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पद्य

लागी तुझसे लगन साँवरे
कविता

लागी तुझसे लगन साँवरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लागी तुझसे लगन साँवरे, तेरे बिना न जीना। तेरे बिन, लगता है मुझको, काल कूट विष पीना। रहा नहीं जाता तेरे बिन, दिल में भी तू छाया। नहीं समझ में आती मोहन, मुझको तेरी माया। तुझसे लगन लगाई मोहन, तुझको अपना माना। है उद्देश्य यही जीवन का, केशव तुझको पाना। तुझको देखे बिना कन्हैया, होता नहीं सवेरा। तेरे बिना हुआ है मोहन, दुखमय जीवन मेरा। माखन मिश्री लेकर प्रतिदिन, तेरी राह निहारूँ। निष्ठुर, बेदर्दी मनमोहन, तुझ पर तन मन वारूँ। छुप जाता तू जानबूझकर, तुझको दया न आती। पागल हूँ, तेरे बिन मोहन, तेरी याद सताती। तुझसे लगन लगाकर मैंने, अमन चैन खोया है। तेरे बिना कन्हैया हर पल, मेरा मन रोया है। मनमोहन विनती है तुमसे, मुझको पास बुला लो। अपना मान कन्हैया मुझको, अपने अंक लगा लो। परिच...
लागी तुझसे लगन
कविता

लागी तुझसे लगन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** उड़ गई निदिया रातों की, जल-जल जाए वदन, जबसे देखा चांद-सा चेहरा, लागी तुझसे लगन। जब भी देखूं,जहाँ भी देखूं, आये तुम ही नज़र, अपलक राह तके नयन, होकर ख़ुद से बेख़बर। तुम्हारी यादों में ही गुज़रे, अब तो मेरे दिन-रैन, जो आ जाओ मेरे सामने दिले-बेक़रार पाए चैन। यूं तो लाखों है दुनिया में, पर तुमसा कोई कहां, तुम्हें ही अपना "मत्स्य" माना, तुम्ही हो मेरे जहां। है बिन तेरे अब नामुमकिन, जग में तन्हा जीना, तेरी ही चाहत में रहे गुज़र, मेरे दिन साल महीना। आकर देख ज़रा अब मेरा, दर्दे-दिल ओ बेदर्दी, कितने ही सावन बरस गए, आया न तू हद करदी। जोड़ा तुमसे ही नाता मैंने, ओ मेरे जाने -जिगर, आ अब गले लगा ले मुझे, बनकर मेरा हमसफ़र। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) ...
संघर्ष से सफलता पाएगा
कविता

संघर्ष से सफलता पाएगा

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मंजिल का क्यों नहीं ध्यान तुझे, कैसे हो जाती है, थकान तुझे, खुद की नहीं है, पहचान तुझे, समय का क्यों नहीं, भान तुझे? पथ से कैसे, भटक गया है तू? बाधाओं में कैसे, अटक गया है तू? झूठी तकरारों में लटक गया है तू, अगर-मगर में सिमट गया है तू। तोड़ दीवारें आगे बढ़ने की ठान, अपनी ऊर्जा को पहचान, ग्रहण कर,हो सके जितना ज्ञान, सबको हो तुझ पर अभिमान, बड़ी सोच का जादू चला, दुनिया मुट्ठी में कर दिखा। काम में अपने जुटा रह , प्रगति के पथ पर डटा रह। संघर्षों से मंजिल पाएगा, दुनिया में नाम कमाएगा। औरों को राह दिखाएगा, जीवन सफल हो जाएगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
श्रमिकों की वंदना
कविता

श्रमिकों की वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** श्रमिकों का नित ही है वंदन, जिनसे उजियारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खींच रहे हैं भारी बोझा, पर बिल्कुल ना हारे। ठिलिया, रिक्शा जिनकी रोज़ी, वे ही नित्य सहारे।। मेहनत की खाते हैं हरदम, धनिकों पर धिक्कारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति के वाहक । अन्न उगाते, स्वेद बहाते, जो सचमुच फलदायक ।। श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा। यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा।। संघर्षों की आँधी खेले, साहस जिन पर वारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। ऊँचे भवनों की नींवें जो,उ त्पादन जिनसे है। हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिवादन ...
हालत और हालात
कविता

