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ग़ज़ल

मोहब्बत की है
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मोहब्बत की है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शिकायत सभी ने की है उस रब से यारो, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। गुनाह करके हर शख्स परेशान सा दिखता है, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दर्द दिखा नही सकते आंसू बहा नही सकते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दुनिया की नज़रों में अक्सर गिरा करते है हम, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म इतना गहरा है और दवा मिलती नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। उम्मीद दिखती नही और साथ कोई देता नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। जुबां अगर खोली तो कितने राज़ खुल जाएंगे, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म देना हमे भी आता है पर उन्हें खोना नही चाहते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ये शिकायतों का दौर तो चलता रहेगा मगर, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। . परिचय :-...
ख़ुद पर भरोसा
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ख़ुद पर भरोसा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बहर मीटर-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन जिसे ख़ुद पर भरोसा है किसी से वो नहीं रोता। उसे देखा है बढ़ते जो जवानी मे नहीं सोता।। नहाए कितना भी गीदड़ वो गीदड़ ही रहेगा बस। चमक रहती है जब की शेर अपना मुँह नहीं धोता।। सफ़ेदी पर न जा मेरी अगर कुछ अक़्ल है थोड़ी। बुढ़ापे में किसी का दिल कभी बूढ़ा नहीं होता।। पड़ी हो आग पर गर राख तो बस दूर ही रहना। की अंगारा कभी अपनी तपिश जल्दी नहीं खोता।। निज़ाम ऐसा करो कुछ काम दुनिया नाम ले तेरा। वही शायर है अच्छा जो कभी नफ़रत नहीं बोता।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
फिर खुशी नाचेगी
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फिर खुशी नाचेगी

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** क्यों जमाने के सितम यूं बेवजह हमको लड़ाये, हम सियासत की बिसातें दूर पीछे छोड़ आये। साफगोई से यहाँ बच कर निकल जाना भला, उलझनों के जाल बुनने की किसे अब होड़ भाये। सरहद के उस पार दुश्मन ,हैं बड़े इस पार भी, देखना होगा कोई अपना ही घर ना तोड़ पाये। फैसला मुश्किल हुआ किस डगर का रुख करें, ज़िंदगी की राह में कितने ही ऐसे मोड़ आये। इस फरेबी, मतलबी दुनिया में अक्सर ये हुआ, झूठ का हर ठीकरा सच के ही सर फोड़ आये। दिल की ही बातें सुनी, अनसुनी करके विवेक, टीस जो बाकी रही नाता उसी से जोड़ आये। फिर खुशी नाचेगी आंगन में अंधेरा दूर होगा, आस्था का एक दीपक हम जलाकर छोड़ आये। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका...
ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं
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ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं

अजय प्रसाद अंडाल, बर्दवान (प. बंगाल) ******************** साहित्य, शाईरी, या सुखनवरी कमाने नहीं देतीं शेर, गज़लें, कविताएं किसी को दाने नहीं देतीं। भुखमरी के शिकार हुए कई बड़े साहित्यकार तालियाँ और तारीफें चार पैसे बनाने नहीं देतीं। क्यों मैं करुँ मेहनत खामखाह इल्मे अरूज़ पे जब मेरी गजलें मुझे गृहस्थी चलाने नहीं देतीं। हाँ चंद चाटुकार अदीबों की बात मैं नहीं करता उनकीं हसरतें उन्हें हक़ीक़त बताने नहीं देतीं। फिल्मी गीतकारों की बात ही कुछ और है यारों मगर वहाँ भी इमानदारी पैर जमाने नहीं देतीं। क्या तुम अजय फ़ालतू की बातें लेकर बैठे हो कौन सी है जिम्मेदारी, ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं। . परिचय :-  अजय प्रसाद शिक्षा : एम. ए. (इंग्लिश) बीएड पिता : स्वर्गीय बसंत जन्म : १० मार्च १९७३ निवासी : अंडाल जिला- बर्दवान प. बंगाल सम्प्रति : अंग्रेजी अध्यापक- देव पब्लिक स्कूल बिजव...
पेड़ कोई राह का
ग़ज़ल

पेड़ कोई राह का

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** पेड़ कोई राह का फ़िर हरा हो जाएगा। धूप में कुछ छाँह का आसरा हो जाएगा। वो हमारे पास जितना आ गए तो आ गए, फासला जितना रहेगा दायरा हो जाएगा। खुल के अपनी बात कहना ये हमारी खोट है, इक सियासी जो कहेगा सब खरा हो जाएगा ख़्वाब में जितने नज़ारे देखलें तो देखलें, आँख देखें जो दिखेगा माज़रा हो जाएगा। पेड़ -पौधे,जीव सारे जो तुम्हारे हैं सहारे, जो सभी की फिक्र लेगा वो धरा हो जाएगा। कर रहें हैं बात के जरिये सुलह की कोशिशें, जो अमन की रीत देगा पैंतरा हो जाएगा। . परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
लाचारियाँ हैं बहुत
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लाचारियाँ हैं बहुत

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उनके लाचारियाँ हैं बहुत। पास जिनके बेगारियाँ हैं बहुत। मंजिलें हैं हरेक सफ़र लेकिन, राह इनकी दुश्वारियाँ हैं बहुत। बोझ से झुक गया है तन उनका, जिनके सिर पर उधारियाँ हैं बहुत। आज जीने के इंतजाम है कम, रोज़ मरने की तैयारियाँ हैं बहुत। लोग सब बच-बचाके बैठे हैं, घर से बाहर बीमारियाँ हैं बहुत। . परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindi...
सच्ची  कहो
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सच्ची कहो

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं। लोग माने न माने ज़रूरी नहीं।। आज तुम हो जहाँ कल रहोगे वहाँ। जानकारी किसी को ये पूरी नहीं।। जिनको नफ़रत थी हमसे जुदा हो गए। दूर वो दूर हम फिर भी दूरी नहीं।। दोस्ती दिल से की दुश्मनी खुल के की। साफ दिल हूँ बगल में है छूरी नहीं।। मुँह पे कहता बुरे को बुरा ये निज़ाम। अपनी फितरत में है जी हज़ूरी नहीं।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
रहमत
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रहमत

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई बन कर खुशबू परिजात सी बिखर गई तेरी उल्फतों की जो रहमत हो गई है बूझते चिराग़ों में जैसे रोशनाई भर गई मुस्कुरा कर जो पूछ लिया हाले दिल तूने खारी आँखों में मीठी मुस्कान संवर गई हिज्र में संभल ना पाया था दिल मेरा उम्र मेरी फिर अश्कों में ही गुजर गई रूह मेरी बेशकीमती दास्तान बन गई जब लफ्ज़ बन तेरी ग़ज़लों में उतर गई दीदार में तेरे इक उम्र यूँ गुज़ार दी मैने राह तकती अहिल्या पत्थर में ठहर गई अश्क़ों के समंदर में खुद ही फना हो गई जल में जैसे मछली प्यासी ही मर गई चाहत मेरी क्यूँ आज अधुरी सी रह गई बीच हमारे"मधु"एक दूरी सी पसर गई परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
इबादत
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इबादत

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** तेरी खुशियों के हम तलबगार हो गये मुफ़लिसी में भी देखो खरीदार हो गये गुजरे जो कहीं से भी तू मेरे हमनवा चाँद सितारे देख खुद शर्मसार हो गये हवाओ ने जो की शरारत आँचल से जमी पर ही जन्नत के दीदार हो गये इश़्क जो इबादत है तो बंदिश कैसी क्यूँ हर कोई इश्क़ के पहरेदार हो गये छुड़ाकर जो दामन नजर से हो गये दूर हम अपनी ही वफाओ से बेकार हो गये सियासत में खेली मोहरे भी अजीब है कौम की ख़ातिर मासूम गद्दार हो गये उनके दिल में प्यार की शमा जली नहीं हम हैं कि आरज़ू की हदो से पार हो गये दिल के जज्बातों को लफ्जो की चाह नही हम उनकी खामोशी मे ही गिरफ्तार हो गये तेरी मोहब्बत में शबनमी आग सी है "मधु" करीब जो भी आये खुद ही अंगार हो गये परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
सई मानौ
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सई मानौ

