Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

ग़ज़ल

ईमान में ख़यानत आएगी
ग़ज़ल

ईमान में ख़यानत आएगी

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार जुल्म बढेगा ईमान में ख़यानत आएगी, तभी तो दुनियां में क़यामत आएगी। जुवानों में कड़वाहट लहजो में सख्ती, बेईमानों में बहुत दिखावत आएगी। खुशियों के दीप बुझाने वाले पैदा होंगे, पढ़े-लिखे में भी ज़हालत आएगी। जो रब खफा होगा तो बदलेगी सूरत, ख़ामोश लहजों में भी बगावत आएगी। ज़ुल्म बढेगा ग़रीबों, बेजुबानों,पर इन्सानों के लहजे में अदावत आएगी। सरियत से बेहतर, है नहीं कानून कोई, रस्ते में मेरे हर रोज सियासत आएगी। कांटे भी चुभते है अकसर गुलाबों को, कातिल बना के बीच में अदालत आएगी। शाहरुख़ दागदार है गिरेबा अपना भी, शर्मसार होगी इंसानियत, ऐसी दिखावत आएगी। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
खुदा की रहमतो में हम
ग़ज़ल

खुदा की रहमतो में हम

*********** अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' छिंदवाड़ा म. प्र. गुज़ारें फिक्र करके किस लिए दिन वहशतों में हम। सदा महफूज़ रहते हैं ख़ुदा की रहमतों में हम॥ ज़हन में इल्म रोशन है जिगर में हौसला रोशन। ख़ुदा का है करम नाज़िल, नहीं है ज़ुल्मतों में हम॥ नहीं है फासले तुमसे न कोई दूरियां या रब ख़यालों में हो तुम ही तुम तुम्हारी कुर्बतों में हम॥ जहन्नुम ज़ीस्त कर सकती नहीं तल्ख़ी ज़माने की। तसव्वुर गर तुम्हारा हो तो हैं फ़िर जन्नतों में हम॥ यकीं ख़ुद पर भी तुम पर भी तो इक दिन देखना रहबर। करेंगे मंज़िलें हासिल तुम्हारी सोह्बतों में हम॥ न औरों की कमी देखें गिरेबां झांक लें अपना। तो सारी ज़िंदगी अपनी गुज़ारें राहतों में हम॥ ग़ज़ल नज़्में क़त'अ नग़में तुम्हारी ही नवाज़िश है। क़लम पर इस करम से ही तो हैं अब शोह्रतों में हम॥ . लेखिका परिचय :-  नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू माता - श्रीमती आयशा मंसूरी ...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

रचयिता : शरद जोशी "शलभ" ******************** सुनी तो है मगर देखी नहीं है। ख़ुशी इस राह से गुज़री नहीं है।। उजड़ती बसती रहती है ये दुनिया। किसी की ला फ़ना हस्ती नहीं है।। यहाँ है कौनसा दिल ग़म से ख़ाली जिगर किसका यहाँ ज़ख़्मी नहीं है।। मये कौसर से जो पैमाना भर दे। यहाँ ऐसा कोई साक़ी नहीँ है।। ग़रज़मन्दी समझ बैठे जिसे वो। हलीमी इस क़दर अच्छी नहीं है। "शलभ" ने ख़ुद ही ख़ुद्दारी सम्भाली। किसी की़मत अना बेची नहीं है।। . परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व...
लाचार देखता रहा
ग़ज़ल

लाचार देखता रहा

********* प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) हसरतों को उम्रभर लाचार देखता रहा इस किनारे से फकत उस पार देखता रहा . बेहद करीब आ के,वो पास से गुज़र गया मैं उसकी गुमशुदी का इश्तहार देखता रहा . जीत कर अहले जँहा को लौट आया वो मगर मुझपे होगी कब फतह इंतजार देखता रहा . देखकर उसनें मुझे इक बार क्या जादू किया आईने में ख़ुद को बार बार देखता रहा . गिरवी रखकर फिर कभी आया ना वो मुझको नज़र बिकता रहा हूँ रोज़ मैं बाज़ार देखता रहा . अपनें हाथों ही जलाकर ख़ुद को तु "शाफिर" यहाँ हसरतों की लाश का अंबार देखता रहा . लेखक परिचय :-  प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
कुछ कहा तो पर
ग़ज़ल