हालत और हालात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** हालत और हालात करे मुक्का लात हालात ने बनायी ये हालत हालत से बने ये हालात दोनों मे छिड गयी ऐसी बात तू डाल-डाल मै पात-पात करे विरोधाभासी मुलाकात हालत से हालात परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) ...
उम्मीद का चिराग
कविता

उम्मीद का चिराग

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तन्हाइयो का सफर हैं तेरा और मेरा तन्हा कैसे कट पाये सफर अब मेरा आप तड़पते बैठे हो अकेले ही वहाँ जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीद का चिराग ही जला पा रहे हैं साथ होगा दिल को समझा पा रहे हैं जाने किस विधि साथ होगा अब तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा कैसे भी हालात अब जीना ही पड़ेगा गम के आंसु खुद को पीना ही पड़ेगा कभी तो सफऱ में साथ मिलेगा तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा क्या कभी हम साथ-साथ हो पायेंगे हर हाल में पिया तेरे साथ जी पायेंगे कभी मन निराश ना हो मेरा और तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीदों के सहारे जीवन काट लेंगे गम व ख़ुशी आपस में ही बाँट लेंगे तू बने राधा मेरी मै घनश्याम हूँ तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा जी रहे केवल साथ की ही आश में बचा जीवन का सफर हो विश्वास में रब ...
चुनाव का महापर्व
कविता

चुनाव का महापर्व

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** चुनाव का महापर्व चुनाव है लोकतंत्र को मजबूत करने का महापर्व मतदान का महायज्ञ खुद का अधिकार खुद को होता है गर्व किसी से न होता डर आता है जब चुनाव नेता को चयनित का बटन दबाकर करते गर्व मतदान की कतार में मतदान का दिखता महापर्व मतदान केंद्र में मतदाता भारी उत्सकुता से आता मतदाता कतार लगाता मतदान से निर्णय दे जाता चुनाव अधिकारी मतदाता का हिसाब चुनाव में रखता जाता चुनाव परिणाम में मतदाता का मतदान मुख्य भाग्य विधाता कहलाता चुनाव का अधिकार मतदाता को लोकतंत्र मजबूत की परिभाषा बताता मतदान केंद्र में एक एक मत का कितना है दम समझो कि है देश के मतदाता एक एक मत से लोकतंत्र मजबूत बनाते हम मतदान केंद्र में जाने का सबको समझाओ अर्थ अपने अधिकार का चुनाव दिखलाता अर्थ यही है चुनाव यही मतदान का महापर्व परिच...
मोहब्बत भी इबादत है
कविता

मोहब्बत भी इबादत है

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** उसकी नजरों ने छू लिया पहली दफा जब उसे देखा था वो ख्वाब है या हक़ीक़त उस रात इस उल्झन में डूबा था, तकते रहे उसकी राहें ये पन्ने भी डलती हूई शामों को उससे मिलने का इंतज़ार था हर मौसम ज़िन्दगी का सुहाना हो गया इन रातों को भी उससे मिलने का खुमार था, शाम जलने लगी उसके नूर से खूबसूरती का मंज़र जन्नत से कम नहीं था वो पल शायद ही मैं लिख पाता उसे सजाने के लिए इस शायर के पास कोई रंग नहीं था, उसके हर पहलू में खोया रहूँ उसकी हर एक अदा में मुझे सुकून मिलता है उससे मिलकर ये जाना मैंने कि हक़ीक़त में चाँद कितना खूबसूरत लगता है, उसका मुस्कुराना मेरे दिल को राहत देता है ज़िन्दगी जीने का जरिया देता है बेवजह ही अब मुस्कुराता रहता हूँ हर पल उसके ख्याल में बिताना मुनासिब लगता है मेरी मोहब्बत की आशीमा का मुझे खुद अंदा...
नादान को ज्ञान
गीत