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** सई मानौ भौतई तंगी है। बड़ी मुसीबत आन पड़ी है। दादा की बरसी करने है, दादी सोइ बीमार डरी है। मुन्ना बे-रुजगार फिरइ रये, मोड़ी भी हो गई बड़ी है। घरवारी भी परेसान है, गुस्से में कुछ भी बकती है। दुश्मन पै भी न गुजरै बा, जौन दसा, हम पै गुजरी है। "प्रेम" बड़े मुश्किल दिन देखे, ऐसी बिपदा नही सही है। . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आद...
दूर मुझसे न जा
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दूर मुझसे न जा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा। धीरे-धीरे सही मैं सुधर जाऊँगा।। बाद मरने के भी मैं रहूंगा तेरा। चर्चा होगी यही जिस डगर जाऊँगा।। मेरा दिल आईना है न तोड़ो इसे। गर ये टूटा तो फिर मैं बिखर जाऊँगा।। नाम मेरा भी है पर बुरा ही सही। कुछ न कुछ तो कभी अच्छा कर जाऊँगा।। मेरी फितरत में है लड़ना सच के लिए। तू डराएगा तो क्या मैं डर जाऊँगा।। झूठी दुनिया में दिल देखो लगता नहीं। छोड़ अब ये महल अपने घर जाऊँगा।। मौत सच है यहाँ बाकी धोका निज़ाम। सच ही कहना है कह के गुज़र जाऊँगा।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
तकदीर
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तकदीर

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** नज़रे इनायत हो तो तकदीर संवर जायेगी आँखों के आईने में ये सूरत निखर जायेगी इक दफा जो दूर से तू पुकार ले मुझको जिस्म से फना होती रूह भी ठहर जायेगी इस तरह से न देख शोख नजरों से मुझको मेरी सांसो की चलती रफ्तार सुधर जायेगी कभी तो पेश आ गुलों की तरह मेरे हमनवा संग तेरे खारों की चुभन भी ईश्क़ कर जायेगी जब भी रिश्तों का ताना बाना खुल जायेगा घर के आँगन में फिर उदासी भर जायेगी इन्तजार में तेरे खुद को काँधे पे लिये बैठी हूँ इश्क के इस अंजाम से मौत भी डर जायेगी दिल पर लगी हुई चोट भी यकीनन गहरी है तसव्वुर से तेरे "मधु" लम्हा लम्हा भर जायेगी . परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
जिंदगी की जद्दोजहद
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जिंदगी की जद्दोजहद

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** अभी तो जिंदगी की सुबह हुई ही है। फिर क्यों मै बहुत दूर नजर आया। अभी तो मुश्किलों से पीछा छूटा ही था। फिर सामने कोरोना नजर आया। वतन से मुहब्बत की थी या पलायन का अफसोस। मुझे हर मजदूर घर लौटता नज़र आया। दुनिया इमारतों की तरफ देखती रही। मुझे उसके पांव का छाला नज़र आया। जिदंगी डर है, मायूसी है, संघर्ष है, वीरानी है। पहली बार हर इंसान बेबस नज़र आया। माफ़ कर सकता है तो कर दे मुझ। मै खुदगर्ज हूं ये अब नज़र आया। तू ना लौटा तो क्या होगा मेरा ? मै इस बोझ से दबता नज़र आया। मै तेरी सुरक्षा की हर कोशिश करूंगा। बहुत देर से सही पर अब नज़र आया। भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। यही सोचकर वो शहर वापस आया।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका ...
इश्क़ की पाकीज़गी
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इश्क़ की पाकीज़गी

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** बिछड़ कर वो मुझे अभी भूले नही होंगे खतों को भी मेरे यूँ हीं जलाये नहीं होंगे इश्क़ की पाकीज़गी को न समझा कोई हीर रांझा के फिर अब किस्से नहीं होंगे ताउम्र गुजार दी है सितारों को गिनकर रात भर वो मेरी तरह जागते नहीं होंगे तस्सवुर से तेरे मुक्कदर की चादर बुनी गर्दिश में मेरे कभी यूँ सितारे नहीं होंगे दुआ रब से तुझे अब मंजिल मिल जाये तेरे कदमों के तले कभी छाले नहीं होंगे मिटा दे दिलों में जो रंजिशे मजहब की फिर कोई भी जमाने में पराये नहीं होंगे भंवरों सा तेरा हर फूल पर मचलना कैसा मोहब्बत के कभी सलीके सीखे नहीं होंगे शक के दायरे में इश्क़ पनप नही सकता बोई है नागफनी गुल वहाँ महके नहीं होंगे मुस्कुराहट वो जादू है जो दिलों को है जोड़ती सूखे दरख़्तों पे तो परिन्दे भी टिकते नहीं होंगे नदिया के सीने पर जो लहरों की है खामोशी अपने ही हिस्से के ...
हकीकत-ए-जहाँ
ग़ज़ल

हकीकत-ए-जहाँ

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिकवा उन्हें हैं कि, अब सजते नही बाजार, अब दौरे-ए-उम्र में, वो कशिश कहा से लाये... आती थी महक जिस, दरगाह से अबतल्क, क्यु न चादर-ए-गुल पर, लोबान चढ़ा आये... वक्त ही सिखाता है, फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का, भरा है हाथ लकीरों से, कभी काम ना आये... माना कि हूँ इंसा, ओर गलतियाँ फ़ितरत मेरी, कोई उस ख़ुदा को भी, जरा शीशा दिख आये... इतनी भी बेतकल्लुफ़ी, ठीक तो नही हैं "निर्मल", दाम-ए-क़फ़स हैं कम, वो तिजारत ना कर आये . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कह...
जाने है ये सफ़र कैसा
ग़ज़ल, गीत

जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सूनी माँग सी राहों जैसा जाने है ये सफ़र कैसा, हर बस्ती वीरान मिली, नहीं खुशी का शहर देखा। नींद कुचलकर सुबह हुई और शाम ने भी पहलू बदले, कितनों की ही मौत हुई शमशान मगर बेखबर देखा। जहाँ पर खींचते हैं लोग जब तब लक्ष्मण रेखा, उसी दुनिया में हमने ज़िन्दगी को दर बदर देखा। रहते थे जो शीशमहल में घर उन्होंने बदल लिया, जब जब झाँका सीने में वहाँ फ़क़त पत्थर देखा। 'विवेक' झील के दरपन में लिखी प्रेम की इबारतें, मन कस्तूरी महक उठा जब उनको भर नज़र देखा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में ...
राजा बेटा
ग़ज़ल

राजा बेटा

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** राजा बेटा, खूब कमा रये। पइसा कुजने कितै बिला रये। "मिडिल क्लास" की है जा रीती, एक कमा रऔ, सब घर खा रये। प्राइवेट में, पढ़ रये बच्चे, रही कसर, सो कोचिंग जा रये। गाड़ी, "मोबाइल", पोसाकें, नये-नये खर्चा, रोज सता रये। "प्रेम" रोत हैं, भीतर-भीतर, हम जानत कैसें, मुस्का रये? कुजने कितै=पता क्या ? बिला रये=समा जाना . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समा...
चिंतन
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चिंतन

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** अतीत के चिंतन को टाल। प्याज है छिलके मत निकाल। जवाब मिले ये जरूरी नहीं, छोड़ ना, रहने दे सवाल। पत्ता पत्ता बिखरी ये ज़िन्दगी, जितना हो सके इसे सम्हाल। कोशिश कर पूरी जान लड़ा, फिर देख कुदरत का कमाल। धरा - धूल मस्तक चढ़ बैठेगी, किसी की इज्ज़त यूं न उछाल। जब मंजिल निकट हो तेरी, बहक न जाएं, कदम सम्हाल। खुशबू फैले जो प्यार की, जिन्दगी कुमकुम अबीर गुलाल। . परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञानिक चेतना बढ़ाना। लेखन विधा ~ कविता, गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे...
मैं भी लिख दूँ नाम कोई
कविता, ग़ज़ल

मैं भी लिख दूँ नाम कोई

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** दिल तो करता है दिल पर मैं भी लिख दूँ नाम कोई, वो नाम ही बन जाये चेहरा हो आँखों में पैग़ाम कोई। जीवन की आपाधापी में बस संघर्षों का प्यार मिला, मन का मधुवन महक उठे ऐसी भी आये शाम कोई। वाइज़ भी था मैखाने में,साकी ! कई लुढ़के जाम दिखे, मदभरे नयन जब छलकेंगे पियूँ उसी का जाम कोई। कोई मसल गया मासूम कली मैंने उसको बेदर्द कहा, नज़र लग गयी है फूलों की अब कर ना दे बदनाम कोई। बिखरी ज़ुल्फ छनकती पायल पर विवेक क्यों तुम घायल, तुमने ही नहीं बनना चाहा था मजनूँ या गुलफ़ाम कोई। जिस रौशन मकसद की खातिर अँधियारी तुम राह चले, तुम चलो फ़क़त चलते ही रहो चाहे करता हो आराम कोई। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी ह...
मत रोने की आदत रखिये
ग़ज़ल

मत रोने की आदत रखिये

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** मत रोने की आदत रखिये। जीवन की कुछ, कीमत रखिये। हो सकता है, हाथ तंग हो ? दिल में मगर, मुहब्बत रखिये। उठी जीभ और चली लट्ठ सी, थोड़ी बहुत, शराफत  रखिये। बाद मौत के, ज़न्नत कैसी ? दुनिया को ही, ज़न्नत रखिये। "प्रेम" से पूछा, कब आओगे? बोले, जिस दिन दावत रखिये। . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र...
मेरी आरज़ू
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मेरी आरज़ू

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ अरकान- मु-त-फ़ा-इ-लुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन   मेरी आरज़ू रही आरज़ू युँ ही उम्र सारी गुज़र गई। मैं कहाँ-कहाँ न गया दुआ मेरी बे-असर ही मगर गई।। की तमाम कोशिशें उम्र भर न बदल सका मैं नसीब को। गया मैं जिधर मेरे साथ ही मेरी बेबसी भी उधर गई।। चली गुलसिताँ में जो आँधियाँ तो कली-कली के नसीब थे। कोई गिर गई वहीं ख़ाक पर कोई मुस्कुरा के सँवर गई।। वो नज़र जरा सी जो ख़म हुई मैंने समझा नज़र-ए-करम हुई। मुझे क्या पता ये अदा थी उनकी जो दिल के पार उतर गई।। मेरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मेरा ला-इलाज ये मर्ज है। मुझे देखकर मेरी मौत भी मेरे पास आने में डर गई।। ये तो अपना अपना नसीब है कोई दूर कोई करीब है। न मैं दूर हूँ न करीब हूँ युँ ही उम्र मेरी गुज़र गई।। ये खुशी निज़ाम कहाँ से कम कि हैं साथ अपने ...
बहाना था
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बहाना था

