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ग़ज़ल

मन होता है चंचल
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मन होता है चंचल

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मन होता है चंचल अतः लगाम ज़रूरी है मधा से लो काम सुखद परिणाम ज़रूरी है दास मलूक की बातें छोड़ो मानो मेरी बात जीवन चलता रहे निरंतर काम ज़रूरी है नहीं रही सच्चाई मेहनत निष्ठा प्रासंगिक चरण पादुका पूजो तामो झाम ज़रूरी है धन दौलत हासिल करिए पर ये भी ध्यान रहे जीवन में कुछ काम मगर निष्काम ज़रूरी है क़ायम रहे विवेक हमेशा जीवन कठिन डगर जी भर करो प्रयास अभीष्ट अंजाम ज़रूरी है धर्म अर्थ औ काम नही बस लक्ष्य ज़िंदगी के हर विकृति से मोक्ष हेतु संग्राम ज़रूरी है तन तो तन है याद रहें ये पत्थर या स्पात नहीं नि:शेषण से बचने को विश्राम ज़रूरी है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता,...
झूठ जब अपना सिला देता है
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झूठ जब अपना सिला देता है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** झूठ जब अपना सिला देता है। आईना सच से मिला देता है। आदतन मैं नहीं पीता उतनी, ग़म मुझे उतनी पिला देता है। लाख कोशिश थी भुलाने की, नाम वो याद दिला देता है। बागबाँ जानता है कि अक़्सर, वक़्त हर गुल को खिला देता है। ताप भीतर कोई पलने वाला, ख़ुद जमीं तक को हिला देता है। हाल ये है मिरी वफ़ाई का, वो मुझे शिक़वा-गिला देता है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
आईना अब संभल के देख लिया
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आईना अब संभल के देख लिया

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आईना अब संभल के देख लिया। हमने चेहरा बदल के देख लिया। अपनी हालत पे जब यकीं न हुआ, हमनें थोड़ा मचल के देख लिया। रास्ता जो यहाँ नया पाया, दूर थोड़ा टहल के देख लिया । ये ज़बानों को खेल था इसमें, हमनें थोड़ा फ़िसल के देख लिया। यूँ दीवारों से दोस्ती रखकर, घर से बाहर निकल के देख लिया। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
तुम संग रिश्ते में पतंग मैं
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तुम संग रिश्ते में पतंग मैं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** तुम संग रिश्ते में पतंग मैं औ तुम डोर हमारी हो कटी पतंग न बन जाऊँ मैं ऐसी दुआ तुम्हारी हो तुम बिन ख़ुशियाँ नामुमकिन हैं इतना तो एहसास रहे फंसी नाव जब कभी भँवर में तुम ही मुझे उबारी हो तुम काशी मम तुम मथुरा हो तुम ही हो गंगा सागर पावन संगम की अभिलाषा रखता तेरा पुजारी हो कंकरीली राहों पर चलकर तेरे दर पर पहुँचा हूँ मैं एक फ़क़ीर की झोली भर दो दिल से राजकुमारी हो तुमसे रौनक़ बढ़ जाती है फ़िज़ा चहकने लगती है नेह पे तेरे हक़ हो जिसका कैसे भला दुखारी हो पड़ जाते त्योहार हैं फीके अगर तुम्हारा साथ नहीं हर कोशिश कर हार के बैठा जैसे कोई मदारी हो ग़म के सागर में है कश्ती राह तुम्हारी देख रहा मैं आ जाओ तुम बन के साहिल जैसी भी दुश्वारी हो परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञा...
लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर
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लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए। मिलते हैं शहरे ग़ैर में दिलवर नए-नए।। तहज़ीबे नौ का दौर है हर बात है नई। औरत भी अब बदल रही शौहर नए-नए।। आएगी जैसे-जैसे क़यामत करीब जब। देखोगे और भी यहाँ मंज़र नए-नए।। कुर्सी पे हमने जिनको बिठाया था शान से। ढाते हैं अब सितम वही हम पर नए-नए।। जो रास्ता बता रहे खादी लिबास में। रहज़न से कम नहीं हैं ये रहबर नए-नए।। मिलती है बेकसूर को अक्सर सजा यहाँ। डरते नहीं गुनाह से अफसर नए-नए।। हमदर्द बन के लोगों ने लूटा निज़ाम को। मिलते रहे हमेशा सितमगर नए-नए।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
कितने रहमो करम हो लिये
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कितने रहमो करम हो लिये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** आपके कितने रहमो करम हो लिये जितने गम हो लिए, उतने कम हो लिए अपना दीवानापन रोज बढ़ता गया जितने तुम हो लिए उतने हम हो लिए चाहतों की जमीं गुनगुनाती रही ख्वाब कितने तुम्हारी कसम हो लिये तन पे यादों की चूनर लपेटे हुये मन कहे यूँ ही सौ-सौ जनम हो लिए राह में जिन्दगी की अकेला हमें देखके हमसफर लाख गम हो लिये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmai...
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है हथेली की लकीरों

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** है हथेली की लकीरों में इशारा कोई। जो है गर्दिश में लगे मेरा सितारा कोई।। यूँ तो हैं अपने हज़ारों ही तअर्रुफ़ लेकिन सारी दुनिया में नहीं तुमसा हमारा कोई।। रोकती है मिरी कश्ती को किसी की आवाज़ ऐसा लगता है यहाँ पर है किनारा कोई।। है इमारत में न गुंबद नहीं कोई दीवार ढूँढते फिरते कबूतर हैं सहारा कोई।। है हवाओं में कसक और फ़ज़ा भी नासाज़ मुन्तज़िर झील में रहता है शिकारा कोई।। हम कहें अपना किसे और करें किस पे यक़ीं। जान लेता है सदा जान से प्यारा कोई।। आग तो बुझ गई बाक़ी है "शलभ" फिर भीै धुआँ ग़ालिबन राख में बैठा है शरारा कोई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्...
वो हमारी ज़िन्दगी में
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वो हमारी ज़िन्दगी में

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** वो हमारी ज़िन्दगी में इस तरह छाने लगे। दिल किया उनके हवाले वो हमें भाने लगे।। हमने मिलने के लिए उनको बुलाया था यहाँ। हम यहाँ आए अभी हैं और वो जाने लगे।। हो गई वाबस्तगी कुछ ऐसी है उनसे हमें वो तसव्वुर में हमारे हर घड़ी आने लगे।। भूल बैठे हैं हमें वो इक ज़रासी बात पर। एक हम हैं जो उन्हीं के गीत बस गाने लगे।। होसले जिनके कभी होते नहीं मज़बूत हैं। सिर्फ़ आहट से ही ऐसे लोग घबराने लगे।। शायरी का इल्म जिनको है नहीं कुछ भी मगर। वो ग़ज़ल पढ़ने के ख़ातिर मंच पर जाने लगे।। बढ़ गए आगे 'शलभ' कुछ लोग झूठी चाल से। बेइमानी से वो अब सम्मान भी पाने लगे।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान ...
पास होकर भी आशकार नहीं
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पास होकर भी आशकार नहीं

