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दोहा

पोथी
दोहा

पोथी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** नयी नयी पोथी मिलै मिलै नये कविराज। एक कविता के चार कवि अहो भाग्य कृतराज। कविता के कछु मूल नहि लुगदी बिचै बजार। पोथी मा कविता चढ़ी कविवर चढे़ कपार। दुइ भाषा कविता लिखिन बनिगे कवि के राज। दुइ पोथी का बाचि के बनिगे बड़ महराज। सब कविअन के एक मती हमरो पोथी होय। केउ पढै़ या ना पढै़ बल-भर मोटी होय। पोथी मा गुन बहुत है बाचि के फेंकए ज्ञान। कउने पोथी मा भरा तनिकौ नहिं है ध्यान। पढि पढि पोथी आजु सब फेंंकै ज्ञान अपार। बाप मरै पानी बिना लड़िका चढ़ा कपार। खिड़की मा पोथी चढ़ी कुर्सी चढ़ा बचैया। गऊ रक्षा पोथी लिहे बाचै गैया गैया। सूरदास तुलसी मरे मरिगें कबिरौ आजु। गूढ़भूत पोथी रची ऐ जड़मति अब जागु। . परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं...
तो सुख सदा समाय
छंद, दोहा

तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दर्शन- टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के। बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती ह...
निंदा शिकवा शिकायत
दोहा

निंदा शिकवा शिकायत

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** बुराई दूजे की ना करो जो मुझ में कछु अच्छाई ना होय निंदा पर निंदा क्यों करें जो जग में आप ही नींदीत होय देख-देख ईर्ष्या मन में धरे जो औरन की तरक्की होय धीर धरे जो मन में आपन आप हो आप उन्नति होय छोटे नीच लघु ना समझो जो तुमसे लघु होय मान आदर सभी का करें चाहे वह गुरु या लघु होय मनका मनका फेर कर दोष पराये की ना देखो कोय शिकायत की गठरी बना तुम काहे आपन सिर पर ढोय कहे बीना सुनो भाई लोगों जिंदगी चार दिनों की होय तोल मोलके बोलिए दिल में पीड़ा ना किसी की होय . परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलां...
शिव स्तुति
छंद, दोहा

शिव स्तुति

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** संग गौरीश, गंग धर शीश। शिवा के रंग, पान कर भंग।। मनोहर रूप, अखिल के भूप। कंठ धर नाग, वरे वैराग।। काम के काल, वस्त्र सिंह खाल। गरल रस प्रीत, हरि के मीत।। भस्म श्रृंगार, क्रोध विकराल। चंद्रमा भाल, प्रभु महाकाल।। जयति अवनीश, राम के ईश। नमित दशशीश, एव सुरजीत।। नाश कर दंभ, नृत्य बहुरंग। मगन नित योग, भेष जिम जोग।। छंद- भव-स्वामी नमामि हे नाथ प्रभो। अविकार विकार सदा ही हरो।। जड़ बुद्धि जो बैरी रिपु सी लगे। निर्वाण मिले संताप मिटे ।। त्यज भूधर को हिय आन बसो। तुम कोटिक सूर प्रकाश प्रभो।। तम को जिम मन अज्ञान रुँधे। अलोक जिमि हिरदय मा शुभे।। बड़वार बतावत भूल भगत। अभिमान के दंश सराबर हो।। तब क्षीर से नीर को थोथा करे। तुम ऐंसे ही दिव्व मराल प्रभो।। . परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम जन्म - २१/१०/१९८७ मूल...
सानंद
दोहा

सानंद

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** लगे पूछने आजकल हमसे सारे लोग रहते क्यों ख़ामोश हो छुआ कौन सा रोग हर चौराहे पर दिखे दिल में घुसता तीर प्रेम हुआ मृग जल हरण होत नित चीर भोगवाद में देश का ऐसा पसरा पाँव हँसते लोग शरीफ़ पे कहीं न मिलता ठांव गुमराहों के हाथ में हो गया तीर कमान मुश्किल में दोनो पड़े मज़हब और ईमान अवगुण भी गुण होत है मिले राह में संत दुर्जन से दूरी रखो देगा कष्ट अनंत परजीवी बन देखिए है कितना आनंद पोषण लेहु समाज से स्वस्थ रहो सानंद . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्पादित, अध्यक्ष साहित्यिक संस्था जौनपुर ...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
दोहा गजल
ग़ज़ल, दोहा

दोहा गजल

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** धारण कर लो फिर गरल, शिवशंकर भगवान। धरती कर दो फिर धवल, शिवशंकर भगवान।। भस्मासुर के राज में, जीना था दुश्वार। जीवन कर दो फिर सरल, शिवशंकर भगवान। गाता जग गुणगान है, त्रयंबकं यह रूप। मानस कर दो फिर तरल, शिवशंकर भगवान।। चंद्र सुशोभित माथ पर, डम-डम-डमरू हाथ। तांडव कर दो फिर अमल, शिवशंकर भगवान।। गण-गणपति-गौरादि अरु, सजते भूत-भभूत। जागृत कर दो फिर अनल, शिवशंकर भगवान।। . परिचय : पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६ जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभ...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...
मदिरा
दोहा

मदिरा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मदिरा विष से कम नहीं, पीते क्यों दिन-रैन! अपना सबकुछ नष्ट कर, खोते हो सुख-चैन! मद्यपान दुष्कर्म है, मद्यपान है पाप! मद्यपान अपमान है,मद्यपान अभिशाप! नहीं जाइए भूलकर, मदिरालय के द्वार! पता नहीं क्या आपको, समझेगा संसार! बड़ी चाल तूने चली,यह क्या किया शराब! बने भिखारी सेठ जी, बेघर हुए नवाब! मानव हित के सत्य को, समझे सकल समाज! ग्रहण करें संकल्प सब, नशामुक्ति का आज! नशा ठोस हो या तरल,घातक है श्रीमान! धीरे-धीरे आपके, ले लेता है प्राण! ठोस, तरल या हो धुंवां,मादक द्रव्य प्रकार! मानव-तन-मन पर करे, मंथर-मधुर प्रहार! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी...
आशावादी ‘बीस’
दोहा

आशावादी ‘बीस’

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अगणित अनुभव दे गया, विगत वर्ष 'उन्नीस'। चौखट पर आकर खड़ा, आशावादी 'बीस'। मीठी यादों से मिला, भावुक बीता वर्ष। नूतन सन् को दे गया, आसन-मुकुट सहर्ष। कुछ खोया कुछ पा लिया, हमने पिछले साल। बिदा समय हमसे हुआ, चलकर अपनी चाल। कभी सुमन सम है समय, कभी लगे यह शूल। कभी सुखद अनुकूल है, कभी दुखद प्रतिकूल! नहीं एक जैसी रहे, सतत काल की चाल। कभी सरल सहयोगिनी, कभी विषम विकराल। काटो तो कटती नहीं, दुख की लम्बी रात। सहता है कोमल हृदय, पीड़ा के आघात। समय-साधना से मिले, बड़े-बड़े उपहार। समय सफलता-मंत्र है, समय महा उपचार। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, ...
पिता तुल्य दूजा नहीं
दोहा

पिता तुल्य दूजा नहीं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पिता जनक शिक्षक गुरू, रक्षक पालनहार। पिता तुल्य दूजा नहीं, नमन करे संसार। पिता पुण्य पग-पग करे, हरे सकल अवसाद। सन्तानें होकर बड़ी, करतीं वाद-विवाद। दुःखी स्वयं रहता मगर, करता सुख संचार। जनक तुल्य संसार में, करे कौन उपकार। बापू बाबा पितृ पिता, दादा डैडी तात। बाबूजी अब्बू सभी, पापा के अर्थात्। मात-पिता शिक्षक प्रथम, पथदर्शक अनमोल। त्यागों का इतिहास वे, कष्टों का भूगोल। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मु...
विरह का रोग
ग़ज़ल, दोहा

विरह का रोग

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** मुझको देखो आज फिर, लगा विरह का रोग। पिय बिन सूना साज फिर, लगा विरह का रोग। जोगन बनकर फिर रही, गाऊँ विरहागीत, भूल गई सब काज फिर, लगा विरह का रोग। बिसरी जग की रीत सब, खुद से हूँ अनजान। छुपा रही सब राज फिर, लगा विरह का रोग। प्रियतम जब से दूर हैं, बिखरा सब शृंगार। हृदय पड़ी है गाज फिर, लगा विरह का रोग। 'रजनी' तेरी याद में, तड़प रही दिन-रात। भूल गई सब लाज फिर, लगा विरह का रोग।। . परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। ...
जितना ऊंचा चढ़ रहा
दोहा

