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पद्य

चलो ‘नार्को टेस्ट’ करवाते है…
कविता

चलो ‘नार्को टेस्ट’ करवाते है…

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** वो सब लोग गौर से सुन ले जरा जो अक्सर बौखलाते हैं, सोने से पहले रोज जरा खुद का 'नार्को टेस्ट' करवाते है! छुपाए हुए किरदारों से खुद ही को जरा रुबरू करवाते है, खुद के देह से तो यहाँ सब अच्छे से वाकिफ़ हो चुके हैं, उसमें छुपे देव-दानवों से भी खुद की पहचान करा लेते है। इंसानी लिबासों में न जाने भेड़ियों ने कितने घर बनाए है? औरों पे उंगली उठाने में खुद के जाने कितने ऐब छुपाये है! चलो 'नार्को टेस्ट' करवाते है इसमें सब राज बयां होते हैं। असली चेहरे उसकी हर रेखा के साथ उजागर हो जाते है! जब औरों के दर्द नाटक एवं खुद के बेशकीमती लगते हैं, चलो 'नार्को टेस्ट' में रोज एक बार खुद से मिल ही लेते है। अब शिकायतों के ये दौर हमेशा के लिए खत्म कर देते है, क्या कहाँ, " आप 'नार्को टेस्ट' करने से बहुत घबराते है?" क्यों...
बाय यूज़र
कविता

बाय यूज़र

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ब्रह्मा और मनु की धरती हम उनकी संतान हैं मनु से ही मानव और मनुष्य हम कहलाए मनु के आगे राजर्षि इक्ष्वाकु उनके पुत्र भरत कहलाए चक्रवर्ती राजा, यह धरा उन्हीं की हम भारतवंशी कहलाए। राजा दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कृष्ण की हम संतानें हैं वही हमारे पूर्वज कहलाए। देवी प्रकृति सनातन है प्रकृति के हम उपासक‌हैं सदियों से हम इस पर खेती करते वेदों की ऋचाएं, ऋषिकुल चलते। शृंगी ऋषि और भरद्वाज ने बौधायन और कश्यप ऋषि ने और अगणित ऋषि मुनियों ने यह धरा हमें दान कर दी शिक्षा‌ सहित हमें दे दी। सहस्त्रों वर्ष का इतिहास हमारा यहां सनातन राज हमारा हमने ब्रह्मा और मनु से पाई इतनी प्राचीन लिखा पढ़ी नहीं कोई हो पाई यहां आर्य सभ्यता कहलाई। हम है यूज़र इसके हम इसके स्वामी ‌हैं राम कृष्ण के अनुगामी हैं। आए विदेशी आक्रांता ...
मेरी भी उड़ाने हैं
कविता

मेरी भी उड़ाने हैं

श्रीमती अनीता गौतम राजनांदगांव भरका पारा ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना बस गीतों में ढलती रही कहानियों में मिलती रही कागजों में उतरती रही उभरती रही रंगों के साथ मेरी भावनाएं छपती रही पत्रिकाएं और अखबारों में और बिकती रही बाजारों में एक-एक हर्फ में बेचारी बनी कभी फूल तो कभी चिंगारी बनी मेरे दर्द की करुण कहानी पर बूंदे भी आंखों से बहाई गई कभी मोहब्बत के अफसानों में नायिका बन प्रेम लुटाती रही क्या कोई मुझे रूह में उतार पाया क्या कोई सही में समझ पाया मेरी भावनाओं और जज्बातों को क्या कोई सही में जान पाया मेरे सपने और अरमानों को क्या कोई पंख दे पाया मेरी भी उड़ानों को परिचय :-  श्रीमती अनीता गौतम जन्म दिनांक : १४ दिसम्बर १९७५ निवासी : राजनांदगांव भरका पार...
नारी और स्वतंत्रता
कविता

नारी और स्वतंत्रता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना शक्ति का नाम नारी, आज की आत्मनिर्भर नारी, कई रूप है उसके, मृत्यु भी उस से हारी ! आजाद देश की नारी है, किन्तु अबला कहलाती है, हर जिम्मेदारी अपनी बखूबी निभाती है !! सजग है सचेत है, सबल और समर्थ है, आधुनिक युग की नारी है सक्षम बलधारी है !! झुका सके ना उसको वो प्रचंड आसमान है, संघर्ष के शिलाओं का पूर्ण होता आकाश है!! स्नेह-प्रेम-ममता की ये तो भंडार है, हर युद्ध जीतने, अभियान उसका जारी है! चाहरदीवारी के हर बंधन तोड़, आज बनती युग निर्मात्री है, पथ है पथरीली, हर बाधा उससे हारी है !! टूटती है, बिखरती है, फिर से संवरती है, हर युग की नारी सम्मान की अधिकारी है !! स्वावलंबी बन जीवन ...
नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान
कविता

नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना नारी उड़ना चाहती स्वतंत्रता की वो शिक्षा के बल पर लगा चुकी उड़ने के पंख हर क्षेत्र में स्वतंत्रता के जरिये विकास के द्वार पुरुषों के संग खोल रही वे चाहती है कि दुनिया से उत्पीड़न, शोषण ओर बलात्कार हो बंद उसकी आक्रोशित आंखे कुप्रथाओं के खिलाफ आग उगल रही जल, थल ओर नभ में शासन कर दिखा रही स्वतंत्रता से उपजी नारी की शक्ति उन्मुक्त उड़ान भर विश्व में कर रही अपना नाम रोशन यही सोच हर नारी में स्वतंत्रता का मन में भर रही हौंसला। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) ...
रामभक्ति में कंचन कुंवरी
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रामभक्ति में कंचन कुंवरी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना नारियों में नारी कंचन कुँवरी भक्तिमय जीवन में खूब तरी श्रद्धाभक्ति जगायी श्री राम की खुशियां भक्ति में पायी खरी।। श्रद्धा से श्रीराम को बसा ली बाल्यकाल से महिमा पा ली श्रीराम के चरण की भक्ति में रामभक्तिमय जीवन बना ली।। काव्यात्मक रस का प्रेमभाव रामभक्ति का रखा खूब चाव चित्तएकाग्र में पाया रामभाव सदैव बसाया रामभक्ति भाव।। भक्ति की तृष्णा बुझाती राम से गुनगुनाती गाती नितगीत राम के जीवनकर्म को अनन्य बनाया राम आराध्यदेव सुख सब पाया।। बेतवाँ की लहरों में नित बैठ रामभक्ति भाव पाती ठेठ महिमा राम की जान जीवन अर्पण समर्पण रामभक्ति में प्राण करती गई रामभक्ति सेवा सर्वस्व मान ली कंचन कुंवरी, राम...
अद्भुत आधुनिक नारी
कविता

अद्भुत आधुनिक नारी

सतीशचंद्र श्रीवास्तव भानपुरा- भोपाल (म.प्र.) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना स्वतंत्रता जिसकी आभारी है, अद्भुत आधुनिक नारी है। अजब-गजब परिधानो में भी, नारी की महिमा न्यारी है।। गृहस्थी की आधारशिला है, कर्तव्य पथ स्वीकारी है। थी, चौका-चुल्हा जिसकी सीमा, आज, वही बनी दरबारी है।। सृजना है तो संहारक भी है, दुष्टों को सदा ललकारी है। जीवन की चुनौतियों पर, ये, रही सर्वदा भारी है।। नारी से जग, जगमग-जगमग, गरिमा इसकी झलकारी है। रंग, उमंग, तरंग से सज्जित, सदैव रही बलिहारी है।। परिपूरित ये विशेषताओं से, उन्नति की यात्रा जारी है। स्वतंत्र परिवेश, बुलंद हौसले, आसमां छूने की तैयारी है।। परिचय :- सतीशचंद्र श्रीवास्तव निवासी : भानपुरा- भोपाल म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान
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नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान

श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना अपनी क्षमताओं को पहचानकर, विस्तृत गगन में उड़ान भरना तुम। आत्म-सम्मान और स्वाभिमान के साथ जीवन जीना तुम। अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये, स्वतन्त्रता की उड़ान भरना तुम। ये उड़ान सभी के लिये सुखद हो, ऐसा प्रयास करना तुम। उड़ान में बाधा आने पर, जरा भी विचलित ना होना तुम। आँधी और तुफान में भी, अपनी उड़ान जारी रखना तुम। दुसरों की सहायता हमेशा करना, सत्य का साथ ना छोड़ना तुम। स्वतन्त्रता तो भाती है सभी को इसका सदुपयोग करना तुम। लेकिन स्वच्छन्दता को ना अपना लेना तुम, ये भ्रम है छलावा है ये तो ‘पर’ काट देती है। स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता के महिन अन्तर को समझकर, अपनी उड़ान को सफल बनाना तुम।। ...
नारी तू नारायणी
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नारी तू नारायणी

नेहा शर्मा "स्नेह" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना जीवन तुम ही देती हो जीवन सवाँरना भी तुम्हे ही आता है प्रेम तुमसे ही प्रकाशित हो निभाना भी तुम ही सिखलाती हो रिश्तो की बागडोर हो या ऑफिस में कोई पद भार हो जाने कैसे सब संभाल लेती हो जैसे तुम दैवीय अवतार हो लोग प्रशंसा नहीं कर पाते तुम्हारे पराक्रम से घबराते है और ये समाज तुम्हे दबाने जाने कितने षडयंत्र रचाते है पर तुम न डरना न दबना किसी से जीना अपने सिद्धांतो से तुम आयी विपदा टल जाएगी मन में हौसला रखो ज़रा तुम प्रिय मेरी बात ध्यान से ये समझ लो नारी हो तो नारी के भरोसे को कभी न तोड़ना जो तुम चाहती हो आगे बढ़ना हाथ किसी सखी का अपने साथ में लेते चलना न किसी को उलाहना देना न किसी की कमज़ोरी प...
देवी स्वरूपा नारी हो तुम
कविता

देवी स्वरूपा नारी हो तुम

राजेन्द्र सिंह झाला बाग जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना ममता की मूरत, भोली सी सूरत, देवीस्वरूपा नारी हो तुम, अबला नहीं हो मातृशक्ति हो, सृष्टि की रचना सहायक हो तुम आई, जब भी कोई मुसीबत, खड़ग को लहराया तुमने, स्वराज नहीं जाने दिया, जब तक सांस रही तन में, झांसी की रानी, दुर्गावती सी अहिल्या का साहस हो तुम आज रूप बदला हुआ है फायटर प्लैन तुम्ही उडाती परिवार का पालन करने को टैक्सी, रिक्शा भी तुम्ही चलाती बिछेंद्री, कल्पना, मेरीकाम उडनपरी, मनु भाकर हो तुम। सीता, मीरा और सावित्री राधा का मौन श्रृंगार हो तुम यशोदा सा स्नेह बहाती गंगा यमुना सी पावन हो तुम परिचय :-  राजेन्द्र सिंह झाला निवासी : बाग, कुक्षि जिला धार (मध्य प्रदेश) घोषणा ...
ऐ नारी, तू नर से भारी
कविता

ऐ नारी, तू नर से भारी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना ऐ नारी ! सच में तू नर पर भारी कहां रही अब बेचारी? क्षेत्र नहीं है कोई अछूते थामी डोर स्वयं बलबूते बन जाती है रणचंडी भी जहां मिले व्यभिचारी। सच में तू नर पर भारी।। तोड़ बेड़ियां आगे आई। शिक्षा पाकर अलख जगाई।। सकल जगत की जन्म दात्री, तू ही जग की पालनहारी।। अब आया है समझ सभी के बदल दिए हैं तौर तरीके भरी उड़ान गगन छूने की बनी बड़ी अधिकारी।। सारे तेरे रूप है सुंदर मिल जाए गर कोई पुरंदर सीमा में अपनी रहकर तुम देना दंड दुराचारी।। मत बनना तुम बेचारी!! परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
नारी की उड़ान: स्वतंत्रता की ओर
कविता

