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पद्य

हिंदुस्तान की पहचान हिन्दी
कविता

हिंदुस्तान की पहचान हिन्दी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** हिंदुस्तान की पहचान जो जन गण का अभिमान जो भावो की है जो आरती यही तो है हिन्दी ग्रंथो का आधार जो सुरसरी की धार जो भारत माता की बिन्दी यही तो है हिन्दी गीत, गजल और कविता पर्वत, सागर और सरिता समृद्धि की पहचान जो यही तो है हिन्दी भारतीयो की अस्मिता भाव से सदा सुपुनीता आवाम की आवाज जो यही तो है हिन्दी आन, बान, शान है सबका स्वाभिमान है संस्कृति की करे आरती यही तो है हिन्दी मन के सभी भावो मे कंही चंचल कंही ठहराव मे समृद्ध जो है समुद्र सा यही तो है हिन्दी व्याकरण से प्रबुद्ध जो सात्विक और शुद्ध जो सुवासित है जो अलंकार से यही तो है हिन्दी भिन्न-भिन्न राग रंग मे जीवन के प्रत्येक रंग मे संस्कार की झलक जिसमे यही तो है हिन्दी भारत की मातृभाषा बने देश एकता के रंग मे सने बने देश का अब शान...
हिंदी पर अभिमान
कविता

हिंदी पर अभिमान

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** हमें हिंदी पर अभिमान हैं वृद्धि हो हिंदी के सम्मान में, गौरव गाथा हिंदी की सदा से हमारी भारत माता के समान है।। हिंदी भाषा हम का सम्मान करें, हिंदी से हमारी अलग पहचान है सदा रहें भारत का गौरव हिंदी से, मातृभाषा हिंदी माता के समान हैं।। हिंदी में पढ़ते हम सभी गूढ विधान, कठिन वर्णमाला होने पर भी हिंदी, सरल प्रवाह से बोली जाने वाली भाषा जग में पाती सदैव गौरवशाली सम्मान हैं।। रस रूप अलंकार छंद से श्रृंगार होता इसका काव्य सरस रचनाएं, कहानियों संग कई विधान हैं जगत में भाषाओं में हमें गौरवान्वित हैं हिंदी से हमें हमारी हिंदी भाषा पर, सदैव ही अभिमान है। जय भारती, जय हिंदी, जय मातृभूमि। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घ...
दिग दिगंत में हिन्दी
कविता

दिग दिगंत में हिन्दी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हम हिन्दी हिन्दुस्तानी रखते हर क्षैत्र में अपना सानी खेल, संस्कृति, शिक्षा, गृह, नक्षत्र का अन्वेषण कर आगे बढ़ते नित नवीन पथ की ओर। ओर, छोर न पार देखते देहलीज लांघ कर पीछे मुड कर न देखते ऐसे सैनिक देश के बलिवेदी पर चढ़कर निकलें हिन्द देश के वासी। दिग दिगंत में क्षैत्र, क्षेत्र में फैली हिन्दी भाषा विभिन्न अलंकारों से सजी नव रसो से भरी मेरी मेरी हिन्दी भाषा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से...
दर्द की चीखें
कविता

दर्द की चीखें

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या भ्रूण में मर जाऊं? क्या जन्म ना ले पाऊं? कैसी घड़ी कैसा समय, क्या बंद कमरे में रह जाऊं। क्या दोष किया मैंने विधाता? इस धरती पर बोझ में बन बैठी, रावण दुशासन एक ही थे अब हजार दुशासन बन बैठे। धरती से जन्मी सीता को धरती में समाना पड़ता है, अत्याचारों का जीवन देखो द्रोपती को सहना पड़ता है। त्रेता में एक कृष्ण जन्मे अब कलयुग में हजार कृष्ण को जन्म ना होगा। अपनी सुरक्षा अपना बचाव क्या जन्म से बेटी कर लेगी? अबोध नादान नासमझा जो बेटी है, कैसे कंस के हाथों बचनी होगी। संस्कार सभ्यता शिक्षा में बदलाव जरूरी है भारत में, गीता पुराण भागवत की शिक्षा गुरुकुल जरूरी है भारत में। विचार क्रांति ही है सुरक्षा, विचारों की प्रधानता हो प्रबल, तभी सुरक्षित रह पाएगी भारत माता और भारत की बेटी। पूजनीय वंदनीय हम सम...
साधना के गीत गाओ
गीत

