Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

दोहा

समय
दोहा

समय

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन में चिंतन कीजिए, इसका कितना मोल। व्यर्थ न जानें दीजिए, समय बड़ा अनमोल।। आगत को सिर धारिए, सुख-दुख जो भी होय। समय-समय का फेर है, आज हँसे कल रोय ।। समय आज का कल बनें, कल बन जाये आज। पहिया इसका चल रहा, यही काल सरताज।। वापस ये आये नहीं, एक बार बित जाय। मुठ्ठी रेत फिसल रही, हाथ मले रह जाय।। अविरल ये धारा बहे, कोई रोक न पाय। अगर समय ठहरा रहे, तो सब कुछ बह जाय।। समय को गुरू जानिए, देता जीवन सीख। कभी नीम सा स्वाद है, कभी मिठाये ईख।। राजा रंक बना दिये, रंक बने धनवान। मान समय का कीजिए, कहते संत-सुजान।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
विराम
दोहा

विराम

हेमलता भारद्वाज "डाली" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो विराम करते नहीं, योगी वही महान। नित विकास के दिन वही, होते स्वर्ण समान।। मन उदास हो तो कभी, करना नहीं विराम। मन पसंद धुन को सुने, देख नयनाभिराम।। जो पथिक लेता कभी, पथ में नहीं विराम। तो सुलक्ष्य के साथ ही, मिले सफलता धाम।। जो विराम कर लिया कभी, होता वहीं प्रमाद। फिर विकास होता नहीं, मिलता नहीं प्रसाद।। परिचय : हेमलता भारद्वाज "डाली" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : योग प्रशिक्षिका, कवियित्री एवं लेखिका रुचि : संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकारी और लेख कविताएँ लिखना। साहित्यिक : "वर्णावली छंदमय ग्रंथ"- (साझा संकलन), आगामी साझा संकलन- "छंदमय वृहद व्याकरण", आलेख एवं कविताएँ अखबारों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
बेरोजगार चालीसा
दोहा

बेरोजगार चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** नमो-नमो बेरोजगार युवाओं। तुम्हारो दर्द न कोई जानों।। नमो नमो बेरोजगार युवाओं। ऐसे ही तुम बेगार रह जाओ।। हमने समझा तुम सब बेकार हो। पर तुम तो सबसे घातक प्रहार हो।। जब से तुम घर से बाहर निकले हो। उस दिन से घर की है रोशनी भागी।। पूरी दिन-रात तुम मेहनत करते हो। कर पढ़ाई-लिखाई परीक्षा देते हो।। फिर भी न होत है तुम्हरी भलाई। दूर न जात हैं ये बेरोजगारी बलाई।। बेरोजगार चालीसा जब कोई भी गावे। ऐसा लगे सबके कान में ठेपी घुस जावे।। तुम्हरे हाथ में है पूरी देश दुनिया। पर तुम्हरा दर्द न कोई सुनत है।। बेरोजगारी वंदना जो नीत गावे। जीवन में वो कभी हार न पावे।। हैं हथियार ये दोनों हाथ तुम्हारा। जब चाहों तुम किस्मत अजमाना।। जो नहीं माने रोब तुम्हारा। तो दिन देखी तिन तैसी।। जब कभी तुम आवाज उठाते। लाठी...
पिता हमारे हैं जनक
दोहा

पिता हमारे हैं जनक

पंकज शर्मा "तरुण" पिपलिया मंडी (मध्य प्रदेश) ******************** पिता हमारे हैं जनक, जिनके हम हैं अंश। इनका ऋण उतरे तभी, बढ़े हमारा वंश।। पूर्वज सारे तृप्त हों, ऐसा करें उपाय। संत सभी कहते यही, इनकी मानें राय।। श्राद्ध पक्ष में कीजिए, तर्पण कह श्री राम। पुण्य मिलेगा ज्यों किया, हमने चारों धाम।। स्वार्थ पूर्ति को त्याग कर, करते पूजा पाठ। उनके ही बढ़ते दिखे, सुख वैभव अरु ठाठ।। जपूं निरंतर आपको, शिव शंकर भगवान। विनती बस इतनी करूं, मिले भक्ति का दान।। सब ही पूर्वज पूज्य मम, रखना सिर पर हाथ। चरण कमल में है झुका, सब परिजन का माथ।। साधन अगणित हो गए, बिगड़ी सब की चाल। हर पल खोजे आदमी, कहां मिलेगा माल।। मानवता जीवित रहे, बढ़े परस्पर प्यार। अगली पीढ़ी को तरुण, देना यह संस्कार।। गौ रक्षा तो पुण्य है, कहते संत सुजान। इसकी सेवा कीजिए, खूब बढ़ेगी शान।। गलत राह से ...
राखी में तो प्रीति है
दोहा

राखी में तो प्रीति है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो प्रीति है, सच्चाई का गीत। बहना-भाई हर्ष में, पावनता की जीत।। नेह निष्कपट भावना, मंगलमय सम्बंध। फैली है चहुँओर अब, मलयानिली सुगंध।। राखी तो सुधिगान है, बचपन की हर याद। कर रहता खाली अगर, भाई को अवसाद।। बहना-भाई दूर यदि, डाक निभाती साथ। शोभित होते हैं सदा, क़िस्मत वाले हाथ।। युगों-युगों से चल रहा, संस्कारों का पर्व। कौन नहीं जो चेतना, पर करता नहिं गर्व।। नहीं सहोदर देश में, पर आया संदेश। बहना के आशीष ने, दूर किया है क्लेश।। दुनिया की सब दौलतें, खो देतीं है मोल। जब भी राखी बोलती, अधर खोल दो बोल।। राखी रक्षा का वचन, प्रेम और विश्वास। दुआ, कामना, भावना, दृढ़ता वाली आस।। धर्म कहे रिश्ता सदा, रहे निभाता रीति। सूत कहे मैं हूँ लिए, शुभता की नव नीति।। सभी दिशाओं ने किया, राखी का यशगान...
हे औघड़दानी
दोहा

हे औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम प्रामाणिक स्वमेव । पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। श्रावण में जिसने भी पूजा, उसने तुमको पाया। पूजन से यह मौसम भूषित, शुभ-मंगल है आया।। कार्तिके़य, गजानन आये, बनकर पुत्र तुम्हारे। संतों, देवों ने सुख पाया, भक्त करें जयकारे।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव ।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। कष्ट निवारण सबके करते, तुम हो श्री गौरीश। देते हो भक्तों को हरदम, तुम तो नित आशीष।। तुम हो स्वामी, अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। तुम त्रिप...
शिव आराधना
दोहा

शिव आराधना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ब्रह्मरूप हे! योगपति, त्रिपुरारी गिरिनाथ। अवढरदानी हे प्रभु, थामो किंकर हाथ।। त्रिपुरान्तक प्रभु सोम हैं, भोलानाथ महेश। गौरी है अर्धांगिनी, रूप उग्र भूतेश।। भीमेश्वर जगदीश हर, भूतनाथ ओंकार। घुश्मेश्वर नटराज प्रभु, महाकाल सुखसार।। गिरिधन्वा विरुपाक्ष हो, दया करो शिवनाथ। शूलपाणि विनती सुनो, रख दो सिर पर हाथ।। खटवांगी गिरिवर प्रभो, वीरभद्र नटराज। सुरसूदन आराध्य शिव, शोधन सकल समाज।। शशिशेखर शितिकंठ हैं, मृगपाणी भगवान। व्योमकेश गणनाथ प्रभु, त्रिलोकेश पहचान। आनन मले भभूत को, पहने हैं मृग छाल। नंदीपति गणनाथ हैं, महाकाल भव भाल। गरल गले में धारते, नीलकंठ साक्षात। मोक्ष करन प्रभु नाम शुभ, जप मनवा दिन रात।। शंभू जब तांडव करें, डमरू करे निनाद। असुरों का संहार नित, करते बिना विवाद ।। पाशवि...
सुरक्षा-संदेश
दोहा

सुरक्षा-संदेश

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बढ़ती जब जनसंख्या, बढ़ता है तब भार। हो जाती हर योजना, तब निश्चित बेकार।। बढ़ता है जन भार जब, दुख पाता परिवार। सभी तरह से देश में, फैले तब अँधियार।। दोपहिया पर बैठ जब, एक साथ परिवार। कहे सुरक्षा आ रहा, दुर्घटना का वार।। ध्यान रखें जो वे रहें, सड़कों पर अनुकूल। बिना कायदे जो रहें, चुभते उनको शूल।। सड़कों पर खिलवाड़ तो, लेती जीवन लील। बहुत कीमती ज़िन्दगी, करो ज़रा तुम फील।। लापरवाही त्याग दो, वरना तय है काल। होगा तुमको हर कदम, वरना "शरद" मलाल।। नियम सदा हित को रचें, उन्हें मान नहिं व्यर्थ। डरो रोड कानून से, समझो उसका अर्थ।। मन में धरकर जोश तुम, गँवा न देना होश। वरना विधि या मौत तो, भर लेंगी आगोश।। होगा जब सीमित यहाँ, हर इक का परिवार। तभी प्रखर प्रतिकूलता, का होगा संहार।। दोपहिया की नहिं अ...
जम के बरसो बदरा
दोहा

