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गीत

माँ के लिए
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माँ के लिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ईश्वर से अनाथ बालक की विनती मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। मैने देखी ही नहीं …। माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार। मैने देखी ही नहीं.... ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार। मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन...
हिन्दू हूँ… मैं हिन्दू हूँ…
गीत

हिन्दू हूँ… मैं हिन्दू हूँ…

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हिन्दू हूँ, मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। सबका सोचूं मैं मंगल हो न किसी का अमंगल कण कण में विश्वास है देश को अर्पण सांस है धर्मनिष्ठ का बिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। राम नाम का सहारा है सारा जगत हमारा है अहिंसा परमोधर्मः है योगक्षेमं मेरा कर्म है गंगा का जलबिन्दू हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। गीता के ज्ञान से दूर हूँ अज्ञान से तुलसी सूर के गाऊ गीत राम कृष्ण है मेरे मीत पुष्प पर दवबिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। सत्य ही मेरा शिव है सुंदर हर एक जीव है सदाशिव में रमता हूँ बंधुभाव से रहता हूँ करुणा का चरम बिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। राष्ट्र मेरी माता है गोद मे हर कोई सोता है वन्य जीव से नाता है वनांचल मुझे भात...
आशीष मिला तो….
गीत, भजन

आशीष मिला तो….

संजय जैन मुंबई ******************** तेरा आशीष पा कर, सब कुछ पा लिया हैं। तेरे चरणों में हमने, सर को झुका दिया हैं। तेरा आशीष पा कर .....। आवागमन गालियां न हत रुला रहे हैं। जीवन मरण का झूला हमको झूला रहे हैं। आज्ञानता निंद्रा हमको सुला रही हैं। नजरे पड़ी जो तेरी, मानो पापा धूल गए है। तेरा आशीष पा कर.....।। तेरे आशीष वाले बादल जिस दिन से छाए रहे हैं। निर्दोष निसंग के पर्वत उस दिन से गिर रहे हैं। रहमत मिली जो तेरी, मेरे दिन बदल गये है। तेरी रोशनी में विद्यागुरु, सुख शांति पा रहे है। तेरा आशीष पा कर ....।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रि...
सुख दुख है जीवन में दोनों
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सुख दुख है जीवन में दोनों

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कभी सुरों की सरिता बहती, कभी जिंदगी कांव-कांव है। सुख दुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी अंधेरे कभी उजाले, से होकर जाना पड़ता है। जीवन का रथ उबड़खाबड़, रास्तों से आगे बढ़ता है।। कोई फूल बिछाए पथ में, कोई कांटे बिछा रहा है। कोई टांग खींचता नीचे, कोई ऊपर उठा रहा है।। कभी मखमली गद्दो पर है, कभी धूल में सना पांव है। सुख दुख हैं जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी कहीं है सर्दी गर्मी, जीवन नित्य बदलने वाला। कभी श्वेत वर्णी जीवननभ, कभी हुआ है देखो काला।। कभी-करी उत्तीर्ण परीक्षा, कभी फेलका मजा चखाहै। हानिलाभ से ऊपर उठकर, जिसने जीवन यहां रखा है।। उत्तम वही तो मनआँगन है, नहीं रहे जिसमें तनाव है। सुखदुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। आशा और निराशा के जो, दो पैरों पर नाच नचाए। कठपुतली ये बना, जिंदगी, कभी...
दुख देते हैं जानबूझ कर
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दुख देते हैं जानबूझ कर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दुख देते हैं जानबूझ कर, दुखियारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। देश जूझता आज तुम्हारा, मजधारों में पल पल। बढ़ते हैं विपरीत दिशा में, छलिया करते हैं छल।। बेच रहे हैं धनवानो को, निर्धन के हक सारे। श्रमजीवी मजबूर हो गए, फिरते मारे मारे।। गिरवी रखनेको आतुर घर, दीवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। व्यक्ति पूजा करने वाले, देशभक्त कहलाते। देशभक्त बेबस लगते हैं, देश निकाला पाते।। रहे प्रिय जो भारतमां को, अपमानित होते हैं। मनकी कहने किससे जाएं, मन ही मन रोते हैं।। करते तेज अहिंसावादी तलवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। सत्य अहिंसा सत्याग्रह के, अब लाले पड़ते हैं। देशद्रोहियों के सीनों पर, हम मेडल जड़ते हैं।। देश उसी का माना जाता, जिसने अपना माना। नाम भले कुछ धर्म भले कुछ, ज...
चाहे जैसी यार देख लो
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चाहे जैसी यार देख लो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चाहे जैसी यार देख लो , नई पुरानी कलम मिलेगी। जूते सीती रेदासी या, चंवर ढुलाती कलम मिलेगी।। पेबंदों से इज्जत ढकती, ममतामयी लिए दो आंखें। बच्चों के भूखे पेटों में, लुकमें देती कलम मिलेगी।। सीमाओं की रखवाली में, रत कलमो के साथसाथ ही। कभी प्यारमें कभी भक्तिमें, डूब दीवानी कलम मिलेगी।। कामुकताके कीचड़ में गुम, किए हुए श्रंगार कीमती। कोठों की गौरव गाथाएं, तुमको गाती कलम मिलेगी।। जूते सजते शोकेसों में, ये दस्तूरे दुनिया है अब। फुटपाथों पर राह देखती, मेडल वाली कलम मिलेगी।। कुछ आवाज बनी जनताकी, झोपड़ियों से बाहर आकर। कुछ बंगलोंमें मक्खन खाती, नौकरशाही कलम मिलेगी।। कागज पर चलने वाली तो, "अनंत" बिखरी देखोगे तुम। मगर दिलों पर चलने वाली, कम ही दानी कलम मिलेगी।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई ...
मन वियोगी
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मन वियोगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** आधार छंद- सार्ध मनोरम मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ, मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ। मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१ याद में जलने लगा है मन मरुस्थल, वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२ अनमना शृंगार तन को टीसता अब, बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३ हो गई गायब हँसी इस आरसी की, रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४ छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा, प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५ कल्पना की डोर थामे आज 'जीवन', सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
रंगों से रंगी दुनिया
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रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कौन आएगाआँखों में समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखाओं जरा चल सकूँ मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पाएगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलों जरा देख सकूँ मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... जान जायेगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलाओं जरा देख सकूँ मै भी खुशियों को आँखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पित...
छोटा कलमकार
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छोटा कलमकार

अवधेश कुमार 'कोमल' जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** जो दिल में आता है साहब, बस कहने की कोशिश करता हूं। मैं छोटा सा कलमकार हूं, बस लिखने की कोशिश करता हूं।। मैं लिखता हूं मातृ भूमि पर, गद्दरों से आहत होकर। मैं लिखता हूं धर्म के ठेकेदारों से घायल हो होकर।। मैं लिखता हूं खद्दर धारी नेताओं के बारे में। जिसने विष रस घोल दिया है, गांव गली-चौबारे में।। मैं कहता हूं भारत के उस अद्भुत पी.एम नरवर से। मैं कहता हूं भारत के उस अटल अलौकिक नव स्वर से।। जिसने हटा तीन सौ सत्तर, कश्मीर देश में मिला दिया। वर्षों का वनवास राम का एक ही छण में मिटा दिया।।   परिचय :- अवधेश कुमार 'कोमल' पिता : शिव बालक यादव निवासी : जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
दिल के रिश्ते
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दिल के रिश्ते

संजय जैन मुंबई ******************** अपने बचपन की बातें आज याद कर रहा हूँ। कितना सच्चा दिल हमारा तब हुआ करता था। बनाकर कागज की नाव, छोड़ा करते थे पानी में। बनाकर कागज के रॉकेट, हवा में उड़ाया करते थे। और दिल की बातें हम किसी से भी कह देते थे। और बच्चों की मांग को सभी पूरा कर देते थे।। न कोई भय न कोई डर, हमें बचपन में लगता था। मोहल्ले के सभी लोगों से जो लाड प्यार मिलता था। इसलिए आज भी उन्हें में सम्मान देता हूँ। और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा ही समझता हूँ।। जो बचपन की यादों से अपना मुँह मोड़ता है। और उन सभी रिश्तों को समय के साथ भूलता है। उससे बड़ा अभागा और कोई हो नहीं सकता। जो अपने स्वर्णयुग को कलयुग में भूल रहा है।। सगे रिश्तो से बढ़कर होते मोहल्ले के रिश्ते। तभी तो सुख दुख में सदा ही खड़े हो जाते है। और अपनों से बढ़कर निभाते सभी रिश्ते। इसलिए मातपिता जैसे वो सभी लोग होते है। और हमें ये लो...
रात-रात भर
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रात-रात भर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !! एक छौंछियाहट-सी बनी हुई क्यों रहती है, किर्च-किर्च शीशे सी व्यथा कथानक कहती है; पल-पल यूँ ही दहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!१!! कचनारों-से बिम्ब उभरते मौसम, बेमौसम, मन में सौ तूफान मचलते रहते हैं हरदम; भितरमार यूँ सहते रहना भी है बुरी बला! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला!!२!! मन, अनन्त के अन्त तलक उसकी राहें ताके, जिसने मीठी सुधियों तक के बन्द किये नाके; सपनों में यूँ बहते रहना भी है बुरी बला!! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!३!! अब कोई कौतूहल नहीं कहानी-किस्से में, ठहरी झीलों के जल-सा जीवन है हिस्से में; इससे, उससे कहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!४!! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह...
कर्मो का फल
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कर्मो का फल

संजय जैन मुंबई ******************** नही भूल पाया हूँ में जिन्होंने दगा दिया था। मेरी हंसती जिंदगी में जहर जिन्होंने घोला था। कहर बनकर उनपर भी टूटेगा मेरे हाय का साया। और तड़पेगे वो भी जैसे में तड़प रहा।। जिंदगी का है हुसूल जो तुमने औरों को दिया। वही सब तुमको भी आगे जाकर मिलेगा। फिर तुमको याद आएंगे अपने सारे पाप यहां। और भोगोगे अपनी करनी का पूरा फल।। समय चक्र एक सा कभी नही चलता है। जो आज तेरा है वो कल औरों का होगा। यही संसार का नियम विधाता ने बनाया है। और स्वर्ग नरक का खेल यही दिखाया जाता है।। जो गम तुमने दिए थे वो अब तुम्हे मिलेंगे। और तेरे साथी ही तुझ पर अब हंसेगे। और ये सब देखकर तू अपनी करनी पर रोएगा। पर तेरी आंसू कोई भी पूछने वाला नहीं होगा। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर...
पीहर
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पीहर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** साजन के घर तन है पर मन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में है। प्यारी गुड़िया कैसे भूले सपने में भी मन को छू ले सखियों से झगड़े के कारण फुग्गे-से मुँह फूले-फूले सखियों संग झूलों का सावन पीहर में है छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। हरी-भरी तुलसी आँगन की न्यारी सुन्दरता उपवन की त्रुटि अगर कोई हो तो फिर स्नेहसिक्त झिड़की परिजन की मधुर-मधुर यादों का चन्दन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सुनकर पापा जी की डांट मन होता था कभी उचाट होती थीं मनुहारें भी फिर थे बचपन में कितने ठाट पापा का स्नेहिल अनुशासन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सर्वाधिक था माँ प्यार करती थी वह बहुत दुलार है असीम माँ का ऋण तो प्रकट करे कैसे आभार माँ के आँचल का सुख पावन पीहर में है। छूट गया दुलहन का बचपन पीहर में है। रोक-टोक भाई...
श्याम सांवरे
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श्याम सांवरे

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्याम सांवरे कभी आना गांव रे। माखन दधि रखेंगी तेरे नाम रे। माखन तुम खाना गौवें चराना। बंसी बजाना पीपल छांव रे। मोर मुकुट सिर कानों में कुंडल छब प्यारी-प्यारी दर्शा जाव रे। जिस श्रतु भी आना रास रचाना। अपने ही रंग में रंग जाव रे। काहे की गोपी काहे का ग्वाला। जित देखे़ उत रहे श्याम श्याम रे उद्धव ने चाहा ज्ञान सिखाना। मूरख को ज्ञान से क्या काम रे। अत्याचार से त्रस्त है जन जन असुरों पर आके करना घात रे। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गि...
हरते हैं अंधियारे राम
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हरते हैं अंधियारे राम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सत्य न्याय दया समरसता, के सूरज को धारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। राम नहीं व्यक्ति एक पथ है, करता भवसागर से पार। आत्मसात करलो इस पथ को, सफर नहीं होगा बेकार।। रिश्तों की गरिमा सिखलाई, करना सिखलाया व्यवहार। सदाचार का अर्थ बताया, और बताया पापाचार।। इसीलिए है सबके प्यारे, जीवन के उजियारे राम । सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। जब दुनिया के ताने सुन सुन, बनी अहिल्या शिला सामान। झरना सूख गया चंचल मन, उसका नहीं रहा गतिमान।। माँ कहकर जब उसे राम ने, प्यार दिया, पाया सम्मान। जीवन फिर से लगा चहकने, भूल गई अपना अपमान।। बिखर गई थी उसे सहारा, देकर बने सहारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। साधन नहीं साधना से रण, जीता जाता है सिखलाया। अनुभव से लें परामर्श जब, पूजा की, शक्ति को पाया।। पुत्र नहीं ...
जन्माष्टमी
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जन्माष्टमी

संजय जैन मुंबई ******************** कितना पावन दिन आया है। सबके मन को बहुत भाया है। कंस का अंत करने वाले ने, आज जन्म जो लिया है। जिसको कहते है जन्माष्टमी।। काली अंधेरी रात में नारायण लेते। देवकी की कोक से जन्म। जिन्हें प्यार से कहते है। कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।। लिया जन्म काली राती में, तब बदल गई धरा। और बैठा दिया मृत्युभय, कंस के दिल दिमाग में। भागा भागा आया जेल में, पर ढूढ़ न पाया बालक को। रचा खेल नारायण ने ऐसा, जिसको भेद न पाया कंस।। फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली। मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी। माता यशोदा आगे पीछे भागे। नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।। सारे गांव को करते परेशान, फिर भी सबके मन भाते है। गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये, बन्सी की धुन पर थिरकते है। और मौज मस्ती करके, लीलाएं वो दिख लाते है। और कंस मामा को, सपने में बहुत सताते है।। प्रेम भाव दिल में रखते थे, तभी तो राधा से मिल पाए...
कलाम
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कलाम

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। जीवन के पल-पल, क्षण-क्षण देश के नाम थे। हिन्दुस्तान की सेवा ही, बस उनके अरमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। पोकरण में कर धमाका, दुनिया को दिखलाये थे। अग्नि, पृथ्वी, नाग के जनक, वो भारत के लाल थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। एक हाथ में गीता, उनके एक हाथ कुरान थी। मज़हब की मिशाल, वे भारत के भगवान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। था अजब नजारा, जब वे चिर निद्रा में सोये थे। हिन्दू या मुस्लिम ही नहीं, पूरे भारतवासी रोये थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : ब...
सावन का महीना
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सावन का महीना

संजय जैन मुंबई ******************** मधुर मिलन का ये महीना। कहते जिसे सावन का महीना। प्रीत प्यार का ये महीना, कहते जिसे सावन का महीना। नई नबेली दुल्हन को, प्रीत बढ़ाता ये महीना।। ख्वाबो में डूबी रहती है, दिन रात सताती याद उन्हें। होती रिमझिम रिमझिम वारिश जब भी, दिल में उठती तरंगे अनेक। पिया मिलन को तरस रही है, इस सावन के महीने में वो।। रोग लगा है नया नया, ब्याह हुआ है अभी अभी। करे इलाज कैसे इसका, मिट जाए ये रोग नया। पिया मिलन तुम करवा दो, सावन के इस महीने में।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेख...
सावन से
गीत

सावन से

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम जाकर भैया से मेरे, ये संदेशा कहना दूर बसा तू आ न सकेगी ये तेरी बहना। भाई-बहन की प्रीत का पर्व जब-जब आता। क्या बाबुल क्या अपने परायो को है यह हर्षाता। रूसा रूसी मनुहार बिन मजा नहीं था आता। नयन नीर ना तू अब अश्रु बनकर बहना। कर में बांधकर राखी माथ तिलक लगाती। चंदा सा मुख देख-देख मैं वारी-वारी जाती। वह रक्षा प्रण लेता, मैं स्नेह दीप जलाती। प्यारी प्यारी सूरत तू इन आंखों में रहना यह देस छोड़कर तेरा यूं परदेस चले जाना। अनचाहे ही मैंने इसको विधि-विधान है माना टूट गया हिरदे-आंचल ताना और वाना। ना मिल सकने का ही तो शूल मुझको सहना। याद आज भी आते मुझको वो सावन के झूले। वो राखी वाले हाथ कहो बहना कैसे भूले? क्या जानू. मैं शाखों पे कब गुलाब थे फूले। तेरा प्यार बना रहेगा मेरा जीवन गहना। तुम जाकर भैया से मेरे ये संदेशा कहना। दूर बसा त...
वादा करके निभाया करो
गीत

वादा करके निभाया करो

रवि कुमार मौर्य जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** इस तरह से न हमको बुलाया करो। कम से कम वादा करके निभाया करो।। जब हुई शब तो दिल ये धड़कने लगा। रुखसती देख कर क्यूँ तड़फने लगा।। कसमकश में न रखकर सताया करो, कम से कम वादा.....................।। दिल को मेरे ये एहसास होने लगा। जाने क्यूँ तू मेरा खास होने लगा।। आस दे सांस तुम न ले जाया करो, कम से कम वादा...................।। हम तुम्हारे बने तुम हमारे बने। दिल मिले खूबसूरत नजारे बने।। दूर रहकर न अब दिल दुखाया करो, कम से कम वादा....................।।   परिचय :- रवि कुमार मौर्य पिता : एडवोकेट मनोज कुमार मौर्य निवासी : ग्राम- जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
खो न जाँऊ कही
गीत

खो न जाँऊ कही

संजय जैन मुंबई ******************** खो न जाँऊ कही, अपने के बीच से। इसलिए लिखता हूँ, गीत कविता आपके लिए। ताकि बना रहे संवाद, हमारा आप के साथ। और मिलता रहे सदा, आप सभी का आशीर्वाद।। दिल में जो आता है, मैं वो लिख देता हूँ। अपनी भावनाओं को, आपके सामने रखता हूँ। कुछ को पसंद आती है, कुछ का विरोध सहता हूँ। पर अपनी लेखनी को, मैं निरंतर रखता हूँ।। शिकायते है कुछ लोगों की, तुम विषय पर नहीं लिखते हो। कृपा विषय पर लिखे, और ग्रुप में प्रेषित करें। पर बनावटी विचारों को, मैं नहीं लिख पाता हूँ। और उनकी आलोचनाओ का, शिकार हो जाता हूँ।। उम्र बीत जाती है, अपनी छवि बनाने में। यदि कदम डगमगा जाए, तो रूठ अपने जाते है। इसलिए मन की सुनकर, मैं गीत कविताएं लिखता हूँ। तभी तो यहां तक, आज पहुंच पाया हूँ।।   परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष स...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
कलयुग के भगवान
गीत, भजन

कलयुग के भगवान

संजय जैन मुंबई ******************** तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। तुम हो ज्ञान के भंडार गुरु विद्यासागर। हम नित्य करें गुण गान गुरु विद्यासागर।। बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी सयंम नियम के महाव्रतधारी। तुम हो जिनवाणी के प्राण गुरु विद्यासागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। दया उदय से पशु बचाते भाग्योदय से प्राण बचाते मेरे मातपिता भगवान गुरु विद्यासागर । हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। जैन पथ हमको चलाते खुद आगम के अनुसार चलते। वो सब को देते विद्या ज्ञान गुरु विद्या सागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर। तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। ज्ञान के सागर विद्यासागर हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्या सागर।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
युद्ध थोपने वालों की हम
गीत

युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के साथ यकीनन, ऐसा करना है गद्दारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** युद्ध जहां पर महिलाओं को, बेवा बना दिया जाता है। युद्ध जहां पर गोदी सूनी, करके खून पिया जाता है।। अगर नहीं जीवन दे पाते, जीवन लेने का क्या हक है। हत्या करने या करवाने, वाला सचमुच नालायक है।। भले रहनुमा हो या राजा, उसकी भी है हिस्सेदारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** क्या जनता पर निर्मम होना, काम नहीं बोलो शैतानी। महल बनें खुद के नित नूतन, खोली उनके लिए पुरानी।। तनपर भले न उनके कपड़े, हाथों में हथियार थमा दें। हिम्मत करें प्रश्न करने की, हंटर भी दो चार जमा दें।। भक्ति काआश्रय लेकर हम, बोझ न उनपर लादें भारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ****** युद्ध युद्ध होता है भाई, सतपथ पर चलना आराधन। खून खराबा...
धारा विचलित गगन विचलित है
गीत

धारा विचलित गगन विचलित है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** धरा विचलित लगन विचलित है, मालिक अब संभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालों तुम।। तुम्हारे वश में मृत्यु है, जीवनधन तुम्हारा है। ये तुमको है पता फिर क्यों, नजर से ही उतारा है।। कोरोना के विषाणू से, हमें क्यों यूँ डराते हो। किया क्यों घरमें सबको बंद, खूँ आंसू रूलाते हो।। तुम्हारे थे तुम्हारे हैं, दयालु, देखोभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। कोई पत्ता नहीं हिलता न, हो मर्जी तुम्हारी तो। इशारा दो हवा हो जाए, मौला ये बीमारी तो।। ना माथे का मिटे सिंदूर , ना गोदी ही सूनी हो। ना छीने जाएं घर हमसे, न ये तकलीफ दूनी हो।। तुम्हारी शरणागत दुनिया, हमें भी तो निभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। यकीनन राज कोई इसमें, है जिसको तुम्ही जानों। है अच्छा क्या बुरा क्या है, इसे भी तुम ही पहचानों।। करम ...