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गीत

साथी
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साथी

संजय जैन मुंबई ******************** कटती नहीं उम्र अब तेरे बिना। मुझको किसी से मानो प्यार हो गया। जिंदगी की गाड़ी अकेले अब चलती नहीं। एक साथी मुझे अब जरूरत आ पड़ी।। मिलना मिलाना जिंदगी का दस्तूर है लोगो। खिल जाता है दिल जब कोई अपना मिलता है यहां। जिंदगी के इस सफर में मिलकर चलो सभी। यूँही जिंदगी हंसते हुए गुजर जायेगी।। मतलबी लोगो से थोड़ा बच के तुम चलो। कब धोका तुम्हें दे देंगे पता चलेगा भी नहीं। इसलिए अपनेपन की परिभाषा तुम सीखो। फिर उसके अनुसार ही अपनो को तुम चुनो।। जीवन तुम्हारा सही में संभाल जाएगा। हर मुश्किल की घड़ी में तुम्हें दिख जाएगा। कौन कौन तेरे साथ खड़े है मुश्किल की घड़ी में। सब कुछ तुझे समाने नजर आएगा।। अच्छे बुरे लोग सभी तुझे दिख जाएंगे। संसार का चक्र तुम्हें दिख जायेगा। जिंदगी को जीना कोई आसान काम नहीं। मिल जुलकर जीओगें तो जिंदगी में आनदं आएगा।। . परिचय :- बीना (मध्यप्र...
चोट छुपती नही
गीत

चोट छुपती नही

संजय जैन मुंबई ******************** गीत लिखते हो तुम, गीत गाता हूँ में। सुन कर मेरा गीत, मुस्कराते हो तुम। मेरे धड़कनो में, बस गए हो तुम। दिल मेरा अब, मेरे बस में बिल्कुल नही। कैसे तुम को बताऊं, हा ले इस दिल का। चोट दिल पर लगी, जो छुपती नही। कुछ दवा या म्हलाम, तुम लगा दो इस पर। हम तेरी शरण में, आये है जानम।। अब रहा जाता नहीं, तेरे गीतों को गा के। दिल बहुत बैचैन, मेरा हो जाता है। तेरे दिल में, जो भी चल रहा है। एक बार तुम आकर, तुम मुझसे कहा दो। शायद दोनों के दिल, एक हो जाएंगे। एक नया इतिहास, हम दोनों लिख जाएंगे। और मोहब्बत अपनी, अमर कर जाएंगे।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक...
वाणी सुनो
गीत, धर्म, धर्म-आस्था

वाणी सुनो

संजय जैन मुंबई ******************** विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। ज्ञानसागर दिव्य ध्वनि सुनो। जैन धर्म का पालन करो। विद्यासागर की वाणी सुनो।। आज हम सबका यह पुण्य है। मिला है हमें मनुष्य जन्म ..। किये पूर्व में अच्छे कर्म। इसलिए मिला मनुष्य जन्म। गुरुवर के मुखर बिंदु से। जिनवाणी का ज्ञान प्राप्त करो।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। वीर प्रभु जी की एक छवि। सदा दिखती है उनमें हमे.... । वीर प्रभु के कथनो को। साकार करने आये धरती पर । कलयुग में मिले है हमें । सतयुग जैसे गुरुवर।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। सदा आगम का अनुसरण करे। उसके अनुसार ही वो चले ... । बाल ब्रह्मचारियों को ही। वो देते है दीक्षाएं। पहले भट्टी में उन्हें तपते। सोना बनाकर ही छोड़ते है।। विद्यासागर की वाणी सुनो। ज्ञान अमृत का रसपान करो। संजय की प्रार्थना सुनो अग...
भूल मत जाना …
गीत

भूल मत जाना …

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर, चहकने चली आँगन सैंया। राखी की डोर याद रखना सदा दिल से निकाल कर मत देना सजा बहना की सुध-बुध लेते रहना कभी-कभी दुआ है ईश्वर से खुशी मिले तुम्हें सभी। भूल मत जाना बहना को भैया, रक्षा करना हरदम मेरी डूबती नैया। एक ही आरजू करती है बहना प्यारी स्नेह की वर्षा करते रहना शीश पर हमारी खो मत जाना धन की अंधी गलियों में बँध कर रहना अनोखे भाई-बहन रिश्तों में भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर चहकने चली आँगन सैंया।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
हमारे गाँव
गीत