साधना के गीत गाओ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नाम प्रभु का उर बसाकर, साधना के गीत गाओ। बन पुजारी सत्य के तुम, विश्व को संयम सिखाओ।। लेखनी चलती रहे यह, ज्ञान की रसधार भी हो। छंद रस बरसात निशदिन, जीत का गलहार भी हो।। हों सफल हर क्षेत्र में हम, अल्पना ऐसी बनाओ। बुद्धि निर्मल हो मिले यश, दूर हों अवसाद सारे। पुष्प आशा के खिलें फिर, स्वप्न हों साकार प्यारे।। प्रेम का विस्तार हो अब, मोहिनी पिक-ध्वनि सुनाओ छाँव देदो प्रेम की तुम, भाव कुत्सित त्याग प्यारे। दंभ छल से मोड़ दो मुख, कर्म हों निष्काम सारे।। धर्म की लहरे ध्वजा फिर, तुम अलख ऐसी जगाओ है तृषित धरती बड़ी यह, आपसी सौहार्द टूटे। लुप्त सब संवेदनाएँ, शांति के घट आज फूटे।। है व्यथित माँ भारती भी, दीप जागृति के जलाओ। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प...
हिंदी की बिंदी प्यारी
कविता

हिंदी की बिंदी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भालचंद्रमा-सी शोभित है, हिंदी की बिंदी न्यारी। भारत के जन-जन को लगती, हिंदी भाषा, अति प्यारी। सुख सौभाग्य यही बिंदी है, लगी भाल पर हिंदी के। इससे ही सुहाग हिंदी का, बड़े भाग्य, इस बिंदी के। अनुपम और अनूठी बिंदी, माँ निज भाल लगाती है। नवरस से हो सराबोर यह, सुखप्रद आस जगाती है। अलंकार छंदों से सज्जित, होकर लगती मनभावन। सहज, सरल सब भाषाओं में, हिंदी भाषा है पावन। जग मंगल, करती है हिंदी, सबको आँचल में लेती। मन प्रसून को पुष्पित करती, सुरभित, केसर-सी खेती। सूर, कबीर, दास तुलसी ने, हिंदी का गौरव गाया। रामचरितमानस अति पावन, जन-जन के, मन को भाया। सागर-सी गहराई उर में, पर्वत-सी ऊँचाई है। पंत, निराला, दिनकर जी ने, इसकी महिमा गाई है। है विशाल आँचल हिंदी का, इसमें सभी समाते हैं। स...
कुवलय
कविता

कुवलय

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कला का पुरस्कार अब मिलता नहीं है चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं। घर की वापसी अब कोई करता नहीं प्रजातंत्र के लिए कोई लड़ता नहीं। सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से कोई भिड़ता नहीं। अमल-धवल महामानव अब कोई मिलता नहीं निदाग कुवलय सा शख्स कोई दिखता नहीं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
आख़िर कब तक
कविता

आख़िर कब तक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** सीधी अंगुली घृत न निकले, नही हर्ज अंगुली टेडी करने में। सृस्टि सृजक अब सृजो तलवार नही भलाई किंचित भी डरने में।। माना ममतामयी है ह्रदयसिंधु पर, दृगों में जला तू आग आज। मसल डाल वहशी भेड़ियों को नोच रहे जो निर्भय नारी लाज।। बढ़ रहे हौंसले पल-प्रतिपल, निर्दयी निर्लज्ज दुशासन के। अंधे, गूंगे, बहरे, बेबस पाण्डव, धृतराष्ट्र दीवाने सिंहासन के।। थी सुरक्षा जिनकी जबावदेही मानो थर-थर वह कांप रहे। पिला रहे दूध सांपों को शायद, या नुकसान स्वंय का भांप रहे।। हो चुकी हैं हदें अब पर सभी, रहे न जिंदा कोई बलात्कारी। करें शीघ्रता से सरकार निर्णय, छोड़ जाती-धर्म अब लाचारी।। आख़िर कब तक रहेंगी लुटती, बनकर बेबस बेचारी नारियां। उठो ! जागो रणचंडीयो अब तो छोड़के बनना, तुम फुलवारियां।। परिचय :- गोविन्द सरावत...
बचपन की वो यादें
कविता

बचपन की वो यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक समय था जब मैं छोटा था, उस चाँद को कहता मामा था। पता नहीं कब सुबह होता था, और रात को कहाँ ठिकाना था। स्कूल न जाने के लाख बहाने, पर मम्मी की डॉट से जाता था। स्कूल से आने में थक जाते थे, पर शाम को खेलने जाना था। होम वर्क करने का मन नहीं करता था, पर मैडम से पीटने के डर से करता था। बारिश में खेलता कागज की नाव से, तब लगता हर मौसम ही सुहाना था। चाहे पड़ती हों ठंडी या गर्मी क्रिकेट खेलने जाता था, नहीं होता चोट का डर इसलिए मस्ती में रहता था। एक दुसरे से पैसा लेकर गेंद खरीद कर आता था, गेंद गुम हो जाने पर मायूस होकर घर आता था। रात को हमे तब नींद नहीं आने पर, मम्मी की लोरी एक मात्र सहारा था। वो झूठी सब मनगढ़ंत कहानी, मम्मी हमको तब सुनाती थी। कहती थी जल्दी सो जा तू वरना, भुतू आकर तुमको उठा ले...
शिक्षादाता
कविता

शिक्षादाता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ पकड़कर जिस गुरुवर ने, लिखना हमें सिखाया जीवन पथ पर कैसे चलना चलकर हमें दिखाया।। कैसे भूलूँ उस गुरुवर को, कभी हार न माना होगा क्षमा कर गलतियों को जिसने काबिल हमें बनाया।। सही गलत का ज्ञान कराकर, सत्य मार्ग बतलाया कैसे जीना हमें चाहिए जी कर हमें दिखलाया।। शिक्षा, और संस्कार के दाता, हमारे भाग्य विधाता अज्ञानता को दूर भगाकर ज्ञान का दीप जलाया।। सफलता के राह पर चलकर सच का राह दिखाया मिलती नहीं मंजिल तब तक चलना हमें सिखाया।। थककर कभी बैठ न जाना, मंजिल की इन राहों पर कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ना हमें सिखलाया।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गणेश-वंदना
भजन

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल। आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल।। एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे। लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे।। रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ। नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ।। मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। भटक रहा मानव राहों में, गहन तिमिर का आलम। आया है पतझड़ जोरों पर, पीड़ा का है मौसम।। प्रथम पूज्य हे...
हिंदी की गूंज
कविता

हिंदी की गूंज

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सितंबर का महीना जब आता हिंदी की उन्नति व प्रगति का हिंदी दिवस और पखवाड़े का मनाने की बेसुमार खुशी लाता हिंदी प्रचारक दीप जलाता अन्तर्मन से हिंदी का नारा तनमन से हो आता प्यारा प्रफुल्लित सबजन लगाता हिंदी की प्रबलता नई गति दिशाहीन हिंदी को दिशा ताकतवर ज्वार खूब लाता जमावडा सबका हो जाता जमकर हिंदी दिवस का डंका बजाया जाता हिंदी के प्रचारप्रसार का मनुहार जोरो से हो जाता खोजते है तमाम उपाय हिंदी फलतीफूलती जाय जोरों पर हिंदी पखवाडा प्रतियोगिता तेज. बढ़ाता विकसित करने को हिंदी नारा जोरशोर से लगवाता कामयाब करने को पखवाडा लगता जाता इसमें तमाम झाड़ा दिवस हिंदी का पखवाड़ा हिंदी का कार्यशाला हिंदी की प्रतियोगिता हिंदी की रचनाएँ हिंदी की जागरूकता हिंदी की सितंबर महीना आता हिंदी को मान्यता दिलाने की गूंज हरको...
गुनगुनी धूप है शिक्षक
कविता

गुनगुनी धूप है शिक्षक

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** ईश्वर का होता सु-रूप है शिक्षक, सद्गुणों भरा मृदु कूप है शिक्षक। अनसुलझी-सी सर्द फिजाओं में, जैसे कि-गुनगुनी धूप है शिक्षक।। अज्ञानता भरे खाली अ से लेकर, 'ज्ञ' तक का देता है निश्छल ज्ञान। नही जगत में सदगुरु से बढ़कर, गोविन्द हो या, फिर हो इंसान।। कहलाती प्रथम गुरु निज जननी, लेती परख पलभर में सब कुछ। पिता है सदगुरु धरती पर दूसरा, जाती, देख पीड़ा भरी पावक भुझ।। तपकरक़े स्वंय सद्कर्म वेदी में, स्वर्ण को कुंदन बनाये सद्गुरु जी। लगाए चांद के तिलक शिष्य निज, पंखों में परवाज जगाये सद्गुरु जी।। अंधकार भरे छल-छ्द्ममी जग में, सद्गुरु ही हैं एक महा दिव्य-दीप। चुन चुनकर बूंद स्वाति नक्षत्र की, करता सृजित वह अनमोल सीप।। जिसे मिला सानिध्य सद्गुरु का, बन गया वह "नर" नारायण यहां। हुआ धन्य जीवन...
गजानंद स्वामी
आंचलिक बोली, भजन

गजानंद स्वामी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** रिद्धी-सिद्धि के तै स्वामी, तोरेच गुन ल गावत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! हे गणपति, गणनायक स्वामी, महिमा तोर बड़ भारी हे माथ म मोर मुकुट सजत हे, मुसवा तोर सवारी हे !! साँझा बिहिनिया करौव आरती, लाड़ु भोग लगावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! माता हवय तोर पारबती अउ पिता हवय बम भोला दिन दुखियन के लाज रखौ, बिनती करत हँव तोला !! पान, फूल अउ नरियर भेला, मै हर तोला चघावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! अंधरा ल अखीयन देथस अउ बाँझन ल पुत देवइयां बल, बुद्धी के तै हर दाता, सबके बिगड़े काम बनइयां ।। हे गणराज, गजानंद स्वामी मै हर तोला मनावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्ष...
मौसम के तेवर
गीत

मौसम के तेवर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बदले हैं मौसम के तेवर, गुम वसंत के रंग। संदेहों की कुसुमित बगिया, तंत्र पिये है भंग।। लोभ मोह की काल कोठरी, टूटी हर दीवार। बेटे रहते अब विदेश में, उर सिरजे अंगार।। रोज़ बुढ़ापा घुटने टेके, कटती आस पतंग। पॉलीथिन में लुप्त हो गई, मृत नदिया की धार। नयी सदी की बात नयी है, हुई जीवनी भार।। दहक रहे दिन रातें सूनी, बदले सारे ढंग। बहुमंजिल इन इमारतों में, टोटे पड़ते धूप। झोपड़ियों की हवा छीनकर, एसी सोते भूप।। मकड़ी के जाले सपनों पर, टूट रहा हर अंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिल...
गुरु चालीसा
गीत

गुरु चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** जय जय जय शिक्षा के दाता। कृपा करो आशीष प्रदाता।। तुम सागर हों गुरु ज्ञान के। सबको देते हों ज्ञान अपार।। बुद्धि विवेक जो भी चाहें। गुरु सेवा में ध्यान लगाए।। गुरु मंत्र जो कोई भी जपता। जीवन में सफल सदा रहता।। अनपढ़ को भी ज्ञान देकर। तुम बना देते हो यू विद्वान।। तुम पर हैं हम सबको गुमान। तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।। अनपढ़ को जो विद्वान बना दे। धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।। भक्ति भाव का दीपक जलाते। नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।। अंधकार को तुम दूर भगाते। ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।। सही गलत का पहचान सिखाते। शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।। हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार। समय-समय पर करते हों प्रचार।। बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते। चंद्रगुप्त को राज दिलाते।। महामूर्ख कालीदास जैसे को। ...
डर कितना है
कविता

डर कितना है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खोजो-खोजो सब कोई बंधु अपने अंदर डर कितना है, जिंदा रहकर डरे हो कितना डरकर गए हो मर कितना है, डर अंदर की कमजोरी है, अनदेखे को श्रेय देना क्यों मजबूरी है, किसने तुम्हें कब कब बचाया है, किसने भीरू बना जब तब डराया है, डरना ही है तो प्रकृति से डरो, उनसे छेड़छाड़ खिलवाड़ मत करो, डर का अंजाम भयानक होता है, मत सोचो ये अचानक होता है, आपके भीतर खौफ धीरे-धीरे भरा जाता है, डराने कोई और नहीं आता है, बचपन में घर परिवार द्वारा, फिर सामाजिक संसार द्वारा, कहीं धन के घमंडियों द्वारा, कहीं धर्म के पाखंडियों द्वारा, ये डर लूट जाने पर मजबूर करता है, अनाम चमत्कारियों से गुहार कर, मन मस्तिष्क गुलामी की ओर जाता है, फिर कुछ धूर्त अपने इशारे पर नचाता है, डर से हमें दूर हमारी एकाग्रता और ध्यान कर सकता है, सोच व ज्ञान ...
शब्दों के रणवीर
गीत

शब्दों के रणवीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** लगा रहे जयकारे केवल, शब्दों के रणवीर। गीत हुए हैं चारण सारे, अब क्या करे कबीर।। फुदक-फुदक ये बजा रहे हैं,वाह वाह की झाँझ। लिपटे हैं पति-सी सत्ता से, ज्यों हो सौतन बाँझ।। मगरमच्छ-से आँसू इनके, पल-पल हुए अधीर।। चुन-चुन कर ये मार रहे हैं, पत्थर वाले फूल। रीति नीति के काटें बोते, पथ पर ऊल-जलूल।। तमगों के चाहत में डोले, इनका सर्प ज़मीर।। छल-छंदों में लिप्त मिला है,लालकिले का फर्ज। चढ़ा हुआ भाटों के सिर भी, इसी दुर्ग का मर्ज।। रोज माॅबलिंचिंग कर ढोंगी, करते पेश नज़ीर।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
नारी उत्पीड़न
कविता

नारी उत्पीड़न

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के गाँव, शहर, गली-गली में, नारी पर अत्याचार हो रहा है माधव। चीख, पुकार रही बेबस, असहाय स्त्री, कहाँ हो लाज बचाने वाले प्रभु राघव? कोई रावण बन अपहरण कर रहा है, फिर से अग्नि परीक्षा दिलाने सीता को। कोई दुशासन बन चीर हरण कर रहा है, लज्जित करने द्रौपदी की अस्मिता को।। सरकार खामोश बैठी है राजसिंहासन, न्याय की आँखों में काली पट्टी बंधी है। जनता मोमबत्ती जलाकर शोकाकुल, पीड़िता इंसाफ की गुहार लगा रही है।। युग अंधा है या फिर हम सब अंधे हैं, कलियुग में राक्षसों का मचा हाहाकार। फिर से किसी देवता को आना पड़ेगा? क्या कोई नहीं जो रोक सके बलात्कार? परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री श...
कोरे आश्वासन
कविता

कोरे आश्वासन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कानों को मधुर लगती ध्वनियाँ मंदिर की घंटी, पायल कोयल की कूंक हो या सुबह उठने के लिए माँ की मीठी पुकार। कानों के लिए वाणी की मिठासता बन जाती मोहपाश सा बंधन या उसी तरह भी लगती है जैसे प्रेमी-युगल की मीठी बातों से भरा हो प्यार का सम्मोहन। कानों को न सुहाती तेज कर्कस कोलाहल भरी आवाजें ला देती कानों में बहरापन तभी तो उनके कानों तक समस्याओं के बोल पहुँच नही पाते या फिर हो सकता दिए जाने वाले कोरे आश्वासन हमारे कान सुन नहीं पाते हो। तब ऐसा लगता है मानों विकास के पथ पर लगा हो जंग या प्रदूषण से कानों में जमा हो गया हो मैल। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभा...
आया माखन चोर कन्हैया
कविता

आया माखन चोर कन्हैया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आया माखन चोर कन्हैया, गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर में मच गया शोर, लेकर आया जन्माष्टमी की भोंर, आया माखन चोर कन्हैया, सुनो सब गोर से मथुरा, गोकुल, वृंदावन, ब्रज में सब, जगह ढोल-मंजीरे बज उठे। द्वार-द्वार, नगर-नगर सब लोग, उमंग उत्साह संग नृत्य करें, गायन करें आया माखन चोर कन्हैया, अधरों पर मुस्कान लिए, अधरों पर धर बांसुरी बजाएं, मधुर धुन सुनाएं, सकल भारतवासी, सुन सुध-बुध खो कान्हा छवि निहारें, आया माखन चोर कन्हैया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
राधा का आधार
कविता

राधा का आधार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** राधा का आधार धरा पर, होंठो पे मुस्कान है राधा को राधेय बना दे ऐसी जिसकी शान है सृष्टि का महानायक जो कर्म का पाठ पढ़ाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है अद्धभुत है लीला, सबको विभोर कर जाता है गोकुल मे निश्चिंल प्रेम का अलख जगाता है नारायण है जो नर रूप मे नित लीला रचाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है रावण मारे सियापति राम बनकर हरे धरा का ताप कंस मर्दन किया श्याम बनकर धरती के मिटे पाप कभी राम कभी श्याम बन, इस धरा पर आता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है प्रेम का बीज बोकर जग मे, प्रेम का महत्व बताया प्रेम-प्रेम प्रकृति मे कैसे? प्रेम का भेद समझाया जग कल्याण के लिए प्रेम की महिमा बताता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है जीवन के गूढ रहस्य को सहजता से समझाया कुरुक्षेत्र म...
विकृत मानसिकता का सही दंड
कविता

विकृत मानसिकता का सही दंड

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हर नारी दुर्गा बन जाए, तो ही उसकी लाज बचेगी। डी जी को दे भेंट चूड़ियां, तो ही उनकी नींद खुलेगी। हर नारी ... नारी को सबला करदो मां, कोई दुष्ट सता ना पाए। यदि दस राक्षस उसे घेर लें, चंडी बन वो उन्हें मिटाए। तुम प्रेरणा करो नारी को, चाकू ले वो तभी चलेगी। हर नारी ... शासन गुंडों का रक्षक है, उससे कोई आस नहीं है। महिला के आभूषण लुटते, पुलिस तंत्र को लाज नहीं है। तुम्ही क्रुद्ध होगी जब मैया, तब दुष्टों की जाति मिटेगी। हर नारी ... जो कुदृष्टि डाले नारी पर, किन्नर उसे बना दो मैय्या। नवरातो में चंडी बनकर, दुष्टों को संघारो मैय्या। रुद्र रूप में आओ मैय्या, तब नारी की लाज बचेगी। हर नारी ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना ...
रणचंडी
कविता

रणचंडी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उठो देश की बेटी अब कब रणचंडी बनोगी। कब तक बनकर घर की लक्ष्मी ओरों पर उपकार करोगी। कब तक दुराचारों को सह कर अबला बनोगी। दया,ममता तो रखती हो मगर अपने लिए मान- सम्मान कब रखोगी। कब तक घर की चारदिवारी में रहकर सबके कटू वचन सुनोगी। घर-घर में रहते है दरिंदे कब तुम उनके लिए अब रणचंडी बनोगी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
हाथ काट लो हत्यारों के
कविता

हाथ काट लो हत्यारों के

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जोर जबरदस्ती बेटी सँग, जो करते वे पापी। जो विरोध ना करें पाप का, वे पक्के संतापी। भरा विकार हृदय में जिनके, भरी गंदगी मन में। ऐसे पापी अधम काम ही, करते हैं जीवन में। है दिमाग में विकृति जिनके, वे हैं पापाचारी। औरों को पीड़ा पहुँचाना, है उनकी बीमारी। नर पिशाच शैतान सड़क पर, खुला तांडव करते। शील हरण करके बहनों का, भय अंतस में भरते। बीच राह बेटी की अस्मत, लूट रहे हत्यारे। घटना देख बोल ना पाते, हम कितने बेचारे? कब तक जुल्म सहेगी बेटी, कोई तो बतलाओ? खून गर्म,जिंदा दिल बालो, जरा शर्म तो खाओ। खून जल गया है हम सब का, कायरता है मन में। मौत हो गई है हम सब की, बचा न कुछ जीवन में। कायर बन, जीवन जीने से, अच्छा है मर जाना। पाप देखने से अच्छा है, कालकूट बिष खाना। माता-पिता अधर्मी...