नारी की उड़ान: स्वतंत्रता की ओर

डॉ. सोनल मेहता भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" तृतीय पुरस्कार प्राप्त रचना सीता-सावित्री की भूमि में, नारी ने इतिहास रचाया, और झाँसी की रानी बन, पराक्रम का दीप भी सजाया। मीरा का भक्ति प्रेम और अहिल्या की शक्ति महान, हर युग में नारी ने किया नेतृत्व सभी तरह का स्वतंत्रता अभियान। गांधी संग कस्तूरबा चलीं, सत्याग्रह की राह, सरोजिनी, कमला, विजयलक्ष्मी ने बढ़ाया देश का प्रवाह। आज की नारी तकनीक में, विज्ञान में दे रही योगदान, चंद्रयान से मंगल तक, पहुँचा रही अपनी पहचान। पर मनमानी, स्वतंत्रता का सही अर्थ नहीं, इसका का करो प्रस्थान, स्वतंत्रता तो है आत्म-सम्मान, और कर्तव्यों का ज्ञान। अपने अधिकारों संग, न भूलें कर्म- धर्म महान, मन के संतुलन से ही संभव है, समाज का उत्थान। बेहतर भविष्य की ओर ...
नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान
कविता

नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" द्वितीय पुरस्कार प्राप्त रचना नारी जग गौरव बने, नारी से पहचान। हर क्षेत्र में वह आगे, चमका हिन्दुस्तान।। नारी की महिमा बड़ी, ‌बनी देश की शान। उर में दु:ख समेटती, कुल का रखें ध्यान।। दया-ममता की देवी, निज सुख की ना चाह। देश के लिए मर मिटै, कभी न करती आह।। बेटी और बहन बनी, फिर पत्नी अरु मात फर्ज की दीवार चढ़े, चाहे अंधड रात।। नारी शक्ति स्वरूपा, कभी न माने हार। कसौटी खरी उतरती, करती प्राण निसार।। झांसी की रानी बनी, देश हुई कुर्बान। पद्मिनी जौहर करती, कुल की‌‌ रखी आन नारी है नारायणी, करती जग कल्याण। सृजन की सृष्टि करता, प्रकृति का वरदान।। आंँखों में आंँसू भरे, होठों पर मुस्कान। तूफान में डटी रहे, पार करें चट्टान।। अवनि से अम्बर पहुंँच...
नारी भरे उड़ान
कविता

नारी भरे उड़ान

संगीता चौबे "पंखुड़ी" अबू हलीफा (कुवैत) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" प्रथम पुरस्कार प्राप्त रचना सकल विश्व में अंकित करती, निजता की पहचान। मुक्त गगन में पंख पसारे, नारी भरे उड़ान।। कल तक थी जो सहमी-सहमी, बंद कक्ष दीवारों में। आज गूँजता है स्वर उसका, सच्चाई के नारों में।। नहीं डूबने देती नैया, विपदा के मँझधारों में। है उसको विश्वास स्वयं की, भुजा रूप पतवारों में।। चलती सर ऊँचा रख उर में, स्वाभिमान का भान। मुक्त गगन में पंख पसारे, नारी भरे उड़ान।। नूतन प्रतिमानों को गढ़ कर, करती आविष्कार नवल। नहीं हिचक निर्णय लेने में, करती है वह सार पहल।। लाख चुनौती पथ पर आएँ, कर देती चुटकी में हल। संघर्षों से हार न माने, प्रण पर रहती सदा अटल।। स्वर्णिम छवि नारी की चमके, ज्यों नभ में दिनमान। मुक्त गगन में पंख प...
मन
दोहा

मन

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन ही मन में जोड़ ली, मन से मन का तार। मनका कान्हा नाम का, मन में जपूँ हजार।।१।। मन-मंदिर में श्याम है, मन मे है विश्वास। दूजा अब आये नही, मेरे मन के पास।।२।। मन को मेरे भा गया, मनमोहन की प्रीत। मधुर-मधुर मुस्कान से, मन मोहे मनमीत।।३।। मन जीती मन हार के, मिली प्रेम सौगात। कहे कृष्ण से राधिका, समझो मन की बात।।४।। मन मेरा माने नही, समझाऊँ हर बार। मन अपने मन की करे, मानी मैं तो हार।।५।। मन चंचल होवे सदा, दौड़े पवन समान। जल थल नभ में घूमता, बैठ एक ही स्थान।।६।। मन मैला मत कीजिए, घटता निज सम्मान। काँटे बोये आप तो, मिले वही फिर जान।।७।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
प्रेम-तरंगिणी:
कविता

प्रेम-तरंगिणी:

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** तुम शिला बन अरुणाचल पर, मैं निर्झर बहता जल हूँ। तपते तव मौन-तप में, मेरा स्वर सागर-सा ढल हूँ॥ तुम वेदों के अग्नि-सूत्र हो, मैं हवि बन जलता धुआँ। प्रेम यज्ञ की ज्वाला में, दोनों एकाकार हुए आँ॥ तुम्हारी आँखों के तारों ने, नभ का मौन तोड़ा है। मेरी पृथ्वी की गोद में, उनकी ज्योति बिखरा दी है। तुम्हारे स्पर्श की लहरें, वसंत की पुष्प-वृष्टि लायीं। मेरे विरह के शरद में, पत्ते सूखकर राख बन गयीं॥ तुम वटवृक्ष, मैं उसकी छाया, जड़ों में गूँथा सन्नाटा। तुम नभ के गगन-गायक, मैं धरती का अधूरा गाथा॥ तुम सिन्धु हो, मैं तट बन बैठा, लहरों से गूँथे बंधन। बंधन में स्वतंत्रता का रस, यही प्रेम का महामंत्र॥ तुम मेरे नभ के चन्द्रमा, मैं तुम्हारी रात का सन्नाट। मिलन में अमावस्या बनी, विराट व्रत की यह बात॥ तुम्हारे हृदय की गुफा म...
दर्पण फूट गए
गीत

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहा है, श्रृद्धा का कोड़ा। मार ठोकरें हटा रहा है, पथ का हर रोड़ा।। हर धमनी में विष भरते जो, हो रिक्रूट गए।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आसमान खाली है
गीत

आसमान खाली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले-हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। मुँह छिपाकर रोती चाँदनी, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर -मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानि...
घाम पियास के दिन आगे
आंचलिक बोली, कविता

घाम पियास के दिन आगे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) लकलक-लकलक घाम करत हे। घाम पियास म मनखे मरत हे। काटें काबर रुख-राई ल संगी, ताते-तात आज हवा चलत हे..!! बर पिपर के छईयाँ नंदागे । बिन छईयाँ के चिरई भगागे। आगी अँगरा कस भुइयाँ लागे, भोंमरा जरई म गोड़ भुंजागे.!! रुख राई के लगईया सिरागे। डारा पाना सबो हवा म उड़ागे। घाम पियास ले सबला बचइया, हरियर धरती घाम म सुखागे…!! जंगल झाड़ी रुख राई कटागे। तरिया डबरी के पानी अटागे। पसीना चुचवाय के दिन आगे, खोधरा छोड़ के चिरई भगागे। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
जीवन क्रीड़ा
कविता

जीवन क्रीड़ा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सोच न बंदे गंदगी तु कर ले ईश्वर की बंदगी। यही तो जीवन की मर्यादा है तु खुद का ही भाग्य विधाता है। अजर अमरता को रहने दें जीवन को विभिन्न सुर में बहने दें। जीवन में जो भी आता है उसको उल्लास से आने दें। जीवन से जो भी जाता है उसको भी मुस्कुराते हुए जाने दें। मस्ती को अपनी हस्ती में रहने दें जीवन को सस्ती बस्ती में बहने दें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र
कविता

कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में भारत पाकिस्तान कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र। भाई, भाई का नहीं है प्यार, पडोसी बन गये रिश्तेदार,। नही शर्म नही कोई लाज, बैठ के खाये ये पकवान । भाई, भाई को नही जानते, रावण विभीषण बर्ताव जानते, शत्रु एक दिन करेगा राज, गुलामी की जंजीरे हाथ। आपस में प्यार मोहब्बत को लो, शत्रु को ना घर मे भर लो, नही तो लंका ध्वस्त हो जाएगी आज, ताल बजायेगा दुश्मन यार। बन्द मुट्ठी एकता का पाठ, खुल जाये तो पत्ता साफ, जीवन जियो सीना तान साथ, दुश्मन बैठा है दर पर आज। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जै...
मानवता के प्रहरी तुम हो
गीत

मानवता के प्रहरी तुम हो

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता के प्रहरी तुम हो, तीर्थंकर भगवान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। गहन तिमिर तो हर्षाता अब, प्यार दिलों से गायब है। दौर कह रहा झूठा-कपटी, ही बनता अब नायब है।। करुणा को फिर से गहरा दो, महावीर तुम ताप हो। पावनता के उच्च शिखर हो, आप असीमित माप हो।। काम, क्रोध के प्रखर विजेता, अविवेकी को ज्ञान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। इंद्रियविजेता, सत्यपथिक हो, दया-नेह के सागर हो। उच्च चेतना, नव विचार हो, मीठे जल की गागर हो।। भटक रहा है मानव उसको, तुम दिखला लो रास्ता। नहीं रखे जिससे मानव अब, अदम कार्य से वास्ता।। पाप कर्म के हंता हो तुम, युग को नवल विहान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। महावीर हे! वर्धमान तुम, फिर से जगत जगा...
मैं पुरुष हूं
कविता

मैं पुरुष हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं पुरुष हूं मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं कठोर हूं, निर्मम हूं ,निर्भय हूं इस तरह ही मैं गढ़ा गया हूं. मैं पुरुष हूं खारिज भी किया गया हूं कभी बेटा नालायक कभी पति नामर्द कभी पिता नाकाबिल बताया गया हूं. मैं पुरुष हूं मुझे यह भी बताया गया है : बस जिस्म तक सोचता हूं मैं हवस की दलदल में धंसा हवस का पुजारी कहा गया हूं. मैं पुरुष हूं दर्द से मेरा क्या रिश्ता मैं पत्थर हूं आंसुओं से मेरा क्या वास्ता मगर सच तो ये है कि मैं भी रूलाया गया हूं. जब भी किसी गलत को गलत कहता हूं अपने ही घर में जालिम करार दिया जाता हूं मैं पुरुष हूं, ऐसे ही दबा दिया जाता हूं. मैं पुरुष हूं, लेकिन~ मुझमें भी हैं परतें मुझमें भी पानी बहता है खोल सकोगे जो परतें मेरी तो देखोगे : मुझमें भी सैलाब रहता है....
खुद से रूठा बैठा हूं
कविता

खुद से रूठा बैठा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खुद ही खुद से रूठा बैठा हूं, जाने क्यों इस कदर ऐंठा हूं, जिंदगी में कभी निखर नहीं पाया, सौंपा गया कार्य कर नहीं पाया, सामान्य तालीम मिली थी तलवे चाटने वाली, इंसानों को इंसानों से बांटने वाली, खुराफाती सोहबत में रहकर भी, मानसिक गुलामी वाली परिस्थितियां सहकर भी, उगा था मन में एक कोमल फूल, उठा लूं मैं भी सामाजिकता का धूल, चल पड़ा था उस कठिन राह में, डूबकर रहना था समाज के पनाह में, यह राह जितना समझता था था नहीं उतना आसान, जनजागृति पर रखा पूरा ध्यान, लोग मिलते गए हृदय में समाते गए, अपने कार्य से मनमस्तिष्क में छाते गए, पर देख न पाया कइयों का दूसरा रूप, विद्रोह हो रहा था समाज से खामोशी से रह चुप, एक से एक नई खेप मिशनरियों के आ रहे थे, कुछ सच्चे चुपचाप लगे तो काम में तो कुछ धुर विरोधियों में गोद ...
खेली थी कभी होरी
कविता

खेली थी कभी होरी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम भी क्या याद रखोगी गोरी! खेली थी कभी होरी । खेली खूब है होरी सखी री! खेली खूब है होरी।। बजने लगा जब मृदंग मजीर, तुम घर में छुपी थी गोरी! पर मनवा न माने, प्रेम डोर खिचे ताने, आयी विवश हुई तू चकोरी! प्रिय से नजर मिलाते छुपाते भागी थी गलियों में गोरी! अंग अंग प्रस्वेद-प्रकम्पन, लज्जा ने मारी पिचकारी बन्द आंँख जब खोली तो देखी, थी भीगी चुनरिया सारी... खिसक गई तेरी सर से चुनरिया, भीग गयी तेरी चोली। खेली खूब है होरी सखी री, खेली खूब है होरी।। अंग-अंग में मस्ती छायी, नशा था चितवन का आंँखों से मारी पिचकारी, रंग था यौवन का भीगी पिया संग गोरी, मले गालों से गालों पे रोरी मन में प्रेम रस फूटा, मुस्कुराई, दिया गारी कैसे नखरे दिखाए, कैसे करे सीनाजोरी बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! खेली...