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गीत

खो न जाँऊ कही
गीत

खो न जाँऊ कही

संजय जैन मुंबई ******************** खो न जाँऊ कही, अपने के बीच से। इसलिए लिखता हूँ, गीत कविता आपके लिए। ताकि बना रहे संवाद, हमारा आप के साथ। और मिलता रहे सदा, आप सभी का आशीर्वाद।। दिल में जो आता है, मैं वो लिख देता हूँ। अपनी भावनाओं को, आपके सामने रखता हूँ। कुछ को पसंद आती है, कुछ का विरोध सहता हूँ। पर अपनी लेखनी को, मैं निरंतर रखता हूँ।। शिकायते है कुछ लोगों की, तुम विषय पर नहीं लिखते हो। कृपा विषय पर लिखे, और ग्रुप में प्रेषित करें। पर बनावटी विचारों को, मैं नहीं लिख पाता हूँ। और उनकी आलोचनाओ का, शिकार हो जाता हूँ।। उम्र बीत जाती है, अपनी छवि बनाने में। यदि कदम डगमगा जाए, तो रूठ अपने जाते है। इसलिए मन की सुनकर, मैं गीत कविताएं लिखता हूँ। तभी तो यहां तक, आज पहुंच पाया हूँ।।   परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष स...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
कलयुग के भगवान
गीत, भजन

कलयुग के भगवान

संजय जैन मुंबई ******************** तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। तुम हो ज्ञान के भंडार गुरु विद्यासागर। हम नित्य करें गुण गान गुरु विद्यासागर।। बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी सयंम नियम के महाव्रतधारी। तुम हो जिनवाणी के प्राण गुरु विद्यासागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। दया उदय से पशु बचाते भाग्योदय से प्राण बचाते मेरे मातपिता भगवान गुरु विद्यासागर । हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। जैन पथ हमको चलाते खुद आगम के अनुसार चलते। वो सब को देते विद्या ज्ञान गुरु विद्या सागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर। तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। ज्ञान के सागर विद्यासागर हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्या सागर।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
युद्ध थोपने वालों की हम
गीत

युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के साथ यकीनन, ऐसा करना है गद्दारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** युद्ध जहां पर महिलाओं को, बेवा बना दिया जाता है। युद्ध जहां पर गोदी सूनी, करके खून पिया जाता है।। अगर नहीं जीवन दे पाते, जीवन लेने का क्या हक है। हत्या करने या करवाने, वाला सचमुच नालायक है।। भले रहनुमा हो या राजा, उसकी भी है हिस्सेदारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** क्या जनता पर निर्मम होना, काम नहीं बोलो शैतानी। महल बनें खुद के नित नूतन, खोली उनके लिए पुरानी।। तनपर भले न उनके कपड़े, हाथों में हथियार थमा दें। हिम्मत करें प्रश्न करने की, हंटर भी दो चार जमा दें।। भक्ति काआश्रय लेकर हम, बोझ न उनपर लादें भारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ****** युद्ध युद्ध होता है भाई, सतपथ पर चलना आराधन। खून खराबा...
धारा विचलित गगन विचलित है
गीत

धारा विचलित गगन विचलित है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** धरा विचलित लगन विचलित है, मालिक अब संभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालों तुम।। तुम्हारे वश में मृत्यु है, जीवनधन तुम्हारा है। ये तुमको है पता फिर क्यों, नजर से ही उतारा है।। कोरोना के विषाणू से, हमें क्यों यूँ डराते हो। किया क्यों घरमें सबको बंद, खूँ आंसू रूलाते हो।। तुम्हारे थे तुम्हारे हैं, दयालु, देखोभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। कोई पत्ता नहीं हिलता न, हो मर्जी तुम्हारी तो। इशारा दो हवा हो जाए, मौला ये बीमारी तो।। ना माथे का मिटे सिंदूर , ना गोदी ही सूनी हो। ना छीने जाएं घर हमसे, न ये तकलीफ दूनी हो।। तुम्हारी शरणागत दुनिया, हमें भी तो निभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। यकीनन राज कोई इसमें, है जिसको तुम्ही जानों। है अच्छा क्या बुरा क्या है, इसे भी तुम ही पहचानों।। करम ...
छोड़ चले
गीत

छोड़ चले

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** एक एक कर रिश्ते सारे तोड़ चले। आसमान को सूरज तारे छोड़ चले।। निभा सके हम जितने वे सब निभा लिए, बाकी करके वारे न्यारे छोड़ चले।। जिन जिन रिश्तों में असमंजस बना रहा, उन सबको हम एक किनारे छोड़ चले।। चांद चांद है, सूरज आख़िर सूरज है, महफ़िल को जुगनू बेचारे छोड़ चले।। डाल न पाए जहां विचारों के लंगर, ऐसे दरिया और किनारे छोड़ चले।। आदर्शों के जनमत पर बहुमत भारी, वह संसद भगवान सहारे छोड़ चले।। आंधी, तूफानों के आगे झुक जाएं, हम ऐसे कमजोर सहारे छोड़ चले।। मौत की तरफ पल पल बढ़ते जीवन को ख़ुद ही हम जैसे बनजारे छोड़ चले।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। उत्तरदायी सरकारें यूँ, अपना फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए बस, लक्ष्य हमारा अपना है। सूरज शिक्षा का तम हरले, देखा हमने सपना है।। काबिल होंगे बच्चे जब हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। जिनसे उड़ते, पंख उन्हीं को, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं जंग खाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, बिल्कूल निष्फल जाएंगी।। जीवन को उत्सव मानेंगे, जब गुल ये, खिलजाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बच्चों के सपने ही तो कल, की तस्वीर बनाते हैं। जैसे सपने वैसे ही तो, फल दामन में आते हैं।। बच...
वो माँ हिन्दी भाषा है
गीत

वो माँ हिन्दी भाषा है

शिवलाल गोयल "शिवा" लुनाडा, बाड़मेर (राजस्थान) ******************** बहुत कवियों ने गुणगान किया है, इसका इतिहास और गाथाएँ बहुत पुरानी है। जिसके शब्दों की मिठास और ताकत किनसे अनजानी है। जिसको सुनते ही हर इक मानुष का हृदय तृप्त हो जाता है।। वो माँ हिन्दी भाषा है, वो माँ हिन्दी भाषा है। सहज, सरल, सुन्दर अक्षरों का मेल है हिन्दी, पढने, पढाने और लिखने में अनमोल है हिन्दी, सहानुभूति व्यवहार, नैतिक आचरण है हिन्दी, साहित्य की मुस्कान है,... (2) शीत है हिन्दी, ग्रीष्म है हिन्दी। वर्षा है हिन्दी, हर इक ॠतु है हिन्दी।। उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भारतवर्ष की हर इक दिशा है हिन्दी। भारत की भाग्य रेखा है हिन्दी। वो माँ हिन्दी भाषा है,.... (2) नदियों की कल्ल-कल्ल सी आवाज है हिन्दी। समन्दर की गहराई है हिन्दी। हिन्द हिमालय से निकलती हुई रस धार है हिन्दी। खेतों के खलिहानों में, केसर के फसलों में है हिन्दी...
वर्षा तुम जब
गीत, छंद

वर्षा तुम जब

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** राधेश्यामी छंद में वर्षा गीत… वर्षा तुम जब जब भी आती, मेरा मन दुलरा जाती हो। तरु के पत्तों से टकरा कर, सुरमय संगीत सुनाती हो। तेरे आने की आहट नित, मुझको पहले मिल जाती है। जब तप्त हृदय मेरा होता, तब क्षितिज कालिमा छाती है। हो निनाद जब दूर कहीं पर, नभ हो जाता जिससे गुंजित। विरही मन में तब हूक उठा, प्रियतम की याद दिलाती है। पहले ही संकेतों द्वारा, जैसे भेजी मृदु पाती हो।१ चातक सा रहता मन प्यासा, चाहत बूँदों की है मन में। कुछ स्वाति फुहारें पड़ जायें, शीतलता आये तब तन में। नभ से बरसे जल झर-झर कर, भीगे तब आकुल सा तन-मन। लग जाएँ सावन की झड़ियाँ, आये बहार तब जीवन में। बूँदों की टिप-टिप से उपजे, तुम नवल राग में गाती हो।२ होते हैं भाव विभोर सभी, जब ऋतु परिवर्तन करती हो। तब शुष्क पड़े सब हृदयों के, तुम ताल सरोवर भरती हो। इस भूतल के सारे प्राणी, मिल राह त...
याद रहेगा
गीत

याद रहेगा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। अनगिनती युद्ध लड़े, जीते हैं, जीतेंगे, दुर्दिन के लाखों पल बीते हैं, बीतेंगे; कौन साथ रहा, कौन खेल गया दांव, सदियों तक याद रहेगा।। छिपे हुए, ममता के आंचल के नीचे से, बरगद-से बापू के होंठ कसे,भींचे-से; डंडे सहते देखे, उन्हें ठांव-ठांव, सदियों तक याद रहेगा।। पीड़ित मानवता को क्रूर दम्भ पीट गया, निर्मोही सत्ता का नशा आज जीत गया, अपनेपन की आंखें नोंचता दुराव, सदियों तक याद रहेगा।। जब भी, जिस शासन से जनता यह त्रस्त हुई, रावणी प्रचण्डशक्ति, विद्वत्ता अस्त हुई; सत्ताधीशों का यह कुटिल भेदभाव , सदियों तक याद रहेगा।। शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना ...
प्रकृति का कहर
गीत

प्रकृति का कहर

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देख प्रकृति का कहर.. देख प्रकृति का कहर .. फल दिया और फूल दिया, १० पीढ़ी तक कुल दिया, इस अराजकता के दौर में, तुझको प्रभुत्व सम्पूर्ण दिया।। पर तेरा जी न भरा मानव, करता खिलवाड़ प्रकृति के साथ।। तूने क्या सोच के किया था, प्रकृति का नीरव दोहन, देख तेरे इस भूल का फल भोग रहा जग आज है, प्रकृति का बदला लेने आया आज यमराज है।। जीवों की हत्या कर तूने प्रकृति को किया कुरूप, देख आज कोरोना आया प्रकृति प्रतिघात स्वरूप, आज पर्यावरण दिवस पर मान ले अब तू मेरी बात, कर प्रकृति का सम्मान, जंगल को न कर वीरान, जीवों की रक्षा तू कर, पेड़ लगा बढ़ा प्रकृति का मान, वरना कोई नहीं बचा पाएगा तुझे, प्रकृति का कहर है आज। देख प्रकृति का कहर ... देख प्रकृति का कहर..।। आज गर्मी के दिनों में सुबह चलती भाप है, शाम को पानी गिराकर देती प्रकृति श्राप है, बरसात मे...
बदल रहे रिश्तों के माने
गीत

बदल रहे रिश्तों के माने

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** बदल रहे रिश्तों के माने आज यहाँ प्रतिपल समझ नही पाता है कोई क्या हो जाए कल गुणा भाग की इस दुनिया में लाभ की बस बातें अपना सगा और सम्बंधी भी करता है छल कौआ भागा कान नोच कर बातें लगती सच्ची बुद्धि टांग देते खूँटी पर अक़्ल है कितनी कच्ची श्वेत वसन यद्यपि शरीर पे मन में भस्मासुर गिरगिट जैसे रंग बदलते बातों में निर्बल जाति पाँति मज़हब की रोटी रोज़ सेकते भैया ऐसे साहिल हैं तो साहिल पर डूबेगी नैया मज़हब की घुट्टी पीकर हम भँवर जाल में हैं मंदिर मस्जिद के झगड़े में गई उमरिया ढल धन वैभव सब पास हमारे मन है मगर अशांत हंसी ख़ुशी संतोष है ग़ायब दिल है सूखा प्रांत तिल तिल कर जल रहीं ज़िंदगी जीवन जैसे बोझ लव पर तो मुस्कान दिख रही मन में दावानल ईर्ष्या द्वेष जलन पर क़ाबू पा ले यदि इंसान बच जाएगी ये दुनिया फिर बनने से शमशान पर हित हो...
मोहे देखन दे
गीत

मोहे देखन दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मोहे देखन दे असीघाट को गए छोड़ गोस्वामी जी, जाने गए वो किधर ढूंढे सबकी नजर, मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे पहली बार श्री कबीर दास जी ने काशी (लहर तालाब) में लिया अवतार हो... ऐकश्र्वरवादी विश्व में फैले ऐसा किया विचार हो... ईश्वर एक है दूजा न कोए जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... दुसरी बार श्री तुलसीदास जी ने जग में अवतार हो... सपना जो स्वामी जी का था उसको किया साकार हो... रामचरितमानस सबके सनमुख आये जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... तीसरी बार श्री घासीदास जी ने जग में लिया अवतार हो... सर्वधर्म - समभाव विश्व में फैला ऐसा किया प्रचार हो जाना सब संसार मोहे देखन दे गुरु महिमा देखन दे...   परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी ...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
डर ज़रा
गीत

डर ज़रा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** झांक मन में आज अपना आकलन तू कर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! मन में तेरे है मलिनता! स्वार्थ की इसमें बहुलता! क्यों नहीं सच्ची सरलता? पालता हैं क्यों जटिलता? स्वच्छ कर सद्भावना से स्वयं का अन्तर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! 'अहं' में रहता मगन तू! सतत करता है पतन तू! बोलता कड़वे कथन तू! क्यों नहीं करता मनन तू? अपने शब्दों में शहद की मधुरता को भर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! पाप हैं अविराम तेरे! व्यस्त हैं दिन-याम तेरे! अनैतिक सब काम तेरे! दुष्टता है नाम तेरे! सोच क्या ले जाएगा संग अपने यायावर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस...
आएगा कभी मधुमास नहीं
गीत

आएगा कभी मधुमास नहीं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** मन में यदि कोई आस नहीं आएगा कभी मधुमास नहीं बढ़ सकते पाँव नहीं आगे मन में ही अगर विश्वास नहीं मन में क़ायम उम्मीद रहे संसार तुम्हारा मुरीद रहे जीवन पथ पथरीला हो पर नर होना कभी निराश नहीं कभी धैर्य का दामन मत छोड़ो अपनों से नाता मत तोड़ो अनुचित व उचित का भान रहे मन होगा कभी उदास नही दिल में गर कोई चाह नाहीं दुखियों की कोई परवाह नहीं क्यों दम्भ मनुजता का भरते पर पीड़ा का एहसास नहीं ग़म से क्यों रिश्ता जोड़ लिए मुस्कान से क्यों मुँह मोड़ लिए दस्तक ख़ुशियाँ फिर क्यों देंगी जीवन में हास- विलास नहीं रिश्तों का सदा सम्मान करो दुश्मन का भी मत अपमान करो साहिल तो वही होता सच में करता जो कभी उपहास न . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्याल...
मां बस मां ही होती है
गीत

मां बस मां ही होती है

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मेरे संग संग हमेशा ही दुआएं मां की होती हैं। वो मेरी राह से कांटे हटाकर फ़ूल बोती है। वो देती है हमें जीवन स्वयं के अंश को देकर। वो दुनिया में हमें लाती है कितने कष्ट सह सह कर। समेटे प्यार आंचल में वो ममता ही लुटाती है। जहां रोशन बनाती है वह तिल तिल दीप सा जलकर। हमारी जिंदगी में वह सपन के बीज बोती है। स्वयं शोलों पर चलकर प्यार की फसलें उगाती है। वो एक एक जोड़कर तिनका सुहाना घर सजाती है। बलायें दूर हो जाती फकत उसकी दुआओं से, अभावों से भरी दुनिया को जन्नत सा बनाती है। कोई वैसा नहीं होता, मां बस मां ही होती है। सदा मां की नज़र में प्रेम की रसधार बहती है। लुटा कर चैन हमको वो दुखों का भार सहती है। सदा उसका ह्रदय बच्चों के खातिर ही धड़कता है, वह बच्चों के लिए जीवन भी अपना वार सकती है। मैं हंसता हूं वो हंसती ह...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कोंन आएगा, आखों मे समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखावो जरा चल संकू मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं ........................... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पायेगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलाओं जरा देख संकू मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .............................. जान जाएगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलावों जरा देख संकू मै भी खुशियों को आखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने...
जाने है ये सफ़र कैसा
ग़ज़ल, गीत

जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सूनी माँग सी राहों जैसा जाने है ये सफ़र कैसा, हर बस्ती वीरान मिली, नहीं खुशी का शहर देखा। नींद कुचलकर सुबह हुई और शाम ने भी पहलू बदले, कितनों की ही मौत हुई शमशान मगर बेखबर देखा। जहाँ पर खींचते हैं लोग जब तब लक्ष्मण रेखा, उसी दुनिया में हमने ज़िन्दगी को दर बदर देखा। रहते थे जो शीशमहल में घर उन्होंने बदल लिया, जब जब झाँका सीने में वहाँ फ़क़त पत्थर देखा। 'विवेक' झील के दरपन में लिखी प्रेम की इबारतें, मन कस्तूरी महक उठा जब उनको भर नज़र देखा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में ...
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ
गीत

है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सावधान रहना है प्रेमी प्रेम-यात्रा नियम कड़े। है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ ज़रा संभल कर पाँव पड़े पथ पर पाहन पड़े नुकीले धधक रहे अंगारे हैं। तिमिर अमा का दिशा-दिशा में, ओझल चाँद-सितारे हैं। गहरी दुविधा की सरिता है, कठिनाई के अचल खड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। मन विचलित तन में पीड़ा है, ज्वर से तापित अंग सभी। अंधकार आँखों के सम्मुख, धुंधले-धुंधले रंग सभी। पग घायल, छाले फूटे हैं, अवरोधक हैं बड़े-बड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। नयनों में है फिर भी आशा, अद्भुत है विश्वास बसा। संकल्पित हैं तन-मन दोनों, व्रत है कोई पर्वत-सा। जगत साक्षी है चरणों ने, कितने ही इतिहास घड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मति...
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
गीत

फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बड़ी बड़ी बातें करलें पर, यह कड़वी सच्चाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। जन कल्याण के खातिर हमने, बनती सरकारें देखी। वोट के खातिर नेताओं की, चलती मनुहारें देखी।। वादों से फिरते नेताओं, को देखा उसके पश्चात। और कभी देखा है उनको, करते जनता पर ही घात।। प्रश्न यही क्या आज करें हम, सम्मुख गहरी खाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपडी, एक यहाँ मिल पाई है।। माना हमने, देश बड़ा है, और हजारों मसले हैं। हर मसले का हल हो ऐसी, उगा रहे वो फसले हैं । लेकिन लोगों की सब माया, खाली पेट रहें कैसे। हमीं न होंगे तो क्या होगा, बोलो दर्द सहें कैसे।। इतसी जो बात न समझे, समझो वो हरजाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। "अनन्त" तन भी नंगा है और, गरमी सरदी सहता है। गांधी का है देश देर तक, सदमें सहता रहता है।। आसमान को छत कहकर वो, ...
सुनो प्राणप्रिय
गीत

सुनो प्राणप्रिय

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का मोर संग लहरों का शोर संग पतंग का डोर संग चांद का चकोर संग रातों का जो भोर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। नदी का किनारों संग फूलों का बहारों संग डोली का कहारो संग नैनों का इशारों संग मौसम का नजारों संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। मन का जो मीत संग जग का जो रीत संग पाती का जो प्रीत संग बाती का जो दीप संग स्वाति का जो सीप संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। गीत का संगीत संग प्यासे का जो नीर संग पंछियों का जो नीड़ संग काजल का जो दीठ संग आंसू का जो पीर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। जग बैरी रूठे चाहे सांसों की ये माला टूटे शूल मिले चाहे मुझे ...
तोड़ दे रंजिशें
गीत

तोड़ दे रंजिशें

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। तू है बेचैन क्यों मेरी दिलरुबा। आँखों को अश्क़ों में मत डूबा। तू है सवाल मेरा मैं हूँ जवाब तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेहिसाब रब से इबादत की। उन दुवाओ में तेरी चाहत थी। तू है दौलत मेरी, मैं हिसाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा तू सियासत के जैसे बदलना नही। मेरे प्यार को दीवार में चुनना नही। तू है अनारकली मेरी, मैं हूँ नवाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेचैनी क्यों तू दिल में सजी। सूरत तेरी, आँखों में बसी। तू है मन्नत मेरी, मैं सवाब तेरा। तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, ...
पृथ्वी है वरदान
गीत

पृथ्वी है वरदान

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** पृथ्वी है वरदान प्रभु का, इसको गले लगाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। रहने की है जगह यही तो, पालन पोषण करती है। बाद मृत्यु के आश्रय देने, वाली भी ये धरती है।। जीवन की क्या कोई कल्पना, बिन इसके हो सकती है। इसीलिए तो धरती हमको, लोगों माँ सी लगती है।। माँ माने हम माँ सा ही दें, मान इसे सुख पाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। धरती को धनवान रखें हम, कभी न निर्धन होने दें। जितना हो आवश्यक हम लें, नाहक इसे न रोने दें।। बंजर गर कर देंगे धरती, कैसे जान बचाएंगे। भूखे प्यासे रहना होगा, जीवन कैसे लाएंगे।। ऐसा ना हो छाती छलनी, करें और पछताएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। जैव विविधता हो तो धरती, कितनी सुंदर मन भाती। हरी हरी जब चादर ओढ़े, नई वधू सी इठलाती।। पेड़ अगर कट जायेंगे तो, क्या बरसात रिझा...