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पद्य

नैनों में प्यार है कितना
कविता

नैनों में प्यार है कितना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** नीर भरी आंखे किस-किस से छीपाये स्व की अफलता का कैसे पता लगाये उम्र बढ़ी और बढ़ती गई जिम्मेदारी भी नैनों में प्यार है कितना किसको बताये हृदय की सरलता कैसे समझ पायेगा जितना दिया है उतना ही अब पायेगा अंतर्मन का द्वन्द कोई कैसे जान पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये अपने ही अपने ना रहे फिर आस कैसी सम्मान नहीं फिर उसपर विश्वास कैसी स्वभिमान बेच कर कोई कैसे जी पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये कोई जी भी पाया है क्या खुद के लिए जीवन कुर्बा किया जो अपनों के लिए उस शख्स की पीड़ा कोई जान ना पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये दावानल लगी है जीवन कानन मे अब करुणा का भाव ही नहीं आनन मे अब आप ही बताये जग मे कैसे जीया जाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये स्वार्थ से सजा है रिश्तों के बा...
पांडे की प्राण
कविता

पांडे की प्राण

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** वह भावना शौर्य की जो पहले गई, ना रही राष्ट्र प्रेम और आजादी की स्मृति, नयनाभिराम घटना देखने को आंखें तरसती, कहीं हाड़ी रानी का सिर कटा, वह रानी लक्ष्मी गई, फिर भी इस देश की मेहमानी रही, सन् सत्तावन का संवत्सर, खीज गए सेनानी, पांडे की उग्रता चली, लेफ्टिनेंट की प्राण गई, पहचान रही चिरस्थाई पांडे ने भी प्राण गंवाई, स्वर गूंजा किसानों का, ब्रिटिश का राज हिला, जुड़े गुजराती गांधी, भारत में लाई नई आंधी, अंग्रेजों से लिया लोहा, न था उसमें वज़न, कौड़ी भाव बिका दिया, जनता ने बनाई तलवार, शीश काटे उग्रवादी, उन पर भारी वार, सब बन गए देश के महान पहरेदार, जगह-जगह खेली खून की होली, अंत समय में टूट गई ब्रिटिश राज की झोली, छोड़ निंदिया जाग उठे हिंदुस्तानी, भागने को विवश ब्रिस्टानी।। कुछ सीखना है, इस कलम से सीखो। ...
प्रेम मधुर अहसास है
दोहा

प्रेम मधुर अहसास है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम मधुर अहसास है, प्रेम प्रखर विश्वास। प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम लबों पर हास।। प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक। प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।। प्रेम राधिका-कृष्ण है, राँझा है,अरु हीर। प्रेम मिलन है, प्रीति है, प्रेम हरे सब पीर।। प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग। प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।। खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव। पावन करता प्रेम नित, नगर, बस्तियाँ,गाँव।। प्रेम दिलों का भाव है, प्रेम खिलाते फूल। मिले प्रेम तो राह के, हट जाते सब शूल।। प्रेम साँस है, आस है, प्रेम लगे आलोक। प्रेम बिना सूना सदा, सचमुच में यह लोक।। प्रेम खुशी है, हर्ष है, प्रेम सदा शुभगान। प्रेम बिना नीरस लगे, निश्चित आज जहान।। प्रेम ईश, अल्लाह है, गीता और कुरान। प्रेम बिना...
मानव तन मुक्ति का साधन
भजन

मानव तन मुक्ति का साधन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मानव तन में भेजा प्रभु ने, जनम मरण से मुक्ति हेतु। राम नाम सुमिरन में लग जा, ये ही बन जाएगा सेतु। मानव तन......... ईश्वर है करुणा का सागर, सबपर करुणा बरसाता है। जिसकी दृढ़ आस्था ईश में, पात्र उसी का भर पाता है। अपने मन को निर्मल करले, अन्तर इष्ट को देखेगा तू। मानव तन............ सारी सृष्टि है प्रभु की रचना, हम सब ही हैं उसके बच्चे। राग द्वेष को दूर भगा दो, बन जाओगे साधक सच्चे। डूब गया प्रभु की भक्ति में, सब में प्रभु को देखेगा तू। मानव तन.......... ईश्वर की सुंदर बगिया में, फूलों की सुगंध बहती है। प्रतिपल प्रेम लुटाता ईश्वर, संतों की वाणी कहती है। आस्था की झोली फैला दे, कृपा के मोती पायेगा तू। मानव तन........... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह ...
साँसों का क्या ठिकाना
कविता

