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पद्य

जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कोई जीवन कविता है, कोई बना कहानी कोई समाज का दर्पण, कोई बना इतिहास लिये जीव की अंतिम सांस। कोई विज्ञान बना है, कोई कोषागार कोई कला का सागर, कोई छुए आकाश लिये ह्रदय में प्यास। कोई मरुभूमि बना है, कहीं खेत हरियाता कोई किनारा अधबिसरों का, कोई सागर सा लहराता लिये मिलन की आस। जितने मन हैं उतने ढंग, जितने जीवन उतने रंग तरह-तरह के करे प्रयास, अंत मिले अनंत का वास भाव ये मन में, भरें मिठास। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति...
गुमनाम
कविता

गुमनाम

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गंभीर स्वभाव गंभीर विचार, गंभीर भाव गंभीर है चाल। शेर जैसी जिसकी दहाड़ बाज जैसा निशाना, शुक जैसी जिसकी वाणी, राजनीति को जो हे खिलाड़ी, रीझे जिस पर, साधु- संत-महंत और ज्ञानी। देश विदेश में देखो ख्याति, हर शब्द देखो हे वाणी, तरकस से छूटे जैसे बाण। सनातन का पक्का वह प्रहरी, गरीबो का वह कृपा निधान। ध्यान योग तप और साधना, हे जिसके जीवन मै ज्ञान। देश प्रेम और देश सेवा ही जिसका है परम उद्देश्य। आप बताओ कौन है देश मै? राजा, संत महंत या त्यागी, सबके मन का जो है मीत। चित्त मे जिसके हरदम रहता सनातन और देश प्रेम का जज्बा? परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अम्बर, अम्बर सागर सागर मे अम्बर प्रति बिम्बित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रिता अम्बर सागर में अथाह उत्साह। अम्बर के गहरे में मन्थन मन्थन को मन का सम्बल सम्बल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पार दिवारे जाऊं कहां ढुंढे आंचल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में र...
झूठI कौन
कविता

झूठI कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकांड विद्वान ने अपनी वैज्ञानिक आविष्कार के लिए रात-दिन एक करते हुए एक प्रयोग आरंभ किया, इंसानी मनोभावों का किया निरंतर अध्ययन, कुछ खास भावों का किया चयन, आभासी दुनिया का निर्माण उनका मूल लक्ष्य था, शुरुआत किया जाये कैसे बहुत बड़ा प्रश्न यक्ष था, कपोल कल्पना, फ़रेब, झूठ, इन सबसे कैसे मचाया जाये लूट, लोग धीरे-धीरे होने लगे इकट्ठे, सीखने लगे मारना झपट्टे, कौन छोटा कौन बड़ा पढ़ाया जाने लगा, लोगों में ये सुरूर सर चढ़ छाने लगा, सब समान है ये भाव क्यों सहें, बिना विशेषाधिकार वो क्यों रहे, लक्ष्य के सामने जो आये उन्हें क्रूरता से रौंदना जरूरी था, वज्रपात कुछ सरफिरों के लिए कौंधना बहुत जरूरी था, नयी खोज के लिए पूरे देश से एक सोच वाले वैज्ञानिक बुलाये गए, क्या करना है बताये गये, सामाजिक ताने-...
ये ज़िन्दगी
कविता

ये ज़िन्दगी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वारे-द्वारे वन्दनवारे मुस्काती ज़िन्दगी हंसते गाते मुखड़े देख गीत गाती ज़िन्दगी सिसकती झुर्रियों के बीच अश्रु बहाती ज़िन्दगी दर्दों की दुनिया देख कर लँगड़ाती ज़िन्दगी कुचली कली के दुखों पे शरमाती ज़िन्दगी हैवानियत की हद कहाँ? है बौराती ज़िन्दगी उलझी डोरें रिश्तों की भी सुलझाती ज़िन्दगी प्यार से संग उड़ती पतंगें नहीं कटाती ज़िन्दगी डोलती कश्ती को कभी नहीं डुबोती ज़िन्दगी बिन तैरे ही मझधार पार नहीं कराती ज़िन्दगी सुप्त सिंह के मुख में मृग लाती नहीं ज़िन्दगी बुलन्द हौंसलों को ही है बढ़ाती ज़िन्दगी मंज़िल को हाथों में देने नहीं आती ज़िन्दगी पहला कदम तो बढ़ा राहें खुलवाती ज़िन्दगी दिल में उतरे सज्जनों को संभालती ज़िन्दगी दिल से उतरे से सम्भलना है सिखाती ज़िन्दगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्...
प्रेम क्या है
कविता

