विश्वगुरु
सूर्य कुमार
बहराइच, (उत्तर प्रदेश)
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शर्म हुई बेशर्म
लोक हुआ शर्मशार।
लोक-लाज लज्जित हुई
फिर भी इज़्ज़तदार।
यही तो मर्म हमारा।।
धर्म-सुख की चाह में
हिन्द का बण्टाधार।
बन गयी पहचान हमारी
नफरत की झंकार।
यही वसूल हमारा।।
हमें भारत है प्यारा।।
वैष्णवी हो गये राम जी,
शंकर शैव समाज।
टुकड़े-टुकड़े बांट रहे हैं,
नेता ग़रीबनवाज़।
यही है रीति हमारी
और हम सब पर भारी।।
यही सुकृत्य हमारा।।
हमें भारत है प्यारा।।
नफ़रत से नफ़रत मिटे
और दंगे से दंगा।
खुल कर करें सियासत
अब होकर नंगम -नंगा।
मणिपुर जैसे मुद्दों पर
बन जाएं हम अंधा।
सनातन धर्म हमारा
हमें प्राणों से प्यारा।
गाँधी थे अधनंगे
हम होंगे पूरा नंगा।
उनसे आगे जाना हमको,
सब हो जाए चंगा।।
यही है कर्म हमारा
हमारा हिन्द है न्यारा।
नैतिकता-मर्यादा का
जब कोई करे उल्लंघन।
नेता-नेता कहने ...