जितना ऊंचा चढ़ रहा

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जितना ऊंचा चढ़ रहा, तकनीकी का ज्ञान। उतना ही नीचे गिरा, कलयुग का इंसान। दोहरे चाल चरित्र हैं, मानव हुआ विचित्र। आस्तीन के साँप हैं, कहलाते हैं मित्र। जाति धर्म का भेद क्यों, करता है इंसान। एक मिट्टी से हैं घड़े, हरिया औऱ रहमान। मर्यादा भंगुर हुई, विकृत हुआ समाज। कैसे हो उपचार अब, पड़ी कोढ़ में खाज। भाई इतना न रखो, सीधा सरल सुभाय, सीधा रहे दरख़्त जो, पहले काटा जाय। गांवों की तस्वीर अब, बदल चुकी है खूब। शहरों के अनुसरण में, गांव रहे हैं डूब। युवा ढूंढते नौकरी, खेती लगती बोझ। शहर बढ़ रहे बाढ़ से, गांव घट रहे रोज। बेटा बूढ़े बाप को, दो रोटी न खिलाय। हुई बाप की तेरवी, सारा गांव जिमाय। बेटी हीरा देश का, मोहक सुमन सुवास। है बेटी के रूप में, श्री लक्ष्मी का वास। बेटे नालायक बने, भुगत रहे माँ-बाप। माँ ने जन्मा पूत...
नारी
दोहा

नारी

केदार प्रसाद चौहान (के.पी. चौहान) गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** नारी को जो समझे बेचारी। वह नर हे बड़ा अत्याचारी।। नारी को भी अब निडर होना चाहिए। अपनी रक्षा के लिए स्वयं लीडर होना चाहिए।। छोड़कर मान मर्यादा अब माता सीता वाली। बन जाओ रणचंडी नवदुर्गा और काली।। देखकर माथे का सिंदूर। समझे ना कोई मजबूर।। नारी तेरे हाथों से अब कमाल होना चाहिए। एक खंजर के वार से दरिंदों का चेहरा लाल होना चाहिए।। कैसे समझाएंगे इनको यह आदमखोर दरिंदे हैं। डूब मरो कानून के रखवालों जब तक जुल्मी जिंदे हैं।। नजर उठा कर देख ना सके इनकी आंखें फोड़ देना चाहिए। काट कर दोनों हाथ पैर तोड़ देना चाहिए।। बीच चौराहे सूली पर टांग कर सजा देना चाहिए। केरोसिन डालकर इन दरिंदो को भी आग लगा देना चाहिए।। . लेखक परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवासी - गुरान (सांवेर) इंदौर ...
दोहे
दोहा

दोहे

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** कबहुँ भरम मत पालिए भ्रम देता भरमाय। होत सामना सत्य का अक़ल जात चकराय ईश्वर कर ऐसी कृपा शत्रु न कोमा जाय। हरण करे हर क्लेश का हर पल रहे सहाय अहंकार एक रोग है बच के रह इंसान। चक्रव्यूह में गर फँसा बचे न शायद जान मन में ईर्ष्या द्वेष अगर है, है दुनिया से बैर जलेगी तिल तिल ज़िंदगी ख़्वाब रहेगा ख़ैर अतिशय प्रेम या क्रोध में वचन न दीजे कोय अपयश आता भाग्य में कष्ट असीमित होय छल प्रपंच से दूर हमेशा इंसा रहना सीख होत हिक़ारत हर जगह माँगे मिले न भीख हर मज़हब का मानिए मक़सद केवल एक सबका ‘साहिल’ एक है माना मार्ग अनेक . लेखक परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्...
रक्षाबंधन पर दोहे
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रक्षाबंधन पर दोहे

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख श्रावण मे फिर आ गया, राखी का त्यौहार। मन में भगिनी के जगा, निज भ्राता का प्यार। सावन की बौछार में, आया पावन पर्व। करासीन राखी सुखद, शोभित हुई सगर्व। तन्वंगी कृशकायिनी, है राखी की डोर। पर इसकी संसार में, चर्चा है चहुँ ओर। रक्षाबंधन से जुड़ा, भ्राता-भगिनी स्नेह। इस बंधन में आत्मा, इस बंधन में देह। भाई राह निहारता, बहना मिले तुरंत। स्नेह-सूत्र कर पर सजे, उपजे हर्ष अनंत। लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक...
भारत माता
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भारत माता

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक जय जय जय है भारत माता। शौर्य, बल, बुद्धि ,यश प्रदाता।। जय जय जय है भाग्य विधाता। अखण्ड ब्रह्मांड की अधिष्ठाता।। जय जय जय है पतितपावनी। सुख, समृद्धि ,ऊर्जा प्रदायिनी।। जय जय जय है महातपस्विनी। अध्यात्म, योग, विज्ञान प्रवाहिनी। जय जय हे आयुर्वेद प्रदायिनी। सकल जगत की संताप हरिणी।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास :- साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...