साँसों का क्या ठिकाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब रुक जाएं चलती साँसें, कोई नहीं ठिकाना? चलते रहना तुम जीवन भर, कहीं नहीं रुक जाना। जब तक साँसें, तब तक जीवन, दिल की धड़कन चलती। जब रुक जाती दिल की धड़कन, तब काया है जलती। साँसों से जीवन चलता है, बिना साँस रुक जाता। नहीं ठिकाना है साँसों का, मानव समझ न पाता। मानव गर्भ छोड़कर ज्यों ही, बाहर आ जाता है। चलने लगती साँसें उसकी, जीवन पा जाता है। निर्धारित साँसें मिलती हैं, प्रभु प्रदत्त जीवन में। साँसें ही ऊर्जा भरती हैं, मानव के तन-मन में। साँसों का आना-जाना ही, जीवन कहलाता है। साँसों के रुकते ही मानव, मुर्दा बन जाता है। साँसों का सब लेखा जोखा, परमपिता रखता है। जो जैसा करता जीवन में, वैसा फल चखता है। तूने जितना जीवन पाया, उतनी साँसें तेरी। रखना साँसों को सँभाल कर, हो ना ज...
भाई दूज
गीत

भाई दूज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कहे बहिन की प्रीति सदा ही, भइया रीति चलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। बहिना का है प्रेम निराला, पावन जैसे गंगा धारा। रक्षक भाई है बहना का, नित दूजे पर तन मन वारा।। जुग-जुग जिए बहिन का भाई, यह आशीष दिलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। भाई दूज का पर्व है प्यारा, खुशी हजारों लेकर आता। मंगल पावन तिलक लगाती, बहिना को त्यौहार सुहाता।। प्रेम सदा छलकाता भाई, अद्भुत ज्योति जलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। जुग जुग जिए बहिन का भाई, प्रभु से वर ये माँगे बहिना। सुख समृद्धि सदा घर आये, झोली खुशियों से प्रभु भरना।। कृष्ण सुभद्रा सी है जोड़ी, नेहिल अमिय पिलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। ...
रहें ना रहें हम
कविता

रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रहें ना रहें हम फिर भी हमारा निशान रह जाएगा! जो बीज रोपे थे बड़े अरमानों के साथ, उनमें खिलते पुष्पों की खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा। उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं, कुछ भावनायें उन्हीं में मेरा निशान मिल जाएगा!! जिस वृक्ष को सींचा था जतन से उसका एक भी आखिरी पत्ता जो हरा रह जाएगा, उसकी निर्मलता में मेरा निशान मिल जाएगा!! कभी जो बैठना सूकून से पंछियों के कलरव और तान सुनना उनके सुर के संगीत में मेरा निशान मिल जाएगा! कल कल बहती रही जीवन भर एक नदी की तरह जो कभी बैठो उसके तट पर, चंद लम्हों के लिए, उसकी गहराईयों में मेरा निशान मिल जाएगा।। खुद के भीतर इन्सानियत को जिंदा रखना कभी जो सुनना किसी जीव की दर्द भरी कराहटें, उनकी करुणा भरी पुकार, उस दर्द में मेरा पता मिल जाएगा!! अपने ...
चीखें
कविता

चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए बचपन से अवसाद और कष्ट से पीड़ित रहा हूँ मैं समझ नहीं पाता था ये क्या और अखिर क्यों है मैं अपने रक्त रिसते घाव में चीख रहा हूँ क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा??? मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा जो मैं लाचार हो कर अंदर ही अंदर क्रंदन करता हूँ क्या कोई उसे समझ पाएगा???? हे मानव तुम्हारे मुस्कराते चेहरों के पीछे एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है जिसपर नफरत, क्रोध, घृणा, नृशंसता रहती है मेरी सालो साल खामोश चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं मुझे आग में जीते जी जलाते हो मुझे आग से नहलाते हो पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता मगर ये इंसान का कौन सा रूप दिखाते हो???? मैं गलियों, रस्ते, काली धुंध भरी दुनिया मे रहता हूँ मैं क्या बिगाड़ प...
प्रवासी दुनिया
कविता

प्रवासी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** समुंदर का नीलापन आकाश का नीलापन उड़ रहे क्रेन पक्षी एक नया रंग दे रहे प्रकृति को। सुंदरता दिन को दे रही सौंदर्यबोध रात में ले रहा समुंदर करवटे लहरों की। तारों का आँचल ओढ़े चंद्रमा की चाँदनी निहार रही समुंदर को क्रेन पक्षी सो रहे जाग रहा समुंदर। मानों कह रहा हो प्रवास की दुनिया पर जाने से ही दुनिया और भी सुंदर लगती है। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व क...
कानून की चक्की
कविता

कानून की चक्की

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून की चक्की में रिश्ते - नाते, सगे - संबंधी सब पीस जाते हैं। अदालत की चक्कर काटते-काटते, जूता - जूती सब घिस जाते हैं।। मौका देख सुनसान गली - चौराहों में, शातिर जुर्म करते हैं रात के अंधेरे में। जोर है पक्ष - विपक्ष के दलीलों में, अदालत को सबूत चाहिए सवेरे में।। कभी - कभी कानून की चक्की, चलते - चलते जाम हो जाती है। लोगों को इंसाफ मांगते - मांगते, सुबह से लेकर शाम हो जाती है।। अच्छा वकील ढूंढने के लिए, खुद को वकील बनना पड़ता है। काले - कोट वालों की भीड़ से, एक को ही चुनना पड़ता है।। वकीलों को भगवान समझकर, नोटों का चढ़ावा देना पड़ता है। अपने दिल पे पत्थर रखकर, रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना पड़ता है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
लगे जिगर में गोली है
गीत

लगे जिगर में गोली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वोट बैंक के खाते से बस, खेलें नेता होली है। अवसरवादी राजनीति में, रोज़ पदों की डोली है।। धुत्त नशे में अब नेता हैं, कालिख मुख गद्दारी की। हुड़दंगी दल बदलू नाचें, हद होती मक्कारी की।। ढोल -मजीरे स्वयं बजाती, बड़ी प्रजा यह भोली है। घर-घर राजदुलारे जाते, भूल गये सब मर्यादा। दीप-तले ख़ुद अँधियारा है, कुचल गया चलता प्यादा।। फिरती झाड़ू उम्मीदों पर, लगे जिगर में गोली है। दल्लों की भरमार हुई है, आप जान लो सच्चाई । पिचकारी ई डी की चलती, रँगें जेल की अँगनाई।। मुखिया आँख बँधीं पट्टी है, शैतानों की टोली है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति...
दिखाओ अपने अंदर का डर
कविता

दिखाओ अपने अंदर का डर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** तुम्हारा ये डर जाने का कारोबार, लगा जबरदस्त, धमाकेदार, वाकई में डरते बहुत हो, पल पल मरते बहुत हो, हथियारों से लैस तुम्हारे इतने रहबर, क्या नहीं बचा सकते तुम्हें बढ़कर, लोगों का दिमाग,उनके दिए पैसे, थेथरई के साथ खा लेते हो कैसे, फिर मानते आए हो हमें सदा दुश्मन, फिर भी वसूलने की चेष्टा हमसे ही हमारा धन, सुनियोजित रहन सहन, सुशिक्षित पूरा जीवन, सुनियोजित प्रशिक्षित संगठन, जहां समर्पित शत्रुओं का तन मन धन, जगह जगह विराजित तुम्हारेआस्थाई बूत, सर्वज्ञ,शक्तिशाली,सर्वव्यापी मजबूत, मगर डर किस बात का, कहते खुद को उच्च जात का, क्यों घबरा,छटपटा रहे देख विरोधियों के बढ़ते फैलते जाल, कहां खो गया भस्म करते, आकाशवाणी करते,डराते मायाजाल, युगों युगों से चले आ रहे अपने विचारधारा,सिद्धियों पर क्यों भरोसा नहीं ...
नीरोग रहना बड़ी बात है
कविता

नीरोग रहना बड़ी बात है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा आजकल, ज़िन्दगी में बढ़ी घात पर घात है। दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। है धुआँ ही धुआँ वायु दूषित हुई, बाग बीमार हैं पुष्प खिलते नहीं। योग होता नहीं रोग जाता नहीं, वक्त पर वैद्य तक आज मिलते नहीं।। साँस पर घोर संकट हजारों खड़े, मौत से प्राण की नित मुलाकात है दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। नीर निर्मल नहीं, क्षीर है ही नहीं, क्या लिखा है युवाओं की तकदीर में। देखने को मिलेगी हमें खेलते, बाल वीरों की तस्वीर तस्वीर में।। बात बूढ़ों की तुमको बताऊँ तो क्या, यह समझ लो कि दुक्खों की बरसात है।। दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। हैं जरूरी बहुत औषधालय बढ़ें, हो चिकित्सा सदा वैद्य मिलते र...
भाईदूज
कविता

भाईदूज

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भाई बहन के प्यार का है यह त्यौहार, भाई दूज पर मनता है प्रेम का यह त्यौहार, यमुना, यम भाई-बहन इनसे ही शुरुआत, करते रक्षा बहन की प्रेम भाव और प्यार, बहना करती भैया का आदर और सत्कार, रोली कुमकुम अक्षत से करती टीका ललाट। प्रेम के रक्षा सूत्र से बँधा दोनों का प्यार जीवन भर निभना रहे भाई बहना (व्यवहार) प्यार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रच...
भगवती वंदना
स्तुति

भगवती वंदना

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मां भगवती सदैव आपकी शरण रहूँ भले दुखों का प्रहार हो भले सुखों की बाहर हो। मां भगवती सदैव आपकी चरणवन्दना करुँ भले लोग मेरे खिलाफ़ हो भले लोग मेरे साथ हो। मां भगवती सदैव आपका चिंतन मनन करुँ भले नर्क की यातना झेलू भले स्वर्ग के आमोद-प्रमोद में रहूँ। मां भगवती सदैव आपके उन्माद में रहूँ। भले मुझ में सिद्धि वास करें भले मुझ में रिद्धि उल्लास करें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
जब-जब कलम मौन होती है
कविता

जब-जब कलम मौन होती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कह दो अब खामोश कलम से, तुझको लिखना होगा। जीवन के संग्राम समर में, आगे दिखना होगा। जब-जब कलम मौन होती है, पाप तभी बढ़ता है। तब तब पाप निरंकुश होकर, सबके सर चढ़ता है। पेनी तलवारों से ज्यादा, धार कलम की होती। जब-जब पापाचार देखती, तभी कलम है रोती। रही समर में सदा लेखनी, सबका जोश बढ़ाया। अपने लेखन से अपंग को, ऊँचे शिखर चढ़ाया। छोटी है पर बड़ी साहसी, तेरी ताकत भारी। कभी नहीं खामोश हुई तू, कभी न हिम्मत हारी। जाने क्यों खामोश हो गई, समझ नहीं मैं पाया। क्रियाकलाप देख कलयुग के, तेरा मन घबराया। इसीलिए खामोश हुई तू, तूने लिखना छोड़ा। सच्चाई लिखने से तूने, क्यों अपना मुख मोड़ा। खामोशी को तोड़ कलम तू, लिखना सबकी पीड़ा। सभी कलयुगी पाप मिटाने, कलम उठाना बीड़ा। परिचय :- अंजनी कु...
निर्धनता है मन का भाव
कविता

निर्धनता है मन का भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** स्वाभिमानी जन श्रम का मान किया करते है जो न श्रम का सम्मान करें निर्धन वही हुआ करते हैं। नहीं भावना हो जिनमे न श्रम का वो मान करें जो शब्दों के बाण चलाते अंतस् उनके रीते रहते हैं। श्रम करना ही मानवता श्रम का फल मीठा मीठा मन का श्रम, तन का श्रम पुष्ट रहे सारा तन मन। कुटुंब, समाज या मानवता हित जो भरपूर परिश्रम करते हैं कड़ी धूप या जल प्लावन हो स्वाभिमानी वो पूज्य हुआ करते हैं। भीषण लू गर्मी में स्वेद बहा कर घर बाहर भोज्य बनाकर महल अटारी सबको दिलवा कर सबको तृप्त किया करते हैं। जिसकी जो सामर्थ्य जिसको जो आता है उसमें अपना सर्वस्व लुटाकर वो जन मानस को तुष्ट किया करते हैं मान सम्मान के असली अधिकारी वो हर रोज़ हुआ करते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलि...
कंचन मृग छलता है अब भी
गीत

कंचन मृग छलता है अब भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
साँसों का क्या ठिकाना
कविता

साँसों का क्या ठिकाना

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** कृतघ्न हुए अब लोग यहां, स्वार्थी हुआ जमाना है, जियो जीवन हिलमिल, साँसों का क्या ठिकाना है। छोड़ो चलना चाल कुटिल, ह्रदय रखो गंगा जल सा बनो नीम से कडुवे बेशक़, रखो ना उर बेर फल सा। मुट्ठी भर माटी के लिए, कर न दुर्योधन-सा व्यवहार, बल का बल निकल जाता, अर्जुन भी हुआ लाचार । समझ न मूर्ख किसी को तू, जान स्वंय को ज्ञानवान, द्रोपदी-सी तेरी गर्हित हसी, ले डूबे ना कहीं पहचान। भुला भलाई अपनापन, सिमट गया क्यों स्वंय तलक, मिला न दें गर्दिश में तुझे, गैरों को मिटाने की ललक। भला चाहते हो ग़र अपना, रखना रवि-सा सम भाव , भर जाते हैं ज़ख्म तेग के, पर भरते न वाणी के घाव। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेर...
कुछ लोग
कविता

कुछ लोग

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मरकर भी जिंदा रहते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जीवनभर निंदा करते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो जीवन में आदरणीय होते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो महत्वहीन निंदनीय होते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हमेशा आंखों में बसते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो आंखों में खटकते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मरकर भी आभास होते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जिंदा होकर भी लाश होते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने सपने पूरा कर दिखाते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो सपने ही नहीं देख पाते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो किसी को अपने वश में करते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो खुद दूसरों के वश में रहते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो भाग्य बदलकर सपने साकार करते...
रोशनी का त्यौहार
कविता

रोशनी का त्यौहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अज्ञान अंधकार को दूर करके, ज्ञान की ज्योति मन में जलानी है। जिंदगी हर पल एक महा उत्सव, मिलजुल कर दिवाली मनानी है।। जगमग-जगमग जल रहे नन्हें दीये, धरती में मणि प्रकाश की आभा है। पटाखे की ध्वनि से गूँज रहा संसार, नीले नभ को छूने की आकांक्षा है।। सत्य के सामने असत्य की हार होगी, तू सत्य की राह में निरंतर कदम बढ़ा। जीत तुम्हारे इंतजार में राह देख रही, हताशा और निराशा को सुदूर भगा।। रोशनी का त्यौहार, खुशियों की बहार, होती रहे धन वर्षा, होती रहे तरक्की। जीवन में सफलता चुमे आपके कदम, दीपावली में मिलती रहे खूब समृद्धि।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत...
शिक्षा बिना दुनिया?
कविता

शिक्षा बिना दुनिया?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो भद्र मानव चला जा रहा था, चलता ही जा रहा था अपनी मानसिक शांति के लिए, उस दौर में जब मनुष्य मरे जा रहा था हथियारों से युक्त क्रांति के लिए, भोर का समय, नीरवता लिये, तभी देखा दो जगह रोशनी, ना जोगन ना जोगनी, एक जगह एक बालक ग्यारह साल का, माथे पर लंबा तिलक, मुस्कुराता चेहरा, हाथ में थी आरती, जोर जोर से गाये जा रहा था भजन, दूसरे जगह कोई शोरशराबा नहीं, पर बैठा था वहां भी एक बालक, ढिबरी के अंजोर में बार बार कुछ पढ़ रहा था, अगल बगल बस्ता और किताबें, बालक बुदबुदा रहा था ज्ञान विज्ञान की बातें, भद्र पुरूष अवाक देखे जा रहा, उन्हें लग रहा कि उस झोपड़ी से कभी डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, निकल-निकल आ रहा, वह सोचने लगा कि काश यह होता मेरा घर, मैं करता यही बसर, और होते ये सारे मेरे अपने, जीवंत करते मेरे ...
अँधियारे की हार है
कुण्डलियाँ

अँधियारे की हार है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) दीवाली का आगमन, छाया है उल्लास। सकल निराशा दूर अब, पले नया विश्वास।। पले नया विश्वास, उजाला मंगल गाता। दीपक बनकर दिव्य, आज तो है मुस्काता।। नया हुआ परिवेश, दमकती रजनी काली। करे धर्म का गान, विहँसती है दीवाली।। (२) अँधियारे की हार है, जीवन अब खुशहाल। उजियारे ने कर दिया, सबको आज निहाल।। सबको आज निहाल, ज़िन्दगी में नव लय है। सब कुछ हुआ नवीन, नहीं थोड़ा भी क्षय है।। जो करते संघर्ष, नहीं वे किंचित हारे। आलोकित घर-द्वार, बिलखते हैं अँधियारे।। (३) दीवाली का पर्व है, चलते ख़ूब अनार। खुशियों से परिपूर्ण है, देखो अब संसार।। देखो अब संसार, महकता है हर कोना। अधरों पर अब हास, नहीं है बाक़ी सोना।। दिन हो गये हसीन, रात लगती मतवाली। बेहद शुभ, गतिशील, आज तो है दीवाली।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५...
आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)
कविता

आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जानकर अंजान बनना तो खुद का दारोमदार है। पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है। क्षमता नियंत्रण पहचान का बस नाम मुन्ना रफ्तार है। जनहित कल्याण मार्ग खातिर धरातल वाली सोच हो। यथेष्ठ दायित्व पालन में, धृष्टता का ना लोच हो। रहे लाभार्थी पर नजर यूं, उसको तनिक ना मोच हो। भान सदा गरीब को होता, जब कष्टों की भरमार है। पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है। शोर छिपा है अरमानों में, अलग तादाद ही बसता। जगमग दिव्य रोशनी में भी, खामोशी से सब सहता। सुखदुख सचझूठ मध्य बैठा, प्रदर्शन से घिरा रहता। पांच सदी पश्चात त्रेतायुग सा अयोध्या दरबार है। पर अन्य को दोषी बताना , आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहा...
भ्रष्टाचारी दानव
कविता

भ्रष्टाचारी दानव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** कुर्सी पर बैठकर तू बन गया है भ्रष्टाचारी दानव। धन के लालच में फर्ज भूल कर बना है अमानव।। हड़प लेता है गरीब-दुबरों के मेहनत की कमाई। जनता से रिश्वत लेते हुए तुमको शर्म नहीं आई।। खटमल बनकर चूस रहा है कामगारों का खून। भेड़िया बन मांस को नोच रहा है अंधाधुंध।। तू अंग्रेज है: स्वतंत्र भारत के निर्दयी अत्याचारी। तू कुष्ठ रोग है: जीवाणु युक्त संक्रामक बीमारी।। जन सेवक, रक्षक बनकर, बन गया है भक्षक। फन फैला कर डस रहा, जहरीला नाग तक्षक।। दुनिया में चारों तरफ लागू है जंगल का कानून। मानसिक हिंसक छिन लिया चैन और सुकून।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुर...