ए-ग़म-ए-हस्ती इसी में डूबना होगा। यही साहिल है इसमें दूसरा साहिल नहीं होता।। लुटाते हैं मता-ए-जाँ भी राह-ए हक़ मे दिल वाले। जमा करता वो धन दुनिया में जो आक़िल नहीं होता।। मशक्कत के बिना हमने तो कुछ मिलते न...
उम्र का दौर
कविता

उम्र का दौर

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** गुजरते देखा आज उम्र को, जब पड़ी स्वयं पर नजर। उम्र खुद को खुद से जुदा कर, चेहरा-चेहरे से बिछुड़ गया किस कदर। बढ़ती उम्र जीवन के साथ ही, बीत चला जीवन का सफर। उम्र का हर इक दौर, धरता चला अपने समय पर। उम्र का नजरिया भी देखो, स्वयं से रुबरु होने में बीत जाती उम्र।   परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, ले...
कलमकार की ख्वाहिश
कविता

कलमकार की ख्वाहिश

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** कलमकार की ख्वाहिश नहीं आह की कोई चिंता, नहीं वाह की है ख्वाहिश, निष्पाप मां करूं तेरी साधना, मेरे मस्तिष्क को रखना पवित्र... विवेक रखना मेरा शुद्ध, साहस से करना नहीं वंचित, मानवीय पीड़ाओं का मैं, वर्णन कर सकूं बेबाक सचित्र... शब्द मेरे हो इतने अनमोल, छलियों को करे अचंभित, वेदनाओं का करूं ऐसा वर्णन, पल में पत्थर हो जाये द्रवित, माया की तराजू तोले नहीं, बदले कभी नहीं मेरा चरित्र, कलम बंधन में बंधे सके, मुझे बनाना नहीं इतना दरिद्र, निश्चिंत रहूं मैं इतना, निर्बल का कर सकूं जिक्र, हक की लड़ाई का हो मामला, किसी तीस मार खां का ना करूं फिक्र, मजबूर कर सके कोई नहीं, लालसाएं हो इतना सीमित, गलतियां ख़ुद की स्वीकार करूं, मेरे दिल को रखना पवित्र... कपटियों का भय कम नहीं हो, विचारधारा हो नहीं मेरा दूषित, मेहरबानी तेरी मुझपर इतनी रहे, नई ...
मत ढूढ़ना मुझको
कविता

मत ढूढ़ना मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुबह का सूरज हूँ मैं, रात के तारों में मत ढूढ़ना मुझको मुस्कुराता ही मिलूँगा मैं, गम के मारों में मत ढूढ़ना मुझको। मिल जाऊंगा किसी मंदिर मे होते भजन, कीर्तन के जैसे यूँ सड़कों से गुजरते जुलूस के नारों में मत ढूढ़ना मुझको। अपनी एक अलग ही दुनिया बसा रखी है सबसे दूर मैं ने ढूढ़ना तो अपने दिल में, भीड़ हजारों में मत ढूढ़ना मुझको। होंगे कोई और वो जो मर मिटते हैं तेरी हर एक अदा पर अपने ऐसे बिगड़े, लफंगे, लुच्चे, यारों में मत ढूढ़ना मुझको। खुश्बू बिखेरता फिरता है यह निर्मल जमाने में चहुंओर जब भी ढूढ़ना गुलों में ढूढ़ना, खारों में मत ढूढ़ना मुझको। इंसान हूँ सिर्फ इंसानियत की बात करता हूँ सदा से ही मैं जातिवादी, ब्राम्हण, क्षत्रिय, डोम, चमारों में मत ढूढ़ना मुझको। . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले...
नाटककार
कविता

नाटककार

प्रेमचन्द ठाकुर बोकारो (झारखण्ड) ******************** सिमट जाती हैं हमारी आत्माएँ कहीं कोने में वेदना की प्रहार से, निशब्द हो जाते हैं हमारे चेहरे पितृसत्ता के समक्ष, सजल हो जाते हैं हमारे नयन परिजनो की निश्छलता के कारण। कभी हम अभिमान बन जाते हैं तो कभी अपमान, हमारी न कोई पहचान। दहलीज़ हमारे बदल जाते हैं माथे पर सिन्दुर लगते ही, प्रथा है शायद हम अबलाओं के लिए। हमें हर क्षण सहिष्णुता का स्वयंसेवक बनाया जाता है और यही हमारी पहचान। हमें किस-किस रूप में और दिखाएँ जाएंगे कभी रावण की कैद में "सीता", तो कभी कौरवों के अपशब्दों की झोली में "द्रोपदी", तो कभी प्रणय पावन की अभिशाप में "शकुन्तला" और आज दरिन्दो की बुरी निगाहों में "कठपुतली"।   परिचय :- प्रेमचन्द ठाकुर निवासी :  बिरनी, जिला-बोकारो, झारखण्ड घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
हमने खुद की भुला दिया है
कविता

हमने खुद की भुला दिया है

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** भुला के हमने यादें उनकी मानो की गंगा नहा लिया है झुका के पलके चुरा के नजरे पराया तुमने बना दिया है भूल के हमने यादे उनकी मानो की गंगा नहा लिया है ओ तेरा मिलना गले से लगना कसम ए वादे भूल दिया है जा रहा हु मायूस होकर मैंने भेष फकीराना बना लिया है भुला के यादे हमने उनकी मानो की गंगा नहा लिया है हैं ये मुहब्बत बड़ी अभागन पल में उसने ठुकरा दिया है न वो आये न ही याद आये खुद को हमने भुला दिया है भुला के यादे हमने उनकी मानो की गंगा नह लिया है . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
सीधे से जीवन में उलझा इंसान
कविता

सीधे से जीवन में उलझा इंसान

राहुल शर्मा जयपुर, (राजस्थान) ******************** ईश्वर की है देन सीधा, सरल, सौम्य, मधुर जीवन। यूं ही ऐसा ही सोच अपने मन में रच दिया ये भुवन।। प्रकृति से अनजान मानुष आकर इस नरवेश में । धुंधली-सी नजर हकलाती सी आवाज इस परिवेश में।। देख मोहक रचना इस मनुष्य वासी ग्रह की। धीरे-धीरे बुनने लगा है इक कथा अपने मन ।। ये आकाश, पृथ्वी, अग्नि, हवा, जल पंचतत्व। मानव ने सुर्लभ प्रयोग यूं नाम दिये मनगढ़ंत।। प्यास व भूख मिटाने को, तन को रंगों से ढकने को। पांव की दूरियां मिटाने को, नभघर को छूने को।। इन सब को पूरा करने के लिए किये कई सृजन । प्रगति की अभिलाषा में दूर होते जा रहे सारे जन।। मनमोहक-सी धरा के सुंदर नजारे देख प्रेम-विश्वास में। दया, हित, करुणा भावों को रचा इन शब्दों में।। चलता रहा वह प्रकृति के रंगों को बदरंग करते। रंग बदला तो बदला मानव कुछ ये गहरा धरते।। धर लिए औजार नफरत, ईर्ष्या, घ...
फरियाद
कविता

फरियाद

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** हम दास्तान फरमाते रखें... पर सुनने वाला कोई ना था शायद यही कारण रहा... कि हम जिंदगी जीत ना सके तनहाइयां हर तरफ घेरे रही और हम किसी के हो ना सके... फरियाद क्या करते किसी से हर गम दिल में छुपाते रहे... अपने दर्द किसी को- सुना ना सके दिल तो दर्द से भरा रहा... दिल के चिराग जला ना सके... मोहब्बत का इजहार कैसे करते हैं... दिल ने कभी करने ना दिया... फरियाद क्या करते सुनने वाला कोई ना था शौक बहुत है जिंदगी में कमबख्त वक्त नहीं कभी.. पूरे होने ना दिया-क्या करता जिंदगी की हसरतों को... कभी दिल का सहारा ना मिला दिल भी जलता तो रहा... पर खामोश आग की तरह जिंदगी के चिराग तो... हर पल बुझते रहे-दिल के घाव बढ़ते रहे हर पल चरागों के जलने की गर्मी... जिंदगी के चारों ओर सिमट कर रह गई इलाज ढूंढता रहा- इलाज हो ना सका पर सभी ने इसे लाइलाज कह दिया मेरी...
सावन आयो रे
कविता

सावन आयो रे

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** सावन आयो रे, सावन आयो रे, उमड़ घुमड़ कर आई बदरिया, आसमान में छाई बदरिया, चम-चम चम-चम बिजुरिया चमके, तन-मन को हर्षाए बदरिया, पशु-पक्षी नर-नारी सभी की, प्यास बुझायो रे, सावन आयो रे। छम-छम-छम पानी की बूंदे, घुंघरू की तान सुनाएं, पुरवइया के मस्त झकोरे, कानों में बंसी बजाए, भर गए सारे ताल-तलैया, बच्चे कागज की नाव चलाए, बरखा की ठंडी फुहार, तन-मन को हर्षाए, रंग उमंग और मस्ती के संग, गीत मल्हार गायो रे, सावन आयो रे। इठलाती बरखा की बूंदे, जब धरती पर आती है, महक जाती है, सौंधी खुशबू से, हरियाली छा जाती है, कल-कल स्वर में बहती नदियां, मधुर संगीत सुनाती है, हरित वर्णों में लिपटी वसुंधरा, दुल्हन सी शर्माती है, वृक्ष लताएं झूम-झूम आनंद मनायो रे, सावन आयो रे, सावन आयो रे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्...
मैं क्या करुँगा
ग़ज़ल

मैं क्या करुँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** अपने दिल की तक़लीफ़ों को मैं ही जानता हूँ इसे दूसरों से बताकर मैं क्या करुँगा। ख़ुद अपने को सिमट-सिमट हर रोज जी रहा हूँ किसी और से बाँटकर मैं क्या करुँगा। मेरी रसके-कँवर ने मेरा फोन तक नहीं उठाया अब इस ज़िन्दगी को लेकर मैं क्या करुँगा। तुमने बिन सोचे कर लिया सगाई किसी और से अब तुम्हारे बिना जीकर मैं क्या करुँगा। हर कोई कर रहा है मुझे दफ़नाने की साज़िश घर में कैद होकर मैं क्या करुँगा। अपने ही लोगों ने मुझे दे दिया है धोखा दोस्ती की भूल में जीकर मैं क्या करुँगा। मैं तो चाहता हूँ हर किसी के होठों पर मुस्कान हो पर ख़ुद रो-रोकर मैं क्या करुँगा। खुश रहना ऐ शातिरों अब मै जा रहा हूँ इससे ज़्यादा तुम्हें दुःखी करके मैं क्या करुँगा। माफ़ करना दोस्तों मैं जा रहा हूँ तुम्हें छोड़कर तुम्हारे साथ रहकर ही अब मैं क्या करुँगा। अपने...
गुरु वंदना
भजन

गुरु वंदना

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** गुरु मेरे सांई गुरु मेरे दाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु बिन डगमग मेरी जीवन नैया गुरु ही तो मेरे हैं नाव खेवइया गुरु बिन भवसागर पार कौन लगाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता तम से भरी दुनियाँ में राह दिखाये ज्ञान ज्योति उर में वही तो जलाये गुरु बिन सदमार्ग हमें कौन दिखाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु से ही पाऊँ मै भगवन दर्शन गुरु को ही अर्पण करूँ सारा जीवन गुरु चरणन में निशदिन माथ नवाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता संताप मरुस्थल में गुरु ठंडी छांव है जीवन सफर का केवल वे ही ठांव है गुरु मेरे हृदय पूज्य गुरु मेरे ज्ञाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांग...
बरसात की बूंदें
कविता

बरसात की बूंदें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** छत की टीन पर पड़ती बरसात की बूंदें.. टप टप करती ज्यो गिरती हो जज्बात पर बूंदें... अमराई की छाव मे मिट्टी से खेलती यह बूंदें... अन्तर के धुए को मिटाती सहलाती यह बूंदें.. कहते है सब कुछ हंसीन बना देती ह यह बूंदें... फिर क्यो मेरे नयनो से खेलती है यह बूंदें... ऐ आसमा गिरती है क्या तेरी आंख से यह बूंदें... तेरे भी किसी दर्द को वयां करती है यह बूंदें .... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
हे मां सरस्वती
भजन

हे मां सरस्वती

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे ३ इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मैं करता रहूँ अपनी कलम से तेरी सेवा २ मिलता रहे बस तेरी कृपा का मुझे मेवा। २.. इस सृष्टि में हर कोई मुझको ऐसा मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मां वीणापाणि शारदे दे ऐसी संगती २ हर रूप में तू साथ रहे मात भगवती २.. वर्णन तेरा ही कर सकूं वो वरदान दें... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। सबसे प्रथम प्रभात तेरी वंदना करूँ २ तेरे अलावा मैं कहीं किसी से ना डरूँ २.. तेरे नाम से ही जग मुझे ये सम्मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास कर...
स्वतंत्रता
कविता

स्वतंत्रता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हम सोचे थे हमारे आहूत महान आत्मा सोचे थे। हमारा राष्ट्र कितना प्यारा होगा वह क्षन जब सभी स्वतंत्र होंगे। वे सभी लक्षय उनकी चिर अभिलाषाओ को बेधकर जोक और मच्छरों के बेसुमार। झुंड सा बेगुनाह निरीह बेसहारा भारतीयों का नर पिसाच सा चतुर बहुरूपिया। रक्त चूस रहा है राष्ट्र का युवा मौन इन प्रताडनओ का दंश झेल रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है जहा इनसानीयत नही हो भेद भाव की सिर्फ स्वार्थ भरी कूटनीति हो। जो हैम सभी का प्रतिनिधित्व करते है। इनसानीयत को भूल जातिवाद अलगाववाद की कुचक्र रचते है। सजग होना होगा हम सभी भारतीयों को बेरोजगारी भुखमरी स्थाई समाधान ढूंढना होगा। डपोरशंखी घोसणाओ को समझना होगा माँ भारती की बाली वेदी पर जो सपूत आहूत होगए उन्हें नमन करना होगा। रोजगार परक शिक्षा को सत प्रतिशत लाना होगा हर भारतीयों के घर मे खुशियाली हो ऐसा हमारा नीतिन...
जय किसान
कविता

जय किसान

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** जग निर्माता, भाग्य विधाता मतृ भूमि का लाल है वो वीर किसान। जिसकी छमता का गुण गाता सारा हिन्दुस्तान है वो वीर किसान। बंजर धरती को उपजाउ, लोहे को भी सोना करदे है माने ये विज्ञान ऐसा वीर किसान। उसके घर में चक्की रोती भूखी बूढ़ी औरत सोती फिर भी करता अन्नदान ऐसा वीर किसान। चाहे हो सतयुग, द्वापर या हो त्रेता, कलयुग धरती का प्राणी चाहे पहुँचे बादल पार पर भूख मिटाता बस वो इन्सान जो है वीर किसान जय किसान, जय हिन्दुस्तान परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
बचपन
कविता

बचपन

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सबसे अनोखी ये अवस्था ना कुछ करना ना कुछ पड़ना गलियोंमें गुमते ग्याला बनते खेल -खेल में जो लेते मजा कभी ना हम दिल में चुभाते दोस्ती में ना भेदभाव का चलन........ ऐसा था हम सब का बचपन... माँ -पिता के साथ जो रहते बारिश का हमको खुभ लुभाना, मिट्टी से जो घर बनाना दादी से कहानियां सुनते ननिहाल के लिए हम तो रोते, छोटी सी मुस्कान से आंगन मेरा भर जाता गलती जब हम करते, माँ के आँचल मे जा छिपते माँ की ममता का तब होता मिलन..... ऐसा था हम सब का बचपन... पता नहीं ये कोनसा युग है छुपा है बचपन को लेकर आई एक तकनीक एसी सपनों में होते जेसे घूम, हो गयें उस तकनीक में बूम चलो कुछ एसा करते, जिसका कभी ना आदि-अन्त करना हमको ऐसा प्रचलन.... ऐसा था हम सब का बचपन.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी( राजसमंद)...