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गीत

हम कबीर के वंशज
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हम कबीर के वंशज

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कलम हाथ में है हमको ये, नाविक पार उतारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। हिन्दू मुसलमान दोनों को, जो उठकर ललकार सके। अंधकार को नूर के कपड़े, पहना कर तम मार सके।। नहीं दुश्मनी किसी से पाली, मित्र सभी के कहलाये। क्या करते वे आईना थे, सब के दाग नजर आये।। हम भी उनके पथ अनुगामी, लोक हमें स्वीकारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। अपनी प्रतिभा और गति को, अपनी जिद से चमकाई। राम नाम का मंत्र सीखकर, निर्गुण की महिमा गाई।। मंदिर मस्जिद काबा काशी, छाप तिलक या हो माला। सब को दूर रखा चाहत को, अपना खुदा बना डाला।। यही सिखाया कर्म सभी के, पथ के खार बुहारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। जिस पथ चले "अनन्त" कबीरा, पथ कबीर का कहलाया। सुविधा स...
हवा बहती जाए रे
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हवा बहती जाए रे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मन्द-मन्द, ठंडी-ठंडी। हवा बहती जाए रे ... मन मन्दिर में मिलन की घण्टी बजती जाए रे ....! तेरे मन की भाषा को कब से पढ़ते-पढ़ते अब जुदाई को भी सहा नहीं जाए रे ......! मेरे मन की कलियां खिल-खिल जाए रे... उनकी प्यारी प्यारी यादें मन में बहती जाए रे........! कब तक तड़पाओगे प्रीत की डोरी से बांध के..... प्यार के मौसम में मिलन की प्यास बढ़ती जाए रे.........! प्रेम के सागर में मन की बातें करते-करते.... कल-कल यौवन की नदियां थर्र-थर्र मचलती जाए रे.....! मेरे मन का गीत कब सुनोगे तुम ... गाते-गाते आंसुओ से आंखें छलकी जाए रे.....! रूप सागर को कब आ कर निहारो-गे..... मेरे अल्हड़पन की अब तो मुस्कान थमती जाए रे.....! मुझे नैनों में बसा कर घूंघट के पट कब खोलोगे..... भरी गगरिया यौवन की अब छलकी जाए रे.......!!! परिचय ...
दुनिया का कुछ भान नहीं था
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दुनिया का कुछ भान नहीं था

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया का कुछ भान नहीं था, सभी लोग लगते थे अपने। नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! प्रेम अनल ने घेर लिया था, नयनों से बहता था पानी! सुध-बुध सारी बिसराई थी, बैठी थी सिर पर नादानी। प्रेम रोग के कारण हरदम, तन-मन बहुत लगे थे तपने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! मानव मन की मर्यादा है, सहनशीलता की भी हद हैं! कष्ट और कठिनाई हों तो, डगमग-डगमग होते पद हैं! जब दुख की आँधी चलती थी, लगता था उर अधिक तड़पने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! टूट गए थे बाँध सब्र के, आशा के दीपक कंपित थे! रुका हुआ था भाग्य सितारा, नियति के निर्णय लंबित थे! संकट की छाया में प्रायः, ईश नाम लगते थे जपने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित...
रूठ न जाए
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रूठ न जाए