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** पास होकर भी आशकार नहीं। जिंदगी तुझ सा राज़दार नहीं। तेरा वुजूद है सब यहाँ लेक़िन, ख़ास तेरा किसी से प्यार नहीं। जितनी मर्जी तेरी, सफ़र तेरा, तुझपे साँसों का इख़्तियार नहीं। जिस जगह तू शुमार रहती है, कोई उस हद के आर-पार नहीं। वक़्त के साथ ही रज़ा तेरी, इसलिए तेरा एतबार नहीं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
जिसे हमने कभी देखा नहीं है
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जिसे हमने कभी देखा नहीं है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कभी उसका पता पूछा नहीं है। जिसे हमने कभी देखा नहीं है। कभी तुम चाँद पर जाकर तो देखो, वो दिखता है, वहाँ वैसा नहीं है। थके राही सफ़र छोड़ेंगे फिर भी, गुज़रता कारवाँ रुकता नहीं है। ख़िलेंगे फूल उतने ही चमन में, बहारों से जिन्हें धोखा नहीं है। किनारें कब, कहाँ जाकर रुकेंगे, ये दरिया ने कभी सोचा नहीं है। कही ,जो बात थी कहने सरीखी, ये झूठी बात की चर्चा नहीं है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक
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चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक। न पहुँचे आज तक हम आसमाँ तक। पता हम पूछकर निकले थे लेक़िन, हुए गुमराह ही उनके मकाँ तक। कि थोड़ी देर सुस्ताने के बदले, उठाया फासला फिर कारवाँ तक। वो दिल के हाल से गुजरा हुआ था, जो रिश्ता था किसी के दरमियाँ तक। निगाहें दूर तक पहुँची तो लेक़िन, वहाँ भी था वही जो था यहाँ तक। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
रग-रग के लहू से लिख्खी है
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रग-रग के लहू से लिख्खी है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रग-रग के लहू से लिख्खी है हम अपनी कहानी क्यों बेचें। हर लफ़्ज़ अमानत है उनकी वो अहद-ए-जवानी क्यों बेचें।। ये गीत ही तो बस अपने हैं हमको जो किसी ने बक्से हैं। तुम दाम लगाने आए हो हम उनकी निशानी क्यों बेचें।। फ़नकार को जो कुछ देकर खुद नोटों से तिजोरी भरते हैं। हम ऐसे दलालों के हाथों वो याद पुरानी क्यों बेचें।। लफ़्ज़ो में पिरोयी हैं यादें जो जान से हमको प्यारी हैं। क़ीमत ही नहीं जिनकी कोई घड़ियां वो सुहानी क्यों बेचें।। शोहरत के लिए बिकने से तो गुमनाम निज़ाम अच्छा यारों। बेबाक क़लम है अपनी ये हम इसकी रवानी क्यों बेचें। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा
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क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा। वो हवाओं की तरह छुप के गुज़र जाएगा। फूल की तरहाँ रहेगा अगर जहाँ में वो, हाथ लगते ही यहाँ पल में बिखर जाएगा। ये शरारत है सभी उसकी की गई लेकिन, इसका इल्ज़ाम किसी और के सर जाएगा। रास आ जायेगी जब फिर से हर खुशी उसको, तब से दिल उसका सभी ग़म से उभर जाएगा। जितनी यादों को बसा रखा है उसने दिल में, उनका चेहरा उसकी आँखों मे उतर जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
दोस्तों की महफ़िल
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दोस्तों की महफ़िल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अरसों बाद आज सजी दोस्तों की महफ़िल, मस्ती के गुबार फूटने लगे ख़ुश हुए दिल। ग़म-ए-हयात मिटाने बिच की खीज़ मिटाने, यार मेरे जो ख़फ़ा थे वो भी हुए शामिल। ज़िंदगी की हर चीज़ मना सकते चुटकी में, मगर रूठें अपने यार मनाने बड़े मुश्किल। आई उसकी याद चार चाँद लगा दिए ग़मों ने, इश्क़ की तर्ज़ छिड़ी तो भूल गए मंज़िल। शेरो-शायरी की भरमार ग़ज़लों की हुज़ूम, 'विकाश' उलझे ख़ुशी की या ग़म की महफ़िल। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
ठोकरें खा के भी
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ठोकरें खा के भी

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ठोकरें खा के भी जो लोग संभल जाते हैं। मुश्किलों से कई वो लोग निकल जाते हैं।। नूर की बूँद ज़माने में बही जाती है। उसके जलवों से ज़माने भी बदल जाते हैं।। प्यार मिल जाए मुकद्दर से किसी का जिनको। उनके दिल में कई अरमान मचल जाते हैं।। बादलों पर सवार होके ना आया करना। परी समझते हैं बच्चे भी बहल जाते हैं।। हौसले और इरादे नहीं पक्के जिनके। आहटें होते ही वो लोग दहल जाते हैं।। शाख पर पत्तियां निकली नया मौसम आया। अब तो मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं।। दूर पर्वत पे "शलभ" देवता का डेरा है। उसके आगोश में पत्थर भी पिघल जाते हैं।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्य...
अजब है जलसा ये मुल्क में
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अजब है जलसा ये मुल्क में