कृष्ण कुमार सैनी "राज" दौसा, राजस्थान ******************** तिरे लब पर हमेशा ही कोई रहता बहाना था तुझे भी है मुहब्बत यह मुझे यूँ आज़माना था मुझे तुम मिल गये मानो सभी कुछ मिल गया मुझको तुम्हारा प्यार ही मेरे लिये जैसे खज़ाना था हमेशा की तरह बारिश में मिलने रोज़ आता था मुहब्बत का यक़ीं हर रोज़ यूँ तुमको दिलाना था जले हों लाख दिल सबके मुहब्बत देखकर मेरी मुझे कुछ ग़म नहीं था प्यार बस तुझ पर लुटाना था हवा से उड़ गए लाखों घरौंदे हम गरीबों के कभी जिन में हमारा खूबसूरत आशियाना था लगा है रोग सबको प्रेम का जिसका मदावा क्या मगर यह "राज" सबके सामने भी तो जताना था मदावा --इलाज परिचय :- कृष्ण कुमार सैनी "राज" निवासी - दौसा, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
जिजीविषा
ग़ज़ल

जिजीविषा

वीणा वैष्णव "रागिनी"  कांकरोली ******************** रोज डर डर के, जिंदगी हर पल ऐसे जी रही थी मैं। तेज आंधी जब चली, तिनके को निहार रही थी मैं। कभी इधर उड़ा कभी उधर, ऐसे उड गिर रहा था वो, हर बार, एक नाकाम कोशिश किए जा रहा था वो, एक झोंका ऐसा आया, उसे उड़ता देख रही थी मैं। मिलती है सफलता, यहीं बैठे सब सोच रही थी मैं बरसों पड़ा था, गलती से आंगन के किसी कोने में, आज आसमान में, सपने सच होते देख रही थी मैं। सब्र फल मीठा, ये आज हकीकत होते देखा मैंने, वरना खो देता अस्तित्व, यही सोच डर रही थी मैं। मंजिल मिली होगी, या कहीं भटक गया होगा वो, यही प्रश्न दिमाग रख, अब परेशान हो रही थी मैं। जिजीविषा रख वो उड़ा, यह भी तो कम नहीं था। गिरेगा उठेगा मिलेगी मंजिल, खुश हो रही थी मैं। कहती वीणा धरा वो मरा, जो कुछ भी ना किया। हिम्मत मिली, आखिरी पड़ाव ऐसे लड़ रही थी मैं। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष...
दिल अश्कों से जला गये
ग़ज़ल

दिल अश्कों से जला गये

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** धुआँ दूर उठता रहा वो दिल अश्कों से जला गये, धुंध छटी तो फिर भी आँसू रुके नहीं छलछला गये। यादों के भीगे दर्पण में वो खुद को खोजते ही रहे, पलकें फिर से सजल हुईं और अक्स धुँधला गये। कैसे और भला किसको फूलों के हार दिये जायें, बाग़ेवफा में जाने क्यों सब गुलदस्ते कुम्हला गये। चुप रहने की ठानी थी जाने क्यों मौसम बदल गया, वो प्यार का इज़हार कर खामोश लब सहला गये। अपने तो सफर का सबब है मुख्तसर 'विवेक', उनकी राहों में फूल बिछाते हम काँटों पे चला करें। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में वि...
मजबूरियां
ग़ज़ल

मजबूरियां

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** माना आपकी सल्तनत बड़ी है पर हमारे दम से ही तो खड़ी है आप,आप है, बराबरी कैसे किसकी ऊँचाई वक़्त से बड़ी है कई मजबूरियों से घिरा इंसान है खा ले चुपके से डांट जो पड़ी है कट रही है जिंदगी समझौतों पर खुद्दारी से घर की जरूरतें बड़ी है दिल दरक गया है कोई बात नही जज्बात से, पेट की आग बड़ी है क्यों नही लढ् लेता तू, धैर्यशील, जिंदगी रब के भरोसे पे खड़ी है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...