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कविता

गुमसुम बैठ न जाना साथी !
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गुमसुम बैठ न जाना साथी !

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** गुमसुम बैठ न जाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी ! !! सघन कालिमा जाल बिछाए, द्वार देहरी नज़र न आए, घर की राह दिखाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! घर औ' बाहर लीप-पोतकर, कोने-आंतर झाड़-झूड़कर, मन का मैल छुड़ाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! एक हमारा, एक तुम्हारा, दीप जले, चमके चौबारा, मिल-जुल पर्व मनाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! आ सकता है कोई झोंका, क्योंकि हवा को किसने रोका ? दोनों हाथ लगाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
आओ प्यार का दीप जलाए
कविता

आओ प्यार का दीप जलाए

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** आओ प्यार का दीप जलाए हर चेहरो पर मुस्कान लाए ** निर्धन हो या अमीर तुम यारो हर दुखियों के साथी बनजाएं ** विश्व में नया सवेरा लाकर हम घर घर का गुलशन महकाएं ** रावन बन बैठै आज भी लोग दीपक बन कर राह दिखाए ** राग द्वेष भूला कर आपसी खुशियो का हम दीप जलाएं ** रह जाए गर कही अंधेरा यारो हम उनके घर भी चल आए ** भूखे नंगे सो रहे मोहनआज उन घरो का अंधेरा दूर भगाएं ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
अब की आई ऐसी दिवाली
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अब की आई ऐसी दिवाली

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब की आई ऐसी दिवाली कुछ आंसू कुछ दीपों वाली, जग सारा जगमग जगमग है रोशन हर इक गली डगर है, देश नगर भर कर उमंग में नए चरम को छूता है, अंधकार और तम विनाश को लड़ियां झूमर झालर लाए सजी रंगोली बंदनवार सजाए हमने, पूजन-पाठ आरती मंगल दीप धूप महकाया सबने, नए-नए रंग रूप संवारे सज धज लगते सभी प्यारे खीर-पूरी पकवान पकाए सब लोगों ने मौज उड़ाए, द्वार खड़े हम कुछ यूं खोए सब आए हैं, सब आयेंगे, बस मेरे पापा ना आए, फ़ोन कॉल के लिए तरसते रह गए मेरे कान, मेरे प्यारे बाबूजी की हैप्पी दिवाली सुन पाने को, अबकी आई कुछ ऐसी दिवाली, कुछ आंसू कुछ दीपों वाली।। परिचय :- सरिता चौरसिया पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया शिक्षा : एम. ए. हिंदी (बी.एड.) जन्म स्थान : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
वीरांगना झलकारी बाई
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वीरांगना झलकारी बाई

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** २२ नवम्बर २०२१ को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की सेनानी वीरांगना झलकारी बाई की १९१ वीं जयन्ती पर। झाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है। है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी है।। बचपन से लेकर मरने तक, मरती ही नहीं जवानी है। वीरता लहू में बहती है, घर घर की यही कहानी है।। बुन्देले तो बुन्देले हैं, जिनकी गाथा अलबेली है। उस पर गर्वित बुन्देलखण्ड, हर कौम यहाँ बुन्देली है।। मैं कथा सुनाऊँ यहाँ एक, योद्धा झलकारी बाई थी। जो मर्द न थी पर मर्दों के, भी कान काटने आई थी।। वह वीर व्रता अपनी रानी, झाँसी के लिए समर्पित थी। लक्ष्मीबाई की सेना में, दुर्गा दल की सेनापति थी।। हूबहू लक्ष्मी बाई सी, वीरता भवानी जैसी थी। वय में भी लगभग थी समान, सूरत भी रानी जैसी थी।। तलवार पकड़ते ही कर में...
आओ दीपक बन दीप जलाऍ
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आओ दीपक बन दीप जलाऍ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ दीपक बन दीप जलाऍ, अंतर्मन की ज्योति दमकाऍ। ईर्ष्या,द्वेष त्याग करके हम, प्रेम-भाव की किरणें बिखराऍ। माटी की काया का क्या गुमान? किस बात की तूझे अभिमान? जिंदगी रहते बंदगी कर लें, आज ही गंदगी को दूर भगाऍ। राम के आदर्शों को अपनाऍ, सीता माई से सतीत्व पाऍ। लक्ष्मण जी से लक्ष्य निभाऍ, भाईचारे की ज्योति जगमगाऍ।। परिवार में रहकर प्यार बांट लें, नवल दीपक बन प्रकाश फैला दें। हर ग्राम अयोध्या नगरी बन जाऍं, हर दिन हर पल रोशनी बिखराऍ।। नशा दुर्व्यसन से मुक्त करा दें, नवल ऊर्जा नव उमंग भर दें। नव किरणें नई तरंगें लहराऍ, नये आयामों से पर्व मनाऍ।। बेटी रूप ही असली लक्ष्मी है, संस्कारों के दीप जला दें। शक्ति-भक्ति का पाठ पढ़ा दें, सारे कष्टों को दूर भगा दें। व्याप्त बुराईयों को दूर भगाऍ, नवाच...
दीपावली
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दीपावली

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** वसुधा पर छाई दिव्य धारा दीपों की सुधा निधि द्वारा दीपावली पर्व है निराला चमके सबके भाग्य का तारा काली अंधयारी रात में आलोकित जग को कर डाला अज्ञानता का तिमिर मिटाकर दीपावली त्यौहार है आया देश सनातन संस्कारों का इंतजार करें अपने प्रभु का मनाएँ त्यौहार श्री राम का स्वागत अयोध्या धाम का दीपों का यह पर्व दिवाली सुखद और है आशावादी रहे सभी घर में उजियारा अँधियारा हो लोपित सारा खील पताशें हम सब बाँटे भाईचारा सीख बैर को छाँटें मानवता के बंधन बाँधकर दीपों का त्यौहार मनाएँ धरा प्रकाशित हो अविरल आओ मिल दीपमालिका सजाएँ परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
संसार
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संसार

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** क्या खूब बनाया ईश्वर ने संसार। यहाँ करते हम सबसे प्यार।। होकर एक सभी को रहना। नही पराया किसी को कहना।। ईश्वर की रचना है प्यारी। रीति यही सबसे है न्यारी।। हैं सब प्राणी हमको प्यारे। श्रेष्ठ कर्म हो सदा हमारे।। इस संसार में मिल कर रहना। सुख दुख सबको संग में सहना।। आये इस संसार में हम हैं। प्रभु कृपा से कुछ ना गम है।। प्रभु की रचना है यह सुंदर। इस सम और नही कोई दूसर।। इस पर जीना इस पर मरना। उत्तम कर्म हमे है करना।। पाया है संसार में सब कुछ। नही चाहिए और हमे कुछ।। स्वच्छ रहे संसार हमारा। हम सब में हो भाई चारा।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्प...
इस बार दिवाली पर
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इस बार दिवाली पर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** इस बार दिवाली पर पटाखे नहीं चलाएंगे। इस बार दिवाली पर पूरे देश को वैक्सीन से, कोरोना मुक्त बनाएंगे। इस बार दिवाली पर कोरोना से कमजोर हुई अर्थव्यवस्था को, मजबूती से फिर से आगे हम बढ़ाएंगे। इस बार दिवाली पर चाइना का सामान नहीं घर लाएंगे। शिक्षा के दीपक घर-घर जलाएंगे। इस बार दिवाली पर अंधविश्वासों की पकड़ से मानव को बचाएंगे। इस बार दिवाली पर स्वर्णित भारत के सपनें को, पटाखों से नहीं हरित दिवाली से सजाएंगे। इस बार दिवाली पे, आत्मनिर्भर जन जन को बनायेंगें। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
धनतेरस आई
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धनतेरस आई

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कार्तिक मास कृष्ण पक्ष। तेरस तिथि धनतेरस आई। संग अपार खुशियां लाई। भारत भू-वासी धनतेरस। पर्व मना अति हर्षित हो गाई। चहुँओर आनंद,उमंग छाई। धनतेरस दिवस समुद्र मंथन। काल वेदध धनवंतरी अमृत। कलश भारतावासी पाई। आज सकल जन धन्वंतरी। देव पूजन अर्चन कर। निरोगी काया आशीर्वाद पाई। सबहि निरोगी काया। वरदान पा उर हर्ष भायी। सबहि जन धन्य-धन्य हो जाई। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
दीपावली का कर्ज
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दीपावली का कर्ज

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कर्ज से परेशान मांगू ने सोचा अब दीपावली कैसे मनायेगा अच्छा तो यह है कि वह. गोली खाकर मर जायेगा। काम से लौटकर घर आया आते ही धनिया ने सारा किस्सा सुनाया क्या करता क्या कहता ऐसे दुख रोज ही सहता। फिर धनिया बोली चलो छोड़ो हाथ पांव धोलो बची खुची खिचड़ी आज बना ली है में और तुम बचे हैं बच्चों ने अपने-अपने हिस्से की खा ली है। दोनों ने मिलकर खाना खाया मांगू बोला में थोड़ा टहलकर आया टहलकर आया बीबी बच्चों को सोता पाया सोचा अच्छा है अब गोली खा लूंगा सारी मुसीबतों से एक साथ छुटकारा पा लूंगा। उसे क्या मालूम धनिया ने खिचड़ी नहीं खाई है परिवार के लिए पानी पीकर डकार लगाई है खाली पेट नींद नहीं आ रही थी खाट पर हाथ पांव हिला रही थी। मांगू ने मौका पाकर गोली खाने की हिम्मत जुटाई इतने में धनिया की आवाज आई सुनते हो रामू के ब...
ये बेटियाँ लावणी छंद
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ये बेटियाँ लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** घर की रौनक होती बेटी, है उमंग अनुराग यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। जब हँसती खुश होकर बेटी, आँगन महक उठे सारा। मन मृदङ्ग सा बज उठता है, रस की बहती है धारा।। त्योंहारों की चमक बेटियाँ, मन मन्दिर की ज्योति है। प्रेम दया ममता का गहना, यही बेटियाँ होती है।। महक गुलाबों सी बेटी है, कोयल की है कूक यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। बसते हैं भगवान जहाँ खुद, उनके घर यह आती है। पालन पोषण सर्वोत्तम वह, जिनके हाथों पाती है।। पल में सारे दुख हर लेती, बेटी जादू की पुड़िया। दादा दादी के हिय को सुख, देती हरदम ये गुड़िया।। माँ शारद लक्ष्मी दुर्गा का, होती है सम्मान यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही। मात पिता के दिल का टुकड़ा, धड़कन बेटी होती है। रो पड़ता है दिल अपना जब, द...
अब की बार ऐसी हो दिवाली
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अब की बार ऐसी हो दिवाली

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** अबकी बार मनाओ ऐसी दिवाली। गाँव-शहर में हो जाए खुशहाली।। प्रदूषण से हो जाए गलियाँ खाली। सब मिल कर मनाओ ऐसी दिवाली।। लक्ष्मी जी की पूजा करने वालों। भ्रूण हत्या रोकें ऐसी हो दिवाली।। शोषण से मुक्त हो जाएगी हर नारी। रावणवृति हम त्यागें ऐसी हो दिवाली।। बुराई को रोकें नैतिकता से नातां जोड़ें। राम-राज्य हम लाएं ऐसी हो दिवाली।। जातिवाद-साम्प्रदायिकता की जड़ काटें। मानवता का पाठ पढाएं ऐसी हो दिवाली।। पाखण्डी-लोगों व आतंक का हो अंत करें। 'नाचीज़" प्रेम-भाव हो ऐसी मनावें दिवाली।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
आज कई कोस
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आज कई कोस

राम कुंवर (दिल्ली) ******************** आज कई कोस लोगो को पैदल चलते देखा है दो वक्त की रोटी के लिए भूख से तङपते देखा है अमीरो को हवाई जहाज से वतन लौटते देखा है गरीबो को वतन मे दर-बदर भटकते देखा है। परिचय :-  राम कुंवर दिल्ली विश्वविद्यालय। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindi...
नवदीप जलाये
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नवदीप जलाये

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** झिलमिल-झिलमिल, नवदीप जलाये। मन मलिनता, तमस दूर भगायें।.... शुभ अवसर है धनत्रयोदशी, खूब सजे बाजार। नर-नारी प्रफुल्ल हो, खरीद रहे उपहार। बालगोपाल मन भा रही, वस्तु मनबहलाव। नवोदित परिधान संग, फुलझड़ी पटाखों का चाव। अम्माँ बर्तन गहने, घरेलू उत्पाद मंगाये। झिलमिल झिलमिल, नवदीप जलाये।.... घर आँगन में बहिना ने, दीपक प्रज्वलित किये कतार। गाँव नगर में चहुंओर, मानों छाई खुशियाँ अपार। उजाले की उमंग से फैला, खुशियों का सैलाब। मिट रहा अशुभ अनीति, अधर्म का फैलाव। आओं मिल सब, राष्ट्रप्रेम के गीत गुनगुनाये। झिलमिल झिलमिल, नवदीप जलाये।.... परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सत्य वचन
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सत्य वचन

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीप जलने से पतंगे का, अरमान छुपा होता है। भक्त की लग्न में भगवान, छिपा होता है। ऐ दुनियाँ के समझदारों, इतना तो समझ लो, हर इंसान के दिल में, कोई न कोई भगवान, छिपा होता है। रिमझिम बरसात में, मोती पिरोता है कोई। नरजन्म को पाकर, सफल बनाता है कोई। युं तो रोज आते हैं, चले जाते हैं लेकिन, धर्म के प्रति समर्पित, होते है कोई। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक ...
कर्मयोगी बनो
कविता

कर्मयोगी बनो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** शब्द सारगर्भित हों अंदाज में तुम्हारे स्वाभिमान हो। जिंदगी जीने की कसक हृदय में हो, तो मृत्यु से भयभीत न हो। शांतमन के आकाश में सप्तर्षियों का ज्ञान भरो। कभी भौतिक भटकाव से ग्रसित हो तो आध्यात्म (हृदय) की आकाशगंगा में स्वयं पवित्र हो। राजमहलों में प्रेम न खोजो, जहाँ कुटिलताओंं का जाल बिछा हो, इंद्रधनुषीय रंगों सी छटा बिखेरता निश्छल प्रेम पाना हो तो झोपड़ियों की ओर चलो। तुम निष्काम निस्वार्थ रचनाकार हो गुदड़ी के सपूतों का मर्म रचो। सम्मान में उनके स्वतंत्र कलम तुम्हारी सदैव तत्पर हो। जीवन के महायज्ञ में कर्म को प्रधान जान कर्मयोगी बनो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इ...
दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** आओ मिलकर दीप जलाएं, पंक्ति बनाकर राह सजाएं; इस धरती से उस अंबर तक, ज्योत जलाकर तिमिर मिटाएं। आओ....... हर आंगन जगमग हो जाए, खुशियों की वर्षा हो जाए; जब एक दीपक जले दीप से, चहुं ओर झिलमिल हो जाए। आओ..... दीपोत्सव की शुभ बेला में, अंतर्मन में ज्योत जलाएं; प्रेम भरी कोमल बाती से, मन आंगन दीप्त हो जाय। आओ..... स्वयं जले पर रोशन कर गए, जाने कितने घर चौबारे; आओ इन बुझे दीपों का, आदर देकर मान बढ़ाएं। आओ..... परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित।...
हरसिंगार
कविता

हरसिंगार

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो !!!! प्राणाधार तुम मेरे सौंपा था जो तुमने कभी जो मुझे रोपा था जिसे कभी हाथों से अपने स्नेह से सींच-सींच वह हरसिंगार मैने रखा है सदा सहेजकर अपने आंगन में जलधि रखता है जैसे मोती सीप में आंधियों से बचाते हुए बहुधा उसे देखा था तुम्हें भी तो मैंने यत्न से हां !हां! वही हरसिंगार है अब कुसुमित नेह परिजात उस पर है सुशोभित तुम-सा ही तो महकता है यह हरसिंगार झर - झरकर मेरी राह में बिछता है बार-बार सुनों ! ! प्राणाधार तुम मेरे तुमसा ही तो महकता-महकाता है ये हरसिंगार परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
खुशियों के दीपक
कविता

खुशियों के दीपक

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दिवाली में! खुशियों के दीपक जलाना! आई है दीपों का त्यौहार खुशियों से झूमे नाचे गायें मिट्टी को सौंधी सौंधी खुशबू मेहनतकश कुम्हार की मेहनत बेकार ना तुम जाने देना दो जून की रोटी उन्हें खिलाना मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दीपावली में! खुशियों के दीपक जलाना! भेद-भाव, राग-द्वेष मिटाना करना तुम छोटी सी शुरुवात ही राजा हो या रंक या मध्यम सब मिलजुल मनाना दिवाली ऊंच-नीच का भेद मिटाना प्रेम का उजियारा फैलाना मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दीपावली में! खुशियों के दीपक जलाना! विदेशी कृत्रिम विद्युत दिए ना जला विद्युत भी बचाना है देश की पूंजी देश में रखना मिट्टी को मुहिम बनाना है मिट्टी से ही प्रेम करना है और अपना फर्ज निभाना है मिट्टी के दिये जलाना अबक...
सुपावन बेला
कविता

सुपावन बेला

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** सुपावन बेला अमावस की, यामिनी का दीप श्रृंगार रूप अनूठा आज धरा का, अनुपम छवि नयन भर निहार ।।१।। माँ लक्ष्मी कमलासन बैठी, विराजे आकर के‌ गणेश अन्न व धन बरसाने वाली, गणपति बुद्धि देते अपार।‌।२।। नमामि बिष्णु पत्नी भवानी, करो कल्याण अखिल जग का खड़े हैं दीपमाला लेकर, विनय करते हैं बार -बार।।३।‌। ज्योति अपनी छिटकाओ माँ, कलुष क्लेश रह न जाये माँ दया करो हे गणपति तुम भी, दो हमें बुद्धि का भंडार।।४।। हर कोना प्रकाशित हो यहाँ, हर चेहरे हों खिले खिले विवश बेचारा न हो कोई, खुशियाँ आयें पंख पसार ।।५।। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य ...
वह भी दिवाली मनाएगा
कविता

वह भी दिवाली मनाएगा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अबकी मिट्टी के दीये लाना! फिर देखना उसका मुस्कुराना!! प्यारे मोल भाव तनिक न करना! मुट्ठी उसकी खुशी से भरना!! फिर देखना उसके चेहरे को! कम होते दुख के पहरे को!!! फिर वह भी दीवाली मनाएगा! घर अपने खुशहाली ले जाएगा!! बिटिया उसकी भी इठलाएगी! मांँ के संग दीये जलाएगी!! छोड़ेगी भाई संग फुलझरियाँ! धानी संग पिरोएगा खुशी की लड़ियांँ!! इस बार बनेगा घर में घरौंदा! बिक जाए मुंँहमांँगे दाम जो सौदा!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
सफर के पीछे हमसफर
कविता

सफर के पीछे हमसफर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** आगे सफर था और पीछे हमसफर था.. रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता। मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी.. ए दिल तू ही बता, उस वक्त मैं कहाँ जाता... मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था। रूकते तो बिछड़ जाते और चलते तो बिखर जाते.... यूँ समझ लो, प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी में जहर था... पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते। बस! यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए!!! ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!! वक़्त ने कहा.....काश! थोड़ा और सब्र होता!! सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता! सुबह-सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।। "हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!! "शिकायतें तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** जलती हुई चिंगारी हमेशा समाज को रोशन करती है दूसरों की भलाई के लिए स्वयं जल जाती है और जलने वालों का भी पोषण करती है ना ही कभी किसी का और समाज का शोषण करती है चूल्हे में दबीहुई चिंगारी से जब राख हटाते हैं तभी चूल्हा जलापाते हैं और रोटी पकाकर खाते हैं तब मानव रूपी पुतले अपना पेट भर पाते हैं तब इतराते हैं फिर वह होली जलाने वाली आग हो या चूल्हे में दबी चिंगारी जब हट जाती है उसपर चढ़ी राख तो हरे भरे जंगल को भी जलकर करदेती है खाक ऊंचे-ऊंचे पेड़ जो आसमान को छूकर अपने घमंड मैं ईतराते हैं वह भी चूल्हे में दबी चिंगारी की आग से राख हो जाते हैं तब उसकी अहमियत पता चलती है के एक छोटी सी चिंगारी पूरे जंगल पर पड़ गई भारी परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - ग...
मालवा की पहचान
कविता

मालवा की पहचान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १ नवंबर को मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस है इसी उपलक्ष्य में मैं मालवा की पहचान नामक अपनी स्वरचित अप्रकाशित प्रसारित रचना प्रस्तुत कर रही हूं जिसमें मालवा प्रदेश के ग्रामीण जनजीवन प्रतिदिन के नित्य कर्म को दर्शाया गया है आशा करती हूं पाठक वर्ग रचना की गहराई को समझेंगे धन्यवाद। छत से निकलती धूएं की लकीर मन में लिए हुए साहू की पीर अधरों पर फिर भी है राम का नाम वह देखो चला है मालव का किसान यही मेरे मालव की प्रातः पहचान घुंघरुओं की छनन-छन पगडंडी पर फैले पत्तों की चररचर बैलों की झुकती गृवाऐ मानो उगते रवि को करती है प्रणाम यही मेरे मालव की प्रातः पहचान गायों के गोठो से उठती दुलार भरी डपटे कंधों पर डाले मटमेले गमछे हाथों में थामे दूध पात्रों का भार मस्त हो गा रहा आल्हा ऊदल के गान मेरी काली माटी का जवान यही मेरे मालव...
दीपक
कविता

दीपक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुम्भकार ने माटी घड़कर मुझे एक आकार दिया है मेरे अन्दर स्नेह संग बाती जलती है किरणें आलोकित होतीं हैं दसों दिशाओं में जातीं हैं उन्हें देखकर अंधकार निर्वासित होता शरण माँगता है वह सबसे कहीं आश्रय उसे न मिलता मुझे दया आ जाती उसपर वह विनयी हो कहता मुझसे "मुझे आश्रय दो चरणों में" मेरे चरणों में वह रहता जगमग करतीं सभी दिशाएँ मेरी आलोकित किरणों से परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, ...