हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर,
जीवन का संगीत रचेंगे।
तुम मेरी कविते बन जाना,
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।।
दर्द-दर्द जब उभरे होंगे,
भाव-भाव जब निखरे होंगे,
अक्षर-अक्षर आँसू बनके-
शब्द-शब्द में बिखरे होंगे!
तब हम छन्दों की माला में,
बिरहा के सब रीत लिखेंगे!
तुम मेरी कविते बन जाना,
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।।
जब लहर उठेगी यादों की,
जब आह! उठेगी वादों की,
'कितना सुन्दर साथ हमारा,
ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!'
सुखदा-संध्या के मौसम में-
बारहमासा - प्रीत लिखेंगे।
तुम मेरी कविते बन जाना,
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।।
कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे,
तालों पे जब ताल चलेंगे,
कैसे रोक - सकेंगे मन को,
नर्तन को जब पॉव उठेंगे!
तेरी लय पाने की खातिर-
सरगम के कुछ नीत रखेंगे!
तुम मेरी कविते बन जाना,
हम तेरे मधु-गीत बनें...