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कविता

बाल दिवस
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बाल दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । देश के आत्मसम्मान को सींचा जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है। १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । कहा था...... जिसने आज के बच्चे कल का भारत बनाएंगे । स्वतंत्र भारत का दिया है सपना । वह स्वर्णिम भारत बनाएंगे ।। सपना देखा सजी बाल-बगिया का जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है । १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । बाल दिवस के मूल उद्देश्य को सार्थक भी बनाना है। बच्चों की शिक्षा, संस्कार का बीड़ा भी हमें उठाना है। हर शोषण से बचें बालमन । नेहरू के भारत को बच्चों की बगिया से सजाना जाना है । परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हू...
हाड़ी रानी का त्याग (काव्यखंड)
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हाड़ी रानी का त्याग (काव्यखंड)

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** ये कथा हैं एक जौहर की एक केशरिये पानी की समरखेत में शीश छौंपने* वाली हाड़ी रानी की एक निशा न बीती बंधन ये कुदरत की अठखेली थी मेहंदी का रंग तर पड़ा था हाड़ी अभी नवेली थी सुनते जाओ रजपूती को तुम्हें सुनाने आया हूँ और हाड़ी वाली क्षत्राणी के बलिदान को गाने आया हूँ एक समय जब काल के बादल मेवाड़ धरा पर मंडराए कम्पित हुई जनता सारी स्वयं महाराणा घबराए औरंग की सेना ने कूचा मेवाड़ी प्राचीरों को राजसिंह घबराए और पत्र भेजे उन वीरों को शीघ्र बुलाओ चुंडावत को वो औरंग को रोकेगा समरांगण में वही मात्र हैं जो प्राणों को झोंकेगा सुनते जाओ अभी शेष हैं स्वाभिमानी लहू पड़ा हाथ ध्वज ले चुण्डा विजय को क़िले के आगे जूझ खड़ा सुनते जाओ रजपूती को तुम्हें सुनाने आया हूँ और हाड़ी वाली क्षत्राणी के बलिदान को गाने आया हूँ ...
नेतृत्व की फतह
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नेतृत्व की फतह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाए फतह। निःस्वार्थ समर्पित नेतृत्व, समय दान में मस्त रहे। छोटा सुंदर जीवन क्यों, बाधाओं से अभिशप्त रहे। लेकर चलने की उत्कंठा, बाधित नहीं किसी तरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। शब्द आंदोलन कटुता, लकीर गिराना उचित नहीं निज बल से होते सफल, नेतृत्व कमल खिले सही अपनी लकीर बढ़ाना है, छोड़ो जलन स्वार्थ कलह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह । राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। अकेले बीज की ताकत से, प्रचुर मात्रा सब पा जाते साथियों की उर्वरक फसल, समाज को दिशा दिखाते भावी पीढ़ी पाए प्रेरणा, रहे विलग ही व्यर्थ जिरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह राग द्वेष पद मो...
करम धरम ल पहचानव
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करम धरम ल पहचानव

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. जिनगी के नइय ठिकाना हो जाही बेड़ापार गँ ... जइसे करनी वइसे भरनी सब ल मनसे जानत हे ... कथनी करनी मँ भेद होगे त पाछु ल पछतावत हे ... बदले गे संगी अब जमाना सब ल तैंहा उबार गँ .... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. संस्कार के बीज ल रोपो पीढ़ी ल बताना हे ... नैतिक अऊ अनैतिक भेद ल युवा जवाँ ल सिखाना हे .. धरम संस्कृति हमर खजाना जिनगी ल सँवार गँ... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. आवत-जावत , हांसत-रोवत , इही जीवन के खेल हे .. मिलत-जुलत अऊ ह बिछुड़त , दुनिया ह एक मेल हे .. ऐके जीव सब मँ बसे हे कर ले तैहा उपकार गँ ... अपन करम ल सुधार संगी अपन धरम ल पुकार गँ.. मानव धरम एक हे भाई समाज ल परखाना हे.. जात-पांत के भेद ल छोड़ो भाई...
सोशल मीडिया की गलियों में
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सोशल मीडिया की गलियों में

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार (म.प्र.) ******************** सोशल मीडिया की गलियों में ढूंढ रहे हम ऐसा मित्र जो हमे लगे अपना सा, देख के प्रोफाइल उसकी यह है सीधा-सादा और कलीन है इसका चरित्र, पर किस्मत कई बार दे जाती है धोखा, जो दिख रहा था राम हमें वह तो निकला रावण सा, इस भूल-भूलैया सोशल मीडिया की गलियों में बहुत मुश्किल है पाना अच्छा मित्र मित्र तो स्कूल के समय के ही अच्छे थे, जिसके मन में ना था कपट ना लालच। जिसे हम नजदीक से देखते थे, मिलते थे और झगडते भी थे, दूसरे दिन सब भूल भूला के वापस वही उमंग से मिलते थे। सोशल मीडिया की गलियों कौंन मित्र अच्छा कौंन बुरा है क्या पता जीवन इसी सोच में लगा है, भरोसा ना अब होता है, इसलिये सोशल मीडिया की गलियों में जाने से भी दिल अब डरता है। किस राहों में कोई अपनेपन का चोला ओढ़े हमें ठग जाए, इस गलियों में गन्दगी हो ना भले सही लेकिन...
मधुमक्खी और चिड़ियारानी
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मधुमक्खी और चिड़ियारानी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ सामना मधुमक्खी का, इक दिन चिड़िया रानी से। चूं-चूं कर बोली मक्खी से मीठी, मधुरम वाणी से।। बड़े परिश्रम और लगन से छत्ता सखी बनाया तुमने। चुन-चुन फूलों का मधुरस मीठा शहद जुटाया तुमने।। वृक्ष शाख बैठी थी मैंl देख रही थी इधर उधर। आते देखा इक मानव को पहुंच गया वह छत्ते पर।। शहद तुम्हारा चुरा लिया, छत्ता भी लेकर चला गया। सभी मक्खियां बिखर गईं, मानों सबको वह रुला गया।। बोली रानी मक्खी- और कर भी क्या सकता मानव है? रहम नहीं है तनिक उसे, वह सचमुच पूरा दानव है।। खुली चुनौती मेरी उसको, शहद बनाकर दिखलाए। हुनर हमारा शहद बनाना, कोई उसे ना सिखलाए।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
तेरी यों ही गुजर जायेगी
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तेरी यों ही गुजर जायेगी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** मत कर निज प्रसन्नता की बात, तेरी आत्मा बिखर जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भाव-भावना रौंदी अब तक, आगे भी रोंदी जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भुलाना जीवन अनुभवों को, तेरी मूर्खता ही कहलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || करेगा स्व- सुख की बात तो, परछाई भी दूर हो जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || बदला यदि तू नहीं अब तक, तो दुनियाँ क्यों बदल जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || कटुता भरे तेरे जीवन में, अब मधुरता नहीं चल पायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || चली है सृष्टि शिव-शक्ति कृपा से, आगे भी शक्ति ही चलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ह...
मैं भारत हूं
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मैं भारत हूं

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** मैं भारत हूं मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मार पालथी बैठा हूं…. कहीं सड़कों पर, कहीं मंदिरों में, कहीं चौराहे पर तो, कहीं अनाथालयों में, बस दो जून की रोटी को… मैं दर दर हाथ फैलाता हूं। मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मिलूंगा बर्तन धोते हुए.. मैं मिलूंगा ठेला उठाते हुए। मैं हूं लावारिस हालत में, कहीं किस्मत को आजमाते हुए। है मृदुल सा मेरा बदन, मैं रूखी-सूखी खाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं सर्कस का हूं बंदर, मुझे अमीर मदारी नचाते हैं। करके मेरा अपहरण कुछ, अकर्म भी करवाते हैं। मेरी जठराग्नि बनती अभिशाप, हर चंगुल में फंसता जाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं मिलूंगा कहीं झाड़ियों में, ज़ख्म से रोते बिलखते हुए। मैं मिलूंगा बीच बाजार तुम्हें, गर्म लोहे को पीटते हुए। म...
निज कर्मों से निखरूंगा
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निज कर्मों से निखरूंगा

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** आशा के कुछ क्षणभर लेकर, साहस भरे कदमों से चलकर आँधी और तूफ़ानों से लड़ना शत्रु से शत्रु बन भिड़ना प्रखरता के चरम क्षणों में पत्थर बनकर न बिखरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा यश-अपयश और क्षमा-याचना, सुख-दुःख में कर पाप-प्रार्थना ध्येय के पथ से न बिसरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा कुंठा, व्यथा, चित कामना धूमिल भाव की द्वेग भावना परपीड़क आनंदित होकर कर्मसाधना को मंदित कर-कर, ऐसा सार ना रचूँगा निज कर्मों से निखरूँगा निज कर्मों से निखरूँगा परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर रुचि : साहित्य, संगीत, प्रशासनिक सेवा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
नज़र
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नज़र

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** नजरों से नजर तुम मिलाते रहो, कुछ सुन लो वचन कुछ सुनाते रहो। अपनों से मिली नफ़रतें है बहुत, गैरों से हस्त भी मिलाते रहो। आया काम नहीं जो कठिन राह में, उनसे भी रिश्तों को निभाते रहो। झुकने दे न मानव कभी शान को, खुद के भी अहम को गिराते रहो। मिटता ही नहीं है अहम पर सदा, तुम मन से वहम को मिटाते रहो। देखो तो उन्हें जो भटकते रहे, भटकों को दिशा सी दिखाते रहो। मिले जो न हो सो सका, गहरी नींद में तुम सुलाते रहो। कभी आप गुनगुनाते रहो, कभी हम मुस्कराते रहे, नज़र ना लगे किसी की किसी को बस सभी सलामत रहो। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से ...
किस बात का दीप
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किस बात का दीप

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? क्या अंधियारा मिटा चुके हो, दीन हीन उजड़े बागन में? क्या कुम्हार के बच्चों का, बिस्कुट टॉफी है याद तुम्हें, या आधुनिक जगमगता में, पर्यावरण सुधि तुम भूले? किस बात के बम पटाखे, छोड़ रहे हो तुम गगन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? जिसने मर्यादा को जीती, उनके स्वागत में नर नारी, ले मसाल प्रसन्न हो भागे, दीप जलाए घारी घारी। क्या कुछ मानवता अपनाए, तुम भी अपने युग सावन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? कैसे हो रोशन हर कोना ? साफ सफाई बड़ी नेक किये। पर अंधियारा छिपा हिया में, चाहे जलाए लाख दिए। क्या एक बाती प्रेरण की, कभीजलाए अपने जीवन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में। क्या तुम अपने छल कृत्यों, को देख रह...
रावण जीत गया
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रावण जीत गया

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** हमारे शहर में अब की रावण नहीं जलेगा, मुखिया ने कहा है वो गुनहगार नहीं है। पांच हजार की आबादी में एक शख्स नहीं बोला, सच है ये कड़वा कोई चमत्कार नहीं है। क्या फ़र्क पड़ता है, अच्छा हुआ, पैसें बचे, जिंदा लाशों से बदलाव के कोई आसार नहीं हैं। बेटे ने पूछा बाप से अबकी राम घर नहीं आयेंगे? क्या अयोध्या पर उनका अधिकार नहीं है? क्या चित्रकूट में भरत इंतजार में खड़े रहेंगे ? निषाद के फूल गंगा पार राह में पड़े रहेंगे ? क्या हनुमान सीना चीर के भगवान नहीं दिखाएंगे ? और क्या हम सब भी दीवाली नहीं मनायेंगे ? प्रश्नों की इन लहरों ने भीतर तक हिला दिया, अनजाने ही सही उसने मुझको खुद से मिला दिया। सच कहूं या झूठ बोलूं क्या समय की शर्त है, या कहूं कि बरसों पहले हुई अग्निपरीक्षा व्यर्थ है। आज दशरथ मौन है कैकेई की कुटिलाई पर, राम म...
दीप जलाएं
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दीप जलाएं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इस दीवाली दीप जलाएं चहुं दिशा प्रकाश फैलाएं तिमिर को नतमस्तक कर, उल्लास का दिया जलाएं, सृष्टि संग मिलकर, सद्भावना का गीत गाएं। सशक्त भावना निहित हो कामना विकास की, चमक उठे वसुंधरा, चमक उठे ये गगन। प्रसन्न जीव जन हों, लगे सुकर्म में सभी, शुद्ध चित्त का निर्माण हो, अथाह स्नेह परिपूर्ण हो, ना छल कपट बढ़े कहीं ना, लोभ भय का वास हो, निराश मन, हताश जन में प्रेम का प्रसार हो। जगत जहां निहाल हो ये सुखमई गीत गाएं, आई दीपावली खुशी मनाएं, हम सब मिलकर दीप जलाएं।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक...
कौन हूं मैं
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कौन हूं मैं

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** प्रगटा जब यहां तो सारा, कायनात शून्य था। नेत्रों से दृश्य सब, मैं दृश्यों के तुल्य था।। नीकल जूंबा से चीख मेरे, कानो में धुन्न था। रंगीन कायनात भी, रंगों से अपुर्ण था।। मेरे पुर्व यहां सभी, नामों से भी बेनाम था। मै खड़ा था जहां, वो जगह भी अनजान था।। इस जग से वाकिफ क्या, मैं खुद से अनजान हूं।। मन मे ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। मन में ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। कण कण से बना मैं, ना आदि का संयोग हूं। हूं ना काव्य रस मैं, पर रस से परिपूर्ण हूं।। मुझी से ये जमाना है, जमाने से मैं ना हूं। मन में ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। कर्म मार -काट का, तो मैं एक क्षत्रिय हूं। वो ही ज्ञान बांट का, तो मैं एक ज्ञानिय हूं।। कर्मों से जानू मैं , ऐसा ना कर्मजान हूं। मुझी से सब बने यहां, मैं...
स्वयं दीप बनकर
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स्वयं दीप बनकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जब तक ये अंधेरे, चाल चलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। कोने-कोने में सत्ता को षड्यंत्र फैले, हो गए, अपने मस्तिष्क के मंत्र मैले, तम मिटाने को सपने तो पलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। सदां की तरह आँधियाँ आएं तो क्या, ज्योति, कभी डगमगा जाएं तो क्या। हम जलते रहेंगे, और संभलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। हमने दादा से सुनी है, पुरानी कहानी। निश्चित ही, एक दिन तो है भोर आनी। हम तब तक तेल-बाती बदलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके ...
प्यारा भैया
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प्यारा भैया

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** भाई दूज त्योहार है पावन। भाई मेरा बड़ मनभावन।। प्यारा भैया राज दुलारा। सब की आँखो का है तारा।। भैया है लाखों में एक। भाई दूज की रीती नेक।। है अनमोल रत्न ये प्यारा। लगे प्रेम से रिश्ता न्यारा।। भाई दूज की पावन वेला। कभी रहे ना कोई अकेला।। भाई बहन से रौनक जग है। त्योहारों का चमक अलग है।। भाई दूज पावन त्योहार। घर घर हो सुख की बौछार।। भैया की ले रही बलैया। सदा रहे खुश प्यारा भैया।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
ग़ुलाब
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ग़ुलाब

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** पत्ती-पत्ती, पंखुड़ि-पंखुड़ि, ख़ुद में एक कहानी गढ़ते। भोर सुहाना, दिन मस्ताना रंग निराले ख़ुद में भरते। तोड़े बिना डाल से इनको, ध्यान मग्न हो देखा करिये। टूट रूठकर गिरें जमीं पे, अंजुरि भर, मत फेंका करिये। प्रीति ग़ुलाबों सी होती है, महक़ परिंदे सम उड़ती है। सूख जाएं तरु के प्रसून, ख़ुशबू कभी न कम होती है। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं। सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप ...
प्रकाश पर्व
कविता

प्रकाश पर्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** झिलमिल-झिलमिल प्रकाश पर्व पर जन-जन को है बधाई शुभकामना मेरी पहुंचे घर आंगन अमराई शुभ संकेत स्वस्तिक निकले हर घर के आंगन में शुभ लाभ का जोड़ा रचे हर घर की दीवारों में यही कामना मेरी हरदम आंगन चंदन रोली नववधू दीप थाल सजाए मंगल दीप ज्योति से भर जाए बहू बेटी बहना सजे सजे घर सारा और सजे मिताई रुनझुन-रुनझुन बाजे पैजनिया और बजे शहनाई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती...
भू पर दीप जले हैं
कविता

भू पर दीप जले हैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुम्भकार के हाथों में ही, जन्मे और पले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। देह भूमि की मिटटी की है, चक्के पर चढ़ आए। कुम्भकार ने इन दीपों के, शुभ आकार बनाए। तेज ताप में काया तापी, तप कर ठोस ढले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। दीप आज आलोकित अगणित, किरणें भाग रहीं हैं। आज रात में सकल दिशाएँ, तम को त्याग रही हैं। देख रश्मियों को अँधियारे, बैठे दीप तले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। जब प्रकाश करते हैं दीपक, होता है मन पुलकित। कीट-पतंगे हों या मानव, होते हैं सब हर्षित। रात में सभी की आँखों को, लगते नित्य भले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू...
शर्मीला चाँद
कविता

शर्मीला चाँद

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** मेरा चांद बहुत शर्मीला है, चांद रातों को भी दीदार नहीं होते। जो आ जाता तू एक बार आसमां में, हर शब हम यूं बीमार नहीं होते।। तेरे इश्क की चांदनी में डूबे हैं, अंधियारी रात के शिकार नहीं होते। लुका छिपी तेरी आदत बन गई है, तेरे इस खेल के हिस्सेदार नहीं होते।। अदाओं से करता है वार मुझ पर, पास मेरे हथियार नहीं होते। लिपटना चाहता है जब वो हमसे, उस वक्त मग़र हम तैयार नहीं होते। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
आओ मिलकर दीप जलाएँ
कविता

आओ मिलकर दीप जलाएँ

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएं, सबके जीवन में खुशियॉं लाएँ आओ मिलकर दीप जलाएँ। हर घर आँगन चौवारों पे, मन मन्दिर और शिवालयों में, यह रात अमावस्या की धोखा खा जाए, आओ मिलकर दीप जलाएं। किसी झोपड़ी, किसी गली और चौराहे पे, कहीं अंधेरा रह न जाए आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। नहीं जलाएँगे आतिशबाजी, नहीं जलाएँगे बम धमाके, प्रण ऐसा जन-जन में कर जाएँ, जीवन को न नरक बनाएँ, वातावरण शुद्ध बनाएंँ आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। अध्यात्म, विज्ञान का लाभ उठाकर, घर आँगन लक्ष्मी बुलाकर, पर्यावरण का दीप जलाकर, राष्ट्र प्रेम का दीप जलाकर, आओ प्रदूषण राहित दिवाली मनाएँ , सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओमिलकर दीप ज...
आजमाइश
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आजमाइश

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रास्ते में कांटे बहुत है चलो थोड़ी सी साफ सफाई की जाए। बहुत हो चुकी है मोहब्बत चलो थोड़ी सी नफरत कर, सब की ज़रा आजमाइश की जाए। रास्ते में कहने को अपने बहुत है, चलो किसी अजनबी पत्थर से टकराकर, अपनों के बीच खड़े परायो की ज़रा आजमाइश की जाए। रास्ते में दिखने को आज कल मोहब्बत बहुत है चलो किसी एक शख्स से प्यार कर इश्क की आजमाइश की जाए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
जिंदगी को महकाना
कविता

जिंदगी को महकाना

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** त्योहारों के दिन आते ही गरीब की मुश्किलें बढ़ती जाती है अच्छे कपड़े, अच्छे भोजन नाना प्रकार के सामग्रियों की जरूरत गरीब की कमर तोड़ देती है अभावग्रस्त जीवन चूल्हे की बुझी राख भूख और बेचारगी से बिलखते बच्चे हताशा और निराशा के अंधेरे में तड़फता बिलबिलाता जीवन गरीब का मन कचोटता है उस गरीब का देखकर अपने बच्चों की हालत दूसरी तरफ विलासितापूर्ण जीवन सांस्कृतिक परम्परा आधुनिकता की बलि चढ़ रही मंहगे-महंगे तोहफ़ों का लेन देन का झूठा दिखावा आरम्भ हो जाता ये महंगे तोहफे कभी भी रिश्तों को मजबूत नही बनाते हैं रिश्ते अपने रिश्तेदारों से अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करता हुआ दिखता है रूपयों में इतनी ताकत सच्ची होती रिश्तों की सच्चाई कुछ और ही होती भावना और भावनाओं को समझने क्षमता नहीं वरना अपने व गैरों की ...
कुछ तो बोलो न
कविता

कुछ तो बोलो न

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कब तक मन ही मन घुटते रहोगे तन्हाइयों में यूं ही जीते रहोगे देखा नहीं जाता तुम्हारी खामोशी को ग़म हो या खुशी अपनों से बांटा करते हैं कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो ना अगर किसी ने दिल तोड़ा है तुम्हारा खता तुम्हारी भी तो कहीं रही होगी वो तुम्हारे लिए नहीं जो पास नहीं समझो न लेकिन यूं खुद से खुद की दूरी बनाओ न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न ग़म बांटकर तो देखो अश्कों में बहा दो न बुरा ख्वाब समझ जीवन में बढ़ चलो न कब तक खुद से खुद को सजा दोगे मन ही मन घुटते रहोगे थोड़ा बाहर निकलो न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न जिंदगी खूबसूरत है बहती नदिया सी उसको बहने दो जिन्दगी को यूं ठहराओ न होंठों पर मुस्कान बिखेरते आगे को बढ़ जाओ न एक पड़ाव पार कर अब आगे बढ़ मंजिल पा लो कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न परिचय ...
दीपावली यह मंगलमय हो
कविता

दीपावली यह मंगलमय हो

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** बृहस्पतिवार के स्वभाव से, चित्रा- नक्षत्र अति उर्जामय हो | सुंदरतम् प्रीति-योग से, दीपावली यह मंगलमय हो | | चंद्राऽर्क स्थित तुला राशि में, भोम-बुध भी तुलामय है हो | मंद-वृहस्पति मकर में तो, दीपावली यह मंगलमय हो || वृष में राहु वृश्चिक में केतु, धनु राशि आज शुक्रमय हो | ऐसे शुभग्रह पंचांग योग में, दीपावली यह मंगलमय हो || शुभ-लक्ष्मी सुलक्ष्मी आए गृह में, शारदाऽनुकंपा से जग सुज्ञानमय हो | हो शिव शक्ति की कृपा कुटुंब में, दीपावली यह मंगलमय हो || करुँ मैं "सुरेश " शिव लधून वंदन, परिवार शुभचिंतकों का शुभमय हो | सदा ऽनुकंपा शिव शक्ति की मिले, दीपावली यह मंगलमय हो || मायाशांति की लालसा मन में, हर्षिता हृदया शिवानी शिवम्मय हो | कहे "सुरेश" हिमराज सुता से, दीपावली सबकी मंगलमय हो || दीपावली सबकी यह मंगलमय हो, दी...