जम के बरसो बदरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जल की पहली बूँद ने, गाया मंगल गीत। कृषकों की तो बन गई, वर्षा अब मनमीत।। जमकर बरसो आज तुम, ऐ बदरा मनमीत। धरती के दिल को अभी, लो तुम प्रियवर जीत।। बचपन की बारिश सुखद, बेहद तब उल्लास। खुशबू मिट्टी की भली, सोंधेपन का वास।।। पहली बारिश जब हुई, हरियाली का दौर। आसमान के मेघ पर, किया सभी ने गौर।। खुशी दे रही है वृहद, हमको तो बरसात। मिट्टी को तो मिल गई, एक नवल सौगात।। बचपन की यादें घिरीं, मन हो गया अतीत। नहीं आज परिवेश वह, नहीं आज वे मीत।। पानी से जीवन मिला, बूँदें हैं वरदान। करता है यह नीर तो, खेतों का सम्मान।। नदी भरी,तालाब भी, मौसम है अनुकूल। दूर हो गए आज तो, गर्मी के सब शूल।। बारिश से ही गति मिले, पीने को है नीर। जल की बूँदों ने हरी, आज सभी की पीर।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २...
नशामुक्ति पर दोहे
दोहा

नशामुक्ति पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** करता नशा विनाश है, समझ लीजिए शाप। ख़ुद आमंत्रित कर रहे, आप आज अभिशाप।। नशा बड़ी इक पीर है, लिए अनेकों रोग। फिर भी उसको भोगते, देखो मूरख लोग।। नशा करे अवसान नित, जीवन का है अंत। फिर भी उससे हैं जुड़े, पढ़े-लिखे औ' संत।। मत खोना तुम ज़िन्दगी, जीवन सुख का योग । मदिरा, जर्दा को समझ, खड़े सामने रोग।। नशा मौत का स्वर समझ, जाग अभी तू जाग। कब तक गायेगा युँ ही, तू अविवेकी राग।। नशा आर्थिक क्षति करे, तन-मन का संहार। सँभल जाइए आप सब, वरना है अँधियार।। नशा लीलता हर खुशी, मारे सब आनंद। आप कसम ले लीजिए, नशा करेंगे बंद।। नशा नरक का द्वार है, खोलो बंदे नैन। वरना तुम पछताओगे, खोकर सारा चैन।। नशा मारकर चेतना, लाता है अविवेक। नशा धारता है नहीं, कभी इरादे नेक।। नशा व्याधि है, लत बुरी, नशा असंगत रोग। तन-म...
योग भगाये रोग
दोहा

योग भगाये रोग

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** योग भगाता रोग है, काया हो आदित्य। स्वास्थ्य रहे हरदम खरा, मिले ताज़गी नित्य।। योग कला है, ज्ञान है, ऋषियों का संदेश। तन-मन की हर पीर को, करे दूर, हर क्लेश।। योग साधना मानकर, पाते हम बल-वेग। गति-मति में हो श्रेष्ठता, मिले खुशी का नेग।। दीर्घ आयु मिलती सदा, अपनाते जो ध्यान। योग करो, ताक़त गहो, पाओ नित सम्मान।। योग कह रहा नित्य यह, लेना शाकाहार। तभी मिलेगा हर कदम, जीवन में उजियार।। भारत चिंतन में प्रखर, देता उर-आलोक। योग-ध्यान से बंधुवर, पास न आता शोक।। योग दिवस मंगल रचे, अखिल विश्व में मान। योगासन हर मुद्रा, पाती है यशगान।। योग साधना दिव्य है, रामदेव जी संत। जिन ने भारत से किया, सकल रुग्णता अंत।। योग नया विश्वास है, चोखी है इक आस। जो जीवन-आनंद दे, रचे नया मधुमास।। योग-ध्यान से नेह कर, गा...
नेता और कुर्सी
दोहा

