हाँ मैं वही सिपाही हूँ
नफे सिंह योगी
मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि)
********************
मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल,
सदियों से खड़ा स्थाई हूँ।
निश्चिंत हिंद जिस दम सोता,
जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।।
घर,परिवार व प्यार त्याग मैं,
सरहद पर तैनात खड़ा हूँ।
करुँ मौत से मस्ती हरदम,
खतरों से सौ बार लड़ा हूँ।
हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर,
मैं उसी रक्त की स्याही हूँ।
निश्चिंत हिंद जिस दम सोता,
जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।।
है धरती सा धीरज मुझमें,
व आसमान सा ओहदा है।
हिम्मत हिमालय सी रखता,
सदा किया मौत से सौदा है।
अपनों पर जान गँवाता हूँ,
दुश्मन के लिए तबाही हूँ।
निश्चिंत हिंद जिस दम सोता,
जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।।
बाहों में सिसके दर्द सदा,
आँखों में निंदिया रोती है।
सपनों में दिखता दुश्मन को,
चिंता मुझको ना खोती है।
मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता,
होता उतना उत्साही हूँ।
निश्चिंत हिंद जिस दम सोता,
जी हाँ मैं वही सिपाही हू...