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गीत

जय शिवाजी
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जय शिवाजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शाहजी भोंसले बाबा थे माँ थी महान जीजाबाई पुणे के शिवनेरी दुर्ग में अवतारे लाल शिवाजी थे वंदेमातरम... माँ ने दी थी शिक्षा दीक्षा शस्त्र शास्त्र का ज्ञान मिला बुद्धिमानी निडरता पाई बहादुरी का थे दम भरते रामायण महाभारत पढ़ते सर्वधर्म समभाव वे रखते जातिभेद से नफ़रत करते सबको अपना ही समझते कद छोटा और छोटा घोड़ा पर भारत का नक्शा बदला छुरी कटार जैसे हथियार कपड़ो में छुपाकरके रखते गुफ़ा और कंदराओं से छापामारी खूब करते थे मुट्ठीभर सैनिक लिए वे पहाड़ी चूहों से दुबकते थे आदिल शाह ने चालाकी से शाह जी को किया नज़रबंद फ़िर भी आदिल तोड़ न पाया वीर शिवा का चक्रव्यूह बड़ी साहिबा बीजापुर ने अफ़ज़ल खान को भेजा था उसने जो गड्डा खोदा था वो ख़ुद ही जमीदोज हुआ शाइस्ता खान बराती बनकर औरंगजेब का संदेसा लाया तीन उंगलियाँ कटवा...
उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल
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उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। अश्वमेघ को दौड़ रहा है, अहंकार का...
जीवन का सत्य
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जीवन का सत्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन का तो अंत सुनिश्चित, मुक्तिधाम यह कहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रीति, नीति से जीने में ही, देखो नित्य भलाई है। दूर कर सको तो तुम कर दो, जो भी साथ बुराई है।। नेहभाव ही सद्गुण बनकर, पावनता को गहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम में सत्य समाया, बात को समझो आज। साँसें तो बस गिनी-चुनी हैं, मौत का तय है राज।। बड़ा सफ़र है मुक्तिधाम का, मोक्ष को तो जो दुहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रहे मुक्ति की चाहत सबको, सच्चाई को जानो। मोक्ष मिले यह जीवन जीकर, बात समझ लो, मानो।। कितना भी हो बड़ा राज्य पर, कालचक्र में ढहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम तो बड़ा तीर्थ है, सबको जाना होगा। ...
दो पल साथ निभाओ तो …
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दो पल साथ निभाओ तो …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ छुड़ाकर किधर चल दिए, दो पल साथ निभाओ तो। चार दिनों का जीवन है ये, कान्हा दर्श दिखाओ तो।। तुम बिन मुश्किल जीना मेरा, रास बिहारी आ जाओ। मीरा जैसी व्याकुल रहती, वंशी मधुर सुना जाओ।। ग्वाल बाल बेहाल सभी हैं, आकर के समझाओ तो। द्रुपद सुता भी राह देखती, दुष्ट दुशासन को मारो। भक्तों की रक्षा हो कान्हा, उनको भी पार उतारो।। किया सुदामा से जो वादा, कान्हा उसे निभाओ तो। अत्याचार बढ़ा है जग में, क्रोध लोभ की माया है। संयम का तो नाम नहीं है, राग -द्वेष भरमाया है।। वध कर दो अब दंम्भ कंस का पापी सबक सिखाओ तो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति ...
मानवता का गान
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मानवता का गान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। भेदभाव में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं। मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।। नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल। पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल।। अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, नहीं खुशी पाओगे। जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे।। हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा। वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा।। देव नहीं,म...
शूलों से भरा प्रेम पथ
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शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
संघर्ष का गीत
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संघर्ष का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हर मुश्किल से जूझ तू, रहकर के गतिशील। विपदाओं में ठोक दे, तू इक पैनी कील।। गहन तिमिर डसने लगा, भाग रहा आलोक। पर तू रख यदि हौसला, तो हारेगा शोक।। संघर्षों को जीतकर, रचना है इतिहास। धूमिल हो पाये नहीं, तेरी पलती आस।। जीवन कांटों से भरा, रखना होगा ध्यान। अनगिनत तो जंजाल हैं, लाते जो अवसान।। बच तूू नित्य अनर्थ से, रीति,नीति ले मान। जग तुझको देगा तभी, जीवन में सम्मान।। जो करता है पाप को, उसका घटता ताप। इस संसारी खेल मे, हर क्षण है अभिशाप।। हिंसा यहाँ अनर्थ है, और छोड़ना धर्म। मानवता के नाम पर, कर तू अच्छे कर्म।। बच अनर्थ से नित्य ही, खुश होंगे भगवान। तू पाएगा शान तब, कदम-कदम सम्मान।। है अनर्थ संताप सम, हर लेता जो जोश। मानव जाता नित्य तब, रोगों के आगोश।। रह अनर्थ से दूर तू, तो पाएगा हर्ष। ह...
प्रीतम पावस बन कर आए
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प्रीतम पावस बन कर आए

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीतम पावस बन कर आए, बरसे मन की अँगनाई में। खनक उठे कँगना भी मेरे, बीते दिन की तरुणाई में।। नव किसलय आये बागों में मधुकर उपवन-उपवन डोले मधु से भरी हुई कलियों का, हौले-हौले घूँघट खोले।। जीवन में माधव आया है, खोया मन अब शहनाई में प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। साँस-साँस पर नाम लिखा है, सपनों की नित गूथूँ माला। तुम मेरे कान्हा मैं राधा, जादू कैसा प्रियतम डाला।। गीत प्रणय के गातीं झूमूँ, मैं कोयल सी अमराई में। प्रियतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। प्रेमपाश में बँधी पिया मैं, नशा प्रीति का जैसे छाया। गाल लाल पिय हुए छुअन से, निखरी कंचन सी है काया।। तुम्हें खोजनी उतरी चितवन, दृग -झीलों की गहराई में। प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। पर...
घनघोर घटाएँ
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घनघोर घटाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** छाईं हैं घनघोर घटाएँ, तन-मन को आनंदित कर दे। अंतस् का तम दूर सभी हो, जीवन को अनुरंजित कर दे।। नेह-किरण तेरी मिल जाए, दुविधा में जीवन है सारा। मधुरस नैनों से छलका दो, रातें काली, राही हारा।। दम घुटता है अँधियारो में, जीवन पथ को दीपित कर दे। निठुर काल की छाया जग पे, मौत सँदेशा पल-पल लाती। रोते नैना विकल सभी हैं, क्षणभंगुर काया घबराती।। विहग-वृंद सब घायल होते, आस-दीप आलोकित कर दे। पीर बड़ी है पर्वत से भी, टूटी सारी है आशाएँ। क्रंदन करती है ये धरती, पग-पग पर देखो बाधाएँ।। डूबी निष्ठाओं की नौका, प्रेम-बीज को रोपित कर दे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
नये साल का गीत
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नये साल का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प...
पौष-माघ के तीर
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पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर। भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।। काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा। भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।। मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१ नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी। गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।। पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२ बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा। विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।। खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
मादक नैन
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मादक नैन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं। सुरभित यौवन ले अँगड़ाई, प्रियतम हमें बिसारे हैं।। निश्छल प्रीति हमारी साजन, सावन-सी मदमाती है। दुग्धमयी निर्झरिणी-सी ये देख तुम्हें इठलाती है।। प्रियवर बसते हो तुम हिय में, हर पल राह निहारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ मादक नैन हमारे हैं।। करते व्याकुल नयन प्रतीक्षा, कंचन काया मुरझाई। प्रणय सेज हँसती हैं मुझ पर, प्रतिपल डसती तन्हाई मौन अधर, पायल के घुँघरू, निशदिन तुम्हें पुकारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। खोई मधुऋतु की है सरगम, दुख के बादल मँडराते। छाया है घनघोर अँधेरा, जलते जुगनू घबराते।। पीड़ाओं के भँवर-जाल में, डूबे सभी किनारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी...
हुई समीरण संदल
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हुई समीरण संदल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन के उर्वरा धरा पर, खिले प्रीति के पाटल। नाचे मन चंचल।। भावों का प्रस्पंदन तन में, लेने लगा हिलोरे। स्वप्निल चित्र छापने वाले, पृष्ठ पड़े जब कोरे।। प्रस्वेदी तन लगा महकने, हुई समीरण संदल।। नाचे मन चंचल.... (१) दिव्य प्रगल्भा सम्मोहन की, कुसुमित सेज सजाती। चटुल दृगों के संकेतों से, मुझको पास बुलाती।। लोहित लब पर मधु नद जैसे, स्वर उसके हैं प्रांजल।। नाचे मन चंचल....(२) स्वाति बूँद की आस सजाये, मन का चातक डोले। स्वागत में अभिसारी दृग भी, द्वार प्रणय का खोले।। ऋतुपति ने छू किया पलाशी, दग्ध देह का अंचल।। नाचे मन चंचल....(३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
सुबह सुहानी…
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सुबह सुहानी…

विश्वम्भर पाण्डे "व्यग्र" गंगापुर सिटी (राजस्थान) ******************** सुबह तुम कितनी सुहानी। शीतल-मंद हवा कहे तेरी कहानी।। पूर्व में सिंदूर रंग बिखरा हो जैसे उतंग-शिखरों का रूप निखरा हो जैसे पात-पात में आई अब तो जवानी सुबह तुम कितनी सुहानी। विहग-वृंद उड़ रहे आकाश में बिखरे हुए हैं ओसविंदु घास में जा चुकी संसार से अब रातरानी सुबह तुम कितनी सुहानी। सुबह ही है जो दिन का आरंभ करती सुबह के कारण यहाँ पर सांझ ढ़लती दिवस तेरा ॠणी रहेगा हे विभारानी सुबह तुम कितनी सुहानी। प्रकृति का श्रृंगार बनकर रोज आती दिन का दे उपहार फिर चली जाती नदियां पोखर झील पर आई रवानी सुबह तुम कितनी सुहानी। दूध दुहने के स्वर भी आ रहे हैं दही-बिलौने भी गीत गा रहे हैं फैला कर पंख नाचे मयूररानी सुबह तुम कितनी सुहानी। धीरे धीरे भास्कर का आगमन छिटकती धूप से सब प्रसन्नमन पक्षियों के स...
प्रभु राम
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प्रभु राम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभु राम का आभार है, हो सृष्टि पालन हार। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। करुणा हृदय बसती प्रभो, करते तिमिर का नाश। रघुकुल शिरोमणि राम हैं, वो तोड़ दें यम पाश।। संबल हमें देते प्रभो, रामा गुणों की खान। मैं हूँ पुजारिन राम की, रघुवर मुझे पहचान।। रघुनाथ तेरी दास मैं, दे दो जरा उपहार। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। टूटे नहीं विश्वास है, रघुवर रखो अब ध्यान। नारी अहिल्या तारते, करते सदा सम्मान।। देते सुखों की छाँव है, रघुवर प्रभो वरदान। पावन धरा की राम ने, करते सभी गुणगान।। नायक जगत के आप हैं, कर स्वप्न भी साकार।। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। वंदन करें नित आपका, आकर प्रभो अब थाम। चरणों पड़े तेरे सदा, दातार प्यारे राम।। शबरी कहे रघुवर सुनो, पहुँचा...
परदेशी साजन
गीत

परदेशी साजन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आजा सजन बने परदेशी, बरखा करे पुकार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। नभ में गरज रहे बादल अब, वन में नाचे मोर। रिमझिम बूंदे शोर मचातीं, मनवा भाव विभोर।। श्यामल मेघ में चपला चमके, भ्रमर करेंं गुंजार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। ढ़ोल नगाड़े गगन बजाता, बादल गाते गीत। साज संगीत नहीं सुहाता, भूले सजना प्रीत।। कोयल कू -कू पीर बढ़ाती, छूटा है शृंगार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। अंग -अंग पुलकित धरती का, जागा है अनुराग। ओढ़ हरी चुनरिया सजी है, प्रियतम अब तो जाग।। हँसी ठिठोली सखियों की अब, चुभती है भरतार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्...
शूलों से भरा प्रेम पथ
गीत

शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
हम बासी उपमाओं से
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हम बासी उपमाओं से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से। साध लिया है लक्ष्य व्यंजना ने जुगाड़ कर। हार गया अभिधा का भाषण लट्ठमार कर।। जीत न पाये जीवन का रण प्रतिमाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। १ वंचित रहे विशेषण अपने कर्म पंथ पर। सर्वनाम हम, हिस्से आया गरल सरासर।। जान बचाने भाग रहे हम संज्ञाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। २ कूड़ा-करकट धूल हुए उपमान हमारे। संबंधों की नदियों ने दो दिए किनारे।। किंतु बहें हम नौ रस बन के कविताओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ३ तथ्य हीन शब्दों के जाले में नित उलझे। प्रश्न प्यास के रहे उम्र भर ही अनसुलझे।। हाथ जलाते रहे रोज हम समिधाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ४ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
तुलसी आँगन की
गीत

तुलसी आँगन की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँद खिला दिव्य निशा, आस पिया आवन की। प्रीति चकोरी कहती, बूँद गिरी सावन की।। रात हुई याद करूँ, श्याम गले आज लगा। रूठ गये स्वप्न सभी, गीत सुना प्रेम जगा।। भोर हुई चैन मिला, पंख लगे ग्वाल सखी। वेणु बजे प्रीति निभा, ढूँढत गोपाल सखी।। प्रेमिल बाजे धुन भी, बात करे साजन की। वंशी की तान कहे, यौवन के तीर चले।। रास रचा आज मिलें, रात कभी ये न ढले।। सोलह शृंगार किये, झूमत गोरी कहती। बाजत है कंगन भी, कुंतल वेणी सजती।। दुग्ध धवल धार बहे, बात करें पावन की। प्राण पिया काम बसे, वाण चले हैं छलिया। प्रेम सुधा आज पिला, अंतस् में हो रसिया।। सांस मिले साँस पिया, बंधन तोड़ो सजना। घूँघट को खोल पिया, देख रही हूँ सपना।। नित्य निहारे छवि भी, ये तुलसी आँगन की। परिचय :- मीना भट्ट...
आराध्य राम
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आराध्य राम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आराध्य राम की पूजा में, मैं सारी उम्र बिताऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। धर्म-नीति के जो रक्षक, हैं नित्य सदा ही हितकारी। उनकी गरिमा-महिमा पर मैं, हूँ बार-बार बलिहारी।। आराध्य राम की गाथा को, मैं संग समर्पण गाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। अंतर मेरा पावन होगा, जब राम नित्य मैं बोलूँगा। तब साँच सदा मुखरित होगा, जब भी मैं मुँह को खोलूँगा।। आराध्य राम मंगलमय हैं, मैं बार-बार दोहराऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। पाप,शोक,संताप मिटे, मैं हर सुख से भर जाऊँगा। सब होंगे मेरे नित प्यारे, मैं भी तब सबको भाऊँगा।। आराध्य राम नित हितकारी, मैं जीवन-सुमन खिलाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारा...
मुस्कानों का गीत
गीत

मुस्कानों का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मुस्कानों को जब बाँटोगे, तब जीने का मान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल पेट है भूखा, तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा वहीं जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा देव नहीं, मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है। मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।। ख़ुद तक रहता है जो सीमित, वह बिरथा इंसान है अवसादों को अपनाता जो, वह पाता अवसान है अंतर्मन में नेह ...
इसके जद में सब आयेंगे
गीत

इसके जद में सब आयेंगे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तूफ़ानों-सी बढ़ी रैलियाँ, समरसता का वंश मिटाने। इसके जद में सब आयेंगे।। सघन तिमिर है आम्र वृक्ष भी, लगे खड़ा हो प्रेत वहम का। संस्कारित कुछ शृंग-श्रेणियाँ, खोज रही अस्तित्व स्वयं का। अनुबंधों की धुँधली शर्तें, बनकर मौत खड़ी सिरहाने।। इसके जद में सब आयेंगे।। सावन के घन संभाषण से, कर देते हैं जादू-टोना। अलगावों के दावानल में, सुलग उठा है कोना-कोना।। विश्वासों की मीनारों में, दिखते हैं अब रोग पुराने।। इसके जद में सब आयेंगे।। अट्टहास मौसम का सुनकर, पंछी होने लगे प्रवासी। धुआँ-धुआँ है सभी दिशाएँ, आँखों में निस्सीम उदासी।। जिह्वा पर ताले के भूषण, आजादी पर मारे ताने।। इसके जद में सब आयेंगे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना ...
गीत साहस का
गीत

गीत साहस का

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस को यदि पंख लगाओ, तो मिट जाये उलझन। असफलता मिट जाये सारी, भरे हर्ष से जीवन।। बने हौसला गति का वाहक, प्रीति-नीति सिखलाता। कर्मठता का ज्ञान कराता, जीवन-सुमन खिलाता।। अंतर्मन जो दीप जलाते, उनका महके आँगन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। साहस की महिमा है न्यारी, चमत्कार करता है। पोषित होता जहाँ उजाला, वहाँ सुयश बहता है।। शुभ-मंगल के मेले लगते, जीवन बनता मधुवन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। नित्य हौसला रखे दिव्यता, जो तेजस मन करता। अंतर को जो आनंदित कर, खुशियों से है भरता।। कर्मों को देवत्व दिलाता, कर दे समां सुहावन। व्यथा, वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से तन-मन।। साहस लाता सदा दिवाली, नगर- बस्तियाँ शोभित। उजला आँगन बने देव दर, सब कुछ होता सुरभित।। अंतर्...
घनघोर घटाएँ
गीत

घनघोर घटाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** छाईं हैं घनघोर घटाएँ, तन-मन को आनंदित कर दे। अंतस् का तम दूर सभी हो, जीवन को अनुरंजित कर दे।। नेह-किरण तेरी मिल जाए, दुविधा में जीवन है सारा। मधुरस नैनों से छलका दो, रातें काली, राही हारा।। दम घुटता है अँधियारो में, जीवन पथ को दीपित कर दे। निठुर काल की छाया जग पे, मौत सँदेशा पल-पल लाती। रोते नैना विकल सभी हैं, क्षणभंगुर काया घबराती।। विहग-वृंद सब घायल होते, आस-दीप आलोकित कर दे। पीर बड़ी है पर्वत से भी, टूटी सारी है आशाएँ। क्रंदन करती है ये धरती, पग-पग पर देखो बाधाएँ।। डूबी निष्ठाओं की नौका, प्रेम-बीज को रोपित कर दे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
नवा सोच अऊ नवा उमंग
गीत

नवा सोच अऊ नवा उमंग

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी गीत) नवा सोच अऊ नवा उमंग युवा शक्ति के जब होथे गठन सुवा गीत के तर्ज म समर्पित रचना... तरी हरी नाना मोर नाना रे नाना हो चलो युवा शक्ति ल जागाबो.. महिमा बढ़ भारी हे युवा शक्ति के ग भईया युवा होय के फरज ल निभाबो...।। मारबो गुलाटी भेदभाव ल भईया भाईचारा के गठरी म बंधा जाबो आवत हमर नवा पीढ़ी खातिर बर रद्दा सुघ्घर गढ़ जाबो.. चलो जुर - मिल सुंता के बीड़ा उठाबो हमर संस्कृति अऊ परंपरा उजियार करे बर कंधा से कंधा मिलाबो ... युवा शक्ति मिशाल बनके ग भईया सभ्य समाज गढ़ जाबो... तरी हरी नाना मोर नाना रे नाना युवा शक्ति ल जागाबो.. परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...