कुछ कहा तो पर

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) कुछ कहा तो पर बहुत अनकहा रहा उसके मेरे दरम्यान एक फासला रहा .  मैंने ताउम्र देखी नहीं मंज़िले मक़सूद  सामने  मुसलसल इक काफिला रहा .  हर दौर के हाकिमों का हाल एक है जिसे देखिए अवाम को बरगला रहा . हम चल आए अपने हिस्से की बाजी अब उनके हाथों हमारा फैसला रहा . आज चमकेंगे ,कल गर्दिश में जाएंगे  हमेशा किस बशर का जलजला रहा . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति ...
नेता की आंखों में
ग़ज़ल

नेता की आंखों में

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" नेता की आंखों में कम है । पर किसान की आंखें नम हैं । . देश "युवाओं का" है अपना, रोजगार का नाम खतम है । . तुम को ये अहसास नहीं है, कितने अब हालात विषम है । . जंगल का कानून यही है, वही जिएगा, जिस में दम है । . "प्रेम" बता ? ये अच्छे दिन हैं ? कातिल जैसा हर मौसम है । . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में क...
एक ग़ज़ल यूँ भी
ग़ज़ल

एक ग़ज़ल यूँ भी

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" रोज़गार की कमी नहीं है । हम में ही लायक़ी नहीं है ? . सरकारी कुर्सी, व वेतन, परिभाषा बस, यही नहीं है । . तकनीकी, यांत्रिकी योग्यता, ऐसी भी, बेबसी नहीं है । . माना नीति-नियंता क़ाबिल, क्यों विकास-दर बढ़ी नहीं है ? . अब, सब कुछ, सरकार-भरोसे, "प्रेम" राह यह सही नहीं है । . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता...
संस्कारों की पिटारी
ग़ज़ल

संस्कारों की पिटारी

*********** रचयिता : अंजुमन मंसूरी' आरज़ू' संस्कारों की ये पिटारी है। अपनी वाणी ही लाभकारी है॥ . फूल अविधा के लक्षणा लेकर। व्यंजनाओं की ये तो क्यारी है॥ . अपनी भाषा में बोलना सुनना। भूलना भूल एक भारी है॥ . ठेठ हिंदी का ठाठ तो देखो। मन में रसखान के मुरारी है॥ . कितनी भाषाएँ  हैं मनोरम पर। सब में हिंदी बड़ी ही प्यारी है॥ . अपने घर में दशा पराई सी। देख कर मन बहुत ही भारी है॥ . इंडिया अब कहो न भारत को। 'आरज़ू' अब यही हमारी है॥ . लेखिका परिचय :-  नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू माता - श्रीमती आयशा मंसूरी पिता - श्री एस ए मंसूरी जन्मतिथि - ३०/१२/१९७७ निवास - छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश शिक्षा - परास्नातक हिंदी साहित्य, उर्दू साहित्य, संस्कृत विषय के साथ स्नातक, बी.एड, डी.एड. पद/नौकरी - शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में उच्च माध्यमिक शिक्षक के पद पर कार्यरत साहित्यिक जीवन श...
अहसास
ग़ज़ल

अहसास

************ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर मोहब्बत का अहसास होता ही रह गया, पता नही मैं कब तक सोता ही रह गया । . मोहब्बत किया था मैंने उससे एक दफा, पर कहने की हिम्मत जुटाता ही रह गया । . दिल में तो मेरे काफी ख्याल थे उसके लिए, पर आज या कल कहूँ सोचता ही रह गया । . जगाना था प्यार भरा भाव उसके दिल में, मैं तो उसके दिल में विष बोता ही रह गया । . है मोहब्बत की उस राह पर खड़ा, सौरभ, अहसास मोहब्बत का करता ही रह गया । . कभी जीता था मैं उस माशुका के प्यार में, उसी के प्यार में आज मैं रोता ही रह गया । . पाना था उसकी मोहब्बत को मुझे किसी पल, प्रतिदिन मोहब्बत उसकी खोता ही रह गया । . अहसासों में उसे ढूँढ़ता फिर रहा हर गली, ना चाहते हुए भी हर-पल मरता ही रह गया । . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र औ...
अच्छे दिन
ग़ज़ल

अच्छे दिन

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" अच्छे दिन आबे फिर रए हैं। अहलकार खाबे फिर रए हैं। जौन गीत पे, हूटिंग भई थी, बो ई फिर गाबे फिर रए हैं। हम कै रये के दुनिया देखो, प्रान मनों जाबे फिर रए हैं। बसकारो आबे बारो है, सब छप्पर छाबेे फिर रए हैं। जिन से बचत रहे जीवन भर, बे ई हमें पाबे फिर रए हैं। कैबे सब से बात "प्रेम" की, हम जी में दाबे फिर रए हैं। . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  प...
होंठों पर सजाना चाहता हूँ
ग़ज़ल

होंठों पर सजाना चाहता हूँ

********** रचयिता : संजीत कुमार गुप्ता  अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ . कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ . थक गया मैं करते-करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ . छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ . आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ. . लेखिक परिचय :- नाम : संजीत कुमार गुप्ता  छात्र : बी.एस सी (मैथ ऑनर्स) व्यवसाय : गुप्ता साइकिल स्टोर निवासी : चैनपुर, सीवान बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
हर रोज क्यों
ग़ज़ल

हर रोज क्यों

********** शाहरुख मोईन हर रोज क्यों लोग शादाब सजर काटते हैं,  इस दौर में लोग घर में ही घर काटते हैं। . बदजुबानो का बढ़ गया रुतबा भी इस क़दर,  भाई भी अब सगे भाई का सर काटते है। . अब तो उम्मीद मत रख मजबुन ऐ अख़बार से, झूठी अफ़वाह फैलाने में अच्छी ख़बर काटते हैं। . दौरे मुफलिसी में जो बिकते हैं शफ्फाफ बदन,  शहंशाहों को तो लालोओ गौहर काटते हैं। . मुश्किल से दिन रात जागकर काटते हैं,  प्रदेश में कैसे हम वक्त अहले नज़र काटते हैं। . सैलाब का है खतरा तमाम बस्तियों को मगर,  बहती नदी से लोग अक्सर नहर काटते हैं। . क्यों समझे हैं हमेशा दुनियां हमको कमतर,  अपने हुनर से हम ज़हर से ज़हर काटते हैं। . अपने हालात पर अमीरे शहर भी तमाम रात जागकर काटते हैं,  समुंद्र अपनी कद में है दरिया ही घर काटते हैं। . कुदरत की कारीगरी ने सबका भरम तोरा है, लोहे से लोहा हम पत्थर से पत्थर काटते हैं। . लेखिक परिच...
शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने
ग़ज़ल

शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने

********** रचयिता : शरद जोशी "शलभ" शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने।। रस्मे उल्फ़त को हमेशा ही निभाया हमने। वो तो राहों में अकेले ही चला करते थे। साथ उनको तो हमेशा ही चलाया हमने।। दूर रहने के बहाने तो उन्हें आते हैं। उनको नज़दीक हमेशा ही बुलाया हमने।। दिल दुखाया है उन्होंने तो हमारा अक्सर। दिल में उनको तो हमेशा ही बसाया हमने।। क्या करें उनसे शिक़ायत वो ग़ैर ही ठहरे। अपना उनको तो हमेशा ही बताया हमने।। अब इरादा है उन्हें उनके हाल पर छोड़ें। उनको पलकों पे  हमेंशा ही बिठाया हमने।। क्यूँ "शलभ" को वो मिटाने पे हुए आमादा। उनपे ख़ुद को तो हमेशा ही मिटाया हमने।। . परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार,...
दिल में अगर बगावत रखिये
ग़ज़ल

दिल में अगर बगावत रखिये

********** रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" दिल में अगर बगावत रखिये । लड़ने की भी, ताकत रखिये । . बे-ईमानों की बस्ती में, खुद ईमान सलामत रखिये । . इन नदियों में थोड़ा पानी, अपने कल की बाबत रखिये । . दुनिया को ही स्वर्ग बना लें, दिल में ऐसी चाहत रखिये । . "प्रेम" जगत में सब से पावन, थोड़ी इस की आदत रखिये । . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कवि...
लुटती रही अस्मत
ग़ज़ल

लुटती रही अस्मत

********** रचयिता : शाहरुख मोईन लुटती रही अस्मत भरती रही कोई सिसकियां,  जहनों दिल पर गिरती रही पल-पल बिजलियां। .  उस मासूम कली की खताए क्या थी या रब ,  चमन उजरता रहा मरती रही तितलियां। .  मूरत बन भगवान खरे रहे मोन जब,  मसली जाती रही है हैवानों से कलियां। . चिखी चिल्लाई रोई और वह गिरगिरई,  बहरे हो गए मूरत सारे खुब चिखी तन्हाइयां। .  इस देश में तेरा आना लाडो दुश्वार हुआ, चिख चिख के कहती है कहानी पुरवाईया। . गुड्डे गुड़ियो से खेलने वाले बचपन का हाल,  कब तक बेटियो से होती रहेगी रुसवाईयां। . शरीयत के कानून का हो अगर ऐहतराम जो,  उजर कर तबाह हो जाएगी गुनाहों की बस्तियां। . मुहाफिज ही बन गए देखो कातिल *शाहरुख* , अदालत में दफन होकर रह गई जाने कितनी कहानियां। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
नहीं मिलती हैं कभी
ग़ज़ल

नहीं मिलती हैं कभी

*********** रचयिता : मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" काफिया - ए (स्वर) तपती हुई  राहों को  छाँवें नहीं मिलती  हैं कभी। उजड़ी हुई जिन्दगी को राहें नहीं मिलती हैं कभी।। सोचा था  बनायेंगे  गुलिस्ताँ  से  अपना  आशीयाँ। लेकिन वीरानों को चमन बहारें नहीं मिलती है कभी। हमसफर होगा हमराज हमख़याल हमनव़ाज भी। पता न था इश्क में वफायें नहीं मिलती हैं कभी।। मझधार में जब किस्ती किनारों की हो तलाश। तूफानों  में  वो पतवारें  नहीं मिलती  है कभी।। जंजीरों में जकड़ी हुई है जिन्दगी कुछ इस कदर। मन पंछी  को नयी  उड़ाने नहीं मिलती हैं कभी।। लेखक परिचय :-  नाम - मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी " निवास - राजकोट गुजरात  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी ...
उन्हें जो करना है
ग़ज़ल

उन्हें जो करना है

********** रचयिता : शाहरुख मोईन उन्हें जो करना है वो कर जाएंगे,  हम दरिया है कैसे ठहर जाएंगे। .  बस्ती के लोग तिजारती हो गए, हम भी अपना हुनर आजमाएंगे। .  रास्ते का पत्थर ना समझ मुझे,  ठोकरों से मुकद्दर संवर जाएंगे। . ये संगतराश का अपना हुनर है, पत्थरों के चेहरे निखर जाएंगे। . वह अपना इरादा मुकम्मल करें, हम काम इतना तो कर जाएंगे। . सैलाब का खतरा है बस्तियों को,  दरिया तो समुंद्र में उतर जायेंगे। . बारूद ओ चिंगारी का मेल नहीं, ऐसे दाग चेहरे पे बिखर जाएंगे। .  मिट्टी के पुतलों का गुमान देखो,  राख बन के सभी बिखर जाएंगे। लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने ...
बखत बड़ो जादूगर भओ
ग़ज़ल

बखत बड़ो जादूगर भओ

********** रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" बुंदेली ग़ज़ल बखत बड़ो जादूगर भओ। खेल दिखावे रोजई नओ। . का-का हुइये, की ने जानी? बो सब होनें, जो नईं भओ। . फिर नइं लौट, हाथ में आने, निकर हाथ से, गओ सो गओ। . बोई फरस से, चढ़ो अरस पे, जी खों तनक सहारो दओ। . "प्रेम" जान गए, जा से कै रये, भैया, जा से डर के रओ। . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कह...
बहुत है गम
ग़ज़ल

बहुत है गम

********** रचयिता : शाहरुख मोईन बहुत है गम कब उसके अख्तियार मैं आता हूं , अनमोल हीरा हूं कभी-कभी बाजार में आता हूं। शोहरत की बुलंदी में लगे हैं अब बहुत, झूठी खबरों के साथ कभी-कभी अखबार में आता हूं। अब तो हर बात जुबा पे करीबी ही आती है, जहन से माजुर अमीरों के जब दरबार में आता हूं। दुखों से गरीबों के भी मुश्किलें आती है जमी पर, अश्क नहीं थकते जब गरीबों के दयार में आता हूं। चर्चों के बाजार में झूठी शोहरत वालें हैं अब, अब के माहौल में लगता है मंचों पर मैं बेकार में आता हूं। मैं तमाम दर्द सह लूंगा मगर बुजुर्गों की रजा से, अंधेरी रात का जुगनू हूं कभी-कभी तेरे द्वार में आता हूं। फूलों से मोहब्बत करने वाले जरा संभलना तुम, नाजुक जिस्म है मेरा फिर भी कांटो के अख्तियारयार में आता हूं। उछाली है उन्होंने जाने कितनी पगड़िया शाहरुख़, फिर भी मैं उसके शहर के दस्तार में आता हूं। लेखिक पर...
सई कै रये कछु बदलो ना है
ग़ज़ल

सई कै रये कछु बदलो ना है

*********** रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" बुंदेली ग़ज़ल सई कै रये कछु बदलो ना है। खूब गात रओ, बा से का है? कीच भरे गाँवन के रस्ता, घूँटन खच रए, हालत जा है। फसल खेत में, गैया ग्याबन, जब सच्ची, जब मौं में आ है। अते-पते नइं है, बिजली के कल की गई है, कब नों आ है? "प्रेम" दूर के ढोल सुहाने, भुगतो, जबइं समझ में आ है। लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिका...
परवाना
ग़ज़ल

परवाना

********** रचयिता : डाॅ. हीरा इन्दौरी परवाना सरकारी रख। राग सभी दरबारी रख।। दाल रखी तरकारी रख। रोटी गरम करारी रख।। चाहे दिल में आग लगे। होठों पर फुलवारी रख।। जैसे मिसरी घोली हो। बोली ऐसी प्यारी रख।। करजा लेने दैने की। दूर अलग बीमारी रख।। नंगा नाचे सङकों पर। कुछ तो परदादारी रख।। बात सही तेरी लेकिन। कुछ तो बात हमारी रख।। गीत गजल पढना है तो। "हीरा" फिर तैयारी रख।। परिचय :- नाम : डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  प्रचलित नाम डाॅ. राधेश्याम गोयल जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद स्नातक साहित्य लेखन : सन १९७० से गीत, हास्य, व्यंग्य, गजल, दोहे लघु कथा, समाचार पत्रों मे स्वतंत्र लेखन तथा विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का पचास वर्षों से प्रकाशन अखिल भारतीय कविसम्मेलन, मुशायरों में शिरकत कर रचना पाठ, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर रचना पाठ विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित विषेश : आध्यात्...
अब मेहनत को फल तौ निकरैे ?
ग़ज़ल

अब मेहनत को फल तौ निकरैे ?

=============== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" अब मेहनत को फल तौ निकरैे ? दो नइं, एक फसल तौ निकरैे ? ट्यूबवेल तौ, सौ खुदवा लो, जा जमीन में जल तौ निकरैे ? जस के तस हैं, प्रश्न जुगन सें, इन प्रश्नों कौ, हल तौ निकरै ? सन्नाटे से खिंचे गांव में, थोड़ी चहल-पहल तौ निकरै ? "प्रेम" मुनाफ़ा गओ चूल्हे में, लग्गत लगी, असल तौ  निकरै ? लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासि...
क्या लाए ? क्या ले जाओगे ?
ग़ज़ल

क्या लाए ? क्या ले जाओगे ?

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" क्या लाए ? क्या ले जाओगे ? क्या खोया है, जो पाओगे ? जिस दिन मौत तुम्हें घेरेगी, जाग रहे हो, सो जाओगे ? ठहरो, एक सांस तो ले लूं, इतनी भी मोहलत पाओगे ? अभी पड़ा है पूरा जीवन, कब तक ख़ुद को बहलाओगे ? बोझ बढ़ाते ही जाते हो, इतना बोझा ? ढो पाओगे ? "प्रेम" बता दो, कुछ बदलोगे ? या सब जैसा दुहराओगे ? लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  ...
मीर सी कोई ग़ज़ल हो
ग़ज़ल

मीर सी कोई ग़ज़ल हो

=================================== रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी मीर सी कोई ग़ज़ल हो ये कहाँ मुमकिन है हर महल ताज महल हो ये कहाँ मुमकिन है दुश्मनी भूल के दुश्मन को लगाले जो गले ऐसे इंसाँ का बदल हो ये कहाँ मुमकिन है दिल ए मायूस में ढूँढो न उमंगो की किरण ख़ुश्क झीलों में कँवल हो ये कहाँ मुमकिन है ख़्वाब ए गफ़लत में अगर वक़्त गुज़ारा जाए फिर तो रौशन कोई कल हो ये कहाँ मुमकिन है ग़म के मारों को ख़ुशी ग़म ही अता करती है हर ख़ुशी ग़म का बदल हो ये कहाँ मुमकिन है लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने वाली ...
संरक्षण का मतलब क्या है
ग़ज़ल

संरक्षण का मतलब क्या है

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" "संरक्षण" का मतलब क्या है ? संघर्षण का मतलब क्या है ? कदम कदम पर कोचिंग क्लासें, फिर शिक्षण का मतलब क्या है ? जब समान हैं सब प्रतियोगी, "आरक्षण" का मतलब क्या है ? रेत, घूस, पशुओं का चारा, इस भक्षण का मतलब क्या है ? "प्रेम" कुपोषण अब भी कायम, फिर पोषण का मतलब क्या है ? लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक...