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पद्य

आशा का परचम 
कविता

आशा का परचम 

बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** सूर्य क्षितिज पर होता ओझल संध्या तुझे बुलाने को निशा हुई स्वप्निल लोरित उषा नागरी भी विह्वल है आशा का परचम लहराया। बहता सलिल समीर सदा से अनल जले आघातों से गति द्रव तेज सहे निर्झरिणी आकुल जलद का अंतर भी है आशा का परचम लहराया। नभ भी उतर-उतर शिखरों पर अवलोकित करते दृग  दर्पण गिरि का गौरव गाते झरने परिवर्तन हो रूप प्रकृति का आशा का परचम लहराया। आँचल में भू के है गंगा मोती की लड़ियों सी बहती जलद-यान में विचर के पावस नव किसलय पर स्नेह वार कर आशा का परचम लहराया। धूप-छाँह के रंग की किरणें पवन ऊर्मियों से लहराती हरित वर्णी पीपल छाया सोन खगों को सौंप के काया आशा का परचम लहराया। जीवन उन्नति के सब साधन फिर मानव क्यों करता क्रंदन? क्या जीवन की यही परिभाषा बोल पड़ी है मूक निराशा आशा का परचम लहराया। ...
दृढ़ निश्चय
कविता

दृढ़ निश्चय

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भावना की लहर में बहते चले गए सदा, चोट तो बहुत है खाई, पर बढ़ते चले गये सदा। कभी फूल भी मिले, कभी कांटों पर चले, सुख दुख की झाड़ी से, निकलते गये सदा। कभी प्रशंसा की बौछार, कभी गाली भी मिले, सबको नमस्कार कर, हम तो बस बढे़ चले। आंधी और तूफान ने, घेर हैं हमको है सदा, रोशनी और प्रकाश देख, हम तो बस बढे़ चले। भावना प्रबल हो जहां, कार्य की उमंग हो, दृढ़ निश्चय ठान के हम, तो बस बढ़ते चले। दृढ़ निश्चय ठान के हम, अपने पथ पर है चले। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ...
देशवासियों जागो
कविता

देशवासियों जागो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जागो, देश वासियों जागो छद्मवेष है कोने-कोने में मन में खोट बसी इक खेमे में जागो देश वासियों, जागो। धोखे बहुत सहे हमने अब मिट रहा‌आवरण भ्रम का भारत माता अपनी जननी है इसकी रक्षा हमको करनी है। सनातन संस्कृति अपना आभूषण है इस पर न्योछावर भारत का जन मन‌ है इसकी रक्षा अपना प्रण है इसे नहीं मिटने देंगे। समय कहीं भी रखे‌ हमको फिर भी ‌हम कुछ कर सकते हैं कलम धनी हो यदि अपनी अपना योगदान दे सकते हैं । जागो, देश वासियों, जागो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती ...
मेरे श्री रामलला
भजन

मेरे श्री रामलला

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** चैत्र नवमी से पहले ही पौष मास में आ गया नव वर्ष कुछ यूं हमारा राम नाम की भक्ति बिना नहीं हम भक्तों का गुजारा।। मर्यादा में रहकर जीती, श्री राम ने अपनी पारी सत्य सनातन की जीत हुई है, अब सब भक्त बजावे ताली।। मेरे श्री राम अयोध्या धाम विराजे राम लला, सिया, लक्ष्मण हनुमान संग पधारे अयोध्या जगमग हुई है, रोशन जैसे दिवाली भारत सारा मिल कर यह उत्सव मनावे।। श्री राम जन्म भूमि पर, भक्त जन फूल पसारे राह देख रहे थे जैसे मिल इस अवसर का सारे, निमंत्रण तो नाम हैं बस इस तीरथ का ये कार्य यह निमंत्रण सबका है ये सारे भारत वासी जाने।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
वन्दन मातृ शक्ति
कविता

वन्दन मातृ शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ददृ पीकर मत जियो तुम, ज़हर पी रही हो। उठो आज, कोई कह रहा है स्वयंसिद्ध बनकर जियो। जानता नहीं कोई, व्यथा व्यक्त किए बिना कोई चुप रहकर सहना भी दुश्वार है उठो, कुछ कहो, कुछ सुनो जग की। जानता है जग, की तुम शक्ति हो दिव्य हो पर, दैदीप्यमान नहीं दैदीप्यमान बनकर पान्चजन्य फूंको। आओ, उठो निराश न हों। तुम शक्ति कहलाती हो। कुछ पाषाण खण्डों से तुम्हारी शक्ति क्षीण न होगी मै जानती हूं, तुम पाषाणों को पिघलाने का सामर्थ्य रखती हो मां धरा जैसी दृढ, सुदृढ़ साहसी बनों जग में तुम्हारी पहचान बनेगी, मातृ-शक्ति। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ ...
स्पर्श
कविता

स्पर्श

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सुनो ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, संवेदना की आख़िरी परत तक, जिसकी पहुँच हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी निर्मल चेतना. घेरे मन और मगज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी मीठी वेदना, अंतर्मन की समझ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसके पार तुम्हें देखना, मेरे लिए सहज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी अनुभूती के लिए. उम्र भी एक महज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसमें सूर्य सी उष्मा हो जिसमें चांद सी शीतलता जिसमें ध्यान की आभा हो जिसमें प्रेम की कोमलता जिसमें लोच हो डाली सी जिसमें रेत हो खाली सी जिसमें धूप हो धुंधली सी जिसमें छाँव हो उजली सी जो तन मन को दे उमंग नयी जो यौवन को दे तरंग नयी जो उत्सव बना दे जीवन को जो करूणा से भर दे इस मन को ऐसा स्पर्श दे दो मुझे.... परिचय :- शिवदत्त ड...
राम अवध हैं लौटते
गीत

राम अवध हैं लौटते

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज। मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।। सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व। भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।। सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर। नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।। सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश। दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।। आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान। आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।। आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप। आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।। बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।। राम अवध हैं लौटते, फै...
चतुर्दिक
कविता

चतुर्दिक

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** चतुर्दिक, सबजन को जकड़ा है भ्रष्ट तंत्र ने, मानवीयता की जगह ले लिया अब यंत्र ने। यंत्रवत व्यवहार करने लग गए सब लोग, तन का मन से अब नहीं रह गया योग। लूट हत्या डकैती का सर्वत्र बोलबाला है, सर्वत्र अंधेरे से पराजित उजाला है। कहीं छल है कहीं दम्भ है कहीं द्वेश है, कहीं झूठ कहीं पाखण्ड कहीं आवेश है। कहीं भुखमरी है कहीं बेरोजगारी है, जहाॅं देखें वहीं दिखती लाचारी है। रोजगार नहीं मिल रहा बेरोजगारों को, भोजन का संकट है उनके परिवारों को। सरकारी तंत्र तो बिल्कुल ही सड़ गया है, सबके अहित हेतु बिलकुल वह अड़ गया है। परीक्षा से पहले ही उत्तर चतुर्दिक है, यह कार्य लगता बिल्कुल अनैतिक है। इस अनैतिकता का दिखता कहीं अन्त नहीं, इसको रोकने वाला दिखता कोई सन्त नहीं। राम लला के आने पर भी नहीं कोई भय, ...
बदलियां गल्ला
आंचलिक बोली, कविता

बदलियां गल्ला

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** (पहाड़ी कविता) अज्ज कल बदलना लग्गियां तेरियां गल्लां तेरे शहरे दे मौसमे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा। तेरा अंदाज गिरगिटे दे रंगे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा प्यार तेरे रुसदे चेहरे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा व्यवहार तेरियां नजरा सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गे तेरे जज्बात तेरे लफ्जां सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गी मेरी अहमियत तेरी बदलिया सोच्चा सैंई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
शिक्षक
दोहा

शिक्षक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु द्वैपायन द्रोण हैं, देते हमको ज्ञान। विनयी प्रज्ञावान भी, महिमा लें पहचान।। शिक्षक रक्षक राष्ट्र के, सुख-सागर आधार। अभिनंदन वंदन करें, दें सदगुण उपहार।। अज्ञानी को ज्ञान दे, श्रेष्ठ मिलें संस्कार। भव से पार उतारते, शिक्षक तारणहार।। महाकाव्य गुरु उपनिषद, वे ही वेद पुराण। कर आलोकित वे करें, शिष्यों का कल्याण।। हिय विशाल है अब्धि-सा, निर्मल धारा ज्ञान। सदाचार के स्त्रोत भी, अतुलित विद्यावान।। भाग्य विधाता छात्र के, शिल्प-कार दातार। दे विवेक प्रज्ञा सदा, दूर करें अँधियार।। निर्माता हैं राष्ट्र के, सम्प्रभुता की खान। शिक्षक संस्कृति सभ्यता, के होते दिनमान।। क्षमाशील गुरु दें विनय, अनुशासन की डोर। सूर्य किरण बन रोपते, आदर्शों की भोर।। शिक्षक प्रहरी देश के, गौरव भरा समाज। नैतिकता प...
नशा नाश की जड़
कविता

नशा नाश की जड़

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** नशा नाश की जड़ है, लगाना नही क़भी नेह, मन हरता, धन क्षरता, करता है खोकली देह। निगल गई लत नशे की, लाखों घर-परिवार, गए उजड़ पल भर में, थे चमन जो गुलज़ार। कुछ समझ ना आता, नशे के आदी नर को, देता ना कोई सम्मान, ना रहता मोल जर को। गांजा, भांग, चरस, स्मैक, सिगरेट, तंबाकू बीड़ी, ऱखना मुनासिब दूरी, चाहो स्वस्थ सबल पीड़ी। नही मंशा भी उचित, जनता के पहरेदारों की रही खोटी नीति सदा, पक्ष-विपक्ष सरकारों की। गली-गली फ़लफूल रहा, नशे का काला धंधा आओ हम सब मिलक़े, रोकें अब खेल ये गंदा। बढ़ते ही जा रहे नित, खतरे नरता पर भारी, मिटाने धरा से नशा समूल, करो आज तैयारी। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित ए...
जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …
कविता

जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप छोड़ दो साहब हमारी फिक्र करना, आपके फिक्र करने से हमें पड़ जाता है फिक्र करना, हमें पता है आप जिस तरह से हमारी चिंता करते हैं, तब तब हमारे लोग दुख तकलीफ और यातनाओं से पल पल गुजरते हैं, पता नहीं हमारे बारे में आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक, बढ़ जाती है हमेशा हम पर जुल्म आप हो जाते हो जातिवादी व हिंसात्मक, हमारा कसूर क्या है? यहीं न कि हम आपके अतार्किक और अमानवीय व्यवस्था में निचले पायदान पर पहुंचा दिये गए हैं, लेकिन यह मत भूलिये आपके हर गलत कार्यों का हमारी हर पीढ़ी ने विरोध किया है, तुम्हारे हर मंसूबों पर चोट दिया है, भले ही ताकत पाने के लिए दिखना चाहते हो हमारा रहबर, ताकि ताकत का इस्तेमाल कर सको हमीं पर रह रह कर, ये भी पता है कि चंद टुकड़ों के लिए हमारे ही लोग समाज से ...
महिला दिवस पर स्लोगन
कविता

महिला दिवस पर स्लोगन

माधवी तारे लंदन ******************** १. तुलसी बिना आंगन सूना, नारी बिना नर जीवन सूना। २. त्रिभुवन की ही संजीवन शक्ति, एक ही है महिला शक्ति। ३. गृहस्थाश्रम के नभाकाश की, है स्त्री शीतल चांदनी प्रसंग पड़ता जब बांका, बन जाती है वह शेरनी। ४. है स्त्री दैवी ही धर्मज्योति, गृहस्थाश्रम की अमोल शक्ति बिना उसके नहीं मिलती, प्रपंच-रथचक्र को गति। ५. वो गुणवान संस्कारी वह निडर करारी. परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
दीपक
कविता

दीपक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब माँ अपनी बेटी को बचपन से ही सिखाती दीपक कैसे प्रज्वलित करना बेटियाँ इसे महज छोटा काम समझती किन्तु बड़ी होने पर जब वो ससुराल में लगाती तुलसी की क्यारी पर दीपक। श्रद्धा, आस्था, प्रेम, कर्तव्य की भावना दीप की लो के संग ज्यादा प्रकाशवान दिखाई देती जो माँ ने सिखाई थी बचपन में मुझे जब माँ की याद आती तो पाती हूँ तुलसी की क्यारी में माँ की प्यारी सी झलक। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्या...
मैं ना होती तो …
कविता

मैं ना होती तो …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** किसी के होनें न होने से दुनियां नहीं रुकती है। सीटे खाली होती हैं तभी तो भरती है। ******* उनके न होने से कुछ फर्क नही पड़ेगा। सूरज पूरब से उगता है वही से उगेगा। ****** यह हमारा वहम है कि मेरे न रहने पर क्या होगा? वही होगा जो कि भगवान को मंजूर होगा। ******* "मैं" शब्द अहंकार का प्रतीक है इसे अपनी ज़िंदगी से हटाए। और अपनी जिंदगी को अच्छे से आगे बढ़ाए। ******* मैं ना होती तो जरूर और कोई आयेगा। शायद मुझसे अच्छा कर जायेगा। ******* हम तो बस यही दुआ करते रहें। हम रहे या न रहें बाकी सब सलामत रहें। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बुलडोजर का राग
कविता

बुलडोजर का राग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चींख रहा है अब कानों में, बुलडोजर का राग। गूंगे को गुड़-सा रस देता, सत्ता का मृदु पाग।। मौन खड़ी संसद के भीतर, प्रश्नों की बंदूक। थाम रखी हाथों ने खाली, उत्तर की संदूक।। गरल हुआ फूलों के दिल में, संचित हुआ पराग।। दुखड़ों के जंगल में बदले,सुख-सुविधा के कोष। पनप रहा बंजर आँखों में, चंबल का जल रोष।। धो न सका साबुन सत्ता का, लगे सियासी दाग।। सीना फाड़ दिखाये श्रद्धा,बहुमत का अन्याय। जंगी ताले में बैठी हैं....आशाएँ निरुपाय।। फैल गई है गली-गली तक, तानाशाही आग।। सेवक पंजे करते पग-पग, अब खूनी तकरार। स्वप्न भूख के थके दौड़कर, पीछे छोड़ गुबार।। हवा बसंती भूल गई है, सद्भावों के फाग।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
राम नाम की ज्योति
भजन

राम नाम की ज्योति

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** राम नाम की सहर्ष इस ज्योति को हृदय में जगाए रखना तुम ! आंगन को अपने सुंदर पुष्पों से मधुबन सा सजाए रखना तुम।। मर्यादा में रहकर सम्मान मिला हैं मेरे श्री राघव को ! प्राण प्रतिष्ठा फिर से होगी घर अयोध्या बनाएं रखना तुम।। राम लला के रूप में देखो राघव फिर से विराजेंगे, अयोध्या नगरी पावन होगी वे जन-जन के बीच पधारेंगे।। धन्य धन्य है वह मनुज बहुत जो अयोध्या में ही जन्म लिए, राम नाम के छांव में रहकर निर्धन भी जैसे धन्य धनवान हुए।। कई वर्षो तक संघर्ष चला है अपने ही अस्तित्व के लिए, राम नाम जिसने न जाना वह पापी अब दूर हुए।। देखो पुण्य प्रताप बहुत है राम नाम के जाप में सत्य सनातन जीत हुई है कलयुग के भी इस राज में।। धन्य धन्य वह कार सेवक है, जिन्होंने जान की बाजी लगा दी थी! भगवा पह...
कोई रास्ता भी नहीं बताता है …
कविता