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायेंI नाजुक से है अरमान मेरे, कही टूट न जायें।। फूलों से भी नाजुक है, उनके होठों की नरमी। सूरज झुलस जाये, ऐसी सांसों की गरमी। इस हुस्न की मस्ती को, कोई लूट न जायें। इस बात का डर है, वो कहीँ रूठ न जायें।। चलते है तो नदियों की, अदा साथ लेके वो। घर मेरा बहा देते है, बस मुस्कारा के वो I लहरों में कही साथ, मेरा छूट न जायें I इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायें I। छतपे गये थे सुबह, तो दीदार कर लिया I मिलने को कहा शामको, तो इनकार कर दिया I ये सिलसिला भी फिरसे, कहीं टूट न जायें। इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायें I। क्या गारंटी है की फिरसे, कही वो रूठ न जाएं। मिलने का बोल कर कही भूल न जाये। हम बैठे रहे बाग़ में, उनका इंतजार करके। वो आये तो मिलने पर देखकर हमें चले गये।।...
क्या रोजगार पा सकेंगे हम
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क्या रोजगार पा सकेंगे हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** एक बात पूंछनी है रेहबरों बताओगे, सच-सच बताओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। वादा किया था आप हमको देंगे रोजगार। आएंगी रोनकें घरों में आएंगी बहार।। उतरेगा बदन का लिबास जो है तार-तार। सरकारी नौकरियों से कर पाएंगे श्रृंगार।। सोचा न था निजीकरण पे आप जाओगे। सारी ही नौकरियाँ ठेकों पे उठाओगे।। कुछ को बढ़ाओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। विश्वास किया आपको हम चुनके ले आए। परचम उठाए आपके गुणगान भी गाए।। कुर्सी पे बिठाया है ऐसे पैर जमाए। जिनको हिलाने कोई शूरवीर न पाए।। उम्मीद न थी हमसे यूँ नजरें चुराओगे। विश्वास एक जगा था बड़े काम आओगे।। खुशियां लुटाओगे, क्या रोजगार पा सकेगें हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। जाकर के नजर फेर लोगे किसको पता था। आश्वासनो...
दया करदो अब तो करतार
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दया करदो अब तो करतार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दया करदो अब तो करतार। घिरा है संकट में संसार। हुई है सारी धरती त्रस्त। नहीं है कौन आपदाग्रस्त। मचा है जग में हाहाकार। घिरा है संकट में संसार। विनाशक है कोरोना रोग। गए जग से हैं लाखों लोग। हो रहा अगणित का उपचार। घिरा है संकट में संसार। पुरुष-नारी, बच्चे या वृद्ध। रोगवश हैं सब घर में बद्ध। प्रभावित हुए सभी परिवार। घिरा है संकट में संसार। दुकानें कर्फ्यू में हैं बन्द। हुई गतिविधियाँ हैं अब मन्द। बन्द हो गए सभी व्यापार। घिरा है संकट में संसार। ज्ञान-शिक्षा की संस्थाएँ। कौन जाने कब खुल पाएँ। हृदय में आते विविध विचार। घिरा है संकट में संसार। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्...
मुक्त प्रदूषण से धरती को
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मुक्त प्रदूषण से धरती को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** नगर-नगर औ गांव गांव तक, ये संदेशा पहुचाएं मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।।, नदियां सबसे गंदी हैं तो, उनकी करें सफाई हम। गंदा जल होने से रोकें, सबकी करें भलाई हम।। उनके घाटों पर मेले फिर, लगें करें वो काम सदा। ना अस्थी ना राख बहाएं, याद रखें अंजाम सदा।। शुद्ध बनाकर सरिताओं के , कूलों को हम दिखलाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। अगर हवा गंदी होगी तो, साँसों का संकट होगा। पेड कटेंगे तो आबादी, से ज्यादा मरघट होगा।। ध्वनि प्रदूषण से बहरे हम, हो जायेंगे यार सुनो। अंधे बहरों के समाज में, फैलेंगे परिवार सुनो।। इससे पहले के डूबे सब, बचा किनारे हम लाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। शुद्ध अगर मिट्टी होगी तो, फल पे असर पड़ेगा ही। चढ़ने व...
बच्चों से जब काम न लेकर
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बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ****** मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। सरकारें उत्तरदायी सब, अपने फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए तो, कल की फिक्र नहीं होती। अंधकार में जल जाती है, अपने आप नई ज्योति।। काबिल होंगे बच्चे तो हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। उड़ने वाले पंखों को ही, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं सो जाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, लौट धरा पर आएंगी।। जब निर्भर बने बच्चे सब, गगन चूमने जाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बच्चों के सपने ही तो कल, की त...
आँधियाँ-तूफ़ान आए
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आँधियाँ-तूफ़ान आए