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************                        १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अजब है जलसा ये मुल्क में सब तरफ ही जगमग सा हो रहा है मगर वो माटी के घर में माटी का दीप हालत पे रो रहा है/१ नसीब इन बिजलियों की देखो लिबास है कांच के बदन पर उधार की जगमगाती रौनक में डूब कर मन भी खो रहा है/२ ये झिलमिलाती सी दीप माला में एक दीपक जला अकेला चुनौतियां दे रहा अंधेरों को अपनी धुन का ही वो रहा है/३ मगन है दुनिया तो मस्तियों में किसे है परवाह कहाँ हुआ क्या खबर पड़ोसी को भी हुई ना बगल वो भूखा क्यूँ सो रहा है/४ वो बेसहारा यतीम हसरत भरी निगाहों से है निहारे सजा है बाजार हसरतों का बेचारा सपने संजो रहा है/५ रवायतें है गरीब खातिर अमीर के मौज का है जरिया ये तीज त्योहार बन के आफत ही झुग्गियों को भिगो रहा है/६ जरूरतें कौन सी निभाए किसे वो छोड़े किसे भुलाए उधेड़बुन में यही वो कितनी ही ह...
लगती है तुम्हें अपनी पर मेरी कहानी है
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लगती है तुम्हें अपनी पर मेरी कहानी है

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** लगती है तुम्हें अपनी पर मेरी कहानी है। हर ग़म पे मैं हँसता हूँ आदत ये पुरानी है।। कुछ यादें हैं धुँधली सी कुछ अश्क है दामन में। बस पास मुहब्बत की अब ये ही निशानी है।। दे मुझको हज़ारों ग़म बदले में ख़ुशी ले ले। मैं हार न मानूँगा मैंने भी ये ठानी है।। इस वक्त है फुरसत कम, फुरसत में सुनाउँगा। लम्बी है बहुत यारों ग़म की ये कहानी है। उम्मीद "शलभ" ग़ैरों से फिर कैसे करें हमतो जब उसकी हक़ीक़त को अपनों ने न जानी है परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ ध...
लाखों फरेब खाये हैं
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लाखों फरेब खाये हैं

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** लाखों फरेब खाये हैं उस अज़नबी के साथ। गुज़रे न कोई हादसा उस महज़बीं के साथ। अल्लाह सौ बलाओं से रखना उसे महफूज़, महफ़िल में पेश आया है वो बेरुखी़ के साथ। कहते हैं उसे फूल सा नाजुक हजा़र लोग, करता है संगसार मगर सादगी के साथ। घुट घुट के भला जीते भी तो जीते कब तलक, कब तक निबाह करते यूं बेचारगी के साथ। करता भी कोई प्यार क्यूं उजड़े दयार से, रिश्ते नये बना लिये आवारगी के साथ।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी ...
मेरा जिस्म कब्रिस्तान हो गया
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मेरा जिस्म कब्रिस्तान हो गया

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरा जिस्म जैसे कब्रिस्तान हो गया नश्वर शरीर मे अमर आत्मा लिए हूँ सांसे ही भारी लगने लगी है अब तो फिर भी रिश्तों का बोझ लिए लिए हूँ किसी से मिलने को जी नही करता मैं हर किसी के कदम चुम लिए हूँ तेरे लिए जान दे देंगे वो कहा करते वो सिर्फ बातें ही थी परख लिए हूँ अपनी परेशानी को खुद कंधा देना है वक़्त और तजुर्बे से मैं सिख लिए हूँ दर्द बताएगा तो लोग तुझ पर हँसेंगे इसीलिए मैं होठों पर मुस्कान लिए हूँ परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना
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किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** किसे मैं सुनाऊँ ये ग़म का फ़साना। सुनेगा तो रो देगा ज़ालिम ज़माना।। सितम बिजलियों ने वो ढाए न पूछो। जला मेरे आगे मेरा आशियाना।। बहुत कुछ बचाया बचाते-बचाते। मगर लुट गया फिर भी मेरा ठिकाना।। न सोचा न समझा मोहब्बत को मेरी। जुदा हो गए वो बना कर बहाना।। वफ़ा करके कुछ भी नहीं हमने पाया। न करते वफ़ा ग़म न पड़ता उठाना।। जिधर से मैं गुजरूँ यही लोग कहते। हटो आ रहा है वो देखो दीवाना।। निज़ाम आख़री ये नसीहत है मेरी। हसीनों से दिल मत कभी तुम लगाना।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी ...
दीपावली
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दीपावली

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** आदतन इस हादसे पर भी बजा लें तालियाँ। अब उजालों को अँधेरे दे रहेे हैं गालियाँ।। सूर्यवंशी दीप करते जुगनुओं की चाकरी। गीत ग़ुम नेपथ्य में, मंचस्थ मुखरित गालियाँ।। पाप के कुछ पेड़ पुरखों ने उगाए थे कभी। छीन लेतीं पंछियों के प्राण जिनकी डालियाँ।। भर दिए आँसू दीयों में, मन गई दीपावली। मन बहुत भारी रहा हल्की हथेली थालियाँ।। दीप रखती थी हमारे द्वार भी जब ज़िंदगी। कौंधती है याद में अक्सर गई दिवालियाँ।। "शलभ" की ग़ज़लें कि जैसे चाँद के रूमाल पर। बुन रही है एक लड़की उँगलियों से जालियाँ।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौ...
किसी को जहाँ में किसी ने छला है।
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किसी को जहाँ में किसी ने छला है।

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** किसी को जहाँ में किसी ने छला है। मुझे तो मेरी बेबसी ने छला है।। रही चार दिन तक जुदा हो गई फिर। मुझे उम्र भर हर खुशी ने छाला है।। बढ़ी तिश्नगी जिस क़दर पी किसी ने। उसे क्या पता मय कशी ने छला है।। अंधेरों से डर के भी क्या कीजिएगा। पतिंगे को जब रोशनी ने छला है।। ये दुश्मन हैं बेहतर की खुलकर खड़े हैं। छला है तो बस दोस्ती ने छला है।। नहीं कोई शिकवा किसी से जहाँ में। मुझे ख़ुद मेरी ज़िंदगी ने छला है।। छलावा है दुनिया निज़ाम इससे बचना। यहाँ हर किसी को किसी ने छला है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
ये मजबूरी हमारी है
ग़ज़ल

ये मजबूरी हमारी है

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ये मजबूरी हमारी है, छुपाकर रख नहीं सकते चिरागों को हवाओ से, बचाकर रख नहीं सकते हज़ारों दर्द देता है, उसी से प्यार भी तो है निगाहों से उसे पलभर हटाकर रख नहीं सकते हमे ख़्वाहिश फ़लक की है, वहाँ भी देखना होगा हमेशा सामने ये सर, झुकाकर रख नहीं सकते अभी तक जो भी चाहा है, उसे पाकर रहे हैं हम ये बाहों को हमेशा यूं उठाकर रख नहीं सकते हक़ीक़त में अगर तू आ सके तो आ घड़ी भर को तेरी तस्वीर ही दिल से लगाकर रख नहीं सकते ये पानी और ये है आग संगम हो तो कैसा हो ग़म-ए-दिल को खुशी के संग मिलाकर रख नहीं सकते "शलभ" मालूम है दुनिया तबाह हो जाएगी अपनी ये सोए दर्द को पलभर जगा कर रख नहीं सकते परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वा...
मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो
ग़ज़ल

मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो, तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो! संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो! सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं, अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो! है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना मैं कर लूंगा ये काम भी, तुम ऐतबार दे दो! एक-दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम, मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान सम...
जाँ की हिफाजत नहीं है
ग़ज़ल

जाँ की हिफाजत नहीं है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है। कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।। है आसान इतना नहीं शेर कहना। हुनर है क़लम का सियासत नहीं है।। नहीं छपते दीवान ग़ज़लें चुराकर। अगर पास खुद की लियाक़त नहीं है।। हिलाता है दरबार में दुम जो यारों। कहे सच ये उसमें सदाक़त नहीं है।। जो डरता नहीं है सुख़नवर वही है। सही बात कहना बगावत नहीं है।। सभी खुश रहें बस यही चाहता हूँ। हमारी किसी से अदावत नहीं है।। दबाया है झूठों ने सच इस कदर से। कि सच भी ये सचमें सलामत नहीं है।। दरिंदे भी अब रहनुमा बन रहे हैं। ये अच्छे दिनों की अलामत नहीं है।। निज़ाम आज बिगड़ा है ऐसा जहाँ मे। किसी की भी जाँ की हिफाजत नहीं है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अप...