नादान को ज्ञान

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो पीर बढ़ती जा रही है ध्यान दो। श्याम हमको साथ तेरा चाहिए। नित्य चरणों में बसेरा चाहिए।। मातु पितु ही आप मेरे प्राण हो। अब सुनो स्वामी जरा कल्याण हो।। बात को कान्हा जरा तुम मान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। दूर हैं जब आप हम बैचैन है। भूल सकते हम न मीठे बैन है।। अब दया कर दो कृपाला श्याम हो। प्रेम में मीरा बनूँ कुछ नाम हो।। भक्ति का कान्हा सुधा रसपान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। त्याग माया मोह आयी द्वार हूँ। छोड़ना मत श्याम अबला नार हूँ। हूँ बड़ी व्याकुल किशन अब तार दो। बेणु बजती प्रीत गीता सार दो।। मेट सारे क्लेश सुख भगवान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट ...
गुमसुम बचपन
कविता

गुमसुम बचपन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** हाय! हुआ गुमसुम बचपन यह कैसी सीख है। लदे हुए बस्ते भारी-भारी दबी हुई हर चीख़ है।। ग़ायब हुई कश्ती कागज़ की बरसाती पानी से। सिमट गया दौर किस्सों का बरगद-सी नानी से।। कोमल करों में ढेरों क़िताबें, कैसी यह पढ़ाई है। कूड़े में भाग्य ढूंढ़े बालमन, कैसी यह बड़ाई है।। ख़त्म बात विश्वास की, मन में कैसा मेल आया। जलता बालपन दीप-सा छटता ना तृषि साया।। शिक्षा व्यवसाय बनी संस्कृति से नही सरोकार। रिश्ते रद्दी कागजी लगे, नातों से मुक्त व्यवहार।। समय रहे करना होगा, बचपन का नव इंतज़ाम। वरना रहो भुगतने तैयार भीवत्स लाखों अंजाम।। आओ बचाएं बचपन प्यारा, मोबाइल के जाल से करें विचार मिलजुल अभी, पीड़ा किस सवाल से।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं ...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कोई जीवन कविता है, कोई बना कहानी कोई समाज का दर्पण, कोई बना इतिहास लिये जीव की अंतिम सांस। कोई विज्ञान बना है, कोई कोषागार कोई कला का सागर, कोई छुए आकाश लिये ह्रदय में प्यास। कोई मरुभूमि बना है, कहीं खेत हरियाता कोई किनारा अधबिसरों का, कोई सागर सा लहराता लिये मिलन की आस। जितने मन हैं उतने ढंग, जितने जीवन उतने रंग तरह-तरह के करे प्रयास, अंत मिले अनंत का वास भाव ये मन में, भरें मिठास। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति...
गुमनाम
कविता

गुमनाम

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गंभीर स्वभाव गंभीर विचार, गंभीर भाव गंभीर है चाल। शेर जैसी जिसकी दहाड़ बाज जैसा निशाना, शुक जैसी जिसकी वाणी, राजनीति को जो हे खिलाड़ी, रीझे जिस पर, साधु- संत-महंत और ज्ञानी। देश विदेश में देखो ख्याति, हर शब्द देखो हे वाणी, तरकस से छूटे जैसे बाण। सनातन का पक्का वह प्रहरी, गरीबो का वह कृपा निधान। ध्यान योग तप और साधना, हे जिसके जीवन मै ज्ञान। देश प्रेम और देश सेवा ही जिसका है परम उद्देश्य। आप बताओ कौन है देश मै? राजा, संत महंत या त्यागी, सबके मन का जो है मीत। चित्त मे जिसके हरदम रहता सनातन और देश प्रेम का जज्बा? परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अम्बर, अम्बर सागर सागर मे अम्बर प्रति बिम्बित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रिता अम्बर सागर में अथाह उत्साह। अम्बर के गहरे में मन्थन मन्थन को मन का सम्बल सम्बल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पार दिवारे जाऊं कहां ढुंढे आंचल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में र...
झूठI कौन
कविता

झूठI कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकांड विद्वान ने अपनी वैज्ञानिक आविष्कार के लिए रात-दिन एक करते हुए एक प्रयोग आरंभ किया, इंसानी मनोभावों का किया निरंतर अध्ययन, कुछ खास भावों का किया चयन, आभासी दुनिया का निर्माण उनका मूल लक्ष्य था, शुरुआत किया जाये कैसे बहुत बड़ा प्रश्न यक्ष था, कपोल कल्पना, फ़रेब, झूठ, इन सबसे कैसे मचाया जाये लूट, लोग धीरे-धीरे होने लगे इकट्ठे, सीखने लगे मारना झपट्टे, कौन छोटा कौन बड़ा पढ़ाया जाने लगा, लोगों में ये सुरूर सर चढ़ छाने लगा, सब समान है ये भाव क्यों सहें, बिना विशेषाधिकार वो क्यों रहे, लक्ष्य के सामने जो आये उन्हें क्रूरता से रौंदना जरूरी था, वज्रपात कुछ सरफिरों के लिए कौंधना बहुत जरूरी था, नयी खोज के लिए पूरे देश से एक सोच वाले वैज्ञानिक बुलाये गए, क्या करना है बताये गये, सामाजिक ताने-...
ये ज़िन्दगी
कविता

ये ज़िन्दगी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वारे-द्वारे वन्दनवारे मुस्काती ज़िन्दगी हंसते गाते मुखड़े देख गीत गाती ज़िन्दगी सिसकती झुर्रियों के बीच अश्रु बहाती ज़िन्दगी दर्दों की दुनिया देख कर लँगड़ाती ज़िन्दगी कुचली कली के दुखों पे शरमाती ज़िन्दगी हैवानियत की हद कहाँ? है बौराती ज़िन्दगी उलझी डोरें रिश्तों की भी सुलझाती ज़िन्दगी प्यार से संग उड़ती पतंगें नहीं कटाती ज़िन्दगी डोलती कश्ती को कभी नहीं डुबोती ज़िन्दगी बिन तैरे ही मझधार पार नहीं कराती ज़िन्दगी सुप्त सिंह के मुख में मृग लाती नहीं ज़िन्दगी बुलन्द हौंसलों को ही है बढ़ाती ज़िन्दगी मंज़िल को हाथों में देने नहीं आती ज़िन्दगी पहला कदम तो बढ़ा राहें खुलवाती ज़िन्दगी दिल में उतरे सज्जनों को संभालती ज़िन्दगी दिल से उतरे से सम्भलना है सिखाती ज़िन्दगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्...
प्रेम क्या है
कविता

प्रेम क्या है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम क्या है क्या ये किसी रिश्ते का नाम है या इसका संबंध देह से है नहीं 'प्रेम' तो इक 'अनुभूति' है वह मोहताज नहीं रिश्तों का क्योंकि रिश्ते तो अपना मूल्य मांगते हैं मूल्य न मिलने पर सिसकते, टूटते, बिखरते हैं फिर यहाँ प्रेम कहाँ. क्या प्रेम देह से जुड़ा है नहीं जिस तरह पूजा के बाद अमृत, पानी नहीं रह जाता तो प्रेम का पर्याय देह कैसे हो सकता है? प्रेम का न कोई मूल्य होता है न ही कोई दैहिक सम्मोहन प्रेम इन सब से परे है प्रेम इबादत है. प्रेम इन्सानियत है प्रेम बन्दगी है प्रेम भक्ति है प्रेम विश्वास है इसमें ना खोना है न पाना है बस करते चले जाना है. फिर ये प्रेम मनुष्य का मनुष्य से हो या मनुष्य का ईश्वर से हो या ईश्वर की किसी कृति से हो. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक...
सनातन की छाया
कविता

सनातन की छाया

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके मन में सदा सदा से, रही सनातन की छाया। सुचिता शुभता और धर्म सँग, धन यश वैभवभी पाया। हमें सनातन ने सिखलाया, चलते रहें सुपथ पर हम। नेक राह चलकर सुख पायें, नहीं रहे जीवन में गम। बने दीन हितकारी हम सब, काम सभी के हम आयें। दीन दुखी की पीड़ा हर कर, दीन बंधु हम कहलायें। सबके घर में करें उजाला, दुनिया को रोशन कर दें। अंधकार को दूर हटाकर, खुशियों से घर को भर दें। धर्म सनातन ही सिखलाता, औरों के दुख दूर करें। जिन्हें गुमान देह,दौलत का, उन सबका मद चूर करें। दें सम्मान, सभी धर्मों को, धर्म सनातन बतलाता। जो सारे जग का शुभ चाहे, सच्चा मानव कहलाता। जिसके जीवन में पल भर भी, रही सनातन की छाया। धर्म सनातन धारण करके, राम धाम उसने पाया। करें धर्म की रक्षा हर पल, मन का मैल हटा लें हम। मान गुमा...
जाल
कविता

जाल

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के लिए चहुँ ओर इच्छाओं का जाल बुनता है सुख और दुख के तराजू में तौलता हुआ कभी उठता तो कभी गिरता है, इच्छायें मरती है, जाल बिखरता है उम्मीदें समाधिस्थ होती हैं ताउम्र वो समझता है ईश्वर नाखुश है तभी तो आशाएं बिखर रही तिनका बनकर वह नहीं समझता संसार मिथ्या है कर्म शिव है! शून्य और अनंत के बीच उकेरते कुछ संवाद, जिसमें प्रार्थनाएं संजो देनी है, क्योंकि ये जाल उसने नहीं, स्वयं मनुष्य ने बुनी है!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम...
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …
कविता

मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** छोड़ कर काम सारे चले आइए, मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... बंद आंखें करूं तो दिखो तुम ही तुम, आंखें कब तक खुली बोलो रख पाऊंगा। झूठ बोलूं ये आदत में शामिल नहीं, प्यार की बात कब तक छुपाऊंगा मैं। लाख मुस्काऊं मैं नए कपडे पहन, कुछ भी जंचता नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... देखकर दोस्त मुझको ये कहते सभी, इसकी हालत बिगड़ती चली जा रही। लग रहा आजकल ये भी पीने लगा, चमक इसकी उतरती चली जा रही। काम उल्टे सभी हो रहे आजकल, कोई टोके नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... कल की घटना बताऊं मैं घर से चला, राह में एक लड़की से टकरा गया। उसने दी गलियां मुझको पीटा बहुत, वो बोली ये लड़का है पगला गया। उसको कैसे बताता मैं बेहोश था...
अच्छे नेता
कविता

अच्छे नेता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब तो नालायकों से भी काम चल जाता है, इसी बहाने लोगों का दिल बहल जाता है, राजनीति में सुचिता की बातें एक धोखा है, इन नेताओं ने नैतिक स्याही को सोंखा है, आज के लीडर की मशहूरियत जरूरी है, झूठ, गुंडागर्दी के बिना नेतागिरी अधूरी है, जीत पाने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं, वक्त आने पर गर्दन में छुरी भी धर सकते हैं, मतदाताओं को अपनी ओर लाना जरूरी है, तभी तो उनकी भावनाएं भड़काना जरूरी है, नहीं रहा वो दौर जब आरोप पर पद छोड़ते थे, खुद और दल की छवि स्वच्छता से जोड़ते थे, लायक बेचारा विजय वोट नहीं ला पाता है, नाकारा नालायक विजय उड़ा ले जाता है, इन्हें कोसने का हमें कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि हमें खुद अच्छे लोग स्वीकार नहीं है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
हनुमत ऐसा भाव बहा दो
भजन

