बाल काव्य के अंतर्गत प्रस्तुत हैं कुण्डलियाँ छंद सर्जन
रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'
लखनऊ
********************
उठ कर देखो लाडले! आसमान की ओर।
पक्षी कलरव कर रहे, खिली सुहानी भोर।।
खिली सुहानी भोर, लालिमा नभ में छाई।
अरुण रश्मियाँ साथ, उषा है लेकर आई।।
अब तो रख दो पाँव, सहारे से वसुधा पर।
रजनी बीती तात, लाडले देखो उठ कर।।
होती है हर हाल में, मस्ती खूब धमाल।
बाबा घोडा़ बन गए, चुन्नू करे कमाल।।
चुन्नू करे कमाल, फटाफट चले सवारी।
टिक-टिक की आवाज, कभी है चाबुक मारी।।
मात- पिता को छोड़, खेलते दादा-पोती।
दादी भी खुशहाल, देखकर उनको होती।।
खाते हलुवा खीर जब, बचपन में हम साथ।
रहे खुशी से झूमते, लिए हाथ में हाथ।।
लिए हाथ में हाथ, दुलारें माता हमको।
भर-भर कर आशीष, सदा देतीं वह सबको।।
नाचें कूदें और, पिता से पैसे पाते।
जाते फिर बाजार, वहाँ पर लड्डू खाते।।
खाते हैं चुन्नू सदा, पूड़ी और पनीर।
नहीं मिले उनको अगर, खो देते हैं धीर।।
खो देते हैं धीर, धरा पर लोटे ज...