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पद्य

हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल। शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का मेला है। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।। प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में। दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में। आकर अब तो प्रक...
झूले सावन के
कविता

झूले सावन के

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन के झूलों को देख फूहरो का मन मचला झूलने के लिए हिलते हुए झूले पर सवार फूहरो को बादल ने आकर झौंका दिया फूहारे मचल उठी झूला भीग गया। बेचारा बादल फूहारो को अठखेलियां करते देखता रहा झूले की डोर पकड़े। जल की बूंदें गा रही सावन गीत ठंडी बयार संग भाग रहीं फूहारे वृक्ष से लिपटी लताओं को भिगोतै मन ही मन मुस्कुरा रही थीं लताओं के भी मन भाया अन्दाज। मुस्कुराने का कोई युगल आया और बूंदों को धरा पर गिरा युगल भुले स्वयं को झूलते-झूलते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निम...
गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए
कविता

गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु अमृत है गुरु विष का प्याला भी है। गुरु मीठा है गुरु कड़वा है, गुरु संस्कार हे गुरु संस्कृति है। गुरु ज्ञान है गुरु विवेक है। गुरु वर्तमान भूत और भविष्य है। गुरु बुद्धि है गुरु चित् है। गुरु चित्र है गुरु चरित्र है। गुरु जीवन की सीढी है। गुरु दर्पण है गुरु निश्चल है। गुरु मान है गुरु सम्मान है। गुरु ब्रह्मा विष्णु और महेश है। गुरु व्यापक गुरु अनन्त है। गुरु सूर्य है गुरु चंद्र है। गुरु तीर है गुरु माखन है। गुरू धैर्य है गुरु साहस है। गुरु प्रकाश है गुरु किरण के जीवन में गुरू अवतार मै कृष्णा भाभी के समान (गुरु) शिक्षका है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्...
उठो बेटियां साहसी बनो
कविता

उठो बेटियां साहसी बनो

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** उठो बेटियां साहसी बनो तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। बहुत हुई ये मासूमियत अब, अपने स्वाभिमान की रक्षा करने झांसी की रानी बननी होगी। कौन तुम्हे हर पल बचाने आयेंगे, घात लगाये यहां तो हर कदम पर राक्षस है बैठा, बहुत हुई माता सती का रूप, दुष्टो का संहार करने अब माँ काली का रूप धरनी होगी। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। जो करें अपमानित तुम्हारे आबरू को उसे अपनी ताकत का पहचान कराने, अब उसका विनाश करना होगा। अब खुद को सवारना बहुत हुआ, सवारना अब दुनिया को होगा। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। दुसरो पर ना विश्वास कर तु, कर विश्वास अपने बाजुओ पर अब स्वयं की रक्षा करनी होगी। बहुत हुआ चूल्हा चौका, दुष्टो को अब सबक सिखाने, भाला तलवार पकड़नी होगी। हमें स्वयं को इस द...
परीक्षार्थी का दर्द
कविता

परीक्षार्थी का दर्द

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ए ईश्वर दे कुछ तरकीब ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न वक्त बचा हैं अब इतना कि इसका सिलेबस पूरा कर लूं, न तरकीब पता हैं कोई ऐसा जो परीक्षा मैं पास कर लूं, न किताबे पढ़ने का जी करता नाहीं इसको छोड़ने का, न याद रहा अब वो सब भी, जो अब तक हमने पढ़ा था, ए ईश्वर दे कुछ कर ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। एक तो रहता दबाव मां बापू के देखें सपनों का, दूजा तनाव रहता हैं पड़ोसियों के ताने सुनने का, तिजा तो पहले से ही होता बेरोजगारी के धब्बे का, इन दबावों के कारण पूरा दिमाग हैंग हों जाता हैं, ए ईश्वर कल देना शक्ति इतना,जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न जाने कल क्या होगा, जब परिक्षा हाल में बैठुंगा, पता नहीं परिक्षा कक्ष में भी, सब कुछ याद रख पाऊंगा, पेपर मिलने पर पता नहीं कि कितने प्रश्न हल कर पाऊंगा, जल्दी करने के चक्कर मे...
मेरी जिंदगी
कविता

मेरी जिंदगी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी जिंदगी एक सुहाना सफर हैं, मेरी जिंदगी ही जीवन-संगीत हैं, मेरी खुशी मेरे परिवार की खुशी, खुशी से ही मेरा मीठा मुंह होता। खुशी की मिठाई, खाना ही हैं मेरे लिए सर्वोपरि, मेरी जिंदगी सुख में एक गीत हैं, दुख में भी एक संगीत हैं। जिंदगी एक मीत हैं, जिंदगी से करो प्रीत, यही हैं सच्ची जीत, गीत गुनगुनाने की रीत। जिंदगी तो बहती सुर सरिता, जिंदगी सप्त सुरों से सजी, सुंदर महफिल हैं, जिंदगी का संगीत, सुरों का साज हैं। यही तो जिंदगी का ताज हैं। जिसने जिंदगी के संगीत को समझा, जिसने जीवन के सप्त सुर को गुनगुनाया। वहीं तो दुख के सुर को सुख-सुर में, परिवर्तन कर जीवन को, गीत और संगीत से सजा पाया। जिंदगी के ढोल को सुर-संगीतमय बजा पाया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया न...
भाई के अरमान हैं
गीत

भाई के अरमान हैं

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में। आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।। आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में। नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।। भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में। सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।। बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ। नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।। है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में। दे रहीं बहनें...
एक थी स्त्री
कविता

एक थी स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दुःखद घटनाओं की शिकार बहनों बेटियों को समर्पित ... तड़पती रही अकेली सुनसान राहों में, सिसकियाँ अनसुनी कर लोग गुजरते रहे ! धरती माँ की गोद में खुन से लतफत छिपने की जगह ढूंढती हुई रही!! जली थी जीवन भर बेशरम नजरों की अग्नि में, डरती आई थी सदैव गलियों और सड़कों पर चलने में, बेआबरू होती रही बार-बार हर बार !! पैदा हुई तो हर तरफ शोर हुआ ये तो लक्ष्मी आई है, ये दुर्गा का रूप है, ये बरकत लेकर आई है ! कुछ दुआएं देते कुछ माता-पिता पर बोझ बताते !! हुनर से नहीं कपड़ों से व्याख्या की गई उसके चरित्र की, उसके उन्नतिशील विचारो से चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दिया गया, वो तो देवी का रूप थी ना ...??? किसी की बेटी किसी की पत्नि किसी की बहन, मित्र भी थी ! किसी के घर का चिराग थी! किसी का अभिमान, किस...
आंतरिक गुलाम
कविता

आंतरिक गुलाम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आजाद हुए हम गौरो से मगर अभी नही हुए औरों से। जीत चुके हैं हम औरों से मगर हारे हुए हैं अभी अपने विचारों से। छोटे को बड़ा, बड़े को छोटा समझना अभी छोड़ा नहीं। जाति-पाति के कठोर नियमों से मुख भी अभी मोड नहीं। क्षितिज से आर जीवन से पार अभी कुछ देखा नही । धर्म कर्म के नाम पर शोषण अभी तक छोड़ा नही। जीवन के तराजू पर कभी खुद को तोला नही। महोबत के नाम पर जिस्म का शोषण अभी तक छोड़ा नही। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
सावन
कविता

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेघ आच्छादित नभ क्षितिज तक, झर- झर बरसती काली घटाएं, मन विकल करती शीतल बूंदें, हिय को झकझोरती चंचल पुरवाई। यह सावन भी बड़ा बेदर्दी है, खेलता है कभी पलकों से, अल्हड़ फुहारें जला देती है तन से मन तक उदासी की अगन। भरी बरसात में दहन उठता है अलाव उनकी यादों का, नीम की डाल पर तड़प रहा है झूला आंगन में, मेरे साजन का। हुई थी बात कल रात सैनिक से, बाढ़ राहत शिविर में लगा हूं, बोलें थे बड़े रुआंसे होकर... यह सावन बड़ा बेइमान है। बरसते हैं बादल जी भरकर, प्रति वर्ष सजीले सावन में, बहती है यौवन से परिपूर्ण नदी, लेकिन मिटती नहीं मन की प्यास। अधूरी रह गई गत वर्ष की भांति, इस वर्ष भी चाह झूला झूलने की चल पड़ी गांव के पोखर पर चादर, आत्मा फिर भी प्यासी की प्यासी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्य...
बरसात की बूंदे
कविता

बरसात की बूंदे

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** बरसात की धीमे से गिरती बूँदें, मानो धरती को एक प्रेम पत्र लिखा जा रहा हो। मैं और तुम, इस अमृतमयी प्रभात के साक्षी, जहां हर बूँद में छिपी एक कहानी, एक गीत। वह बूँद जो तुम्हारी पलकों पर ठहरी, वो रूपक बन गया जीवन के संघर्षों का। मेरी बातें, तुम्हारे शब्द, मानो व्यंजना बन जोड़ रही हो दो आत्माओं को। क्या देख रहे हो इस पानी का चंचल नाच? इसकी मासूम नादानी और अठखेलियों को , जैसे तुम्हारी मुस्कान में खिल रहा है है खुशी का अप्रतिम सौन्दर्य। बरसात का यह मौसम, ये रिमझिम फुहारें, साक्षी हैं हमारी प्रेम कथा के, जिसमें हर शब्द, हर वाक्य बुन रहा है है आशाओं का परिधान। मैं और तुम, इस बारिश में भीगते हुए, नये सपने, नयी आशाएँ, नयी उम्मीदें बुनते हुए। जैसे नव वर्षा की बूँदें, लिख रहीं हों ह...
जय आदिवासी
कविता

जय आदिवासी

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** हम आदिवासी जल जंगल जमीन हमारे प्राण प्यारे।। आदिवासी संस्कृति प्रकृति पूजक शुभ मंगल पूज्य जंगल।। तीर कमान हर आदिवासी करे अभिमान पहचान अतुल्य।। मानव सभ्यता सहेजे सृस्टि पर आदिवासी अमिट अविनाशी।। प्रकृति संरक्षण करता रहा अदम्य सहासी जय आदिवासी।। प्रकृति धर्म समझा आदिवासी अंतस्थ मर्म जय भौमिया।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
राखी में तो प्रीति है
दोहा

राखी में तो प्रीति है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो प्रीति है, सच्चाई का गीत। बहना-भाई हर्ष में, पावनता की जीत।। नेह निष्कपट भावना, मंगलमय सम्बंध। फैली है चहुँओर अब, मलयानिली सुगंध।। राखी तो सुधिगान है, बचपन की हर याद। कर रहता खाली अगर, भाई को अवसाद।। बहना-भाई दूर यदि, डाक निभाती साथ। शोभित होते हैं सदा, क़िस्मत वाले हाथ।। युगों-युगों से चल रहा, संस्कारों का पर्व। कौन नहीं जो चेतना, पर करता नहिं गर्व।। नहीं सहोदर देश में, पर आया संदेश। बहना के आशीष ने, दूर किया है क्लेश।। दुनिया की सब दौलतें, खो देतीं है मोल। जब भी राखी बोलती, अधर खोल दो बोल।। राखी रक्षा का वचन, प्रेम और विश्वास। दुआ, कामना, भावना, दृढ़ता वाली आस।। धर्म कहे रिश्ता सदा, रहे निभाता रीति। सूत कहे मैं हूँ लिए, शुभता की नव नीति।। सभी दिशाओं ने किया, राखी का यशगान...
कहाँ है आजादी
हास्य

कहाँ है आजादी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसी आज़ादी है? जहां हमें तो कोई आज़ादी ही नहीं है, कदम-कदम पर अंकुश है नियमों की बंदिशें, कानूनों का डर है अपराध, हिंसा की न छूट है साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की भी कहाँ आज़ादी है? लूटमार, हत्या, बलात्कार की बात क्या करें भ्रष्टाचार, बेईमानी और धोखाधड़ी की भी तो तनिक न छूट है। सब कहते हैं देश शहीदों की शहादत से मिला है, तो भला इसमें मेरा क्या दोष है? उन्हें शहीद होने का कीड़ा कुलबुलाया था पर शहीद होकर भला क्या पाया था, कौन याद करता है आज उन्हें ईमानदारी से कोई तो बताए हमें। वे सब सिर्फ़ औपचारिकता वश ही याद किए जाते, बहुत हुआ तो पुतला बनाकर खड़े कर दिए जाते हैं सौ दो सो मीटर जगह घेरने के अलावा सिर्फ धूल-धक्कड़ से नहाते हैं , जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हर समय तने रहते हैं, हमें लगता वे अभी तक श...
गुलामी से आजादी
कविता

गुलामी से आजादी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** गरीबी, दरिद्रता और बेबसी जन मन का प्रतीक, समर्पण, चाटुकारिता, दासता, हैं उनके साथी। सलाहकार बन बैठे हैं निराशा और असत्य दल, अब कब मिलेगी मानसिक गुलामी से आजादी? असफलताओं की बेड़ियों में जकड़ी है जीवन, नकारात्मक मनोभाव अंग्रेजों से परतंत्रता है। कर्म, साहस और उत्साह वतन रक्षक फौजी, सफलता और मंजिल की प्राप्ति स्वतंत्रता है।। दिव्य शक्ति का संचार कर अंतर्मन में हिलोर, धर्म चक्र आत्म शांति जन-जन का सहारा। मन, वचन में मातृभूमि की समृद्धि, पवित्रता, प्रगति पथ अशोक चक्र निर्मित तिरंगा प्यारा।। सत्य और अहिंसा सिद्धांत राष्ट्रपिता गाँधी जी, भगत सिंह की देश भक्ति ने कोहराम मचाया‌। वीरांगना झाँसी की रानी ने गोरों से लोहा ली, बाबा साहेब ने समानता का संविधान बनाया।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) ...
कर्म
कविता

कर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने आप मे गुम भुरभुरी सी मिट्टी में पांव के निशान कुरेदते, सोच की धारा में मन डूबने लगा! जीवन के दो पहलू है सुख-दुख, बाकी सब पार्थिव है यहां !! इसी मिट्टी में विलीन हो जाता सबकुछ, एक कर्म है जो पार्थिव नहीं होता। वर्तमान, भूत, भविष्य हैं इनपर निर्भर पुण्य पाप इन्हीं के कहने पर भाव हैं इनका आधार। कोई कहता सांसारिक सुख हैं भाग्य कोई मानता ईश्वर से मिलन बडभाग। हर ओर कर्मों का अधिग्रहण, हम हैं तो भी वो है, हम नहीं हैं तो भी तो वो हैं! मेरे जन्म से अंत तक मेरे साथ है जो है, जो होगा वो मेरा कर्म, धारा का प्रवाह थोड़ा क्षीण हुआ, स्वयं से स्वयं की अनुभूति हुई, ये जीवन "जीव" के काम आए ये भी तो कर्म है।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार...
आजादी के वीर सपूत
कविता

आजादी के वीर सपूत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी के वीरों सपूतों का, आओ यश गान करें! श्रद्धा, सुमन अर्पित कर, उनका हम सम्मान करें !! कतरा कतरा खून देकर, जो देश बचाया करते है..! ऐसे वीर सपूतों का, हम सब यश गाया करते है !! घर से दूर सरहद में रहकर, देश का गान करते है! सर्दी, गर्मी, बरसात सहकर, तिरंगे की मान रखते है !! दुश्मनों से लड़ते-लड़ते, जो वीर गति को पाते है! ऐसे वीर सपूत जग में, मरकर अमर हो जाते हैं..!! आओ मिलकर देशहित में, कुछ अच्छा काम करें! पेड़ लगाकर धरती में, वीरों के हम नाम करें..! राष्ट्रहित में मर मिटने को जीवन अर्पण करते है ! ऐसे वीर सपूतों का हम, शत-शत वंदन करते है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
मन के पंछी
कविता

मन के पंछी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। अब तो नीरस लगा दीखने, मुझको यह संसार। आना जाना नियम यहाँ का,फिर भी महल बनाते। कोई यहाँ ठहर न पाता, सब हैं आते जाते। मेरा घर इस पर बना है, साजन हैं उस पार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। बीच भँवर में डोले नैया, मन हिचकोले खाता। दूर-दूर तक दिखे न कोई, समझ नहीं कुछ आता। बन जा मेरे प्यारे कान्हा, तू ही खेवनहार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। माया दिखती बिल्कुल सच्ची, सबको उलझाती है। जीवन की है कठिन पहेली, समझ नहीं आती है। माया तो आनी जानी है, झूठा यह संसार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। वशीभूत माया के होकर, ठोकर ही खाता है। खाली हाथ आगमन तेरा, खाली ही जाता है। सबके पालन हार राम हैं, जीवन के आधार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू स...
माँ
कविता

माँ

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम, इस संसार में आया जब मेरे कोरे मन पर, लिखा पहला नाम हो तुम। स्मृति में तुम्हारी भूली बिसरी आती हैं यादें। यादों से आंखें नम हो जाती है। आपकी त्याग, तपस्या, कर्तव्य निष्ठा, स्नेह की तस्वीर, नजर आती है। सब-कुछ पा कर भी तुम्हारी, कमी रह जाती है। बीते तुम्हारे दिनों की, सदा याद आती है। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
भगति म मन ल लगाबो
आंचलिक बोली, भजन

भगति म मन ल लगाबो

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भजन भगति म मन ल लगाबो चल भईया भगति म मन ल रमाबो रे जिनगी ले मुक्ति हम पाबो रे भव सागर ले तर जाबो रे चल भईया भगति म ... चल दीदी अमृत गंगा म डुबकी लगाबो जी राम कथा म मन ल रमाबो जी जिनगी ल सुफल बनाबो... (२) शबरी ल जानने, मीरा ल मानेन भगति के मिशाल हे..(२) मोर भाई.. बढ़ निक लागे तुलसी के बानी जिनगी बर हावे...( २) संजोए मोर भाई राम कथा ल गांव- गांव..(२) पहुंचाबोन जी जिनगी ल सुफल बनाबो भव सागर ले तर जाबो जी... चल भईया चल दीदी भगति म मन ल लगाबो जी... जिनगी ले मुक्ति हम पाबो जी दुनिया म अंजोर बगराबो जी भव सागर ले तर जाबो जी मोर भईया मोर दीदी भगति म मन रमाबो जी... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
ताड़व
कविता

ताड़व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु तुम क्यों आ रही हो यू क्यों बार-बार मुस्कुरा रही हो? क्या प्रलय करता हुआ जल तुमको भाँता है? क्या सड़ती हुई लाशें तुम्हें सुकून देती है? क्या तुमको कभी किसी ने पुकारा है? क्या तुमको कभी किसी ने ठुकराया है? किस क्रोध में तुम बरस रही? किस दर्द में तुम तूफा बन बहक रही? क्या देवों की भूमि में आ बसे है राक्षस? तुम जिनका अब नरसंहार कर रही? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छ...
राखी
कविता

राखी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आषाढ़ की बादली, सावन की रिमझिम सी, नेह सिंचित राखी लिए, बहिन छबीली आई। चमकीली रेशम की डोरी, भाव जड़ी माणिक, वात्सल्य की बहती गंगा, रिश्तों के सागर आई। भाई बहिन के प्रेम की, नन्हीं राखी प्रति छाया, अमर आत्मिक गाथा, सुख-दुःख की यह पुरवाई। संकट से जब घिरी बहिन, तो भाई बना रक्षक, आन पड़ी जब भ्राता पर, बहिन फ़र्ज़ निभाई। खुशियों की सौगात, अपनों की मिठास राखी, अटूट बंधन नेह समरस, वचन मोली कहलाईं। पंख पैर में लगा आत्मजा, बाबुल के घर पहुंचे, भर - भर आंगन निरखती, प्रीत नैहर की पाई। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरे पापा
कविता, बाल कविताएं

मेरे पापा

रीति सिन्हा हाजीपुर ******************** कहो अगर गुड़िया लाने को, ले आते वो पूरी दुकान। मेरे लिए जादूगर है वो और मैं हूँ उनकी जान। सुबह में काम पर जल्दी जाते रात को देर से लौट के आते। खून पसीना करके एक, घर को क्या वो खूब चलाते। सारे सपने भूल के अपने, सपनों से बढ़कर है अपने। वही तो हैं घर का रखवाला, उन्हीं ने तो घर को सँभाला। अपने दर्द का जिक्र न करते, परिवार की फिक्र हैं करते। मुझे जरा सी चोट लगे तो, पापा कच्ची नींद में सोते। माँ की आँखें बरबस रोती, पिता अश्रु को पी जाता है। माँ का नेह सभी को दिखता, पिता भी तो छुपकर रोता है। परिचय :-  रीति सिन्हा निवासी :  हाजीपुर शिक्षा : संत पाॅल्स हाई स्कूल कक्षा - 6 घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ख्वाब अधूरे रह जाते है
कविता

ख्वाब अधूरे रह जाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** इस जीवन के आपाधापी में कितने गलती और माफ़ी में सपने ख्यालो में सज पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है अपना अब कोई नहीं होता है आँखे बरबस ही अब रोता है अपने सब बेगाने हो जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है इस जगत की जद्दोजहद में कोई हद और कोई बेहद में कैसे कब सफल हो पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है एक मिट्टी के घरौंदा के लिये कुछ दिल की चाहत के लिये अपनों को भी भूलाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है कोई कहाँ जग में सदा रहेगा अपनी बीती किस से कहेगा राज सीने में दफनाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.ए...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जन्म इकतीस जुलाई अट्ठारह सौ‌ अस्सी। जन्मस्थल उत्तर प्रदेश के लमही जिला काशी।। माता‌ थी आनंदी पिता थे अजायब राय। धनपत राय बचपन का नाम उर्दू में नवाब राय।। अमृत राय पुत्र का नाम पत्नी का शिवरानी। लिखकर चले गए लगभग तीन सौ कहानी।। कहानियों का संग्रह है 'मानसरोवर' नाम से। प्रसिद्धि उनकी विश्व में लेखन के काम से।। बनारस से निकालते थे वे पत्रिका 'हंस'। लेखन में अब तक चल रहा है इनका वंश।। 'बड़े भाई साहब' पढ़ा पहुंचे जब अष्टम् में। दो बैलों की कथा पढ़ी आ गये जब नवम् में।। फटे जूते के बहाने मौका मिला दशवीं में। ईदगाह पढ़ने का मौका मिला ग्यारहवीं में।। 'प्रेमचंद घर में', 'कलम का सिपाही' की कहानी। पत्नी और पुत्र ने लिख डाला उनकी जीवनी।। गद्य की विधाओं में उनकी बहुत पकड़ थी। नम्र थे विनम्र थे ‌उ...