नेता और कुर्सी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेता कुर्सी पर लदा, सुख का करता भोग। नेता जन के तंत्र का, बहुत बड़ा है रोग।। नेता से वादे झरें, बाहर आता झूठ। खड़ा हुआ है नीति का, केवल अब तो ठूँठ।। नेता नाटक नित करे, बने संत का बाप। छिनती कुर्सी तब "शरद", छिन जाता सब ताप।। नेता लोभी, स्वार्थमय, कपटी अरु चालाक। नहीं कभी चिंता करे, कट जाए यदि नाक।। नेता होता निम्न नित, नहीं कभी परवाह। नेता की करनी सुनो, तो निकलेगी आह।। नेता पापों से घिरा, घोटालों में मस्त। राजनीति तो हो गई, उससे अब तो पस्त।। नेता करे प्रपंच नित, पाने को नित वोट। जनहित पर नित मारता, बिन सोचे ही चोट।। नेता तो अभिशाप है, नेता नित्य कलंक। मार रहा जनतंत्र पर, जो धीरे से डंक।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहा...
सिद्धार्थ
दोहा

सिद्धार्थ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्म मरण का खेल यह, समझ न पायी पार्थ। गीत ग़ज़ल था छंद भी, सब कुछ था सिद्धार्थ।। बसे क्षितिज के पार तुम, भूल गए सिद्धार्थ। अब जीवन ये बोझ है, क्या साउथ क्या नार्थ।। चली तेज पछुआ हवा, रूप बड़ा विकराल। जलता दीपक बुझ गया, खोया घर का लाल।। पीर समझ पाया नहीं, बैरी था संसार। मित्र अकेली मातु थी, करे स्वप्न साकार।। सूखे-सूखे हैं अधर, अँखियों में है नीर। ममता बड़ी अधीर है, उर है अथाह पीर।। कबिरा साखी मौन है, चुप मीरा के श्याम। रूठे सीता राम भी, जप लूँ कैसे नाम।। चर्चा करती रात-दिन, मिटे नहीं संताप। खंडित है विश्वास सब, करते नित्य विलाप।। मोह त्याग कर चल दिया, भूला मातु दुलार। पल-पल लड़ता मौत से, लिए अश्रु की धार।। अतिशय अन्तस् पीर है, मनवा रहे उदास। राजा बेटा लाड़ला, करे हृदय...
कोमल है कमनीय भी
दोहा

कोमल है कमनीय भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिंदी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान। देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
शिक्षक
दोहा

शिक्षक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु द्वैपायन द्रोण हैं, देते हमको ज्ञान। विनयी प्रज्ञावान भी, महिमा लें पहचान।। शिक्षक रक्षक राष्ट्र के, सुख-सागर आधार। अभिनंदन वंदन करें, दें सदगुण उपहार।। अज्ञानी को ज्ञान दे, श्रेष्ठ मिलें संस्कार। भव से पार उतारते, शिक्षक तारणहार।। महाकाव्य गुरु उपनिषद, वे ही वेद पुराण। कर आलोकित वे करें, शिष्यों का कल्याण।। हिय विशाल है अब्धि-सा, निर्मल धारा ज्ञान। सदाचार के स्त्रोत भी, अतुलित विद्यावान।। भाग्य विधाता छात्र के, शिल्प-कार दातार। दे विवेक प्रज्ञा सदा, दूर करें अँधियार।। निर्माता हैं राष्ट्र के, सम्प्रभुता की खान। शिक्षक संस्कृति सभ्यता, के होते दिनमान।। क्षमाशील गुरु दें विनय, अनुशासन की डोर। सूर्य किरण बन रोपते, आदर्शों की भोर।। शिक्षक प्रहरी देश के, गौरव भरा समाज। नैतिकता प...
गणपति
दोहा

गणपति

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्रतुंड गणपति सतत, मंगलकारी नाथ। लंबोदर गजमुख सदा, मोदक प्रिय है हाथ।। शंकर पुत्र गणेश हैं, गौरी सुत प्रथमेश। कार्तिकेय के भव अनुज, दयावान रूपेश।। भालचंद्र गज शीश है, सुखदायक गुणवंत। हरें सभी के दुख सदा, एकदंत भगवंत।। क्षेमंकर गजकर्ण हैं, करते सब यशगान। ऋद्घि सिद्घि देते सदा, धूम्रवर्ण भगवान।। बुद्धिनाथ हैं गज-वदन, रक्षक दिव्य गणेश। शाम्भव हो योगाधिपति, धवल रूप हृदयेश।। गणपति बप्पा मोरया, शुभकारी है रूप। सुख दायक धर्मेश हैं, महिमा नाथ अनूप।। विघ्नविनाशक सब कहें, करते भक्त प्रणाम। सकल लोक है पूजता, निसदिन आठों याम।। विद्या वारिधि हो अमित, मूषक पीठ विराज। करो कृपा हे रुद्रप्रिय, आओ घर में आज।। सर्वात्मन हेरम्ब हो, तुम गणराज कवीश। यज्ञकाय प्रभु भीम हो, शंभु सुवन अवनीश।। वंदन करो...
मेरा गाँव
दोहा

मेरा गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगे, लगता नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़...
नव्य वर्ष
दोहा

नव्य वर्ष

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ग्यारह महिने दौड़ती, सबकी अपनी रेल। नवल माह पूरा करे, अंतिम वाला खेल।। सुंदर शोभा पलक पर, रखना सदा जरूर। बूंद पत्ते अवसान से, निज स्थल होते दूर।। सबक पड़ोसी माह से, मिल जाता हर बार। दिसंबर को पछाड़ता, नवल साल संसार।। दुर्गम पथ नदिया चले, अनुपम दे उपहार। वक्त घड़ी चलती सरल, अनुभव मिले अपार।। खो देने का भय रहे, याद बिदा का मोल। बूढ़ा वक्त दरक रहा, नूतन परतें खोल।। चूके समय बहाव में, परिणिति भी अनजान। अहम आहुति बता रहा, भूल गए अनुमान।। खुशियाँ पल संयोग से, जब भी खोले द्वार। भुलवाए संताप का, भारी भरकम भार।। स्नेहयुक्त संसार में, पल पल जीवन खास। चाहत रंगत ही सदा, हरदम रखना पास।। संकट मोड़ खड़ा मिले, अनर्थ भी तैयार। पकड़ नहीं तकदीर पे, कहता दिल आगार।। आवागमन युक्ति चले, नूतन समझो ...
नववर्ष के दोहे
दोहा

नववर्ष के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया हौसला धारकर, कर लें नया धमाल। अभिनंदित करना हमें, सचमुच में नव काल।। नवल चेतना संग ले, करें अग्र प्रस्थान। होगा आने वाला वर्ष तब, सचमुच में आसान।। वंदन करने आ रहा, एक नया दिनमान। कर्म नया,संकल्प नव, गढ़ लें नया विधान।। बीती बातें भूलकर, आगे बढ़ लें मीत। तभी हमारी ज़िन्दगी, पाएगी नव जीत।। कटुताएँ सब भूलकर, गायें मधुरिम गीत। तब सब कुछ मंगलमयी, होगा सुखद प्रतीत।। देती हमको अब हवा, एक नया पैग़ाम। पाना हमको आज तो, कुछ चोखे आयाम।। कितना उजला हो गया, देखो तो दिन आज। है मौसम भी तो नया, बजता है नव साज़।। पायें मंज़िल आज तो, कर हर दूर विषाद। नहीं करें हम वक़्त से, बिरथा में फरियाद।। साहस से हम लें खिला, काँटों में भी फूल। दुख पहले सुख बाद में, यही सत्य का मूल।। अभिनंदित हो वर्ष नव, बिखरायें ...
शून्य से शिखर तक
दोहा

शून्य से शिखर तक

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य को पाकर दिखाना है मुझको। जीत का परचम लहराना है मुझको।। इस दुनिया में कठिन कुछ भी नहीं, शून्य से शिखर तक जाना है मुझको।। यदि जीवन एक खेल है तो मैं खेलूँगा। चाहे लाख मुसीबतें आए मैं झेलूँगा।। प्रेरित होकर ध्यान लगाना है कर्म में, असंभव को संभव करके दिखाऊँगा।। रच सकता है तो रच मेरे लिए चक्रव्यूह। महारथियों के दल चाहे खड़े हो प्रत्यूह।। ज्ञान हासिल किया है मैंने माँ के गर्भ में, इस बार सातवें द्वार को भेदेगा अभिमन्यु।। रह-रह कर अभी जवानी ने ली अँगड़ाई। सुनहरे भविष्य के लिए लड़नी है लड़ाई।। अपने हाथों लिखना है मुझे नया इतिहास, यही सही समय है, शुरू करनी है पढ़ाई।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुय...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
अटल बिहारी जी पर दोहे
दोहा

अटल बिहारी जी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अटल दिव्यता के धनी, किया दिलों पर राज। सदियों तक होगा हमें, महारत्न पर नाज।। विनय भाव गहना रहा, प्रतिभा का संसार। भारत मां के आंगना, फैलाया उजियार।। राजनीति के दिव्यजन, देशभक्ति-आयाम। दमका लेकर दिव्यता, अटल बिहारी नाम।। कवि बनकर साहित्य की, रक्खी हरदम लाज। कविता के सुर-ताल थे, वाणी के अधिराज।। संसद के बेटे खरे, गरिमा के उत्कर्ष। युग को वे देते रहे, अंतिम क्षण तक हर्ष।। संघर्षी जीवन रहा, थे गुदड़ी के लाल। अटल बिहारी सूर्य-से, काटा तम का जाल।। महा राष्ट्रनायक बने, शासन के सिरमौर। राष्ट्र-प्रगति के केंद्र बन, दिया शांति को ठौर।। अटल बिहारी के लिए, है सबको सम्मान। उनके तो गुण गा रहा, देखो सकल जहान।। हिंदी के सम्मान का, नारा किया बुलंद। राष्ट्र संघ तक थी पहुंच, हुए पड़ोसी मंद।। जन्मदिन पर ह...
लोहा अवसान
दोहा

लोहा अवसान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लोहा लेने जो खड़े, कुछ तो होगी बात। साधन साहस संग हो, दूरी बहुत जज्बात।। अतिशय खिलाफ ही सदा, अपनों से ही बैर। सहमत होते देखते, यथा समय ही गैर।। बात_चीत विरुद्ध खड़े, बोली में ही तंज। सहन_शक्ति सीमा हुई, जिसने पाया रंज।। निर्णय लेता वो सही, खुलकर दे पैगाम। बिगाड़ सदैव ही मिले, संभव नहीं लगाम।। धन जमीन संबंध ही, लाते हैं बिखराव। पारदर्शी गुण पारखी, करते तनिक बचाव।। मसला विवाद मूल है, कलयुग की पहचान। दुनिया सारी खोजती, कैसे हो निपटान।। जीवन लोहा मानते, निर्णय राह उत्थान। अंतिम यात्रा में मिले, कफन रिक्त नादान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
दिल से- कहते हम आपसे… कायल
दोहा

दिल से- कहते हम आपसे… कायल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कायल महक विशेष है, परखो मनुज सुजान। धर्म कर्म का मन वचन, हर पल की पहचान।। कायल घात विनाश में, करते अपना अंत। हो सकता कुछ देर हो, सुनते वाणी संत।। कायल उचित विकास का, डंका चारों ओर। संकल्प सिद्धि के लिए, थामे सेवा डोर।। कायल जन की राह में, आते बहुत तनाव। पर श्रम युक्ति चाल से, रखते बहुत लगाव।। कायल बनना अति सरल, जब मात्र निःस्वार्थ। पवित्र गंगा धार में, गुण सदा परमार्थ।। व्यर्थ जी हुजूरी छिपा, लाभ भरा ही भाव। कायल होते एक के, रखते अन्य दुराव।। ना थकते जो खुद कभी, गुनगानों में होड़। कायल बनकर भी सदा, बन जाते बेजोड़।। जब कायलता काज से, मिलते सही निशान। देश बढ़े तब अनवरत, शिखर चला परवान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ ...
दीपक-महिमा
दोहा

दीपक-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दीपक का संदेश है, अहंकार की हार। नीति, सत्य अरु धर्म से, पलता है उजियार।। उजियारे की वंदना, दीपक का संदेश। कितना भी सामर्थ्य पर, रहे मनुज का वेश।। मद में भरना मत कभी, करना मत अभिमान। दीपक करने आ गया, आज तिमिर-अवसान।। दीपों के सँग है सजा, विजयभाव -आवेश। विनत भाव से जो रहे, परे करे क्लेश।। निज गरिमा को त्यागकर, बनना नहीं असंत। वरना असमय ही सदा, हो जाता है अंत।। पूजा में दीपक जले, जलकर रचता धर्म। समझ-बूझ लें आप सब, यही पर्व का मर्म।। कहे दीप की श्रंखला, सम्मानित हर नार। नारी के सम्मान से, हो जग में उजियार।। उजियारा सबने किया, हुई राम की जीत। आओ हम गरिमा रखें, बनें सत्य के मीत।। कोशिश करके मारना, अंतर का अँधियार। भीतर जो अँधियार है, देना उसको मार।। अहंकार मत पोसना, वरना तय अवसान । उजियारे...