हमारे गाँव

संजय जैन मुंबई ******************** गाँवों की संस्कृति का, कहना है क्या यारों। लोगों के दिलों में, बसता है जहां प्यार। इंसानियत वहां पर, जिंदा है अभी यारों। कैसे भूल जाएं, अपनी संस्कृति को। मिल बैठकर बाटते हैं, गम एक दूसरे के। जब भी कोई विपत्ति, आती है सामने से। सब मिलकर उसका, हल निकालते हैं। ऐसे हमारे मुल्क के, गाँव वाले ही होते हैं।। इतिहास को उठाकर, देखो जरा लोगों। गाँवों से ही निकले हैं, वीर महान योध्दा। अभी हाल में कितने, खिलाड़ी निकल रहे हैं। अपने देश का वो, नाम रोशन कर रहे हैं। गाँवों की संस्कृति का, आज भी जवाब नहीं हैं।। तभी तो कहते है कि मेरा भारत महान।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी र...
प्यार का महल
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प्यार का महल

संजय जैन मुंबई ******************** मिलना बिछड़ना यारों, जिंदगी का एक पहलू है। वहां तुम तड़प रहे हो, यहां हम तड़प रहे है। मदहोश ये निगाहें, तुमको ही खोज रही है। जिसे तुम देख रहे हो, वो तेरे सामने खड़ा है।। किस्सा ये मोहब्बत का, किसने शुरू किया है। दिल बहुत मचलता, जब सामने से वो निकलते। न पाने की है चाहत, और न खोने का डर है। वो मेरे दिल में बसते, हम उनके दिल में रहते।। जब भी होते है अकेले, याद वो ही आते रहते। खाली पना ये दिल का, उनके बिना नही भरता। कैसे कहे हम उनसे, बन जाओ मेरी तुम सांसे। जिंदगी जियेंगे दोनों, हिल मिलकर यहां पर। करके मोहब्बत दोनों, बनायेंगे एक प्यार का महल।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
आज़ गुलिस्ताँ मेँ
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आज़ गुलिस्ताँ मेँ

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** आज़ गुलिस्ताँ मेँ, सुंदर पुष्पहार देखा, प्रकृति का मनोरम सा उपहार देखा, वन श्री सँपन्न है, विविध फलोँ से वन प्रांतर के जीवोँ का, आहार देखा, भागते हैँ, मैदानोँ मेँ, निर्भय वन्य जीव, घास मेँ छिपे, बाघ का, प्रहार देखा, सदियोँ से बसे थे, ज़ो आदिवासी ज़न, उजडते जंगलोँ मेँ, उन्हेँ निराहार देखा, गरज़ परस्त बनी इस दुनिया मेँ, दोस्त, हर दिन इंसान का बदलता व्यवहार देखा . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...
दिल आया मझधार में
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दिल आया मझधार में

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** कभी रुखसत जो हुई यादें, हम हंसकर रो लिए, तेरे ख्वाबों को बना कर मोती, ख्यालों में पिरो लिए, उन रोती हुई आंखों की धार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी, घेर खड़ा हुआ तिमिर, सांस हार ने को तैयार न फिर भी, हारने लग गया शरीर, जीती लड़ाई हारे हम करार में, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। वो रोशन हुई रात अमावस की, जब चांद से हटा घूंघट, लब न बोले नज़रे भी झुक गई, फिर बोला मुझसे लिपट, मेरा तन रोशन है तेरी बहार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था, शंकाओं की घटा ने घेरा था, संग संग में सदा रहे हरपल शाम में, संग में गुजरा हर सवेरा था, संग छूटा इक गलती की मार से, दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...
गम के सिवा
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गम के सिवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** गम के सिवा क्या दिया मैंने तुमको, तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... मुझे भूल जाना सपना समझकर, दिल में ना रखना कोई याद मेरी। मेहफूज रखे खुदा हर बला से, चाहे ज़िंदगी कर दे बर्बाद मेरी।। दुआओं भरे गीत अब गाऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... उन रास्तों पर कभी तुम ना जाना, जहां बीती यादें सतायेंगी तुमको। गूंजेंगी कानों में आवाज मेरी, बुलायेंगी तुमको,रूलायेंगी तुमको।। लेकिन नजर ना कहीं आऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभ...
आचार्यश्री से प्रार्थना
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आचार्यश्री से प्रार्थना

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l सच की डगर दिखा, गुरुदेव प्रार्थना है l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणमl ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll हम है तुम्हारे बालक, कोई नहीं हमारा l मुश्किल पड़ी है जब भी, तुमने दिया सहारा l चरणों में अपने रख लो, चन्दन हमें बना दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l१l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll पूजन तेरा गुरवर, अधिकार मांगते है l थोड़ा सा हम भी तेरा, बस प्यार मंगाते है l मन में हमारे अपनी सच्ची लगन जगा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l२l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll अच्छे है या बुरे है, जैसे भी है तुम्हारे l मुंकिन नहीं है अब हम, किसी और को पुकारे l अपना बन लो हमको, अपना वचन निभा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l३l ॐ ...
राम
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राम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “कलियुग मेँ त्राता हैँ राम, सबके विधाता भी हैँ, राम, न पाओगे उन्हेँ मंदिर मेँ, हृदय तल मेँ बसे हैँ राम, जीवन की आपा धापी मेँ, एक सुगंधित बयार हैँ,राम, समझो, सभी, ये सत्य है, कि, नर भूपाल नहीँ हैँ, राम, पृथ्वी आकाश पाताल मेँ, अनादी और अनंत हैँ राम, पाप की गठरी, को भूलकर, भवसागर पार कराते हैँ, राम लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैं...
उठालो कलम
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उठालो कलम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. समांत :- आ पदांत :- गया है “उठालो कलम समय ये कैसा आ गया है, हर शहर मेँ मानव भय से घबरा गया है, चहकतीँ थीँ चिडियाँ, जिन घरोंदे मेँ, अब तक, वहाँ पर शमशान का सन्नाटा छा गया है, जिन बडी ऊम्मीदोँ से बनाये थे हमने घरोंदे, बरसोँ से कोई वहाँ, झाकने भी नहीँ गया है, जिस माँ से घंटोँ होती थी, बच्चोँ की बातचीत, दो मिनिट बात के लिये, कोई, तरसा गया है, छिटक दो सारे दुख, अपना कर किसी गैर को, ईश्वर पर अटूट विश्वास का समय आ गया है.”   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संक...
सुंदरता की….
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सुंदरता की….

********** संजय जैन मुंबई नही होती सुंदरता किसी के भी शरीर में। ये बस भ्रम है अपने अपने मन का। यदि होता शरीर सुंदर तो कृष्ण तो सवाले थे। पर फिर भी वो सभी की आंखों के तारे थे।। क्योंकि सुंदर होते है उसके कर्म और विचार में। तभी तो लोग उसके प्रति आकर्षित होकर आते है। वह अपनी वाणी व्यवहार और चरित्र से जाना जाता है। तभी तो लोग उसे अपना आदर्श बना लेते है।। जो अर्जित किया उसने अपने गुरुओं से ज्ञान। वही ज्ञान को वो सुनता है दुनियां को। जिससे होता है एक सभ्य समाज का निर्माण। फिर हर शख्स को ये दुनियां, सुंदर लगाने लगती है। इसलिए संजय कहता है, जमाने के लोगो से। शरीर सुंदर नही होता सुंदर होते है उसके संस्कार।। लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक स...
फल मिलता है
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फल मिलता है

********** संजय जैन मुंबई यदि हो ईमानदार और मेहनती तो। हर लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो। और किया जिसके साथ तुमने काम, वो तुम्हे बहुत सराहेगे। और वक्त आने पर साथ, तुम्हारे खड़ा हो जायेंगे। यही तो कर्मठ निष्ठावान, लोगो की पहचान होती है।। जिसे मिल जाये, बिना मेहनत के राज। तो ऊंचाई पर पहुंचते, ही बहुत इतराते है। और अंधेर नगरी चौपट राजा, वाली कहावत को दोहराता है। और बनी बनाई कार्यप्रणाली को, कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है। फिर अपने ही जाल में, फसकर खुद ही रोते है।। इसलिए स्नेह प्यार से, रिश्ते बनाकर चलो। लोगो की भावनाओ से, तुम मत खेलो। क्योंकि लगती है हाय, जरूर पीड़ित इंसान की। जो मिट्टी में मिला देती है, उसकी विरासत को। फिर कर्म उसे अपने, जरूर याद आते है। पर तब तक बहुत देर हो जाती है। और अपनी हस्ती खुद मिटा देता है।। और इसका दोष ये, लोग किसको देते है? लेखक परिचय :- बीना (मध...
गाँधी
गीत

गाँधी

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. विधा:-- गीतिका (छँद मापिनी मुक्त) “वो खुद पर भरोसा करते थे, सब को साथ लेकर चलते थे, लोगोँ की माली हालत जानने, दूर दराज़ के गाँवोँ मेँ फिरते थे, ज़ब एक बार ज़ो बात ठान ली, उस इरादे से कभी न डिगते थे, अहिँसा को बनाया,हथियार तो, दुनिया मेँ लोग, उन्हेँ पूजते थे, कथनी,करनी मे न रहा फर्क,कभी, बात से अपनी,कभी न पलटते थे, महात्मा ने किया नाम देश का, काम से,दुनिया को रोशन करते थे.’   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...
कभी सोचा न था
गीत

कभी सोचा न था

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “दिन ऐसे भी आयेंगें, ये कभी सोचा न था, झूठी शिकायत पर जेल जायेंगें, ये भी कभी सोचा न था, अब निवाले भी छीने जायेंगे, सपने में भी ये सोचा न था, नोकरी से खदेड़े जायेंगें, ऐसा भी सोचा न था, नोकरी मिल भी गई तो, पदोन्नति में रोके जायेंगें, गजब, ऐसा कभी सोचा न था, प्रारब्ध में क्या लिखा, नहीं पता, ऐसे अच्छे दिनों को देखेंगें, भूलकर भी कभी सोचा न था, गंगा जमुनी तहज़ीब केे देेेश मेँ, जात पांत में ऐसे जकड़ जायेंगें, ये तो कभी भी सोचा न था” लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) मे...
आप है मेरे…..
गीत

आप है मेरे…..

********** संजय जैन मुंबई कही कोई मेरा दोस्त कही कोई मेरा दुश्मन मगर मुझको है सच में सभी लोगो से बहुत प्यार। करे क्या हम अब, उन सभी लोगो का। जिन्होंने दिया है, हमे बहुत प्यार। इसलिए कविता गीत और लेख, मोहब्बत पर ज्यादा लिखता हूँ। और लोगो के दिलो में, बसने की कोशिश करता हूँ।। निभाता हूँ दिल से हर रिश्ता, तभी तो जल्दी अपनो का बन जाता हूँ। बड़े ही प्यार से हर पल, याद उन्हें सदा करता हूँ। क्योकि में अपने मित्रों को, संदेश स्नेह प्यार का सदा देता हूँ। इसलिए उनके हृदय में बस जाता हूँ।। आप क्या रखते है, मेरे बारे में अपनी राय। और कुछ तो सोचते होंगे। की किस तरह का ये इंसान है। जो लोगो के दिलो में बहुत जल्दी बस जाता है। और प्यार मोहब्बत के, गीतों से लोगो का दिल बैहलाता। और सच्चे सपने लोगो को दिखता है।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में का...
जीवन प्रवाह है
गीत

जीवन प्रवाह है

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. विधा:-गीतिका समांत:-आर पदांत:--भी ============ "जीवन प्रवाह है,तो मजधार भी. एक सपना जो होता साकार भी. माना कि तूफान भी आएंगे मगर, होसले की चाहिये, पतवार भी, मौसम भी ज़ब आयेंगे खुशनुमा, करेंगेँ हम प्यार का इज़हार भी, जीतने का रहेगा हमारा लक्ष, गले से लगायेंगे हम हार भी, सीमा पर डटे रहेंगे सदा हम, दुश्मन पर करेंगे हम प्रहार भी. लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये है...
मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की
गीत

मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की

बबिता चौबे शक्ति माँगज दमोह ******************** मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की में नारी हिंदुस्तान की हु नारी हिंदुस्तान की।। मैं झलकारी मैं ही झांसी की रानी हूँ बलिदान की । मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की।। देश के खातिर लड़ी वीरनी मैं ही अवंति बाई हूँ।। दुर्गावती के शौर्य की गाथा तलवारों से लिखाई हूँ ।। विजयलक्ष्मी पंडित जैसी वीरबाला के गुमान की।। चिन्नमा बेगम हजरत हूँ ऐनी भीकाजी बलदाई हूँ।। ।रानी पद्मावती सिंगनी करुणावती जीजा बाई हूँ ।। कमला नेहरू दुर्गा बाई देशमुख के भान की ।। सरोजनी नायडू हु मैं अरुणा आसिफ के नाम की सारन्धा रानी विरवाला चंपा के सुखधाम की शीला दीक्षित शुष्मा स्वराज इंदिरा के सुनाम की ।। मातंगिनी दुर्गा भावी बरुआ कनकलता हूँ मैं ।। रानी दुर्गावती रूप धर दुश्मन की दुर्गता हूँ मैं ।। सरगम हूँ मैं सात सुरों की पावन महिमा गान क...
धरती का आंगन महका दो : गीत
गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत ================================================ रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" द्वेष दिवारें मिटा दिलों से, मिलजुल कर रहना सिखला दो। । धरती का आंगन महका दो .... नहीं खिले गर फूल कहो फिर, कहां चमन की प्यास बुझेगी। बोल नहीं होंगे मनभावन, कैसे मन की प्यास बुझेगी। अधर रहे गमगीन कहीं यदि, कैसे जीवन प्यास बुझेगी। पुलकित हो अंतर्मन सबके, सरस मधुर संगीत सुना दो। धरती का आंगन महका दो .... फूल शूल मिलकर आपस में, रहे हमेशा पूरक बनकर। धार कुल मिल बने सरित अब, हिलमिल मीत सहोदर बनकर। पवन कराये सैर मेघ को, व्योम थाल में बांह पकड़ कर। भेदभाव हो लुप्त धरा से, परिवर्तन का बिगुल बजा दो। धरती का आंगन महका दो .... कामुकता से ध्यान हटा कर, मानवता का मान करो तुम। कुचले और दबे तबके के, जन-जन का अरमान बनो तुम। सुधरे देश व्यवस्था कैसे, कुछ इसका अनुमान करो तुम...
आओ मिल कर देश बचाऐं … गीत
गीत

आओ मिल कर देश बचाऐं … गीत

रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" =========================================== आओ मिल कर देश बचाऐं ... आओ मिल कर देश बचाऐं। देश बंटा वादों के अन्दर, ठाठें मारे द्वेष समंदर, अन्तर्मन की प्रीत निचोडें, देश-प्रेम की ज्योति जलाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। मत पड़ाव को समझो मंजिल, लक्ष्य न हो आंखों से ओझल, राह दिखाने घोर तिमिर में, बुझी मसालों को सुलगाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। फिर पीछे से वार किया है, मां का दामन तार किया है, अटल विजय का वज्र बनाने, बन दधिचि हड्डियां गलाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। बैठो मत कर लो तैयारी, दिल पर चोट लगी है भारी, सब्र नहीं मत रखो उधारी, रिपु को सूद सहित लौटाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। उठो देश के वीर जवानो, अपनी ताकत को पहचानो, बिन आहुति के यज्ञ अधूरा, बलिवेदी पर शीचढ़ाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। लेखक परिचय :-  नाम :- लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५४ ...
तेरा प्यार
गीत

तेरा प्यार

रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा ===================================================================================================================== तेरा प्यार दिल में बसा है तेरा प्यार गोरिए कर लेने दे मुझे दीदार गोरिए सपनो में आके क्यूँ मुझे तड़पती हो अपना बनाले दिलदार गोरिए                     oo जाना तेरे दिल को बेक़रार करूँगा जी भर के तुझे आज प्यार करूँगा तेरे लिए चांदनी का सेज लगा दूँ चाँद सितारों से तेरी मांग सजा दूँ तुझपे ये ज़िंदगी निसार गोरिए                      oo पतली कमर मत ऐसे बल खा सोंडा सोंडा मुखड़ा न बांहों में छुपा सजनी दीवानी यूँ न अँखियाँ चुरा तेरे सुने जियरा में हमको बसा प्यार करूँगा बे - सुमार गोरिए                      oo सोड़े-सोड़े मुखड़े पे जादू तेरे जाना तेरे पीछे पड़ गया सारा ज़माना मुझ सा दीवाना न तू पाएगी दीवानी तुझपे निसार किया सारी ज़िंदगानी किया...
गीत
गीत

गीत

गीत रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा ===================================================================================================================== हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए oo मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें रंगीन ज़माना क्यूँ महकी हुई क्यूँ सांसें हूँ दूर मय-ख़ाने से फिर भी क्यूँ ख़ुमार आए oo बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से तुम से ये बहारे हैं सूरज में चमक तुम से रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए oo बस इतनी गुज़ारिश है बस इतनी सी चाहत है जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए oo गुलशन में बहारों की इक सेज लगाया है फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए oo मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें जीवन के हर इक लम्हें खुशिओ...
हिस्से में माँ
गीत

हिस्से में माँ

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है जब भी कोई मुसीबत मुझे सताने लगे माँ के चरणॊ में मेरा ध्यान जाने लगे, घर का कोना-कोना मेरी माँ से सजा देखकर मेरे मन ने ये खुशी से अँगड़ाई ली है अब मुझे किस बात, की,तन्हाई है जब मेरे हिस्से में मेरी माँ आई है आसमाँ भी खुशी और जहाँ भी खुशी मस्ती में झूमे पवन और रवि अब फिर माँ की चर्चाएं दुनियाँ में शुरू हुई हैं अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म 07 जुलाई सन् 1998 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :-...