प्रेम क्या है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम क्या है क्या ये किसी रिश्ते का नाम है या इसका संबंध देह से है नहीं 'प्रेम' तो इक 'अनुभूति' है वह मोहताज नहीं रिश्तों का क्योंकि रिश्ते तो अपना मूल्य मांगते हैं मूल्य न मिलने पर सिसकते, टूटते, बिखरते हैं फिर यहाँ प्रेम कहाँ. क्या प्रेम देह से जुड़ा है नहीं जिस तरह पूजा के बाद अमृत, पानी नहीं रह जाता तो प्रेम का पर्याय देह कैसे हो सकता है? प्रेम का न कोई मूल्य होता है न ही कोई दैहिक सम्मोहन प्रेम इन सब से परे है प्रेम इबादत है. प्रेम इन्सानियत है प्रेम बन्दगी है प्रेम भक्ति है प्रेम विश्वास है इसमें ना खोना है न पाना है बस करते चले जाना है. फिर ये प्रेम मनुष्य का मनुष्य से हो या मनुष्य का ईश्वर से हो या ईश्वर की किसी कृति से हो. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक...
सनातन की छाया
कविता

सनातन की छाया

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके मन में सदा सदा से, रही सनातन की छाया। सुचिता शुभता और धर्म सँग, धन यश वैभवभी पाया। हमें सनातन ने सिखलाया, चलते रहें सुपथ पर हम। नेक राह चलकर सुख पायें, नहीं रहे जीवन में गम। बने दीन हितकारी हम सब, काम सभी के हम आयें। दीन दुखी की पीड़ा हर कर, दीन बंधु हम कहलायें। सबके घर में करें उजाला, दुनिया को रोशन कर दें। अंधकार को दूर हटाकर, खुशियों से घर को भर दें। धर्म सनातन ही सिखलाता, औरों के दुख दूर करें। जिन्हें गुमान देह,दौलत का, उन सबका मद चूर करें। दें सम्मान, सभी धर्मों को, धर्म सनातन बतलाता। जो सारे जग का शुभ चाहे, सच्चा मानव कहलाता। जिसके जीवन में पल भर भी, रही सनातन की छाया। धर्म सनातन धारण करके, राम धाम उसने पाया। करें धर्म की रक्षा हर पल, मन का मैल हटा लें हम। मान गुमा...
जाल
कविता

जाल

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के लिए चहुँ ओर इच्छाओं का जाल बुनता है सुख और दुख के तराजू में तौलता हुआ कभी उठता तो कभी गिरता है, इच्छायें मरती है, जाल बिखरता है उम्मीदें समाधिस्थ होती हैं ताउम्र वो समझता है ईश्वर नाखुश है तभी तो आशाएं बिखर रही तिनका बनकर वह नहीं समझता संसार मिथ्या है कर्म शिव है! शून्य और अनंत के बीच उकेरते कुछ संवाद, जिसमें प्रार्थनाएं संजो देनी है, क्योंकि ये जाल उसने नहीं, स्वयं मनुष्य ने बुनी है!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम...
मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …
कविता

मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना …

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** छोड़ कर काम सारे चले आइए, मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... बंद आंखें करूं तो दिखो तुम ही तुम, आंखें कब तक खुली बोलो रख पाऊंगा। झूठ बोलूं ये आदत में शामिल नहीं, प्यार की बात कब तक छुपाऊंगा मैं। लाख मुस्काऊं मैं नए कपडे पहन, कुछ भी जंचता नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... देखकर दोस्त मुझको ये कहते सभी, इसकी हालत बिगड़ती चली जा रही। लग रहा आजकल ये भी पीने लगा, चमक इसकी उतरती चली जा रही। काम उल्टे सभी हो रहे आजकल, कोई टोके नहीं अब तुम्हारे बिना। मन ये लगता नहीं अब तुम्हारे बिना ... कल की घटना बताऊं मैं घर से चला, राह में एक लड़की से टकरा गया। उसने दी गलियां मुझको पीटा बहुत, वो बोली ये लड़का है पगला गया। उसको कैसे बताता मैं बेहोश था...
अच्छे नेता
कविता

अच्छे नेता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब तो नालायकों से भी काम चल जाता है, इसी बहाने लोगों का दिल बहल जाता है, राजनीति में सुचिता की बातें एक धोखा है, इन नेताओं ने नैतिक स्याही को सोंखा है, आज के लीडर की मशहूरियत जरूरी है, झूठ, गुंडागर्दी के बिना नेतागिरी अधूरी है, जीत पाने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं, वक्त आने पर गर्दन में छुरी भी धर सकते हैं, मतदाताओं को अपनी ओर लाना जरूरी है, तभी तो उनकी भावनाएं भड़काना जरूरी है, नहीं रहा वो दौर जब आरोप पर पद छोड़ते थे, खुद और दल की छवि स्वच्छता से जोड़ते थे, लायक बेचारा विजय वोट नहीं ला पाता है, नाकारा नालायक विजय उड़ा ले जाता है, इन्हें कोसने का हमें कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि हमें खुद अच्छे लोग स्वीकार नहीं है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
हनुमत ऐसा भाव बहा दो
भजन

हनुमत ऐसा भाव बहा दो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत ऐसा भाव बहा दो, जिससे सुंदर गीत बन सकें। पूर्ण समर्पित हो मन तुमको, और भक्ति रसधार बह सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने जिस पर कृपा दृष्टि की, उसका ही उद्धार हो गया। जिसको स्वामी से मिलवाया, वो ही भव से पार हो गया। मुझको मार्ग दिखाते रहना, जिससे सेवक धर्म निभ सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने प्रभु राम से अपने, राजा की संधी करवाई। अभय दान दिलवा राजा को, बाली को मुक्ति दिलवाई। राम काज को भूला राजा, नीति बताई, प्राण बच सके। हनुमत ऐसा भाव ... तेरे संत हृदय ने दंभी, रावण को सद्ज्ञान था दिया। पर निज अहंकार के कारण, उसने इसका मान ना किया। रावण ने कुल नाश कराया, प्रभु हाथों से मुक्ति मिल सके। हनुमत ऐसा भाव ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
श्रीराम
भजन

श्रीराम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** श्रीराम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। श्री राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस-सांस में है बसा नाम तुम्हारा श्रीराम ही तो है बस मेरा सहारा। हे श्रीराम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्री राम दुःख दूर होगा मिलेगा सुख आराम। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
यशोदा नंदन
कविता

यशोदा नंदन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ यशोदा नंदन करता जग सारा अभिनंदन प्रगटे नंदलाला। २ नाच नचावत छछिया भर छाछ दिखाबत ब्रज ग्वालिन। ३ आठवी संतान लियो रूप नर,नाराण मुरली मनोहर। ४ वृषभानु दुलारी बनी कृष्ण प्राणन प्यारी अनुपम जोड़ी। ५ दाऊ भैय्या कहत मोल लीनो मैय्या खींजत घनश्याम। ६ त्यागे मिष्ठान तोड़ो दुष्ट दुर्योधन अभिमान विधुर भाए। ७ बन शांतिदूत किया कौरव कुल आहूत त्यागो विद्वेष। विधान - पहली पंक्ति २ शब्द, दूसरी पंक्ति ४ शब्द, तीसरी पंक्ति २ शब्द शब्द से आशय - दो या दो से अधिक सार्थक वर्णों से मिलकर बनने बाले शब्द परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
सिद्धार्थ
दोहा

सिद्धार्थ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्म मरण का खेल यह, समझ न पायी पार्थ। गीत ग़ज़ल था छंद भी, सब कुछ था सिद्धार्थ।। बसे क्षितिज के पार तुम, भूल गए सिद्धार्थ। अब जीवन ये बोझ है, क्या साउथ क्या नार्थ।। चली तेज पछुआ हवा, रूप बड़ा विकराल। जलता दीपक बुझ गया, खोया घर का लाल।। पीर समझ पाया नहीं, बैरी था संसार। मित्र अकेली मातु थी, करे स्वप्न साकार।। सूखे-सूखे हैं अधर, अँखियों में है नीर। ममता बड़ी अधीर है, उर है अथाह पीर।। कबिरा साखी मौन है, चुप मीरा के श्याम। रूठे सीता राम भी, जप लूँ कैसे नाम।। चर्चा करती रात-दिन, मिटे नहीं संताप। खंडित है विश्वास सब, करते नित्य विलाप।। मोह त्याग कर चल दिया, भूला मातु दुलार। पल-पल लड़ता मौत से, लिए अश्रु की धार।। अतिशय अन्तस् पीर है, मनवा रहे उदास। राजा बेटा लाड़ला, करे हृदय...
सामना
कविता

सामना

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रुख पहाड़ों की तरफ किया तो समझ आया जन्नत इस धरा पर भी है। रुख बादलों की तरफ किया तो समझ आया बदमाशी इनमें भी है। रुख बहती नदी की तरफ किया तो समझ आया जीवन का बहाव इनमें भी है। रुख हरे-भरे खेतों की तरफ किया तो समझ आया जीवन का अंश इनमें भी है। रुख वृक्षों की तरफ किया तो समझ आया जीवन की समझदारी इनमें भी है। रुख डूबती हुई नाव की तरफ गया तो समझ आया जीवन का अंतिम पड़ाव इनमें भी है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
असंगत
कविता

असंगत

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जो संगत नहीं होता वही 'असंगत' है, यह संसार दोनों में ही बहुत पारंगत है। 'असंगत' दैनिक जीवन का‌‌ ही एक अङ्ग है, बदलता‌ प्रतिदिन जीवन का जैसे रङ्ग है। असंगत हैं सभी के शरीर के कुछ अङ्ग भी, असंगत हैं चाल-चलन असंगत हैं ढङ्ग भी। शरीर की सभी अंगुलियाॅं होती असंगत हैं, किन्तु सभी कार्यों में ‌वे होती पारंगत हैं। असंगत सदैव ही नकारात्मक नहीं होता, ‌बुराइयों से असंगत होना ही सही होता। असंगत है संसार के सभी व्यक्तियों का रुप, मिलता नहीं कभी भी किसी का स्वरूप। कोई यहाॅं श्याम वर्ण तो कोई पूरा श्वेत है, कहीं है धरा उर्वर तो कहीं बिलकुल रेत‌ है। कोई अकिंचन तो कोई‌ धनपति कुबेर है, कहीं गेंदा, गुलाब तो कहीं केवल कनेर है। असंगत हैं बोली-भाषा असंगत हैं देश, असंगत हैं रहन-सहन असंगत हैं वेश। असंगत को संगत का मिले जब...
प्रेम किया नहीं जाता
कविता

प्रेम किया नहीं जाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम में मांगा नहीं जाता प्रेम में दिया जाता है प्रेम किया नहीं जाता प्रेम जीया जाता है प्रेम में स्वार्थ नहीं होता प्रेम में परमार्थ होता है प्रेम को मापा नहीं जाता प्रेम को साधा जाता है प्रेम एक तरफा भी होता है प्रेम दूर से भी निभाया जाता है अखंड प्रेम बार-बार नहीं होता प्रेम एक ही बार में संपूर्ण होता है प्रेम पागल नहीं होता प्रेम तो चैतन्य संक्रिया है प्रेम को सोचा नहीं जाता प्रेम एक सतत प्रक्रिया है प्रेम में किसी बांधा नही जाता प्रेम में इंसान खुद बंध जाता है प्रेम में सतत प्रवाह होता है प्रेम को कहीं रोका नहीं जाता प्रेम में गमगीन नहीं होना पड़ता प्रेम में पूर्णत: लीन होना होता है 'तू नहीं तो कोई और' अ-प्रेम है प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे...
माला के मोती
गीत

माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
मत  हो  दुःखी…मेरे  देश
कविता

मत हो दुःखी…मेरे देश

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ....!! छट जाएगा छल-छद्म धरा से, जायेगी थम नफ़रत की आंधी। आयेगी बसंत-बहार चमन में, प्रगटेगा फिर एक अटल गांधी। शोलों पे होगी बर्षा शबनम की, कांटें कलियां बन जाएंगे महक। सरिता भर नेह अगाध बहेगी, शाँखें पंखुड़ी बन जाएंगी चहक। उन्मुक्त गगन में उड़ते पंक्षी, देते जायेंगे अनुपम सन्देश ! आयेगा लौट तेरा यश-बैभव मत हो दुःखी मेरे देश !!१!! उगलेगी धरा मोती-माणिक्य, खलिहान धान से विपुल भरेंगे। कल-कल बहेंगे निर्झर हरदम, पतझड़ में पुनीत मुकुल खिलेंगे। हर अधर गीत गायेगा मिलन के हर अल्फ़ाज़ राग बन जायेगा। सदभावों की शुभ घड़ी लगेगी, स्वार्थ का कलंक धूल जाएगा। हर ख़्वाब समर्पित होगा तुझ पर हर ख़ुशी होगी तेरा उद्देश्य। आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ...
नवमी तिथि मधुमास पुनीता
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नवमी तिथि मधुमास पुनीता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** राम जन्मदिन शुभ अवसर है जनगण मन उत्सव सा प्लावित है राम हैं भारत कीआत्मा नर रूप धरा आये परमात्मा ये भारत के प्राणपुरुष हैं राम हैं मर्यादा, हाथ धनुष है। जब घायल हो भारत माता क्षत विक्षत हो मर्यादा भारत की अस्मत पानी होती और धर्म की हानि होती धरणी तब आवाहन करती मनुष्य रूप आयें तब धरती भारत धरती करे पुकार राम रूप आये अवतार राम पे कोई न चक्र चले प्रत्यंचा पर जब तीर चढ़े संकेत राम का है आना युद्ध न्याय का जीता जाना। रामलला की छवि हर मन है राम बसे जन जन के हिय हैं राम धरे धनुसायक हैं राम हमारे नायक हैं आस्था, मन, अंतःकरण पर्याय राम भारत के जीवन राम बिना नहि कुछ स्वीकार राम हैं प्राणों के उद्धार भक्त तुम्हारे तुम्हरे द्वार तुम्हें नमन है बारंबार तुम्हें नमन है बारंबार।। परिचय :- डॉ. किरन अवस...
अयोध्या
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अयोध्या

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नगरी हो अयोध्या सी जहाँ राम का वास हो घण्टियों, शंखों का जहाँ सुमधुर ध्वनियों का नाद हो मेरे राम सदा ह्रदय बसे बस इतना सा मीठा ख्वाब हो। ध्वज सदा लहराए कीर्तन एक साथ हो मंगल आरती गाए संग राम का विश्वास हो नगरी हो अयोध्या सी जहां राम का वास हो। फूलों से सुशोभित मंदिर को दर्शन जावे मंत्रमुग्ध हो ध्यान लगावे मांगे और कई है आशा रामजी करेंगे पूरी अभिलाषा नगरी हो अयोध्या सी जहां राम का वास हो। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
राम नाम महिमा
भजन

राम नाम महिमा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** राम का नाम मुक्ति का साधन सरल, शक्ति दो नाम लेखन बढ़ाता चलूं। ऐसी गंगा बहा दो हृदय में प्रभु, आखिरी सांस तक नाम सुमिरन करूं। राम का नाम मुक्ति.......... नाम महिमा अकल्पित, असीमित है प्रभु, ज्ञान अनुरूप महिमा को गाता रहूं। भाव मां दे रही, शक्ति हनुमत ने दी, मैं तो बस लेखिनी को चलाता रहूं। राम का नाम मुक्ति........... बहुत संतो ने महिमा सुनाई सदा, पर नहीं कोई संपूर्ण को गा सका। नाम पर शोधकर लोग डॉक्टर बने, पर नहीं कोई भी अंत को पा सका। मुझको हनुमतकृपा राम सेवा मिली, सांस जब तक चले, मैं निभाता रहूं। राम का नाम मुक्ति........ सोते जगते सदा, साथ में नाम हो, कार्य जग के करूं, मन में बस राम हो। नाम के जाम इतने पिला दो हनु, जिसको देखूं उसी में मेरा राम हो। मेरी सांसों में बस नाम चलने लगे, राम ही राम मैं ग...
श्रीरामजी पर रोला
रोला

श्रीरामजी पर रोला

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) महाशक्ति है दिव्य, रामजी जो कहलाते। हर पल ही जो भव्य, भक्त जिनको हैं भाते।। प्रभुवर रखते ताप, सभी के दुख हैं हरते। महिमा का विस्तार, पुष्प गरिमा के झरते।। (२) महाशक्ति है दिव्य, रामजी की है माया। करना प्रभु उद्धार, बोझ यह नश्वर काया।। तुम तो दीनानाथ, तुम्हीं हो सबके स्वामी। मैं तो नित्य अबोध, दुर्गुणी, अति खल, कामी।। (३) महाशक्ति है दिव्य, हृदय में सबके रहते। बनकर के उपहार, भक्ति में नित ही बहते।। यह जीवन अभिशाप, दुखों ने डाला डेरा। हे मेरे प्रभु राम !, मुझे पापों ने घेरा।। (४) महाशक्ति है दिव्य, उसी ने जगत बनाया। कहीं रची है धूप, कहीं पर शीतल छाया।। बाँटा है उजियार, रचा है मानवता को। लेकर के अवतार, मारते दानवता को।। (५) महाशक्ति है दिव्य, जिन्हें हम रघुवर कहते। बनकर जो शुभभाव, हमारे सँग नित रहत...
जल बिन सब सून
कविता

जल बिन सब सून

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** पंच तत्व में है अनमोल जीवन आधार जल करते जो बर्बाद आज उसे पछताओगे तुम कल। जल बिन होगा सूना सागर नदियाँ होंगी सूखी जो न सहेजा इस अमृत को धरती होगी भूखी। पीयूष रूपी गंगा जल का कर न सकोगे वंदन प्यासे कंठ से गूंजेगा चहुँ क्षुधित जीवन का क्रंदन अंधाधुंध जो करते रहोगे भूमि जल का दोहन न देख सकोगे अंबर में तुम वारिद का आरोहण। जल से ही तो जीवन हुआ धरती पर साकार जो मोल न समझे इसका तुम यह जीवन है बेकार। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
जीवन बचाव केंद्र
कविता

जीवन बचाव केंद्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी बचाने और देखभाल करने की ग्यारंटी देने वाले मशहूर चिकित्सकीय संस्थान के द्वारा जैसे ही स्पेशल वार्ड से जनरल वार्ड में मरीज की शिफ्टिंग हुई व्यवहार बदला बदला सा दिखाया जाने लगा, मरीज के परिजनों को इस बदले व्यवहार से झटका आने लगा, कहां रात व दिन भर मिटने को तैयार संस्थान के स्टॉफ वालों को अटेंडरों में बित्ते भर भर कांटे नजर आने लगे, महानुभव लोग गरियाने झुंझलाने लगे, छत्तीस घंटों से नींद से दूर मरीजों के रिश्तेदारों से चिकित्सालय को खतरा नजर आने लगे, इधर मरीज परेशान, उधर चौकीदार सुजान, पेशेंट की चिंता कि अब मुझे रात में कहीं जरूरत की जगह पकड़कर ले जायेगा कौन? पहरेदार का गुरूर कैसे रहे मौन? मरीज और उसके घरवाले सोच रहे कि कल तक गूगल में सकारात्मक फ़ीडबैक लिखाने वाले आज कौन सा ...