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आँधियाँ-तूफ़ान आए, फँस गए मझधार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। छा गई है महा मारी, कौन अब पीड़ित नहीं है? वेदनापूरित कहानी, किस हृदय अंकित नहीं है? कष्ट के कारण दुखी हैं, मेदिनी परिवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। रोक है, पाबन्दियाँ हैं, बन्द सब अपने घरों में। रास्ते सूने पड़े हैं, शून्य जन हैं दफ्तरों में। रुक गए व्यवसाय सारे, थम गए व्यापार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। फिर सजें बाज़ार सारे, फिर खुले हर पाठशाला। तिमिर जाए आपदा का, लौट आए सुख-उजाला। कब तलक जीवित रहेंगे, लटकती तलवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०...
इन तबेलों में
गीत

इन तबेलों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** इन तबेलों में हमारा घुट रहा है दम, कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो। कल तलक चरते रहे हम, खेत बीहड़ सब। हाथ से लिखते रहे सब, भाग के करतब। रोशनी जल वायु पर भी, हुक्म चलता था, ढोल अब इस तंत्र का तो, बज रहा बेढब। धर्म की इस खाल में उन्माद तो भर दो। कुछ पलों के ही लिए, आजाद तो कर दो।। जान फूँकी पत्थरों की देह में हमने। मेह रिश्वत की कभी हमने न दी थमने। तंत्र को थोड़ा मरोड़ा कुछ घसीटा बस, निर्धनों के पाँव हम देते नहीं जमने।। फिर हमारे स्वार्थ को आबाद तो कर दो। कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
मैं खुद के साथ हूँ
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मैं खुद के साथ हूँ

अनिल कुमार मिश्र राँची (झारखंड) ******************** मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला गीत गाता हूँ नयन में आँसुओं की धार लेकर गुनगुनाता हूँ। समर बेचैन तो करता हृदय में हूक भी उठती ये रिश्ते दिल जलाते हैं यही सबको बताता हूँ। हृदय में पीर का पर्वत छुपाए मुस्कराता हूँ मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला मानकर सबको झमेला नयी कुछ बात कह जग को जगत से मैं बचाता हूँ ये रिश्ते दिल जलाते हैं यही सबको बताता हूँ। मैं सबके साथ हूँ फिर भी अकेला गुनगुनाता हूँ दुश्मनों से प्यार के रिश्ते निभाता हूँ मुस्कुराकर, गुनगुनाता गीत गाता हूँ मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला इस जगत का एक झमेला गीत को लिखकर हृदय में प्राण पाता हूँ। कृपा मित्रों की नित बरसे यही है कामना मेरी नयन में आँसुओं के भार ढोकर मुस्कराता हूँ तड़पता हूँ मैं, जलता भी हूँ कुछ कष्ट है ऐसा हृदय में पीर से गलत...
बंधक तन में टहल रही है
गीत, छंद

बंधक तन में टहल रही है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- विष्णुपद बंधक तन में टहल रही है, श्वासें बन उलझन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।। डाल दिया आ खुशियों के घर, राहू ने डेरा। दुख की संगीनों ने तनकर, उजला दिन घेरा।। जगी आस का कर देता है, चाँद रोज खंडन।। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।१ अस्पताल के विक्षत तन में, श्वासों का टोटा। गरियाता पर अटल प्रबंधन, बिल देकर मोटा।। दैत्य वेंटिलेटर नित तोड़े, भव का अनुशासन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।२ एंबुलेंस की चीखें भरती, बेचैनी मन में। भूल गयी अब लाशें काँधे, चलती वाहन में।। बदल दिया है इस मौसम ने, मानस का चिंतन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
जाने दुनियां
गीत, भजन

जाने दुनियां

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब) आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है। करका पावन आशीष जिनका, कंकर सुमन बनाता है I पग धूली से मरुआंगन भी, नंदनवन बन जाता है। स्वर्ण जयंती मुनिदीक्षा की, रोम रोम को सुख देती I सारे भेद मिटा, जन जन को, सुख शांति अनुभव देती।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है।। अकिंचन से चक्रवर्ती तक, चरण शरण जिनकी आते I कर के आशीषों से ही बस, अक्षय सुख शांति पाते I योगेश्वर भी, राम भी इनमें, महावीर से ये दिखते I सतयुग, द्वापर, त्रेता के भी, नारायण प्रभु ये दिखते I युग युग तक रज चरण मिले, यही संजय मन नित मांगे। आचार्य श्री विद्यासागर का, सदा हो आशीष मम माथे।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I...
काली का स्वरूप धरूं
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काली का स्वरूप धरूं

रेशू पर्भा राँची, (झारखंड) ******************** लक्ष्मी बनूँ, दुर्गा बनूँ, या काली का स्वरूप धरूं रानी बनूं, अबला बनूं, या कोई कुरूप बनूँ तेरी छलती नयनों से, कैसे अब मैं दूर रहूँ कहो पापियों मुझे बताओ, इस युग में कौन सा रूप मैं लूँ अत्याचार अब बढ़ा बहुत है, किस तरह मै दूर करूँ अग्नि ज्वाला बरसा दूँ, या प्रलय सा हाहाकार करूँ पिला दूँ विष का प्याला मैं, या सीने पर तेरे वार करूँ कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा संहार करूँ जन्म दिया जिस नारी ने, करते कैसे तिरस्कार हो उनकी छांव में पलकर तुम, करते कैसे बहिष्कार हो अरे हीन विचारों वाले, कैसे तुझसे संवाद करूं कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा अभिवाद करूँ राहों पर जो चले अकेली, नजरों से नग्न तुम देखते हो जरा बताओ, अपनी माँ बहनो को भी ऐसे ही निहारते हो इस स्वर्णिम सृजन सृष्टि का अब कहो कैसे उद्धार करूँ तुम ही बताओ ओ वहशी कैसे तेरा मैं नाश करूँ आधु...
अखबार बेचने वाला हूँ
गीत

अखबार बेचने वाला हूँ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदू ना मुसलमान हूँ मैं, इंसान हूँ इज्जत वाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं रोज नई खबरें लाता, तम चीर उजाला फैलाता। हर सुबह यही वंदन करता, रखना खुश सबको ऐ दाता।। हूँ पढ़ा लिखा कम, सच है पर, मैं आदर्शों का पाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। अखबार बेचता हूं मैं क्यों, है शर्म नहीं मुझको कोई। मिल जाती मुझको दो रोटी, है काम कहां छोटा कोई।। मैं तो भविष्य भारत का हूँ, मैं भारत का रखवाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं काम सभी कर लेता हूँ, अपनी मस्ती में रहता हूँ। कल मैं भी जिलाधीश बनकर, आऊँगा ये सच कहता हूँ।। मेहनत "अनंत" ईमान मेरा, मुट्ठी में लिए उजाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
पीत पल्लव को बदल…
गीत

पीत पल्लव को बदल…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** पीत पल्लव को बदल मधुमास लायेंगे। भूलकर हम आज को, कल मुस्कुरायेंगे।। भर गयी है टीस उर में रात ये काली। उड़ गये पंछी घरों को छोड़कर खाली। मर्ज के सैलाब ने विश्वास तोड़ा पर, नवसृजन करने खड़ा है आज भी माली।। आँसुओं को पोंछ कर उल्लास लायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।१ मानते हम भूल अपनों की हुई सारी। जिस वजह से आज ये इंसानियत हारी। सीख लेंगे अब सबक जो कल हँसायेगा, फिर सुनेंगे कान मीठी बाल किलकारी।। रंग के उत्सव खुशी से जगमगायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।२ जख्म इस इतिहास का जब कल पढ़ायेंगे। नीड़ सूना कर गये सब याद आयेंगे।। गीत मंगल कामना के शेष है 'जीवन', जीत के हम फिर नये स्वर गुनगुनायेंगे।। जोड़ अंतस को नये पुल हम बनायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प...
उम्मीद का दामन
गीत

उम्मीद का दामन

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ३० मापी मेरा मन ये प्यासा है कोरे कागज की तरह से दिल ये प्यार में घायल है कोरे कागज की तरह से जीवन में मेरे कोई कमी नहीं उजली राहों की और तो और ना ही जिन्दगी में अरे बहरों की क्यों दिल कहता है तुम्हारे कि मेरे अफसानों की और ये दिल दिल खोया है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में अरे मैंने सपना देखा बनूँ दुल्हन की और खिलौना नहीं है ये दिल भी किसी से खेले की हमेशा रहा है उमंगे लिए अपने मन अन्तिस की दिल बसा तुममें है, मन है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में रोशनी मिली है हमें तो हाँ बहरों की और हमें जिन्दगी में कुछ उम्मीदें हैं तुमसे भी तुम तो सुनना कुछ हमारे इस सौगात भरे दिल की जो तुम्हें याद करता है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
सब पा लिया
गीत

सब पा लिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: मैं कही कवि न बन जाऊ..) तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है। तेरे दर पर आके हमने सिर को झुका लिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है।। आवागमन की गालियाँ न हत बुला रही थी..२। जीवन मरण का झूला हमको झूला रही थी। अज्ञानता की निद्रा हमको सुला रही थी। नजरे नरम हुई है तेरा आसरा लिया जब।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। तेरे प्यार वाले बादल जिस दिनसे घिर गये है.. २। दूरगुण के निसंक के पर्वत उस दिन से गिर गये है। रहमत हुई है तेरी मेरे दिन फिर गये है। तेरी रोशनी ने सदगुरु रास्ता दिखा दिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। संजय का ये गीत गुरु प्रभु को हैं समर्पित..२। अपनी कृपा हे गुरुवर मुझ पर बनाये रखना। अपने चरणो में मुझको थोड़ी जगह जरूर देना। अज्ञानी हुई मैं गुरुवर मुझे ज्ञान आप देना।। तेरा प्यार ...
उम्मीदों की भोर …
गीत

उम्मीदों की भोर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कष्टों की काली रजनी का, आया अंतिम छोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।। घूम रही है हवा विषैली, बन कर काला नाग। खुशियों के घर जला रही है, श्मशानों की आग।। कानों में घोला है दुख ने, त्राहि माम का शोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।१ डोल गया है बुरे वक्त में, लालच का ईमान। श्वासों का सौदा करते हैं, पग-पग पर शैतान।। काट रहे हैं चाँदी निर्मम, भूखे आदमखोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।२ एड़ी ऊँची कर पूरब में, झाँक रही सब बाम। कोई सूरज आकर बाँचे, खुशियों के पैगाम।। विरह वेदना की खबरें तो, बिखरी हैं चहुँओर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।३ हाथों थामे रखना 'जीवन', धीरज की पतवार। स्वागत करने बैठे तट पर, करुणा के उद्गार।। सरक रहा है धीरे-धीरे, अपने ओर अँजोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।...
वक्त गुजर जाएगा
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वक्त गुजर जाएगा

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** अब तक लाखों को रुला चुका, अब नहीं रुलाने पाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। चिंता की कोई बात नहीं, हरदम रहती है रात नहीं। क्या वक्त कहीं पे रुकता है, क्या आता रोज प्रभात नहीं।। डर जाएगा फिर क्यों तन मन, क्यों नहीं प्रभाती गाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। अब प्राणवायु उसके घर से, आ पहुँची है रहमत बरसे। अब कमी नही ऑक्सीजन की, मन खुशियों से अब क्यों तरसे।। खुशियों के आँसू आँखों में, अब होंगे कौन रुलाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। संक्रामित रोज बढ़े जाते, विष कोरोना का फैलाते। पर अब टीका मैदां में है, हम देख रहे राहत पाते।। "अनंत" कोरोना भागेगा, विषधर कैसे डस जाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा...
मंदिर मस्जिद से बाहर आ
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मंदिर मस्जिद से बाहर आ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं। कल की गलती आज सुधारें, सेवा कर सेवक कहलाएं।। ठोकर खाई जान गए हम, क्यों कर घर में नफरत पाली। क्या अच्छा वह पेड़ लगेगा, हरी नहीं जिसकी हर डाली।। हराभरा सुरभितगुलशन कर, दूर - दूर खुशबू पहुंचाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। केवल हम अच्छे हैं ऐसा, सोच हमेशा खंडित करता। कहो खुदा या ईश्वर उसको, पेट सभी का वो ही भरता।। उसने कहा यही, वो सबका, उसके पथ से दूर ना जाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। हम निरोग हों सदा सर्वदा, ऐसी जो योजना बनाते। अस्पताल हर गांव में होते, हम सब उनका लाभ उठाते।। गलियारों में बेड ना होते खुद अपने को ये समझाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। निहित स्वार्थ से ऊपर उठके मानवता का मंदिर खोलें। बंदों की सेवा से बढ़कर, ...
जैसे कुटिल ततैया
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जैसे कुटिल ततैया

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** लोक, तन्त्र के पहरे में करता है ता ता थैया! बिना छेद की बंसी टेरे अपना कृष्ण कन्हैया।। चेहरे पर भिनसारी आभा, मुँह में मिसरी-सी, घर-आँगन से दालानों तक खुशियाँ पसरी-सी रामकहानी-सी वे यादें, जैसे कुटिल ततैया। बिना मथानी मथे मन्थरा घर-घर में परपंच, बिना सूँड़ के हाथी जैसा झूम रहा सरपंच आगे-पीछे कई लफंगे करते भैया-भैया।। पलते हैं अनजाने बापों के विकास के भ्रूण, बढ़ते बढ़ते नाक हो गई है हाथी की सूँड़ जौ का टूँड़ गले में, बेबस जन-गण-मन की गैया।। सड़कों पर बिन डामर गिट्टी जैसी मारी मारी, भटक रही लोटा-थारी बिकने जैसी लाचारी कालीदह तक पहुँच न पाता कोई नागनथैया।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
पैगााम
गीत

पैगााम

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रेत पर नाम लिखने से क्या होगा। क्या उनको संदेशा तुम दे पाओगें। जब वो आये यहां पर घूमने को। उसे पहले कोई लहर आ जायेगी। और जो तुमने लिखा था संदेशा। उसे लहर बहा कर ले जाएगी। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। अगर करते हो सही में मोहब्बत तुम। तो पत्थर पर क्यों सन्देश लिखते नहीं। जब भी वो आयेगे यहां पर। संदेशा तुम्हारा पड़ लेंगे वो। यदि होगी मोहब्बत तुमसे अगर उन्हें। नीचे अपना पैगाम वो लिख जाएंगे।। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। एक दूसरे के संदेश पढ़कर के। सच में दोनों को मोहब्बत हो जाएगी। इसलिए कहता हूँ मैं आज तुम से। पत्थरों में भी मोहब्बत होती है जनाब।। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यर...
नई कली
गीत

नई कली

ज्योति जैन 'ज्योति' कोलाघाट (पं. बंगाल) ******************** नई कली पल्लवित हुई हैं उन्हें नया परवाज मिले सीख रही हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज मिले आँखों में विश्वास भरा है चाहत को पतवार किया धरती अंबर नाप लिया जब मन में ज्योति विचार किया निज सामर्थ्य के बूते ही अरमानों का ताज मिले सीख रही हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज़ मिले गहरे सागर सी चाहत है मोती से जज़्बात भरे छलक रहीं इच्छाएँ लेकिन अवरोधों से गात भरे जोड़े कतरन जब चाहत के जख्मों के समराज मिले सीख रहीं हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज मिले उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम फहराया अपना परचम जल थल नभ पर दिखा दिया है बेटी ने अपना दमखम बनी देश की शान बेटियांँ उनको सुंदर आज मिले सीख रहीं हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों के साज़ मिले एक दिवस करके सम्मानित महिला दिवस मनाते हैं रोज कोख में मारे बेटी बहुओं को घिघियाते हैं रोज करें ये ता ...
भारत प्यारा
गीत

भारत प्यारा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देश हमारा प्यारा हैं सबका बहुत दुलारा हैं। तभी अनेकता में एकता हम सब का नारा है। देश हमारा प्यारा हैं..।। बहु भाषाएँ होकर भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक। भारत देश हमारा हैं जो प्राणो से भी प्यारा हैं। जहाँ जन्मे राम कृष्ण और उन पर लिखने वाले संत। तभी तो यह पावन भूमि हम सबको बहुत भाता हैं।। तभी तो हमें भारत देश प्राणो से भी प्यारा हैं।। अमन चैन से रहते हमसब होली ईद दिवाली पोंगल और मनाते किस्मस आदि। हर त्यौहारों मे हिस्सा लेते हर जाती और महजब सारे। ऐसा प्यारा देश हमारा प्राणो से भी है सबको प्यारा। सबसे न्यारा सबसे प्यारा विश्व में है भारत हमारा।। भारत हमारा भारत हमारा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक ...