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गीत

तुमसे अलग हो कर
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तुमसे अलग हो कर

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है माँ कामो मे उलझा रह कर भी याद करता माँ आँखों मे सपने भरे पर सपने तुमसे है तुम मुझमे कुछ यूँ बसी सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने मे तुम साथ देना माँ . तुमसे अलग ….. रात को सर पे तेरी थापे याद आती है आँगन की वो किलकारी भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूँ तुम याद आती माँ तुमसे अलग…. अँधियारा होने पर माँ तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के मेरा सर सहलाती थी उन लम्हो मे मै फिर से जीना चाहता हूँ माँ तुमसे अलग.... शाम को घर वापस आता न कोई मिलता है पूरा दिन सब क्या किया न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच ते सब सह लेता हूँ माँ तुमसे अलग…. . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक...
कर्तव्य
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कर्तव्य

संजय जैन मुंबई ******************** दीये का काम है जलना। हवा का काम है चलना। जो दोनों रुठ जाएंगे। तो मिट जाएगी ये दुनिंया।। गुरु का काम है शिक्षा देना। शिष्य का काम शिक्षा लेना। जो दोनों भटक जाएंगे। तो दुनियाँ निरक्षक हो जायेगी।। पुत्र का काम है सेवा करना। मातपिता का काम है पालन पोषण करना। जो दोनों एक दूसरे से मुंह मोड़ लेंगे। तो सारी दुनिंया बदल जाएगी।। इसलिए संजय कहता है, करो अपने कर्तव्यों का पालन। तभी सुंदर बन सकता, अपना ये वतन। इसलिए हमारा देश विश्व मे सबसे न्यारा है। जहाँ हर महजब के लोग हिल मिलकर रहते है।। जहाँ हर........।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहि...
साथ मिले तो
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साथ मिले तो

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे प्यार का मुझको, यदि मिले जाए आसरा। तो जिंदगी हंसकर के, गुजर जाएगी यू ही। दिल के अंधेरे में एक, प्रकाश की किरण जलेगी। और मेरा अकेलापन, शायद दूर हो जाएगा।। तुझे देखकर दिल, मेरा धड़कने लगा है। बुझे हुए दीये, फिर से जलने लगे है। कुछ तो बात है तुममें जो दिल की धड़कन हो मेरी। तभी तो उजड़े हुए बाग को, फिरसे खिला दिया तुमने ।। दिलों का मिलना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तुमसे प्यार होना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तभी तुम बार बार मेरे, सपनो में आते जाते हो। ये कोई इत्तफाक नही, तेरे दिल में भी कुछ तो है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहु...
परोपकार
गीत

परोपकार

संजय जैन मुंबई ******************** दीपक खुद जलकर के, अंधेरा दूर करता है। गुरु शिष्यों को शिक्षा देकर, उन्हें लायक बनाता है। तभी तो दुनियाँ में, इंसानियत जिंदा है। और ये दुनियाँ इसी तरह, से निरंतर चलती रहेगी।। तपस्या करने वाला, सच्चा साधक होता है। वो अपने तप और ज्ञान से, दुनियाँ को महकता है। परन्तु कुछ अपवाद, इसमें भी देखे जा रहे। अपने अहंकार के कारण खुदी वो मिटा रहे।। जो करते है निस्स्वार्थ भाव से, सेवा और भक्ति को। उन्हें ही मनबांछित फल, निश्चित ही मिलता है। तभी तो आज भी गुरु और भगवान में । लोगो की आस्था, आज तक जिंदा है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत स...
यादों के सहारे
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यादों के सहारे

संजय जैन मुंबई ******************** पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। तुझे याद है कि नहीं, मुझे कुछ पता नही। तेरी बेरुखी अब मुझसे, नहीं देखी जा रही। तुझे कुछ पता है कि में कैसे जी रहा तेरे बिना।। मुझे मालूम होता कि, मोहब्बत में ये सब होगा। तो में निश्चित ही ये दिल, किसी से भी न लगता। मगर मोहब्बत कोई करता, नही सोच समझकर। ये दिल तो अपने आप, किसी से लग जाता है।। मोहब्बत का दस्तूर ही, कुछ ऐसा होता है। किसको खुशीयाँ देता है, तो किसको गम भी देता है। यही तो जिंदगी का सही, चक्र जीवन में चलता है। किसको प्यार मिलता है, किसको नफरते मिलती।। मोहब्बत करने वालो का, अलग ही अंदाज होता है। पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। और जामने के दर्द को पिये जा रहा हूँ अब तक।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई मे...
बना के ग़ज़ल तुझको
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बना के ग़ज़ल तुझको

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** इक बना के ग़ज़ल तुझको हम गाएंगे। छोंड़ करके शहर तेरा हम जाएंगे।। कर ले दो चार प्यारी मधुर कोई बात। फिर ना आऐगी ऐसी सुहानी सी रात।। दूर रह के भी नज़दीक हम पाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। प्यार मे यूँ बिछड़ना ज़रूरी भी है। दूर रह के महकना ज़रूरी भी है।। लाख कर ले तू कोशिश हम याद आएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। यह परीक्षा तुम्हारी हमारी भी है। कितनी मीठी मधुर अपनी यारी भी है।। वादा है तेरी महफ़िल मे हम छाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। कुछ यूं हीं दूर रहकर भी जीते हैं हम। यह जहर भी जुदाई का पीते हैं हम।। सब्र कर मिलने के दिन, भी हम लाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। . परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
हमनें तेरे लिए
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हमनें तेरे लिए

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हमनें तेरे लिए हर कसम तोड़ दी दुनिया तेरे लिए हमनें यू छोड़ दी बस तमन्ना यही दिल मे है बस मेरे आप भी अब इन्हें छोड़ दें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। हाथ मे हाथ बस यूं तुम्हारा रहे एक दूजे का हम यूं सहारा रहें गिर पड़े हम अगर यूं कहीं राह मे एक दूजे को बढ थाम लें आओ संग कहीं मिल कर चलें।। चलें ऐसी जगह ढूंढ कर हम कहीं चिडियाँ चहके जहाँ फूले कलियाँ कहीं प्यार ही प्यार हो जिस चमन मे सनम उस चमन की तरफ हम चलें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। . परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
तुम्हारी याद जब आती
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तुम्हारी याद जब आती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहाता हूँ। जुगनू पूछते हमसे कोहरे का पकड़ दामन पुष्पों के नाज पर भवरे बने घूमते हैं यू उन्मन जख्मी ही समझ सकते हैं। कसक जो गीत गाता है। तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहता हूँ। धरा पर अंधियारी छाती लुटाती स्वप्न की दुनिया तभी तुम पास आ जाते हैं अचानक जब नींद खुलती एकांकी हाथ पाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती तड़प अश्रु बहाता हूँ। अलग टूटे हुए दिलों में लहर उच्छवास की आती तुम ही पर यह लगी नयने सदा बरसात कर जगाती तड़पकर आह भरकर मै सदा रजनी गँवाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती........ . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
रिश्ते में बंधे
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रिश्ते में बंधे

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे आने का मुझको, बहुत इंतजार रहता है। तेरे जाने का मुझको, बहुत गम भी होता है। ये आना और जाना, बंद हो सकता है? अगर बंध जाये दोनों एक पवित्र रिश्ते में।। मोहब्बत करना और निभाना, बहुत बड़ी चुनौती है। जो हर किसी के बस की बात, नही होती है यारो। तभी बहुत सी मोहब्बतें, बीच में ही टूट जाती हैं। फिर वो दोनों प्रेमी जन, कही के भी नहीं रहते।। तमन्नाएं बहुत होती हैं, दो जबा दिलों में। मोहब्बत करने का ज़ुन्नुन, दिल दिमाग पर रहता हैं। मगर अंजाम का उन्हें, पता कुछ भी नहीं होता। की इस रास्ते पर कितने कांटे, अभी चुभना बाकी हैं।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं ह...
विषमताओं की लकीरें
गीत

विषमताओं की लकीरें

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** विषमताओं की लकीरें, घेर मेरा मग खड़ी है। राह कैसे देख पाऊं, तिमिर की रेखा बड़ी है। वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! मेघ भी देता सुकूँ कब, गर्दिशों का रेत फैला। पाक जो दामन हमारा, वक्त कर पाया न मैला। लुभाती मुझ को रही, सुगंधि तेरी देह की थी......! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! पेड़, जंगल सब कटे जो, साक्ष्य थे दीवानगी के। पशु, पक्षी, गिरि, गह्वर, आराध्य थे रवानगी के। मरू फैला दूर तक इक आस रिमझिम मेंह की थी।...! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।...! काल का ये फेर सारा, काल की सारी खुदाई। मिलन होकर भी लिखी थी, भाग्य में उनसे जुदाई। लुटा कर सब कुछ बचा, ये फुहारें स्नेह की थी।.....! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।.....! .   परिचय :-  लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५...
साथी
गीत