कोई रास्ता भी नहीं बताता है …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मझधार मे तो फंसी है नैया मिल जाये कोई तो खेवैया उलझन समझ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है किस तरह से साथ निभाये कैसे दिल को अब समझाये दांव मे सब कुछ लग जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है जीवन भी तो जैसे व्यर्थ हो कंही कोई ना अब अर्थ हो निर्वाह का ही डर सताता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है अब करें क्या और कैसे-कैसे उम्र बीत जाये बस जैसे तैसे उम्मीद कुछ हाथ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है उलझा हुआ यहाँ हर आदमी है स्व संघर्ष मे मशगुल हर कोई है कौन किसका साथ निभाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है कुछ करें जतन अब तो मन से शेष है जीवन जो तन मन से शायद यही साथ -२ जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवा...
रसों की रानी है हिन्दी
कविता

रसों की रानी है हिन्दी

कु. मेघा मसानिया होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रसों की रानी है हिन्दी संस्कृत की सहेली है हिन्दी अलंकारों से अलंकृत है हिन्दी छंदों की छाया है हिन्दी संधि-समास का संगम है हिन्दी गद्य-पद्य का‌ मेल है हिन्दी हृदय‌ की अभिव्यक्ति है हिन्दी मेरी प्रिय भाषा है हिन्दी "तू गुरुर हैं मेरा, तुझसे ही इस देश की शान है। तुझको मेरा, साष्टांग दंडवत प्रणाम है।।" परिचय : कु. मेघा मसानिया (सहायक प्राध्यापक) निवासी : ग्वालटोली, नर्मदापुरम, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) शैक्षणिक योग्यता : बीएससी, एमएससी, नेट, एमपी सेट रुचि : हिंदी लेखन, किताबें पढ़ना और पढ़ाना।  घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो
कविता

लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! खिलते अदभुत ज्ञान पुष्प होती सुरभित गली-गली। रहते स्नेहाक्त भाषा-बचन, खिले क्षमा की कली-कली आदर-अनुनय औ आदर्श, पाते कदम-कदम मान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! सत्य-अहिंसा, न्याय-प्रेम की मिलती है शिक्षा से ही सीख। जहां मिले, जिससे से मिले लेना, मांग ज्ञान की तू भीख। शिक्षित हो, करना सब शिक्षित, रहे न शेष अज्ञान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! शिक्षा है दुध शेरनी का, जिसने भी पिया दहाड़ा है। शिक्षित मानव ने ही धरा से अनीति-अधर्म पछाड़ा है। अधिकारों औऱ कर्तव्यों के साथ जगाना स्वाभिमान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! जाओ मेरे आंखों के तारे, पढ़ लिखके रोशन नाम करो। कर ह्रदयंगम मानव धर्म तुम, मान...
मेला
कविता

मेला

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** यह संसार एक अद्भुत विशाल मेला है, अनेक सम्बन्धों का अनुपम यहाॅं रेला है। रेले में जब अपनों से हाथ छूट जाते हैं, नेह के सभी धागे जब टूट जाते हैं। जब व्यक्ति हो जाता बिल्कुल अकेला है, तब जीवन यह लगता सबको झमेला है। जहाॅं देखें वहीं दिखाई दे रहा है खेल , कहीं झूला, कहीं गाड़ी, तो कहीं ‌है रेल । चटपटे व्यञ्जनों का यहाॅं होता बोलबाला है, जो सभी उम्र वालों को करता मतवाला है। दुकानों को सजाकर सभी बैठे विक्रेता हैं, खुद सज सॅंवरकर निकले सभी क्रेता हैं। कहीं मृत्यु का कूप कहीं जीवन का दृश्य है, ध्वनि विस्तारक यंत्रों से शांति अदृश्य है। पल-पल बदलता यहाॅं जीवन का परिदृश्य है, यहाॅं नहीं कोई कभी बिल्कुल अस्पृश्य है। सभी रङ्ग सभी रूप सभी जाति सभी धर्म यहाॅं, जीवन की सच्चाई का दिखता है मर्म यहाॅ...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र गुजर जाए हम कहा तुम कहा अब ढूंढते है तुम्हारे जैसे चेहरे वो बगिया वो मकान वो गलियां मिलो भी तो पहचान मुश्किल झुर्रियों भरे चेहरे हो मगर प्यार का रिचार्ज ता उम्र का जो यादों की मिस कॉल मारता हरदम जब तक तब तक न निकले दम बहुत देर कर दी प्यार के दो शब्द कहने में मै करता हूं प्यार तुमसे। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में...
देवाधिदेव
गीत, भजन

देवाधिदेव

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देवाधिदेव भोलेशंकर, परमेश्वर गंगाधारी। शिव-शंकर का अनुपम दर्शन, मानव हित मंगलकारी।। रवि विरन्चि हो धर्म सनातन, सत्यनिष्ठ हो कैलाशी। सात्विक पावन सुभग सौम्य प्रभु,घट-घट बसते अविनाशी।। गौरा संग बिराजें शंभू , प्रभु जग सारा बलिहारी। वैद्यनाथ नागेश्वर भोले, केदारनाथ अभिनंदन। सोमनाथ भीमाशंकर हो, त्र्यंबकेश्वर शंभु वंदन।। त्रिकालदर्शी कपाल भैरव, शशिशेखर भभूति धारी। ओंकारेश्वर घृष्णेश्वर हो, रामेश्वर प्रभु त्रिलोचनम्। मल्लिकार्जुन महाकाल शिवा, विश्वनाथ नीलकंठकम्।। बर्फानी औघड़दानी हो, भस्म मण्डितम बलिहारी।। भाँग धतूरे का भोग लगे, चंदन कर्पूर प्रभु सुहाते। दूग्ध रूद्राक्ष अक्षत अकवन, जल बिल्बपत्र नित भाते।। ताप मिटा बाघम्बरधारी, हे खण्डपरशु हितकारी। गाते महिमा पुराण सारे, दर्शन की प...
समर्पित चौथा स्तंभ
कविता

समर्पित चौथा स्तंभ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गोरों के शासनकाल में पत्रकार खूब लिखते बोलते थे, हुकूमत के अत्याचार से तनिक नहीं डोलते थे, खैर अंग्रेज गए अंग्रेजों का शासन गया, आ गया देश में स्वशासन नया, सत्ता के छोटी सी गलती के खिलाफ ये हुंकार ले चिल्लाते थे, इनकी जागरूकता देख सरकार व विपक्ष दोनों घबराते थे, समर्पित चौथा स्तंभ ये खुद को साबित करते थे, लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये नहीं किसी से डरते थे, समय बदला शासन बदला बदल गए पत्रकार, पक्षपात में इतना डूबे भूल चुका अपना अधिकार, सत्ता से सवाल पूछते मुंह सूख जाता है, प्रश्न दागने वालों को सत्ताई तलवा अब सुहाता है, सत्ता का डर इतना बैठा विपक्ष से सवाल दागता है, सूखी हड्डी के लिए श्वान मालिक की ओर ही ताकता है, जनता के मुद्दे मुद्दे नहीं उन्हें अब मीडिया वाले बहकाते हैं, रात दिन भौं ...
पुकार
कविता

पुकार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह आवाज कहां से आई सोने की चिड़िया से यहां बच्चें भुख से तड़प कर चिल्ला रहें हैं। या गगन चुम्बी प्रसादों ने अट्टहास हैं किया या मलय पवन ने झकझोर दिया। या यह इन्द्र देव का परिहास है। अरे, नहीं यह तो करुण हृदय की पुकार है। क्या, क्या कहा करुण हृदय की पुकार,। और सोने की चिड़िया में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़...