हनुमत ऐसा भाव बहा दो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत ऐसा भाव बहा दो, जिससे सुंदर गीत बन सकें। पूर्ण समर्पित हो मन तुमको, और भक्ति रसधार बह सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने जिस पर कृपा दृष्टि की, उसका ही उद्धार हो गया। जिसको स्वामी से मिलवाया, वो ही भव से पार हो गया। मुझको मार्ग दिखाते रहना, जिससे सेवक धर्म निभ सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने प्रभु राम से अपने, राजा की संधी करवाई। अभय दान दिलवा राजा को, बाली को मुक्ति दिलवाई। राम काज को भूला राजा, नीति बताई, प्राण बच सके। हनुमत ऐसा भाव ... तेरे संत हृदय ने दंभी, रावण को सद्ज्ञान था दिया। पर निज अहंकार के कारण, उसने इसका मान ना किया। रावण ने कुल नाश कराया, प्रभु हाथों से मुक्ति मिल सके। हनुमत ऐसा भाव ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
श्रीराम
भजन

श्रीराम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** श्रीराम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। श्री राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस-सांस में है बसा नाम तुम्हारा श्रीराम ही तो है बस मेरा सहारा। हे श्रीराम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्री राम दुःख दूर होगा मिलेगा सुख आराम। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
यशोदा नंदन
कविता

यशोदा नंदन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ यशोदा नंदन करता जग सारा अभिनंदन प्रगटे नंदलाला। २ नाच नचावत छछिया भर छाछ दिखाबत ब्रज ग्वालिन। ३ आठवी संतान लियो रूप नर,नाराण मुरली मनोहर। ४ वृषभानु दुलारी बनी कृष्ण प्राणन प्यारी अनुपम जोड़ी। ५ दाऊ भैय्या कहत मोल लीनो मैय्या खींजत घनश्याम। ६ त्यागे मिष्ठान तोड़ो दुष्ट दुर्योधन अभिमान विधुर भाए। ७ बन शांतिदूत किया कौरव कुल आहूत त्यागो विद्वेष। विधान - पहली पंक्ति २ शब्द, दूसरी पंक्ति ४ शब्द, तीसरी पंक्ति २ शब्द शब्द से आशय - दो या दो से अधिक सार्थक वर्णों से मिलकर बनने बाले शब्द परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
सिद्धार्थ
दोहा

सिद्धार्थ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्म मरण का खेल यह, समझ न पायी पार्थ। गीत ग़ज़ल था छंद भी, सब कुछ था सिद्धार्थ।। बसे क्षितिज के पार तुम, भूल गए सिद्धार्थ। अब जीवन ये बोझ है, क्या साउथ क्या नार्थ।। चली तेज पछुआ हवा, रूप बड़ा विकराल। जलता दीपक बुझ गया, खोया घर का लाल।। पीर समझ पाया नहीं, बैरी था संसार। मित्र अकेली मातु थी, करे स्वप्न साकार।। सूखे-सूखे हैं अधर, अँखियों में है नीर। ममता बड़ी अधीर है, उर है अथाह पीर।। कबिरा साखी मौन है, चुप मीरा के श्याम। रूठे सीता राम भी, जप लूँ कैसे नाम।। चर्चा करती रात-दिन, मिटे नहीं संताप। खंडित है विश्वास सब, करते नित्य विलाप।। मोह त्याग कर चल दिया, भूला मातु दुलार। पल-पल लड़ता मौत से, लिए अश्रु की धार।। अतिशय अन्तस् पीर है, मनवा रहे उदास। राजा बेटा लाड़ला, करे हृदय...
सामना
कविता

सामना

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रुख पहाड़ों की तरफ किया तो समझ आया जन्नत इस धरा पर भी है। रुख बादलों की तरफ किया तो समझ आया बदमाशी इनमें भी है। रुख बहती नदी की तरफ किया तो समझ आया जीवन का बहाव इनमें भी है। रुख हरे-भरे खेतों की तरफ किया तो समझ आया जीवन का अंश इनमें भी है। रुख वृक्षों की तरफ किया तो समझ आया जीवन की समझदारी इनमें भी है। रुख डूबती हुई नाव की तरफ गया तो समझ आया जीवन का अंतिम पड़ाव इनमें भी है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...