साथी

संजय जैन मुंबई ******************** कटती नहीं उम्र अब तेरे बिना। मुझको किसी से मानो प्यार हो गया। जिंदगी की गाड़ी अकेले अब चलती नहीं। एक साथी मुझे अब जरूरत आ पड़ी।। मिलना मिलाना जिंदगी का दस्तूर है लोगो। खिल जाता है दिल जब कोई अपना मिलता है यहां। जिंदगी के इस सफर में मिलकर चलो सभी। यूँही जिंदगी हंसते हुए गुजर जायेगी।। मतलबी लोगो से थोड़ा बच के तुम चलो। कब धोका तुम्हें दे देंगे पता चलेगा भी नहीं। इसलिए अपनेपन की परिभाषा तुम सीखो। फिर उसके अनुसार ही अपनो को तुम चुनो।। जीवन तुम्हारा सही में संभाल जाएगा। हर मुश्किल की घड़ी में तुम्हें दिख जाएगा। कौन कौन तेरे साथ खड़े है मुश्किल की घड़ी में। सब कुछ तुझे समाने नजर आएगा।। अच्छे बुरे लोग सभी तुझे दिख जाएंगे। संसार का चक्र तुम्हें दिख जायेगा। जिंदगी को जीना कोई आसान काम नहीं। मिल जुलकर जीओगें तो जिंदगी में आनदं आएगा।। . परिचय :- बीना (मध्यप्र...
चोट छुपती नही
गीत

चोट छुपती नही

संजय जैन मुंबई ******************** गीत लिखते हो तुम, गीत गाता हूँ में। सुन कर मेरा गीत, मुस्कराते हो तुम। मेरे धड़कनो में, बस गए हो तुम। दिल मेरा अब, मेरे बस में बिल्कुल नही। कैसे तुम को बताऊं, हा ले इस दिल का। चोट दिल पर लगी, जो छुपती नही। कुछ दवा या म्हलाम, तुम लगा दो इस पर। हम तेरी शरण में, आये है जानम।। अब रहा जाता नहीं, तेरे गीतों को गा के। दिल बहुत बैचैन, मेरा हो जाता है। तेरे दिल में, जो भी चल रहा है। एक बार तुम आकर, तुम मुझसे कहा दो। शायद दोनों के दिल, एक हो जाएंगे। एक नया इतिहास, हम दोनों लिख जाएंगे। और मोहब्बत अपनी, अमर कर जाएंगे।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक...
वाणी सुनो
गीत, धर्म, धर्म-आस्था

वाणी सुनो

संजय जैन मुंबई ******************** विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। ज्ञानसागर दिव्य ध्वनि सुनो। जैन धर्म का पालन करो। विद्यासागर की वाणी सुनो।। आज हम सबका यह पुण्य है। मिला है हमें मनुष्य जन्म ..। किये पूर्व में अच्छे कर्म। इसलिए मिला मनुष्य जन्म। गुरुवर के मुखर बिंदु से। जिनवाणी का ज्ञान प्राप्त करो।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। वीर प्रभु जी की एक छवि। सदा दिखती है उनमें हमे.... । वीर प्रभु के कथनो को। साकार करने आये धरती पर । कलयुग में मिले है हमें । सतयुग जैसे गुरुवर।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। सदा आगम का अनुसरण करे। उसके अनुसार ही वो चले ... । बाल ब्रह्मचारियों को ही। वो देते है दीक्षाएं। पहले भट्टी में उन्हें तपते। सोना बनाकर ही छोड़ते है।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। संजय की प्रार्थना सुनो अग...
भूल मत जाना …
गीत

भूल मत जाना …

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर, चहकने चली आँगन सैंया। राखी की डोर याद रखना सदा दिल से निकाल कर मत देना सजा बहना की सुध-बुध लेते रहना कभी-कभी दुआ है ईश्वर से खुशी मिले तुम्हें सभी। भूल मत जाना बहना को भैया, रक्षा करना हरदम मेरी डूबती नैया। एक ही आरजू करती है बहना प्यारी स्नेह की वर्षा करते रहना शीश पर हमारी खो मत जाना धन की अंधी गलियों में बँध कर रहना अनोखे भाई-बहन रिश्तों में भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर चहकने चली आँगन सैंया।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
हमारे गाँव
गीत

हमारे गाँव

संजय जैन मुंबई ******************** गाँवों की संस्कृति का, कहना है क्या यारों। लोगों के दिलों में, बसता है जहां प्यार। इंसानियत वहां पर, जिंदा है अभी यारों। कैसे भूल जाएं, अपनी संस्कृति को। मिल बैठकर बाटते हैं, गम एक दूसरे के। जब भी कोई विपत्ति, आती है सामने से। सब मिलकर उसका, हल निकालते हैं। ऐसे हमारे मुल्क के, गाँव वाले ही होते हैं।। इतिहास को उठाकर, देखो जरा लोगों। गाँवों से ही निकले हैं, वीर महान योध्दा। अभी हाल में कितने, खिलाड़ी निकल रहे हैं। अपने देश का वो, नाम रोशन कर रहे हैं। गाँवों की संस्कृति का, आज भी जवाब नहीं हैं।। तभी तो कहते है कि मेरा भारत महान।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी र...
प्यार का महल
गीत

प्यार का महल

संजय जैन मुंबई ******************** मिलना बिछड़ना यारों, जिंदगी का एक पहलू है। वहां तुम तड़प रहे हो, यहां हम तड़प रहे है। मदहोश ये निगाहें, तुमको ही खोज रही है। जिसे तुम देख रहे हो, वो तेरे सामने खड़ा है।। किस्सा ये मोहब्बत का, किसने शुरू किया है। दिल बहुत मचलता, जब सामने से वो निकलते। न पाने की है चाहत, और न खोने का डर है। वो मेरे दिल में बसते, हम उनके दिल में रहते।। जब भी होते है अकेले, याद वो ही आते रहते। खाली पना ये दिल का, उनके बिना नही भरता। कैसे कहे हम उनसे, बन जाओ मेरी तुम सांसे। जिंदगी जियेंगे दोनों, हिल मिलकर यहां पर। करके मोहब्बत दोनों, बनायेंगे एक प्यार का महल।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
आज़ गुलिस्ताँ मेँ
गीत

आज़ गुलिस्ताँ मेँ

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** आज़ गुलिस्ताँ मेँ, सुंदर पुष्पहार देखा, प्रकृति का मनोरम सा उपहार देखा, वन श्री सँपन्न है, विविध फलोँ से वन प्रांतर के जीवोँ का, आहार देखा, भागते हैँ, मैदानोँ मेँ, निर्भय वन्य जीव, घास मेँ छिपे, बाघ का, प्रहार देखा, सदियोँ से बसे थे, ज़ो आदिवासी ज़न, उजडते जंगलोँ मेँ, उन्हेँ निराहार देखा, गरज़ परस्त बनी इस दुनिया मेँ, दोस्त, हर दिन इंसान का बदलता व्यवहार देखा . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...
दिल आया मझधार में
गीत

दिल आया मझधार में

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** कभी रुखसत जो हुई यादें, हम हंसकर रो लिए, तेरे ख्वाबों को बना कर मोती, ख्यालों में पिरो लिए, उन रोती हुई आंखों की धार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी, घेर खड़ा हुआ तिमिर, सांस हार ने को तैयार न फिर भी, हारने लग गया शरीर, जीती लड़ाई हारे हम करार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। वो रोशन हुई रात अमावस की, जब चांद से हटा घूंघट, लब न बोले नज़रे भी झुक गई, फिर बोला मुझसे लिपट, मेरा तन रोशन है तेरी बहार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था, शंकाओं की घटा ने घेरा था, संग संग में सदा रहे हरपल शाम में, संग में गुजरा हर सवेरा था, संग छूटा इक गलती की मार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...
गम के सिवा
गीत

गम के सिवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** गम के सिवा क्या दिया मैंने तुमको, तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... मुझे भूल जाना सपना समझकर, दिल में ना रखना कोई याद मेरी। मेहफूज रखे खुदा हर बला से, चाहे ज़िंदगी कर दे बर्बाद मेरी।। दुआओं भरे गीत अब गाऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... उन रास्तों पर कभी तुम ना जाना, जहां बीती यादें सतायेंगी तुमको। गूंजेंगी कानों में आवाज मेरी, बुलायेंगी तुमको,रूलायेंगी तुमको।। लेकिन नजर ना कहीं आऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभ...
आचार्यश्री से प्रार्थना
गीत

आचार्यश्री से प्रार्थना

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l सच की डगर दिखा, गुरुदेव प्रार्थना है l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणमl ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll हम है तुम्हारे बालक, कोई नहीं हमारा l मुश्किल पड़ी है जब भी, तुमने दिया सहारा l चरणों में अपने रख लो, चन्दन हमें बना दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l१l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll पूजन तेरा गुरवर, अधिकार मांगते है l थोड़ा सा हम भी तेरा, बस प्यार मंगाते है l मन में हमारे अपनी सच्ची लगन जगा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l२l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll अच्छे है या बुरे है, जैसे भी है तुम्हारे l मुंकिन नहीं है अब हम, किसी और को पुकारे l अपना बन लो हमको, अपना वचन निभा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l३l ॐ ...
राम
गीत

राम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “कलियुग मेँ त्राता हैँ राम, सबके विधाता भी हैँ, राम, न पाओगे उन्हेँ मंदिर मेँ, हृदय तल मेँ बसे हैँ राम, जीवन की आपा धापी मेँ, एक सुगंधित बयार हैँ,राम, समझो, सभी, ये सत्य है, कि, नर भूपाल नहीँ हैँ, राम, पृथ्वी आकाश पाताल मेँ, अनादी और अनंत हैँ राम, पाप की गठरी, को भूलकर, भवसागर पार कराते हैँ, राम लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैं...
उठालो कलम
गीत

उठालो कलम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. समांत :- आ पदांत :- गया है “उठालो कलम समय ये कैसा आ गया है, हर शहर मेँ मानव भय से घबरा गया है, चहकतीँ थीँ चिडियाँ, जिन घरोंदे मेँ, अब तक, वहाँ पर शमशान का सन्नाटा छा गया है, जिन बडी ऊम्मीदोँ से बनाये थे हमने घरोंदे, बरसोँ से कोई वहाँ, झाकने भी नहीँ गया है, जिस माँ से घंटोँ होती थी, बच्चोँ की बातचीत, दो मिनिट बात के लिये, कोई, तरसा गया है, छिटक दो सारे दुख, अपना कर किसी गैर को, ईश्वर पर अटूट विश्वास का समय आ गया है.”   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संक...
सुंदरता की….
गीत

सुंदरता की….

********** संजय जैन मुंबई नही होती सुंदरता किसी के भी शरीर में। ये बस भ्रम है अपने अपने मन का। यदि होता शरीर सुंदर तो कृष्ण तो सवाले थे। पर फिर भी वो सभी की आंखों के तारे थे।। क्योंकि सुंदर होते है उसके कर्म और विचार में। तभी तो लोग उसके प्रति आकर्षित होकर आते है। वह अपनी वाणी व्यवहार और चरित्र से जाना जाता है। तभी तो लोग उसे अपना आदर्श बना लेते है।। जो अर्जित किया उसने अपने गुरुओं से ज्ञान। वही ज्ञान को वो सुनता है दुनियां को। जिससे होता है एक सभ्य समाज का निर्माण। फिर हर शख्स को ये दुनियां, सुंदर लगाने लगती है। इसलिए संजय कहता है, जमाने के लोगो से। शरीर सुंदर नही होता सुंदर होते है उसके संस्कार।। लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक स...
फल मिलता है
गीत

फल मिलता है

********** संजय जैन मुंबई यदि हो ईमानदार और मेहनती तो। हर लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो। और किया जिसके साथ तुमने काम, वो तुम्हे बहुत सराहेगे। और वक्त आने पर साथ, तुम्हारे खड़ा हो जायेंगे। यही तो कर्मठ निष्ठावान, लोगो की पहचान होती है।। जिसे मिल जाये, बिना मेहनत के राज। तो ऊंचाई पर पहुंचते, ही बहुत इतराते है। और अंधेर नगरी चौपट राजा, वाली कहावत को दोहराता है। और बनी बनाई कार्यप्रणाली को, कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है। फिर अपने ही जाल में, फसकर खुद ही रोते है।। इसलिए स्नेह प्यार से, रिश्ते बनाकर चलो। लोगो की भावनाओ से, तुम मत खेलो। क्योंकि लगती है हाय, जरूर पीड़ित इंसान की। जो मिट्टी में मिला देती है, उसकी विरासत को। फिर कर्म उसे अपने, जरूर याद आते है। पर तब तक बहुत देर हो जाती है। और अपनी हस्ती खुद मिटा देता है।। और इसका दोष ये, लोग किसको देते है? लेखक परिचय :- बीना (मध...
गाँधी
गीत

गाँधी

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. विधा:-- गीतिका (छँद मापिनी मुक्त) “वो खुद पर भरोसा करते थे, सब को साथ लेकर चलते थे, लोगोँ की माली हालत जानने, दूर दराज़ के गाँवोँ मेँ फिरते थे, ज़ब एक बार ज़ो बात ठान ली, उस इरादे से कभी न डिगते थे, अहिँसा को बनाया,हथियार तो, दुनिया मेँ लोग, उन्हेँ पूजते थे, कथनी,करनी मे न रहा फर्क,कभी, बात से अपनी,कभी न पलटते थे, महात्मा ने किया नाम देश का, काम से,दुनिया को रोशन करते थे.’   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...