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पद्य

मित्रता की परिभाषा
कविता

मित्रता की परिभाषा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** मित्र एक शब्द है जाना पहचाना सा.... दिल के क़रीब कोई अपना सा.... जिससे नहीं हो कोई भी सम्बन्ध.... पर हो दिल के गहरे बंधन। जो बिन कहे सब समझ जाएं जिसे देख दर्द भी सिमट जाए.... जहाँ उम्र भी ठहर जाए.... जिसे देखकर ही आ जाये सुकून और सब तनाव हो जाये गुम.... तो वह है मित्र जब मुश्किलों से हो रहा हो सामना.... और लगे कि अब किसी को है थामना तब जो हाथ बढ़ाये वह है मित्र.... निःस्वार्थ, निश्छल, और सब सीमाओं से परे जहाँ बाकी न रह जाये कोई आशा.... बस यही है मित्रता की परिभाषा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौ...
उनकी यादें
कविता

उनकी यादें

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** आँखों के बीच समुंदर मे मौसम ने की बदमाशी है। सोते ही नही हम रातों को केसी ये तन्हाई हैं।। यादों के बीच समुंदर में तैर रहा हुँ मै। उनकी याद की 'यादो' से अब गैर हुआ हुँ मै।। माँ की ममता भुल गया में भुल गया राखी त्यौहार। जबसे पाया हे तुमको, मै भुल गया सारा संसार।। ना दोस्त रहें ना प्यार रहा ना रहा मेरा घर-संसार। तस्वीरो में केद होके, बस रह गई उनकी यादें हजार।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindir...
भाई-बहन
कविता

भाई-बहन

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** भाई-बहन का प्रेम से भरा, ऐसा त्योहार है रक्षाबंधन। रक्षा का सूत्र कलाई पर सजा, ललाट पर लगा ये रोली-चंदन। राखी है एक अद्भुत बंधन, जिसकी ना हो शब्दों में अभिव्यक्ति। भाई-बहन की असीम डोर, बांध रही रक्षा की यह पंक्ति। हर बहन को मिल जाती सारी खुशी, जब भाई की कलाई पर राखी बांधती। साथ ही भगवान से भाई की खुशी संग, लाखों दुआएं व खुशियां मांग लाती। आशीष-उमंग से भरा बहन का, भाई के प्रति ऐसा है प्रेम। जीवन का कैसा भी मोड़ हो, बहन-भाई का रिश्ता ना होगा कभी कम। परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
माँ
कविता

माँ

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** माँ तु फूल की डाल है वो, जो कभी ना मुजराने दिया मुझे। सर्वप्रथम मुख देखा है मैंने तेरा, तूने ही जन्म दिया है जो मुझे। गिर ना जाओ माँ कहीं में, चलना सिखाया है तूने मुझे। तू ही गुरु तू ही अन्नपूर्णा है माँ........ तूने खुशियां दी मुझे वो माँ, कभी तेरे आंचल से दूर गया नहीं मैं। जब रोता में माँ हँसाने का प्रयास करती तू, आज बारी मेरी तो कैसे दूर छोड़ जाऊं मैं। आशीर्वाद दे माँ तू मुझे अब, सपने सच करने चलता हूं मैं। तू ही लक्ष्मी तू ही वंदना हे माँ....... परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** राखी का त्यौहार आया, संग में खुशियां हजार लाया। भाई-बहन का सच्चा प्यार, प्रेम के धागे में पूरा समाया।। बहन अपने पीहर आयी, घर में फिर से रौनक छायी। बाबुल के बगिया की चिड़िया, फिर से घर में बहार लायी।। सबके चेहरे खिले-खिले, हंस-हंस कर सब बात़े करते। सब बचपन को याद करके, फिर से जीने की आस करते।। माथे पर तिलक लगा कर, कलाई पर राखी बांधती है। जीवन भर प्यार के संग-संग, बहन रक्षा का वचन मांगती है।। कहती है मेरे प्यारे भैया, तुम राखी की लाज रख देना। मां- बाप की सेवा करना, और उनको दुःख तुम मत देना।। शराब का सेवन मत करना, गाड़ी हेलमेट पहन चलाना। घर पर राह तकते बीवी-बच्चे, उन पर खूब प्यार लुटाना।। बहन तो इतना ही चाहती, अपने घर का मान बढाती। बहन बड़े प्यार से भाई की, कलाई पर राखी सजाती।। बहन बेटी जिस घर में होती, उस घर में सदा खुशियां आती...
धूप छांव आते हैं
कविता

धूप छांव आते हैं

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** धूप छांव आते हैं ! पूरा असर दिखाते हैं !.. धूप छांव मुट्ठी रेत उठाई हैं, प्यास भी बुझाई हैं, मृगतृष्णा नचाती हैं, भ्रम जाल बिछाती हैं, सूरज बनकर दावानल कभी दिन-रात जलाते हैं !... धूप छांव समय चक्र चलता है, मानव मन छलता है, सुख दुख का डेरा है, राग द्वेष का घेरा है, काल नियंता सबको नियंत्रित धूरी घुमाते हैं !... धूप छांव अनिश्चय सब फैला है, दो दिनों का मेला है, छल छिद्र भरे पड़े हैं, हानि लाभ अटे पड़े हैं, जिजीविषा के फेरे में सब अपना दांव लगाते हैं !... धूप छांव कर्म प्रधान माना है, धर्म महान जाना है, पुण्य सदा साथ चलेंगे, बाकी सारे हाथ मलेंगे, पाप संताप के झमेले में सब सपना नया सजाते हैं !... धूप छांव परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अभी तो बहुत हौसला है
कविता

अभी तो बहुत हौसला है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** अभी तो बहुत हौसला है मुझमें, बेजान नहीं हूँ मै, इस मतलबी दुनिया से अनजान नहीं हूँ मै। कोई कुछ भी कहे परवाह करता नहीं हूँ मैं, इस बेदर्द जमाने से भी डरता नहीं हूँ मै। पढूंगा-लिखूंगा नवाब भी बनूँगा मै, माता-पिता का नाम रौशन करूंगा मै। मंजिलो का मुसाफ़िर हूं मै, ख़बर कामयाबी की भी सुनाऊंगा मै। वक्त को मै बदलकर दिखाऊंगा, आसमान में भी परचम लहराउंगा। राहें आसान नहीं है मेरी, जानता हूं मै, नामुमकिन कुछ भी नहीं, यह मानता हूं मै। ठोकरें खाकर गिरता हूं मै, गिरकर उठता सम्भलता हूं मै। मुसीबतें कितनी भी हो, घबराता नहीं हूं मै धोखा अपने ही देते हैं, बस उनसेे डरता हूँ मै। कोसू किस्मत को, इतना मै बुजदिल नहीं हूं कमजोर जरूर हूं, मगर मै कायर नहीं हूं। थककर बैठ जाऊं बीच सफ़र में, इतना भी नालायक नही हूं मै। नाम मेरा भी होगा दुनिया में, बेनाम मर जाऊं...
राखी पे क्यों नही आये भईया
कविता

राखी पे क्यों नही आये भईया

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** यह कविता समर्पित है। देश के दो लाल (जवान) शहिद किशन लाल, और शहीद देव कुमार, जी को रक्षाबंधन के ठीक कुछ ही दिन पहले शहादत को समर्पित हो गए। इन्हें शत शत नमन है। 🙏🙏 दिलों में दीप खुशियों की जलाए बैठी थी,,, आएगा मेरा भईया आस लगाए बैठी थी,, पागल सी बनके बहना लोग से पूछे बार बार,, राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।। फूलों की थाली हाथों में सजाएं बैठी थी,, चंदन, मिठाई, राखी सब लियाए बैठी थी,, बहन का भी अब सब्र का बांध टूट रहा था,, आँखों की आंसू बनके दरिया फुट रहा था,, क्यों भूल गया है तू अब माँ-बाबुल का दुलार राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।। आँगन बैठी रोये बहना भाई के लिए श्रद्धा से राखी लाई हूँ कलाई के लिए सुनो ना भईया मुझे तुम इतना सताओ ना कर लूंगी थोड़ा इंतजार जल्दी से आओ ना ना चाहिए हमें मोतियों की माला और हार,, राखी ...
कथासम्राट प्रेमचंद
कविता

कथासम्राट प्रेमचंद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन! हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन - हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर : कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों और मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परि...
अस्तित्व
कविता

अस्तित्व

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बरसात की अंधेरी रातों में जब भी गूंजती खामोशियो को पानी की बूँदें तोडती है ऐसा लगता है जैसे रोशनी में शायद पानी अपना अस्तित्व खो देता डरती हूँ मैं भी खो न जाए कही अस्तित्व मेरा आधुनिकता के उस रोशनी में तोड़ न दे मेरी खामोशी को पाश्चात्य देशो का ये शोर और एक दिन मै भी अपने अस्तित्व को पाने के लिए रोशनी और शोर शराबे से दूर शांत एकांत अँधेरी रातों को तलाशते फिरूँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
मन का परिवेश
कविता

मन का परिवेश

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** हमनें तो वक़्त से जाना और सीखा जीना आँखों के अश्कों को कौन अपना समझता कब कौन दुख में हमारे शामिल होता ये मन का परिवेश है जो इन्सानियत को पढ़ता यह जीवन तो और सुख अपनों से मिलता पर कभी-कभी वो अपना भी पराया दिखाता जब होतीं हैं मुश्किलों की घड़ियाँ जिन्दगी की ये मन का परिवेश है जो उनके दिल को पढ़ता जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं सब के लिए कहीं धूप होती है जीवन में तो कभी छाँव लिए और कठिन परीक्षा का दौर पास जो कर लेता है इन्सां ये मन का परिवेश है जो जिन्दगी के रंग को पढ़ता ये दर्द, गम कब कहाँ किसे नहीं डसते हैं जख्मों के घाव आदमी भरने की चेष्टा करते हैं फिर भी नहीं वो पीर भूल पाते हैं हद की ये मन का परिवेश है जो ढाए जुल्म को पढ़ता परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार...
आया रक्षा बंधन
कविता

आया रक्षा बंधन

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** आया जी आया रक्षा बंधन का त्यौहार, भाई-बहनों का का प्यार का त्यौहार, जीवन के जन्मों-जन्मों का साथ देती, बहना भाई के जीवन को रक्षा करती, संसार के हर दुखों से भाई की भलाई करती, जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन की रक्षा करती हैं, हर संकट मे हौसला बढ़ाती भाई को, प्यार दुलार भाई पर लुटाती हमेशा, जीने की हजारों-हजार साल तक कामना करती, भाई की हर दुखों को हर लेती, उनकीं सुखी रहने की कामना करती, अपना अमृत सागर सुख चैन लुटाती, बहना-भाई की एक शान होती है, जीवन मे हर परिस्थियों से भाई को बचाती है, ममता की चादर ओढाती है, ममता की मूरत से सजाती है ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्...
गुरु
कविता

गुरु

दिनेश शर्मा 'डीन सा' भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** गुरु है तो हर मार्ग सुगम है गुरु बिन ये जीवन दुर्गम है। पाया है जो सब कुछ हमने कर्म समर्पित सारे सपने। दाता गुरु के सिवा कौन है जग में गुरु सम ओर कौन है। ईश्वर के अवतार श्रेष्ठ भी राम कृष्ण से धर्म स्थापक। गुरु के बिना नही सम्भव था बन सकते दनुज कुल घातक। आरुणि, उपमन्यु, एकलव्य चन्द्रगुप्त से शिष्य महान। धौम्य, द्रौण, चाणक्य ही थे गुरुवर इनके श्रेष्ठ महान। गुरु 'समर्थ' की कृपा से ही शिवा हुए युद्ध प्रवीण। लौटाया गौरव भारत का मुगलो ने जो किया था क्षीण। रामकृष्ण की ज्ञान भक्ति का फैला अनुपम तेज पुनीत। बन कर विश्व शांति की वाणी विवेकानंद बने नवनीत। अपने सिख को बिना मोल के स्वार्थ त्याग सर्वस्व समर्पण। दीन हीन की सेवा में रत जीवन जीना जो सिखलाता। ऐसे गुरु के चरणों मे ही यह सारा त्रिलोक समाता। भारत देश यह पावन अपना गुरु शिष्य ...
सृष्टि
कविता

सृष्टि

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** भोर की नरम घांस पर, पानी की बूंदों जैसी पत्तों पर पलक बिछाए ओस जैसी हूं मैं पेड़ों की छाया में सिमटी हुई सुकून जैसी बादलों में नन्हीं सी धुंधली किरन हूं मैं। पर्वतों को बर्फ के चादर में समेटे जैसी, ठंडी हवाओं की सरसराहट हूं मैं। स्वछंद परिंदों की उड़ान जैसी खेतों में लहराती उमंग हूं मैं। लरजती, इठलाती, खुशी और उल्लास से सराबोर नदी जैसी, सागर की गहरी सहेली हूं मैं। अब तो पेड़ों कि छाओं को ढूंढती, बिन बादलों के गुम सी होती जा रही हूं मैं। सिकुड़ती, सिमटती, उदास सी पहुंच से दूर निकलती जा रही हूं मैं। संभाल लो मुझे, गले से लगा लो, इंद्रधनुषी रंगों से आंगन भर दो मेरा क्योंकि पूरी कायनात की "सृष्टि" हूं ना "मैं" परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुला...
रेशम की डोर
कविता

रेशम की डोर

ममता रथ रायपुर ******************** रेशम की इक डोर ने मुझको खींचा अपने बचपन में कभी झगड़ते कभी मस्ती और खेला करते थे संग संग में दिन बीते , मौसम बदले वक़्त की भी उम्र बढ़ी सीखी हमने भी धीरे से जीवन की बारहखड़ी । कितने रिश्ते-नाते हमने निभाए प्यार से भाई-बहन सा नहीं है रिश्ता इस संसार में इसलिए याद आती है बचपन की धमाचौकड़ी काश हमने ना सीखी होती जीवन की बारहखड़ी ! परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
समय
कविता

समय

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** समय की भी अजीब माया है, कभी खुशियों की बारिश तो कभी दु:खों का साया है। समय की महिमा कभी समझ नहीं आती, ये जब तब सबको है भरमाती । समय का अपना ही अंदाज है, जैसे चमकती धूप में भी, झमाझम बरसात है। समय चक्र के खेल से कोई नहीं बच पाया, अमीर, गरीब, छोटा या बड़ा या ऊँच नीच कोई भी, समय चक्र से कौन कहाँ बच पाया? परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** आज हर्षित बेला में, पुलकित है तन मन, खुशियां लेकर आया है, यह रक्षाबंधन, सूरज की स्वर्णिम किरणें, सुंदर लग रही, भाई बहन का प्यार है, त्यौहार है पावन। स्नेह का धागा जिसमें, छुपा हुआ है प्यार, वर्ण ,धर्म जाति से ऊपर, उठकर यह त्यौहार, खुशियां बांधी बहना ने, भाई की कलाई पर प्यार के धागे में बंधा, है सारा संसार, सावन की रिमझिम फुहार, संग सुरभित है चमन, खुशियां लेकर आया है, यह रक्षा बंधन। रक्षा का धागा बांध, माथे तिलक लगाती है, आरती उतारती है, मिठाई भी खिलाती है, लंबी उम्र की प्रार्थना के लिए, दुआ करती है, कर्त्तव्य का बोध करा, मन में विश्वास जगाती है, कुलदीपक है घर का, भैया तुम्हें नमन, खुशियां लेकर आया है, यह रक्षाबंधन। नेक राह पर चलकर, सबका आदर करना तुम, माता-पिता क्रोधित हों तो भी चुप रहना तुम, वृद्धाश्रम की दीवार, गिरा सको तो गिरा द...
राम मंदिर निर्माण
कविता

राम मंदिर निर्माण

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** बड़े दिनों बाद हो रहा, राम मंदिर का निर्माण, बड़े दिनों बाद हो रहा, बहुसंख्यक भावनाओं का सम्मान, बड़े दिनों बाद हो रहा, एक जटिल समस्या का निदान, हैरान हूं देखकर, देश में क्यों मचा है, एक अजीब घमासान, किसी का जबरन धर्म नहीं बदला है, कर्म नहीं बदला है, हमारे राम हैं बहुत दयालु, उनके भक्त नहीं इतने हैवान, फिर भी चारों ओर शोर बहुत है, आख़िर कैसा यह तूफान, ग़रीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और महामारी, किसानों की लाचारी, परेशान है कारोबारी, राम मंदिर नहीं बने तो क्या ख़त्म हो जायेगी सारी बीमारी, समस्याएं बहुत है, कुछ नई कुछ पुरानी, काश्मीरी पंडितो के आंखो का आंसू और दर्दनाक कहानी, तुष्टिकरण की राजनीति और सत्ता की मनमानी, राम मंदिर का विरोध और हरकतें बचकानी, दिल में दबा गुस्सा और मानो खून बना था पानी, सत्ता के सिरमौर बने, कुछ लोग थे खानदानी, वक...
जहाँ तुम बिराजे हो
कविता

जहाँ तुम बिराजे हो

आशीष पाठक "अटल" मधुबनी बिहार ******************** हिमालय की शिखर चोटी, जहां शिव तुम बिराजे हो। शिखर पर चंद्र शोभित है, जटा से गंगा की उद्गम है। धूमल काला तेरा काया, जो भस्मो से अलंकृत है। मृगो की छाल लपेटे शम्भु, तुम श्मशान विचरते हो। इस विचरण में दानी तुम, मसानी शिव कहलाते हो। हम तेरे चरणों के सेवक हैं, तुम औघड़ दानी शंभू हो। तुम जग करता और धरता है, तुम ही तो सर्वस्व ज्ञानी हो। काल का छाया है सृष्टि पे, तुम काल का भी स्वामी हो। काल पर जिनका का नियंत्रण है, वह महाकालेश्वर उज्जैनी हो!!! ...... परिचय :- मधुबनी बिहार के निवासी आशीष पाठक "अटल" भोपाल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। साथ-साथ हिंदी और मैथिली में लेखन पठन, का भी कार्य कर रहे हैं। आपकी कुछ कविता सहायक लेखक के तौर पर प्रकाशित हुई हैं। आपके विचार : जिसने मुझे दिया उसे मैं क्या दे सकता हूँ, लेकिन जो भी सेवा मुझ से ...
अपनो से डर
कविता

अपनो से डर

संजय जैन मुंबई ******************** न जाने कितनों को, अपने ही लूट लिया। साथ चलकर अपनो का, गला इन्होंने घोट दिया। ऊपर से अपने बने रहे, और हमदर्दी दिखाते रहे। मिला जैसे ही मौका तो, खंजर पीठ में भौक दिया।। ये दुनियाँ बहुत जालिम है, यहां कोई किसी का नही। इंतजार करते है मौके का, जो मिलते भूना लेते है। और भूल जाते है अपने सारे रिश्ते नातो को।। और अपना ही हित ऐसे लोग देखते है।। आजकल इंसान ही इंसान पर, विश्वास नही करता। क्योंकि उसे डर, लगता है अपनो से। की कही उससे विश्वासघात, मिलने वाले न कर दे। इसलिए अपनापन का अब, अभाव होता जा रहा है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) स...
संबंध अनूठा राखी का
कविता

संबंध अनूठा राखी का

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है मधुर अटूट संबंध अनोखा भाई बहन का बंधन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है जैसे नारियल में पानी डोरी में रेशम होती है मिठाई में मिठास वैसे भाई की बहना होती है सावन की पावन पूनम को भाई से बहनें मिलती हैं बहिनों का हिवडा भरता भाई की बाँहें खिलती हैं भाई बहन का जीवन तो जैसे सुगंध और चंदन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है नारियल मिश्री, स्नेह हृदय में कच्चे धागों में पक्का प्यार कुंकुम तिलक आशीष अमर यश दीर्घायु ऊर्जा भण्डार आजीविका और शस्त्र शास्त्र उपहार में सीखूंगी मैं हूँ लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती अपना इतिहास लिखूँगी मैं बहना घर का गहना है भाई घर का रघुनन्दन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है कर्मा का जौहर याद करो हुमाय...
दिल बेचारा
ग़ज़ल

दिल बेचारा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** हर किसी का दिल कभी न कभी दुःखता है, मेरी एक आखिरी पहचान है ये "दिल बेचारा"। हर कोई अपने दिल को तसल्ली देना चाहता है, पर मानने को तैयार नहीं है ये "दिल बेचारा"। आपकी आँखों में आँसू तो हर कोई दे सकता है, पर आपके आँसुओं को पीना चाहता है ये "दिल बेचारा"। जब-जब याद आएगी तुम्हें अपने इस खास बन्दे की, तब-तब तुम्हें रुला देगा ये "दिल बेचारा"। मैं इस दुनिया में रहूँ या न रहूँ पर, मेरी कमी का एहसास कराएगा ये "दिल बेचारा"। आपका भी है दिल बेचारा, मेरा भी है दिल बेचारा, दर्द से भरे मन को समझाएगा ये "दिल बेचारा"। मैंने तो अपनी ज़िन्दगी जी लिया दोस्तों, तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ चलेगा ये "दिल बेचारा"। जब मेरी कमी का एहसास तुम्हें होगा, फिर से मेरी याद तुम्हें दिलाएगा ये "दिल बेचारा"। सब कुछ सह लेना जीवन में हार कभी मत मानना, साज़िशें...
कलम का सिपाही : कथा सम्राट प्रेमचंद
कविता

कलम का सिपाही : कथा सम्राट प्रेमचंद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। धनपत राय श्रीवास्तव से, प्रेमचंद हो, जीवन का संपूर्ण व्यवधान लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, समाज में फैली बुराइयों को, दूर करने का संकल्प लिखा। मानसरोवर के आठ भागों में, देकर कहानियों के ३०१ मोती। उस युग का महा त्राण लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। कर्मभूमि की राहों में, रंगभूमि का नया आयाम लिखा। नारी की दुर्दशा सहेज कर, मंगलसूत्र का प्राण लिखा। विधवा विवाह की कर अगवाही, कायाकल्प का आगाज़ लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। देकर नवजीवन, नवल सोच साहित्य को, वह कथा सम्राट नौ कहानी संग्रह, नौ उपन्यास का, कर योग गया। प्रथम अनमोल रत्न साहित्य का, कर गोदान, कफन में, लिख जीवन सारांश का, अंत गया। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" नि...
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गीत

कलाम

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। जीवन के पल-पल, क्षण-क्षण देश के नाम थे। हिन्दुस्तान की सेवा ही, बस उनके अरमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। पोकरण में कर धमाका, दुनिया को दिखलाये थे। अग्नि, पृथ्वी, नाग के जनक, वो भारत के लाल थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। एक हाथ में गीता, उनके एक हाथ कुरान थी। मज़हब की मिशाल, वे भारत के भगवान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। था अजब नजारा, जब वे चिर निद्रा में सोये थे। हिन्दू या मुस्लिम ही नहीं, पूरे भारतवासी रोये थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : ब...
तुम साथ नहीं हो
कविता

तुम साथ नहीं हो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उसकी बंदिश में कब तक रहता तुम्ही बताओ, मैं उसके जुल्म कब तक सहता तुम्ही बताओ! जहर पीता रहा मैं अब तक खामोशी से यारों, आखिर कब तक कुछ ना कहता तुम्ही बताओ! जो छलती रही सदा अपना कह-कह के मुझको, मैं एक बार उसको क्यों ना छलता तुम्ही बताओ! मेरी उन्नति से भी वो जलती रही अंदर ही अंदर, फिर मैं ही उससे क्यों ना जलता तुम्ही बताओ! सफर में साथ छोड़ के वो बदल दी हमसफ़र, अपने वादों से मैं क्यों ना बदलता तुम्ही बताओ! गुजर गया अनमोल समय बेमतलब के रिश्ते में, बर्बाद हुआ समय क्यों ना खलता तुम्ही बताओ! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशव...