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चौपाई

वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा
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वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा :- जगहित जलता दीप सम, सहज, मृदुल व्यवहार। शिक्षक बनता है सदा, ज्ञान सृजन आधार।। चौपाई :- जयति जगत के ज्ञान प्रभाकर। शिक्षक तमहर श्री सुखसागर।।-१ वंदनीय विद्या विज्ञापक। अभिनंदन अधिगुण अध्यापक।।-२ आप राष्ट्र के भाग्य विधाता। सदा सर्वहित ज्ञान प्रदाता।।-३ जन-जन जीवनदायी तरुवर। प्रथम पूज्य हैं सदैव गुरुवर।।-४ शिक्षित शिष्ट शुभंकर शिक्षक। विज्ञ विवेचक विनयी वीक्षक।।-५ अतुलित आदर के अधिकारी। उर उदार उपनत उपहारी।।-६ लघुता के हो लौकिक लक्षक। सजग, सचेतक सत हित रक्षक।।-७ वेदित विद्यावान विशोभित। प्रज्ञापति हो, कहाँ प्रलोभित?-८ अंतर्दर्शी हैं आप अभीक्षक। प्रमुख प्रबोधी प्रबुध परीक्षक।।-९ विद्याधिप विभु विषय विशारद। उच्चशिखर चमके यश पारद।।-१० विश्व प्रतिष्ठित प्रबलक पारस। ढुनमुनिया मति के दृढ़ ढ...
लता चालीसा
चौपाई

लता चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* (विनम्र शब्दांजलि) भारत मां की लाड़ली, गाये गीत हजार। सुर संगीत खजान है, कहत है कवि विचार।। हे सुर देवी कंठ सुहानी। लता नाम से सब जग जानी।। मास सितंबर सन उनतीसा। जन्मी बेटी सुर की धीसा।। इंदुर नगरी खुशियां छाई। मातु अहिल्या मन मुसकाई।। पंडित दीना पिता कहाये। मां सेवंती गोद खिलाये।। ज्योतिष हेमा नाम बताया। लता नाम को पिता धराया।। सुर कोकिल है नाम तुम्हारा। राग सुनाती नित नव प्यारा।। सुर सम्राज्ञी भारत कोकिल। मधुर कंठ से जीते सब दिल।। आशा, मीना, ऊषा बहिना। हृदयनाथ भाई जग चींहा।। पांच साल की आयु पाई। नाटक अभिनय धूम मचाई।। प्रथम गुरु थे तात तुम्हारे। जो संगीत कला रखवारे।। राग धनाश्री पिता सिखाया। फिर कपूरिया को समझाया।। तेरह बरस की उम्र थी भाई। पिता भूमिका आप निभाई।। सन पैंतालिस ...
प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा
चौपाई, छंद

प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा। सर्वप्रथम हो उनकी सेवा।। संकट टालो अतिशय भारी। हनुमत आई शरण तिहारी।। सबका मंगल करने वाले। मुझको अपने चरण बिठा ले।। तुलसी कृत मानस है भाती भक्ति-सुभाव हृदय में लाती।। मानस में वर्णित चौपाई। उर में श्रद्धा बहु उपजाई।। मातु पिता की महिमा गाई। गुरु के चरण बहुत सुखदाई।। प्रेम करें सब भाई-भाई। सकल विश्व पूजित रघुराई।। कैकेई ने प्रभु को माना। राह सुगम की वन को जाना।। तज महलों को सीता माता। संग पिया का अति मन भाता।। उर्मिल सहती थी दुख भारी। रहें कर्म-पथ लखन सुखारी।। निज इच्छा से प्रभु की सेवा। राम सकल जग के हैं देवा।। सीख भरत से यह हम लेते। प्रभु के चरण परम सुख देते।। प्रातः वेला अति मनभायी। पुण्य प्रताप मधुर रसदायी।। राम नाम अति मंगलकारी। प्रमुदित हो लेते नर-नारी।। धन्य-ध...
त्राहिमाम
चौपाई, छंद

त्राहिमाम

अजय गुप्ता "अजेय" जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम हो जग के पालनहारे, ब्रहां, विष्णु, महेश हमारे। हे आपदा प्रबंध प्यारे, सबहु तेरी कृपा सहारे।। सूनी सड़क गली चौबारे, जैसे नभ से ओझल तारे। घर-घर में नर-नारी सारे, बिन प्राणवायु जीवन हारे।।१ भौतिक सुख इच्छा ने भुलाये, पर्यावरण क्षति हमें रुलाये। जगह जगह हम पेड़ लगायें, अब नहीं वन-कटान करायें।। त्राहिमाम! हम शीश नभायें, माथे पग रज तिलक लगायें। प्राणवायु जग भर फैलाये, फिर से धरा सकल महकायें।।२ हमने किये पाप हैं भारी, भूले थे हम तुम अधिकारी। म़ाफ करो हम रचना त्यारी, त्राहिमाम! देवधि उपकारी।। हम तेरे बालक मनुहारी, त्राहिमाम! हे जग गिरधारी।। प्रभु सुन लीजिए अरज हमारी, करो दया जग लीलाधारी।।३ परिचय :- अजय गुप्ता "अजेय" निवासी : जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) शिक्षा : स्नातक ऑफ लॉ एंड कॉमर्स, आगरा वि...
बसंत चालीसा
चौपाई, छंद

बसंत चालीसा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** मधुमासी ऋतु परम सुहानी, बनी सकल ऋतुओं की रानी। ऊर्जित जड़-चेतन को करती, प्राण वायु तन-मन में भरती। कमल सरोवर सकल सुहाते, नव पल्लव तरुओं पर भाते। पीली सरसों ले अंगड़ाई, पीत बसन की शोभा छाई। वन-उपवन सब लगे चितेरे, बिंब करें मन मुदित घनेरे। आम्र मंजरी महुआ फूलें, निर्मल जल से पूरित कूलें। कोकिल छिप कर राग सुनाती, मोहक स्वरलहरी मन भाती। मद्धम सी गुंजन भँवरों की, करे तरंगित मन लहरों सी। पुष्प बाण श्री काम चलाते, मन को मद से मस्त कराते। यह बसंत सबके मन भाता, ऋतुओं का राजा कहलाता। फागुन माह सभी को भाता, उर उमंग अतिशय उपजाता। रंग भंग के मद मन छाये, एक नवल अनुभूति कराये। सुर्ख रंग के टेसू फूलें, नव तरंग में जनमन झूलें। नेह रंग से हृदय भिगोते, बीज प्रीति के मन में बोते। लाल, गुलाबी, नीले, पीले, हरे, केसरी रंग रँगीले। सराबोर होकर नर-नारी, ...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
नानकदेव चालीसा
कविता, चौपाई

नानकदेव चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* आदिगुरु हैं नानका, पीछे अंगद देव। अमरदास गुरू रामजी, पंचम अर्जनदेव।। हरगोविन्द हररामजी, हरकिशन अरु तेग। दशम गुरु गोविन्दजी, हरते पीडा वेग।। जय जय जय गुरुनानक देवा। प्रभु की वाणी मानव सेवा।। रावी तट तलवंडी ग्रामा। गुरु जनमें पावन ननकाना।। सन चौदह उनहत्तर साला। कातिक पूनम भया उजाला।। कालू मेहता घर अवतारा। मां तृप्ता की आंखों तारा।। देवी सुलछणी धरम निभाये। श्रीचंद लखमी दो सुत पाये।। गुरु गोपाला पाठ पढाये। नागरि लिपि आखर समझाये।। नानक नितनव प्रश्न बनाते । शिक्षक सब सुनके घबराते।। हिंदी संस्कृत फारस सीखा। सबमें एक प्रकाश ही दीखा।। लिपि गुरुमुख भाषा पंजाबी। जागा ज्ञान कुशंका भागी।। अ अविनाशी सत्य है भाई। जो सतनाम तुम्ही बतलाई।। नाच भांगडा लंगर द्वारा। सिख संगत गावे संसारा।। वाहेगुरु सतनाम बताया। छोड़ अहम ओंकार सिखाया।। पंथ ...